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बकरी पालन प्रबन्धन

परिचय

जनसंख्या की अत्याधिकता के कारण आज प्रति व्यक्ति किसान की खेती योग्य भूमि काफी कम हो चुकी है। ऐसी स्थिति में पशुपालन किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का अच्छा एवं उत्तम साधन हो सकता है। आज किसान या गरीब व्यक्ति गाय या भैंस खरीदने में असमर्थ है अतः गरीब व्यक्ति किसान मजदूर बकरी को सस्ते दामों में खरीद कर, कम खर्च में पालन पोषण का अपनी  जीविका सुचारू रूप से चला सकते हैं। हमारे देश में 15-20% ग्रामीण जनता बकरी पालन पर निर्भर  है एवं इस प्रकार बकरी पालन देश की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं। बकरी की दूध के कण छोटे होते हैं जल्दी पच जाते हैं। बकरी के दूध में खनिज तत्व गाय के दूध से ज्यादा होते हैं। यदि साफ एवं स्वस्थ थन से एवं बकरी को नर बकरा से अलग करके निकाला जाए तो दूध में गंध भी नहीं आती है। इसके उपयोगिता के कारण ही बकरी को गरीबों की गाय भी कहते हैं।

बकरी पालन के लाभ

  • बहुउद्देशीय-मांस, दूध, चमडा, खाद एवं ऊन।
  • पर्वतीय इलाके के लिए अच्छा।
  • पर्वतीय इलाके में माल ढोने के लिए।
  • घर एवं प्रबन्धन में आसानी।
  • बहुत आसानी से मनुष्य के घर में रह सकते हैं।
  • सीमान्त एवं छोटे किसान आसानी से पाल सकते हैं।
  • बकरी छोटे, पौधों के पत्ती, झाड़ी, रसोईघर के बेकार पदार्थ के उपयोग कर सकते हैं।
  • किसी भी व्यवसाय (मिश्रित खेती) के साथ इसे शुरू किया जा सकता है।
  • पालने में कम खर्च।
  • किसी भी भौगिलिक स्थिति में अनुकूलित-गर्म, ठण्ड, शोतोष्ण मौसम।
  • समतल भूमि, पहाड़ी भूमि, रेगिस्तानी एवं ऊँची भूमि के लिए उपयुक्त।
  • दूसरे जानवरों के अपेक्षा  गर्म जलवायु के लिए अधिक उपयुक्त।
  • दूसरे जानवरों के अपेक्षा रोग न कम लगना।
  • रेशे दार एवं कम गुणवत्ता वाले भोजन को आसानी से पचाना।
  • प्रति इकाई लागत पर अधिक उत्पाद छोटे आकार एवं कम आयु में खाने योग्य हो जाना।
  • मांस में वसा की कमी समुदाय एवं समाज के लिए प्रतिबंधित नहीं।
  • मांस में वासा की कमी के कारण अधिक पौष्टिक।
  • मांग की अधिकता

बकरी के दूध की विशेषता

  • गाय के दूध की अपेक्षा वसा एवं प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाना एवं इसके छोटे आकार होने के कारण मनुष्यों विशेषकर बच्चों में पाच्य।
  • दूसरे के दूध के अपेक्षा एलर्जी कम होना।
  • औषिधिय गुण युक्त-अस्थमा, खांसी, डायबिटीज में लाभकारी।
  • बफर गुण के करण पेप्टिक अल्सर, लीवर की खरीबी, जोंडिस, पित रस की गड़बड़ी एवं अन्य दूसरे दिक्कतों के लाभकारी।
  • फास्फोरस की अधीता के कारण शाकाहारी मनुष्य के लिए लाभकारी।

बकरियों की आहार व्यवस्था

बकरी किसी भी अन्य दूसरे जानवर (गाय) की अपेक्षा प्रति किलो शरीर भार पर कम दाना खाकर अधिक दूध देती है। पोषक पदार्थ को दूध में बदलने की दर 45.71% होती है, जबकि गाय में 38% होती है। बकरी, भेड़ की अपेक्षा 4.04%, भैंस की अपेक्षा 7.09 और गाय की अपेक्षा 8.60% अधिक रेशेदार फसल को उपयोग कर सकती है। गाय की अपेक्षा बकरी बेकार पदार्थ को आसानी से खा लेती हैं।

बकरी का राशन वहां पाए जाने वाले लोकल खाद्य पदार्थ, दाम, पाचकता पर निर्भर करता है। साफ एवं स्वच्छ पानी पर्याप्त मात्रा में सुबह शाम पीने को दें। गन्ध पानी पीने न दे। पानी के बर्तन को महीनें में दो बार धोएं। दूध देने वाली बकरी को ज्यादा मात्रा में एवं कम से कम दिन में दो बार पीने का पानी दें।

खाने की आदत: बकरी अपने लचीले उपर ओठों तथा घुमावदार जीभ के अकारण बहुत छोटे घास को भी खा सकती है। खाने के बर्तन को सप्ताह में एक बार जरुर धो लें। बकरी दूसरे पशु की अपेक्षा बहुत तेजी से खाती है। बकरी गंदा, भींगा एवं बचा हुए खाना खा लेती है। बकरी को भोजन या पत्ती बंडल बनाकर लटका कर दें। खाना को थोड़ा-थोड़ा कर खाने को दें।

बकरी एक जुगाली करने वाल पशु हैं परन्तु अन्य पशुओं की तुलना में इसकी खान-पान भिन्न हैं। बकरी घूम-घूमकर झाड़ियाँ एंव छोटे वृक्षों  की पत्तियों को पिछलों पैरों पर खड़े होकर आनंदपूर्वक खाती हैं। बकरी अपने शरीर के 2-8% तक सूखा पदार्थ खा सकती हैं। अपने ऊपरी होठों की मदद से बकरियों उन छोटी पत्तियों को भी खा सकती है जिसे दूसरे पशु नहीं खा सकते, परन्तु यह उन चारों को नहीं खाती तो दूसरे जानवर द्वारा छोड़ा या गंदा किया हो। बकरी चारागाह में 70% समय पट्टे एवं झाड़ियों को खाने में व्यतीत करती है। बकरियों को सूखा पदार्थ 50% से अधिक दाने के रूप में नहीं देना चाहिए।

मांस उत्पादन के लिए बकरियों को शारीरक वजन का 3: व दुग्ध उत्पादन हेतु शारीरिक वजन का 5-7% सूखे चारे के रूप में देना चाहिए। इसके बाद बाकी चारा घास के  रूप में देना चाहिए। अच्छी किस्म के चारे के लिए बरसीम या रिजका दुधारू पशु को देना चाहिए।बकरी के चारे को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।

1. मोटा चारा

2. दाना

पौधों की पत्तियों व ठंडल, मोटे चारे के रूप में कच्चे रेशे से भरपूर होते हैं, जबकि दाने और अन्य पदार्थ में बहुत कम मात्रा में कच्चा रेशा पाया जाता है।

मोटा चारा

बकरियां प्रायः फली फसलों को चारे के रूप में अधिक पसंद करती है जबकि ज्वार, मक्का एवं भूसे को कम पसंद करती है जो दूध देने वाले पशुओं को दिया जाता है। सभी प्रकार के चारों को बकरियों को देने से पहले बंडल बनाकर लटका कर रखना चाहिए जिससे उन्हें गन्दा होने से बचाया जा सके। प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा चारा क 3 से4 बार देना चाहिए। बकरियों को गीला घास देने से बचना चाहिए एवं जहाँ तक संभव हो उन्हें धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाए। पुराने हरे चारे न दिए जाए क्योंकि उनमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते हैं।

धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाएं पुराने हरे चारे न दिय जाए क्योंकि उमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते है।

रिजका - या अक्तूबर में बोया जाता है एवं दिसंबर से मई तक कटाई के लिए तैयार   रहता है।  यह वयस्क बकरी को प्रतिदिन 4 से 6 किलो रिजका की आवश्यकता होती है।

बरसीम - बरसीम में 3-5% तक पाचक प्रोटीन पाया जाता है। यह अक्टूबर में बोया जाता है एवं दिसम्बर में तैयार हो जाता है। एक वयस्क बकरी को 4-6 किलो बरसीम की आवश्यकता होती है।

अरहर - अरहर की फलियाँ के साथ लगभग 5 किलो सूखी पतियाँ प्रतिदिन दुधारू बकरी के लिए काफी है।

नेपियर व गिनी घास - यह दोनों बहुवर्षीय घास है एवं 5 किलो प्रतिदिन दिया जा सकता है।

जई – यह वयस्क दुधारू बकरी के लिए 4-6 किलो जई की आवश्यकता होती है।

पेड़ों की पत्तियां - बकरियों को पेड़ों की पत्तियां बहुत अधिक पसंद है। इन्हें चारे में 2 से 3 किलो पेड़ों के पत्तियां प्रतिदिन देनी चाहिए। शहतूत, नीम, बेर, झरबेरी, मकोई, आम, जामुन, इमली, पीपल, गुलर, कटहल, बबूल, महुआ आदि पेड़ों की पत्तियां बकरियों बहुत पसंद करती है। बंधागोभी एवं फूलगोभी की पत्तियों को भी बकरी बहुत पसंद एवं चाव से खाती है।

विषम परिस्थितियों में उगाये जाने वाले वृक्ष -उसर भूमि - इस दशा में ये वृक्ष पनपते हैं जिनकी अम्लरोधी क्षमता अधिक होती है। इन वृक्षों से भी बकरियों को उचित मात्रा में पत्ते व् कोमल टहनियां चारे के रूप में मिल सकती है। इन वृक्षों में बबूल, सीरस, नीम शीशम, करंज व अर्जुन आदि प्रमुख है।

जल भराव वाले क्षेत्र - देश के कुछ हिस्सों में भूमि की सतह नीचे रहने के कारण, जलभराव की प्रमुख समस्या है। इन क्षेत्रों में केवल चारा वृक्ष ही पनप सकते हैं जिनकों बकरियां आहार के रूप में उपयोग कर सकती हैं। इनमें शीशम, करंज व ज्रुल प्रमुख है।

कटाव वाली बीहड़ जमीन - कटाव वाली बीहड़ जमीन में फसल उत्पादन प्रमुख हिं अतः इनमें चारा उत्पादन करने वाली वृक्षों को लगाकर बकरी पालन में प्रोत्साहित किया जा सकता है। इन वृक्षों में बेर, बबूल, नीम, झरबेरी, सीरस, अमलतास शहतूत, झरबेरी आदि प्रमुख है।

विभिन्न वर्ग की बकरियों की आहार आवश्यकता

1. कम उम्र की बकरी - इनमें 1 से 2 महीना की आयु वाली बकरियां आती है। वृद्धिकाल होने के कारण इस वर्ग की बकरियों के लिए दाना मिश्रण की विभिन्न मात्राओं की आवश्यकता होती है।

आयु वर्ग

बड़ी नस्ल ग्राम/दिन/बकरी

छोटी नस्ल ग्राम.दिन.बकरी

0-1 माह

स्वेच्छानुसार

स्वेच्छानुसार

2-3 माह

200

250

3-6 माह

250

300

6-9 माह

300

400

9-12 माह

350

400

सूखी बकरी व वयस्क बकरे

200

250

ग्याभिन बकरियां

6000

700

प्रजनक बकरे

600

700

दुधारू बकरियां

200-400/किलो दूध

200-450/किलो दूध

 

जवान बकरी के लिए दाना

शरीर बहार (किलो)

दूध

सान्ध्र दाना मिश्रण.दिन.(ग्राम)

हरा चारा (लुर्सन.बरसीम) किलो

 

सुबह (ml)

शाम (ml)

-

-

2.5

200

200

-

-

3.0

250

250

-

-

3.5

300

300

-

-

4.0

300

30

-

-

5.0

300

300

50

इच्छा के अनुसार

6.0

350

350

100

इच्छा के अनुसार

7.0

350

350

150

इच्छा के अनुसार

8.0

300

300

200

इच्छा के अनुसार

9.0

250

240

250

इच्छा के अनुसार

1.0

150

150

350

इच्छा के अनुसार

15.0

100

100

350

इच्छा के अनुसार

20.0

-

-

350

इच्छा के अनुसार

25.0

-

-

350

1.5

30.0

-

-

350

2.0

40.0

-

-

350

2.5

50.0

-

-

350

4.0

60.0

-

-

350

5.0

70.0

-

-

350

5.5

 

  • सान्ध्र दाना मिश्रण की मात्रा-चना (20%) मूंगफली की खल्ली (35%) गेंहूँ का चोकर (20%) खनिज मिश्रण (2.5%) एवं नमक (0.5%)

2. सूखी बकरियां व् वयस्क बकरे - सूखी बकरियां एवं प्रजनन हेतु उपयोग में न लाये वाले बकरों को दाने की लगभग सामान मात्रा दी जाती है। इसमें छोटी नस्लों को 200 ग्राम तथा बड़ी नस्लों को 250 ग्राम दाना मिश्रण प्रति पशु प्रति दिन राशन के रूप में देना चाहिए। इसमें बकरियों का स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता बनी रहती है।

3. दूध देने वाली बकरियाँ - इनका निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 ग्राम दाना प्रति किलो दूध के हिसाब से देना चाहिए। इसके साथ दलहनी एवं गैर दलहनी हरा चारा भी देना चाहिए।

4. ग्याभिन बकरियाँ - गर्भकाल के अंतिम डेढ़ माह में छोटे नस्ल की बकरियों को 400 ग्राम तथा बड़ी नस्ल के बकरियों को 500 ग्राम मिश्रण देना चाहिए। इसके साथ उन्हें निर्वाह राशन एवं चारा भी देना चाहिए जिससे गर्भाशय के बच्चे की बढ़ोत्तरी के साथ –साथ बकरी के स्वस्थ्य भी अच्छी तरह हो सकें एवं उनमें दूध देने की क्षमता बनी रहें।

5. प्रजनक बकरें - प्रजनन व्यवहार एवं शुक्राणुओं की संख्या को नियमित रखने हेतु प्रजनन काल के समय निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 एवं 500 ग्राम दाना क्रमशः छोटे एवं बड़े बकरे को प्रतिदिन देना चाहिए।

बढ़ोत्तरी करने वाले पशुओं के लिए

  • शरीर वृद्धि के लिए कैल्शियम, फास्फोरस, प्रोटीन, सम्पूर्ण पाचक तत्व एवं विटामिन युक्त राशन।
  • हड्डियों के वृद्धि  के लिए कैल्शियम, फास्फोरस एवं विटामिन डी की आवश्यकता\
  • पूर्ण वृद्धि के उपरान्त राशन में प्रोटीन की मात्रा कम एवं कार्बोहाईडेट्स की मात्रा अधिक हों।
  • वृद्धि करने वाले पशुओं के राशन में खाने वाला नमक (9%) अत्यंत आवश्यक हो।
  • मेमने के वृद्धि हेतु प्रोटीन युक्त माँ का दूध अवश्य पिलावें।

अधिक उत्पादकता हेतु निम्न बिंदु पर ध्यान देना

  • जन्म के समय
  • माँ से अलग करना
  • बढ़ते बच्चे का प्रबन्धन
  • प्रजनन से पहले
  • प्रजनन के समय
  • गर्भकाल के पहले भाग से
  • गर्भकाल के अंतिम भाग में
  • बच्चे देने के समय
  • दूध देने के समय

जन्म के समय

  • मुंह में लगे चिकनाई यूक्त शेल्श्मा को बकरी के साफ नहीं करने पर स्वयं साफ कपड़े पोछें
  • 10-15 मिनट के अंदर मेमने को उसके माँ का गाढ़ा दूध (कोलस्ट्रम पिलावें) इसमें बच्चा में ताकत के साथ रोग से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है।
  • नाभि-काटना- जन्म के बाद मेमने के शरीर से 2 इंच की दुरी नाभि को साफ ब्लेड से काटे।
  • अन्तः परजीवी दवा-1 सप्ताह की उम्र में पिपराजिन सल्फेट/एडिपेट 5 मिली मेमने को खाली पेट में पिलावें।
  • 1 से 3 महीने के बीच नर मेमने (जिसको प्रजनन के लिए नहीं रखना है) को बरडिजो कास्ट्रेटर से बध्या (खस्सी कर दें जिससे कि उसका तेजी से बढ़ने के साथ मांस का गुणवत्ता भी बढ़े।
  • ठंड के महीने में मेमनों को बाहर से ऊष्मा (बल्ब/अंगीठी) प्रदान करने तथा ठण्ड हवा से बचाव करें।
  • सींग दागना (3-14 दिन)

माँ से  विलगाव

  • उम्र-लगभग 1.5 किलो शरीर बहार या 8-10 सप्ताह का उम्र
  • माँ से विलगाव से पहले या विलगाव के समय कोक्सिडिया का उपचार
  • सुनिश्चित होना कि मेमना है या कीप राशन खाना शुरू कर दिया हो।
  • सूखी बकरी- दाना कम देना एवं उसे चारागाह में चरने देना शुरू का देना चाहिए।

बढ़ते बच्चे का प्रबन्धन

  • चूँकि रुमेन का विकास होना शूरू हो जाता है, तथा इस समय खाने में 4% DM दें।
  • खाने में प्रोटीन, विटामिन एवं कैल्शियम के साथ पूरा व्यायाम कराएँ।
  • नाख़ून समय-समय पर काटे।
  • खून की कमी की जाँच हेतु हमेशा आँख की म्यूक्स मेम्ब्रेन को हमेशा देखते रहे।
  • वजन बढ़ाने के लिए खाना भरपूर दें।

प्रजनन से पहले

  • झारखंड के परिवेश में हमारे अपने देशी (ब्लैक बंगाल) बकरी को उन्नत नस्ल के बकरे (जमुनापारी/बीटल) से संभोग कराएँ जिससे कि देशी बकरे का वजन ज्यादा बढ़ सके।
  • उम्र कम से कम 8-10 महीना का हो।
  • बकरी को साफ़ कराएं। प्रजनन कराने से 2-3 सप्ताह पहले बकरी को अच्छे चारागाह में चराने के साथ साथ दाना भी खाने को दें। इससे ओवोलेशन ज्यादा होने से मेमने की संख्या ज्यादा होगी।
  • बकरी को नर बकरे से दूर रखें एवं अचानक इसे बकरे के साथ मिलन कराए।

गर्भकाल के पहले तथा अंतिम भाग में

  • गर्भकाल के पहले तथा अंतिम भाग में बकरी को विशेष सावधानी की आवश्यकता होती  है अन्यथा गर्भपात की संभावना बनी रहती है। इस समय बकरी को विशेष दाना तथा हरा चारा की आवश्यकता होती है।

शुरूआती दूध देने के समय

  • मादा बकरी को अपने शरीर भार के 5-7% भाग खाना की जरूरत होती है।
  • खाद्य पदार्थ में प्रोटीन एंव कैल्शियम की बहुलता
  • पर्याप्त मात्रा में रेशेदार खाना (60%)
  • मेमने को कृमिनाशक (पिपराजिन सल्फेट-10 मिली) दवा दें।

भेड़ एवं बकरी के लिए राशन

दो महीने से ऊपर की भेड़ के लिए राशन

खाद्य पदार्थ की मात्र (%)

विलगाव से पहले-3 महीना तक

बढ़ते मेमना

(3-6 किलो)

फिनिसर राशन

मकई का चुरा

65

27

25

मूंगफली का केक

10

35

20

गेंहूँ का चोकर

12

35

52

मछली का चुरा

10

 

 

नमक

1

1

1

खनिज लवण

2

2

2

संभावित शरीर वृदि दर (ग्राम)

110-125

100-120

100-120

 

खिलाने की दर

वजन(किलो)

सान्द्र दाना (ग्राम)

सूखा चारा

 

जब दलहनी फसल उपबल्ध

जब दलहनी फसल न उपबल्ध

 

12-15

50

300

इच्छा के अनुसार

15-25

100

400

इच्छा के अनुसार

25-35

150

600

इच्छा के अनुसार

 

दूध पिलाने वाली भेड़ के लिये राशन

पोषक तत्व

राशन-1

राशन 2

दाना मिश्रण

400 ग्राम

400 ग्राम

लुग्यम

700 ग्राम

1400 ग्राम

हरा चारा/साइलेज

1400 ग्राम

 


बकरियों की आवास व्यवस्था

पारम्परिक रूप से बकरियां प्रायः घरों में या उसके आसपास रखकर पाली जाती है जों कि स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के दृष्टि से उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें बकरियों से मनुष्यों में फैलने वाले (जोनोटिक) रोगों की संभावना बनी रहती है एवं साथ ही बकरियों को समुचित सुरक्षा एवं आराम नहीं मिल पाता है।

पशु

आवश्यक भूमि वर्ग मीटर/पशु

वयस्क बकरी

1.0

वयस्क बकरा

2.0

बकरी का बच्चा

0.4


आवास की स्थिति

जगह सूखी एवं ऊँची हो, जल निकास की उचित व्यवस्था हो एवं तेज हवा और अत्यधिक सर्दी या गर्मी का प्रकोप न हो। मनुष्य के आवास के नजदीक न हो।

विभिन्न प्रकार के आवास

1. खुला बाड़ा

2. अर्द्ध खुला बड़ा

3. भूमि से सम्युन्न्त एवं ढका हुआ बाड़ा

आवास गृह में निम्न साधन होने चाहिए

1. चारा एवं दाना खिलाने हेतु फीडर या नाद

2. मेंजर

3. पानी की चरही

4. पर्याप्त प्रकाश

5. भंडार घर

बाड़ा बनाने समय निम्न बातों का ध्यान दें

1.  फर्श- भूमि से 1-1.5 फीट ऊपर एवं प्रति फीट 1 इंच का ढलान हो।

2.  दीवारें – 1-15 मीटर तक सीमेंट एवं उसके ऊपर तार की जाली हो।

गर्म क्षेत्रों में बकरियों की आवास व्यवस्था

  • गर्म क्षेत्रों में द्वार पूर्व पश्चिम दिशा में ओर होर तथा छत ऊँची हो।
  • आवास का छत इस प्रकार होना चाहिए कि छत का एक भाग दूसरे को सूर्य की सीधी किरणों से बचाएं।
  • खुले बाडा, बंद बाडा की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए।
  • गर्म हवा से बचाने के लिए पूर्व पश्चिम की तरफ 1 मी. ऊँची दीवार होनी चाहिए।
  • छत की दीवारें बाहर से सफेद एवं अंदर से रंगीन होनी चाहिए।
  • अधिक गर्मी के समय दीवारों एवं छत पर पानी का छिड़काव् करें।
  • 10-12 के समूह में अलग-अलग चारा देना चाहिए।

बकरियों की प्रबंध व्यवस्था

बकरी में गर्मी के आने के लक्षण

  • विशेष तरह का आवाज निकालना एवं चारा खाना कम कर देना
  • योनी द्वार पर लालिमा एवं सुजन
  • योनी द्वार पारदर्शी लसलसा स्राव का निकलना
  • थोड़े-थोड़े समय पर पेशाब करना।
  • दूसरे पशुओं पर चढ़ना या उन्हें चढने देना।
  • बकरी समान्यतः 2 से 3 दिन तक गर्म रहती है एवं सफल प्रजनन हेतु गर्म होने के 12 घंटे के बाद संभोग करावें।

1. गर्भित बकरी की लक्षण

  • मदकाल का समाप्त हो जाना यानि बकरी का पुनः गर्मी में नहीं आना।
  • बकरी शांत हो जाती है एवं दूध उत्पादन भी कम जाता है।
  • तीन महीने में लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसके आकार में वृद्धि हो जाती है एवं उसके पेट से बच्चे को स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।

2. गर्भावस्था के समय देखरेख : गावों में बकरियां एक बार बच्चा देती हैं एवं इसका गर्भकाल लगभग 5 महीने का होता है। गर्भावस्था में बकरी का पोषण, आवास एवं बीमारियों बचाव एवं रोकथाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

  • गर्भकाल के समय कुपोषण से बचने के लिए ठीक ढंग से खिलाने चाहिए ताकि बच्चे स्वस्थ हो तथा मृत्यु कम हो।
  • इस समय चराई के आलावे 300-500 ग्राम/बकरी/दिन दाना मिश्रण देना चाहिए। इसके अलावे उन्हें दलहनी हरा चारा खनिज मिश्रण भी देना चाहिए। बच्चा देने के अनुमानित 1 सप्ताह पूर्व इसे चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए।

दैनिक कार्य-क्यों?

  • समय का सदुपयोग
  • मजदूर एवं स्रोत का सदुपयोग
  • अच्छी प्रबन्धन से उचित एवं पर्याप्त मात्रा में धन की प्राप्ति

सुबह 7 बजे

दाना पानी में देना

बीमार पशु का पहचान

सुबह 8 बजे

चराई

सुबह 8.30 बजे

पशुशाला की सफाई

पहले का बचा हुआ खाना को हटाना

सुबह 9 बजे से  11 बजे तक

बीमार पशु का पहचान

रिकार्ड जैसे कि वजन ज्ञात करना, बच्चे की स्थिति, टीकाकरण, चिकित्सा, सींग दागना, छांटना,बेचना इत्यादि

शाम 4 बजे

पशु को घर के अंदर लाना

 

दाना पानी चारागाह में देना

 

हरा कता चारा देना

 

सहूलियत के हिसाब से दिन में दो बार दूध दुहना चाहिए।

 

महीना के हिसाब कार्य

महीना

कार्य

जनवरी

स्टाक रजिस्टर सही करना, ठंड से बचाव, दाना कुछ अधिक मात्रा में देना , मेमना का बचाव , प्रजनन हेतु कुछ अलग से दाना देना, टीकाकरण-क्लोस्ट्रीडयम

फरवरी

मेमना पैदा करना, दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, बसंत ऋतु में प्रजनन के लिए अलग से खाना खिलाना, चेचक का टीका

मार्च

दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, मेमना को कीप राशन देना, काँ में निशान लगाना, भेड़ को धोना

अप्रैल

उन काटना चेचक का टीका, उन का नमूना लेना, विलगाव के समय मेमना का वजन लेना, बीमार एवं वृद्ध बकरी को झुडं से अलग करना, खुरहा का टीका

मई

मेमना का विलगाव, मेमना को अलग खाना देना, सुबह के समय के चराई,साफ एवं ठंडा पानी पिलान, कोमल पत्ती खिलना, गलघोटू एवं लगड़िया का टीका

जून

गर्भवती बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना, गर्भवती, घर का व्यवस्था, टेटनस का एवं इंटेरोटोक्सिमिया का टीका,  गलघोटू एवं लगड़िया का टीका

जुलाई

धोना ऊन कटाई, जहर से स्नान, गर्भवती बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना, शरद ऋतू में बच्चा लेने हेतु अधिक खिलाना

अगस्त

शरद ऋतु में बच्चा लेने अधिक खिलाना, मेमना पैदा करने वाली बकरी को अलग से राशन देना, अतः कृमिनाशक दवा देना।

सिंतबर

दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, मेमना को कीप राशन देना,  कान में निशान लगाना, भेड़ को धोना,

अक्टूबर

बीमार एवं वृद्ध बकरी को अझुण्ड से अलग करना, दूध देने वाली बकरी को अलग से राशन देना, खुरहा का टीका, इंटेरोटोक्सिमिया का टीका

नवंबर

ठण्ड का चराई, अन्तः कृमि नाशक दवा देना।

दिसंबर

ठण्ड से बचाव, दाना कुछ अधिक मात्रा में देना, मेमना का बचाव, अत्यधिक मेमनों को बेचना, दूध देने वाली बकरी को अधिक देखभाल एवं अधिक राशन देना।

रोगी एवं स्वस्थ पशु की पहचान

लक्षण

स्वस्थ बकरी

सामान्य प्रकृति

चौकन्ना

तापमान

102+5 फारनहाईट

व्यवहार

सामान्य, खाना पीना पूरा खाना

श्वास

10-12 बार/मिनट

पैखाना, पेशाब

सामान्य

आँख श्लेष्मा

समान्य लाल

नाड़ी

70-80 धड़कन

नोट: रोगी बकरी - ऊपर दिए गए लक्षणों में अगर बदलाव हो तो बकरी बीमार है।

बकरी का टीकाकरण तालिका

संभावित महीना

रोग

प्राथमिक टीकाकरण

नियमित टीकाकरण

मात्रा एवं विधि

जनवरी

काँटाजियस कैपराइन प्लूरो न्यूमोनिया

3 महीना

सलाना

0.2 मि.ली. चमड़े के सतह पर

फरवरी

एनोरोटोक्सिमिया

4 महीना एवं उसके बाद

सलाना

2.5 मि.ली. चमड़े में

फरवरी

पी.पी. आर.

3 महीना एवं उसके ऊपर

 

1 मि.ली. चमड़े में

जुलाई

गलाघोंटू

6 महीना एवं उसके ऊपर

सलाना

2 .ली. चमड़े में

मार्च/सितम्बर

खुरपका मुंहपका

4 महीना एवं उसके ऊपर

सलाना में दो बार मार्च-सितम्बर

2-3 .ली. चमड़े में

दिसम्बर

पॉक्स

3 महीना एवं उसके ऊपर

सलाना

0.5 .ली. चमड़े में

 

एंथ्रेक्स

6 महीना एवं उसके ऊपर

प्रभावित स्थान में सलाना

1 .ली. चमड़े में

 


स्त्रोत एवं सामग्रीदाता कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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