जैविक खाद मूल रूप से एक व्यवस्थित कीट-पोषण प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी के भीतर विद्यमान अन्य जैविक पदार्थों का अवशोषण कर मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है। खाद बनाने संबंधी, यूएसडीए (USDA) के दिशानिर्देशों के अनुसार (21अक्तूबर 2002से प्रभावी) जैविक खाद में घास-फूस तथा/ अथवा पशुओं का अपशिष्ट होता है जिसमें मुख्यरूप से छोटे-छोटे केंचुओं का जैविक मिश्रण होता है। चूंकि यह पदार्थ केंचुओं के आंत से होकर गुजरता है, अतः यह जैविक पदार्थों का बायोआक्सीडेशन एवं स्टेबिलाइज़ेशन कर वायु में उपलब्ध माइक्रो आर्गनिज़्म और केंचुओं के संगम से गैर-थर्मोफिलिकल विधि से तैयार किया जाता है।
जैविक खाद विधि से बहुत कम समय में सामान्य तापक्रम के अंतर्गत अच्छी गुणवत्ता वाली खाद तैयार की जा सकती है जिसमें केंचुओं की समूचत प्रजातियों का उपयोग होता है। इसमें केंचुओं की आंतों में विद्यमान सेल्लुलाज तथा माइक्रो आर्गनिज़्म मिलकर निगले हुए जैविक पदार्थों का बड़ी तेजी से विघटन करते हैं।ये केंचुए अपनी पाचन क्रिया और जैव पदार्थों के संयुक्त मिश्रण के प्रभाव से एक अपशिष्ट पदार्थ बाहर छोड़ते हैं जिसे वर्मिकंपोस्टिंग कहा जाता है और यह खाद के गड्ढों में बिना केंचुओं के नहीं पाया जाता है।
केंचुआ बहुत आदिक मात्रा में खाना खानेवाले होते हैं, वे बायोडिग्रेडबल पदार्थ का अक्षण करते हैं और उसका कुछ भाग अपशिष्ट पदार्थ या वर्मिकास्टिंग्स के रूप में बाहर छोड़ते हैं। पोषक तत्वों से युक्त वर्मी-कास्टिंग पौधों के लिए एक पौष्टिक खाद है। यह कृमि खाद, पोषक तत्वों की आपूर्ति एवं पौधों में हार्मोन्स को बढ़ाने के अलावा, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाता है जिससे मिट्टी द्वारा पानी और पोषक तत्व धारण करने की क्षमता में वृद्धि होती है। जिन फल, फूल और सब्जियों तथा पौधों के अन्य उत्पादों में वर्मी- कम्पोस्ट का (केंचुआ) के उत्पादन में रुचि ले रहे हैं। इसकी लागत प्रति कि.ग्रा. 2 .0 रु. से भी कम होने के कारण, इसे 4 .0 से 4 .50 रु. प्रति कि.ग्रा. तक बेचने से भी काफी लाभप्रद है।
उथली सतहों में कृषि कचरे और गाय के गोबर तथा फसलों के अवशेष इत्यादि के साथ कॅचुओं का उपयोग कर खाद बनाने की प्रक्रिया धीरे धीरे फैलती जा रही है। केंचुओं को गर्मी से बचाने के लिए गड्ढों को उथला रखा जाता है, ताकि केंचुओं को बननेवाली ऊष्मा से बचाया जा सके अन्यथा वे मर सकते हैं। उनके द्वारा अपशिष्ट पदार्थ को तीव्रता से बाहर छोड़ने के लिए सामान्य तापक्रम लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रखा जाता है। अंततः इस प्रक्रिया ट्वारा उत्पन्न उत्पाद को वर्मीकम्पोस्ट कहा जाता है जो केंचुओं द्वारा खाये गए जैविक पदार्थों के अपशिष्ट से बनता है। इस प्रक्रिया में चारों तरफ से खुला एक शेड के अंदर ईंटों से बना 0 .9 से 1 .5 मीटर तक चौड़ा तथा 0 .25 से 0 .3 तक ऊंची एक क्यारी बनाई जाती है। वाणिज्यिक उत्पादन के लिए, यह हौदा (Bed) समानरूप से 15 मीटर तक लंबा, 1 .5 मीटर तक चौड़ा तथा 0.6 मीटर तक ऊंची बनाई जा सकती है। क्यारी की लंबाई सुविधानुसार बनायी जा सकती है, परंतु उसकी चौड़ाई तथा ऊंचाई नहीं बढ़ाई जा सकती है क्योंकि चौड़ाई अधिक रखने से संचालन सुविधा प्रभावित होती है तथा ऊंचाई अधिक रखने से गमों के कारण तापक्रम बढ़ सकता है। 