मुर्गीपालन एक महत्वपूर्ण आजीविका अतिविधि है, साथ ही यह परिवार के लिए पोषण का एक स्रोत है | सभी पशुओं की तरह सही समय पर पोल्ट्री का टीकाकरण सुनिश्चित करना आवश्यक है |
ब्रॉयलर चिकन (मुर्गी): यह एक विशेष मुर्गी है जिसे मांस के लिए विकसित किया जाता है और 2.4 से 2.6 किग्रा का शारीरिक वजन प्राप्त करने के लिए लक्षित होता है | 42 दिन (6 सप्ताह) में मुर्गी लगभग 4.2-4.6 किग्रा आहार का सेवन करती है |
लेयर चिकन: यह एक विशेष प्रकार का पक्षी है जो वर्ष में लगभग 300-320 अंडे देता है | लेयर मुर्गी को अंडो के लिये पाला जाता है |
पोल्ट्री के बैक्टीरियल/वायरल रोग सबसे गंभीर प्रकृति के हैं और बड़े पैमाने पर पक्षियों की मृत्यु की संभावना के कारण इनसे भारीवित्तीय नुकसान हो सकता है | निम्नलिखित उपायों के द्वारा ऐसे नुकसानों को कम किया जा सकता है:
संसाधन रहित ग्रामीण परिवारों के लिए ग्रामीण बाड़े का मुर्गीपालन आजीविका का एक स्रोत है |समर्थन सेवाओं के अभाव में मुर्गीपालन प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है |मुर्गीपालन में न्यू कासल एवं फाउल पॉक्स जैसी बीमारियाँ से बहुत अधिक संख्या में पक्षियों की मृत्यु होती है | इन सभी कमियों के बावजूद मुर्गीपालन अन्य पशु पालन गतिविधियों की तुलना में गरीब परिवारों के लिए ज्यादा लाभकारी है |
इनमें से कुछ लाभ हैं, जैसे:-
मुर्गीपालन को प्रारंभ करने के लिए मूल-भूत आवश्यकता काफी कम होती है जिससे इस व्यवसाय को पंचायत के अनेक परिवारों के साथ प्रारंभ किया जा सकता है | शुरूआती लागत और समयावधि कम होती है |
1 |
मुर्गियों की संख्या |
4 |
2 |
प्रतिवर्ष प्रजनन की संख्या |
3 |
3 |
अंडे प्रति प्रजनन |
15 |
4 |
बिक्री तक जीवित चूजों की संख्या |
7 |
5 |
दाम प्रति मुर्गी (7-8) |
300/- |
6 |
आय प्रति प्रजनन |
2100/- |
7 |
आय प्रति मुर्गी प्रति वर्ष |
6300/- |
8 |
4 मुर्गियों से आय प्रति वर्ष |
25,200/- |
प्रत्येक मुर्गीपालक चार मुर्गी और दो मुर्गी से शुरुआत कर सकता है | तीन प्रजनन प्रतिवर्ष से एक वर्ष में 70 मुर्गियां हो जाती हैं | 8-9 माह में हर चूजा 1.5 किलो वजन का हो जाता है और बेचा जा सकता है | हर माह सात मुर्गियों को बेच कर प्रतिवर्ष 18000/-रु. की आय प्राप्त की जा सकती है |
क्र.सं. |
आयु दिनों में |
टीका |
खुराक |
तरीका |
1 |
एस दिन की उम्र में (हैचरी पर) |
एस डी (मार्के रोग) |
0.2 मिली/चूजे |
एस/सी (त्वचा के नीचे) |
2 |
एक दिन की उम्र में |
आई बी (संक्रामक ब्रोंकाइटिस) |
0.2 मिली/चूजे |
चोंच डुबा कर |
3 |
पांचवें दिन |
बी1/लासोटा + एन.डी. किल्ड |
0.03 मिली/चूजे 0.25 मिली/चूजे |
आई/ओ (इंट्राओक्यूलर) एस/सी (त्वचा के नीचे) |
4 |
बारहवें से चौदहवें दिन तक |
आईबीडी इंटरमीडिएट प्लस |
0.03 मिली/चूजे |
आई/ओ या डी/ डब्ल्यू |
5 |
इक्कीसवें से अठ्ठाइसवें दिन |
लासोटा बूस्टर |
1.5 अधिक खुराक |
डी/ डब्ल्यू |
देसी नस्लों के साथ पिछवाड़े मुर्गीपालन की अवधारण शुरू की गई है | राज्य विभाग द्वारा उन्नत उत्पादन क्षमता (अंडे और मांस) के साथ रंगीन पंखों वाले पक्षियों को बढ़ावा दिया जा रहा है | उपलब्ध पक्षियों की विभिन्न नस्लें हैं | नीचे दी गई तालिका नस्लों और उनकी औसत मांस और अंडा उत्पादन की सूची प्रदान करता है |
क्र.सं. |
नस्ल का नाम |
उद्देश्य |
मांस उत्पादन |
72 सप्ताह में अण्डों का उत्पादन |
1 |
वंजारा |
दोहरे |
10 सप्ताह में 1.2 से 1 |
120-140 |
2 |
ग्रामप्रिया |
दोहरे (मुख्य रूप से अण्डों के लिए) |
15 सप्ताह में 1.2 से 1.5 किलोग्राम |
230-240 |
3 |
कृषिब्रो |
ब्रॉयलर |
42 दिन में 1.44 किलोग्राम 49 दिन में 1.92 |
- |
4 |
कृषि लेयर |
लेयर |
- |
280 |
5 |
श्रीनिधि |
दोहरे |
49 दिन में 750 ग्राम |
255 |
6 |
श्वेतप्रिया |
लेयर |
- |
200 |
7 |
करी प्रिया |
लेयर |
- |
298 |
8 |
करी सोनाली |
लेयर |
- |
280 |
9 |
करी देवेंद्र |
दोहरे |
8 सप्ताह में 1.2 |
200 |
10 |
कृषिब्रो विशाल |
ब्रॉयलर |
42 दिन में 1.6 से 1.7 |
- |
11 |
कृषिब्रो |
ब्रॉयलर |
42 दिन में 1.5 से 1.7 |
- |
12 |
कृषिब्रो |
ब्रॉयलर |
42 दिन में 1.4 से 1.5 |
- |
13 |
करी ब्रो ट्रॉपिकाना |
ब्रॉयलर (नंगी गर्दन) |
7 सप्ताह में 1.8 किलोग्राम |
- |
14 |
निर्भीक |
लेयर |
- |
1998 |
15. |
श्यामा |
लेयर |
- |
210 |
16. |
उपकारी |
लेयर |
- |
220 |
17 |
हितकारी |
लेयर |
- |
200 |
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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