रसायनिक खाद के निरंतर प्रयोग से मिट्टी की संरचना एवं बनावट में काफी बदलाव आया है। इस बदलाव के कारण मिट्टी नमी रहित एवं सख्त हो गयी है।
वर्षाश्रित क्षेत्र में नमी संरक्षण हेतु जैविक खाद का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। इसके प्रयोग से कृषि योग्य भूमि आवश्यकतानुसार सस्ते दर पर पोषक तत्वों की पूर्ति कर कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। जैविक खाद को तैयार करना आसान एवं सस्ता है, तथा रसायनिक खाद की तुलना में इसके प्रयोग से फसल एवं मिट्टी को कोई हानि नहीं पहुँचती है। जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के साथ-साथ उसके भौतिक एवं जैविक गुणों में वृद्धि होती है।
अतः यह आवश्यक है कि अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त करने हेतु मिटटी परिक्षण के साथ-साथ फसलों की आवश्यकतानुसार रसायनिक खाद के बदले जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।
घरों एवं प्रक्षेत्र में कूड़ा-करकट निरंतर बहुत मात्रा में निकलता रहता है, कृषि प्रक्षेत्रों में जानवरों के गोबर, मूत्र इत्यादि भी प्राप्त होते हैं। इनका सही, परिमार्जन का इनके पोषक तत्वों का उपयोग उत्पदान बढ़ाने में किया जाता है।
केंचुआ गोबर, सड़ी-गली पत्तियों , जलकुंभी और जैविक पदार्थ खाता है। इनको खाने के बाद जो मलमूत्र त्याग करता है, यही वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद है यह जमीन के लिए उच्च कोटि का संतुलित खाद है एवं जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करता है। केंचुआ खाद में केंचुआ के अंडे भी रहते हैं।
प्रथम प्रकार के केंचुए का उपयोग खाद बनाने में किया जाता है, ये बाजार/संस्थाओं में उपलब्ध है ये बैंगनी एवं लाल रंग के होते है, मिटटी की ऊपरी सतह में रहते हैं एवं 90% जीवाश्म खाते हैं।
कचरे इत्यादि से केंचुआ खाद बनाने के लिए पकी गोबर की खाद, पानी और केंचुआ की जरूरत होती है इसके बनाने इमं 60 दिन का समय लगता है। आमतौर पर प्रति वर्गफुट के लिए 100 केंचुओं की जरूरत पड़ती है।
100 वर्ग फुट के सामान्य इकाई के लिए निम्न वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है।
लंबी बल्लियाँ लंबाई |
6 फुट |
10 पीस |
लंबे बांस लंबाई |
6 फुट |
16 पीस |
चटाईयां |
3 फुट 4 फुट |
10 पीस |
बाँधने के लिए पतले तार |
3 फुट 4 फुट |
10 किलो |
सूखा चारा पकी गोबर की खाद 3-4 क्विंटल, कूड़ा, 7-8 किवंटल केंचुएँ 10000
सबसे पहले एक शेड का निर्माण करें फिर शेड के नीचे सूखे चारे की 6 इंच मोटी परत बिछाएं, उसके ऊपर 6 इंच पकी गोबर की खाद बिछाएं, इसे पानी से भिंगा कर 48 घंटे रहने दें। इसके बाद केंचुओं को 100 केंचुएँ प्रति वर्ग फुट की दर से इस पर समान रूप से बिछा दें, उसके ऊपर 9 मोटी प्लास्टिक एवं कांच इत्यादि से रहित कूड़े कचरे की तह बिछा दें और बोरे ढक दें। झारे से उस पर नीचे मिला दें बोर से फिर ढँक दें पानी छींटने का काम जारी रखें। करीब 60 से 65 दिन में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाएगा। इस प्रक्रिया से 3-6 क्विंटल केंचुआ खाद अंडे के साथ एवं 20-25 हजार केंचुए पैदा होते हैं बढ़े हुए केंचुओं का उपयोग फिर से करें।
इस प्रकार तीन चार बार के प्रयोग से प्रति माह 2 टन वर्मी कम्पोस्ट मिलने लगेगा। वर्मी कम्पोस्ट में सामान्य मिट्टी से 5 गुना नाइट्रोजन 7 गुणा फास्फोरस 11 गुना पोटाशियम, 2 गुना मैग्निश्यम दो गुणा कैल्शियम, 7 गुणा एक्टीनोमामसिटस होता है ये सभी पानी में घुलनशील हैं और पौधों को तुरंत प्राप्त हो जाते हैं।
सभी दलहन फसलों की जड़ों में छोटी, गांठें होती है, इनमें राइजोबियम जीवाणु पाए जाते हैं, जो हवा से नाइट्रोजन लेकर पौधा को खाद के रूप में उपलब्ध कराते हैं।
अतः राजोबियम कल्चर एक जैविक खाद है जिसमें वायुमंडल से नाइट्रोजन संचित करने बाला जीवाणु काफी संख्या में रहते हैं। दलहन के बीजों को इससे उपचारित करने से उत्पादन में वृद्धि होती हैं।
बीज बोने के पहले ½ ग्राम गुड़) लीटर पानी में डालकर 15 मिनट तक उबालें, अच्छी तरह ठंडा होने पर इसमें एक पाकेट 1 किलो राइजोबियम कल्चर मिला दें। इसे अखबार या साफ कपड़े पर छाया में सूखने दें, तत्पश्चात उपचारित बीजों की बुआई शीघ्र कर दें।
नील हरित शैवाल नामक जैविक खाद का उत्पादन एक आसान कार्य है।
नील हरित शैवाल पाउडर को एक हेक्टेयर खेत में धान रोपने के सात दिनों के बाद छींट देना चाहिए।
एक ही खेत में कई बार प्रयोग से वर्षों तक धान की फसल को नेत्रजन उपलब्ध कराते रहेंगे। प्रयोग द्वारा यह साबित हो चूका है कि प्रत्येक उत्पादन वर्ष में 30 कि.ग्राम नेत्रजन संचित करता है जो 60 कि.ग्राम यूरिया के बराबर होता है।
जलीय फर्न के नाम से विख्यात या एक ऐसा शैवाल है जो छोटे-बड़े तालाब, गड्ढे आदि में एक हरी मोटी परत के रूप में बिछा हुआ दिखाई पड़ता है। इसके लाभकारी गुण का पता इसी से चलता है कि जैविक खाद के रूप में इसके प्रयोग से जहाँ 20-25 किलो नेत्रजन प्रति हेक्टेयर पौधों को आसानी से प्राप्त हो जाता है वहीं प्रति रूपये एजोला खाद पर व्यय से 21 से 24 गुणा लाभ (मुनाफा) प्राप्त किया जा सकता है।
एजोला खाद का सबसे ज्यादा प्रयोग धान की खेती में किया जाता है। भारत में सबसे ज्यादा एनाबेना का प्रयोग होता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 3/20/2023
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