2 .2 गोबर तथा खेत के कचरों को परतों में लगाया जा सकता है जिससे कि 0 .6 मीटर से 0 .9 मीटर तक ऊंचा ढेर लग जाए। परतों के बीच प्रति घनमीटर कयारी आयतन में 350 केंचुओं को रखा जा सकता है जिसका वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। क्यारी पर पानी का छिड़काव कर 40-50% तक नमी और 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम रखा जाता है। 2 .3 जब उत्पादन का लक्ष्य व्यावसायिक पैमाने पर हो तो आरंभ में उत्पाटन लागत के अतिरिक्त पूंजीगत वस्तुओं में निवेश की ज्यादा जरूरत होती है। प्रति टन उत्पादन क्षमता के लिए पूंजीगत लागत लगभग 5000/- से 6000/- तक आती है। पूंजीगत लागत अधिक इसलिए होती है क्योंकि बड़ी इकाइयों के स्थापन में वर्मी-क्यारियाँ तैयार करने तथा उनके शेल्टर एवं मशीनरी हेतु शेड बनाने पर खर्च ज्यादा होता है ; हालांकि यह व्यय केवल एक बार ही होता है। 2 .4 परिचालन लागत के तहत कच्चे एवं तैयार माल की ढुलाई प्रमुख गतिविधियां हैं। जब जैविक कचरे एवं गोबर का स्रोत उत्पादन स्थल से दूर हो तथा तैयार माल को कहीं दूर मार्केट तक पहुंचाने के लिए परिवहन की आवश्यकता हो, तो परिचालन लागत बढ़ भी सकती है। 2 .5 यद्यपि, अधिकांश मामलों में वर्मी-कम्पोस्ट का उत्पादन आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा बैंक साध्य है; फिर भी, इसका उत्पादन इकाई स्थापित करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
अपने विविध प्रकार के आहार एवं बिल बनाने की आदतों के कारण भारत की मिट्टी में रहने वाले केंचुओं की लगभग 350 विभिन्न प्रजातियों में से एसनेसिया फेटिडा, एड्रिलस यूजीनिया और पेरिनोक्स एक्स्कैवाटस नामक कुछ ऐसी प्रजातियाँ हैं जो जैविक कचरों को बड़ी तेजी से खाद में बदल देती हैं। इसके अतिरिक्त, केंचुओं के संयुक्त रूप (जैसे एपिजिक प्रजातियाँ जो अपना स्थायी बिल नहीं बनाती हैं और मिट्टी के सतह पर रहती हैं, एनेकिक प्रजातियाँ जो अस्थायी एवं सतह से लम्बवत बिल बनाती हैं, तथा एंडोजिक प्रजातियाँ जो हमेशा मिट्टी के गहरे सतह में रहती हैं) के उत्पादन पर भी विचार किया जा सकता है।
