অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

सेब उत्पादन में पोषक तत्वों का महत्व एवं प्रंबधन

परिचय

अन्य पौधों की तरह सेब में भी उचित विकास, बढ़ोतरी और अच्छी पैदावार के लिए विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जो मिट्टी और वातावरण  से मिलते हैं| इन तत्वों का भूमि में पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक होता है| भूमि में इन पोषक तत्वों की मात्रा अगर उचित न हो तो उत्पादन और बढ़ोतरी प्रभावित होती है और इनको अलग से तौलिये में डालना पड़ता है| सेब के पौधों में कितने पोषक तत्व डाले जाएँ ताकि उत्पादन और वृद्धि ठीक हो  इसका निर्धारण औद्योनिकी एवं वांकी विश्वविद्यालय द्वारा बागवानों के लिए किया गया है जिसे  आवश्कता या मिट्टी और पत्ती विशलेषण के अनुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है| इन पोषक तत्वों की अधिकता भी सेब के पौधों पर विपरीत असर डालती है जिससे पोषक तत्वों की अधिकता, व्याधियां और कम मोटाई की जड़ें प्रभावित होती हैं| कुल सत्रह पोषक तत्वों को वृद्धि के लिए आवश्यक माना गया है| ये पोषक तत्व हैं कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, सल्फर (गंधक), लोहा, जस्ता, सुहागा, तम्बा, मैगनीज, मोलिबिडनम, क्लोरीन तथा निक्कल| सेब के पौधे जड़ों से इन पोषक तत्वों को ग्रहण करते हैं तथा कुछ को छिड़काव द्वारा प्रयोग किया जाता है ताकि पत्तों का फलों  पर कोई कमी न रह जाये| पोषक तत्वों की मात्रा के लिए बातों जैसी भूमि का उपजाऊपन, ढलान, पानी की निकासी, फल प्रजाति, पौधे की आयु, काट-छांट, सिंचाई, मिट्टी की गहराई व जलवायु इत्यादि का ध्यान रखना आवश्यक होता है| इन सब बातों के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ही पोषक तत्व डाले जाते हैं ताकि उत्पादन और बढ़ोतरी आवश्यकतानुसार  हो सके| पोषक तत्वों की गतिशीलता तत्वों की कमी का निर्धारण करती हैं और इस प्रकार तत्वों को दो भागों में विभाजित किया गया है:

गतिशील

अपेक्षाकृत कम गतिशील

जिनके पुरानी पत्तियों में लक्षण आते हैं

जिनके नई पत्तियों पर लक्षण आते हैं

नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, जिंक

कैल्शियम, सुहागा, तम्बा, मैगनीज, सल्फर और लोहा

 

पोषक तत्व भी अलग-अलग मात्रा में पौधों की वृद्धि व उत्पादन के लिए चाहिये होते हैं|

जो अपेक्षाकृत ज्यादा भाग या मात्रा में चाहिए

जो अपेक्षाकृत कम मात्रा में चाहिए

नत्रजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैगनीज, सल्फर

लोहा, जस्ता, सुहागा, तम्बा, मैगनीज, मोलिबिडनम व क्लोरीन

 

सेब पौधों में पोषक तत्वों की कमी का पता कैसे लगाएं

  1. सावधानी निरीक्षण

फल तोड़ने से पहले सावधानीपूर्ण देखें कि पौधे की पत्तियां पूरी विकसित  हैं और है या नहीं| इसके साथ ही फल आकार, रंग तथा शाखाओं की वृद्धि व उत्पादन में कोई फर्क तो नहीं है| इसी के साथ यह भी देखें कि यह किसी बीमारी की वजह से तो नहीं है| इस तरह फल तोड़ने स पहले पौधों की पहचान के बाद सर्दियों में इन पौधों का उपचार करना चाहिए|

  1. दैहिक व्याधियां

फल तोड़ने स पहले देखें कि पत्तों आदि पर दैहिक व्याधियां तो नहीं है क्योंकि अलग-अलग पोषक तत्व अलग-अलग कार्य करता है इसलिए किसी विशेष पोषक तत्व की कमी से अलग-अलग लक्षण आयेंगे| सेब में मुख्य लक्षण जो पोषक तत्वों की कमी से आते हैं वे नीचे दिए गए है:

नाइट्रोजन (नत्रजन)

