एमएसएमई अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए अधिकतर प्रवर्तकों के संसाधनों, मित्रों एवं सम्बन्धियों से उधार और बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से प्रतिभूति ऋणों पर निर्भर होते हैं। किन्तु जहाँ प्रवर्तक के संसाधन सिमित होते हैं, वहीँ बैंक का वित्त भी विभिन्न मानदंडों, जैसे-आस्ति सुरक्षा अनुपात, ऋण इक्विटी अनुपात, आदि के कारण सिमित/प्रतिबंधित होता है, जिसके परिणामस्वरुप अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए वित्तीय सहायता की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके फलस्वरूप उनकी ऋण अवशोषण क्षमता प्रभावित होती और उनके विकास में बाधा पड़ती है। इस क्षेत्र को अधिक ऋम प्राप्त हो सके, इसके लिए सिडबी, भारत सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर कई उपाय करते आ रहे हैं।
केंद्र बिंदु
अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिए सिडबी जोखिम पूंजी कोष की स्थापना वित्तवर्ष 2008-09 में अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों के निधीयन में मौजूदा कमियों से जुड़े मामलों क समाधान के लिय किया गया था। पिछले 6 वर्षों में सिडबी ने एमएसएमई के लिए जोखिम पूंजी सम्बन्धी मेजनीन उत्पाद शुरू किये हैं जो उनकी विभिन्न आवश्यकताओं जैसे-पूंजीगत व्यय क्रियान्वित करते समय वित्तीय कमियों की पूर्ति, अमूर्त कार्य अर्थात् अनुसन्धान एवं विकास, विपणन, उत्पाद विकास सम्बन्धी व्यय, आदि तथा संवृद्धि के लिए आवश्यक अन्य वास्तविक वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तैयार किये गये हैं। जोखिम पूंजी लिखतों की सरल संरचना के कारण इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों में स्वीकृति मिली है। वर्ष के दौरान सिडबी एमएसएमई और साथ ही साथ बैंकिग क्षेत्र जोखिम पूंजी योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के अपने प्रयास जारी रखेगा। सिडबी देश के संस्थागत हितसाधकों में उत्पादों की व्यापक स्वीकृति के लिए नीतिगत पक्षपोषण की कार्रवाई भी करेगा।
उपर्युक्त को देखते हुए वित्तवर्ष 2016 की नीति का केंद्रबिंदु इस क्षेत्र की अनुभूत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इन उत्पादों को आगे बढ़ाना और इनका गुणवत्तायुक्त संविभाग निर्मित करना है।
प्रत्यक्ष वित्त
बैंक विश्व के अन्य हिस्सों में अत्यंत लघु, एवं मध्यम उद्यमों को जोखिम पूंजी उपलब्ध कराने के लिए प्रचलित सर्वोत्तम परम्पराओं और आधारित उपयुक्त जोखिम पूंजी उत्पादों का उपयोग करते हुए अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों को जोखिम पूंजी उपलब्ध कराता है। पात्र अत्यंत लघु एवं मध्यम उद्यमों को शीघ्रता से जोखिम पूंजी उपलब्ध कराने के लिए बैंक मानक और संरचित (जिसमें मामला-दर-मामला आधार पर प्रत्येक ग्राहक को सहायता उपलब्ध कराई जाती है) दोनों प्रकार के उत्पादों का उपयोग करता है।
नवारंभ सहायता योजना (एसएएस)
नवारंभ सहायता योजना के अंतर्गत सिडबी शुरूआती चरण वाले ऐसे उद्यमों, को सहायता देने पर विचार करता है, जो वरीयतः प्रौद्योगिकी एवं नवोन्मेषन क्षेत्र में हैं जहाँ ग्राहकों द्वारा उत्पाद को स्वीकार कर लिए जाने के कारण राजस्व-अर्जन आरंभ हो गया है। योजना के अंतर्गत अधिकतम सहायता की सीमा अब बढ़कर रु० 200 लाख का दी गई है। इन नवारंभ इकाइयों के प्रारम्भिक चरण के परिचालनों को सहायता देने के लिए उत्पाद की संरचना में लचीलापन रखा जा सकता है।
एमएसएमई संवृद्धि पूंजी एवं इक्विटी सहायता योजना (संवृद्धि पूंजी योजना)
इस योजना का उद्देश्य सुयोग्य सूक्ष्म लघु, एवं मध्यम उद्यमों को निम्नलिखित के लिए संवृद्धि पूंजी उपलब्ध कराना है:
क. विस्तार/आधुनिकीकरण/व्यवसाय स्तर बढ़ाने के लिए वितीय साधनों की कमी की पूर्ति करना। कामकाज का सुस्थापित रिकॉर्ड रखने वाले उद्यमियों के नए व्यवसाय/विविधिकरण पर चुनिन्दा रूप से विचार किया जा सकता है (प्रत्यक्ष ऋण योजना के अधीन सहायता के साथ)
ख. गुणवत्ता नियंत्रण.उर्जा दक्षता उपकरणों, भारत या विदेशों में अभिग्रहण, विलय, आदि में निवेश के साथ-साथ अमूर्त या आस्ति सृजित न करने वाले निवेश अर्थात् उत्पाद विकास विपणन सम्बन्धी व्यय, अनुसन्धान एवं विकास आदि।
ग. कार्यशील पूंजी के लिए मार्जिन राशि। यद्यपि सामान्य कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं की पूर्ति सामान्यतः सामान्य कार्यशील पूंजी व्यवस्था की जानी चाहिए आवश्कता के आधार पर, कार्यशील पूंजी में कमी पर (जहाँ उधारकर्त्ता ने अपनी कार्यशील पूंजी संबंधी आवश्यकता के बड़े हिस्से के लिए व्यवस्था कर ली हो), मामले के गुनावगुण के आधार पर तथा औचित्य के साथ चुनिन्दा आधार पर विचार किया जा सकता है। तथापि बैंक इस योजनान्तर्गत कार्यशील पूंजी व उसके मार्जिन के वित्तपोषण पर विचार नहीं करेगा।
घ. व्यवसाय की संवृद्धि के लिए अपेक्षित कोई अन्य वास्तिवक व्यय जो समान्य बैंकिंग माध्यमों से सहायता के लिए पात्र न हो सकता हो।
योजना के अंतर्गत, विगत में अच्छा कामकाज करने वाले बैंक के मौजूदा ग्राहकों और साथ ही नए ग्राहकों को विभिन्न लिखतों, अर्थात् गौण ऋण वैकल्पिक परिवर्तनीय गौण ऋणों, विकल्पतः परिवर्तनीय ऋणों, विकल्पतः परिवर्तनीय डिबेन्चरों और साथ ही ईक्विटी आधारित लिखतों, जैसे विकल्पतः परिवर्तनीय संचयी अधिमान शेयरों, आदि के माध्यम से जोखिम पूंजी के तीव्रतर वितरण का प्रावधान है।
गुणवत्ता-युक्त जोखिम पूंजी संविभाग तैयार करने के उद्देश्य से बैंक रु० 1 करोड़ या उससे अधिक के ऋण वाले मामलों में, आम तौर पर किसी बाहरी एजेंसी जैसे लेखा-परीक्षा फर्म, विधिक फर्म आदि के जरिये एमएसएमई के साथ स्वतंत्र रूप से सम्यक सावधानी की कार्रवाई करेगा, जिससे जोखिम पूंजी योजना के अधीन निवेश प्रक्रिया में मदद मिल सके।
बैंक अनेक राज्य स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर की एमएसएमई निधियों की माध्यम से अत्यंत लघु, एवं मध्यम उद्यमों को जोखिम पूंजी उपलब्ध कराना जारी रखेगा। इन निधियों का उपयोग बैंक के लिए संरचित ईक्विटी सौदों हेतु चैनल भागीदारों के रूप में, विधिवत, कतर्व्यपरायणता करने में सहयोग के लिए और निगरानी के लिए भी किया जायेगा।
