पंचायत कार्यालय के सामने की दीवार पर आकर्षित ढंग से लिखे व पेंट किए गए विशिष्ट प्रकार के नोटिस चिपकाए गए थे । उनमें से एक था “आईएसओ 9001-2008 प्रमाणित कार्यालय - कार्यालय समय प्रात - 10 से संध्या 6 बजे तक” ।
पूछताछ करने पर अध्यक्ष ने बताया कि अब उसने कार्यालय का पदभार संभाल लिया है अत - वह कुछ विशेष व नए ढंग का काम करने की इच्छुक है, जो कि लोगों के लिए लाभदायक हो सके । चूँकि उसने आइएसओ प्रमाणपत्र के बारे में सुन रखा था और उसने अपनी पंचायत के लिए यह प्रमाण पत्र लेने की बात सोची । उसने बहुत से लोगों से संपर्क किया परन्तु लोगों ने इसे अव्यवहार्य विचार की संज्ञा दे दी और यहाँ तक कि कुछ लोगों ने उसका मजाक भी उड़ाया। परन्तु वह पूरी लगन के साथ इस विचार का अनुसरण करती रही । सौभाग्यवश चेन्नई में उसे एस उद्यमी चार्टड एकाउंटेंट से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ । उसने अपने इस विचार के बारे में चार्टड एकाउंटेंट से बात की । आरंभ में उसने इसे यह ख कर टाल दिया कि देश में कहीं भी पंचायतों को आइएसओ प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता । परन्तु उसकी जिद्द के आगे चार्टड एकाउंटेंट ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और इन्टरनेट पर इसकी गहनता से तलाश करनी आरंभ कर दी और कोलकाता, नई दिल्ली व मुम्बई जैसे अन्य शहरों में अपने मित्रों एवं व्यवसायिक लोगों से भी संपर्क किया । तब उसने इसे सूचित किया कि आइएसओ प्रमाण पत्र के लिए पंचायत को पूर्णरूपेण, चुने हुए प्रतिनिधियों व ग्राम समुदायों के साथ मिलकर एक टीम के रूप में काम करना होगा और निर्धारित कार्यालय प्रणाली का कड़ाई से पालन करते हुए ग्राम सभा के समक्ष संपूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करनी होगी । इसे पंचायत ने मंजूर कर लिया ।
चार्टड एकाउंटेंट और उसकी टीम ने सचिव को सरकारी रिकार्ड सही ढंग से इंद्राज करके अद्यतन बना कर रखने की सीख दी । चुने हुए प्रतिनिधियों को भी जनसंपर्क के बारे में दिशानिर्देश दिए। कार्यालय में समय की पाबंदी का पालन करने पर जोर दिया गया । कार्यालय की इमारत पर कार्यालय के समय की जानकारी साफ़ शब्दों में पेंट करके दर्शायी गई और संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को कार्यालय में अवश्यमेव समय से उपस्थित होने की हिदायत की गई । कार्यालय में अग्नि शमन यंत्र लगाया गया एवं प्राथमिक चिकित्सा पेटी भी उपलब्ध करायी गयी। अध्यक्ष ने पंचायत अधिनियम व नियमों का अध्ययन किया और पंचायत समिति की बैठकों व ग्राम सभाओं का आयोजन करने तथा लोक शिकायत सुनने संबंधी दिशानिर्देशों की जानकारी हासिल की । वह जाति एवं वर्ग पर ध्यान दिए बिना गावंवासियों के रोजमर्रा के कार्याकलापों के साथ पूरी तरह घुल-मिल गयी । वह अक्सर आंगनबाड़ी, स्वस्थ्य उप केन्द्रों, विद्यालय पुस्तकालय तथा जन वितरण प्रणाली के तहत आने वाली दुकानों में दौरा करने लगी । तदनन्तर में सर्वसम्मति से आईएसओ प्रमाणीकरण के लिए संकल्प पारित करके संबंधित प्राधिकारियों को भेजा गया । पंचायत ने आई एसओ प्रमाण-पत्र, आईएसओ 9001-2008 प्राप्त किया । पप्पारामबक्कम के लिए मिला आईएसओ प्रमाणपत्र गाँव के भावी विकास के लिए नींव का पत्थर है । पदाधिकारी पंचायत का दौरा करने लगे और जिला कलेक्टर भी पिछली ग्राम सभा में उपस्थित हुए । बहुत सी विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई ।