  1. पौधों की वृद्धि रुकना
  2. पत्तियां ज्यादा परन्तु फल कम व छोटे व जल्दी पक जाते हैं|
  3. फूल ज्यादा परन्तु फल कम व छोटे व जल्दी पक जाते हैं|
  4. बसंत ऋतु में कलियाँ कम खुलती हैं और पुरानी पत्तियां जल्दी झड़ जाती हैं|

फास्फोरस

  1. टहनियां छोटी, पतली, सीधी व तकलीनुमा
  2. पत्ते छोटे हल्के बैंगनी तंबिया रंग के तथा पुराने पत्ते पहले झड़ते हैं|
  3. फूल और फल कम आते हैं|
  4. बसंत ऋतु में कलियों का देर से फूटना

पोटाशियम

  1. लक्षण पहले पुराने पत्तों में फिर नये पत्तों में आते हैं|
  2. किनारे झुलस जाते हैं|
  3. पत्तियां छोटी और समय से पूर्व गिर जाती हैं|
  4. फलों का आकार छोटा व रंग कम विकसित होता है|

मैग्नीशियम

  1. पुरानी पत्तियों की बड़ी शिराओं के बीच के भागों का रंग हल्के पीले में बादल का लाल नांरगी होकर सुखना|
  2. कमीग्रस्त पत्तियां गिर जाने पर कुछ पत्तियां ऊपर रह जाती हैं|
  3. फूलों पर रंग कम आता है और फूल समय से पूर्व गिर जाते हैं|

कैल्शियम

  1. पौधे के ऊपरी के भाग की वृद्धि रुक जाती हैं और ऊपरी भाग की कलियाँ मर जाती हैं|
  2. पत्तियां पीली व कभी-कभी बैगनी हो जाती हैं|
  3. जड़ों की वृद्धि रुक जाती हैं और पौधे सूख जाते हैं|

गंधक

  1. नई पत्तियां नाइट्रोजन की कमी की तरह पीली पड़ जाती हैं|
  2. ऊपरी भाग की कलियाँ मर जाती हैं व पत्तियाँ कम बनती हैं|

लोहा

  1. शिराओं के बीच का हिस्सा सूख जाना परन्तु नसें हरी रहना|
  2. पत्तियां सफेद होकर किनारे से सूखना|

मैगज़ीन

  1. नसों के बीच का हरा रंग उड़ जाना|
  2. पत्तियों के शिराओं के बीच का सूखना किनारे से मध्य शिरा की ओर बढ़ता है|
  3. पत्तियों में  भोजन का कम विकास होना|
  4. पत्तियों की संख्या घटना|
  5. अधिक मात्रा होने पर सेब में हल्के फोड़े बनना|

जस्ता

  1. मुख्य व्याधि इकट्ठी आकार की पत्तियों का झुण्ड बनना|
  2. पत्तियों का छोटा होना तथा एक ही स्थान पर अधिक संख्या में पाया जाना|
  3. फूल-फल कम लगना|
  4. फल छोटे व आकार बिगड़ जाना|

सुहागा

  1. अंतर या बाह्या कॉर्क या सूखे दाग होना|
  2. अधिक कमी होने पर फोड़े होना|
  3. फल काटने पर भूरे रंग के दाग
  4. फल छोटे, सख्त व रस की कमी हो जाती है|
  5. पत्तों का फटना जल्दी गिरना व विकृत होना|
  6. नसों का लाल पड़ना व पत्तियों के सिरे का सूखना
  7. नई शाखाओं के सिरे का सुखना व नई कलियों का मर जाना|

मिट्टी विशलेषण

मिट्टी विशलेषण से हमें भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों का ज्ञान होता है और भूमि में कौन-कौन से पोषक तत्व डालने की जरूरत है उसका पता लगाया जा सकता है| मिट्टी विशलेषण से भूमि का पी एच मान भी ज्ञात होता है जो पोषक तत्वों की उपलब्धता का निर्धारण करता है सेब के लिए यह 5.5 से 6.5 तक होता है| मिट्टी विशलेषण के लिए नमूना लेने के लिए पहले भूमि पर पड़ी  पर पड़ी पत्तियां ठीक तरह से हटा लें| उसके ‘V’ के आकार का गड्ढा खोदें| उसके बाद कस्सी से एक किनारे से 25 सेंटीमीटर का टुकड़ा काट लें| दूसरे किनारे पर भी ऐसा ही करें| दोनों से काटी गई मिट्टी को आपस में मिलाएं| इनको सुखाने के बाद कपड़े के बैंग में रखें और कृषि विभाग से मिट्टी विशलेषण का प्रंबध करें|