क. केन्द्रित ईक्विटी निधियों (उद्यम पूंजी निधियाँ/निजी ईक्विटी निधियों) के माध्यम से सहायता
बैंक निवेशिती कम्पनियों के ईक्विटी संव्यवहार, निगरानी और पोषण के क्षेत्र में संबंधित अनुभव रखने वाली व नेटवर्किंग करने वाली एमएसएमई-केन्द्रित ईक्विटी निधियों.उद्यम पूंजी निधियों/निजी ईक्विटी निधियों को समूह-निधि सहायता भी उपलब्ध कराता है। बैंक इन निधियों में निवेश निदेशक मंडल से अनुमोदित नीतिगत ढांचे और समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक के समय दिशानिर्देशों के अधीन करता है। इस दिशा में एक नई वित्तपोषण संरचना की संभावना पर भी विचार किया जा सकता है, जिसमें बैंक को निवेश पर अधिमानी, किन्तु अपेक्षाकृत निम्नतर आय होगी, ताकि अधिक जोखिम उठाने के इच्छुक अन्य निवेशकों को अधिक आय प्राप्त हो सके। इससे और अधिक निवेशकों को उद्योग में आने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
ख. बैंक/गैर-बैंकिग वित्त कंपनियों के माध्यम से सहायता
अत्यंत लघु, एवं मध्यम उद्यम क्षेत्र में अधिक व्यापक पहुँच बनाने के लिए जोखिम पूंजी निधि के अधीन बैंकों को संसाधन दिए जाने के प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि वे अपने ग्राहकों को जोखिम पूंजी सहायता दे सकें। गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के सम्बन्ध में, गुणावगुण के अनुरूप मामला-दर-मामला आधार पर प्रस्तावों का परीक्षण किया जा सकता है।
छोटी नवारंभ इकाइयों को सहायता देने में प्रमुख चुनौती है, परियोजना के वैधीकरण के लिए उचित कार्यप्रणाली और ऐसी नवारंभ इकाइयों के मार्गदर्शन के लिए अपेक्षित प्रयास/कौशल। अतः इस बात की जरूरत है कि मार्गदर्शी एजेंसियों का संजाल विकसित किया जाए, जो नवारंभ इकाइयों और आरंभिक अवस्था वाले उद्यमों को ऋण उपलब्ध कराने में बैंकिंग क्षेत्र की मदद करेगा। इस दिशा में, नवारंभ इकाइयों को सहयोग उपलब्ध कराने के लिए एक प्रणालीतंत्र विकसित करने हेतु, बैंक aiaएंजेल नेटवर्कों, संवर्द्धन केन्द्रों (इन्क्यूबेटर) तथा उद्योग निकायों, जैसे-नासकॉम, टीआईई(द इंडूस एंटरप्रिनुअर्स), आदि विभिन्न एजेंसियों के साथ भागीदारी स्थापित करेगा और बैंक की जोखिम पूंजी कार्यनीति के अनुरूप संबद्ध अधिदेश वाले अन्य संगठनों के साथ मिलकर कार्य करेगा।
नवोन्मेषी एवं प्रौद्योगिकी संबंधी नवारंभ इकाइयों के वित्तपोषण के लिए, बैंक ने भारत सरकार के मार्गदर्शन में, सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों के साथ मिलकर एक वित्तपोषण कार्यक्रम शुरू किया है। कार्यक्रम के तत्वावधान में, 10 बैंकों ने देश भर में भिन्न-भिन्न स्थानों पर 10 ‘स्मालबी’ नवोन्मेष वित्त शाखाएं खोली हैं। ऐसे प्रस्तावों पर कार्रवाई करने के लिए बैंक इन शाखाओं को तकनीकी जानकारी और परिचालनगत दिशानिर्देश/प्रक्रियाएँ उपलब्ध कराई हैं। वर्ष के दौरान, बैंक इस कार्यक्रम को और सुदृढ़ करेगा और उसे बड़े स्तर तक ले जायेगा।
स्रोत: भारतीय लघु, उद्योग विकास बैंक (सिडबी)
अंतिम बार संशोधित : 2/23/2023
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