किसान परिवारों की कड़ी मेहनत के कारण पप्पारामबक्कम बहुत ही समृद्ध गाँव है । गाँव में कुल परिवारों में 90 प्रतिशत किसान परिवार हैं । वहाँ जमीन बहुत उपजाऊ है और आम व गन्ने जैसी नकदी फसलों के लिए वहाँ की जलवायु पूरी तरह सहायक है । इस प्रकार की फसलों को धान की खेती के साथ उगाया जाता है, क्योंकि यहाँ बोर वैल सबसे बेहतर जल स्त्रोत है । पंचायत के पास एक बड़ा पानी का तालाब है, जो 90 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ है । परन्तु इसकी गहराई काफी नहीं हैं और यह झाड़ियों व शुष्क पेड़-पौधों से भरा हुआ है । अत्याधिक उपजाऊ धान के खेत लगभग 280 एकड़ अथवा अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं । परन्तु इस झील की कोई साफ़-सफाई नहीं होती और किनारों पर सुरक्षा दीवार न होने के कारण भारी वर्षा से इसमें कीचड़, गाद तथा अन्य प्रकार का कूड़ा-करकट जमा हो जाता है । किसान समुदाय ग्राम सभाओं में लगातार इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठा रहे थे । इलाके के पंचायत अध्यक्ष एवं वार्ड सदस्यों ने पंचायत समिति की बैठकों में इस मुद्दे को उठाया और सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया । इस मामले को जिला कलेक्टर एवं अन्य संबंधित पदाधिकारियों के ध्यान में लाया गया। अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष ने जिले के सिंचाई विभाग के मुख्य इंजीनियर के समक्ष गरीब किसानों की दुर्दशा बयान की । मुख्य इंजीनियर ने सुपरिटेडेंट इंजीनियर को मौके पर जा कर उस इलाके के हालात का जायजा लेने के निर्देश दिए । पंचायत ने इस झील की उजड़ी हुई दशा के बारे में इंजीनियर दल को जानकारी दी । चूँकि पंचायत पदाधिकारी व पूरा गाँव उन अधिकारियों की मदद के लिए पूरी तरह तैयार था अत - इस झील की मरम्मत व रखरखाव कार्य के लिए तेजी से विस्तृत अनुमान तैयार किए गए और इस काम के लिए 9 लाख की अनुमानित लागत की मंजूरी दी गई । काम को पंचायत व किसान समुदाय की मदद से उल्लेखनीय समय सीमा में पूरा कर लिया गया । अब पूरा इलाका नए सिरे से लगाए गए पौधों व धान की उन्नत किस्म लगाने से पूरी तरह हरा-भरा दिखने लगा है । खेत के अंतिम छोर तक पानी के एकसमान बहाव के लिए पंचायत ने दो ओर झीलों के निर्माण का प्रस्ताव भेजा है और अध्यक्ष ने बताया कि “प्रस्ताव की मंजूरी पाने के लिए हम दृढ़ निश्चयी है”।
थिंडामंगलम ग्राम पंचायत, स्लेम जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर है जो ग्रामीण विकास गतिविधियों के लिए अनुकरणीय आदर्श के रूप में उभर कर आ रही है । पंचायत से सटी हुई इमारत में एसएचजी द्वारा नारियल जूट निर्माण यूनिट लगाई गई है । यह यूनिट अपनी सफलता की कहानी स्वयं बयान करती है कि किस प्रकार ग्राम पंचायत समिति की मदद से एसएचजी के कुछ संघ अपने-आप में शक्तिशाली उत्पादन इकाईयाँ बन गयी है, जो महिलाओं को अधिक सशक्त बना रहीं हैं । थालमपियो एसएसजी, महिलामपू एसएचजी, रुजा कुट्टम एसएचजी एवं थमाराई एसएचजी महिलाओं के चार एसएचजी हैं । पंचायत की मदद से नारियल जूट उत्पादन यूनिट लगाने के लिए यह सभी एसएचजी एकसाथ मिलकर संघ बन गए है । ग्राम पंचायत की मदद से इन चर एसएचजी को आवर्ती राशि के रूप में 40,000/- रु. प्रत्येक की सहायता दी गई जिसमें से 10,000/- सरकार की भी हिस्सेदारी थी । एसएचजी बैंकों से जुड़े हुए हैं । संघ के एक एसएचजी रुजा कुट्टम ने ग्रेड II पारित कर लिया और उसे आर्थिक सहायता के रूप में 2.40 लाख की सहायता दी गई जिसमें से 1.20 लाख रु. आर्थिक मदद के रूप में दिए गए है ।
इससे पूर्व प्रत्येक एसएचजी नारियल जूट निर्माण कार्य स्वयं किया करते थे । जिसके परिणामस्वरूप नारियल के रेशों की रोजमर्रा की खरीद-फरोक्त व बुने हुए नारियल की मार्किटिंग कतई किफायती नहीं थी और उत्पादन व मुनाफ़ा नाममात्र था । अध्यक्ष के प्रयासों के कारण यह चारों एसएचजी एकसाथ मिलकर एक संघ के रूप में एक हो गए । फैक्ट्री की इमारत बनाने के लिए एसजीएसवाई बुनियादी राशि से 5 लाख रु. लिए गए । नारियल जूट यूनिट आज मोटर सहित सात मशीनों से काम चला रही है और प्रत्येक की लागत 42,000/- रु. है । ग्राम पंचायत की मदद से आमदनी बढ़ाने के लिए एसएचजी संघ द्वारा लगाई उत्पादन यूनिट बेहतर उदाहरण है ।
स्रोत: भारत सरकार, पंचायती राज मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 7/12/2019
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