पत्ती विशलेषण

पत्ती विशलेषण सेब के पौधों में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी के लिए किया जाता है| पत्ती विशलेषण से ज्यादा उपयोगी माना गया है यह फिर दोनों को ही उपयोग में लाना चाहिये| पत्ती विशलेषण के लिए पत्तियां इकट्ठी करना भी ठीक विधि द्वारा करना आवश्यक है| पोषक तत्वों के विशलेषण के लिए पत्तियां उसी मौसम में निकली टहनी के मध्य भाग से एक या दो पत्ती टहनी लेनी चाहिए| एक सैम्पल के लिए 80-100 पत्तियां इकट्ठी करें| बीमें वाली टहनियों से पत्ते न लें| बिलकुल किनारे लगे पौधों से भी पत्ते न लें और बगीचें में ‘X’ आधार पर ही पत्ते इकट्ठे करें| इन पत्तों को साफ पानी से धोने के बाद 70 डिग्री सेल्सियस पर सुखाया जाता है और उसके बाद पोषक तत्वों को  ज्ञात करने के प्रयोग में लाया जाता है|

खादें कब और कैसे दें

फल न देने वाले नए पौधे: नये पौधों में हमारा उद्देश्य पौधों की अधिकतम वृद्धि का होता है और इस समय नत्रजन खाद उचित मात्रा में पड़नी चाहिए| अगर बागवान के पास ऐसी खाद/उर्वरक है जिसमं NPK  मिलीजुली हो तो उस खाद का प्रयोग करें जिसमें नत्रजन की मात्रा  अधिक हो|

फलदार पौधे:  फलदार पौधों में हमारा उद्देश्य अधिक पैदावार और अच्छी किस्म की फसल से होता है जहाँ गहरे हरे रंग की पत्तियां हों, पैदावार ठीक हो और फलों का रगं ठीक हो और नई औसतन वृद्धि 6-12 ईच तक हो तो ज्यादा खाद नहीं डालनी चाहिए| डिलीशियस किस्मों में यह वृद्धि 10-12 ईच तथा दूसरी किस्मों में यह वृद्धि 8-10 ईंच के बीच में होनी चाहिए|

खादें डालने की मुख्य विधियाँ

  1. तौलिये या थाला में डालना: तौलिये में छोटे पौधों में आधा व बड़े पौधों में एक फुट की तने से दूरी रखते हुए खादें डाल दी जाती है| खादें पौधों की टहनियों के फैलाव के नीचे बिखेर कर डालने के बाद मिट्टी में मिला दी जाती है| मिट्टी में खादें मिलाना अति आवश्यक होता है| जब बहुत ज्यादा नमी हो या बहुत ज्यादा सुखा पड़ रहा हो तो कहें न डालें|
  2. पट्टी में खाद डालना: टहनियों के फैलाव के बाहरी घेरे में 20-25सेंटीमीटर पट्टी में खादें डाल दी जाती है और ऊपर से ढक दिया जाता है| ऐसे विधि वहीँ प्रयोग में लाई जाती है जहाँ ज्यादा बरसात होती है|
  3. छिड़काव विधि: पत्तों के ऊपर छिड़काव किया जाता अहि| ज्यादातर यूरिया खाद को पानी में घोल कर उसे छिड़काव द्वारा पत्तों पर डाला जाता है|
  4. बिखरे कर डालना: पौधों की दो पत्तियों के बीच में पौधों से उचित दूरी बनाते हुए खेत में बिखरे कर खादें डाल दी जाती हैं| हिमाचल प्रदेश में इस विधि को कम ही प्रयोग किया जाता है और उन सेब के बगीचों में प्रयोग किया जाता है जहाँ तौलिये के बदले पूरा खेत ही साफ रखा हो|

खाद व उर्वरकों डालने की मात्रा

सेब की बागवानी में निम्नलिखित सारणी सुझाई गई है:

पौधे की आयु

गोबर की खाद (कि.ग्रा.)

