पशु स्वास्थ्य शिविर
इस योजनान्तर्गत पशुओं का सघन चिकित्सा पशुपालकों के द्वार पर उपलब्ध कराने तथा पशुपालकों में पशुपालन के प्रति जागरूकता बढ़ाने, पशु रोगों की पहचान उनका बचाव हेतु टीकाकरण आदि उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण स्तर पर पशु स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया जाता है।
अन्य योजनाओं के साथ इस योजना को एकसूत्रित करने के उद्देश्य से शिविर का आयोजन प्राथमिकता के तौर पर पंचायत/प्रखण्ड स्तर पर आयोजित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी अथवा गैर सरकारी क्षेत्रों जहाँ पशुधन /कुक्कुटों का विकास कार्य कलस्टर में हो रहा है, में शिविर आयोजन की प्राथमिकता दिया जाना प्रस्तावित है।
कुक्कुट विकास
इस योजना के तहत् ब्रायलर उत्पादन के छोटे उत्पादक के रूप में 400 ब्रॉयलर कुक्कुटों की इकाई स्वयं सहायता समूह के महिला सदस्यों को पचास प्रतिशत अनुदान पर दी जाती है। यह कार्य कलस्टर में किये जाते हैं ताकि ब्रॉयलर फार्मिंग हेतु आवश्यक कच्चा माल तथा बिक्री हेतु तैयार ब्रॉयलर का परिवहन सुगमता पूर्वक किया जा सके।
इसके अतिरिक्त राशि की उपलब्धता के आधार पर निजी कुक्कुट व्यवसायियों को प्रोत्साहित करने हेतु दो हजार एवं दस हजार क्षमता के ब्रॉयलर फार्मिंग, दस हजार क्षमता के लेयर फार्मिंग, कुक्कुट खाद्यान कारखाना, हैचरी तथा पेरेन्ट स्टॉक फार्मिंग के लिए एस.एल.एस.सी. द्वारा निर्धारित अनुदान पर उपलब्ध कराए जायेंगे।
बकरा विकास
राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत राज्य के चयनित छः जिलों यथा, राँची, गुमला, सिमडेगा, चाईबासा, हजारीबाग एवं गिरिडीह में 20 बकरा विकास केन्द्र के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में नस्ल सुधार कर बकरा विकास का कार्य किया जा रहा है। इस योजना का कार्यान्वयन बैफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे द्वारा किया जा रहा है। इस योजना से उपरोक्त छः जिलों के 20,000 बकरी पालक लाभान्वित होंगे तथा पाँच वर्ष की अवधि में लगभग 1,00,000 (एक लाख) बकरी आच्छादित होंगे।
साथ ही चयनित लाभुकों को दस स्थानीय नस्ल की बकरियाँ तथा एक ब्लैक बंगाल नस्ल का बकरा की इकाईयाँ पचास प्रतिशत अनुदान पर दिया दी गयी है। यह कार्य कलस्टर में किया गया ।
सूकर विकास
राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत चयनित लाभुकों को अनुदानित राशि पर सूकर इकाई (4 + 2 एवं 8 + 5) का वितरण किया जा रहा है। इसके लिए सूकरों को खिलाने हेतु एक वर्ष का सूकर खाद्यान तथा लाभुकों को सूकरों के रख-रखाव हेतु आधारभूत संरचना के लिए राशि उपलब्ध कराए जाते हैं। लाभुकों का चयन प्राथमिकता के तौर पर अनुजलछाजन क्षेत्र मुखयमंत्री किसान खुशहाली योजना/नक्द्गाल प्रभावित क्षेत्र में किया जाता है। चयनित लाभुकों को सूकर इकाई उपलब्ध कराने के पूर्व तीन दिवसीय प्रशिक्षण भी दिये जाते हैं। वित्तीय वर्ष 2010-11 में 1108 लाभुकों को इस योजना का लाभ दिया गया है।
उपर्युक्त योजना में सूकर बच्चों के आपूर्ति हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत शत -प्रतिशत राज्य समर्थन से सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र, गौरियाकरमा, हजारीबाग एवं काँके, राँची स्थित तीन सूकर प्रजनन प्रक्षेत्रों यथा काँके, होटवार 20 नं0, सरायकेला स्थित होटवार, सूकर प्रक्षेत्र के सुदृढ़ीकरण हेतु तीन वर्षीय योजना क्रमशः 107.55 एवं 303.73 लाख रूप्या की प्रशासनिक स्वीकृति परामर्शी परिषद् द्वारा दी गई है। उक्त के तहत् तृतीय वर्ष अर्थात् 2011-12 के लिए भी राशि प्रस्तावित है।
एस्कड: असिस्टेंस टू स्टेट्स फॉर कण्ट्रोल ऑफ़ एनिमल डिजीज
यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसमें 75: केन्द्रांश एवं 25: राशि राज्यांश सम्मिलित होते हैं। इस योजनान्तर्गत राज्य के पशुधन एवं कुक्कुटों को विभिन्न रोगों यथा सूकर ज्वर, खुरहा, चपका, लंगड़ी, गलाघोंटू, पी0पी0आर0, रानी खेत बीमारियों के विरूद्ध टीकाकरण कार्य किये जाते हैं। इस योजनान्तर्गत चार पशु रोग निदान प्रयोगशाला यथा दुमका, हजारीबाग, पलामू एवं चाईबासा में स्थापित किये गये हैं। इस योजनान्तर्गत खुरहा-चपका, पी0पी0आर0 लंगड़ी, गलाघोंटू, स्वाईन फीभर तथा रानी खेत का टीकाकरण का लक्ष्य है। साथ ही टीका के समुचित भंडारण हेतु क्षेत्रीय स्तर पर कोल्ड चेन व्यवस्था करने का प्रस्ताव है। इस योजना में राज्य के एक मात्र पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान को जी0एम0पी0 मानक के अनुरूप सुदृढ़ीकरण तथा उपरोक्त वर्णित चार पशु रोग निदान प्रयोगशाला का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है।
पशुचिकित्सालयों के स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण की योजना
यह एक केन्द्र प्रायोजित (नई योजना) है जिसके तहत् केन्द्रांश 75: तथा राज्यांश 25: राशि शामिल है। इस योजनान्तर्गत राज्य में स्थापित पशुचिकित्सालय जो भवनहीन एवं जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, के भवनों का नव निर्माण किया जाना है। साथ ही पशुचिकित्सालयों के लिए आवश्यक उपस्कर एवं मशीन उपकरण भी दिये जायेंगे।
न्यादर्श सर्वेक्षण की योजना
यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसमें 50: केन्द्रांश एवं 50: राज्यांश सम्मिलित है। इस योजनान्तर्गत न्यादर्श सर्वेक्षण द्वारा राज्य में दुग्ध, अण्डा, मांस एवं ऊन के उत्पादन का अनुमान लगाने का कार्य भारत सरकार के दिशा-निर्देश के अनुरूप किया जाता है। न्यादर्श सर्वेक्षण का कार्य जिला स्तर पर सांखियकी कर्मी द्वारा किया जाता है। राज्य के प्रत्येक जिला में ऋतुवार 5-5 ग्राम अर्थात् पूरे वर्ष में प्रत्येक जिला के लिए 15 ग्राम का चयन देव योग प्रणाली से किया जाता है। सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण एवं सर्वेक्षण भारत सरकार से प्राप्त मापदण्ड के अनुरूप मुखयालय स्तर पर सांखियकी कोषांग द्वारा की जाती है। जिला एवं मुखयालय स्तर पर पदस्थापित कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के पदों का अवधि विस्तार हेतु राशि प्रस्तावित है। वर्त्तमान में क्षेत्रीय स्तर पर सांखियकी कर्मियों की कमी के कारण आँकड़ों को सही ढंग से संग्रह का कार्य विशेषज्ञ के देख-रेख में जिला के शिक्षित बेरोजगार युवकों के माध्यम से कराया जायेगा, जिसके लिए मानदेय, प्रशिक्षण भत्ता, कार्यालय व्यय आदि में राशि प्रस्तावित है। साथ ही आँकड़ों को सही ढंग से उपस्थापित करने हेतु परामर्शी द्राुल्क प्रस्तावित है।
व्यवसायिक योग्यता विकास
इस योजनान्तर्गत भारतीय पशुचिकित्सा परिषद् अधिनियम 1984 के तहत् गठित झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद् को पशुचिकित्सा व्यवसाय से जुड़े पशुचिकित्सकों को पंजीकृत करने एवं उनके योग्यता के विकास करने एवं परिषद् के कार्यालय भवन निर्माण तथा स्थापना मद के वहन हेतु अनुदान स्वरूप राशि दी जाती है। इस योजनान्तर्गत 50: केन्द्रांश एवं 50: राज्यांश शामिल होते हैं।
निदेशन प्रशासन
इस योजनान्तर्गत निदेशालय एवं क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा योजनाओं के कार्यान्वयन, प्रबोधन एवं मुल्यांकन हेतु आधारभूत संरचना का निर्माण एवं सुदृढ़ीकरण प्रस्तावित है।
प्रथमवर्गीय पशुचिकित्सालयों की स्थापना की योजना
इस योजनान्तर्गत 19 प्रथमवर्गीय पशुचिकित्सालय यथा रमकण्डा, चिनिया, किशुनपुर, बांझी, चाचकी, तोराई, कान्हाचट्टी, जगदीशपुर, गेरिया, काण्ड्रा, सुकरहुट्टू, खरौंधी, बड़ा-बाम्बे, कोयरीडीह, चन्दवारा, तालझारी, बस्ती पालाजोरी, सकरी गली एवं लक्षणपुर की स्थापना का अवधि विस्तार एवं इसके अतिरिक्त अन्य सभी पशुचिकित्सालयों को दवा मशीन/उपकरण आदि हेतु राशि प्रस्तावित है।
चलन्त कृत्रिम गर्भाधान सह पॉलीक्लिनिक की योजना
राज्यन्तर्गत चार चलन्त कृत्रिम गर्भाधान सह पॉलीक्लिनिक की योजनाएँ राँची, जमशेदपुर, धनबाद एवं गढ़वा जिला में संचालित है। इस योजनान्तर्गत पशुपालकों के घर पर पशुचिकित्सा, टीकाकरण एवं गोबर खून आदि के जाँच की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
रेफरल पशु अस्पताल की योजना
