केंचुआ खाद प्रयोग की मात्रा एवं प्रयोग विधि
प्रयोग की मात्रा
फसल के अनुसार केंचुआ खाद की प्रयोग की मात्रा 2-5 टन/एकड़ निर्धारित की जा सकती है। सामान्यतः विभिन्न फसलों में इसे निम्न मात्रा में किया जाता हैं:
क्र सं
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फसल
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केंचुआ खाद की मात्रा/एकड़
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1
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धान्य फसलें
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2 टन/एकड़
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2
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दालें
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2 टन/एकड़
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3
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तिलहनी फसलें
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3-5 टन/एकड़
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4
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मसाले की फसलें
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4 टन/एकड़ (2-10 किग्रा/पौधा)
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5
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शाकीय फसलें
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4-6 टन/एकड़
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6
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फलदार वृक्ष
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2-3 किग्रा/वृक्ष
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7
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नकदी फसलें
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5 टन/एकड़
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8
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शोभकारी पौधे
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4 टन/एकड़
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9
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प्लांटेशन फसलें
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5 किग्रा/पौध
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(स्रोतः राधा डी. काले 2003)
प्रयोग विधि
केंचुआ खाद की खेत स्तर पर प्रयोग की विधि अत्यंच आसान है। इसको खेत में बुआई के समय एकसार रुप से बुरक कर प्रयोग किया जाता है। कुछ फसलों जैसे गन्ना इत्यादि में केंचुआ खाद को बुआई के समय नाली के साथ-साथ प्रयुक्त किया जाता है। खड़ी फसल में इसका प्रयोग सिंचाई से पूर्व खेत में जड़ों के पास समान रुप से बुरक करके किया जाता है। कुछ प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि यदि केंचुआ खाद के साथ अजोटोबैक्टर एवं पी.एस.बी.,1 किग्रा प्रति 40 किग्रा केंचुआ खाद की दर से मिलाकर किया जाये तो इसकी क्षमता बढ़ जाती है। फलदार वृक्षों एवं प्लांटेशन फसलों में मुख्य तने से 3-4 फीट की दूरी पर तने के चारों तरफ गोलाकार नाली बनाकर केंचुआ खाद कर प्रयोग करते हैं तथा इसे मिटटी से ढ़क देते हैं।
केंचुआ खाद का भण्डारण
केंचुआ खाद बनाने के बाद अधिकांश लोग इसके रखरखाव व भण्डारण पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते, नतीजन इस खाद के भौतिक व जैविक गुण प्रायः नष्ट हो जाते हैं और यह पौधों के लिए अधिक प्रभावशाली एवं लाभदायक नहीं रहती। केंचुआ खाद के उचित रखरखाव व खुले भण्डारण के दौरान निम्न बातों पर विद्गोष ध्यान देना चाहिए :
वर्मीकम्पोस्ट में पाये जाने वाले असंखय सूक्ष्म जीवों, कोकून तथा अण्डों को जीवित (viable) व सक्रिय (active) रखने के लिए इसमें 25 से 30 प्रतिशत के आसपास नमी बनाये रखने हेतु कम्पोस्ट में आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें।
- वर्मीकम्पोस्ट को कभी भी खुले स्थान पर ढेर के रूप मेंभण्डारित न करें। खुला रखने से इसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणु, कोकून्स एवँ अण्डे तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं अतः भण्डारण सदैव छायादार व अंधेरे वाले स्थान पर ही करे।
- यदि कम्पोस्ट का अधिक समय तक भण्डारण करना हो तो नम व छायादार स्थान पर उचित आकार के गड्ढे बनाकर करें। गड्ढों में वर्मीकम्पोस्ट भर कर सूखी घास एवं बोरियों से ढक दें। आवश्यकता होने पर सूखी घास एवं बोरियों पर पानी छिड़क कर नमी बनाये रखें। इस तरह कम्पोस्ट का भण्डारण करने से उसके पोषक तत्व एवं सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता सुरक्षित बनी रहती है।
- वर्मीकम्पोस्ट को यदि कमरों में भण्डारित करना हो तो पहले कमरों तथा खिड़कियों की अच्छी तरह सफाई करें और खाद भरने के बाद दरवाजे तथा खिड़कियों को अच्छी तरह बन्द कर दें। यदि कमरे में रखी कम्पोस्ट को बोरियों से ढक दिया जाय और खाद की तह की ऊँचाई सिर्फ दो फुट ही रखी जाय तो कम्पोस्ट अधिक दिनों तक सुरक्षित रहती है।
