हल्दी एवं अदरख दोनों मसाले वाली सब्जियाँ हैं जिसकी खेती हमारे देश में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। इन मसालों को सब्जियों में प्रयोग के अतिरिक्त औषधि के रूप में भी प्रयोग होता आ रहा है। सब्जी में तो हल्दी का प्रयोग आवश्यक रूप से होता ही है। अदरख का निर्यात विदेशों में भी किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। छोटानागपुर में भी इनकी खेती कर किसान भाई अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इनकी खेती के लिए आरंभ में काफी पूँजी लगानी होती है। बीज पर अधिक खर्च होता है। अगर किसान भाई बीज अगले साल के लिये रख लें तो सिर्फ प्रथम वर्ष में ही पूँजी लगाने की जरूरत होगी।
ये दोनों गर्म तथा तर मौसम में अच्छी उपज देती है। इनकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है। वानस्पतिक वृद्धि के लिये हल्की वर्षा अच्छी होती है। पकने के समय वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है। जहाँ वर्षा 1000-1400 मि. लीटर तक होती है वहाँ इनकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इस लिहाज से पठारी क्षेत्र इनकी खेती के लिये उपयुक्त है। इनके लिये पर्याप्त वर्षा होती है। हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिये लगभग 30 डिग्री तापक्रम की आवश्यकता होती है। हल्दी एवं अदरख की खेती छायादार जगह में भी की जा सकती है। घर के उत्तरी तरफ या पेड़ के उत्तरी भाग में जहाँ कम धूप रहती है, इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
हल्दी एवं अदरख दोनों जमीन के नीचे बैठते हैं, इसलिए हल्की मिट्टी का होना आवश्यक है। मिट्टी में जल का निकास अच्छा होना चाहिए। बलुआही दोमट से लेकर दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना आवश्यक है। क्षारीय मिट्टी में अच्छी उपज नहीं मिलती है। किसान भाई को जमीन भी बदलते रहना चाहिए तथा एक ही खेत में लगातार तीन साल तक खेती नहीं करनी चाहिये। एक ही खेत में लगातार कई साल तक खेती करने से रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
खेत की तैयारी करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार देशी हल से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं जो जमीन से 10-15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिये।
हल्दी एवं अदरख लगभग आठ माह में तैयार होते है इसलिए इनकी बुआई अगात करना आवश्यक है ताकि इन्हें बढ़ने का पर्याप्त समय मिले। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो मध्य मई में इनकी बुआई कर दें। वर्षा पर आधारित खेती करना है तो जैसे ही मौनसून की वर्षा हो इनकी बुआई कर दें।
हल्दी की ‘पटना’ नाम से जानी जाने वाली किस्म बिहार एवं बंगाल में प्रचलित है। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चयनित किस्म ‘मीनापुर’ है जो मध्यकालीन किस्म है। राजेन्द्र सोनिया नामक किस्म इस क्षेत्र में अच्छी उपज देती है। हल्दी की अन्य किस्में कृष्णा, कस्तुरी, सुगंधम, रोमा, सुरोभा, सुदर्शना, रंगा एवं रशिम है।
बीज का चुनाव सावधानीपूर्वक करें। स्वस्थ तथा रोग रहित प्रकंद का चुनाव करें। लम्बी गांठ जिनमें तीन-चार स्वस्थ कलियाँ हो बीज के लिये उपयुक्त होती है। बड़े प्रकंद को काटकर भी लगा सकते हैं। काटकर लगाने पर प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है तथा काटते समय यह भी ध्यान रखें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो-तीन कलियाँ अवश्य रहे। एक हेक्टेयर में खेती के लिये लगभग 20-25 क्विंटल प्रकंद बीज की आवश्यकता होगी। काटकर लगाने पर कम प्रकंद की आवश्यकता होगी।
लगाने के पहले प्रकंद का उपचार करना आवश्यक है, खासकर प्रकंद को काटकर लगाने पर। इसके लिये इंडोफिल एम. – 45 नामक दवा का 0.2 प्रतिशत घोल बना लेना चाहिये। एक लीटर पानी में 2 ग्राम दवा मिलाने पर 0.2 प्रतिशत घोल बनेगा। बेभिस्टीन नामक दवा का 0.1 प्रतिशत घोल का प्रयोग भी कर सकते हैं। 0.1 प्रतिशत घोल बनाने के लिए एक लीटर पानी में 1 ग्राम दवा मिलायें। दोनों दवाओं के मिश्रण से घोल बनाने पर अधिक उपयोगी पाया जाता है। प्रकंद का उपचार करने के लिये घोल में प्रकंद को 1 घंटा डुबाकर रखते हैं तथा इसके बाद घोल से निकालकर 24 घंटा तक छायादार जगह में रखते हैं। उसके बाद ही इनकी बुआई करते हैं। बीज प्रकंद का उपचार एगलौल या सरैशन या ब्लाईटाक्स के 0.25 प्रतिशत घोल में भी कर सकते है।
प्रति हेक्टेयर – कम्पोस्ट : 20 क्विंटल
यूरिया : 200-225 किलो
एस.एस.पी. : 300 किलो
एम.ओ.पी. : 80-90 किलो
कम्पोस्ट खेत तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खेत की अंतिम तैयारी के समय पोटाश की आधी मात्रा एन फ़ॉस्फोरस की पूरी मात्रा दें। बुआई के 60 दिन बाद यूरिया की आधी मात्रा एवं पोटाश की शेष आधी मात्रा को दें। बुआई के 90 दिन बाद यूरिया की शेष आधी मात्रा को दें तथा मिट्टी चढ़ा दें।
हल्दी : 45 सें.मी. x 15 से.मी.
अदरख : 40 सें.मी. x 10 सें.मी.
गर्मी में नाली बनाकर लगायें। बरसात में ऊँची क्यारी बनाकर लगायें।
(क) गर्मी में हल्दी एवं अदरख की बुआई के लिए 40-45 सेंटीमीटर की दूरी पर 15-20 सेंटीमीटर गहरा तथा उतना ही चौड़ा नाली (ट्रेच) बनाते हैं। नाली में कम्पोस्ट तथा रसायनिक खाद के मिश्रण को देकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। नाली में 10 सेंटीमीटर के फासले पर बीज प्रकंद की बुआई करते हैं तथा मिट्टी को ढंक देते हैं। मिट्टी से ढंकते समय ख्याल रखें की नाली जमीन से थोड़ा नीचे ही रहे ताकि गर्मी में पानी देने में सुविधा हो। बरसात आने पर मिट्टी चढ़ा देते हैं ताकि पानी न जमने पाये।
(ख) बरसात में हल्दी एवं अदरख को लगाने के लिए खेत को भुरभुरा कर छोटी-छोटी क्यारियाँ जमीन से 8-10 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए, ताकि बरसात में पानी न लगे। 3.20 मीटर लम्बा तथा 1 मीटर चौड़ाई के क्यारियाँ बना सकते हैं। इन क्यारियों में 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइन तथा 10 सेंटी मीटर पौधा से पौधा की दूरी रखकर बुआई करते है। बुआई के लिए 10 सेंटीमीटर गहराई की नाली बनाते हैं तथा उस नाली में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रकंद को रखकर बुआई करते हैं। बुआई के समय प्रकंद में आँख (कली) ऊपर की तरफ होनी चाहिये। बुआई के बाद प्रकंद को मिट्टी से ढँक देते है। इसके बाद सिंचाई कर देते हैं। बुआई के बाद क्यारी को 5-6 सेंटीमीटर मोटा आम, शीशम, घास-फूस या गोबर की सड़ी खाद से ढँक देते हैं ताकि नमी बनी रहे। इससे खरपतवार भी कम उगेंगे।
खेत को खरपतवार से मुक्त रखना आवश्यक है। इसके लिए तीन-चार बार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। अंतिम बार गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये। आरंभ में दो तीन सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है। वर्षा काल में सिंचाई देने की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन जल एक जमाव न हो इसका ध्यान अवश्य रखें। जब फूल निकले तो उसे निकाल फेंकें। विशेषज्ञ से सलाह लेकर फसल को कीट एवं व्याधि से बचायें।
अदरख की फसल लगभग आठ से नौ माह में तथा हल्दी नौ से दस माह में खुदाई करने लायक हो जाती है जब पौधे की पत्तियाँ पीली तथा मुरझाई हुई तथा झुकी दिखाई दे तो यह समझना चाहिए कि अब खुदाई का उचित समय है। इस समय सावधानी से कोड़कर निकाल लें। कच्ची हल्दी की उपज लगभग 400-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है तथा इनसे सुखा हल्दी 15 से 25 प्रतिशत के हिसाब से प्राप्त होती है। अदरख की उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगभग होती है। अदरख को उखाड़ने के बाद दो-तीन बार पानी से धोकर धूलकण को साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद तीन-चार दिन तक हल्की धूप में सुखाते हैं।
हल्दी के गाँठो को भी धोकर अच्छी तरह साफ़ कर लेते हैं। इसके बाद गांठों को पानी में जिसमें 0.1 प्रतिशत चूना मिला रहता है उबालते समय जब बर्त्तन में झाग आने लगे तथा हल्दी जैसे गंध आने लगे तो प्रकंद को बाहर निकालकर 10-15 दिन तक छाया में अच्छी तरह सुखाकर रख लेते हैं।
सोंठ बनाने के लिए अदरख की अच्छी-अच्छी गांठों को छाँटकर पानी में डाल दें। जब उसका छिलका गल जाये तो साफ़ करके एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाना चाहिये। इसके बाद चूने के पानी और गंधक से उपचारित करके फिर धूप में डालना चाहिये। इस प्रकार अदरख का लगभग 1/5 हिस्सा सोंठ के रूप में मिलता है।
किसान भाई को अगले साल के लिए बीज प्रकंद को रखना आवश्यक है। इसके लिये छायादार जगह में 1 मीटर गहरा एवं 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्डा बनाते हैं। बीज प्रकंद को इंडोफिल एम. 45 या बेभिस्टीन से उपचार कर लेते हैं। गड्डे के सतह पर 20 सेंटीमीटर बालू का सतह रखते हैं। इसके ऊपर 30 सेंटीमीटर लेयर प्रकंद को रखते हैं। इसके ऊपर बालू का लेयर देकर फिर प्रकंद का लेयर देते हैं। इस तरह गड्डे में प्रकंद को रखकर गड्डा को पटरा से ढक देते हैं। पटरा एवं प्रकंद के बीच 10 सेंटीमीटर खाली जगह हवा के लिये छोड़ देते हैं। इसके बाद ऊपर से मिट्टी से लेप कर देते हैं। इस प्रकार बीज प्रकंद को सुरक्षित रखकर अगले मौसम में बुआई करते हैं।
स्रोत: समेति तथा कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखंड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस भाग में अश्वगंधा, सतावर एवं सर्पगंधा के औषधीय ग...
इस पृष्ठ में सुंगधित एवं औषधीय पौधों की खेती की वि...
इस भाग में सफेद मूसली की खेती से अधिक मुनाफा कैसे ...
इस लेख में औषधीय पौधे अश्वगंधा के विषय में अधिक ज...