आमतौर पर बीमा को किसी अप्रत्याशित स्थिति जैसे मृत्यु, स्थायी शारीरिक अक्षमता, व्यावसायिक उद्यम में क्षति, दुर्घटना से आर्थिक नुकसानों के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में देखा जा सकता है। बीमा कम्पनियां इन अप्रत्याशित स्थितियों से सुरक्षा प्रदान करने हेतु प्रीमियम लेती हैं। दावे का भुगतान पॉलिसी खरीदने वाले व्यक्तियों से संचित प्रीमियमों की राशि से किया जाता है और बीमा कम्पनियां प्रीमियम के रूप में संचित राशि के ट्रस्टी के रूप में कार्य करती हैं।
बीमा की पॉलिसी पर लाभार्थी का परिवर्तन एक सामान्य बात है। इसके लिए आपको बस अपनी बीमा कम्पनी से संपर्क करना होता है और लाभार्थी में परिवर्तन के लिए इसके निर्देशों का पालन करना होता है।
यद्यपि किसी व्यक्ति के लिए अपने पति या पत्नी, बच्चे, माता-पिता अथवा अन्य निकट संबंधियों का नाम बीमा लाभार्थी के रूप में देना आम बात है, किंतु गैर-संबंधी परिज, स्टेट, ट्रस्ट, व्यापार भागीदा, ऋण-दाता अथवा घरेलू भागीदार भी आपकी बीमा पॉलिसी के लाभार्थी नामांकित किए जा सकते हैं। आप अपनी बीमा पॉलिसी का परोपकारी कार्य हेतु दान भी कर सकते हैं।
एक नितांत अकेला व्यक्ति प्राय: सोचता है कि उसे बीमा पॉलिसी की जरूरत नहीं है। लेकिन बहुत से कारक हैं जो यह तय करते हैं कि आपको बीमा की आवश्यकता है। यद्यपि आपके पास आमदनी का एक अच्छा जरिया है, किंतु जिंदगी में कुछ ऐसी चीजें हैं जो अप्रत्याशित होती हैं। बीमा पॉलिसी आपको इन अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करने के लिए तैयार करती है।
यदि आप अपने बच्चे का बीमा करवाना चाहते हैं तो आप अपने बच्चे के जीवन के लिए एक अलग पॉलिसी ले सकते हैं। आपका यह कदम आपके निवेश का मूल्यवर्धन करता है। आपको कब बीमा पॉलिसी लेनी चाहिए यह आपकी अपनी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है। ऐसा कहना सही है कि कुछ भी अच्छा शुरू करने के लिए कभी भी देर नहीं होती।
यह निर्भर करता है सुरक्षा की प्रकृति पर और उस पर जिसे आप सुरक्षित करना चाहते हैं। कोई बीमा पॉलिसी लेने के लिए आपके द्वारा बीमा कम्पनी को प्रीमियम का भुगतान करना होता है। प्रीमियम के रूप में कितनी राशि का भुगतान किया जाना है यह अनेक बातों पर निर्भर करता है जैसे पॉलिसी का प्रकार, पॉलिसी अनुबंध की अवधि, बीमाकृत राशि और आपकी उम्र।
आयकर अधिनियम के तहत बीमा एक प्रकार की बचत है
इन दिनों उपलब्ध ज्यादातर बीमा योजनाएं बचत के स्वरूप वाली होती हैं। ये पॉलिसियां आपके भविष्य की अज्ञात परिस्थितियों के लिए वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। बीमा पॉलिसियां लेकर आप कर बचा सकते हैं। कर में छूट आयकर अधिनियम की धारा 80C, 80CCC के तहत दी जाती है।
एनडोमेन्ट पॉलिसी बचतों के साथ-साथ जोखिम के विरुद्ध सुरक्षा का एक मिलाजुला रूप है। ये पॉलिसियां खासतौर पर धन संचय के लिए और साथ ही अज्ञात भविष्य की परिस्थितियों में सुरक्षा के लिए बनाई जाती हैं। यह पॉलिसी की प्रकृति के ऊपर निर्भर करता है। आमतौर पर बीमा पॉलिसियां वार्षिक, अर्ध-वार्षिक तथा त्रैमासिक रूप से प्रीमियम भुगतान की सुविधा प्रदान करती हैं। प्रीमियम के भुगतान में हमेशा नियमित रहें। प्रीमियम के भुगतान में देर होने पर बीमा कम्पनियां एक राहत अवधि (ग्रेस पीरियड) देती है। यदि आप इस राहत अवधि के दौरान प्रीमियम का भुगतान नहीं करते तो आपकी पॉलिसी रद्द हो जाती है।
यह आपके द्वारा कराई गई बीमा की पॉलिसी पर निर्भर करता है। यदि यह जीवन बीमा है तो मैच्योरिटी पर आपको बीमाकृत राशि अथवा एक्युमुलेशन अमाउंट में से जो अधिक होगी वह मिलेगी। यदि यह ऑटो बीमा है तो मैच्योरिटी के बाद, यदि लागू होने योग्य है, तो आपकी पॉलिसी नवीकरण पर नो-क्लेम बोनस के अतिरिक्त आपको अन्य कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। यह याद रखें कि कुछ बीमा पॉलिसियां केवल जोखिम से सुरक्षा के लिए होती हैं।
यदि आपको बीमा प्रमाणपत्र नहीं प्राप्त होता अथवा यह खो जाता है तो खो जाने अथवा नहीं प्राप्त होने की स्थिति बताकर डुप्लिकेट बीमा प्रमाणपत्र संबंधित कम्पनी से प्राप्त किया जा सकता है।
अब, भारतीय बीमा क्षेत्र में अनेक कम्पनियां कार्यरत हैं। बढ़ती प्रतियोगिता के कारण ये कम्पनियां अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बेहतर से बेहतर सेवा देने की कोशिश करती हैं। आप ऑनलाइन तथा ऑफलाइन- दोनों रूपों में पॉलिसी ले सकते हैं।
स्त्रोत: पोर्टल विषय सामग्री टीम
अंतिम बार संशोधित : 12/19/2023
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