प्राचीन काल से ही विश्व में भारत देश को ‘‘मसालों की भूमि‘‘ के नाम से जाना जाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते है। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते है । धनिया अम्बेली फेरी या गाजर कुल का एक वर्षीय मसाला फसल है। इसका हरा धनिया सिलेन्ट्रो या चाइनीज पर्सले कहलाता है। मध्यप्रदेश में धनिया की खेती 1,16,607 हे. में होती है जिससे लगभग 1,84,702 टन उत्पादन प्राप्त होता है। औसत उपज 428 किग्रा./हे. है। म.प्र. के गुना, मंदसौर, शाजापुर, राजगढ, विदिशा, छिंदवाडा आदि प्रमुख धनिया उत्पादक जिले हैं।
धनिया एक बहुमूल्य बहुउपयोगी मसाले वाली आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी फसल है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण कुलिनरी के रूप में, कार्मिनेटीव और डायरेटिक के रूप में उपयोग में आते हैं भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है। धनिया के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है।
जलवायु
शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिये अनुकूल होता है। बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है। धनिया शीतोष्ण जलवायु की फसल होने के कारण फूल एवं दाना बनने की अवस्था पर पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है। धनिया को पाले से बहुत नुकसान होता है। धनिया बीज की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक वाष्पशील तेल के लिये ठंडी जलवायु, अधिक समय के लिये तेज धूप, समुद्र से अधिक ऊंचाई एवं ऊंचहन भूमि की आवश्यकता होती है।
धनिया की सिंचित फसल के लिये अच्छा जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिये काली भारी भूमि अच्छी होती है । धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है । अच्छे जल निकास एवं उर्वरा शक्ति वाली दोमट या मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है । मिट्टी का पी.एच. 6.5 से 7.5 होना चाहिए । सिंचित क्षेत्र में अगर जुताई के समय भूमि में पर्याप्त जल न हो तो भूमि की तैयारी पलेवा देकर करनी चाहिए । जिससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेगें तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे। बारानी फसल के लिये खरीफ फसल की कटाई के बाद दो बार आड़ी-खड़ी जुताई करके तुरन्त पाटा लगा देना चाहिए।
किस्म |
पकने की अवधि |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
विशेष गुण धर्म |
हिसार सुगंध |
120-125 |
19-20 |
दाना मध्यम आकार का,अच्छी सुगंध, पौधे मध्यम ऊंचाई , उकठा, स्टेमगाल प्रतिरोधक |
आर सी आर 41 |
130-140 |
9-10 |
दाने छोटे,टाल वैरायटी, गुलाबी फूल,उकठा एवं स्टेमगाल प्रतिरोधक,भभूतिया सहनशील, पत्तियों के लिए उपयुक्त, 0.25 प्रतिशत तेल |
कुंभराज |
115-120 |
14-15 |
दाने छोटे सफेद फूल, उकठा ,स्अेमगाल, भभूतिया सहनशील, पौधे मध्यम ऊंचाई |
किस्म |
पकने की अवधि |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
विशेष गुण धर्म |
आर सी आर 435 |
110-130 |
11-12 |
दाने बड़े, जल्दी पकने वाली किस्म, पौधों की झाड़ीनुमा वृद्धि, उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील |
आर सी आर 436 |
90-100 |
11-12 |
दाने बड़े, शीघ्र पकने वाली किस्म, उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील |
आर सी आर 446 |
110-130 |
12-13 |
दाने मध्यम आकार के , शाखायें सीधी, पौधें मध्यम ऊंचाई के, अधिक पत्ती वाले , हरी पत्तियों के लिए उपयुक्त, उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील, असिंचित के लिए उपयुक्त |
किस्म |
पकने की अवधि |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
विशेष गुण धर्म |
जी सी 2 (गुजरात धनिया 2) |
110-115 |
15-16 |
दाने मध्यम आकार के, मध्यम ऊंचाई के पौधे, अर्ध्दसीमित शाखायें, गहरी हरी पत्तियां, उकठा स्टेमगाल ,भभूतिया सहनशील, हरी पत्तियों के लिये उपयुक्त |
आरसीआर 684 |
110-120 |
13-14 |
दाने बड़े, अण्डाकार, भूसा कलर, बोनी किस्म, उकठा स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील, माहू प्रतिरोधक |
पंत हरितमा |
120-125 |
15-20 |
दाने गोल, मध्यम आकार के, पौधे मध्यम ऊंचाई के , उकठा, स्टेमगाल,भभूतिया प्रतिरोधक, बीज एवं पत्तियों के लिए उपयुक्त |
किस्म |
पकने की अवधि |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
विशेष गुण धर्म |
सिम्पो एस 33 |
140-150 |
18-20 |
दाने बड़े, अण्डाकार, पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल प्रतिरोधक, भभूतिया सहनशील, बीज के लिये उपयुक्त |
जे डी-1 |
120-125 |
15-16 |
दाने गोल,मध्यम आकार के, पौधे मध्यम ऊंचाई के,उकठा निरोधक, स्टेमगाल,भभूतिया सहनशील, सिंचित एवं असिंचित के लिए उपयुक्तढ |