किसी भी अवशोषित हो सकनेवाले पदार्थ और वर्मिकंपोस्टिंग इकाई में केंचुओं के आहार के लिए वह जगह/इकाई उपयुक्त होती है जहां पर्याप्त मात्र में जैविक कचरों का उत्पादन होता है। एक केंचुआ लगभग 6 हफ्तों में प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है जो हर 7-10 दिनों में अंडा-कैप्सुल के रूप में एक अंडा देता है जिसमें 7 श्रूण रहते हैं। प्रत्येक कैप्सुल में से लगभग 3-7 केंचुए निकलते हैं। इस तरह, अनुकूलतम परिस्थितियों में केंचुओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती है। केंचुए लगभग 2 वर्ष तक जीते हैं। पूरी तरह से विकसित केंचुओं को अलग किया जा सकता है और उन्हें एक ओवन में सुखाकर कृमि-आहार के रूप में तैयार किया जा सकता है जिसमें 70% तक प्रोटीन का समृद्ध स्रोत पाया जाता है जिसे पशु-आहार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
कच्चे माल की उपलब्धता एवं उत्पादों की मार्केटिंग को ध्यान में रखते हुए बड़े पैमाने की वर्मिकम्पोज़ इकाइयों की स्थापना कृषि प्रधान ग्रामीण क्षेत्रों, शहरों, उपनगरीय क्षेत्रों और गांवों की बाहरी परिधि में सबसे उपयुक्त मानी जाती है। चूंकि फलों, सब्जियों, पौधों तथा सजावटी फसलों के विकास में खाद को अत्यंत उपयोगी माना जाता है; अतः वर्मिकम्पोज़ इकाइयों की स्थापना के लिए ऐसी जगहों को उपयुक्त माना जाता है जहां पर अधिक मात्र में फल-फूल तथा सब्जियाँ उगाई जाती हॉ। इसके अलावा, यदि पास में कोई व्यावसायिक डेयरी इकाई अथवा जहां पर अधिक संख्या में पशुओं की गौशाला हो वहां पर सस्ते कच्चे माल यानी गाय के गोबर की आसान उपलब्धता का अतिरिक्त लाभ होगा।
स्थानीय स्तर पर गोबर की उपलब्धता के आधार पर व्यावसायिक इकाइयों को विकसित किया जाना है। यदि कुछ बड़े डेयरी कार्य कर रहे हैं, तो ऐसी इकाई एक संबद्ध गतिविधि के रूप में हो सकती है। व्यावसायिक इकाइयों का सृजन आयातित गोबर के आधार पर नहीं होना चाहिए। इसमें प्राकृतिक-संसाधनों का उपयोग करते हुए स्थानीय विकास की परिकल्पना है।
छोटा हो या बड़ा, वर्मिकम्पोज़ यूनिट के लिए शेड बनाना जरूरी है जिससे कि वरमी क्यारियों की सुरक्षा रहती है। यह घास-फूस की हो सकती है जो बांस की लकड़ियों पर बंधा हो तथा लकड़ी अथवा लोहे/ सीमेंट/ पत्थर के खंभों पर टिकी हो सकती है। पूंजी निवेश लागत को कम रखने के लिए छप्पर हेतु स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री अथवा एचडीपीई शीट्स का उपयोग किया जा सकता है। शेड का निर्माण करते समय यह ध्यान रहे कि श्रमिकों को क्यारियों के इर्द-गिर्द आने-जाने अथवा खड़े होने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध हो जिससे कि वे तैयार माल को इकट्टा कर सकें।
अतिरिक्त जल की निकासी व्यवस्था के आधार पर क्यारी की ऊंचाई आमतौर पर 0 .3 मीटर से-0 .6 मीटर तक होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि पूरी क्यारी की ऊंचाई सब जगह से एक समान हो ताकि उसका आयतन छोटा न पड़े और उत्पादन की मात्रा कम न हो। कयारी की चौड़ाई 1 .5 मीटर से अधिक न हो जिससे कि उसके बीच में आसानी से पहुंचा जा सके।
एक केंचुआ उत्पादन इकाई स्थापित करने के लिए लगभग 0.5-0.6 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। सुविधा के लिए उसके मध्य में कम से कम 6-8 शेडों के लिए जगह निश्चित होगी और तैयार माल रखने के लिए उसमें अलग से जगह निर्धारित होगी। पानी की व्यवस्था के लिए एक बोरवेल एवं पम्पसेट तथा योजना के आर्थिक पहलू में निर्दिष्ट अन्य उपकरण भी होने चाहिए। 10-15 वर्षों के लिए भूमि पट्टे (लीज) पर ली जा सकती है।
जब बड़े पैमाने पर व्यावसायिक कार्यों हेतु इस गतिविधि को हाथ में लिया जाता है, तो व्यावसायिक-स्थल के निर्माण पर ज्यादा खर्च आता है जिसमें एक कार्यालय, कच्चे एवं तैयार माल को रखने के लिए उपयुक्त जगह की जरूरत होती है। प्रबन्धक एवं मजदूरों के लिए न्यूनतम जगह का प्रावधान होना चाहिए। इसके अंतर्गत बिल्डिंग की लागत के साथ बिल्डिंग एवं वर्मी-शेडों का विद्युतीकरण भी शामिल किया जा सकता है।
यह एक महत्वपूर्ण विषय है जिसमें पर्याप्त खर्चे की जरूरत होती है। यद्यपि 06 माह से लेकर 01 वर्ष की अवधि में केंचुओं का प्रजनन बड़ी तेजी से होता है, परंतु आधारभूत सुविधाओं में एक बड़ी राशि का निवेश कर इतनी अवधि तक इंतजार करना समझदारी नहीं है। अतः, आरंभ में क्यारी-वॉल्यूम का प्रति घन मीटर 01 कि.ग्रा. की दर से केंचुओं का उत्पादन शुरू किया जा सकता है जिससे कि अनुमानित उत्पादन को प्रभावित किए बिना 2 या 3 चक्रों में अपेक्षित संख्या में केंचुओं के उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त हो सके।
उत्पादन-स्थल पर आवश्यक मूलभूत सुविधाओं को विकसित करने की जरूरत है जैसे कि यह सड़क/ रस्तों इत्यादि से जुड़ा हो जिससे कि कच्चे एवं तैयार माल को वर्मी-शेडों से ठेला गाड़ी पर ढोने में आसानी हो। पूरे क्षेत्र को बाड़ से घेर देना चाहिए जिससे कि पशु तथा कोई अन्य अनावश्यक तत्व वहाँ तक न पहुँच सके। इसका अनुमान उत्पादन-स्थल की चौहद्दी एवं क्षेत्रफल तथा सड़कों एवं रास्तों के प्रकार पर निर्भर करता है। बाड़ तथा सड़कों/रास्तों इत्यादि के निर्माण पर से कम खर्च हो क्योंकि ये उत्पादन यूनिट के लिए आवश्यक तो है पर उनसे उत्पादन में वृद्धि नहीं होती है।
चूंकि वर्मी-क्यारियों को हमेशा 50% नमी में रखना पड़ता है, अतः इसके लिए जल स्रोत,लिफ्टिंग प्रणाली तथा वर्मी-क्यारियों तक पानी पहुंचाने एवं छिड़काव की व्यवस्था करने की आवश्यकता पड़ती है पानी की बचत को ध्यान में रखते हुए ड़िप्पर्स से 24 घंटे पानी देना आसान रहेगा। आरंभ में इस प्रणाली में कुछ निवेश की जरूरत पड़ती है, परंतु बाद में तुलनात्मक रूप से इसके संचालन लागत में कमी आती है और यह सस्ता पड़ता है। इसकी लागत ईकाई की क्षमता एवं जल प्रणाली के प्रकार पर निर्भर करती है।
कच्चे माल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने (श्रेडिंग) तथा उसे वर्मी-शेड्स तक ले जाने, लदाई एवं उतराई करने, खाद का संग्रहण, क्यारियों की वेंटिलेशन, पैकिंग से पहले खाद को निकालने एवं उसे हवा में सुखाने, उनकी स्वचालित पैकिंग तथा सिलाई इत्यादि के लिए कृषि मशीनरी एवं अन्य उपकरणों की आवश्यकता होती है जिससे कि उत्पादन इकाई को सुचारु रूप से चलाया जा सके।
