राज्य कृषि नीति, २००५ में कृषि क्षेत्र कि वृद्धि दर ४ प्रतिशत रखी गयी थी| इस कृषि नीति के क्रियान्वयन की क्रियायें ७ मुख्य क्षेत्रों जिसे “सप्त क्रान्ति” कहा गया पर आधारित थी| मुख्य क्षेत्र इस प्रकार हैं :- प्रसार, सिंचाई एवं जल प्रबन्धन, मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता, बीज प्रबन्धन, विपणन, शोध एवं कृषि विविधिकरण| ११ वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र के नियोजित ४ प्रतिशत वृद्दि दर के सापेक्ष मात्र ३.०० प्रतिशत वृद्दि दर प्राप्त हुई| वर्तमान कृषि नीति के लागू किये जाने के बाद राज्य के कृषि परिदृष्य में व्यापक बदलाव आ चुके हैं|
लगातार बढती जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, अनियोजित शहरीकरण एवं औद्योगीकरण, असंतुलित कृषि रसायनों का प्रयोग एवं बढ़ते उपभोक्तावाद के कारण वायु, प्रबंध जल, मृदा एवं ध्वनि प्रदूषण के परिणामस्वरूप विविध प्रकार की समस्यायें दृष्टिगोचर हो रही हैं| कृषि क्षेत्र में उच्च उत्पादन लागत, फसलोत्तर प्रबन्धन खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण प्रदेश में कृषि क्षेत्र अलाभकारी व्यवसाय बनकर रह गया है तथा लगातार छोटी होती जोतों के कारण आर्थिक रूप से और भी असभ्कारी होता जा रहा है| कृषक वैकल्पिक लाभकारी कारोबार की क्खोज में शहरों की पलायन हेतु बाध्य हो रहे हैं तथा कृषि को छोड़ते जा रहे हैं| विश्व व्यापार समझौते में कृषि के सम्मिलित होनेके कारण यदि कृषि को गुणवत्तायुक्त उत्पादन के साथ न्यनतम उत्पादन सगत को सुनिश्चित करते हुए लाभदायी व्यवसाय बनाने के उपाय नहीं किये गये तो भविष्य मेग्रमिन क्षेत्रों की स्थिति और विकराल हो जायेगी|जलवायु में लगातार परिवर्तन भी कृषि के लिए एक गंभीर चुनौती बन रहा है| कृषि योग्य भूमि में विस्तार की एक सीमित संभावना इसके कम क्षेत्र की उपलब्धता के कारण है परन्तु गुणवत्तायुक्त उत्पादन को विवेश संसाधन, पूँजी एवं कृषि ज्ञान के इष्टतम उपयोग द्वारा बढ़ाया जा सकता है| कृषि क्षेत्र में परम्परागत ऊर्जा के श्रोतों के साथ-साथ गैर परम्परागत ऊर्जा के श्रोतों के दोहन से न केवल परम्परागत ऊर्जा के श्रोतों पर दबाव कम होगा बल्कि कृषि उत्पादों की गुणवत्ता एवं उत्पादकता भी बढ़ेगी जिससे अंतत: कृषकों की आय में वृद्धि होगी|
प्रदेश के कृषि विकास हेतु चौमुखी क्षमता के दोहन हेतु यह आवश्यक हो गया है कि वर्तमान कृषि नीति में भावी चुनौतियों के दृष्टिगत आवश्यक बदलाव किये जायें|
प्रदेश को देश के खाद्यान्न भण्डार के रूप में परिवर्तित कर खाद्य एवं पोषक तत्व सुरक्षा तथा ग्रामीण जीवन में गुणात्मक सुधार कर ग्रामीण जनमानस कि पर्यावर्णीय क्षरण के आर्थिक वृद्धि एवं खुशहाली को सुनिश्चित करना|
संकल्प
उददेश्य –
रणनीति –
भावी चुनौतियाँ –
प्रस्तावित उपाय –
सतत आधार पर १२ वीं पंचवर्षीय योजना में निर्धारित वृद्धि दर को प्राप्त करने हेतु प्रमुख प्रस्तावित उपाय निम्नवत हैं :-
अपेक्षित परिणाम –
प्रस्तावित कृषि नीति २०१३ के संचालन से निम्नलिखित परिणाम अपेक्षित हैं :-
कार्यपूर्ति संकेतक –
नीति की प्रगति एवं प्राप्तियों की समीक्षा नियमित अन्तराल पर निम्नलिखित मुख्य प्राप्ति संकेतकों के आधार पर की जायेगी :-
प्रदेश की जनसंख्या की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को सुनिष्चित करना
प्रदेश की जनसंख्या की खाद्य एवं पोषक सुरक्षा को सुनिष्चित करना अति महवपूर्ण है| एक अनुमान के अनुसार वर्ष २०१६-१७ के अन्त तक प्रदेश की जनसंख्या २२.१५ करोड़ होगी, जिसके लिए ३०७.१८ लाख मै०टन धान्य, ५७.५१ लाख मै० टन दलहन एवं ४४.७५ लाख मै० टन तिलहन की आवश्यकता होगी| जनमानस की पोषण सुरक्षा को सुनिष्चित करने हेतु दलहनी एवं तिलहनी फसलों की उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्दि हेतु विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है| खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिष्चित करने के क्रम में लघु एवं सीमान्त कृषकों की जोतों की उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि एवं उच्च मूल्य की फसलों को वर्तमान कृषि पद्धति में सम्मिलित कर लाभदायी बनाये जाने की नितांत आवश्यकता है| मूल्य सम्वर्द्धन कर कृषि लागत में कमी लेट हुए कृषि उत्पादों को लाभदायी बनाने के प्रयास किया जायेगा|
समस्याग्रस्त भूमि को उचित रूप से सुधार द्वारा उसको कृषि योग्य बनाया जायेगा| कृषि पारिस्थितिकीय की दशाओं में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर स्थानीय कृषि पद्धतियाँ के अनुसार कृषि प्रतिमान विकसित किये जायेंगे| कृषि पद्धति के विभिन्न अवयवों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए समुचित एवं आधुनिकतम वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जायेगा| खाद्यान्न,दलहन. तिलहन, आलू, फसल, सब्जियों की उन्नत एवं अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों, सिंचाई के उचित प्रबन्धन, उर्वरक तथा कीटनाशी प्रबन्धन को विकसित किया जायेगा| अनुवांशिक सम्वर्द्धन हेतु जैव तकनीक प्रविशियाँ अपनाई जाएँगी| उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए गुणवत्तायुक्त निवेशों जैसे- बीज, उर्वरक, कृषि रक्षा रसायन, कृषि ऋण के समयबद्ध आपूर्ति सुनिश्चित की जायेगी| मौन पालन को भी पर प्रागण हेतु बढ़ावा दिया जायेगा|
निजी क्षेत्र के सहयोग से कृषि आधारित उद्योगों की बढावा देकर भूमिहीन कृषि मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाना तथा कृषि पर निर्भरता को कम किया जायेगा|
खाद्य एवं पोषक सुरक्षा
कार्य बिन्दु
• उपलब्ध प्राकृतिक एवं पारिवारिक संसाधनों के परिपेक्ष्य में प्रसार की पहुँच की स्थिति के आलोक में विभिन्न जोत आकारों हेतु वर्तमान स्थानीय विशेष कृषि प्रतिमानों में परिशोधन एवं समान स्थितियों में उनका प्रसार|
• गैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग, आगत प्रयोग प्रभावोत्पादकता में सुधार विशेष रूप से उर्बरक एवं जल दक्षता, मृदा स्वास्थ्य हेतु स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग एवं सतत विकास तथा अधुनातन कृषि तकनीकों व् बेहतर कृषि प्रबन्धन पद्धतियों के माध्यम से कृषि लागत को कम करना|
• जायद फसलों तथा कम अवधि की नकदी फसलों के क्षेत्रफल विस्तार द्वारा सफल सघनता में वृद्धि करना|
• जंगली पशुओं से होनेवाली फसल हानि को नियंत्रित करने हेतु उपाय किये जायेंगे|
• बीज उत्पादन एवं वितरण, जैविक व् रासायनिक उर्बरक सूक्ष्म तत्त्व सहित, कीटनाशी एवं जैव कीटनाशी तथा कृषि यंत्रो जैसे- कृषि निवेशकों की व्यवस्था एवं वितरण में निजी क्षेत्र की सहभागिता को प्रोत्साहित करना|
• तकनीकी हस्तान्तरण हेतु निजी संस्थाओं की सहभागिता को सुनिष्चित करने हेतु व्यवस्था को विकसित करना|
• लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिए वैज्ञानिक तकनीक यथा-संसाधन संरक्षण, जैव प्रौद्धोगिकी, सुनिष्चित सामयिक खेती, एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन, एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन एवं बैलचलित कृषि यंत्रो का विकास एवं उपयोग|
• मृदा स्वास्थ्य में सुधार हेतु कृषि में पशुओं के उपयोग को कृषि का अभिन्न अंग बनाना|
• कृषक परिवारों के आय में वृद्धि हेतु दुग्ध, मत्स्य, कुक्कुट पालन, मौन पालन, औद्यानिकी तथा रेशम संबंधी एकीकृत क्रियाओं को बढ़ावा देना|
• कृषक परिवारों की आय में वृद्धि एवं खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने हेतु अतिरिक्त विपणन सहायता प्रदान करना|
• मूल्य सम्वर्धन के लिए सुविधायें उपलब्ध कराना एवं कृषि आधारित उद्दोगों को बढ़ावा केकर भूमिहीन कृषि मजदूरों को आत्मनिर्भर बनाना तथा कृषि पर निर्भरता को कम करना|
२.प्राकृतिक संसाधन का ईस्टतम उपयोग एवं पर्यावण प्रबन्धन
कृषि के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग हेतु तकनीकी एवं आर्थिक उपादेयता तथा पर्यावरण हितैषिता के साथ-साथ सामाजिक स्वीकार्यता को भी संज्ञान में लिया जायेगा|
२.१ मृदा प्रबन्धन
मृदा क्षरण कृषि के टिकाऊ उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने में मुख्य बाधा है| इस हेतु क्रीडा स्वास्थ्य सुधार अभियान को संचालित किये जाने को उच्च प्राथमिकता डी जायेगी| सुदूर संवेदी तकनीकों के सहायता से उपजाऊ एवं अनउपजाऊ क्षेत्रों को चिन्हांकित कर उपजाऊ जमीन का संरक्षण करते हुए इसके गैर कृषि उपयोग को रोका जायेगा| अपरिहार्य स्तिथि में गैर कृषि उफोग हेतु परिवर्तित कृषि योग्य जमीन की दशा में क्षतिपूर्ति के आदर पर उतनी ही कृषि योग्य बेकार भूमि को सुधार कर कृषि उपयोगी बनाया जायेगा| भू उपयोग प्रारूप का अनुश्रवण दूर संवेदी तकनीकों के स्ययता से किया जायेगा एवं होनेबले परिवर्तनों को प्रत्येक पांच वर्ष अन्तराल पर अद्यतन किया जायेगा| बेकार एवं क्षरित भूमि जो कि ऊसर, बंजर, बीहड़, प्रति एवं दियारा रूप में है को उपचारित किया जायेगा और उसका उपयोग कृषि, बागवानी, वनीकरण एवं चरागाह हेतु किया जायेगा|
ऊसर सुधार एवं उसकी प्रबन्ध तकनीक ओ टिकाऊ और अधिक सस्ती बनाया जायेगा| लवण सहिष्णु प्रजाति कि फसलों के प्रयोग द्वारा ऊपरी जल सतह के क्षेत्रों में ऊसर सुधार कि लागत को कम किया जायेगा|
भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज मीलों का अपशिष्ट, प्रेस मड(मैली) इत्यदि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराया जायेगा| मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रयोग को बढ़ावा दिया जायेगा| कृषकों को मृदा परीक्षण कि सुविधायें उपलब्ध कराने हेतु निजी उद्यमियों उद्यमों के सहयोग से मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं कि स्थापना को राज्य सरकार प्रोत्साहित करेगी| निजी क्षेत्र कि मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं कि पूंजीनिवेश एवं अनुदान इत्यदि कि आर्थिक सहयता देकर संचालन को प्रभावी बनाया जायेगा| प्रत्येक तीन वर्ष पर मृदा परीक्षण हेतु मृदा नमूना देने एवं कुषल फसल पद्धति तथा फसल पोषण प्रबन्धन हेतु कृषकों को प्रोत्साहित किया जायेगा|
मृदा प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• मृदा कि दशा सुधारने हेतु “मृदा स्वास्थ्य सुधार अभियान” के रूप में संचालन|
• ग्राम्य स्तर उर्वरता मानचित्र को विकशित कर इसके आधार पर उर्वरकों कि आवश्यकता का मूल्यांकन एवं वितरण|
• गैर कृषि कार्यों में कृषि योग्य भूमि के परिवर्तन को रोकने हेतु दूर संवेदी तकनीक कि सहयता से अनुउपजाऊ भूमि एवं उपजाऊ भूमि कि चिन्हांकन|
• संसाधन संरक्षण तकनीकों को प्रोत्साहित कर आगत कुशलता यथा-उर्वरक एवं सिंचाई को भू-समतलीकरण द्वारा शस्य संरक्षण पद्धतियों में सुधार करना|
• मृदा के भौतिक एवं तत्व प्रस्थिति में सुधार हेतु फसल अवशेष/जैविक पदार्थ, हरी खाद, फसल चक्र, नैडेप एवं वर्मी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देना|
• वातावरण कि सुरक्षा एवं मृदा स्वर्श्य में सुधार हेतु फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबन्ध लगाना|
• रिपर हारवेस्टर जैसे कृषि यंत्र के प्रयोग को प्रोत्साहत करना|
• सूक्ष्म तत्व प्राथमिक एवं द्वितीय विश्लेषण हेतु मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं कि स्थापना एवं सुदृडीकरण |
• राज्य कृषि विश्व विद्यालयों, कृषि विभाग, सहकारी एवं निजी क्षेत्रों के मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के बीच समन्वय को सुदृढ़ कर धन एवं समय कि बचत एवं दोहराव को रोकना|
• भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज मिलों का अपशिष्ट, प्रेस मड (मैली) इत्यदि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराना|
• व्यवसायिक केचुआ उत्पादन एवं वर्मी कम्पोस्ट इकाईओं कि स्थापना में यथोचित सहायता/अनुदान उपलब्ध कराना|
२.२ जल संसाधन प्रबन्धन
प्रदेश में प्रचुर जल संसाधन के दृष्टिगत भावी सिंचाई सुविधायें विद्यमान हैं| जल के उचित प्रयोग को बढ़ावा देने के क्रम सिंचाई सुविधाओं के विकास एवं प्रबन्धन पर विशेष बल दिया जायेगा| जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा जोत प्रक्षेत्र जल प्रबन्धन पर दिया जायेगा एवं कुषल जल प्रबन्धन हेतु विभिन्न तकनीकों जैसे – स्प्रिंकलर, सिंचाई, एच०दी०पि०ई० पाइप के प्रयोग द्वारा उपलब्ध जल संसाधन के इष्टतम उपयोग के साथ-साथ “खेत का पानी खेत में” प्रबन्धित करने पर बल दिया जायेगा|
विकसित सतही सिंचाई क्षमता एवं उसके सदुपयोग में अंतर को कम करने के लिए रजबाहों का संचालन एवं प्रबन्धन जल उपभोक्ता समितियों द्वारा किया जायेगा| उच्च जल स्तर क्षेत्रों में उथले नलकूपों को विशेष रूप से सोलर वाटर पम्प द्वारा संचालन को बढ़ावा दिया जायेगा जिससे लागत मी कमी एवं ऊर्जा कि वचत होगी| समादेश क्षेत्रों कि नहरों में उपलब्ध सतही एवं भू-जल के संसाधनों के संयुक्त प्रयोग हेतु सिंचाई मूल्यों को न्यायसंगत बनाया जायेगा| फसल सघनता को बढ़ाया जएता एवं उथले जल क्षेत्रों में अधिक जल प्रिय फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जायेगा| नहरों के संग रिसाव क्षेत्रों में जैविक निकासी के उपाय अपनाये जायेंगें एवं रिसाव नालियों का निर्माण किया जायेगा|
जल भराव क्षेत्रों में जल निकासी नालियों के नेटवर्क का विकास एवं इसके रख-रखाव को प्राथमिकता डी जायेगी| अतिरिक्त सिंचन क्षमता के सृजन हेतु विशिष् रूप से सोलर पम्प का प्रयोग द्वारा सिंचाई सुविधाओं को बढ़ाया जायेगा| नहरों के अंतिम छोर तक जल उपलब्धता को सुनिश्चित करने एवं जल संवहन कि क्षमता को बनाये रखने हेतु नहरों कि सफाई एवं मरम्मत पर विशिएश बल दिया जायेगा| बाढ़ग्रस्त एवं जलमग्न क्षेत्रों को चिन्हित कर इसके विकास एवं आर्थिक उपयोग हेतु यथा आवश्यक कदम उठाये जायेंगे|
गिरते भू-जल क्षेत्रों में नमी संरक्षण एवं भू जल संभरण हेतु तालाबों एवं पोखरों का पुनरुद्धार किया जायेगा| अधिकाधिक जल दोहन को रोकने के लिए विधिक व्यवस्था बनाई जायेगी जिसके अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों में जहाँ जल स्तर बहुत नीचे तक पहुँच क्या हो वहाँ किशी प्रकार के उपयोग हेतु जल दोहन से पूर्व शासकीय अनुमति प्राप्त करनी होगी| ऐसे क्षेत्रों में कम पानी वाली फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जायेगा| अधिकाधिक पानी वाली फसलों के अनुपयुक्त क्षेत्रों में विस्तार कि समीक्षा हेतु एक आयोग का गठन किया जायेगा| उदाहरणार्थ (बुन्देलखण्ड में मेन्था व् धान)| सिंचाई जल के न्यायसंगत उपयोग हेतु उन्नतशील सिंचाई तकनीक एवं पद्धति को बढ़ावा देना, टपक एवं बौछारी विधि कयूप्योग कि असमतल क्षेत्र में बढ़ावा दिया जायेगा|
जल संसाधन प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• कुशल जल प्रबन्धन हेतु विभिन्न तकनीकों जैसे- स्प्रिंकलर, टपक सिंचाई, एच०डी०पी० ई० पाइप एवं भू-समतलीकरण के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा|
• उथले जल स्तर क्षेत्रों में विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुषल सौर पम्पों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा तथा नहर समादेशों के अन्तिम छोर तक जल प्रवाह को सुनिष्चित कर ऊर्जा एवं संचालन लागत में बचत किया जायेगा|
• अधिकाधिक जल दोहन को रोकने के लिए विधिक व्यवस्था बनाई जायेगी जिसके अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों में जहाँ जल स्तर बहुत नीचे तक पहुँच क्या हो वहां किसी प्रकार के उपयोग हेतु जल दोहन से पूर्व शासकीय अनुमति प्राप्त करनी होगी|
• अनुपयुक्त क्षेत्रों में जल प्रिय फसलों के क्षेत्रफल विस्तार कि समीक्षा हेतु आयोग का गठन किया जायेगा|
• लक्षित खाद्य उत्पादन हेतु सूखा प्रबन्धन, आकस्मिक फसल रणनीति, सूखा एवं बाढ़रोधी प्रजातियों के प्रयोग को प्रोत्साहन तथा बीज बैंकों कि स्थापना प्रभावित क्षेत्रों में की जायेगी|
• भू एवं सतही जल के संयुक्त रूप से कुशल जल प्रयोग तथा जल बचत हेतु कृषकों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जायेंगे|
• उपजाऊ भूमि के आपवर्द्धन को कम करने केलिए जलागम क्षेत्रों के अन्तर्गत वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहत किया जायेगा|
• गिरते भू जल स्तर क्षेत्रों में जल संभरण के विशेष प्रयास किये जायेंगे तथा संचित जल के सिंचाई हेतु पुर्नप्रयोग को बढ़ावा दिया जायेगा|
• नहर समादेश क्षेत्रों में जल प्रयोग प्रभावोत्पादकता को बढ़ाने तथ जल की कम बर्बादी को कम करने हेतु सिंचाई दरों को तर्क संगत बनाया जायेगा|
• नेपाल से आने वाली नदियों में आने वाली बाढ़ के उपयोग हेतु जलाशयों का निर्माण कर ऊर्जा उत्पादन किया जायेगा|
• निम्न गुणवत्ता के भूगर्भ जल क्षेत्रों में पानी के समुचित उपयोग को बढ़ावा दिया जायेगा जिससे फसलों की बढ़वार एवं उपज पर निम्न गुणवत्ता के जल के कुप्रभाव को कम किया जा सके|
• जल रिसाव को कम करने एवं जल मग्नता की स्थिति को नियंत्रित करने हेतु नहरों की लाइनिंग को बढ़ावा देना|
• रिसाव क्षेत्रों नहरों के साथ जैव बहाव और इंटरसेप्टर बहावों के निर्माण को प्रोत्साहन देना|
२.३ पर्यावरण प्रबन्धन एवं जलवायु परिवर्तन
राज्य के प्राकृतिक संसाधन जैसे – भूमि, जल टाटा जन्तु एवं वनस्पति क्रमश: स्थायी एवं अस्थायी आधार पर कम होते जा रहे हैं| विलुप्त प्राय: परम्परागत जनन द्रव्यों को संरक्षित कर जैव प्रौद्धोगिकी के प्रयोग द्वारा कीट प्रकोप अवरोधि अधिक उत्पादन वाली प्रजातियों का विकास किया जायेगा| अर्सेर्निक, फ्लोराइड, लौह तत्व एवं अन्य भारी धातुओं से पभावित भू जल क्षेत्रों को चिन्हित किया जायेगा एवं इन समस्याओं के निदान हेतु कम लागत वाली तकनीकों एवं शोध परियोजनाओं को सहायता प्रदान की जायेगी| निरन्तर रासायनिक उर्वरकों/कीटनाशकों के प्रयोग के कारण प्रदूषित भूमि एवं जल में सुधार करने हेतु एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन एवं एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन को प्रोत्साहित किया जायेगा| मल-मूत्र, दूषित जल एवं औद्योगिक अपशिष्ट के हानिरहित निस्तारण को सुनिश्चित किया जायेगा|
हल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन समस्या के उभर कर आया है| कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए प्रत्येक कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्र हेतु प्रभावी रणनीति एवं उपयोगी उपाय का विकास किया जायेगा| प्रभावी एवं भरोसेमन्द सचना एवं संचार विधि, आवश्यक मौसम सम्बन्धी सेवायें, आकस्मिक योजना एवं संसाधनों को व्यवस्थित किया जायेगा तथा कालान्तर में इसका सुद्र्रध्हिकरण सुद्र्रिधिकारण किया जायेगा|
कृषि पर जलवायु परिवर्तन के संबंध में शैक्षिक एवं सार्वजनिक जागरूकता कार्यक्रमों को विकसित एवं संचालित किया जायेगा| जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभावों से सम्बन्धित वर्गों के बीच इससे सम्बन्धित जानकारियों के संग्रहण एवं आदान-प्रदान की व्यवस्था को विकसित किया जायेगा| नवीन प्रजातियों के विकास एवं भू-उपयोग पद्धति पर शोध को आगे ले जाया जायेगा एवं इसके साथ-साथ जैव इंधन की क्षमता को बढ़ाने,कृषि वानिकी एवं संरक्षण का भी प्रयास किया जायेगा| विकास कार्यक्रमों के संचालन में लिए जाने वाले निर्णयों के समय जलवायु परिवर्तन के संज्ञान लिए जाने का प्रशिक्षण अधिकारीयों को दिया जायेगा|
वातावरण प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• जैव इंधन की क्षमता का मूल्यांकन, संरक्षण कृषि और कृषि वानिकी द्वारा प्रदान अवसरों सहित भू उपयोग पद्धति एवं नई प्रजातियों के विकास हेतु शोध को आगे ले जाना|
• बदलती जलवायिक दशाओं के सम्बन्ध में अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों के विकास के लिए विलुप्त प्राय: जनन द्रव्यों का प्रयोग एवं संरक्षण प्रदान करना|
• जलवायु परिवर्तन एवं कृषि प्रुसके प्रभाव को प्रभावित जनमानस के बीच जानकारी के संग्रहण एवं साझा करने हेतु पद्धति का विकास किया जायेगा|
• भू-जल, सतही जल, वर्षा जल के एकीकृत प्रबन्धन हेतु व्यवस्था विकसित करना|
• विकास गतिविधियों के क्रियान्वयन में जलवायु परिवर्तन मुददों को शामिल करने में सक्षम बनाने हेतु अधिकारीयों को राज्य स्तर पर प्रशिक्षण देना|
• दूषित भू जल क्षेत्रों का चिन्हांकन और उसके प्रयोग के लिए कम लागत की तकनीकों के विकास हेतु शोध|
• मृदा एवं जल प्रदूषण का प्रबन्धन|
• मल-मूत्र, दूषित जल एवं औद्योगिक अपशिष्ट के हानिरहित निस्तारण को सुनिश्चित किया जायेगा|
३. निवेश प्रबन्धन
कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए बीज, उर्वरक, जैव उर्वरक, जैव कीटनाशी, सिंचाई, कृषि रक्षा उपकरण, कृषि यंत्र, ऋण एवं तकनीकी हस्तान्तरण को कृषकों की आवश्यकता के अनुसार उपलब्ध कराया जायेगा|
कृषि विश्व विद्यालयों एवं राजकीय कृषि प्रक्षेत्रों पर प्रजनक एवं आधारीय बीजों का उत्पादन कर उन्नतशील एवं गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी| राज्य कृषि विश्व विद्यालयों में सूक्ष्म कन्द एवं ऊतक सम्बर्धन प्रयोगशाला स्थापित कर पर्याप्त मात्रा में प्रजनक बीज एवं मात्री पौध सामग्री मदर प्लांटिंग मैटीरियल का उत्पादन किया जायेगा| कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित बीज समिति द्वारा प्रजनक बीजों की गुणवत्ता का अनुश्रवण कर गुणवत्ता सुनिश्चित की जायेगी|
निवेश प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• जनपद स्तर पर निवेशकों का आंकलन एवं सुमी इ कृषि निवेशों की व्यवस्था सुनिश्चित करना|
• गैर लागत निवेशों का सघन प्रचार-प्रसार|
• स्थानीय स्तर पर बीजों, जैव उर्वरक, जैव रसायन तथा जैव नियंत्रण का उत्पादन|
• कृषि निवेशों की समय से उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु एकल खिड़की व्यवस्था पद्धति को बनाना|
• निवेशों के उपयोग हेतु प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन का आयोजन|
• किसान क्रेडिट कार्ड के प्रयोग अधिकाधिक प्रयोग हेतु कृषकों को प्रेरित करना|
उचित मूल्य पर गुणवत्तायुक्त, उन्नतशील एवं संकर बीजों की समय से उपलब्धता सुनिश्चित कर कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना राज्य की प्राथमिकता होगी| पंचवर्षीय बीज उत्पादन योजना को विकशित किया जायेगा जिसका उददेश्य अधिक उत्पादन, कीटरोधी नई प्रजातियों/हाइब्रिड के बीजों का उत्पादन तथा पुरानी प्रजातियों जो कि कई प्रकार के कीट एवं रोगों से प्रभावित होती हैं, को क्रमश: प्रचलन से बाहर करना है| प्रजाति प्रतिस्थापन दर के साथ-साथ बढ़ाया जायेगा| प्रजनक, आधारीय एवं प्रमाणित बीजों कि आवश्यकता को आवधिक अनुमानों के आधार पर विभिन्न बीज उत्पादन संस्थाओं से बीज उत्पादन को सुनिष्चित किया जायेगा| पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तायुक्त बीजों कि निर्बन्ध आपूर्ति हेतु संस्थागत मशीनरी को सुदृढ़ किया जायेगा| विभिन्न बीज उत्पादन एवं वितरण एजेंसियों के मध्य समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किये जायेंगे| विशिष्ट क्षेत्र के बीज उत्पादक समूहों के गठन को बढ़ावा दिया जायेगा| बीजों कि उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा परिवहन लागत कम करने के दृष्टिगत क्षेत्रीय स्तर पर उपयुक्त प्रजाति के आधारीय एवं प्रमाणित बीजों के उत्पादन को बढ़ावा किया जायेगा| हाइब्रिड बीजों के उत्पादन एवं वितरण हेतु निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जायेगा| निजी संस्थाओं द्वारा उत्पादित प्रजाति/हाइब्रिड/निवेशों के प्रयोग को बहु स्थलीय परीक्षण के उपरान्त प्रोत्साहित किया जायेगा| बाढ़ एवं सूखाग्रस्त क्षेत्रों कि आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बीज बैंक स्थापित किये जायेगे|
प्रमाणित बीजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए बीज विधायन इकाइयों एवं अन्य आधारभूत संरचनाओं कि स्थापना कि जायेगी| बीज उत्पादन आधारभूत संरचनाओं यथा-भंडारण, विधायन एवं अन्य संस्थागत व्यवस्था को राज्य द्वारा सुदृढ़ किया जायेगा|
बीज
कार्य बिन्दु
• प्रजाति प्रतिस्थापन दर तथा बीज प्रतिस्थापन दर को बढ़ाना|
• प्रमाणित बीजों के उत्पादन हेतु निजी संस्था, बीज ग्रामों तथा कृषक समूहों को प्रोत्साहित करना|
• क्षेत्र विशेष के लिए बीज उत्पादक संघों कि स्थापना|
• संकर बीजों के उत्पादन एवं इसके उपयोग हेतु प्रेरित करना|
• सूखा एवं बाढ़ जैसी परिस्थितयों हेतु बीज बैंक कि स्थापना|
मृदा परीक्षण कार्यक्रम को बढ़ावा देते हुए संतुलित उर्वरकों को प्रोत्साहित किया जायेगा| राज्य में एन०पी०के० के वर्मन अनुपात यथा- १५: ५ : १ (वर्ष २०११-१२) को ४:२:१ के अनुपात में लाया जायेगा| उर्वरकों कि अब्श्य्कता का आंकलन फसल आच्छादन एवं मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर किया जायेगा| फसल-सत्र सीजन से पहले ही उर्वरकों विशेष रूप से फास्फेटिक एवं पोटाश के सुरक्षित भण्डार की व्यवस्था दीर्घकालीन योजना के अन्तर्गत की जायेगी| उर्वरक उपयोग प्रभावोत्पादकता के सुधार पर जोर किया जायेगा| वृहद पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जागरूकता अभियान को आयोजित कर उर्वरक उपयोग प्रभावोत्पादकता को लोकप्रिय बनाया जायेगा| मृदा विश्लेषण परिणामों के आधार पर सूक्ष्म तत्व की कमी वाले क्षेत्रों में सूक्ष्म तत्वों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जायेगा| फास्फेटिक उर्वरकों की बढ़ती कीमतों का दृष्टिगत जैव उर्वरकों को सामान्य रूप से एवं विशेष रूप में पि०एस०बी० कल्चर के उपयोग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जायेगा| उर्वरक उपयोग प्रभावोत्पादकता में सुधार के दृष्टिगत वृहद स्तर पर कस्टमाइज़, फोर्टीफ़इड शक्तिवार्द्धित एवं तरल उर्वरकों का प्रदर्शन कराया जायेगा| अवशिष्ट शोधन संयंत्रों से प्राप्त शोधित अवशिष्ट को नगर परिधीय क्षेत्रों में कम्पोस्ट की तरह प्रयोग किया जायेगा|
गुणवत्तायुक्त उर्वरकों की समयबद्ध आपूर्ति सुनिष्चित करने के लिए सार्वजनिक, निजी एवं सहकारी क्षेत्रों की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी| उर्वरकों में मिलावट को रोकने एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाये जायेंगे| आवश्यक वस्तु अधिनियम एवं उर्वरक नियंत्रण आदेश में निहित प्राविधानागर्त गुणवत्ता नियंत्रण हेतु उर्वरक नमूनों का विश्लेषण कराया जायेगा| भूमि उर्वरता के पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु जैव उर्वरक, देशी खाद, हरी खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जायेगा| जैव उर्वरकों के उत्पादन एवं इसकी गुणवत्ता नियंत्रण हेतु नियमानुसार प्रयोगशालाओं को अधिसूचित किया जायेगा|
जैव प्रमाणित फसलों की जैविक खेती हेतु उचित प्रोत्साहन कृषकों को उपलब्ध कराया जायेगा| फसलों को विभिन्न कृषिगत परिस्थितियों में उपयोगी अरासाय्निक अरासायानिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन ओ बढ़ाने हेतु अभियान चलाया जायेगा| इस हेतु उपयोगी शोध एवं प्रसार कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी| प्रत्येक कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्र हेतु जैविक खेती पद्धति को चिन्हित किया जायेगा| जैव बीज बैंक खोले जायेंगे| उत्पादों के प्रमाणन हेतु एक संस्था स्थापित की जायेगी| जैव उत्पादों हेतु अलग नीति बनायी जायेगी|
उर्वरक
कार्य बिन्दु
• मृदा परीक्षण एवं फसल आच्छादन के आधार पर उर्वरकों का आंकलन एवं उपलब्धता सुनिश्चित करना|
• संतुलित उर्वरक प्रयोग को बढ़ावा देना|
• सूक्ष्म तत्वों, कस्तामेईद तथा फोर्टीफयद शक्तिवर्द्धक उर्वरकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना|
• जैव उर्वरकों एवं जैव खाद के उपयोग को बढ़ावा देना|
• आइ० पी० एन० एम० एवं फर्टिगेशन को बढ़ावा देना|
• जैव उत्पादों के प्रमाणन में सहयोग हेतु जैविक कृषि संघों का बढ़ावा देना|
• जैव उर्वरकों के उत्पादन हेतु प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करना|
कीट प्रकोपों के संबंध में पूर्व सूचना उपलब्ध कराने के लिए पेस्ट सर्विसलान्स सिस्टम (कीट निगरानी पद्धति) विकसित किया जायेगा| प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अभियानों के द्वारा हानिकारक कीटनाशकों के प्रयोग में कमी लाने और जैव कीटनाशी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता कार्यक्रम निर्मित किये जायेंगे| कीट एवं रोग प्रकोपों के नियंत्रण हेतु एकीकृत नाशी जीव प्रबन्धन का विशेष कार्यक्रम चलाया जायेगा| गुणवत्तायुक्त बायो एजेन्ट एवं रसायनों का उत्पादन एवं वितरण सुनिश्चित किया जायेगा| नये शोध एवं अन्वेषण को प्रोत्साहित किया जायेगा| जैविक कीटनाशी के उत्पादन हेतु अवस्थापना सम्बन्धी सुविधाओं के विनिर्माण में निजी संस्थाओं को सहयोग दिया जायेगा| जैविक कीटनाशी एवं कृषि रसायनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु संदर्भ प्रयोगशालायें स्थापित की जायेंगी|
कृषि रक्षा
कार्य बिन्दु
• कीट प्रकोपों के संबंध में पूर्व सूचना उपलब्ध कराने के लिए नियमित पेस्ट सर्विलान्स जू व्यवस्था|
• जैव कीटनाशी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण एवं अभियान संचालित करना एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना|
• आइ० पी० एम० को बढ़ावा देना|
• गुणवतायुक्त जैव एजेन्ट एवं जैव रासायनिक उत्पादों के उत्पादन हेतु प्रयोगशालाओं का सुद्रिद्धिकरण सुदृढीकरण
विभिन्न कृषि क्रियाओं को समय से क्रियान्वयन हेतु ट्रैक्टर एवं प्शुचलित बहु उददेशीय यंत्रों जो कि पर्यावरण हितैषी हों, कृषकों को उपलब्ध कराने पर बल दिया जायेगा| आगत उपयोग दक्षता को बढ़ाने एवं कृषि लागत को कम करने हेतु जीरो टिल सीड ड्रिल, लेजर लेवलर एवं रोटावेटर हेतु सहायता उपलब्ध करायी जायेगी| समय से बुवाई को प्राथमिकता डी जायेगी| औसत जोतों के छोटे होने को ध्यान में रखकर पावर टिलर तथा छोटे कृषि यंत्रों पर जोर दिया जायेगा| परिमार्जित स्थानीय कृषि यंत्रों को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषि यंत्र निर्माताओं के संचालन से संबंधित दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एकीकृत सुरक्षा यंत्रों के प्रयोग के लिए कृषकों को प्रशिक्षित किया जायेगा| कृषि यंत्रीकरण के वर्तमान स्तर जिस पर तुरन्त ध्यान देकर चिन्हांकन कि आवश्यकता है, के लिए संस्थाओं एवं उद्दोगों के संयुक्त तत्वाधान में समस्या के निदान हेतु वित्तीय सहायता प्रदान कि जायेगी|
निजी क्षेत्र (ग्रामीण मिस्त्री) को कृषि यंत्रों के निर्माण, मरम्मत एवं इसके वितरण हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषि यंत्रों कि मरम्मत एवं इसकी उपलब्धता सुनिष्चित करने हेतु कस्टम हायर सेवाओं को बढ़ावा दिया जहेगा|
सिंचाई
कार्य बिन्दु
• नहरों के अन्तिम छोर तक सिंचाई हेतु जल कि उपलब्धता को सुनिश्चित करना|
• कुशल सिंचाई उपकरणों को प्रोत्साह|
• उच्च जल स्तर क्षेत्रों में नलकूप द्वारा सिंचाई को प्रोत्साहन|
• बिजली तथा डीजल कि उपलब्धता को सुनिश्चित करते हुए गैर परम्परागत ऊर्जा श्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहन|
नहरों का संचालन स्थानीय मांग के अनुसार किया जायेगा| लघु सिंचाई एवं नलकूप सिंचाई सुविधाओं को उच्च जल स्तर वाले क्षेत्रों में प्रोत्साहित किया जायेगा| जल रिसाव को कम करने एवं जल मग्नता कि स्थिति को नियंत्रित करने हेतु नहरों को पक्का किया जायेगा| प्रति इकाई जल उत्पादकता बढ़ाने हेतु प्रक्षेत्र सिंचाई प्रबन्धन तकनीक के प्रयोग से जैसे – एच०डी०पी०ई० पाइप, स्प्रिंकलर एवं टपक सिंचाई तथा भू-समतलीकरण द्वारा उपलब्ध जल के इष्टतम उपयोग पर बल दिया जायेगा| खेत एवं गाँव में वर्षा जल को जलागम दृष्टिकोण से संरक्षित कर सिंचाई के उददेश्य से ऐसे पुन: प्रयोग में लाया जायेगा| अपर्याप्त जल संचरण एवं जलमग्नता कि समस्या के प्रभावी निदान हेतु सतही एवं भू जल के उचित प्रयोग को बढ़ावा दिया जायेगा| पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष बाढ़ नियंत्रण एवं जल निकासी कार्यक्रम चलाया जायेगा| नेपाल से आने वाली नदियों माने वाली बाढ़ के उपयोग हेतु जलाशयों का निर्माण कर ऊर्जा उत्पादन किया जायेगा| कृषि क्रियाओं के ससमय संचालन हेतु बिजली आपूर्ति एवं ईंधन कि उपलब्धता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जायेगा|
कृषि यंत्र
कार्य बिन्दु
• बहु उपयोगी कृषि यंत्रों के विकास को बढ़ावा देना|
• प्रक्षेत्र संयत्रों के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहन |
• जनपद/स्थानीय स्तर पर कृषि यंत्रों के उत्पादन, वितरण एवं मरम्मत हेतु निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना|
• कस्टम हायर सेवाओं को प्रोत्साहन|
वर्तमान में कृषकों को कृषि निवेशों के क्रय हेतु भिन्न स्थानों पर जाना पड़ता है| सभी कृषि निवेशों को नियमित संस्था द्वारा एक स्थान पर एवं समय से उपलब्धता हेतु एकल खिड़की व्यवस्था द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा|
कृषकों कि आवश्यकता के अनुसार कृषि कार्य हेतु लघु एवं दीर्घ अवधि के संस्थागत ऋण को बढ़ाया जायेगा एवं ऐसे कृषकों को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषि कार्य हेतु कृषकों कि आवश्यकता के अनुसार आसान ब्याज दर के ऋण कि उपलब्धता ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों तथा ग्राम्य स्तर सहकारी संस्थाओं के माध्यम से सुनिश्चित किये जायेंगे| प्रयोग के आधार पर ऋण सुविधाओं के सुधार हेतु ग्राम्य स्तर पर सूक्ष्म शाखा सुविधा विकसित कि जायेगी| बैंक खातों से धन निकासी हेतु के०सी०सी० स्मार्ट कार्ड निर्गत किये जायेंगे| फसली ऋण योजना के अन्तर्गत बटाई कृषकों को भी आच्छादित करने की व्यवस्था विकसित की जायेगी| कृषि निवेशों की समय से आपूर्ति में सुधार हेतु सहकारी ढांचे को सुदृढ़ किया जायेगा| लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु कृषि कृषि ऋण एवं कृषि बीमा के लक्ष्य पृथक से नियोजित किये जायेंगे| सहकारी समितियों के माध्यम से आसान ऋण व्यवस्था के अनुसार कृषि निवेशों के वितरण पर बल दिया जायेगा| लाभार्थियों के खाते में सीधे नगद सहायता हस्तान्तरण हेतु यथोचित एवं पारदर्शी व्यवस्था विकसित की जायेगी| कृषि निवेशों की उपलब्धता हेतु स्वयं सहायता समूहों एवं गैर सरकारी संस्थओं को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषकों को कृषि ऋण एवं अन्य सुविधाओं तक पहुंच को सुगम बनाने हेतु किसान क्रेडिट कार्ड को बढ़ाया जायेगा|
कृषि ऋण
कार्य बिन्दु
• कृषि उपयोगार्थ लघु एवं दीर्घ अवधि के ऋणों की उपलब्धता तथा किसान क्रेडिट कार्ड के प्रयोग को प्रोत्साहन|
• बकाये ऋणों के समाधान हेतु धन की व्यवस्था करना|
• कृषि निवेशों की आपूर्ति हेतु सरल ऋण की व्यवस्था करना|
• सभी पात्र कृषकों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराना|
• ऋण धनराशि की पहुंच को सुगम बनाने हेतु ग्राम्य स्तर पर सूक्ष्म शाखा की स्थापना|
• किसान क्रेडिट कार्ड/स्मार्ट कार्ड को विकसित करने हेतु नीति निर्धारण|
४. प्रसार एवं कृषि परामर्श सेवाओं का सुदृढीकरण
कृषि क्षेत्र के समग्र विकास में कृषि प्रसार सेवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है| प्रदेश में कृषि प्रसार का कार्य मुख्यत: कृषि एवं तत्संबंधी विभागों द्वारा किया जाता है| इसके अतिरिक्त प्रसार हेतु प्रदेश में बड़ी संख्या में कृषि ज्ञान केन्द्र क्रमश: भारत सरकार एवं राज्य सरकार के सहयोग से कार्यरत हैं| नवीन तकनीक के समय से स्थानान्तरण हेतु प्रसार व्यवस्था एवं संलग्न संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण किया जायेगा| न्याय पंचायत स्तर तक ले जाने के लिए आत्मा एवं इसी प्रकार के अन्य माडल्स किर्यान्वयन में संगठनात्मक पुर्नसंरचना की जायेगी| कृषि की बदलती आवश्यकताओं के दृष्टिगत इसमें सार्वजनिक संस्थाओं के अतिरिक्त एग्री क्लिनिक, गैर सरकारी संस्थाओं, कृषक विद्यालयों, सहकारिताओं, पंचायती राज्य संस्थाओं,निजी संस्थाओं एवं पैरा टेक्नीशियनों को प्रोत्साहित किया जायेगा| प्रसार सेवाओं के लिए बहु आयामी दृष्टिकोण जैसे-ग्रामीण ज्ञान केन्द्र, कृषक से कृषक तक प्रसार, सूचना प्रौद्योगिकी आधारित प्रसार, गैर सरकारी संस्थाओं की सहभागिता तथा निजी क्षेत्र को प्रसार सेवाओं के सुदृढीकरण हेतु योजित किया जायेगा| किआस्क सूचना कंट्र खोलने हेतु कृषि उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जायेगा| प्रत्येक ब्लाक में प्रक्षेत्र सूचना एवं परामर्श केन्द्र खोले जायेंगे| प्रसार सम्बन्धी सभी कार्यक्रमों हेतु तकनीकी सहायक की भूमिका एकल खिड़की के रूप में विकसित की जायेगी|
वर्तमान कृषि प्रसार व्यवस्था कृषकों की एकीकृत आवश्यकताओं हेतु प्ररचित नहीं है| कृषकों की बहुआयामी आवश्यकताओं के परिपेक्ष्य में कृषि प्रसार प्रणाली को कृषक-वैज्ञानिक इंटरफेस, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों, पोषण आवश्यकताओं, खाद्य सुरक्षा, रोजगार सृजन आदि के दृष्टिगत समेकित रूप से लागू किये जाने पर बल दिया जायेगा|
ग्रामीण स्तर पर कृषक सहकारिता, कृषक जिंस समूहों एवं स्वयं सहायता समूहों को समूह प्रसार के दृष्टिकोण से सहभागी बनाकर प्रोत्साहित किया जायेगा जिससे ऋण सुविधाओं एवं विपणन की समस्याओं को दूर किया जा सके|
नवीनतम कृषि अन्वेषण के तीव्र संचार हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूर संचार के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जायेगा| जनपद एवं न्याय पंचायत स्तर पर इ-किआस्क एवं सूचना केन्द्रों की स्थापना हेतु निजी क्षेत्र की संस्थाओं को प्रेरित किया जायेगा| मानव संसाधन विकास हेतु कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं एवं कृषकों को शिक्षित करने एवं कौशल में वृद्धि हेतु समय-समय पर प्रशिक्षण संचालित किय जाने को उच्च प्राथमिकता दी जायेगी| प्रशिक्षण हेतु कृषि प्रशिक्षण केन्द्रों, कृषि ज्ञान केन्द्रों तथा कृषि विश्व विद्यालयों की आधारभूत सुविधाओं को सुदृढ़ किया जायेगा| जिला स्तर पर प्रशिक्षण एवं प्रसार सेवाओं हेतु कृषि विज्ञान केन्द्रों को ज्ञान केन्द्र के रूप में विकसित किया जायेगा| प्रत्येक कृषि विश्व विद्यालय पर कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र को को स्थापित/सुदृढ़ किया जायेगा| कृषि क्षेत्र में शोध सम्बन्धी मुददों की पहचान हेतु जनपद स्तर पर कृषि विज्ञान केन्द्रों को नोडल केन्द्र बनाया जायेगा| मोबाइल फोन आधारित प्रसार सेवाओं को प्रारम्भ कर त्वरित गति से तकनीकी विस्तार, मौसम आधारित कृषि परामर्शो तथा विपणन सूचनाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी|
कृषकों की समस्याओं की पहचान के साथ-साथ उसके निदान हेतु तकनीकी का विकास एवं इसके निष्पादन हेतु कृषक-वैगानिक संवाद को प्रोत्साहित किया जायेगा| रणनीतिक शोध प्रसार योजना तथा उपयोगी कार्यक्रमों के उपयोग को सुनिश्चित किया जायेगा| प्रसार सेवाओं को वित्तीय रूप से सक्षम बनाने के क्रम में प्रसार सेवा के प्रभार पर विचार किया जायेगा| कृषि कार्यों में महिलायें की सहभागिता लगभग आधी है लेकिन प्रसार गतिविधियों एवं प्रशिक्षण में उनकी सहभागिता लगभग नगण्य है| इस हेतु आवश्यक संस्थागत, कार्यक्रमात्मक एवं संरचनात्मक सुधार सुनिश्चित किये जायेंगे|
किसानों को उनके उत्पाद के विपणन में आने वाली समस्याओं को देखते हुए कृषि प्रसार व्यवस्था को माँग एवं बाजार आधारित बनाया जायेगा| समस्याओं की पहचान हेतु कृषकों की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी एवं समुचित तकनीक पर आधारित विशिष्ट स्थानीय कार्य योजना के निर्माण, क्रियान्वयन एवं प्राप्त पुर्ननिवेश के आधार पर मूल्याकंन कर अन्य आवश्यक कदम उठाये जायेंगे|
प्रसार का सुदृढीकरण एवं कृषि परामर्श सेवायें
कार्य बिन्दु
• विभिन्न प्रसार संस्थाओं यथा – कृषि विभाग, पशुपालन/दुग्ध विकास, मत्स्य, औद्यानिकी, राज्य कृषि विश्व विद्यालय, कृषि महा विद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्र, शोध केन्द्र, केन्द्रीय संस्थान, निजी निवेश संस्थायें(उर्वरक, बीज, कीटनाशी, कृषि यंत्र, एग्री क्लिनिक) प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रानिक मिडिया, बैंक सहायतित कृषक संघ एवं कृषक उत्पादक संघों द्वारा प्रभावी प्रसार सम्बन्धी क्रियाओं हेतु सुदृढ़ समन्वय के लिए संस्थागत व्यवस्था को विकसित करना|
• जिला स्तर पर चालू योजना आत्मा को प्रसार सेवाओं के मंच के रूप में विकसित करना|
• मुद्रिका मार्ग (रिंग रोड) अवधारणा पर आधारित ग्रामीण विकास हेतु एकीकृत कृषि पद्धति प्रतिमानों की स्थापना|
• निजी उद्यमियों (उर्वरक, बीज, कीटनाशी, कृषि यंत्र, एग्री क्लिनिक) की सहभागिता आत्मा योजनान्तर्गत सुनिश्चित करना|
• तहसील स्तर पर किसान विज्ञान केन्द्रों के सहयोग से सूचना एवं प्रशिक्षण चौपालों की स्थापना|
• जिला स्तर पर सम्बन्धित विभागों के प्रसार कार्यकर्ताओं एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के तकनीकी ज्ञान वर्द्धन के उद्धेश्य हेतु प्रत्येक कृषि विश्व विद्यालय में कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण|
• मोबाइल सेवाओं को प्रारम्भ कर त्वरित गति से तकनीकी विस्तार, मौसम आधारित कृषि परामर्शों तथा विपणन सूचनाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना|
• जिला स्तर पर प्रशिक्षण एवं प्रसार सेवाओं हेतु कृषि विज्ञान केन्द्रों को ज्ञान केन्द्र के रूप में विकसित करना|
रणनीतिक शोध प्रसार योजना को विकसित कर कृषकों की समस्याओं की पहचान तथा कृषकों एवं वैज्ञानिकों के बीच सूचनाओं के आदान –प्रदान के लिए यथोचित स्क्निक विकसित करना|
• कृषकों तक र्क्निकी हस्तान्तरण को निर्वाध बनाने हेतु प्रसार एवं शोध के बीच की कड़ियों को सुदृढ़ करना|
• प्रसार सम्बन्धी गतिविधियों में महिलाओं की सहभागिता को प्रोत्साहित करना|
• सम्बन्धित विभागों की बेबसाईट पर लाभार्थियों के विवरण, विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत देय अनुदान तथा विभिन्न प्रकार के कृषि निवेशों की मूल्य सहित उपलब्धता की जानकारी को नियमित अन्तराल पर अद्यतन करना|
कृषि विविधीकरण को प्रोत्साहन
प्रदेश में औसत जोत का आकार ०.८० हे० है जो कि अनार्थिक है| इसलिए यह आवश्यक है कि उपलब्ध स्रोतों के आधार पर फसल उत्पादन के साथ फल तथा सब्जी उत्पादन, रेशम, मत्स्य पालन अन्य व्यवसायों का समन्वय किया जाय| बहु व्यवसाय के एकीकरण से न केवल प्रति व्यक्ति उत्पादन में वृद्धि तथा आय एवं रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी बल्कि यह कृषि को लाभदायी तथा पारिस्थितिकीय रूप से टिकाऊ भी बनायेगी| बारानी क्षेत्रों में विशेष रूप से मिश्रित/सहफसली खेती के प्रोत्साहन पर बल दिया जायेगा| कृषकों को आर्थिक सम्बल प्रदान करने हेतु बड़े पैमाने पर सब्जी एवं पुष्प खेती हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा| जिससे अतिरिक्त रोजबर के अवसर सृजित होंगे| राज्य स्तरीय कृषि विविधीकरण योजना विकसित कि जायेगी|
कार्य बिन्दु
• उच्च मूल्य वाली फसल प्रजातियों के समावेशन द्वारा फसल पद्धति का विविधीकरण|
• पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, औद्यानिकी, मत्स्य पालन, रेशम, जल खेती, मशरूम उत्पादन आदि उद्यमों के द्वारा कृषि पद्धति का विविधीकरण|
• कृषकों एवं सम्बन्धित उद्यमियों के मध्य मांग आधारित नवीनतम तकनीकी का विकास एवं प्रसार|
• क्षमता निर्माणद्वारा एग्री बिजनेस गतिविधि, फसल पश्चात
५.१ कृषकों के आर्थिक उत्थान हेतु औद्यानिकी को प्रोत्साहन
राज्य में औद्यानिक फसलों की संभावना को दृष्टिगत रखते हुए फल, सब्जी, आलू, मसाले, पुष्प, औषधीय एवं सगन्ध पौध, जल खेती, मशरूम उत्पादन, कृषि वानिकी तथा सामाजिक वानिकी को फसल उत्पादन के साथ विभिन्न पारिस्थितिकीय दशाओं में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर प्रोत्साहित किया जायेगा| गुणवत्ता युक्त नियंत्रण व्यवस्था, क्षेत्रीय नर्सरी, लो टनल पाली हाउसेज, शेडनेट हाउस, प्लास्टिक के प्रयोग, ऊतक सम्वर्द्धन प्रयोगशालाओं के साथ कृषकों को पौध सामग्री की आपूर्ति को प्रोत्साहित किया जायेगा| पुराने एवं अनोत्पदक बागों का पुर्नद्धोर, संरक्षण तथा लुप्त प्राय प्रजाति के फल एवं वानस्पतिक औषधियों के संरक्षण को प्रोत्साहि किया जायेगा| राज्य फसलोत्तर प्रबन्धन तकनीक तथा उन्नतशील औद्यानिक तकनीकों के साथ-साथ प्रसंस्करण तकनीकों को प्रोत्साहित करेगा| औद्यानिक फसलें उगाने के लिए किसानों से विपणन समझौता करने वाली निजी उद्यमियों एवं खाद्य प्रसंस्करण कम्पनी को सरकार प्रोत्साहित करेगी|
औद्योगिकी
कार्य बिन्दु
• फल, सब्जी, मसाले एवं फूलों का अधिकतम उत्पादन लेने के लिए उपयुक्त क्षेत्र विशेष को प्रोत्साहन|
• कीटनाशक रसायनों के दुष्प्रभाव को विशेषकर सब्जियों में कम करने के लिए बायो एजेन्ट एवं बायो पेस्टीसाइड पर बल देते हुए आ० पी० एन० एम० तथा आइ० पी० एम० तकनीक के प्रयोग को बढ़ावा देना|
• गुणवत्तायुक्त पौध सामग्री का उत्पादन| नर्सरी के लिए लो टनल पाली हाउस एवं शेडनेट को बदलते जलवायु के दृष्टिगत बढ़ावा देना|
• सुगन्धित एवं औषधीय पौधों तथा मसाले आदि की खेती को उपयुक्त बाजार की सुविधाओं से सम्बद्ध करते हुए क्षेत्र विशेष को प्रोत्साहन|
• औद्यानिक कृषकों से विपणन समझौता के लिए निजी उद्यमियों तथा खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियों को प्रोत्साहन|
• सहकारी समितियों कृषक उत्पादक समूह उत्पादकों को प्रोत्साहित करना तथ फल, फूल, मसाले की थोक बाजार को विकसित करना|
• उपयुक्त अग्रगामी सम्बद्धता के साथ बाजार के लिए पुष्पोत्पादन तथा फसलोत्तर प्रबन्धन के केन्द्र स्थापित करना|
• उत्पादों की जीवन अवधि लम्बी करने तथा क्षति कम करने के लिए कम लागत वाले स्टोरेज/स्टोरेज तकनीक ओ प्रोत्साहन|
• पुराने तथा अन-उत्पादक बागों का पुर्नजीविकारण
५.२ पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन का सुद्रिद्धिकरण
पशुधन के सर्वागीण विकास हेतु “पशु विकास नीति” निर्धारित की जायेगी| पशु उत्पादों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए राज्य पशु प्रजनन नीति बनायी जायेगी तथा देशी मवेशियों के नस्ल सुधार हेतु कार्क्रम चलाया जायेगा| राज्य प्रजाति नीति के आधार पर क्षेत्र एवं नस्ल विशेष को वीर्य उत्पादन एवं आनुवांशिक सुधार द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा| लघु एवं सीमान्त कृषकों की पारिवारिक आय बढ़ाने एवं रोजगार अवसरों में वृद्धि करने तथा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु दुग्ध नीति लागू की जायेगी|
पशु स्वास्थ्य एवं बांझपन के निदान के लिए उपयुक्त प्रौद्धोगिकी के सृजन एवं विस्तार पर ध्यान दिया जायेगा तथा निर्यात के परिपेक्ष्य में स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ किया जायेगा| पशुओं के चिन्हीकरण तथा टीकाकरण पर विशेष बल दिया जायेगा| पशु पोषण के अन्तर्गत चारा विकास कार्यक्रम के साथ-साथ गैर पारम्परिक आहार के स्रोतों को बढ़ावा दिया जायेगा तथा इसमें पशु पालकों एवं निजी क्षेत्र की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी| कुक्कुट विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत बैकयार्ड कुक्कुट विकास पर विशेष बल दिया जायेगा| ग्रामीण स्तर पर पक्षी पालन पर यथा आवश्यक ध्यान दिया जायेगा| लघु पशुओं यथा-भेड़, बकरी, सुकर आदि के विकास पर उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के सुद्रिधिकरण द्वारा ध्यान केंद्रित किया जायेगा|
कृषकों एवं दुग्ध कारीगरों के लिए विधायन एवं गुण संवर्धन, आहार, प्रजनन तथा स्वास्थ्य प्रबन्धन पर डिप्लोमा एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता डी जायेगी|
कार्य बिन्दु
• दुग्ध उत्पादक पशुओं के एकीकृत विकास के लिए “पशु विकास नीति” तैयार करना|
• स्थानीय/देशी नस्ल सुधार कार्यक्रम को प्रोत्साहन|
• पशु स्वास्थ्य को सुदृढीकरण तथा बांझता उन्मूलन पर कार्यक्रम शुरू करना|
• चारा विकास एवं अपरम्परागत चारा-दाना पर कार्यक्रम तैयार करना|
• कृषकों एवं दुग्ध कारीगरों के विधायन एवं गुण संवर्धन,आहार, प्रजनन तथा स्वास्थ्य प्रबन्धन पर डिप्लोमा एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ करना|
• ग्राम स्तर पर पैरावेट अवधारणा का सुदृढीकरण|
• क्षेत्र विशेष की ब्रीड को वीर्य उत्पादन विकास एवं अनुवांशिक सुधार की सुविधाओं को प्रोत्साहन|
• ग्रामीण क्षेत्रों में बैकयार्ड मुर्गी पालन ओ प्रोत्साहन|
• दुग्ध उत्पादन वृद्धि के लिए सहकारी समितियों का सुदृढीकरण|
• सहकारी समितियों के द्वारा दुग्ध एवं उत्पादों के विपणन को प्रोत्साहन|
• गुणवत्तायुक्त दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता सुनिष्चित करने के लिए अधोसंरचना सुविधाओं का सुदृढीकरण|
• दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुओं की गुणवत्तायुक्त नस्ल की व्यवस्था करना|
५.३ “नील क्रान्ति” मत्स्य पालन को बढ़ावा
मत्स्य पालन एवं मत्स्य उत्पाद ग्रामीण विकास, रोजगार सृजन व् आर्थिक सुदृढीकरण में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है| इसके दृष्टिगत मत्स्य विकास हेतु ग्राम, जिला व् राज्य स्तर पर एकीकृत “नील क्रान्ति” की रणनीति अपनाई जायेगी| प्रदेश को मत्स्य उत्पादन में स्वालम्बी व् निर्यतपरक बनाने के उददेश्य से बैंक ऋण, अनुदान, तकनीकी प्रसार, मानव क्षमता विकास को सुनिश्चित किया जायेगा|
राज्य में १२वी. पंचवर्षीय योजना के अन्त तक अन्त: स्थलीय मत्स्य उत्पादकता एवं उत्पादन क्षमता को ३२५० किग्रा०/हे० एवं ४.३२ लाख मी०टन से बढ़ाकर क्रमश: ५२५० किग्रा०/हे० एवं ९.०० लाख मि०टन किया जायेगा, जिसके लिए विकास हेतु उपलब्ध जल क्षेत्रों में सुनियोजित मत्स्य विकास के साथ-साथ नये जल प्लावित क्षेत्र, झील क्षेत्र, नदी क्षेत्र तथा लवणीय/क्षारीय क्षेत्रों को विशेष रणनीति के तहत आच्छादित किया जायेगा| राजकीय क्षेत्र मयूप्ल्ब्ध वृहद एवं मध्यम आकार के जलाशयों में उत्पादकता बढ़ाने हेतु विशेष योजनाओं कि संरचना कि जायेगी| गुणवत्तायुक्त मत्स्य आहार के ध्येय से मत्स्य आहार संयंत्र कि स्थापना की जायेगी तथा निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज उत्पादन हैचरियों को गुणवत्तायुक्त क्त्स्य बीज उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा| एरिया एप्रोच सिस्टम के अन्तर्गत फिश बेल्ट योजना क्रियान्वित की जायेगी| समन्वित मत्स्य पालन को बढ़ावा दिया जायेगा तथा भारतीय मेजर कार्प मछलियों के अतिरिक्त आर्थिक व् पौष्टिकता की दृष्टि से मांगुर मछलियों के पालन को प्रोत्साहित किया जायेगा| आभूषणीय मत्स्य प्रकार, विशिष्ट मत्स्य उत्पादन जैसे झींगा उत्पादन में अधिकाधिक वृद्धि हेतु स्थानीय प्रजनन व् विस्तार हेतु योजनाओं को कार्यान्वित किया जायेगा| मत्स्य विकास कार्यों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया जायेगा तथा मत्स्य विपणन की उचित व्यवस्था की जायेगी|
ग्राम आधारित कम लागत वाली मत्स्य उत्पादनेत्तर प्रसंस्करण तथा मूल वर्द्धन को विविध मत्स्य उत्पादन हेतु सुनिश्चित कर राज्य के मत्स्य पलकों की आय बढ़ायी जायेगी|
कार्य बिन्दु
• प्रदेश को आत्म निर्भर बनाने के लिए मछली एवं अंगुलिकाओं का प्रयाप्त मात्रा मंम उत्पादन सुनिश्चित करना|
• मछली एवं मछली बीज के उत्पादन को दोगुना करना|
• विशेष प्रकार की मछलियों जैसे-श्रिम्प, सजावटी मछली के उत्पादन पर प्रोत्साहन|
• निजी क्षेत्र में हेचरी एवं नर्सरी की स्थापना को बढ़ावा|
• तालाब एवं झील क्षेत्र का एकीकृत विकास|
• नदियों एवं जल मग्न क्षेत्र, बाढ़ग्रस्त क्षेत्र तथा ऊसर क्षेत्रों का एकीकृत विकास करना|
• मत्स्य विपणन के लिए कोल्ड चेन की स्थापना|
• मत्स्य संसाधनों का संरक्षण|
• उत्तम मत्स्य वृद्दि एवं मृत्यु दर रोकने हेतु आक्सीकरण संयन्त्रो को प्रोत्साहन|
• निजी क्षेत्र में मत्स्य चारा उद्योग की स्थापन को प्रोत्साहन|
• संगठनात्मक ढांचें तथा सूचना प्रौद्धोगिकी का प्रयोग कर मानव क्षमता का सुधार करना|
• प्रदेश में मत्स्य विपणन के लिए मत्स्य मंडियों की स्थापना|
• प्रदेश में मत्स्य कृषकों की आय बढ़ाने के लिए विविधिकृत मत्स्य उत्पादों हेतु कम लागत वाले प्रसंस्करण तथा मूल्य वर्द्धित इकाईयों की स्थापना|
५.४ गन्ना की उत्पादकता बढ़ाने का विशेष कार्यक्रम
गन्ना प्रदेश की प्रमुख नकदी फसल है| वर्तमान में उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक गन्ना क्षेत्रफल एवं देश के कुल उत्पादन का ३५ प्रतिशत चीनी उत्पादन वाला प्रदेश है| प्रदेश की गन्ना उत्पादकता ५६.७० टन प्रति हे० है जो राष्ट्रीय औसत से अभी कम है| अत: गन्ना विकास नीति का लक्ष्य उत्पादकता बढ़ाकर गन्ना उत्पादन बढ़ाना है| अन्त: फसलों यथा – सरसों गेहूँ, आलू, मसूर, उर्द,मुंग इत्यदि को प्रोत्साहन, प्रदेश के जल प्लावित व् ऊसर क्षेत्रों हेतु उपयुक्त किस्मों का विकास तथा उत्पादन तकनीक का उच्चतर मानकीकरण करते हुए सघन गन्ना विकास की योजनाएँ कियान्वित की जायेंगी|
गन्ने की अच्छी उपज, गन्ना फसल के रोग एवं कीटों से सुरक्षा के साथ कृषकों को कृषि निवेशों की समयबद्ध उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी| गन्ने की उत्पादकता को बढ़ाने हेतु जैव उर्वरक, बायो कम्पोस्ट तथा वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग को बढ़ावा दिया जायेगा| किसानों में गन्ने की खेती के प्रति उत्साह व् रुझान बनाये रखने हेतु समय से चीनी मिलों को गन्ना की आपूर्ति व्यवस्था व् मूल्य का भुगतान सुनिश्चित किया जायेगा| गन्ना नियंत्रण आदेश – १९६६ के बिन्दु-३ के उप बिन्दु ३-इ को अनिवार्य बनाया जायेगा, जिसके अन्तर्गत गन्ना क्रय के १५ दिन की अवधि में भुगतान की अनिवार्यता है| भुगतान के लम्बित होने पर कृषकों को नियमानुसार ब्याज दिया जायेगा| नई चीनी मिलों की स्थापना व् गन्ना पेराई क्षमता में विस्तार कर गन्ना उत्पादन की खपत भी सुनिश्चित कराई जायेगी|
गन्ना विकास
कार्य बिन्दु
• उत्पादकता बढ़ाने हेतु उच्च मिठास रखने वाली नई अधिक उत्पादक प्रजातियों का प्रवेश|
• उच्च आर्थिक प्रतिफल तथा मृदा स्वास्थ्य के लिए गन्ने के साथ आलू, मसूर, राई/सरसों का रबी में तथा मुंग,उर्द को जायद में अन्त: फसली खेती को बढ़ावा देना|
• गन्ने का उत्पादन बढ़ाने के लिए जैव उर्वरक, जैव कम्पोस्ट तथा वर्मी कम्पोस्ट आदि को प्रोत्साहन|
• जलमग्न तथा ऊसरीली परिस्थितियों के लिए गन्ने की प्रजाति विकसित करना एवं उत्पादन तकनीक का मानकीकरण करना|
• कीड़ों एवं बिमारियों की रोकथाम तथा निवेशों की उपलब्धता, एकीकृत गन्ना विकास|
• ससमय गन्ने के लाभदायक मूल्य का भुगतान|
• पेराई क्षमता बढानें के लिए स्थापित मिलों का उन्नयन एवं नई चीनी मिलों की स्थापना|
५.५ रेशम उत्पादन को बढ़ावा
उत्तर प्रदेश में रेशम कताई की ऐतिहासिक परम्परा है तथा प्रदेश एक प्रमुख रेशम वस्त्रोत्पादक है| राज्य की कृषि जलवायु परिस्थितियाँ बड़े पैमाने पर रेशम उत्पादन के लिये उपयुक्त हैं तथा सभी जनपदों में बाईबोलतीन रेशम की उत्पादन की पर्याप्त सम्भावनाएं के दृष्टिगत कृषक एवं कृषि श्रमिकों के लिये महत्वपूर्ण अनुपूरक व्यवसाय बन सकता है| रेशम उत्पादन हेतु राजकीय प्रक्षेत्र की इकाइयों को सहकारी समितियों तथा स्वयं सहायता समूहों की सहभागिता से संचालित कर आत्मनिर्भर बनाया जायेगा| निजी क्षेत्र में शहतूत वृक्षारोपण के प्रयास को प्रोत्साहित किया जायेगा| गैर परम्परागत जनपदों में शहतूत वृक्षारोपण को विशेष प्रोत्साहन दिया जायेगा तथा केन्द्रीय ग्राम अवधारणा के क्लस्टर एप्रोच के आदर पर बी०वी० अथवा सी०वी० प्रजातियों को संधनित एवं प्रभावी प्रयासों को लागू कर विभाग द्वारा अनुश्रवित किया जायेगा| राजकीय/निजी क्षेत्र में एरी-रेशम तथा टसर-रेशम को बढ़ावा दिया जायेगा| रेशम उद्यमियों एवं कृषकों के प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किये जायेंगे|
रेशम उत्पादन
कार्य बिन्दु
• स्वयं सहायता समूहों तथा सहकारी समितियों की सहभागिता से रेशम व्यवसाय का सुदृढीकरण|
• निजी क्षेत्र में नई एवं पोषक उच्च उत्पादक शहतूत के पेड़ लगाने को प्रोत्साहन|
• लाभदायक ककून मूल्यों के समयबद्ध भुगतान एवं क्षेत्र विशिष्ट/मौसम विशिष्ट रेशम कीट को प्रोत्साहन|
• उत्पादकता बढ़ाने हेतु उच्च प्रोटीन/रेशम धारित करने बलि उत्पादक प्रजातियों द्वारा पुराने शहतूत के पेडों का प्रतिस्थापन|
• रेशम पालन गतिविधियों में महिला सहभागिता को प्रोत्साहन|
• बीज उत्पादक केन्द्रों का सुदृढीकरण|
• ककून बाजार का सुदृढीकरण|
• कीटपालन के लिए प्रक्षेत्र उपकरणों के क्रय पर कृषकों को अनुदान प्रदान करना|
• निजी क्षेत्र में “इरीरेशम” उत्पादन का प्रोत्साहन|
• वन क्षेत्रों, ग्राम समाज की भूमि और बंजर भूमि पर टसर सिल्क के उत्पादन हेतु अर्जुन के वृक्ष लगाने को प्रोत्साहन देना|
• ककून उत्पादन के लिए शहतूत, इरी, टसर कल्चर द्वारा रोजगार सृजन|
नई तकनीकों के ज्ञान के विकास हेतु नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन|
६. फसलोत्तर प्रबन्धन एवं खाद्य प्रसंस्करण सुविधाओं का विकास
पर्याप्त फसलोत्तर प्रबन्धन एवं प्रसंस्करण के अभाव में प्रति वर्ष काफी मात्रा में खाद्यान्न, फल तथा साग-भाजी खराब हो जाते हैं| जिसके कारण देश तथा विदेश के बाजारों में हमारे उत्पादों का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता है| अत: इस क्षति को कम करने तथा कृषकों को उनके उत्पादन का मूल्य वर्द्धन करते हुए बेहतर लाभ सुनिश्चित कराने हेतु श्रेणीकरण, छटाई, पैकेजिंग, विपणन अवस्थापनाओं, भंडारण, प्रसंस्करण एवं परिवहन की उपलब्ध तकनीकों का उपयोग करते हुए नवीन तकनीकी के विकास पर बल दिया जायेगा| उत्पादन क्षेत्रों में कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए शून्य ऊर्जा प्रशीतन गृह आदि सुविधाओं का सृजन किया जायेगा| शीत शृंखलाओ की स्थापना, पूर्व प्रशीतन सुविधाओं के प्राविधान तथा टर्मिनल मार्केट में शीत भंडारण को प्राथमिकता डी जायेगी| राज्य में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य औद्योगिक नीति के अनुसार छूट एवं रियायत प्रदान की जायेगी| राज्य में प्रमुख फसलों एवं सब्जियों हेतु पैक हाउस, केन्द्रीय छटाई एवं श्रेणीकरण, पैकेजिंग केन्द्र के निर्माण सम्बन्धी योजनायें संचालित की जायेंगी|
फसलोत्तर प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• कृषि उत्पादों के सामयिक समय पर अधिकतम मूल्य प्राप्त करने हेतु भंडारण एवं विपणन की सुविधा ग्राम स्तर पर कृषकों को उपलब्ध कराना|
• क्रेट्स तथा अन्य उपकरणों के क्रय पर कृषकों को अनुदान उपलब्ध कराना|
• राज्य कृषि विपणन परिषद द्वारा महत्वपूर्ण विपणन केन्द्रों पर मुख्य भण्डारण सुविधओं का विकास कर उत्पादों के वैज्ञानिक भण्डारण तथा इसके उचित मूल्य पर विक्रय की अवधि तक सुविधा उपलब्ध कराना|
• सब्जियों तथा फलों के यथोचित छटाई तथा पैकिंग हेतु कृषि समूहों तथा कृषकों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराना|
कृषकों को उनके उत्पादन का लाभकारी मूल्य दिलाने तथा प्रसंस्करणकर्ताओं को गुणवत्तायुक्त कच्चे माल की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित कराने के उददेश्य से कृषकों एवं प्रसंस्करण इकाइयों के मध्य व्यवस्था को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य प्रसंस्करण नीति प्ररचित की जायेगी| प्रसंस्कृत उत्पादों के विपणन की व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए कृषकों, प्रसंस्करणकर्ताओं, निर्यातकों एवं सरकारी संस्थाओं के मध्य आपसी तालमेल को सुदृढ़ किये जाने पर बल दिया जायेगा|
प्रदेश में प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना हेतु निवेश एवं ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी| खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जायेगा| खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में गुणवत्ता के प्रति उभरती जन चेतना के दृष्टिगत प्रदेश में गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालायें स्थापित की जायेंगी| इस क्षेत्र में निवेष बढ़ाने हेतु खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं जैसे- तकनीकी उन्नयन, शीत श्रृंखलाओं की स्थापना तथा मेगा फ़ूड पार्क की स्थापना इत्यदि को राज्य प्रसंस्करण नीति के साथ एकीकृत किया जायेगा|
कार्य बिन्दु
• स्थानीय स्तर पर उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना|
• कृषि प्रसंस्करण उद्योग के संवर्द्धन हेतु उत्पादक सहकारिताओं तथा निगमित क्षेत्र के मध्य साझेगिदारीको बढ़ावा|
• खाद्य प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन|
• गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना|
• फसल अवशिष्टों का उपयोग कर मूल्य संवर्द्धित सह उत्पाद के उत्पादन को बढ़ावा|
• उत्पादों की ब्राण्डिंग|
• कृषकों, प्रसंस्करण कर्ताओं, निर्यातकों तथा राजकीय संस्थानों के मध्य मजबूत समन्वय का निर्माण|
• स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण हेतु उपयुक्त तकनीक एवं मशीनों का विकास|
• कृषि/औद्यानिकी विकास क्षेत्रों के साथ फ़ूड पार्कों का जुडाव|
• खाद्य प्रसंस्करण से सम्बन्धित नियमों तथा निर्देशों की उपयुक्त बनाना|
७. कृषक हितैषी विपणन व्यवस्था को प्रोत्साहन
प्रदेश में कृषि विपणन व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जायेगी| इस हेतु मंडी द्वारा विपणन व्यवस्था को उदार बनाया जायेगा तथा कृषकों को उनके निवेश तथा जोखिम के अनुपात में उत्पादों का मूल्य उपलब्ध कराने में बाधक सभी नियमों और शर्तों की समीक्षा की जायेगी और आवश्यतानुसार ए०पी०एम०सी० अधिनियम में संषोधन किया जायेगा|
प्रदेश में विपणन अवस्थापनाओं के सुदृढ़ीकरण हेतु प्रत्येक तहसील में कम से कम एक मन्डी स्थल का निर्माण/विकास किया जायेगा| विशिष्ट कृषि उत्पादों यथा बासमती चावल, मछली, सब्जी एवं पुष्प आदि की पृथक मण्डियां स्थापित की जायेंगी तथा उनके व्यवसायिक उपभोग के लिए सार्वजनिक निजी क्षेत्रों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जायेगा| पंचायतों के प्रशासनिक नियंत्रण में हाट पैठ तथा पशु बाजारों में सुविधाओं का विकास किया जायेगा|
कृषि विपणन प्रक्रिया में बिचौलियों के वर्चस्व को कम करते हुए कृषकों, सहकारी समितियों तथा कृषक समूहों को प्रत्यक्ष विपणन हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा| लघु तथा सीमान्त कृषकों द्वारा उत्पादित उत्पादों के विपणन हेतु रैतु बाजार/उत्पादक बाजारों की सुविधा विकसित की जायेगी| इसके लिए फल, सब्जी एवं दुग्ध उत्पाद पर विशेष ध्यान दिया जायेगा| जो व्यापारी किसी निर्दिष्ट कृषि उत्पाद की ५० हजार टन से अधिक मात्रा एक वित्तीय वर्ष में खरीदने तथा उसे प्रदेश के बाहर अथवा प्रदेश में ही प्रसंस्करण इकाइयों को बेचने में सक्षम हैं, के लिए बड़ी मात्रा में क्रय की व्यवस्था सीधे कृषकों से करायी जायेगी| बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन को प्रोत्साहित करते हुए विपणन व्यवस्था सुनिश्चित की जायेगी| निनी क्षेत्र/सहकारी समितियों को कृषि विपणन से सम्बन्धित अवस्थापनाओं जैसे सम्पर्क मार्ग, परिवहन, शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के भण्डारण हेतु शीतगृह तथा अवशीतन श्रृंखला (कुल चेन) के निर्माण तथा प्रसंस्करण सुविधा के विकास हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा|
फसलोत्पादन हानि को कम करने तथा कृषि जिन्सों के विपणन में उत्पादकों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित कराने की दृष्टि से बड़े पैमाने पर वर्गीकरण एवं उत्पादों की छनाई, सुखाई तथा चटाई की उन्नत व्यवस्थायें गाँव/विकास खण्ड स्तर पर स्थापित करने पर जोर दिया जायेगा एवं इस हेतु निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जायेगा|
मंडी स्थलों तथा उप मंडी स्थलों पर उचित मूल्य की प्रत्याशा में किसानों को अपना उत्पाद भण्डारित करने पर होने वाले व्यय को वहन करने की दृष्टि से संस्थागत ऋण आसान शर्तों पर ऊपलब्ध कराने हेतु व्यवस्था विकसित की जायेगी| कृषि उत्पादों को वेयर हाउस में रख कर इनसे प्राप्त रिसीट्स के आधार पर कृषकों को बैंक से ऋण उपलब्ध कराने हेतु व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषकों को कृषि उत्पादों हेतु न्यनतम समर्थन मूल्य नीति के आधार पर लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने की व्यवस्था जारी रखी जायेगी|
एग्मार्क के अन्तर्गत गुणवत्ता को लोकप्रिय बनाने हेतु राज्य की गुणवत्ता प्रयोगशालाओं का सुदृढ़ीकरण किया जायेगा| जींस, क्षेत्र तथा बाजारवर विपणन सूचना व्यवस्था की सुविधाओं हेतु कृषि जींस-वार पोर्टल विकशित किया जायेगा| मोबाईल फोन सेवा आधारित बाजार सतर्कता व्यवस्था को विकसित कर वास्तविक समय आधार पर मूल्य एवं बाजार सूचना कृषकों के मध्य प्रसारित की जायेगी|
फसलोत्तर प्रबन्धन हेतु कृषकों एवं कर्मचारियों को कृषि उत्पादों के संग्रहण,श्रेणीकरण, मानकीकरण, भण्डारण एवं परिवहन आदि के लिए प्रशिक्षण तथा कृषि विपणन से सम्बन्धित सूचनाओ के प्रचार-प्रसार पर बल दिया जायेगा|
कार्य विन्दु
• विपणन व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण|
• तहसील स्तर पर मंडियों का निर्माण|
• पंचायतों के प्रशासनिक नियंत्रण में हाट पैठ तथा पशु बाजारों में सुविधओं का विकास|
• लघु कृषक, कृषि व्यवसाय संघ तथा निजी क्षेत्र को बाजार प्रबन्धन हेतु सह ठेका|
• ई व्यवसाय तथा एकल लाइसेंस व्यवस्था प्रादुर्भाव|
• नई वस्तुओं, मनकों एवं वर्गों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा हेतु बाजारोन्मुखी प्रसार व्यवस्था का विकास|
• कृषि उत्पादों के मूल्यों की अनिश्चिता के जोखिम को न्यून करने हेतु वायदा बाजार को प्रोत्साहित करना तथा जीन्स विनिमय की स्थापना|
• बाजार क्षेत्र में प्रमाणन, पैकेजिंग, मानकीकरण तथा छटाई की सुविधओं को स्थापित करना|
• मंडियों में निवेश केन्द्रों की स्थापना|
८. कृषकों के आर्थिक स्तर में उत्थान हेतु कृषि प्रोत्साहन
उत्तर प्रदेश के कुल निर्यात में कृषि क्षेत्र का योगदान मात्र ७ प्रतिशत है, तथापि बासमती तथा गैर बासमती चावल, आम, अमरुद, लीची, आवला, नीबू प्रजाति के फल, मटर, आलू, अदरक, लहसुन, भिण्डी, मसरूम, तिलहन, मेंथा, पुष्प, औषधीय एवं सगंध पौध, मसाले (हल्दी, मिर्चा व् धनिया), मान्स तथा दुग्ध उत्पाद ताजे एवं प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों के निर्यात की काफी संभावनाएं हैं| भौगोलिक संकतकों पर आधारित उत्पादों के ब्राण्डिंग की सुबिधा उपलब्ध कराकर इसके उत्पादन को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषि निर्यातों में वृद्धि हेतु उत्पाद की गुणवत्ता, उत्पादन पैकेजिंग को अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाया जायेगा तथा तकनीकों के पेटेंट की सुविधा सुनिश्चित की जायेगी|
कृषि निर्यात में वृद्धि हेतु कृषि आधारित उद्योग, प्रसंस्करण, औद्यानिकी तथा पुष्प उत्पादन के उद्योगों को प्राथमिकता दी जायेगी तथा इस हेतु गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालायें एकत्रीकरण, मानकीकरण, पैकेजिंग इकाइयां तथा अवशीतन श्रृंखला की सुविधा को विकसित किया जायेगा| स्थानीय रोजगार के अवसरों के विनिर्माण के क्रम में प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्द्धन इकाईयों को प्रोत्साहित किया जायेगा तथा कृषि उत्पादों की निर्यातोन्मुखी ऐसी इकाईयों को मंडी कर से छुट अथवा घटी हुई कर दर की सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी| बिजली की उपलब्धता व्यवसायिक दर पर न कराकर अवशीतन गृहों को विशेष दर (कृषि औद्योगिक उपभोक्ता) पर बिजली उपलब्ध करायी जायेगी| उत्पादों की गुणवत्ता एवं बाजार में उचित मूल्य को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना हेतु उचित यंत्र एवं तकनीक का विकास किया जायेगा| राजकीय हवाई अड्डों पर लदान एवं उतरन की सुविधा को सुदृढ़ किया जायेगा|
जैविक कृषि हेतु उपयुक्त उचित क्षेत्र एवं फसलों की पहचान कर जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जायेगा तथा जैविक उत्पादों की गुणवत्ता का उन्नयन अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुसार किया जायेगा| घरेलू एवं अन्तराष्ट्रीय बाजारों की माँग के दृष्टिगत स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादों की क्षमता के आंकलन पर और अधिक ध्यान केंद्रित किया जायेगा| जैविक खेती के सभी स्तरों पर कृषकों की सहायता हेतु एक स्वतंत्र जैविक कृषि संवर्धन परिषद की स्थापना की जायेगी|
कृषि प्रोत्साहन
कार्य बिन्दु
• प्रत्येक जनपद में बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण एवं शीत भण्डार गृहों की सुविधा की स्थापना हेतु निजी क्षेत्रों को भू मूल्य को छोड़कर पूँजी निवेश पर अनुदान प्रदान कर प्रोत्साहित करना|
• बिजली की उपलब्धता व्यवसायिक दर पर न कराकर अवशीतन गृहों को विशेष दर (कृषि औद्योगिक उपभोक्ता) पर बिजली उपलब्ध कराना|
• गैर परम्परागत ऊर्जा के श्रोतों (मुख्य रूप से सौर एवं पवन) के उपयोग तथा बेकार भूमि पर रतनजोत का वृक्षारोपण, कम लागत की कुशल तकनीक के सम्यक उपयोग को बढ़ावा देना|
• क्षेत्रीय पहचान के आधार पर उत्पादों के छटाई एवं चिन्हीकरण की सुविधा को विकसित करना|
• तकनीक एवं उत्पादों के पेटेंट की सुविधा उपलब्ध कराना|
• कृषि निर्यत्मे संवर्द्धन हेतु छटाई मानकीकरण, पैकिंग इकाईयों एवं गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं के साथ अवशीतन श्रृंखला की स्थापना|
• प्रसंस्करण इकाईयों को मंडी कर से मुक्त करना|
• जैविक खेती को प्रोत्साहन|
९. कृषि में जोखिम प्रबन्धन
कृषि पर दैवीय आपदाओं के दुश्प्रभाव का उचित प्रबन्ध किया जा सकता है| सूचना तकनीकी का प्रयोग कर कृषकों को सूखे, बाढ़ एवं कीट/रोग प्रकोपों की समय से पूर्व जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी| बदलते मौसम की परिस्थितियों का सामना करने के लिये प्रत्येक कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्र हेतु जनपदवार आकस्मिक रणनीति/योजना विकसित की जायेगी| आकस्मिक योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार द्वारा उपलब्धता सुनिश्चित की जायेगी| भारतीय मौसम विभाग, राज्य कृषि विश्वविद्यालय तथा उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद की सहभागिता से क्राप स्थान विशेष पर आधारित मौसम सम्बन्धी परामर्शो को कृषकों तथा प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया, इंटरनेट, वेवसाईट तथा टी०बी० चैनलों का प्रयोग कर उपलब्ध कराई जायेगी| कृषक समुदाय की आर्धिक दुर्बलता को दृष्टिगत रखते हुये आपदाग्रस्त क्षेत्रों हेतु आकस्मिक योजना तथा आपदा राहत कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया जायेगा|
बाढ़ एवं सूखें के साथ कीट प्रकोपों एवं उसके प्रबन्धन सम्बन्धी अग्रिम सूचना नियमित आधार पर उपलब्ध करायी जायेगी| चारे की मांग का आंकलन विशेषकर सूखे के वर्षों में एवं चारा संरक्षण तथा संग्रहण की वैज्ञानिक विधियों को प्रोत्साहित किया जायेगा| ग्रामीण क्षेत्रों में चारे की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु चारा बैंकों की स्थापना की जायेगी|
प्राकृतिक एवं अन्य आपदाओं से कृषकों की सुरक्षा के क्रम में कृषि बीमा योजना का विस्तार किया जायेगा जिससे अधिक कृषक इस योजना से लाभान्वित हो सकें| प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने हेतु उत्पादन एवं मौसम आधारित कृषि बीमा योजन का सभी जनपदों में विस्तार किया जायेगा| इसके अतितिक्त स्थानीय स्तर पर आकस्मिक योजनओं के माध्यम से राजकीय सहायता उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जायेगा| फसलों एवं पशु धन बीमा संबंधी केन्द्र सरकार की योजनायें संचालित कर कृषक समुदायों को बाजार आधारित जोखिम प्रबन्धन तंत्र उपलब्ध कराया जायेगा|
प्रतिकूल जलवायुविक परिस्थितियों में यथा बुन्देलखण्ड जैसे सूखा ग्रस्त क्षेत्र एवं बाढ़ प्रभावित पूर्वोत्तर भाग में बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु बीज बैंकों की स्थापना प्रस्तावित है| आकस्मिक योजनओं के प्रतिमान के रूप में कम अवधि की सूखारोधी प्रजातियों के बीज बैंक की स्थापना की जायेगी| बीज बैंकों की स्थापना की लागत एवं नियमित बजटीय सहायता प्रदान की जायेगी|
जोखिम प्रबन्धन
कार्य बिन्दु
• प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने हेतु मौसम आधारित बीमा योजना का सभी जनपदों में विस्तार|
• प्रतिकूल जलवायुविक परिस्थितियों में बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु विज बैंकों की स्थाप्नाय्था बुन्देलखण्ड जैसे सूखा ग्रस्त क्षेत्र एवं बाढ़ प्रभावित पूर्वोत्तर भाग|
• मौसम पूर्वानुमान एवं फसलों की रोग सम्बन्धी सूचनाओं के आधार पर आकस्मिक कार्य योजना का क्रियान्वयन|
• कृषि बीमा योजना का विस्तार|
• कृषि विविधीकरण में जोखिम प्रबन्धन के संदर्भ में बीमा माड्यूल एवं कमाडिटी एक्सचेन्ज के लिंकेज का विकास|
• ग्राम पंचायत स्तर पर कृषि उत्पादों के क्रय एवं भण्डारण की सुबिधायें प्रदान करना|
• जी०आइ०एस० आधारित सूचना प्रणाली को विकसित करना तथा फसल प्रबन्धन में उसका उपयोग करना|
१०. कृषि में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा
उत्तर प्रदेश में आधे से अधिक कृषक महिलायें हैं, किन्तु विभागीय प्रशिक्षण एवं प्रसार कार्यक्रमों में इनकी भागीदारी न्यून है, जबकि कृषि सम्बन्धी लगभग ६०-७० प्रतिशत कार्य महिलाओं द्वारा ही किये जाते हैं| प्रगतिशील कृषक के रूप में कम महिलओं को मान्यता प्राप्त है|
महिलाओ को प्रशिक्षण, अनुसंधान, आर्थिक सहायता एवं विपणन सुविधाओं में सहयोग दे कर कृषि में उनके योगदान को प्रभावी बनाया जायेगा| पारिवारिक एवं सामुदायिक स्तर पर पोषण सुरक्षा में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए कृषि एवं तत्संबंधी कार्यक्रमों में संशोधन किये जायेंगे, जिनसे तकनीकों, प्रसार सेवाओं, विपणन तथा ऋण सुविधओं आदि की पहुंच महिलओं तक सुनिश्चित हो सके| प्रशिक्षण एवं प्रसार कार्यक्रमों में महिला कृषकों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जायेगा| इसके साथ-साथ ग्रामीण महिला समूहों को अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से कृषि तकनीकों से अवगत कराया जायेगा| कृषि प्रशिक्षण संस्थाओं, संगठनों को एवं उनके पाठ्यक्रमों को लिंग संवेदनशील बनाया जायेगा| कृषि प्रशिक्षण एवं प्रसार कार्यों में महिला कृषकों की समान भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु प्रसार व् अन्य उच्च स्तरों पर तकनीकी व् प्रबंधकीय कर्मचारियों में महिलओं की नियुक्ति को प्रोत्साहित किया जायेगा| कृषि में महिलओं की व्यापक भूमिका को देखते हुए कृषि तकनीक एवं उपकरणों को उनके अनुकूल विकसित करने के लिए शोध एवं प्रसार को प्रोत्साहित किया जायेगा|
महिला स्वयं सहायता समूहों को सहकारी खेती तथा कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों यथा – उत्पादन, प्रसंस्करण एवं बिपन्न से जुड़ी प्रक्रियाओं के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा| पशुपालन इकाईयों, दुग्ध व्यवसाय, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन, मशरूम उत्पादन, पुष्पोत्पादन तथा खाद्य प्रसंस्करण को महिलओं द्वारा कुटीर उद्योग के रूप में अपनाये जाने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा|
कार्य बिन्दु
• कृषि प्रसार क्रिया-कलापों तथा प्रशिक्षण में महिलओं की सहभागिता को प्रोत्साहन|
• प्रशिक्षण तथा पाठ्यक्रमों को लिंग संवेदी बनाना|
• महिलओं की आवश्यकताओं के अनुसार कृषि तकनीक एवं यंत्रों के विकास हेतु शोध एवं प्रसार को प्रोत्साहित करना|
• महिला स्वयं सहायता समूहों की स्थापना|
• सहकारी समितियों के माध्यम से महिलओं द्वारा उत्पादित उत्पादों का विपणन|
• महिलओं को प्रशिक्षण, परामर्शी सेवायें तथ ऋण की सुविधा विभिन्न ऋण संस्थानों द्वारा सरलीकृत प्रक्रिया के माध्यम से उपलब्ध कराना|
• कृषकों में ऋण वितरण को प्रोत्साहन|
११.ग्रामीण अवस्थापना सुविधाओं का विकास
ग्रामीण अवस्थापना सुविधओं जैसे – सड़क, बिजली, सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण, विपणन एवं ऋण से सम्बन्धित संगठन सीधे कृषि विकास से जुड़े हैं|
ग्रामीण अवस्थापना सुविधाओं के विकास में पंचायती राज्य संस्थाओं एवं सहकारी निवेश समितियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी| कृषि क्षेत्र में कम विकास दर का मुख्य कारण ग्रामीण अवस्थापना विकास में कम होना है| इसलिए कृषि विकास में बढोत्तरी के लिए ग्रामीण अवस्थापना हेतु निवेश को बढ़ाया जायेगा| सरकारी क्षेत्र के अतिरिक्त निजी क्षेत्र को भी ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों, प्रसंस्करण एवं विपणन अवस्थापना सुविधाओं के विकास में निवेश हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा|
छोटी जल संचय सुविधाओं जैसे कम लागत के खेत-तालाब, नाला-बांध, अव्रोश बांध एवं परकोलेशन पांड्स का विकास किया जायेगा| जल निकासी की सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता प्रदान की जायेगी|
उत्पादन स्थल पर भण्डारण एवं प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जायेगा ताकि कृषकों को उनके उत्पाद का अधिकतम मूल्य प्राप्त हो सके तथा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें| कृषि उत्पाद को बाजार तक परिवहन सुनिश्चित करने के लिए परिवहन सुविधाओं एवं अवशीतन श्रंखला तथा शीतगृहों का सुदृढ़ीकरण किया जायेगा|
ग्रामीण अवस्थापना
कार्य बिन्दु
• ग्रामीण अवस्थापना के निवेश को प्रोत्साहन|
• ग्रामीण अवस्थापना के विकास में पंचायती राज्य संस्थाओं, कृषि निवेश सहकारी समितियों की भागीदारी को सुनिश्चित करना|
• सिंचाई सुविधाओं के निर्माण पर निवेश|
• छोटी जल संचय सुविधाओं जैसे कम लागत के खेत-तालाब, नाला-बांध, अव्रोश बांध एवं परकोलेशन पांड्स का विकास|
• जलागम क्षेत्रान्तरगत सामान्य सम्पत्तियों के जीर्णोद्धार, मरम्मत एवं उच्चीकृत कर सतत इष्टतम लाभ प्राप्त करना|
• विपणन, प्रसंस्करण एवं ऊर्जा सम्बन्धी संरचनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्सहन|
• गाँव के सम्पर्क मार्ग का निर्माण|
• कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों हेतु बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना|
१२. कृषि शिक्षा, शोध एवं मानव संसाधन विकास
कृषि विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त ३५ कृषि महाविद्यालय विभिन्न गैर कृषि विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध हैं तथा २ कृषि संस्थान क्रमश: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एवं अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अधीन कार्यरत हैं|
हरित क्रान्ति के दौरान कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन की आत्मनिर्भरता तथा मानव संसाधन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी| हल के वर्षों में प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किय गये अग्रणीय कार्यों के कारण ही खाद्य सुरक्षा एवं उच्च कृषि उत्पादन की स्थिति बनी है|
कृषि में सार्वजनिक, निजी एवं निगमित क्षेत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त मानव शक्ति की अधिक आवश्यकता है तथा उद्यमतायुक्त मानव संसाधन रोजगारखोजी के स्थान पर रोजगार प्रदायकर्ता के रूप में उभरने की आवश्यकता है| कृषि के उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने हेतु मांग/ संसाधन आधारित शोध कार्यक्रमों की आवश्यकता है तथा इसके साथ-साथ विभिन्न कृषि जलवायुविक क्षेत्रों के लघु एवं सीमान्त कृषकों एवं उभरते बाजारी अवसरों पर भी ध्यान केंद्रित किया जायेगा|
कृषि शिक्षा एवं शोध के सुदृढ़ीकरण के क्रम में राज्य निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा :-
१२.१ शिक्षा
कृषि शिक्षा व्यवस्था को पूर्णभाषित कर नये स्नातकों को विषय पूर्णता, स्व प्रेरणा, सकारात्मक सोच, कृषि व्यवसाय निपुणता तथा सूचना/सम्प्रेषण तकनीक के साथ-साथ कम्प्युटर के ज्ञान से लैस किया जायेगा|
कृषि शिक्षा में भावी विषयों यथा – कृषि व्यवसाय प्रबन्धन, कृषि प्रसंस्करण, दुग्ध तकनीकी व् पशु चिकित्सा सेवाओं, विपणन तथा भण्डारण, पर्यावरण, जैव तकनीकी, सूचना तथा सम्प्रेषण तकनीकी, वौद्धिक सम्पदा अधिकार तथा जी०एम० ओ०, कोदेस्क मानक, विधिक एवं साफ-सुथरी, व्यवसायिक पद्धतियों इत्यदि पर अधिक ध्यान दिया जायेगा|
शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु नवीन शिक्षण उपकरणों को उपलब्ध कराने साथ कृषि विश्वविद्यालयों के वर्तमान संरचना को सुदृढ़ किया जायेगा| युवा एवं योग्य शिक्षकों के क्रांतिक एवं उभरते क्षेत्रों में अकादमिक उत्कृष्टता को कार्यक्रम आधारित वित्तीय संसाधन की उपलब्धता द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा|
शैक्षणिक संस्थानों को विश्व भर उसके संकाय की दक्षता के कारण जाना जाता है| गुणवत्तायुक्त विद्वानों की नियुक्ति पहला कदम है परन्तु संकाय सदस्यों की कुशलता एवं लगातार गुणवत्तायुक्त ज्ञान अभिवर्द्धन ही गुणवत्तायुक्त शिक्षा की कुंजी है| इसलिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्यों को दक्षता में वृद्धि हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रतिभाग हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा| एस विकास कार्यक्रम में यह ध्यान तखा जायेगा कि प्रत्येक संकाय सदस्य को पांच वर्ष के अन्तराल में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम अवश्य उपलब्ध हो| इस प्रकार २० प्रतिशत संकाय संख्या प्रतिवर्ष प्रशिक्षण प्राप्त करेगी|
संकाय के पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण विकास हेतु देशी एवं विदेशी शैक्षणिक तथा शोध संस्थानों के साथ नेट्वर्किंग एवं सहभागिता को सुदृढ़ किया जायेगा तथा छात्रों को संयुक्त शोध हेतु बढ़ावा दिया जायेगा|
कृषि शिक्षा के संस्थानों के प्रशासन, विकास एवं शोध, संकाय एवं छात्र विकास तथा पाठ्यक्रम निरूपण में निजी क्षेत्र कि भूमिका में अभिवर्द्धन किया जायेगा तथा विशेष उपायों हेतु कार्यक्रमों के माध्यम से सीधे सहायता कि व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जायेगा|
कृषि शिक्षा प्रदान करने बाले निजी विद्यालयों को गुणवत्ता एवं मानक में सुधार के उददेश्य से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों से जोड़ा जायेगा|
कृषि शिक्षा
कार्य बिन्दु
• कृषि शिक्षा व्यवस्था को पुर्नभाषित कर नये स्नातकों को विषय पूर्णता, स्व प्रेरणा, सकरात्मक सोच, कृषि व्यवसाय निपुणता तथा सूचना/सम्प्रेषण तकनीक के साथ-साथ कम्प्युटर के साथ-साथ अंग्रेजी तथा स्थानीय भाषा के ज्ञान से लैस किया जायेगा|
• कृषि शिक्षा में भावी विषयों यथा- कृषि व्यवसाय प्रबन्धन, कृषि प्रसंस्करण, दुग्ध तकनीकी व् पशु चिकित्सा सुविधओं, विपणन तथा भण्डारण, वातावरण, जैव तकनीकी, सूचना तथा सम्प्रेषण तकनीकी, बौद्धिक सम्पदा अधिकार तथा जी०एम०ओ०, कोदेश मानक, विधिक एवं साफ सुथरी व्यापारी,व्यवसायिक पद्धतियों इत्यादि कि नैतिकता पर अधिक ध्यान दिया जायेगा|
• शिक्षण कि गुणवत्ता में सुधार कर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों कि संरचना को सुदृढ़ किया जायेगा|
• युवा एवं योग्य शिक्षकों के क्रांतिक एवं उभरते क्षेत्रों के अकादमिक उत्कृष्टता को कार्यक्रम आधारित वित्तीय संसाधन कि उपलब्धता द्वारा प्रोत्साहित किया जायेगा|
• ज्ञान अभिवर्द्धन एवं क्षमता सुधार हेतु संकाय सदस्यों के नियमित प्रशिक्षण कि व्यवस्था|
• एक विश्वविद्यालय से एक उपाधि अवधारणा को प्रोत्साहित कर गुणवत्तायुक्त शिक्षा में सुधार तथा अपरिपक्व विशेषता को निरुत्साहित करना|
• संकाय के पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण विकास हेतु देशी एवं विदेशी शैक्षणिक तथा शोध संस्थानों के साथ नेट्वर्किंग एवं सहभागिता को विकसित एवं सुदृढ़ किया जायेगा तथा छात्रों को संयुक्त शोध हेतु बढ़ावा दिया जायेगा|
• कृषि शिक्षा के संस्थानों के प्रशासन, विकास एवं शोध, संकाय एवं छात्र विकास तथा पाठ्यक्रम निरूपण में निजी क्षेत्र कि भूमिका में अभिवर्द्धन|
• नव स्थापित विश्वविद्यालयों/विद्यालयों के मानव संसाधन कि आवश्यकता के दृष्टिकोण से नियमित आंकलन|
• भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कि सुनिश्चित गुणवत्ता नीतियों का पालन, प्रक्रियाओं एवं शर्तें तथा गुणवत्ता अनुश्रवण क्षमता का सुदृढ़ीकरण|
• कृषि शिक्षा प्रदान करने वाले निजी विद्यालयों को गुणवत्ता एवं मानक में सुधार के उददेश्य से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों से संयोजन|
१२.२ शोध
क्षेत्रीय शोध केन्द्रों को क्षेत्र विशेष शोध सुविधओं के सुदृढ़ीकरण के परिप्रेक्ष्य में सुदृढ़ किया जायेगा| आधारभूत सुविधओं विशेष रूप से जैव तकनीकी, सूचना तकनीकी, खाद्य प्रसंस्करण, आणुविक जीव विज्ञान, प्रेसिजन फार्मिंग,नैनो तकनीकी इत्यादि के क्षेत्र को सुदृढ़ कर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में शोध किय जायेंगे| अग्रणी क्षेत्रों जैसे – बायो तकनीक तथा अनुवांशिक अभियांत्रिकी क्षेत्र में अपरिपक्व कार्मिकों से सम्भव कि सीमा तक बचा जायेगा तथा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में सक्ष्म वैज्ञानिकों कि नियुक्ति हेतु चयन प्रक्रिया में पूर्ण रूपें परिवर्तन किया जायेगा| शोध हेतु वित्तीय प्रवाह को सुव्यवस्थित किया जायेगा तथा क्षेत्र विशेष शोध हेतु अनुदानों को उत्तर प्रदेश, कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से उपलब्ध कराया जायेगा|
बीज, औद्यानिकी, जकड़ी फसलें, उर्वरक ठाट कीटनाशी के उपयोग के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों कि बढ़ती रूचि के दृष्टिगत कृषि शोधों में निजी क्षेत्र कि सहभागिता को प्रोत्साहित किया जायेगा| यदि निजी क्षेत्रों द्वारा शोध के उत्तरदायित्व का निर्वहन किया जाता है तो सरकारी संसाधनों को जनहित में मृदा, जल, जी०एम० फसलें तथा नैनो तकनीकी क्षेत्र में शोध सुविधाएं उपलब्ध कराया जायेगा|
कृषि शिक्षा एवं शोध के प्रभावी समन्वय हेतु उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद को सुदृढ़ किया जायेगा तथा उभरते प्राथमिकता के क्षेत्रों में शोध हेतु इसके उत्तरदायित्व को सुदृढ़ीकृत किया जायेगा|
कृषि शोध
कार्य बिन्दु
• क्षेत्रीय शोध केन्द्रों पर क्षेत्र आधारित विशेष शोधों कि सुविधा का सुदृढ़ीकरण|
• आधारभूत सुविधओं विशेष रूप से जैव तकनीकी, सूचना तकनीकी, खाद्य प्रसंस्करण, आणुविक जीव विज्ञान, प्रेसिजन फार्मिंग, नैनो तकनीकी इत्यादि को कृषि विश्वविद्यालयों में प्रारम्भ करना|
• अग्रणी क्षेत्रों जैसे- बायो तकनीक तथा अनुवांशिक अभियांत्रिकी क्षेत्र में सक्षम वैज्ञानिकों कि नियुक्ति को सुनिश्चित किया जायेगा|
• राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में शोध हेतु वित्तीय प्रवाह को सुव्यवस्थित किया जायेगा तथा क्षेत्र विशेष शोध हेतु अनुदानों को उत्तर प्रदेश, कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा|
• निजी क्षेत्रों को उच्चतर शोध में प्रोत्साहित किया जायेगा जैसे- जी०एम० फसलें तथा सूक्ष्म तकनीकी|
• उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद का सुदृढ़ीकरण|
• उत्पादन एवं उत्पादन क्षमता के अन्तराल को कम करने, कृषि विविधीकरण द्वारा कृषि प्रतिमान प्राकृतिक संसाधन प्रबन्ध, कृषि यंत्रीकरण, फसलोत्तर प्रबन्धन, लागत उपदेयता तथा मूल्य संवर्द्धन, जलवायु परिवर्तन, कृषि व्यवसाय, विश्व व्यापार संगठन ठाठ अन्य उभरते मुददों पर शोध को बढ़ावा|
• राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित किये जायेंगे|
१२.३ मानव संसाधन विकास
किसी कार्यक्रम के निर्धारित समयावधि में प्रभावी संचालन हेतु तकनीकी ज्ञान का उन्नयन एवं निपुणता एक महत्वपूर्ण अवयव है| विभिन्न विभागों के प्रसार कार्यकर्ताओं के ज्ञान उन्नयन हेतु राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के प्रसार निदेशालय तथा जनपदीय कृषि विज्ञान केन्द्रों पर नियमित प्रशिक्षण को सुनिश्चित किया जायेगा| मानव संसाधन प्रबन्धन के साथ वित्त एवं निवेश भी महत्वपूर्ण है इसलिए सम्बन्धित क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के क्षमता वृद्धि हेतु प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे|
१३. संस्थागत सुधार एवं नियोजन व्यवस्था
१३.१ संस्थागत सुधार एवं प्रबन्धन
वैश्वीकरण के संदर्भ में कृषि विकास की वृद्धि, कृषकों को उनके उत्पाद का लाभकारी मूल्य दिलाने, कृषि उत्पादन प्रसंस्करण एवं विपणन सुविधओं के उपलब्धता के लिए कृषि क्षेत्र में संस्थागत एवं प्रबन्धकीय सुधार आवश्यक है| लघु एवं सीमान्त कृषकों की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए ऐसे सुधार आवश्यक होंगे जिनसे छोटी जोतों की उत्पादकता एवं शुद्ध लाभ में बढ़ोतरी संभव हो सके| ऐसे प्राविधान बनाना आवश्यक है जिससे बटाई/साझेदारी कृषकों को भी भू-स्वामित्व प्राप्त कृषकों के समान सभी सुविधायें एवं लाभ प्राप्त हो सकें|
बड़े वर्ग के कृषकों द्वारा खेत को लघु/महिला कृषकों तथा निजी क्षेत्र को पट्टे पर दिये जाने हेतु वैधानिक प्राविधानों में संषोधन किये जायेंगे| भूमि सुधार प्रक्रिया को प्रभावी एवं गतिशील बनाया जायेगा| भू अभिलेखों को कम्प्युटरीकृत किया जायेगा तथा कृषकों को खाताबही उपलब्ध करायी जायेगी| भू स्वामित्व में महिलाओं के अधिकारों को चिन्हित किया जायेगा| सहमती/संविदा खेती में निजी क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जायेगा तथा कृषकों की भूमि निजी क्षेत्र को पट्टे पर उपलब्ध कराकर अद्यतन तकनीकों, निवेश तथा उत्पादों के विपणन की सुविधओं का लाभ कृषकों को उपलब्ध कराया जायेगा|
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों को ऋण उपलब्ध कराने हेतु संस्थागत बदलाव किये जायेंगे| सहकारी संस्थानों तथा कृषक समूहों को राष्ट्रीय बैंकों से जोड़ा जायेगा, जिससे कृषकों की बैंक तक पहुंच तथा ऋण सुविधा को सरल बनाया जायेगा| सूक्ष्म ऋण योजना को प्रोत्साहन दिया जायेगा|
कृषि एवं सम्बद्ध विभागों की कुशलता में सुधार हेतु सूचना तकनीकी के प्रयोग को प्राथमिकता दी जायेगी तथा ई-प्रशासन को राष्ट्रीय ई-प्रशासन नीति के अनुसार लागू किया जायेगा| प्रशासनिक पक्षों के स्थान पर तकनीकी पक्षों पर बल दिया जायेगा| कृषि आंकड़ा कोष को गुणात्मक रूप से सुदृढ़ किया जायेगा|
संस्थागत संरचना एवं प्रबन्धन सुधार
कार्य बिन्दु
• बटाईदारो बटाईदारों को भूमिघरों के समान सुविधायें उपलब्ध कराना|
• पट्टे हेतु संवैधानिक व्यवस्था करना|
• भू अभिलेखों का कम्प्युटरीकृत तथा खाताबही की व्यवस्था|
• सूक्ष्म ऋण के प्रोत्साहन हेतु संस्थागत व्यवस्था में बदलाव|
• सहमती/संविदा कृषि हेतु नियमन|
• सूचना तकनीकी का अधिकाधिक प्रयोग|(जी०आई०एस०, रिमोट सेंसिंग)|
• राष्ट्रीय ई-प्रशासन नीति के अनुसार ई-प्रशासन को लागू करना|
१३.२ क्षेत्रीय आधार पर नियोजन
प्रदेश के विभिन्न क्रिसी जलवायुवीय एवं आर्थिक क्षेत्रों की अवस्थापनाओं, प्राकृतिक संसाधनों, फसल पद्धतियों एवं फसल उत्पादन की विशिष्टताओं में काफी विविधता है| सूक्ष्म नियोजन हेतु वर्तमान ९ कृषि जलवायु क्षेत्रों को ३ भौगोलिक क्षेत्रों, ८ मृदा समूहों तथा ३ जैविक जलवायुविक किस्मों के आधार पर पुन: सीमांकित करते हुए २० कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में बाँटा गया है| अत: क्षेत्रीय नियोजन पर विशेष बल किया जायेगा जिससे कृषि पारिस्थितिकीय में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके| परिस्थितियों का पूर्ण दोहन किया जायेगा| विभिन्न कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों हेतु लाभदायी एवं उचित कृषि प्रतिमानों को विकसित कर लोकप्रिय बनाया जायेगा|
कार्य बिन्दु
• क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर विकास योजनाओं का निर्माण|
• विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों हेतु उपयुक्त एवं लाभदायी कृषि प्रतिमानों का विकास|
• क्षेत्र विशेष हेतु विशेष पैकेज का विकास जैसे- बुन्देलखण्ड एवं विन्ध्यन आदि|
• विकासखण्ड स्तर पर बायोएजेंट्स का उत्पादन एवं वितरण|
• आई०टी०के० का संकलन एवं सत्यापनोपरंत इसका क्रियान्वयन|
• क्षेत्र विशेष के लिए उपयुक्त फसलों की संस्तुति|
१४. अनुश्रवण एवं समीक्षा
प्रस्तावित उत्तर प्रदेश कृषि नीति कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत आगामी दस वर्षों में होने वाले उत्तरोत्तर विकास की आधारशिला होगी| नीति की सफलता क्रियान्वयन से सम्बद्ध उत्प्रेरण एवं समर्पण पर निर्भर करेगी| मा० मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में एक समिति बनायी जायेगी जो इसके क्रियान्वयन का समय-समय पर अनुश्रवण करेगी| कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में गठित एक कार्यकारी दल द्वारा नीति के प्रत्येक मुख्य बिन्दु के क्रियान्वयन की विस्तृत समीक्षा की जायेगी जिसके अन्तर्गत वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता, अवरोधों को दूर करने के प्रयास तथा यथा आवश्यक संशोधन विषयक सुझाव के महत्वपूर्ण बिन्दु सम्मिलित होंगे| गठित समिति निर्धारित प्रगति सूचकांकों के आधार पर संलग्न समयबद्ध कार्यक्रम के अनुसार प्रत्येक कार्यबिन्दु के सापेक्ष प्रगति का मूल्यांकन करेगी| सभी सम्बन्धित विभाग प्रस्तावित कृषि नीति के अनुसार विभिन्न क्रियाकलापों के कियान्वयन हेतु विस्तृत समयबद्ध कार्य योजनायें तैयार करेंगे|
स्त्रोत: उत्तर प्रदेश सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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