ए सी आर 1 |
110-115 |
13-14 |
ददाने छोटे,गोल,पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल प्रतिरोधक, भभूतिया सहनशील, पत्तियों के लिये |
किस्म |
पकने की अवधि |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
विशेष गुण धर्म |
सी एस 6 |
115-120 |
12-14 |
दाने गोल, मध्यम आकार के, पौधे मध्यम |
जे डी-1 |
120-125 |
15-16 |
दाने गोल, मध्यम आकार के पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा निरोधक, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील, सिंचित एवं असिंचित के लिए उपयुक्त |
आर सी आर 480 |
120-125 |
13-14 |
दाने मध्यम आकार के, पौधे मध्यम ऊंचाई के उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया निरोधक, सिंचित के लिये उपयुक्त |
आर सी आर 728 |
125-130 |
14-15 |
दाने छोटे,गोल, सफेद फूल, भभूतिया सहनशील, उकठा, स्टेमगाल निरोधक, सिंचित, असिंचित एवं हरी पत्तियों के लिये उपयुक्त |
धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाती है। धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है । धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है। दानों के लिये धनिया की बुआई का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है। हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त हैं। पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह मे बोना उपयुक्त होता है। बीज दर: सिंचित अवस्था में 15-20 कि.ग्रा./हे. बीज तथा असिंचित में 25-30 कि.ग्रा./हे. बीज की आवश्यकता होती है।
भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को कार्बान्डिजिमथाइरम (2:1) 3 ग्रा./कि.ग्रा. या कार्बोक्जिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत 3 ग्रा./कि.ग्रा. + ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें । बीज जनित रोगों से बचाव के लिये बीज को स्टेप्टोमाईसिन 500 पीपीएम से उपचारित करना लाभदायक है ।
असिंचित धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे. के साथ 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से तथा 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित फसल के लिये उपयोग करें ।
असिंचित अवस्था में उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में देना चाहिए। सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा बोने के पहले अंतिम जुताई के समय देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद देना चाहिए । खाद हमेशा बीज के नीचे दें । खाद और बीज को मिलाकर नही दें। धनिया की फसल में एजेटोबेक्टर एवं पीएसबी कल्चर का उपयोग 5 कि.ग्रा./हे. केहिसाब से 50 कि.ग्रा. गोबर खाद में मिलाकर बोने के पहले डालना लाभदायक है ।
बोने के पहले धनिया बीज को सावधानीपूर्वक हल्का रगड़कर बीजों को दो भागों में तोड़ कर दाल बनावें। धनिया की बोनी सीड ड्रील से कतारों में करें । कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से. मी. रखें । भारी भूमि या अधिक उर्वरा भूमि में कतारों की दूरी 40 से.मी. रखना चाहिए। धनिया की बुवाई पंक्तियों में करना अधिक लाभदायक है। कूड में बीज की गहराई 2-4 से.मी. तक होना चाहिए । बीज को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण कम प्राप्त होता है ।
चना + धनिया, (10:2), अलसी एवं धनिया (6:2), कुसुम$धनिया (6:2), धनिया + गेहूँ (8:3) आदि अंतर्वर्तीय फसल पद्धतियां उपयुक्त पाई गई है । गन्ना + धनिया (1:3) अंतर्वर्तीय फसल पद्धति भी लाभदायक पाई गई है ।
धनिया-मूंग ,धनिया-भिण्डी, धनिया-सोयाबीन , धनिया-मक्का आदि फसल चक्र लाभदायक पाये गये हैं।
धनिया में पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद (पत्ति बनने की अवस्था), दूसरी सिंचाई 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) तथा चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था ) करना चाहिऐ। हल्की जमीन में पांचवी सिंचाई 105-110 दिन बाद (दाना पकने की अवस्था) करना लाभदायक है ।
धनिया में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35-40 दिन है । इस अवधि में खरपतवारों की निंदाई नहीं करते है तो धनिया की उपज 40-45 प्रतिशत कम हो जाती है । धनिया में खरपतवरों की अधिकता या सघनता व आवश्यकता पड़ने पर निम्न में से किसी एक खरपतवानाशी दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
खरपतवार नाशी का तकनीकी नाम |
खरपतवार नाशी का व्यपारिक नाम |
दर सक्रिय तत्व (ग्राम/हे.) |
खरपतवार नाशी की कुल मात्रा मि.ली /हे. |
पानी मात्रा ली/ ह. |
उपयोग का समय (दिन) |
पेडिमिथलीन |
स्टाम्प 30 ई.सी |
1000 |
3000 |
