किसानों की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने हेतु सूकर पालन का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसके कई कारण है-
सूकरों के व्यवसाय में अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु यह सुनिश्चित करना अति आवश्यक है कि उनकी आवास व्यवस्था को वैज्ञानिक रूप से संयोजित किया जाए। आवास व्यवस्था का मूल उद्देश्य यह होना चाहिए कि सूकरों को-
सूकरों को उनके शारीरिक गठन, लिंग, आयु के आधार पर विभिन्न प्रकार के आवासों ए(बाड़ों) में रखा जाता है। आमतौर पर तीन प्रकार के बाड़े बनाए जाते हैं।
बाड़े बनाते समयइस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बाड़ों का आकार, सूकरों की संख्या व उम्र के अनुसार हो। सूकर घर (बाड़े) में ऐसी कोई इकाई, यंत्र या संरचना न हो जिससे कि सूकरों चोट लगे अथवा किसी प्रकार की क्षति हो सके। आवास इस प्राकर से नियोजित करना चाहिए कि अदंर का तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेट बना रहे।
खुले बाड़े में सूकर मुख्य रूप से विचरण कर सकते हैं। खुले बाड़ों को छायादार जगह पर निर्मित किया जाता है और वर्षा, गर्मी व ठंड के विपरीत मौसम में उन्हें स्वस्थ रखने की व्यवस्था करनी पड़ती है। सूकर चारागाहों में इस प्राकर चरते हैं कि उनसे पूरे चारागाहों को हानि न पहुंचे। पूरा दिन चारागाह में बिताने के बाद रात्रि विश्राम हेतु स्वयं ही पशुगृह में आ जाते हैं। खुले बाड़े कम ख़र्चीले होते हैं। खुले सूकर बाड़े में स्वच्छता आदि पर कम खर्च करना पड़ता है साथ ही सूकर को पर्याप्त व्यायाम, सूर्य का प्रकाश व स्वच्छ वायु भी उप्ब्ल्ध हो जाती है। किन्तु खुले सुकरों को संतुलित व नियंत्रित आहार नहीं मिला पाता तथा वातावरण भी प्रदूषित होने की संभावना बढ़ जाती है जिसके कारण प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलें बढ़ जाती है। इस प्रकार के बाड़े ज्यादा स्थान घेरते हैं अतः उत्तम नस्ल के सूकरों के लिए यह उपयुक्त नहीं है।
बंद बाड़ों का प्रयोजन सूकरों को अति नियंत्रित, कुशल प्रबंधन तथा सुरक्षित वातावरण में रखना है। बंद बाड़ों में अंदर ही उनके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था की जाती है। सूकर की जाति व लिंग के आधार पर बाड़ों का आकार निश्चित किया जाता है। आजकल व्यवसायिक स्तर पर इस प्राकर के आवासों पर अधिक बल दिया जा रहा है।
प्रायः इस प्रकार के बाड़ों को सूकर पालन हेतु प्राथमिकता दी जाती है। इसमें सूकरों को कुछ समय तक बंद बाड़ों में तथा कुछ समय खुले बाड़ों में रखा जाता है। बाड़ों के खुले भाग में कई सूकरों के लिए अथवा एक-एक सूकर के लिए व्यवस्था की जाती है।
सूकर गृह के विभिन्न भाग
आधुनिक सूकर पालन हेतु गृह में प्रत्येक आयु तथा सभी प्राकर के सूकर हेतु अलग-अलग प्रकार के सुकर गृह की आवश्यकता होती है। प्रत्येक सूकर आवास को स्टाई अथवा गृह या बाड़ा कहते हैं। ये बाड़े पुनः कई छोटे-छोटे खंडों में विभाजित किए जाते हैं जिन्हें पैन या उप बाड़ा कहते हैं। अधिकांश सूकर पालक निम्न प्राकर के बाड़े तथा उप-बाड़े सूकर गृह बनाते है:-
इनमें क्रमशः 24, 40, 40, 20 व यथोचित संख्या में उप-बाड़े बनाए जाते है-
भारतीय मापदण्डों के अनुसार हर उप-बाड़े मे एक ढके क्षेटीआर का माप तालिक में वर्णित है:
सूकर (प्रकार ) |
ढका क्षेत्र (मी.2) |
खुला क्षेत्र (मी.2) |
नर सूकर |
6.25-7.25 |
|
मादा सूकर |
1.8-2.7 |
8.0-12.0 |
बच्चा देने वाली सूकरी |
7.5-9.0 |
|
सूकर आवास के प्रत्येक भाग को सावधानी पूर्वक उनकी आवश्यकताओं के अनुसार निर्माण कराया जाना चाहिए।
सूकर आवास का फर्श मजबूत होना चाहिए क्योंकि कमजोर फर्श को सूकर अपने थूथन द्वारा तोड़कर गड्ढा बना देते हैं। अतः कंकरीट सीमेंट का बना होना चाहिए। फर्श खुरदरा भी होना चाहिए क्योंकि चिकने फर्श पर सुकर के गिरने या उसे चोट लगने का खतरा सदैव बना रहता है। सूकर गृह का फर्श पत्थर का बना हो तो भी अच्छा रहता है।
सूकर की लार से सामान्य बनावट वाले भोजन व जलकुंड गल आकर क्षति ग्रस्त हो जाते हैं। अतः इनको भी मजबूत कंकरीट सीमेंट से ही निर्मित करना चाहिए। इन कुंडों के कोने गोलाई लिए हुए निर्मित कराना चाहिए, जिससे सफाई में आसानी रहे, अन्यथा गंदगी के बने रहने की संभावना रहती है।
सूकर गृह की दीवार भी मजबूत होनी चाहिए। क्योंकि सूकर एक शक्तिशाली पशु है। ईंट या पत्थर से बनी दीवार मजबूती प्रदान करती है।दीवारों को 1-1.5 मीटर ऊंचाई तक चिकने सीमेंट से निर्मित करना चाहिए जिससे उन्हें साफ करने में आसानी हो। 1 से 1.5 मीटर से ऊपर की दीवार लोहे के पाईपों कर निर्मित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त दीवारों के कोने गोलाई लिए होने चाहिए। इस प्रकार गोलाई लिए हुए कोने वाली दीवार को साफ करना आसान होता है।
सूकर गृह की छत ऐसी निर्मित होनी चाहिए कि वह धूप, वर्षा तथा खराब मौसम से बचाव कर सकने में सक्षम हो। फर्श से छत की ऊंचाई लगभग 3 मीटर होना चाहिए। जिससे मौसम बदलने का प्रभाव सूकर गृह के अंदर कम हो। प्रायः छत एसबैस्ट्स से बनाई जाती है, सीमेंट-कंकरीट से भी बना सकते हैं।
विभिन्न सूकर आवासों के मध्य का मार्ग इस प्रकार निर्मित होना चाहिए कि सूकर की देख रेख हेतु तथा श्रमिकों को सामान लाने ले जाने मे सुविधा हो। मध्य मार्ग को स्वच्छ रखना भी आसान होना चाहिए तथा सूकर आवासों के उत्सर्जन कक्ष की ओर ढलान लिए हुए बनाना चाहिए। मध्य मार्ग का फर्श का व दीवार भी ढलान लिए हुए बनी होनी चाहिए।
सूकर आवास के प्रत्येक गृह में मल-मूत्र अन्य प्रकार के कूड़े-कचरे सूकर पालन पोषण के दौरान निकलते हैं। उन्हें उत्सर्जन हेतु सूकर आवासों के अंतिम बाहरी हिस्से मे एकत्र करने हेतु प्रत्येक सूकर गृह निकास नाली की व्यवस्था होती है। प्रत्येक सुकर गृह की छोटी-छोटी निकास नालियाँ एक मुख्य निकास नाली में मिलती है जो मध्य मार्ग के साथ-साथ बनाई जाती है, जिससे होकर सुकर गृहों का कचरा उत्सर्जन कुंड में एकत्र होता है। प्रत्येक निकास नाली गोलाई लिए हुए बनाई जानी चाहिए तथा इसका ढलान उपयुक्त होना चाहिए।
प्रजनन हेतु सुकर गृह में प्रत्येक 10 मादा सुकरियों पर नर सूकर को रखा जाता है। अन्तः प्रजनन रोकने के लिए नर सूकरों को समय-समय पर किसी अन्य सूकर फार्म ले लेकर बदलते रहना चाहिए। प्रजनन का निर्धारण इस प्रकार करना चाहिए कि हर 2-3 माह में तीन मादा सूकर बच्चे दे सकें।
बच्चों को दो माह बाद मादा से अलग कर दिया जाता है। प्रायः मादा को प्रजनन बाड़े से हटाते हैं जिससे शावकों को वातावरण में परिवर्तन न लगे। प्रत्येक सूकर फार्म पर आवश्यकता अनुसार गर्भित सूकरी के प्रजनन बाड़े होने चाहिए। 6 गर्भित सुकरियों का समूह का वध 6-8 महिने मे कर दिया जाता है। एक साधारण सूकर गृह में करीब 36 उप-बाड़े (कक्ष ) मांस हेतु रखे जाने वाले सूकरों के लिए होने चाहिए। प्रत्येक सूकर गृह का नियमित रूप से निरीक्षण होना चाहिए तथा रोगी सूकरों का परीक्षण व उपचार तत्परता से किया जाना चाहिए।
स्त्रोत: छत्तीसगढ़ सरकार की आधिकारिक वेबसाइट
अंतिम बार संशोधित : 1/24/2023
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