उक्त योजनान्तर्गत रेफरल पशु अस्पताल का निर्माण स्वीकृत किया गया था, जिसके अन्तर्गत निर्माण कार्य जारी है। अन्य आवश्यक सुविधा एवं आवश्यक मशीन/उपकरण आदि उपलब्ध की जाएगी तथा गैर योजना मद से आवश्यक पदों का सृजन कर कार्य प्रारंभ किये जायेंगे। उक्त के अतिरिक्त राज्य के जिला में भी एक रेफरल पशु अस्पताल निर्माण के योजना है।
पशुओं के बीमारी के नियंत्रण एवं रोकथाम की योजना
इस योजनान्तर्गत वैसे बीमारियों जो पशुओं से मनुष्य में तथा मनुष्य से पशुओं में फैलते हैं का नियंत्रण एवं रोकथाम कार्य किया जाता है। मूल रूप से इस योजनान्तर्गत रेबीज तथा पुलोरम बीमारी का बचाव एवं नियंत्रण का कार्य किया जा रहा है। इस योजना का संचालन पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, काँके, राँची के माध्यम से सभी जिलों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य के जिलों में शिविर आयोजित कर कुत्तों में एन्टीरेबीज का टीकाकरण कार्य किये जाते हैं।
फ्रोजेन सीमेन बैंक
इस योजनान्तर्गत विभागीय 405 कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र के माध्यम से स्थानीय नस्ल के पशुधन में उत्पादकता वृद्धि हेतु नस्ल सुधार कार्यक्रम संचालित है। इन केन्द्रों के सफल संचालन के निमित्त लिक्विड नाइट्रोजन तथा फ्रोजेन सीमेन स्ट्रॉ की आपूर्ति एवं उन्हें केन्द्रों तक अबाधित रूप से उपलब्ध किये जायेंगे। इस योजनान्तर्गत कुल 1.25 लाख कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य निर्धारित है।
झारखण्ड स्टेट इम्प्लीमेंटिंग एजेंसी फॉर कैटल एंड बुफैलो डेवलपमेंट
इस योजना में भारत सरकार के दिशा-निर्देया के अनुरूप पशुधन नस्ल सुधार एवं पशुधन बीमा हेतु झारखण्ड स्टेट इम्प्लीमेंटिंग एजेंसी फॉर कैटल एंड बुफैलो डेवलपमेंट के कार्यालय की स्थापना व्यय एवं एजेंसी के माध्यम से पशुधन विकास हेतु चलाए जाने वाले विभिन्न कार्यक्रम के लिए आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है।
पशु प्रजनन प्रक्षेत्र
इस योजनान्तर्गत राज्य के तीन पशु प्रजनन प्रक्षेत्रों यथा राजकीय पशु प्रजनन प्रक्षेत्र, गौरियाकरमा, हजारीबाग, दुग्ध आपूर्ति सह गव्य प्रक्षेत्र, होटवार, राँची तथा पशु प्रजनन प्रक्षेत्र, सरायकेला में उपलब्ध क्रमशः रेड सिंधी, मुर्रा एवं हरियाणा नस्ल के पशुधन का संचयन एवं उससे उत्पन्न साँढ़ों को नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत् प्राकृतिक गर्भाधान के लिए इच्छुक लाभुकों को उपलब्ध कराया जाता है। इसके अतिरिक्त गौरियाकरमा, हजारीबाग में एक साँढ़ पोषण केन्द्र है जहाँ प्रक्षेत्र के नर बछड़ों का पालन-पोषण कर साँढ़ के रूप में तैयार कर प्राकृतिक गर्भाधान कार्य हेतु क्षेत्र में वितरित किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2009-10 में लगभग 2.5 हजार, पशुधन का प्राकृतिक गर्भाधारण के द्वारा नस्ल सुधार किया गया है। प्रक्षेत्र के आधारभूत संरचना एवं उपलब्ध पशुधन को अंतः प्रजनन से बचाव हेतु चरणबद्ध तरीके से सुदृढ़ीकरण कार्य किया जा रहा है।
कुक्कुट विकास के अन्तर्गत कुक्कुट प्रक्षेत्र
इस योजनान्तर्गत क्षेत्रीय कुक्कुट प्रक्षेत्र, होटवार, राँची एवं राजकीय कुक्कुट प्रक्षेत्र, बोकारो में एक-एक लाख ब्रायलर/लेयर/बैकयार्ड कुक्कुट चूजों के उत्पादन हेतु पेरेन्ट स्टॉक, खाद्य चारा, दवा/टीकौषधि आदि हेतु राशि प्रस्तावित है। प्रक्षेत्र द्वारा उत्पादित चूजों को विभाग द्वारा संचालित योजनाओं में तथा इच्छुक लाभुकों के बीच आपूर्ति की जाती है।
बकरा विकास
इस योजनान्तर्गत स्थानीय नस्ल की चार बकरियाँ तथा एक उन्नत नस्ल का बकरा का वितरण विधवा आश्रित लाभुकों को दवा/टीकौषधि, तीन माह का पशु खाद्यान आदि के साथ दिये जाने का प्रस्ताव है। साथ ही वृहत् भेंड़ प्रजनन प्रक्षेत्र, चतरा में अवस्थित बकरा-बकरी एवं भेड़ के रख-रखाव हेतु पशु खाद्यान, दवा टीकौषधि आदि हेतु राशि प्रस्तावित है। प्रक्षेत्र में उन्नत नस्ल के बकरों का उपयोग नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत् पलामू, गढ़वा, लातेहार एवं चतरा जिलों में किये जायेंगे।
सूकर विकास
इस योजनान्तर्गत सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र, काँके, राँची में कार्यरत कर्मियों के पदों का अवधि विस्तार तथा वैसे सूकर प्रजनन प्रक्षेत्रों जो आरकेभीवाई से आच्छादित नहीं है, में उपलब्ध सूकरों के लिए खाद्य-चारा/दवा/टीकौषधि आदि हेतु राशि प्रस्तावित है। प्रक्षेत्र से उत्पादित होनेवाले सूकर बच्चों को विभाग द्वारा संचलित सूकर विकास की विभिन्न योजनान्तर्गत आपूर्ति किये जाते हैं।
सांखियकी कोषांग की स्थापना
पलामू क्षेत्रान्तर्गत संचालित विभागीय योजनाओं के प्रबोधन एवं मुल्यांकन हेतु क्षेत्रीय निदेशक, पशुपालन कार्यालय, पलामू में सांखियकी कोषांग गठित है जिनके पदों का अवधि विस्तार एवं अन्यान्य मद हेतु राशि प्रस्तावित है।
गो सेवा आयोग
झारखण्ड गो सेवा आयोग अधिनियम 2005 के अन्तर्गत गो सेवा आयोग को दिये गए कर्त्तव्यों एवं दायित्वों के निर्वाह के लिए तथा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्यों को वेतन एवं भत्ते तथा कार्यालय के संचालन हेतु राशि प्रस्तावित है। इसके साथ ही आयोग के माध्यम से राज्य के गोशालाओं की आर्थिक स्थिति एवं उत्पादकता के आधारभूत संरचना की आवश्यक मरम्मति एवं जीर्णोद्धार, ऊर्जा के लिए बायोगैस प्लांट की स्थापना तथा हरा चारा उगाने हेतु ग्रास लैण्ड डेवलपमेंट के लिए आवश्यक मशीन/उपकरण आदि हेतु अनुदान दिये जायेंगे।
प्रसार प्रशिक्षण की योजना
पशुपालन प्रशिक्षण केन्द्र, काँके, राँची एवं पशुपालन विद्यालय, गौरियाकरमा, हजारीबाग में गोपालन, सूकर पालन, बकरी पालन एवं कुक्कुट पालन संबंधी दस दिवसीय व्यवहारिक प्रशिक्षण दिये जाते हैं। वित्तीय वर्ष में शीक्षित बेराजगार युवकों/पशुपालकों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा जाता है।
पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान का सुदृढ़ीकरण
पशुओं के रोग निदान, पशु खाद्यान नमूनों की जाँच तथा पशु बीमारियों से संबंधित विभिन्न टीकौषधियों के उत्पादन हेतु पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान, काँके, राँची में स्थापित है। वर्ष 2011-12 में उक्त संस्थान द्वारा माह जनवरी, 2011 तक 8.93 लाख टीकौषधि उत्पादन, 2055 बर्ड सैम्पल एभियन इन्फ्लूएंजा जाँच हेतु, पोस्टमार्टम जाँच - 1473, पशु खाद्यान जाँच - 146 तथा बोभाईन स्पॉन्जी फॉर्म इन्सेफेलोपैथी के प्रति जागरूकता हेतु 56 पशुचिकित्सकों एवं पाराभेट को प्रशिक्षण दिया गया है।
पाराभेट प्रशिक्षण
इस योजनान्तर्गत ग्रामीण शीक्षित बेरोजगार युवक जो 10+2 उत्तीर्ण हैं तथा पशुचिकित्सा कार्य में अभिरूचि रखते हैं, को राज्य अथवा राज्य के बाहर खयाति प्राप्त संस्थानों से पाराभेट का प्रशिक्षण दिलाया जाता है। प्रशीक्षणोपरान्त राज्य सरकार उन्हें एक प्राथमिक उपचार किट उपलब्ध कराती है जिसके माध्यम से ये पाराभेट पशुओं में प्राथमिक उपचार का कार्य कर सकें। इन पाराभेट प्रशीक्षित युवकों को पशु मित्र के रूप में चिन्हित किया जाएगा तथा इन्हें विभाग द्वारा एक निश्चित मानदेय देकर उनसे विभागीय योजनाओं का प्रचार-प्रसार/टीकाकरण, खून नमूनों का एकत्रिकरण आदि कार्य भी कराये जायेंगे।
परामर्शी सेवाएँ
विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के मुल्यांकन, नए योजनाओं का सृजन, पशु प्रक्षेत्रों का सुदृढ़ीकरण, विभागीय संरचनाओं का पुनर्गठन आदि हेतु तकनीकी सहायता एवं कार्यों हेतु परामर्शी सेवाएँ प्राप्त करने का प्रस्ताव है।
पेट क्लीनिक
आधुनिक परिवेश में शहरी नागरिकों में कुत्ता पालन के प्रति बढ़ती रूझान देखा जा रहा है। पहले विदेशी नस्ल के कुत्तों का पालन प्रायः नगण्य थे तथा इसे कीमती तथा फैशन चिह्न के रूप में देखा जाता है। परन्तु शहरी नागरियों के जीवन में आ रहे परिवर्त्तन को दखते हुए इन कुत्तों का पालन अनके आवश्यकताओं में से एक हो गया है। शहरी क्षेत्रों में एक से एक कीमती एवं बहुउपयोगी विदेशी नस्ल के कुत्तों का पालन किया जा रहा है। इन कुत्तों को आवश्यक चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराने हेतु शहरी क्षेत्रों में चरणबद्ध ढंग से पेट क्लीनिक खोलने का प्रावधान है।
क्षमता निर्माण एवं कुशलता विकास
इस योजनान्तर्गत विभागीय पशुचिकित्सकों के कार्य क्षमता एवं कुशलता में वृद्धि हेतु राज्य अथवा राज्य के बाहर खयाति प्राप्त संस्थानों द्वारा प्रशिक्षण, रीफ्रेसर प्रशिक्षण आदि कराए जाने का प्रस्ताव है।
राज्य पशुधन का चिन्हितकरण
इस योजनान्तर्गत राज्य के स्थानीय नस्ल के पशुधन का पहचान तथा वर्गीकरण कार्य किये जायेंगे। इसके तहत् चिन्हितीकरण किये जानेवाले पशुधन का सर्वप्रथम फील्ड सर्वे किये जायेंगे जिसके अन्तर्गत पशुओं का शारीरिक विशेषताओं का ब्यौरा तैयार किया जाएगा। तदोपरान्त इनका जाँच कार्य रक्त नमूनों के माध्यम से प्रयोगशाला में कराया जाएगा।
कार्यालयों का कम्प्यूटरीकरण एवं आधुनिकीकरण
इस योजनान्तर्गत निदेशालय एवं क्षेत्रीय कार्यालयों के कार्यकुशलता में वृद्धि के उद्देश्य से कम्प्यूटरीकरण तथा आधुनिकीकरण कार्य किये जाएगें।
पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना
राज्य सरकार ने राज्य में पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु सैद्धान्तिक सहमति दिया है। उक्त के आलोक में विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना/आकस्मिक व्यय आदि हेतु राशि प्रस्तावित है।
पशु चेचक उन्मूलन की योजना
इस योजनान्तर्गत गो-पशुओं में होनेवाली पशु चेचक बीमारी, जिसे 2006 में देश से मुक्त घोषित किया जा चुका है, का क्लीनिकल सर्विलेन्स का कार्य राज्य के गाँव-गाँव में किया जाता है। उक्त के तहत् भिलेज सर्च, रूट सर्च तथा डे बुक सर्च कार्य किये जाता है। भिलेज सर्च प्रोग्राम के तहत् वृहत् पैमाने पर गाँव-गाँव में पशु चेचक रोग की खोज का काम तथा प्रचार-प्रसार का कार्य पशुचिकित्सा पदाधिकारी एवं पाराभेट द्वारा किया जाता है। संबंधित जिला के जिला पशुपालन पदाधिकारी एवं क्षेत्रीय निदेशक समय-समय पर डे-बुक सर्च का कार्य सम्पादित करते हैं। स्टॉक रूट सर्च प्रोग्राम में नेशनल हाई वे तथा अन्य मुखय मार्गों से जहाँ से पशुओं का परिवहन किया जाता है वहाँ के पाँच किलोमीटर के अंदर हाईवे के दोनों तरफ रहने वाले क्षेत्रों में पशु चेचक खोज का कार्य किया जाता है।
सूकर ज्वर प्रशिक्षण की योजना
इसके अन्तर्गत भारत सरकार के निदेशानुसार एस्कड की योजना के तहत् सूकर ज्वर तथा आकस्मिक प्रकट होनेवाले पशुधन बीमारियों के नियंत्रण/रोकथाम हेतु पशुचिकित्सकों/पाराभेट का प्रशिक्षण दिया जाता है।
पशुगणना की योजना
भारत सरकार के दिशा-निर्देश के आलोक में सम्पन्न 18वीं पशुधन गणना अन्तर्गत आउट सोर्सिंग से पशुधन आँकड़ों का संगणकीकरण एवं अन्य कार्य कराये जाएगें।
ब्रुसेलोशीश नियंत्रण की योजना
बु्रसेलोच्चिश एक जीवाणु जनित रोग है, जो पशुओं में होता है तथा संक्रमण के द्वारा मनुष्यों में भी प्रवेश कर उन्हें अपनी चपेट में ले लेते हैं। भारत सरकार द्वारा शतप्रतिशत अनुदान पर इस बीमारी के नियंत्रण का कार्य वित्तीय वर्ष 2010-11 के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ है। राज्य सरकार द्वारा इसके लिए प्रस्ताव भेजा गया है जिसकी मंजूरी केन्द्र सरकार द्वारा कतिपय संशोधनोरान्त दी गई है। यह योजना राज्य में किये जाते हैं जिसके तहत् बछ़ड़ों जिनका उम्र छः माह से अधिक है, का मास स्क्रीनिंग जाँच किया जायेगा। संदेहास्पद नमूनों का जाँच प्रयोगशाला में स्वीकृति हेतु किया जाएगा। पोजिटीव बछड़ा/बछड़ी की टीकाकरण के साथ-साथ उसके आस-पास के सभी बछड़ा/बछड़ी का भी टीकाकरण किया जायेगा। इसके तहत् प्रतिवर्ष बछड़ा/बछड़ी का टीकाकरण का लक्ष्य रखा जाता है।
बर्ड फ्लू रोग इसके नियंत्रण एवं बचाव हेतु की गई कार्रवाई
'बर्ड-फ्लू' एवियन इन्फ्लूएंजा या फाउल प्लेग अथवा फाउल पेस्ट मुर्गियों का एक घातक एवं संक्रामक रोग है। इन्फ्लूएंजा विषाणु A, B एवं C तीन प्रकार के होते हैं। B एवं C केवल मनुष्यों को सक्रमित करता है जबकि A मनुष्यों, पशुओं एवं पक्षियों को सक्रमित करता है।
एवियन इन्फ्लूएंजा । विषाणु का H5N1 उप प्रकार अत्यंत ही अति तीव्र विकृति जन्य पक्षी इन्फ्लूएंजा है। यह रोग एक कुक्कुट फार्म से दूसरे फार्म में तीव्रता से फैलता है। इस रोग के विषाणु मुर्गियों की बीट में बहुत अधिक संखया में पाये जाते हैं, जिससे ये मुर्गी के दाना-पानी एवं बिछावन को भी दूषित करते हैं और उससे एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेजी से फैलते हैं। दूषित स्वचालित गाड़ियों, मुर्गियों के पिंजड़ों व सक्रमित अण्डों के द्वारा भी यह रोग फैलता है। प्रभावित फार्म में कार्यरत श्रमिकों के द्वारा यह रोग एक से दूसरे फार्म तक पहुँच सकता है। यह विषाणु अति सक्रमित प्रवृति का है और पक्षियों के द्रवास एवं पाचन-तंत्र को प्रभावित करता है, जिसके कारण पक्षियों में खाँसी एवं जुकाम के साथ-साथ द्रवास लेने में कठिनाई होना, कलगी, चेहरों व पैरों पर सूजन के साथ-साथ नीलापन आना आदि लक्षण हैं। यह रोग अतिशीघ्र एक फार्म या सहमति पक्षियों में संचालित होता है एवं लगातार कुछ प्रभावित पक्षी मर जाते हैं। इसमें धीरे-धीरे मृत्यु दर भी बढ़ती जाती है जो शत -प्रतिशत तक भी पहुँच सकती है।
पहली बार भारत में 18 फरवरी 2006 को इस रोग का प्रकोप महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के नवापुर ताल्लुका में हुआ। पुनः भारत सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल में 15 जनवरी 08 में बर्ड फ्लू उद्भेदित होने के पश्चात् सेफ्टी कॉरीडोर बनाने के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल से सटे झारखण्ड राज्य के 10 जिलों यथा राँची, सरायकेला, जमशेदपुर, पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज, दुमका, धनबाद, हजारीबाग एवं बोकारो प्रभावित होने की अधिक संभावना बनी रहती है, जिस पर विशेष निगरानी रखी जाती है।
बर्ड फ्लू बीमारी पर कड़ी निगरानी रखने हेतु सालों भर सामान्य सर्विलेन्स कार्य विभाग द्वारा किये जाते हैं। जिसके तहत् कुक्कुट समूहों से रेनडम नमूनों का एकत्रित किया जाता है। अभ्यारण्यों एवं जलाशयों में आने वाले प्रवासी जंगली पक्षियों का नमूना एकत्रित किया जाता है। इसके अतिरिक्त पक्षियों का अस्वाभाविक बीमारी/मृत्युदर होने पर तथा ऐसे क्षेत्र जहाँ कुक्कुटों की संखया अधिक है, से नमूनों का एकत्रिकरण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है।
इस रोग से राज्य को बचाने हेतु लगातार सालो भर सर्विलेन्स कार्य किये जातें हैं जिसके तहत् बर्ड फ्लू जाँच नमूनों (ट्रेकियल/क्लोकल स्वाब) को जांच हेतु राज्य के बाहर लेबोरेटोरी में भेजा गया हैं| इस रोग के प्रकट होने पर किसी भी आकस्मिकता से निपटने हेतु पशुचिकित्सकों, पाराभेट के अतिरिक्त अन्य विभाग के पदाधिकारी यथा सभी जिला मुखयालय के वन पदाधिकारी, मुखय चिकित्सा पदाधिकारी, प्रशासनिक पदाधिकारियों को भी बर्ड फ्लू का प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही किसी आकस्मिकता से निपटने के लिए रैपिड रिस्पॉन्स टीम का भी गठन किया गया है। पाँच राज्य स्तर पर तथा जिला स्तर पर यह टीम गठित है। इसके अतिरिक्त वर्त्तमान में आकस्मिकता से निपटने हेतु लगभग पी0पी0ई0 उपलब्ध है।
बर्ड फ्लू पर प्रभावी ढंग सें नियंत्रण एवं द्रामन हेतु ग्रामीण स्तर पर डिजीज इन्टैलिजेंस नेटवर्क को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से ग्रामीण स्तर पर बर्ड फ्लू सहभागिता आधारित सामुदायिक आसूचना प्रशिक्षण भारत सरकार के सहयोग से चलाया जाता रहा है। इसके तहत् राज्य के प्रत्येक पाँच गाँव से एक ग्राम प्रतिनिधि जो कम से कम मैट्रिक पास हो अथवा कुक्कुट पालन अथवा व्यवसाय में रूचि रखता हो, का चयन किया जाता है। यह ग्राम प्रतिनिधि मुर्गियों में किसी अस्वभाविक मृत्यु होने पर उसकी सूचना त्वरित गति से नजदीकी पशुचिकित्सालय को देते हैं ताकि रोकथाम एवं द्रामन का कार्यक्रम अविलम्ब शुरू किया जा सके। इस कार्यक्रम के तहत् ग्राम प्रतिनिधियों को बर्ड फ्लू का प्रशिक्षण दिया जाता है।
राज्य को मत्स्य उत्पादन में आत्म-निर्भर बनाने एवं उपलब्ध जल-संसाधनों का मत्स्य पालन में अधिक-से-अधिक दोहन करने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के पर्याप्त अवसर के सृजन तथा आर्थिक विकास के लिए मत्स्य विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है। मत्स्य उत्पादन के माध्यम से ग्रामीणों एवं जलाशयों के अगल-बगल के विस्थापित परिवारों को जीविकोपार्जन का सशक्त आधार मिल सकेगा।
अंशदान/ अनुदान योजना (हैचरी निर्माण)
राज्य में मत्स्य बीज उत्पादन करने वाले मत्स्य बीज उत्पादकों को उनके निजी जमीन पर अधिकतम अनुदान से मत्स्य बीज हैचरी निर्माण की योजना है।
आर0 के0 भी0 वाई स्कीम -। योजना
इस योजना के तहत् राज्य के जलाशयों का विकास, जलाशय मत्स्यजीवी सहयोग समितियों को जाल एवं नाव की सहायता के साथ - साथ सरकारी जलाशयों एवं मत्स्य प्रक्षेत्रों के सुदृढ़ीकरण का कार्य, मत्स्य बीज संचयन हेतु नये रियरिंग टैंक तथा मत्स्य प्रजनक केन्द्र निर्माण की योजना का प्रस्ताव है।
एफ0 एफ0 डी0 ए0 (75:25)
केन्द्र प्रायोजित इस योजना अन्तर्गत व्यय की जाने वाली राशि का 75 प्रतिशत व्यय भार केन्द्र सरकार तथा 25 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है। इस योजना के तहत अनुदान एवं वित्तीय संपोषण से जलक्षेत्रों का विकास एवं विकसित जलक्षेत्र में इनपुट कार्य किये जाने की योजना का प्रस्ताव है।
मछुआरों के लिए मछुआ आवास एवं पेयजल योजना (50:50)
इस केन्द्र प्रायोजित योजना का आधा - आधा व्ययभार क्रमश: राज्य एवं केन्द्र सरकारें मिलकर वहन करती हैं। इस योजना अंतर्गत कुल- 2000 मछुआरों को पक्का आवास उपलब्ध कराने की तथा स्वच्छ पेयजल की सुविधा के लिए 80 चापाकल अधिष्ठापन की योजना है।
सामुहिक दुर्घटना बीमा योजना (50:50)
इस केन्द्र प्रायोजित योजना अन्तर्गत सक्रिय मछुआरों का सामूहिक बीमा केन्द्र सरकार की मदद से किया जाता है। इसके तहत मछुआरों के बीमा कराने का प्रस्ताव दी जाती है।
मात्स्यिकी प्रशिक्षण एवं प्रसार योजना (80:20)
इस केन्द्र प्रायोजित योजना का 80 प्रतिशत व्यय भार केन्द्र सरकार वहन करती है। इसमें 300 मत्स्य पालकों को 15 दिवसीय प्रशिक्षण देने, राज्य से बाहर स्थल अध्ययन हेतु भेजने तथा दुमका में एक मत्स्य प्रशिक्षण सह जागरूकता भवन निर्मित करने का लक्ष्य है। प्रशिक्षण अवधि में प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी को 125 रूपये प्रतिदिन का मानदेय भुगतान किया जाता है। कुल योजना लागत 40 लाख रूपये है जिसमें राज्य योजना से 10.00 लाख रूपये व्यय का प्रावधान है।
एन0 एफ0 डी0 बी0 योजना (90:10)
इस योजना में कुल 180.00 लाख व्यय के विरुद्ध राज्यांश के रूप में दस प्रतिशत अर्थात् 20.00 लाख के व्यय का प्रस्ताव है। जिसके तहत जलाशयों में मत्स्य अंगुलिकाओं का संचयन एवं एन0 एफ0 डी0 बी0 के नियमानुसार अन्य कार्य किया जाना है।
तालाब मत्स्य का विकास
इस योजना में मत्स्य स्पॉन, मत्स्य बीज का वितरण, मत्स्य बीज उत्पादकों के लिए जाल तथा एक मत्स्य जागरूकता/विज्ञान केन्द्र निर्माण की योजना है।
जलाशय मत्स्य का विकास
राज्य में कुल 115000 हेक्टर जलाशय जलक्षेत्र में से 50000 हे0 जलक्षेत्र में मत्स्य अंगुलिकाओं के संचयन करने का प्रस्ताव है।
मत्स्य प्रसार योजना
राज्य के 40,000 हेक्टर तालाबों, पोखरों में मत्स्य मित्रों के माध्यम से मत्स्य बीज का संचयन, सम्वर्धन, 25000 तालाबों का सर्वेक्षण, 40 हेक्टेयर में मिश्रित मत्स्य पालन, 100 यूनिट में हॉपा ब्रीडींग, अनुदान पर मत्स्यजीवी सहयोग समितियों को पिक-अप वैन, 50,000 ग्राम गोष्ठियॉ, 50 प्रगतिशील मत्स्य पालकों को पुरस्कार एवं सम्मान एवं 4000 मत्स्य बीज उत्पादकों का विशेष कार्यशाला का प्रस्ताव है।
सर्वे, मॉनीटरिंग एवं इवेल्यूएशन योजना
मत्स्य विकास की योजनाओं की तैयारी हेतु एन0जी0ओ0/ अन्य गैर सरकारी संस्थानों से डी0 पी0 आर0 तैयार कराने तथा मछली के उत्पादन में मॉग के ऑकड़ों का सर्वेक्षण कार्य के लिए कुल मो0 30.00 लाख रु0 के व्यय का प्रावधान है।
मत्स्य अनुसंधान योजना
राज्य में झींगा पालन/मछली-सह-गव्य पालन, अनुसंधान हेतु उपकरण/ सामग्री/ उपस्करों/ रंगीन मछली का प्रजनन/ मशरूम कल्चर/ पर्ल कल्चर आदि प्रयोगात्मक कार्य एवं मत्स्य प्रक्षेत्र का सुदृढ़ीकरण किये जाने का प्रस्ताव है।
मत्स्य किसान प्रशिक्षण केन्द्र का गठन
राज्य में मत्स्य पालकों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करने तथा उन्हें प्रशिक्षण अवधि में व्यवहारिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करने का प्रस्ताव है। इसमें स्थापना व्यय भी सन्निहित है।
झास्कोफिश का गठन
मत्स्यजीवी सहयोग समितियों का राज्य स्तरीय सहकारी महासंघ के रूप में झास्कोफिश का गठन किया गया है। इस योजना अंतर्गत झास्कोफिश में हिस्सा पूंजी के रूप में तथा स्थापना पर व्यय हेतु प्रावधान है।
मत्स्य डोमेस्टिक मार्केट योजना
उपभोक्ताओं को स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण में मछली की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु इस योजना अंतर्गत 100 ''झारखण्ड फ्रेश फिश स्टॉल'' की स्थापना की योजना है। साथ ही साथ 5000 खुदरा मत्स्य विक्रेता को प्रति विक्रेता 1000/- रू0 के लागत से एक नेट एवं दो ड्रेस उपलब्ध कराने की योजना का प्रस्ताव है।
विभागीय कार्यालयों का कम्प्यूटरीकरण एवं आधूनिकीकरण
इस योजना अंतर्गत विभिन्न विभागीय कार्यालयों का कम्प्यूटरीकरण एवं आधुनिकीकरण का प्रस्ताव है।
विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के क्षमता/गुणवत्ता का विकास
इस योजना अंतर्गत विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण की योजना है।
मत्स्य अनुसंधान सह विकास केन्द्र, गुमला का स्थापना
इस योजना अंतर्गत गुमला जिले में एक मत्स्य अनुसंधान सह विकास केन्द्र के स्थापना का प्रस्ताव है।
स्थानीय भागीदारी एवं स्वामित्व सिद्दांत के तहत् स्थानीय युवकों को मत्स्य मित्र एवं मत्स्य बीज उत्पादक के रुप में जिलावार चिन्हित कर प्रशिक्षित किया गया है और उनकी सहायता से जलकरों का सर्वेक्षण एवं मछुआरों की गणना किया गया है।
चालू वित्तीय वर्ष में प्रखण्ड एवं पंचायत स्तर पर मत्स्य बीज की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय मत्स्य बीज उत्पादकों को निजी हैचरी उपलब्ध कराने की योजना की स्वीकृति प्रदान की गई है।
राज्य में अवस्थित जलाशयों में समुचित मत्स्य उत्पादन के लिए एवं इनके 115000 हेक्टर जलक्षेत्र के मात्स्यिकी प्रबंधन हेतु जलाशयों के आसपास 237 सहकारी समितियों का गठन एवं निबंधन कराया गया है तथा इन्हें विभागीय योजनाओं में जोड़कर जलाशयों में 2.24 करोड़ मत्स्य अंगुलिकाओं का संचयन तथा समिति के 8000 सदस्यों को जाल एवं 200 समितियों को नाव की आपूर्ति की जा रही है।
विगत दस वर्षों में राज्य के आठ जिलों जैसे-चतरा, हजारीबाग, देवघर, दुमका, गुमला, सिमडेगा, चाईबासा एवं सरायकेला जिलों में मत्स्य उत्पादन में आई वृद्वि एवं स्थानीय लाभुकों को विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये संसाधन जैसे मछुआ आवास, तालाब निर्माण, मत्स्य मित्र एवं मत्स्य बीज उत्पादकों को स्व-नियोजित करने हेतु चलायी गई योजनाओं का मूल्यांकन कृषि वित्त निगम एवं वारसा संस्था से कराकर उनका कार्यशाला आयोजित किया गया है।
जलाशयों में डी0भी0सी0/एन0एफ0डी0बी0 एवं राज्य योजना के द्वारा मत्स्य अंगुलिकाओं के संचयन से स्थानीय मछुआरों को सीधा लाभ एवं जलाशय का मत्स्य उत्पादन में दोहन हो रहा है।
चालू वित्तीय वर्ष में 2000 मछुआ आवास, 7400 मत्स्य कृषकों को प्रशिक्षित करने एवं 40 मत्स्य बीज उत्पादकों के निजी जमीन हैचरी बनाने तथा 80 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन के लक्ष्य के विरुद्ध फरवरी, 2011 तक 1150 मछुआ आवास, 5600 मत्स्य कृषकों का प्रच्चिक्षण, 28 निजी हैचरी, 67 करोड़ मत्स्य बीज का उत्पादन किया जा चुका है।
सात जिलों में जिला मत्स्य कार्यालय भवन निर्माण कार्य की स्वीकृति प्रदान की गई है।
चांडिल, पलना, तेनुघाट, मलय आदि जलाशयों में जहॉं वर्ष 2006-07 तक 2-3 कि0ग्रा0 मछली का उत्पादन होता था, वह बढ़कर वर्त्तमान में 60-80 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर तक पहुच चुका है, जिसे आगामी दो वर्षों में 150-200 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर तक करने की योजना है।
वर्त्तमान में राज्य के कई स्थानों पर अत्यंत कम अथवा देर से हुई वर्षा के बावजूद चालू वित्तीय वर्ष में 1,10,000 मे0ट0 मछली के मॉंग के विरुद्ध अब-तक 62,000 मे0ट0 मछली का उत्पादन हुआ है।
स्रोत: पशुपालन व मत्स्य विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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