किसी भी जैविक खाद यूनिट के लिए परिवहन व्यवस्था जरूरी है। यदि कच्चे माल की आपूर्ति का स्रोत उत्पादन इकाई से कहीं दूर स्थित है, तो परोक्ष परिवहन की व्यवस्था हेतु निवेश करना प्रमुख हो जाता है। प्रतिवर्ष लगभग 1000 टन की क्षमता के एक बड़े आकार की इकाई के लिए 3 टन क्षमता वाले एक मिनी ट्रक की आवश्यकता हो सकती है। छोटी इकाइयां जिसके आस-पास कच्चे माल की उपलब्धता रहती है वहाँ परिवहन पर व्यय करना कोई समझदारी नहीं होगी। भंडारण स्थल और वर्मी कम्पोस्ट शेडों के बीच कच्चे एवं तैयार माल की दुलाई के लिए ठेला-गाड़ियों को परियोजना लागत में शामिल किया जा सकता है।
भंडारण रैक तथा अन्य कार्यालय उपकरणों सहित एक कार्यालय- सह - स्टोर भी बनाया जा सकता है जिससे कार्य संचालन की दक्षता में वृद्धि होगी।
ऐसा माना जाता है कि पहले वर्ष में 2-3 उत्पादन चक्र होगा और तत्पश्चात प्रत्येक चक्र लगभग 65-70 दिनों की अवधि के साथ कुल 5-6 उत्पादन चक्र होगा। इसके अतिरिक्त, कुछ सीमाओं तथा परिचालन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, पहले वर्ष में क्षमता उपयोग 50% और उसके बाद से 90% तक माना जाता है। प्रति मीट्रिक टन रु.4500 /- की दर से जैविक खाद की बिक्री से प्राप्त आय तथा प्रति किलो 200/- की दर से केंचुए की बिक्री से प्राप्त आय लाभ के अंतर्गत शामिल है। दूसरे वर्ष से वार्षिक शुद्ध आय लगभग 6,48,000 होगा।
वर्मी-कंपोस्टिंग का उत्पादन सालाना 10 लाख मेट्रिक टन (टीपीए) से शुरू कर 1000 (टीपीए) और उससे ऊपर किसी भी पैमाने पर शुरू किया जा सकता है। चूंकि इसका उत्पादन वर्मीक्यारियाँ हेतु उपलब्ध जगह के आनुपातिक आधार पर होता है, अतः आरंभ में कम क्षमता से शुरू करना लाभकारी होगा और बाद में उत्पादन अनुभव में बढ़ोतरी एवं उत्पादों हेतु सुनिश्चित मार्केट विकसित हो जाने पर इसकी इकाई क्षमता में विस्तार किया जा सकता है। छोटी-छोटी कुल 24 क्यारियाँ (प्रत्येक क्यारी का क्षेत्रफल 15मी लंबा, 1।5 मी चौड़ा तथा 0।6मी ऊंचा ) में विस्तृत 324 घन मी की एक क्यारी से साल में प्रत्येक 65-70 दिनों की 6 चक्रों/फसलों से 200 टीपीए वर्मी खाद का उत्पादन अनुमानित है। इन सभी 24 क्यारियों को अलग-अलग 2-4 खुले शेडों में बनाया जा सकता है। केंचुओं के प्रमुख-स्टॉक, मशीनरी एवं उपकरणों की लागत, परिचालन/उत्पादन लागत सहित पूंजीकृत लागतों का विवरण दर्शाया गया है। इकाई की लागत और लाभ दर्शाया गया है। इसमें निवेश लागत रु.13,50,000/-, परिचालन लागत रु 3,42,000/- देखा जा सकता है। इसके अंतर्गत दो चक्रों की परिचालन लागत की राशि रु.1,24,800/- को पूंजीकृत किया गया है।
इस मॉडल में बैंक ऋण 75% माना गया है जो रु.10.125 लाख बनता है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर निर्धारित ब्याज सीमा के अंतर्गत बैंक अपना ब्याज दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं। वित्तीय विश्लेषण एवं परियोजना की बैंक साध्यता को ध्यान में रखते हुए ब्याज दर 13 से 15% तक हो सकती है, परंतु अंततः उधार दर 13% मान ली गयी है।
इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को समय समय दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं।
वित्तीय विश्लेषण अनुबंध IV में दर्शाया गया है। यह संकेत देता है कि मॉडल व्यवहार्य है। प्रमुख वित्तीय संकेतक नीचे दिए गए हैं :
अस्वीकृति
इस मॉडल परियोजना में अभिव्यक्त किए गए विचार सलाह रूप में हैं। यदि कोई भी व्यक्ति इस रिपोर्ट को किसी उद्देश्य के लिए उपयोग करता है तो उसके प्रति नाबार्ड की कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं होगी। परियोजना की वास्तविक लागत एवं लाभ अलग-अलग परियोजना के आधार पर होगा जिसमें उक्त परियोजना की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
जैविक खाद (200 टीपीए)
अनुबंध- I
पूंजी लागत
क्र.सं |
मद विवरण |
राशि |
|
प्रथम वर्ष |
दूसरे वर्ष |
||
क. |
भूमि एवं भवन |
|
|
1 |
भूमि (पट्टे पर) |
7500 |
|
2 |
जैविक खाद शेडों हेतु भूमि का समतलीकरण व मिट्टी भराई |
250000 |
|
3 |
घेराबंटी करना एवं गेट लगाना |
|
|
4 |
निम्नलिखित आवश्यकता की पूर्ति के लिए खुला शेड जिसमें ईंटों की कतार लगाकर क्यारी बनाई गयी हो तथा आर सी सी प्लेटफॉर्म/ एम एस पाइप के खंभे तथा घास-फूस से बना छप्पर/एच डी पी ई /स्थानीय रूप से उपलब्ध छत(1000/वर्ग मी।) |
|
|
क |
जैविक खाट कयारियाँ (15m x 1।5m x 24 = 540 वर्ग मी) |
560000 |
|
ख |
तैयार उत्पादों हेतु 30 वर्ग मी. |
30000 |
|
5 |
गोदाम/स्टोर एवं ऑफिस |
250000 |
|
|
उप-योग |
872500 |
|
ख. |
उपकरण एवं मशीनरी |
||
1 |
आवश्यकतानुसार विविध प्रकार के फावड़े, क्रो-बार्स, लोहे की टोकरी, गोबर निकालने का फावड़ा, बाल्टियाँ, बांस की टोकरियाँ, कन्नी इत्यादि |
5000 |
|
2 |
प्लंबिंग एवं फिटिंग टूल्स |
1500 |
|
3 |
विद्युत चालित श्रेडर |
25000 |
|
4 |
तीन तारों की जालीवाला मोटर सहित विद्युत चालित छलनी (आकार 0.6मी x 0.9मी ) |
45000 |
|
5 |
भार मापी (क्षमता 100कि.ग्रा.) |
2500 |
|
6 |
बैग सील करनेवाली मशीन |
5000 |
|
7 |
तराजू (प्लेटफॉर्म टाइप) |
6000 |
|
8 |
प्लास्टिक की 04 कल्चर ट्रे (35 से.मी.x 45से.मी.) |
1600 |
|
9 |
व्हील बरोज- |
12000 |
|
उप-योग |
103600 |
||
ग |
पानी का साधन- बोरवेल हैंडपम्प, पाइप, ड्रिप्पर के साथ |
75000 |
|
1 |
विद्युत स्थापन |
10000 |
|
2 |
फनींचर एवं फिक्सचर |
1500 |
|
3 |
केंचुए (@ 1 kg प्रति घन मी। तथा 300/किग्रा, उपयोग किया गया कुल क्यारी वॉल्यूम = 324 घन मी।
|
97200 |
|
|
कुल पंजी लागत |
1183300 |
|
वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 TPA)
( एक वर्ष में 65-75 दिनों के 7 चक्रों के लिए कुल संचालन लागत )
बेड वॉल्यूम : 324 घन मी।
वसूली : 30 % संचालन लागत
क्र. सं. |
मद विवरण |
राशि |
|
प्रथम वर्षं |
दूसरे वर्ष |
||
1. |