केंचुए खाद से लाभ
- केंचुआ खाद में पौधों के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व (Nutrients) पर्याप्त एवं सन्तुलित मात्रा में मौजूद होते हैं जो पौधों को सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं अतः वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है।
- वर्मीकम्पोस्ट में ऑक्जिन्स (Auxins)] जिब्रैलिन्स (Gibberalins)] साइटोकाइनिन्स (Cytokinins)] विटामिन्स, अमीनोअम्ल आदि अनेक तरह के जैव-सक्रिय पदार्थ (Bio-active compounds) पर्याप्त मात्रा मेंपाये जाते हैं जिनसे पौधों में सन्तुलित बढ़वार तथा अधिक उपज देने की क्षमता का विकास होता है।
- वर्मीकम्पोस्ट जलग्राही (Hygroscopic) होती है जो वातावरण से नमी व सिंचाई के रूप में पौधों को दिए गये पानी को सोख कर भूमि से वाष्पीकरण (Evaporation) तथा निक्षालन (Leaching) द्वारा पानी के नष्ट होने को रोकती है अतः वर्मीकम्पोस्ट का खेत मेंउपयोग करने पर पौधों में बार-बार या अधिक मात्रा में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती।
- वर्मीकम्पोस्ट में अनेक तरह के सूक्ष्म-जीवनाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु (Nfixing Bacteria)] फॉस्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphorus Solubilizing Bacteria)] पौधों की बढ़वार में वृद्धि (Promote) करने वाले जीवाणु, एक्टीनोमाइसिटीज, फफूंद और सैलूलोज व लिगनिन को विघटित करने वाले पॉलीमर्स भारी संख्या में मौजूद रहते हैं। ये सूक्ष्म-जीव भूमि में मौजूद पड़े पौधों के अवशेष तथा अन्य जैविक कचरे (Waste) को सड़ाने व पौधों की बढ़वार में सहायक होते हैं।
- वर्मीकम्पोस्ट में उपस्थित एक्टीनोमाइसिटीज एन्टीबायोटिक पदार्थों का सृजन करते हैं जिनसे पौधों में कीट व्याधियों के आक्रमण से बचाव की क्षमता (Resistance Power) बढ़ जाती है।
- केंचुए के शरीर से कई प्रकार के एन्जाइम जैसे प्रोटेज-प्रोटीन पाचन के लिए, एमाइलेज-स्टार्च व ग्लाईकोजन पाचन के लिए, लाइपेज-वसा पाचन के लिए, सेलुलेज-सेलूलोज पाचन के लिए, इनवटेर्ज-शर्करा पाचन के लिए तथा कैटाइनेज-काइटिन पाचन के लिए कार्य करता है अतः स्राव के रूप में उत्पादित एंजाइमों से केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव होता है।
- वर्मीकम्पोस्ट के कणों (Particles) पर पेराट्रोपिक झिल्ली (Peratropic Membrane) मौजूद होती है जिससे कम्पोस्ट मेंमौजूदनमी का शीघ्रता से वाष्पीकरण द्वारा ह्ररास (Loss) नहीं होता आरै भूमि में दिए गये पानी को अधिक समय तक रोकने में मदद मिलती है।
- वर्मीकम्पोस्ट में खरपतवारों के बीज नहीं होते अतः खेत में इसका उपयोग करने पर किसी भी तरह के खरपतवार की समस्या नहीं होती। इसके विपरीत गोबर के खाद (FYM) एवंअन्य कम्पोस्टों के उपयोग से खेत में खरपतवार अधिक उगते हैं।
- वर्मीकम्पोस्ट मेंमनुष्य तथा पौधोंको नुकसान पहुँचाने वाले किसी भी तरह के जीवाणु (Pathogens) उपस्थित नहीं होते।
- वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के भौतिक गुणों जैसे रन्ध्रावकोष (Porocity)] जलधारण क्षमता (Water Holding Capacity)] मृदा संरचना (Soil 23 structure)] सूक्ष्म-जलवायु (Micro-climate)] तत्वों को रोकने व पोषण क्षमता (Nutrients Retention एवं Supplying Capacity)] रासायनिक गुणों जैसे कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात में कमी (Reduction in C:N ratio)] कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सुधार (improvement in decomposition of organic matter) और जैविक गुणों जैसे-नाइट्रोजन स्थिरीकरण (N-fixing) एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphorus Solubilizing Bacteria)] पॉलीमर्स, एक्टीनोमाइसिटीज आदि की संख्या में पर्याप्त सुधार होता है परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता (Fertility) लम्बे समय तक कायम (Maintain) रहती है।
- वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के तापमान, नमी, स्वास्थ्य तथा पी.एच नियंत्रित रहते हैं जिससे मृदा में ताप संचरण व माइक्रोक्लाइमेट की एकरूपता (Homogeneity) के लिए अनुकूलता पैदा होती है।
- वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता (Taste, Keeping Quality, Colour, Appearanceद्ध आदि मेंसुधार आता है। नतीजन उच्चगुणवत्ता वाले उत्पादों की भण्डारण क्षमता एवं ऊँचे मूल्य पर बिक्री होने से आय में भारी वृद्धि होती है।
- 13. मूल्य कम होने के कारण खेती में वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से फसलों की उत्पादन लागत में कमी आती है।
स्त्रोत : डॉ. डी कुमार एवं डॉ. धर्म सिंह, जगत सिंह द्वारा लिखित,इंडिया वॉटर पोर्टल,राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र,गाजियाबाद