भारत में गरीब मजदूरों के आंतरिक पलायन में वृद्धि हो रही है। अनौपचारिक क्षेत्र में गरीब आमतौर पर आकस्मिक मजदूरों के रूप में पलायन करते हैं। प्रवासियों की ऐसी जनसंख्या में रोग फैलने की संभावना ज्यादा होती है और उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता भी कम होती है।
वर्ष 2001 की जनगणना अवधि के दौरान देश में ज्यादा आर्थिक लाभ वाले शहरों या दूसरे इलाकों में काम करने के लिए 14 करोड़ 40 लाख लोगों ने प्रवास किया। देश में 25 लाख प्रवासी मजदूर कृषि एवं बागवानी, ईंट-भट्टों, खदानों, निर्माण स्थलों तथा मत्स्य प्रसंस्करण में कार्यरत हैं (एनसीआरएल, 2001)। प्रवासियों की बड़ी संख्या शहरी अनौपचारिक उत्पादन निर्माण, सेवा या परिवहन क्षेत्रों में भी काम करते हैं। साथ ही, वे आकस्मिक मजदूर,सिर पर बोझा ढोने वाले मजदूर, रिक्शा चालकों और फेरीवालों के रूप में कार्यरत हैं। काम के आकस्मिक प्रकृति के कारण आवास स्थान में तीव्र बदलाव से वे रोग-निवारक सेवा से वंचित होते हैं और शहर के अनौपचारिक कार्य व्यवस्था में उनकी कार्य दशा उन्हें पर्याप्त उपचारात्मक सेवा पाने से असमर्थ कर देती है।
प्रवासियों में जो अतिदुर्बल हैं उनपर ‘आंतरिक विस्थापित’ लोगों के रूप में ध्यान देने की जरूरत है। भारत में आंतरिक विस्थापित लोगों की संख्या 6 लाख (आईडीएमसी,2006) के करीब है। आंतरिक विस्थापन जातीय संघर्ष, सांप्रदायिक संघर्ष, राजनैतिक कारणों से, विकास परियोजनाओं और प्राकृतिक विनाश के कारण होता है। आंतरिक विस्थापित लोग सरकारी सामाजिक सुरक्षा पाने में असमर्थ होते हैं।
स्रोत: वल्नेरेबल ग्रुप्स इन इंडिया, लेखक- चंद्रिमा चैटर्जी एवं गुंजन शिवरान सीईएचएटी, मुम्बई।
अंतिम बार संशोधित : 2/23/2020