कैन खाद (ग्राम)

सुपर फास्फेट (ग्राम)

म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (ग्राम)

1

10

280

220

120

2

20

560

440

240

3

30

840

660

360

4

40

1120

880

480

5

50

1400

1100

600

6

60

1680

1320

720

7

70

1960

1540

840

8

80

2240

1760

960

9

90

2520

1980

1080

10 और ऊपर

100

2800

2200

1200

अफलित वर्ष

100

2000

1560

665

ध्यान देने योग्य विशेष सुझाव

  1. खादें व उर्वरक पहले सुझाई गई विधियों द्वारा डालें| उन जगहों में जहाँ पोषक तत्वों की अधिकता हो वहां ऊपर दी गई मात्रा का आधा ही डालें|
  2. जिस वर्ष फसल न लगी हो उस वर्ष सारणी में अफलित वर्ष की दी गई मात्रा ही डालें|
  3. सभी गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, पोटाश को दिसम्बर-जनवरी में डाल दें क्योंकि इनको उपलब्ध होने की दशा में पहुँचने में एक महीने से ऊपर समय लगता है या फिर कलियाँ फूटने से एक महीना पहले डालें|
  4. नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने से 2 या 3 सप्ताह पहले डालें| यह समय मार्च तीसरे सप्ताह से मार्च अंत का चलता है|
  5. नत्रजन की बाकी मात्रा पहली डाली गई मात्रा के एक महीने बाद डालें|
  6. जहाँ लगातार सूखे की सम्भावना बनी रहती हो वहां पर सारी खादें के ही समय में डाल दें|
  7. यदि किसी कारणवश नत्रजन की दूसरी मात्रा नहीं डाल सकें तब एक किलोग्राम यूरिया का प्रति ड्रम की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|
  8. फास्फोरस की खाद का प्रयोग हो वर्ष में एक बार ही करें|
  9. यदि फल भंडारण करना हो तो फल तोड़ने से 30 और 45 दिन पहले कैल्शियम क्लोराइड एक किलोग्राम प्रति ड्रम (200 लीटर) के घोल का स्प्रे करें|
  10. जिस वर्ष बहुत ज्यादा फसल लगी हो, तब 2 किलिग्राम यूरिया का छिड़काव (200 लीटर पानी में) फल तोड़ने के बाद करें|
  11. पत्ते गिरने से पहले 8-10 किलिग्राम यूरिया प्रति 200 लीटर पानी में घोलने के बाद छिड़काव करें|
  12. छिड़काव सुबह व शाम को ही करें, तेज धूप या वर्षा की सम्भावना होने पर छिड़काव न करें|
  13. पोषक तत्वों का अलग ही छिड़काव करें| पौधों की सुप्प्तावस्था या फिर फूलने के समय कोई पोषक तत्वों का छिड़काव न करें|
  14. चूने का पौधे पर छिड़काव न करें और सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव तभी करें जब आपको विशेषज्ञ ने इसकी सलाह दी हो|
  15. छिड़काव पौधों में ऊपर से शूरू करें और खादें डालने के बाद उनको मिलाना न भूलें|

 

सेब में सूक्ष्म व अन्य पोषक तत्वों की कमी दूर करने हेतु छिड़काव

कुछ पौधों पर नाइट्रोजन, जस्ता, सुहागा, मैगनीज व कैल्शियम की कमी हो जाती है| इनमें से मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाशियम को भूमि में डालना चाहिए जबकि सूक्ष्म पोषक तत्वों को छिड़काव द्वारा देना चाहिए| जहाँ नाइट्रोजन का अभाव हो वहां पौधों पर 1% यूरिया (2 किलिग्राम 200लीटर पानी) के छिड़काव द्वारा इस आभाव को पूरा किया जा सकता है| पोषक तत्वों का छिड़काव फूलों की पंखुडियां झड़ जाने के 10-15 दिन के बाद करना चाहिये| सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए नीचे दी गई सारणी के अनुसार छिड़काव करें|

तत्व

प्रयुक्त रसायन

मात्रा 200 लीटर पानी में

छिड़काव अंतराल

छिडकाव समय

जिंक (जस्ता)

जिंक सल्फेट

1 किलोग्राम

1-2 (15 दिन के अन्तराल पर

मई-जून

बेरोन

बोरिक एसिड

200 ग्राम

–यथोपरि-

जून

मैगनीज

मैगनीज सल्फेट

800 ग्राम

–यथोपरि-

जून

कॉपर (तम्बा)

कॉपर सल्फेट

600 ग्राम

2 (15 दिन के अन्तराल पर)

जून-जुलाई

कैल्शियम

कैल्शियम क्लोराइड

1 किलोग्राम

–यथोपरि-

पहला तुडाई से 45 दिन और दूसरा 30 दिन पहले

 

नोट: जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट और मैगनीज सल्फेट के साथ आधी मात्रा में अनबूझा चूना अवश्य मिला लें|

स्रोत: मृदा एवं जल प्रबंधन विभाग, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्विद्यालय; सोलन

अंतिम बार संशोधित : 1/20/2021



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate