श्रम अधिनियम या श्रम कानून किसी राज्य द्वारा निर्मित उन कानूनों को कहते हैं जो श्रमिक (कार्मिकों), रोजगार प्रदाताओं, ट्रेड यूनियनों तथा सरकार के बीच सम्बन्धों को पारिभाषित करतीं हैं।श्रमिक समाज के विशिष्ट समूह होते हैं। इस कारण श्रमिकों के लिये बनाये गये विधान, सामाजिक विधान की एक अलग श्रेणी में आते हैं। औद्योगगीकरण के प्रसार, मजदूरी अर्जकों के स्थायी वर्ग में वृद्धि, विभिन्न देशों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में श्रमिकों के बढ़ते हुये महत्व तथा उनकी प्रस्थिति में सुधार, श्रम संघों के विकास, श्रमिकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता, संघों श्रमिकों के बीच शिक्षा के प्रसार, प्रबन्धकों और नियोजकों के परमाधिकारों में ह्रास तथा कई अन्य कारणों से श्रम विधान की व्यापकता बढ़ती गई है। श्रम विधानों की व्यापकता और उनके बढ़ते हुये महत्व को ध्यान में रखते हुये उन्हें एक अलग श्रेणी में रखना उपयुक्त समझा जाता है।
सिद्धान्तः श्रम विधान में व्यक्तियों या उनके समूहों को श्रमिक या उनके समूह के रूप में देखा जाता है।आधुनिक श्रम विधान के कुछ महत्वपूर्ण विषय है - मजदूरी की मात्रा, मजदूरी का भुगतान, मजदूरी से कटौतियां, कार्य के घंटे, विश्राम अंतराल, साप्ताहिक अवकाश, सवेतन छुट्टी, कार्य की भौतिक दशायें, श्रम संघ, सामूहिक सौदेबाजी, हड़ताल, स्थायी आदेश, नियोजन की शर्ते, बोनस, कर्मकार क्षतिपूर्ति, प्रसूति हितलाभ एवं कल्याण निधि आदि है।
केन्द्र सरकार रेलवे, खदान/तेल क्षेत्रों, वायु, परिवहन एवं महत्वपूर्ण बन्दरगाहो के प्रतिष्ठानों के संबंध में अधिनियम के अर्न्तगत उपयुक्त सरकार है। प्रत्येक नियोक्ता रेलवे (कारखानों को छोडकर) को मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार है,यदि नियोक्ता रेलवे प्रशासन है और रेलवे प्रशासन ने संबंधित स्थानीय क्षेत्र के लिए इसके लिए किसी व्यक्ति को नामित किया है। नियोक्ता श्रमिकों द्वारा कमाई मजदूरी को रोक नहीं सकते हैं और न ही वे कोई अनधिकृत कटौती कर सकते हैं। मजदूरी की अवधि के अन्तिम दिन के बाद विनिर्दिष्ट दिन समाप्त होने से पूर्व भुगतान अवश्य किया जाना चाहिए। जुर्माना केवल उन कृत्यों अथवा विलोपों के लिए नहीं लगाया जा सकता है जिन्हें उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है और जुर्माना देय मजदूरी के तीन प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । यदि मजदूरी के भुगतान में विलम्ब होता है अथवा गलत कटौतियाँ की जाती हैं तो श्रमिक अथवा उनके मजदूर संघों द्वारा पीडब्ल्यू अधिनियम के अन्तर्गत प्राधिकारी के समक्ष दावा दायर कर सकते हैं और प्राधिकारी के आदेश के विरूद्ध अपील दायर की जा सकती है।वर्तमान समय में 18,000 प्रति माह तक वेतन लेने वाले कर्मचारी इस अधिनियम के अर्न्तगत शामिल हैं।
यह अधिनियम सरकार को विनिर्दिष्ट रोजगारों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए प्राधिकृत करता है। इसमें उपयुक्त अन्तरालों और अधिकतम पाँच वर्षो के अन्तराल पर पहले से निर्धारित न्यूनतम मजदूरियों की समीक्षा करने तथा उनमें संशोधन करने का प्रावधान है। केन्द्र सरकार अपने प्राधिकरण द्वारा अथवा इसके अर्न्तगत चलाए जा रहे किसी अनुसूचित रोजगार के लिए अथवा रेलवे प्रशासन में अथवा खदानों,तेल क्षेत्रों अथवा बडे बन्दरगाहों अथवा केन्द्रीय अधिनियम के अर्न्तगत स्थापित किसी निगम के संबंध में उपयुक्त एजेन्सी है। अन्य अनुसूचित रोजगार के संबंध में राज्य सरकारें उपयुक्त सरकार हैं। केन्द्र सरकार का भवन एवं निर्माण कार्यकलापों जो अधिकतर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, रक्षा मंत्रालय आदि द्वारा संचालित किए जाते हैं, में तथा रक्षा एवं कृषि मंत्रालयों के अर्न्तगत कृषि फार्मो के साथ सीमित संबंध है। अधिकतर ऐसे रोजगार राज्य क्षेत्रों के अर्न्तगत आते हैं और उनके द्वारा ही मजदूरी निर्धारित/संशोधित करना तथा उनके अपने क्षेत्रों के अर्न्तगत आने वाले अनुसूचित रोजगार के संबंध में उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करना अपेक्षित होता है।
केन्द्रीय क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी का प्रवर्तन केन्द्रीय औद्योगिक संबंध तंत्र(सी आई आर एम) के जरिए सुनिश्चित किया जाता है। केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय क्षेत्र के अर्न्तगत 40 अनुसूचित रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 के अर्न्तगत न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की है। मुख्य श्रमायुक्त छ महीने के अन्तराल पर अर्थात् 1 अप्रैल और 1 अक्तूबर के प्रभाव से इसकी समीक्षा करने वाला वी डी ए है।
यह अधिनियम सभी कारखानों और प्रत्येक उस प्रतिष्ठान पर लागू होता है। जो 20 अथवा इससे अधिक श्रमिकों को नियुक्त करता है। बोनस संदाय अधिनियम,1965 में मजदूरी के न्यूनतम 8.33 प्रतिशत बोनस का प्रावधान है। पात्रता उद्देश्यों के लिए निर्धारित वेतन सीमा 3,500 रुपये प्रतिमाह है और भुगतान इस निर्धारण के अन्तर्गत होता है कि 10,000 रु.तक प्रति माह मजदूरी अथवा वेतन लेने वाले कर्मचारियों को देय बोनस का परिकलन इस प्रकार किया जाता है जैसे कि उनका वेतन अथवा उनकी मजदूरी 3,500 रुपये प्रतिमाह हो।
केन्द्र सरकार ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों के संबंध में उपयुक्त सरकार है जिनके लिए यह औद्यगिक विवाद अधिनियम,1947 के अर्न्तगत उपयुक्त सरकार है।
अधिनियम में पुरुष तथा महिला श्रमिकों के लिए एक ही और समान प्रकृति के कार्य के लिए समान मजदूरी का तथा स्थानांतरणों, प्रशिक्षण और पदोन्नति आदि के मामलों में महिला कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं करने का प्रावधान है।
केन्द्र सरकार ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों के संबंध में उपयुक्त सरकार है जिनके लिए यह औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 के अर्न्तगत उपयुक्त सरकार है।
इस अधिनियम को कतिपय प्रतिष्ठानों मे ठेका श्रम के रोजगार को विनियमित करने तथा कतिपय परिस्थितियों में और उनसे संबंधित मामलों के लिए इसके उन्मूलन का प्रावधान करने के लिए अधिनियमित किया गया है। यह 20 या इससे अधिक ठेका श्रमिकों को नियुक्त करने वाले सभी प्रतिष्ठानों एवं ठेकेदारों पर लागू होता है। इस अधिनियम में इस अधिनियम के अभिशासन के परिणामस्वरुप उठने वाले मामलों पर संबंधित सरकारों को परामर्श देने के लिए केन्द्रीय एवं राज्य सलाहकार बोर्डों के गठन का प्रावधान किया गया है।
केन्द्र सरकार मे विभिन्न प्रकार के कार्यो,रोजगारों और प्रक्रियाओं जैसे खानों,भारतीय खाद्य निगम के गोदामों,बन्दरगाह न्यासों एवं अनेक अन्य उद्योगों/प्रतिष्ठानों जिनके लिए केन्द्र सरकार उपयुक्त सरकार है, में ठेका श्रम के रोजगार को प्रतिबन्धत करने बाली अनेक अधिसूचनाएं जारी की हैं। केन्द्रीय ठेक श्रम सलाहकार बोर्ड ने भी विभिन्न ठेका श्रम प्रणाली पर प्रतिबंध के मामले की जाँच का लिए अनेक समितियों का गठन किया है।
केन्द्र सरकार ऐसे उद्योगों और प्रतिष्ठानों के संबंध में उपयुक्त सरकार है जिनके लिए यह औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 के अर्न्तगत उपयुक्त सरकार है।
यह अधिनियम कतिपय खतरनाक पेशों और प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार को प्रतिबंधित करता है और अन्य क्षेत्रों में उनके रोजगार को विनियमित करता है। केन्द्र सरकार के नियंत्रणाधीन प्रतिष्ठान अथवा रेलवे प्रशासन अथवा बडे बन्दरगाह अथवा खान अथवा तेल क्षेत्र के संबंध में उपयुक्त सरकार है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने रिट् याचिका (सिविल) संख्या 465/86 में दिनांक 10.12.1996 के अपने निर्णय में कतिपय निर्देश दिया है कि किस प्रकार खतरनाक रोजगार में कार्य कर रहे बच्चों को ऐसे रोजगारों से निकाला जाए और उन्हें पुनर्स्थापित किया जाए। उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्देशों में से एक बाल श्रम के सर्वेक्षण संचालन से संबंधित है। सर्वेक्षण कराने का मुद्दा केन्द्रीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता में दिनांक 22.01.1997 को नई दिल्ली में आयोजित सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के श्रम मत्रियों, श्रम सचिवों एवं श्रम आयुक्त के सम्मेलन में विचार विमर्श के लिए आया। सम्मेलन में विचार विमर्श के बाद श्रम मंत्री द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय को कार्यान्वित करने हेतु राज्य सरकारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।
इस अधिनियम द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नियोक्ताओं के लिए उनके अर्न्तगत रोजगार की स्थितियों को औपचारिक रूप से परिभाषित करना और अधिप्रमाणन प्राधिकारी के पास स्थाई आदेशों के प्रारूप को अधिप्रमाणित करने के लिए भेजना अपेक्षित बनाया गया है। यह ऐसे प्रत्येक प्रतिष्ठान पर लागू होता है जिसमें 100 (केन्द्र सरकार द्वारा ऐसे प्रतिष्ठान के लिए इसे घटाकर 50 कर दिया गया है जिसके लिए वह उपयुक्त सरकार है।) अथवा इससे अधिक श्रमिको को नियुक्त किया गया है और केन्द्र सरकार अपने नियंत्रणाधीन प्रतिष्ठानों अथवा रेलवे प्रशासन अथवा बडे बन्दरगाह, खान अथवा तेल क्षेत्र के संबंध में उपयुक्त सरकार है । औद्योगिक रोजगार (स्थाई आदेश) अधिनियम, 1946 के अन्तर्गत सभी क्षेत्रीय श्रमायुक्तों (कें.) को केन्द्रीय क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले प्रतिष्ठानों के संबंध में स्थाई आदेशों को प्रमाणित करने के लिए प्रमाणन अधिकारी घोषित किया गया है। मुख्य श्रमायुक्त(कें.) तथा सभी उप मुख्य श्रमायुक्त(कें.) अधिनियम के अन्तर्गत अपीलीय प्राधिकारी घोषित किया गया है।
रोजगार के घंटे संबंधी विनियमन कारखाना, खान अधिनियम तथा इंडियन मर्चेन्ट शिपिंग अधिनियम द्वारा अधिशासित एंव विशिष्ट ऱूप से शामिल नहीं किए गए संस्थानों को छोडकर सभी संस्थानों पर लागू हैं। रोजगार के घंटे संबंधी विनियमनों में गहन, निरंतर, विशेष रुप से रुक कर और शामिल नहीं किए गए कार्यों की प्रकृति के अनुसार रेलवे श्रमिकों के वर्गीकरण का प्रावधान है।
यह कार्य के घंटों और विश्राम की अवधि को विनियमित करता है। वर्गीकरण से असंतुष्ट श्रमिक ऐसे मामलों पर निर्णय के लिए प्राधिकृत क्षेत्रीय श्रमायुक्तों के पास जा सकते हैं। प्राधिकरी के आदेश के विरुद्ध अपील श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अधीन उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष दायर की जा सकती है। संयुक्त सचिव अपीलीय प्राधिकारी हैं।
यह अधिनियम बच्चे के जन्म से पूर्व और बाद में कतिपय अवधि के लिए कतिपय प्रतिष्ठानों में महिलाओं के रोजगार को विनियमित करता है और प्रसूति एवं अन्य लाभों का प्रावधान करता है।यह अधिनियम कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 के अर्न्तगत शामिल कर्मचारियों को छोडकर दस अथवा इससे अधिक व्यक्तियों को नियुक्त करने वाले सभी खानों ,कारखानों, सर्कस, उद्योग, प्लांटों, दुकानों एवं प्रतिष्ठनों पर लागू होता है।राज्य सरकारों द्वारा इसे अन्य प्रतिष्ठानों में भी लागू किया जा सकता है।अधिनियम के अन्तर्गत विस्तार के लिए कोई मजदूरी सीमा नहीं है। सर्कस उद्योग एवं खानों के संबंध में केन्द्र सरकार उपयुक्त सरकार है।
यह अधिनियम खानों, कारखानों, कम्पनियों तथा दस इससे अधिक अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाली दुकानों,प्रतिष्ठानों पर लागू है। इस अधिनियम में सेवा के प्रत्येक पूर्ण वर्ष के लिए 15 दिनों की मजदूरी की दर से और अधिकतम दस लाख रु. के उपदान संदाय का प्रावधान है। मौसम के लिए सात दिनों की मजदूरी की दर से उपदान देय होता है।
इस अधिनियम में किसी भी अवार्ड अथवा इस अधिनियम सं नियोक्ता के साथ करार और ठेके के अन्तर्गत उपदान की बेहतर शर्तों को प्राप्त करने संबंधी कर्मचारी के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पडता है। केन्द्र सरकार अपने अन्तर्गत अथवा अधिक राज्यों में शाखाओं वाले प्रतिष्ठान अथवा अपने अन्तर्गत नियंत्रणाधीन कारखाने के प्रतिष्ठान अथवा रेलवे प्रशासन अथवा बडे बन्दरगाह अथवा खान अथवा तेल क्षेत्र के संबंध में उपयुक्त सरकार है।
इस अधिनियम में औद्योगिक विवाद की जाँच और समाधान कतिपय अन्य उद्देश्यों के लिए प्रावधान और किए गए हैं। इसमें समाधान अधिकारियों के विशेष तंत्र,कार्य समितियों,जाँच न्यायालय, श्रम न्यायालयों, औद्योगिक न्यायाधिकरणों एवं राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों का प्रावधान किया गया है और उनकी शक्तियों उनके कार्यो और उनके द्वारा अनुपालन की जाने वाली प्रक्रिया को परिभाषित किया गया है।
इसमें उन आकस्मिक स्थितियों जब विधिक रूप से हडताल अथवा तालाबंदी की जा सके,उन्हें अवैधानिक अथवा गैर कानूनी घोषित किया जाए, जब श्रमिकों की छंटनी, कटौती बर्खास्ती की जाए,परिस्थियाँ जब औद्योगिक प्रतिष्ठान को बन्द कर दिया जाए और अनेक अन्य मामले जो औद्योगिक कर्मचारियों और नियोक्ताओं से संबंधित का विस्तार से उल्लेख है।
केन्द्र सरकार निम्नलिखित द्वारा संचालित उद्योगों के लिए उपयुक्त सरकार हैः-
(क) केन्द्र सरकार के प्राधिकरण के अन्तर्गत अथवा द्वारा
(ख) रेलवे कम्पनी द्वारा
(ग) इस उद्देश्य के लिए विनिर्दिष्ट नियंत्रित उद्योग
(घ) इस अधिनियम की धारा 2(क) में उल्लिखित कतिपय उद्योगों के संबंध में आई आर परिवहन संवा अथवा बैंकिंग अथवा बीमा कम्पनी,खान,तेल क्षेत्र,छावनी बोर्ड अथवा बडा बन्दरगाह,कोई कम्पनी जिसमें कम से कम इक्यावन प्रतिशत पूंजीगत शेयर में हिस्सेदारी केन्द्र सरकार की हो,निगम जो इस खंड में उल्लिखित निगम नहीं हो और जो संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा अथवा इसके अन्तर्गत स्थापित हो अथवा केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम सहायक कम्पनियाँ जो मुख्य उद्यम द्वारा स्थापित हो और स्वायत्त निकाय जो केन्द्र सरकार के स्वामित्व अथवा नियंत्रण के अधीन हों ।
राज्य सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम द्वारा स्थापित सहायक कम्पनियों तथा राज्य सरकार के स्वामित्व अथवा नियंत्रणाधीन स्वायत्त निकायों ,राज्य़ सरकार के साथ किसी अन्य औद्योगिक विवाद के संबंध में।
बशर्ते कि किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में ठेकेदार के माध्यम से नियुक्त ठेका श्रमिक के बीच विवाद की स्थिति में जहाँ ऐसा विवाद उठा हो, उपयुक्त सरकार ,जैसा मामला हो, होगा जिसका नियंत्रण ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठान पर हो।
इस अधिनियम का अभिप्राय अन्तर राज्यीय प्रवासी श्रमिक के रोज़गार को विनियमित करना तथा उनकी सेवा शर्तों का प्रावधान करना है। यह प्रत्येक प्रतिष्ठान पर लागू होता है और ठेकेदार जो पाँच अथवा इससे अधिक श्रमिकों की नियुक्ति करता है, प्रत्येक अन्तर राज्यीय प्रवासी श्रमिक को अन्तर राज्यीय पास बुक प्रदान करेगा, जिसमें सभी ब्यौरे, मासिक मज़दूरी के 50% के समतुल्य अथवा 75/- रु जो भी अधिक हो विस्थापन भत्ता के भुगतान, यात्रा भत्ता के भुगतान जिसमें यात्रा की अवधि के दौरान मज़दूरी का भुगतान शामिल है। उपयुक्त आवासीय स्थान, चिकित्सा सुविधाओं और बचाव के कपड़े, मज़दूरी का भुगतान स्त्री-पुरुष के भेद-भाव के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन आदि का ब्यौरा होगा। प्रतिष्ठान में अधिनियम के प्रावधान के प्रवर्तन के लिए मुख्य ज़िम्मेदारी केन्द्र सरकार और राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र की है, जिसके अन्तर्गत वह प्रतिष्ठान है।
यह अधिनियम प्रत्येक उस प्रतिष्ठान पर लागू होता है जो किसी भवन अथवा अन्य निर्माण कार्य में 10 अथवा उससे अधिक श्रमिकों को नियुक्त करता है और जिसकी परियोजना लागत 10 लाख रु. से अधिक है। राज्य सरकारों द्वारा कल्याण बोर्डों के गठन और कोष के अन्तर्गत लाभग्राहियों के पंजीकरण तथा उनके पहचान कार्डों के प्रावधान आदि के अलावा कानून के अभिशासन के परिणामस्वरूप उठने वाले मामलों पर उपयुक्त सरकारों को परामर्श देने के लिए केन्द्रीय और राज्य सलाहकार समितियों के गठन का भी प्रावधान है। इन विधानों में रोज़गार और सेवा शर्तों, निर्माण श्रमिकों के लिए सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी उपायों के लिए राज्य स्तर पर कल्याण कोष की स्थापना, आदि का प्रावधान है।
इस अधिनियम में 19 व्यक्तियों तक नियुक्त करने वाले प्रतिष्ठानों के संबंध में नियोक्ताओं को श्रम कानूनों के अन्तर्गत रजिस्टरों को रखने और प्रस्तुत करने से छूट प्रदान करने का प्रावधान है।
स्रोत: भारत सरकार का श्रम विभाग
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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