600-700 |
0-2 |
पेडिमिथलीन |
स्टाम्प एक्स्ट्रा 38.7 सी.एस. |
900 |
2000 |
600-700 |
0-2 |
क्विजोलोफॉप इथाईल |
टरगासुपर 5 ई.सी. |
50 |
100 |
600-700 |
15-20 |
माहू /चेपा (एफिड) : धनिया में मुख्यतः माहू/चेपा रसचूसक कीट का प्रकोप होता है । इस कीटे के हपत के हरें रंग वाले शिशु व प्रौढ़ दोनो ही पौधे के तनों, फूलों एवं बनते हुए बीजों जैसे कोमल अंगों का रस चूसते हैं। चेपा की रोकथाम के लिए निम्न कीटनाशी दवाईयों का प्रयोग करें ।
रासायनिक नाम |
रासायनिक नाम |
रासायनिक नाम |
आक्सीडेमेटानमिथाइल 25 ईसी |
0.03: (1.5 एम एल/ली.) |
500-600 |
उकठा उगरा विल्ट/रोग:
बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें ।
यह रोग इरीसिफी पॉलीगॉन कवक के द्वारा फैलत रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों एवं शाखा सफेद चूर्ण की परत जम जाती है। अधिक पत्तियों पीली पड़कर सूख जाती हैं। इस रोग का प्रबंधन निम्न प्रकार से करें।
सर्दी के मौसम में जब तापमान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे गिर जाता है तो हवा में उपस्थित नमी ओस की छोटी-छोटी बूंदें बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदल जाती है और ये कण पौधों पर जम जाते हैं। इसे ही पाला या तुषार कहते हैं। पाला ज्यादातर दिसम्बर या जनवरी माह में पड़ता है । पाले से बचाव के निम्न उपाय अपनायें । पाला अधिकतर दिसम्बर-जनवरी माह में पड़ता है। इसलिये फसल की बुवाई में 10-20 नवंबर के बीच में करें
फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करनी चाहिए। धनिया दाना दबाने पर मध्यम कठोर तथा पत्तिया पीली पड़ने लगे , धनिया डोड़ी का रंग हरे से चमकीला भूरा/पीला होने पर तथा दानों में 18 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करना चाहिए । कटाई में देरी करने से दानों का रंग खराब हो जाता है । जिससे बाजार में उचित कीमत नही मिल पाती है । अच्छी गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने के लिए 50 प्रतिशत धनिया डोड़ी का हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए ।
धनिया का हरा-पीला कलर एवं सुगंध प्राप्त करने के लिए धनिया की कटाई के बाद छोटे-छोटे बण्डल बनाकर 1-2 दिन तक खेत में खुली धूप में सूखाना चाहिए । बण्डलों को 3-4 दिन तक छाया में सूखाएं या खेत मे सूखाने के लिए सीधे खड़े बण्डलों के ऊपर उल्टे बण्डल रख कर ढेरी बनावें । ढेरी को 4-5 दिन तक खेत में सूखने दें । सीधे-उल्टे बण्डलों की ढेरी बनाकर सूखाने से धनिया बीजों पर तेज धूप नही लगने के कारण वाष्पशील तेल उड़ता नहीं है ।
सिंचित फसल की वैज्ञानिक तकनीकि से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-7 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है ।
भण्डारण के समय धनिया बीज में 9-10 प्रतिशत नमी रहना चाहिए। धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए। बोरों को जमीन पर तथा दीवार से सटे हुए नही रखना चाहिए। जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए। बीज के 4-5 बोरों से ज्यादा एक के ऊपर नही रखना चाहिए। बीज के बोरों को ऊंचाई से नही फटकना चाहिए । बीज के बोरों न सीधे जमीन पर रखें और न ही दीवार पर सटाकर रखें। बोरियों मे भरकर रखा जा सकता है । बोरियों को ठण्डे किन्तु सूखे स्थानों पर भण्डारित करना चाहिए। भण्डारण में 6 माह बाद धनिया की सुगन्ध में कमी आने लगती है।
धनिया प्रसंस्करण द्वारा 97 प्रतिशत धनिया बीजों की पिसाई कर पावडर बनाया जाता है। जो मसाले के रूप में भोजन को स्वादिष्ट,सुगंधित एवं महकदार बनाने के उपयोग में आता है। शेष तीन प्रतिशत धनिया बीज, धनिया दाल एवं वाष्पशील तेल बनाने में उपयोग होता है । धनिया की ग्रेडिंग कर पूरा बीज,दाल एवं टूटा-फूटा, कीट-व्याधि ग्रसित बीज अलग किये जाते हैं । धनिया की ग्रेडिंग करने से 15-16 रू. प्रति किलो का खर्च आता है। ग्रेडेड धनिया बैग या बंद कंटेनर में रखा जाता है।
विवरण |
स्पेशिफिकेशन (मापदण्ड) |
स्पेशिफिकेश न (मापदण्ड) |
न्य बीज |
अधिकतम 2 प्रतिशत |
निर्यात के लिये निर्धारित मापदण्डों का अनुपालन करना आवश्यक है। |
कुल लागत |
कुल लागत |
18730 रु. /हे. |
18730 रु. /हे. |
धनिये की उपज |
धनिये की उपज |
15.00 क्विं / हे. |
15.00 क्विं / हे. |
कुल आमदनी |
कुल आमदनी |
60000 रू. |
60000 रू. |
शुद्ध आय |
शुद्ध आय |
कटाई उपयुक्त अवस्था पर करें एवं छाया में सुखाये। इस हेतु कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी को अपनाएं ।
स्त्रोत : किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग, मध्यप्रदेश सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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