অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

मूंग की खेती-उन्नाव के संदर्भ में

जलवायु

मूंग ऐसे क्षेत्र में उगायी जा सकती है जहाँ वार्षिक वर्षा 60 से 70 सेमी तक होती है।अधिक वर्षा होने से इसके फली और दाने सड़ जाते हैं। अच्छे अंकुरण एवं समुचित बढ़वार हेतु क्रमशः 25 सेंटीग्रेड एवं 20 से 40 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है।

मृदा

मूंग की खेती हेतु दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है। इसकी खेती मटियार एव बलुई दोमट मिट्टी में भी की जा सकती है लेकिन उत्तम जल निकास का होना आवश्यक है।

फसल चक्र

किसान भाई निम्नलिखित फसल चक्र अपना कर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं

  • मूंग-गेहूँ
  • मूग-आलू
  • मक्का-गेहूँ-ग्रीष्मकालीन मूंग
  • धान गेहूँ एवं ग्रीष्मकालीन मूंग

उन्नत किस्में

ग्रीष्मकालीन मूंग में बुवाई हेतु पूसा विशाल, पूसा रत्ना, पूसा 0672 में से किसी भी एक प्रजाति का चयन किया जा सकता है। खरीफ ऋतु में बुवाई हेतु पूसा-9531 प्रजाति उत्तम है।

खेत की तैयारी

ग्रीष्मकालीन फसल को बोने के लिए गेहूँ की कटाई के उपरान्त एक बार हैरो से जुताई करके फिर पाटा फेर कर खेत तैयार करना ठीक रहता है।

बुवाई

बीज को बोने से पहले कवकनाशी रसायन जैसे थीराम 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करना आवश्यक है। खरीफ की फसल को 30 से 35 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए और पौधे से पौधे की लगभग 7 से 10 सेमी होनी चाहिए। प्रजातियों के अनुसार इसके लिए 12 से 15 किग्रा बीज प्रति हेक्टेअर लगेगा। बसंत तथा ग्रीष्मकालीन ऋतु की फसल में पौधे की बढ़वार कम होती है इससे 25 से 30 सेमी पंक्ति से पंक्ति दूरी पर्याप्त है। अत: इसकी बुवाई में 20 से 25 किग्रा बीज प्रति हेक्टेअर लगेगा।

उर्वरक प्रबन्धन

उर्वरक प्रबन्धन हेतु किसानों को सर्वप्रथम अपने खेत की मिट्टी की जाँच करवानी चाहिए। विभिन्न अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि 15 से 20 किग्रा प्रति हे. नाईट्रोजन देने से मूंग की पैदावार अच्छी होती है। कम उर्वरा शक्ति वाली मिट्टी में 40 से 50 किग्रा फास्फोरस प्रति हे0 डालना भी आवश्यक है।

जल प्रबन्धन

ग्रीष्म एवं बसन्त कालीन मूंग की फसल को 4 से 5 सिंचाई देना आवश्यक होता है प्रथम सिंचाइ 20 से 25 दिन बाद व अन्य सिंचाई 12 से 15 दिन के अन्तर पर करें। वर्षा ऋतु की मूंग में उचित जल निकास की व्यवस्था आवश्यक है।

खरपतवार प्रबन्धन

बुवाई के बाद 35 से 40 दिन के भीतर खरपतवारों की सघनता के अनुसार एक या दो निराई गुड़ाई पर्याप्त होती है।

कीट प्रबन्धन

मूंग की फसल में दो मुख्य कीट फफोला भ्रग एवं सूड़ियाँ हैं। फफोला भ्रग एक बहुभक्क्षी कीट है। जो मूंग के फूलों को खा जाते हैं। इस कीट के प्रबन्धन हेतु रात्रि में प्रकाश पाश का काप्रयोग करके इस कीट के प्रजनन को कम किया जा सकता है। इसके अलावा दस्ताने पहन कर कीटों को खेत में एकत्रित किया जा सकता है।

दो प्रमुख सूड़ियाँ पहला हेल्किोवपा और दूसरा तम्बाकू की सूड़ी है। हेल्किोवपा की सूड़ी फली में छेद कर उसका अन्दर का गूदा खा जाती है और तम्बाकू की सूड़ी मुख्यतया पत्तियों को खा जाती है। इस कीट की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हे. लगाये। कीटनाशन इमिडाक्लोपिड 17.8एस.एल. दो एम.एल. प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें। इसे 7 से 10 दिन के अंतर दोहराते हैं। कुल 3 से 4 छिड़काव से अच्छा नियंत्रण होता है।

रोग प्रबन्धन

मूंग की फसल में कवक जनित बीमारी सकॉस्पोरा पर्ण चित्ती है जिसमें कभी-कभी पत्ति के किनारों में 0.5 से 4 मिलीमीटर ब्यास के बैगनी लाल या भूरा रंग के धब्बे प्रकट होते हैं। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 4 ग्राम प्रति लीटर की दर से बाबस्टीन का छिड़काव करें। इसे 7 से 10 दिन के अंतर में दोहराते हैं। कुल 3 से 4 छिड़काव से अच्छा नियंत्रण होता है।

अन्य बीमारियों में पीला मोजैक एवं मोजैक विषाणुजनित बीमारिया हैं। यह रोग मूंग की ग्राही प्रजातियों में अधिक व्यापक होता है। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसलिये इस रोग की रोकथाम के लिए डायमेथाक्साम(एक्टाश) या इमिडज्ञक्लोप्रिड(कांफीडोर) 0.02 प्रतिशत का छिड़काव करें एवं छिड़काव को 15 से 20 दिन के अंतर पर दोहरायें और कुल 3 से 4 छिड़काव करें।

कटाई एवं गहाई

वर्षा ऋतु में जब पौधों की अधिकत फलियाँ पक कर काली हो जाती हैं तो फसल की कटाई की जा सकती है। ग्रीष्म तथा बसन्तकालीन फसलों में जब 50 प्रतिशत फलियाँ पक जायें तो फसल की पहली तोड़ाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद दूसरी बार फलियों के पकने पर फसल की कटाई की जा सकती है।फलियों को खेत में अधिक समय तक छोड़ने से वह चटक जाती है। इससे फसल की हानि होती है। अत: फलियों को बीज से समय से निकाल लें।

पैदावार

वर्षा ऋतु की फसल से लगभग 10 कुन्तल प्रति हेक्टेयर,ग्रीष्मकालीन फसल में 10 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार संभव है।  साथ ही साथ 15 से 20 कुन्तल सूखा चारा भी तैयार होता है।

स्त्रोत : कृषि विज्ञान केंद्र, तहसील हसनगंज, जिला उन्नाव ।

अंतिम बार संशोधित : 10/8/2019



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate