बैंक के अप्रत्यक्ष ऋण सहायता संविभाग के अंतर्गत एक बड़ा हिस्सा प्राथमिक ऋणदार्त्री संस्थाओं अर्थात्राज्य वित्त निगमों, राज्य औद्योगिक विकास/निवेश निगमों, जिन्हें सामूहिक रूप से राज्य स्तरीय संस्थाएं कहा जाता है। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों, अनुसूचित सहकारी बैंको, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और चुनिन्दा वित्तीय संस्थाओं को प्रदत्त पुनर्वित्त का है। इसके आलावा, इस संविभाग में सावर्जनिक क्षेत्र के उन उपक्रमों को उपलब्ध संसाधन सहायता/सविधि ऋण शामिल है, जिनसे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को लाभ मिलता है। मुलभुत संरचनागत परियोजनाओं को बैंकों के साथ मिलकर सहायता संघ व्यवस्था के अंतर्गत सविधि ऋण पर भी विचार किया जाता है, बशर्तें परियोजना की अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों के साथ संबद्धता हो।
मुख्यतः राज्य वित्त निगमों को दी जानेवाली सहायता पूर्ववत, समग्र जोखिम-सीमा सम्बन्धी मानदंडों, वित्तीय स्वास्थ्य और समझौता ज्ञापन के अंतर्गत कवरेज, तथा बोर्ड द्वारा पहले अनुमोदिटी ऋण जोखिम सीमाओं पर आधारित रहेगी।
राज्य वित्त निगमों को प्रदत्त बैंक की जोखिम-सीमा के बड़े आकार के मद्देनजर, कार्यस्थालीय एवं दूरवर्ती कार्यप्रणाली के माध्यम से सभी राज्य वित्त निगमों के कार्यनिष्पादन की गहन निगरानी की जाती रहेगी। साथ ही, उद्योग सम्बन्धी परम्पराओं के सापेक्ष, विनियामक ढाँचे के साथ मेल रखने के लिए, बैंक राज्य वित्त निगमों को भारतीय रिजर्व बैंक के निर्धारित विवेकपूर्ण मानदंडों का पालन करने की सलाह देता आ रहा है। राज्य वित्त निगम अन्य विनियामक निर्देशों, जैसे लेखांकन की उपचय प्रणाली अपनाने, आय निर्धारण एवं आस्ति निर्धारण एवं आस्ति वर्गीकरण मानको, केवाईसी/धन-शुद्धि निरोधी मानदंडों, उद्योग-वार जोखिम-सीमा के मानकों, आस्तियों के मूल्यांकन, आदि का पालन भी करेंगे।
समग्रता: अनुसूचित वाणिज्य बैंकों का जोखिम स्तर कम है। अनुसूचित वाणिज्य बैंक समान्यतः अल्पावधि पुनर्वित्त सहायता का उपयोग करने को वरीयता देते हैं। तथापि, योजना के अंतर्गत दीर्घावधि आस्तियाँ निर्मित करने की जरूरत देखते हुए वित्तवर्ष 2016 में अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को पुनर्वित्त प्रदान कर ऐसी आस्तियाँ निर्मित करने पर प्रमुखता से बल दिया जाना जारी रहेगा। इस प्रसंग में, बैंकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे 5 वर्ष और उससे अधिक चुकौती अवधि वाले दीर्घावधि पुनर्वित्त का उपयोग करें। वित्तवर्ष 2016 के दौरान अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को पुनर्वित्त के रूप में जोखिम-सीमा मंजूर किये जाने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा, किन्तु ऐसे जोखिम सीमाएँ बैंक द्वारा निर्धारित विशिष्ट प्रतिपक्षी ऋण जोखिम सीमाओं के अंदर ही सिमित रखा जायेगा, जिनक विवरण संलग्न-V में दिया गया है। प्रत्येक बैंक-वार उच्चतम सीमाओं का निर्धारण बैंक की श्रेणी, उसकी निवल सम्पत्ति और जोखिम श्रेणीनिर्धारण के आधार पर किया जाता है।
कुछ वर्षों को दौरान, अनुसूचित सहकारी बैंकों ने संख्या, आकार एवं किये जा रहे व्यवसाय की मात्रा के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण वृद्धि की है। इसके आलावा, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अब लाभोन्मुखी हैं और वाणिज्यिक बैंकिंग जैसे-कृषि एवं परियोजना निधियन के साथ-साथ, शुल्क या कमीशन आधारित आय, जिअसे ड्राफ्ट जारी करना, बीमा उत्पादों व मच्युअल फंड योजनाओं की बिक्री के मामले में वाणिज्य बैंकों के साथ बराबर से प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं। इन बैंकों को प्रतिपक्षी ऋण जोखिम सीमा दिए जाने का निर्णय मामला-दर-मामला आधार पर किया जायेगा तथा ऐसा निर्णय जोखिम श्रेणीनिर्धारण और अन्य कारकों, जैसे-बैंक की निवल संपत्ति, पात्र अत्यंत लघु एवं लघु उद्यम संविभाग, समग्र वित्तीय स्वास्थ्य, विनियामक निर्देशों का अनुपालन, आदि तथ्यों पर निर्भर होगा।
दुर्बल राज्य औद्योगिक विकास निगमों सहित) के सम्बन्ध में, बैंक पहले की ही भांति, आगे भी मौजूदा जोखिम सीमाओं में कमी लाने/उनसे पूर्णतः निकासी करने के गंभीर प्रयास करता रहेगा।
भारतीय रिजर्व बैंक में पंजीकृत वे गैर-बिंकिंग वित्त कम्पनियाँ (श्रेणी ए एवं बी दोनों) प्रथम-दृष्टया बैंक से संसाधन सहायता के लिए पात्र हैं, जो एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमों के वित्तपोषण में संलग्न हैं और पिछले 5 वर्ष से व्यवसाय कर रही हैं तथापि सहायता के लिए शर्त यह है कि वे स्वाधिकृत निधियों, पूंजी पर्याप्तता अनुपात, सकल गैर-निष्पादक आस्ति, वसूली प्रतिशत, न्यूनतम निवेश स्तर पर बाह्य श्रेणी निर्धारण और समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक से जरी समस्त विवेकपूर्ण मानदंड सम्बन्धी दिशानिर्देशों के अनुपालन से जुड़े निर्धारित न्यूनतम मानदंडों को पूरा करती हों। बैंक मुख्यतः आस्ति वित्त कम्पनियों को सावधि ऋण एवं संसाधन सहयोग उपलब्ध कराता है।
तथापि ऋण कंपनियों को भी सहायता दी जा सकती है, बशतें ऋण आय-अर्जक गतिविधियों के लिए दिया जाये और आस्तियों का 60% आय उत्पादक आस्तियों से प्राप्त होती हो।
गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों को प्रदत्त सहायता के प्रति प्रतिभूति के रूप में वित्तपोषण आस्तियों पर अनन्य प्रथम प्रभार/दृष्टिबंधक केर रूप में गैर-बैंकिंग वित्त कंपिनयों के भी ऋणों पर समुचित मार्जिन सहित अन्य ऋणदाताओं के साथ प्रथम समरूप प्रभार निर्मित किया जायेगा।
स्रोत: भारतीय लघु, उद्योग विकास बैंक (सिडबी)
अंतिम बार संशोधित : 2/20/2023
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