कृषि कचरा (लागत, संग्रहण एवं वाहन) 51840 103680 @ 320कि। ग्रा। प्रति घन मी। तथा 200/МТ (15 x 1.5 x 0.6 x 24 x 5 х 320 x 200 ) 1000 [पहले वर्ष 50% पर ] |
51840 |
103680 |
2. |
गोबर (लागत, संग्रहण तथा वाहन ) 16200 32400 @ 80 कि। ग्रा। प्रति घन मी। तथा 250/МТ (15 x 1।5 x 0।6 x 24 x 5 х 80 x 250 ) 1000 [पहले वर्ष 50% पर ] |
16200 |
32400 |
3. |
दो कुशल स्थायी मजदूरों का वेतन मजदूरी 12000 12000 @ 6000/- प्रति माह |
12000 |
12000 |
4. |
कृषि कचरे से वर्मी बेड बनाने, गोबर तथा 25000 50000 दैनिक आधार पर मजदूरी (थैलों की कीमत सहित) 250 mds @ 200/md) [पहले वर्ष में 50% पर ] |
25000 |
50000 |
5. |
पम्प, मशीनरी एवं रोशनी इत्यादि के लिए 12000 24000 विद्युत प्रभार [पहले वर्ष में 50% पर ] |
12000 |
24000 |
6. |
मरम्मत एवं रख-रखाव[पहले वर्ष में 50% पर ] |
30000 |
60000 |
7. |
थैलों की कीमत तथा मार्केटिंग लागत पहले वर्ष में 50% पर ] |
15000 |
30000 |
|
उप-योग |
156040 |
312080 |
8. |
लीज रेंट, विविध व्यय इत्यादि |
30000 |
30000 |
|
कुल संचालन लागत |
186040 |
342080 |
वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 टीपीए)
वित्तीय विश्लेषण
क्र.सं |
लागत |
राशि |
|
प्रथम वर्ष |
दूसरे वर्ष |
||
1. |
कुल पूंजी लागत |
1183300 |
|
2. |
कुल संचालन लागत |
186040 |
342080 |
3. |
सम्पूर्ण लागत |
1369340 |
342080 |
4. |
लाभ |
|
|
4क. |
वर्मी-कम्पोस्ट
|
405000 |
810000 |
4ख |
केंचुओं की बिक्री |
90000 |
180000 |
4ग |
कुल लाभ |
495000 |
990000 |
5. |
शुद्ध लाभ |
(874340) |
647920 |
6 |
डिस्काउंटिंग रेट-15 % |
|
|
7 |
पी वी सी—रु.2893538 |
|
|
8 |
पी वी बी – रु.3655654 |
|
|
9 |
एन पी बी- रु.76211610 |
|
|
10 |
बी सी आर- रु. १.२२६ |
|
|
11 |
आई आर आर- 34 % |
|
|
वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 टीपीए)
चुकौती अनुसूची
कुल वित्तीय खर्च : 1338132 (माना कि 13.50 लाख )
(पहले वर्ष के लिए पूंजी लागत+दो चक्रों का संचालन लागत + लीज रेंट)
बैंक ऋण : 1012500 337500
ब्याज दर : 13 %
वर्ष |
बकाया ऋण |
शुद्ध आय |
मूलधन |
ब्याज |
कुल निर्गम |
शुद्ध सरप्लस |
1 |
1012500 |
456584 |
75000 |
131625 |
206625 |
249959 |
2 |
937500 |
647920 |
160000 |
121875 |
281875 |
366045 |
3 |
777500 |
647920 |
180000 |
101075 |
281075 |
366845 |
4 |
597500 |
647920 |
200000 |
77675 |
277675 |
370245 |
5 |
397500 |
647920 |
220000 |
51675 |
271675 |
376245 |
6 |
177500 |
647920 |
177500 |
23075 |
200575 |
447345 |
पहले वर्ष का शुद्ध आय = पहले वर्ष का कुल आय - एक चक्र का संचालन लागत + बीमा एवं लीज [क्योंकि दो संचालन चक्र एवं लीज रेंट को पूंजीकृत किया गया है। ]
स्त्रोत : राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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