वर्तमान व्यावसायिक युग में नैतिकता का पक्ष पीछे छूटता जा रहा है। आज उत्पादकों एवं विपणनकर्ताओं द्वारा अधिक लाभ कमाने की लालसा और इच्छा से वस्तुओं में विभिन्न प्रकार के हानिकारण पदार्थों का मिश्रण किया जा रहा है। इसके साथ ही भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता के संबंध में अतिरंजित दावे किए जाते हैं। कई बार इनके प्रभाव में आकर उपभोक्ता इन वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोग करने लगता है, जिससे उसे धन और जीवन के रूप में दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उसे समझ में नहीं आता है कि वह क्या करें? उपभोक्ताओं की जागरूकता के लिए इस अध्याय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही हैं जिसका लाभ उठाकर वह जागरूक उपभोक्ता बन सकता है और ऐसे अनुचित व्यापारिक पद्धतियों से बच सकता है तथा किसी प्रकार की समस्या होने पर संबधित कानूनों की मदद से लाभ प्राप्त कर सकता है।
तत्कालीन नियम, विनियम, एवं कानून के अन्तर्गत वस्तुओं की गुणवत्ता, माप, असर, शुद्धता या मापदण्डों में त्रुटि, अपूर्णता अथवा कमी जो विक्रेता द्वारा किए गए दावे के अनुसार नहीं है-
वस्तु अथवा सामग्री में दोष माने जाते हैं।
किसी भी प्रकार की चल सम्पत्ति (करेन्सी को छोड़कर) इसमें माल अथवा शेयर, उगी हुई फसल, घास या ऐसी चीजें जो जमीन से जुड़ी हुई हैं तथा जिन्हें बिक्री या बिक्री अनुबंध से पहले हटाया या काटा जा सकता है।
सेवा से तात्पर्य किसी भी प्रकार की सेवा है जो उसके संभावित प्रयोगकर्ता को उपलब्ध कराई जाती है, इसके अंतर्गत बैंकिंग, बीमा, परिवहन, गृह निर्माण, रेलवे, बिजली, मनोरंजन, टेलीफोन, चिकित्सा आदि सभी प्रकार की सेवाएं सम्मिलित हैं। किन्तु इसके अन्तर्गत निःशुल्क या व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा किया जाना नहीं है।
भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए अनेक नियम और कानून बनाए हैं। उपभोक्ताओं की जानकारी के लिए यहां कुछ महत्वपूर्ण कानूनों की संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है। यह निम्नलिखित प्रकार हैं :
धोखाधड़ी, जबरदस्ती, अवांछनीय प्रभाव अथवा भूलवश किए गए अनुबंधों को निष्प्रभावी मानते हुए उपभोक्ताओं को संरक्षण प्रदान करता है। यदि कोई ग्राहक उत्पाद की गुणवत्ता अथवा मूल्य के बारे में विक्रेता द्वारा ठगा जाता है तो वह ग्राहक इस सौदे के अनुबंध को समाप्त कर सकता है।
यह अधिनियम वस्तुओं की बिक्री को नियमित करने के लिए निर्मित किया गया था, जिससे कि ग्राहक और विक्रेता दोनों के हितों की रक्षा हो सके। अधिनियम की धारा 14 से 17 में की गयी व्यवस्था के अनुसार खरीददार को सौदे से बचने व यदि सौदे की शर्तों का पालन नहीं होता है तो क्षतिपूर्ति का दावा करने का अधिकार है।
इसमें खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने तथा खाद्य पदार्थों की शुद्धता सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया है। अधिनियम के अनुसार, कोई उपभोक्ता या उपभोक्ता संघ क्रय की गयी खाद्य सामग्री का विश्लेषण लोक खाद्य विश्लेषक से करवा सकता है। विश्लेषक अपनी रिपोर्ट स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों को भेजेगा और उसमें मिलावट पाए जाने पर मिलावटी सामान बेचने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इसमें उपभोक्ता संरक्षण के लिए तथा ट्रेडमार्क संरक्षण की व्यवस्था की गयी है। नकली ट्रेडमार्क का प्रयोग रोकने के लिए इसमें व्यापक व्यवस्था की गयी हैं। माप तौल मानक अधिनियम, 1976 व्यापार में प्रयुक्त माप तौल संबंधी मानकों का निर्धारण करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना है। डिब्बाबन्द सामग्री के विषय में इस अधिनियम में विद्गोष प्रावधान किए गये हैं, क्योंकि जो सामग्री 37 उपभोक्ता के अधिकार - एक विवेचन डिब्बाबन्द अवस्था में है उसके गुण, संखया, माप, तौल आदि के बारे में ग्राहक नहीं जान पाता है।
इसका उद्देश्य काला बाजारियों, जमाखोरों एवं मुनाफाखोरों की धांधलियों को रोकना है। इसके अंतर्गत सरकार को यह अधिकार प्राप्त है, कि आवश्यक वस्तुओं के सप्लाई में बाधा पहुँचाने वाले व्यक्ति को वह गिरफ्तार कर सकती है तथा जेल भेज सकती है। जिसकी अवधि छह माह तक हो सकती है।
एकाधिकार एवं अवरोधक व्यापार व्यवहार एवं प्रतियोगिता अधिनियम, 2002 द्वारा निजी एकाधिकार पर नियंत्रण रखा जाता है, क्योंकि यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल हो सकता है। इसका प्रमुख उद्देश्य बाजार में स्वतंत्रता एवं उचित प्रतियोगिता को सुनिश्चित करना है।
इसमें व्यवस्था है कि :
यह अधिनियम प्रतिस्पर्धारोधी समझौतों को रोकने, व्यापारिक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने एवं व्यापारिक समूहीकरण को संचालित करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
स्त्रोत: भारतीय लोक प्रशासन संस्थान,नई दिल्ली।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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