काजू अपने देश के अंर्तराष्ट्रीय व्यापार हेतु महत्वपूर्ण फसल है। काजू के गुठली (करनेल) के निर्यात से काफी मात्रा में विदेशी विनियम की संभावना बनती है। काजू की सफल खेती मुख्यतः वहां की वातावरणीय परिस्थिति, अच्छे प्रभेद का चयन एवं अनुशंसित कृषि प्रणाली को अपनाने पर निर्भर करती है। केरल राज्य में लगभग 46,000 मेट्रिक टन का उत्पादन होता है जो देश के जुल उत्पादन का 16% है। यह उत्पादन 86,300 हेक्टेयर क्षेत्र में होता है, जिससे औसत उपज 537 किलोग्राम/प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
कीट अनुश्रवण का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में कीट एवं व्याधि के प्रारंभिक विकास का सर्वेक्षण करना है। कृषि प्रसार कर्मियों/कृषकों द्वारा 15 दिनों के अंतराल पर क्षेत्र का भ्रमण करना चाहिए एवं कीट तथा व्याधि के आरंभिक प्रकोप का पता लगाना चाहिए तथा अन्य कृषकों को भी इस कार्य हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। क्षेत्र परिभ्रमण के आधार पर पौधा संरक्षण उपाय तभी अपनाना चाहिए जब कीट/व्याधि द्वारा बर्बादी इ० टी० एल० पार कर जाता है।
फसल मौसम के प्रारंभ में सर्वप्रथम कीट एवं व्याधि से प्रभावित सर्वेक्षण पथ का चयन शीध्र भ्रमण सर्वेक्षण द्वारा करना चाहिए। इस चयनित पथ पर 5-10 दिनों के अंतराल में 5-10 किलोमीटर पर कीट एवं व्याधि प्रकोप का आकलन करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर बेहतरीन ढंग से 12 जगहों पर 5 पौधों में क्षति कारक कीट, व्याधि एवं प्रतिरक्षक की संख्या के आंकड़ों को अंकित कर रखें।
आर.आर. एस. के पठनों के आधार पर ग्राम स्तर के कृषकों को क्षेत्र भ्रमण हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। क्षेत्र-भ्रमण के क्रम में कृषक क्षतिकारक कीट, व्याधि एवं प्रतिरक्षकों की संख्या का अवकलन पर करते रहें। राज्य स्तर पर कृषि विभाग द्वारा विभिन्न माध्यमों का प्रयोग कर क्षेत्रीय भ्रमण हेतु कृषकों को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए तथा उन्हें कीट एवं व्याधि के प्रकोप के नियन्त्रण हेतु सुझाव देते रहना चाहिए।
आयेसा एक ऐसा उपगमन मार्ग है जिससे प्रसार कार्यकर्त्ता एवं कृषक विशेष क्षेत्र परिस्थिति में स्वस्थ फल-उत्पादन के लिए कीट, रक्षक, मृदा अवस्था, फसल स्वास्थ्य, मौसमी कारकों का उपयोग कर सकते हैं। क्षेत्रीय परिस्थिति में इस प्रकार के विश्लेषण से कीट प्रबन्धन प्रक्रिया में निर्णय लेने हेतु काफी सहायता मिल सकती है। आयेसा के आधारभूत अवयव निम्न प्रकार है –
प्रथम छिड़काव |
अक्तूबर-नवम्बर |
क्वीनालफॉस (25 EC) 2 एम.एल.+कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम-1 लीटर |
वनस्पतिक विकास अवस्था |
द्वितीय छिड़काव |
दिसम्बर-जनवरी |
पानी में इंडोसल्फान 35 इंसी 1.5 मिली० + मनकोजेब 2 ग्राम-1 लीटर पानी में |
पैनिकल निकलने के समय |
तृतीय छिड़काव |
जनवरी-फरवरी |
कार्बारिल (50% डब्ल्यू पी०) २ ग्राम 1 लीटर पानी में |
पुष्प अवस्था के पश्चात फल निकलने के प्रारंभ में। |
फसल चरण/कीट |
स० की० प्र० अवयव |
समेकित कीट प्रबन्धन प्रक्रिया
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बाई के पूर्व |
कृषीय प्रक्रिया |
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रूट-स्टॉक का चयन |
कृषीय प्रक्रिया |
डाली रहित मुख्य तना से40-45 दिन पुराने बिचड़ा का चयन करें। |
कलम का चयन |
कृषीय प्रक्रिया |
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पौधशाला |
यांत्रिक प्रक्रिया |
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लीफ स्पॉट |
रसायनिक प्रक्रिया
रसायनिक प्रक्रिया |
अगर रोग का आक्रमण प्रचंड हो तो बोर्डेक्स मिश्रण (1%) का छिड़काव करें। |
वनस्पति विकास अवस्था (सितम्बर-अक्तूबर) |
कृषीय प्रक्रिया |
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चाय-मच्छर |
रसायनिक प्रक्रिया |
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पुष्प अवस्था (नवम्बर-दिसम्बर) धड़छेदक |
यांत्रिक/रसायनिक प्रक्रिया |
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चाय मच्छर |
रसायनिक प्रक्रिया |
ऊपर दर्शाये गये पुष्प अवस्था के उपचार को माह नवम्बर-दिसम्बर में अपनायें। |
पुष्प अवस्था (जनवरी-फरवरी) |
कृषीय प्रक्रिया |
15 दिन के अन्तराल पर 200 लीटर पानी से प्रति पौधा सिंचाई करें, इस अवस्था में पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है। |
चाय मच्छर |
जैविक उपचार |
चाय मच्छर के नियंत्रण हेतु अंडा-परजीवी टेलीनोमस या कृमाटोगास्टर का प्रयोग धीरे-धीरे करें। |
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रसायनिक प्रक्रिया |
छोटे पौधे पर थियोडॉन 35 इसी 16 मिली०/8 लीटर पानी में मिलाकर या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी०-15 ग्राम+5 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बड़े पौधों पर इंडोसल्फान 35 ईसी० -16 मिली०+10 लीटर पानी में या कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी०-30 ग्राम+10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। |
धड़ छेदक |
रसायनिक प्रक्रिया |
पुष्प अवस्था में दर्शाए गये उपचार को माह नवम्बर-दिसम्बर माह में अपनायें। |
फल निर्माण एवं तोड़ने की अवस्था (मार्च-अप्रैल-मई) |
कृषीय प्रक्रिया |
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धड़ छेदक |
यांत्रिक/जैविक/रसायनिक प्रक्रिया |
अगर इनका आक्रमण प्रारंभ हो गया तो नवम्बर-दिसम्बर माह में दर्शाए गये पुष्प अवस्था के उपचार को अपनायें। |
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पूर्व की अवस्था में काजू के साथ अन्नानास की खेती काफी फायदेमंद होती है। 3- वर्षों 4 तक अंर्तफसल के रूप में टैपियोका, मूंगफली, दलहन इत्यादि सफलतापूर्वक ली जा सकती है। ध्यान रखना चाहिए कि मुख्य फसल अंर्तफसल दोनों में भली प्रकार से उर्वरक का प्रयोग किया जाए।
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करें |
न करें |
1 |
केवल अनुशंसित प्रभेद से ही फसलोत्पादन करें। |
जो प्रभेद किसी विशेष एग्रोकलाईमेटिक जॉन या कीट प्रकोप के लिए अनुशंसित नहीं है, उस प्रभेद का प्रयोग न करें। |
2 |
कलम (ग्राफ्ट ) का परिवहन सावधानीपूर्वक करें जिससे कलम पर आघात न आवें। |
कलम से अनावश्यक छेड़छाड़ न करें। |
3 |
मिट्टी परीक्षण के आधार पर अनुशंसित खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें। |
असंतुलित उर्वरक का उपयोग न करें। |
4 |
पौधों पर कीट/बिमारी/पर्यावरण आदि का समयानुसार लगातार ध्यान रखें। |
बिना पौधों के गहन अध्ययन के किसी प्रकार के छिड़काव का प्रयोग न करें। |
5 |
संक्रमण लो तीव्रता के अनुसार छिड़काव रणनीति तैयार कर्रे। छिड़काव पर्याक्रमण में करें। आधार पर विशेषतया विकास, पुष्प जल्दी, फल आने आदि अवस्था पर ही करें। |
प्रति वर्ष अधिक से अधिक समयानुसार 3 बार छिड़काव करें इससे ज्यादा छिड़काव न करें। |
6 |
कीटों में प्रतिरोधी की क्षमता उत्पन्न होने के पूर्व ही कीटनाशक का चक्रीय उपुओप्ग (रोटेशन) प्रारंभ कर दें। |
लगातार वर्षों में एक ही कीटनाशक का प्रयोग न करें। |
7 |
केवल अनुशंसित कीटनाशक का ही प्रयोग करें। |
अनुशंसित नहीं किए गये किसी प्रकार के कीटनाशक मिश्रण का प्रयोग न करें। |
8 |
केवल अनुशंसित खरपतवार नाशक का प्रयोग निर्धारित दर से ही करें। खरपतवार का नियंत्रण मजदूरों या यांत्रिक विधियों से करें। |
खरपतवार नाशक का उपयोग सिंचाई-जल या मिट्टी में मिलाकर, बालू या यूरिया के साथ मिलाकर न करें। |
9 |
पूर्ण विकसित नट जो जमीन पर गिर गये हैं उसे इकट्ठा कर लें |
अविकसित नट को जमा न करें क्योंकि इससे फसलोत्पादन की गुणवत्ता कम हो जाती है। |
क्रम. |
प्रतिरक्षक |
परपोषी (होस्ट) |
आक्रमण अवस्था |
1 |
फ्लावर बग (एंथो कोराइड्स ) |
थ्रीप्स, एफिड्स, माइट्स |
वयस्क, नवविकसित, अंडा छोटे लार्वा |
2 |
शील्ड बग |
बग्स, लेपीडॉप्टेरा |
अविकसित एवं वयस्क अवस्था |
3 |
लेडी बर्ड बीटिल |
एफिड, मिली बग, जैसिड, थ्रीप्स, लेपीडॉप्टेरा |
निम्फ तथा वयस्क |
4 |
ग्राउड बीटिल |
मुलायम शरीर के कीड़े |
लार्वा एवं वयस्क |
5 |
प्रेयींग मैनटीडस |
सभी प्रकार के कीड़े |
सभी अवस्था |
6 |
होभर फ्लाई |
एफिड्स |
सभी अवस्था |
7 |
चीटियाँ |
मुलायम शरीर के कीड़े |
अंडा एवं लार्वा अवस्था |
8 |
प्रीडेटरी |
लेपीडॉप्टेरा |
अंडा अवस्था |
9 |
ईयर विग्स |
लेपीडॉप्टेरा |
लार्वा अवस्था |
10 |
मकड़ी |
सभी प्रकार के कीड़े |
सबी अवस्था पर अधिकतर चलन अवस्था |
11 |
ब्रैकीनाइड्स |
लेपीडॉप्टेरा कोलियोप्टेरा |
अविकसित अवस्था |
12 |
डैमसेल [फ्लाई ड्रेगन फ्लाई |
सभी प्रकार के कीड़े |
नीम्फ, लार्वा, वयस्क |
13 |
ट्राईकोग्रामाटिड्स |
लेपीडॉप्टेरा कोलियोप्टेरा |
अंडा |
14 |
एन० पी० भी० |
लेपीडॉप्टेरा कोलियोप्टेरा |
लार्वा |
15 |
ग्रीन मुसकरडाईन कवक |
लेपीडॉप्टेरा कोलियोप्टेरा जैसिड |
लार्वा |
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क्र.सं. |
कीटनाशक का नाम |
कीटनाशक अधिनियम 1971 के अनुसार वर्गीकरण |
विषाक्तता त्रिभुज का रंग |
जोखिम के अनुसार डब्ल्यू एचओ वर्गीकरण |
प्रथम उपचार के उपाय |
विष प्रभाव के लक्षण |
विष प्रभाव के उपचार |
प्रतीक्षा अवधि (दिनों की सं.) |
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1 |
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3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
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कीटनाशक – आर्गनोफॉस्फोट कीटनाशक |
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1
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इंडोसल्फान
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अत्यंत विषैला
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पीला
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श्रेणी 2 माध्यम नुकसानदेह
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प्रभावित व्यक्ति प्रदूषित क्षेत्र सेअलग हटा दें।
(क) चमड़ी से सम्पर्क स्थिति में प्रदूषित कपड़े को जल्द उतार दें और साबुन तथा अधिक पानी से धो दें। (ख) आँख में प्रदुषण आँख को साफ एवं ठंडे पानी से अनुकों बार आंख को धोंएं। (ग) श्वास संसर्ग व्यक्ति को खुली हवा में रखे, गला और छाती के आस- पास के कपड़े ढीले कर दें। (घ) खाना संसर्ग – अगर व्यक्ति होश में है तो गले में ऊँगली डालकर उल्टी कराएं/ दूध, शराब एवं चर्बी वाले पदार्थ न दें। यदि व्यक्ति बेहोश है तो ध्यान दें कि उसकी श्वसन प्रणाली साफ एवं बिना किसी रुकावट के हो व्यक्ति के सिर थोड़ा नीचा रखकर चेहरे को एक किनारे घुमा दें सांस लेने में कष्ट हो तो मुख से या नाक सांस दें। चिकित्सीय सहायता पीड़ित को तुरंत कीटनाशक के डब्बे, लेबल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं। |
उल्टी, बैचैनी, मिचली बेहोशी, तेज धड़कन श्वास-क्रिया में ह्रास तथा मृत्यु |
- 2-4 लीटर नल के जल से पेट का प्रक्षालन करे 130 ग्राम सोडियम सल्फेट को एक कप पानी में मिलाकर कैथारसीस करावें। -बेचैनी एवं धड़कन को कम करने हेतु बार्बिच्युरेट्स की उपयुक्त मात्रा लगातार दें। -श्वसनक्रिया का नजदीक से ध्यान रखें। अगर आवश्यक हो तो कृत्रिम श्वास देने की व्यवस्था करें। -तेल, तेलिय पदार्थ, तेलीय दस्तकारक एडरनालीन का प्रयोग न करे। -उत्तेजकपदार्थ का प्रयोग न करें। -प्रत्येक चार घंटों पर इंट्राभेनस कैल्सियम ग्लूकोनेट (10%-10 मिली०-एम्पुल) दें।
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आर्गेनोफस्फेट कीटनाशक |
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2
3. |
क्वीनॉल फॉस
फौसफामीनडॉन |
अत्यधिक जहरीला
अत्यधिक जहरीला |
पीला
चमकीला लाल |
श्रेणी 2 सामान्य जोखिम भरा
श्रेणी 1 अत्यंत नुकसानदेह
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हल्का-भूख न लगना, सरदर्द चक्कर आना, कमजोरी, बेचैनी जुबान लड़खड़ाना एवं पलकें
कांपना, अल्पदृष्टि, देखने में कष्ट होना। सामान्य- मितली, लार बहना आंसू बहना, पेट में मरोड़, उल्टी पसीना आना, नाड़ी की गति धीमी मांसपेशियाँ कांपना, अल्पदृष्टि तीव्र- दस्त, पलको की कोई प्रतिक्रिया नहीं बिलकुल स्थिर, सांस लेने में तकलीफ फेफड़ा फूलना, रंग नीला पड़ना, अवरोध नियन्त्रण में कमी, मूर्च्छा, बेहोशी एवं हृदय अवरुद्ध होना। |
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-ओ०पी० के विष के अत्यधिक प्रभाव दिखने पर एट्रोपिन इंजेक्शन (वयस्कों के लिए 2-4 मि०ग्राम) बच्चों के लिए 0.5-10 मि०ग्राम) की अनुशंसा की जाती है। 5-10 मिनट के अंतराल पर उपरोक्त को दुहरावें जब तक कि दवा का असर न दिखें शीघ्रता शीघ्रता अति आवश्यक एंट्रोपीन इंजेक्शन 1-4 मि.ग्रा. 1 जब विष के लक्षण पुनः दिखाई दे तो 2 मि.ग्रा. दोबारा दें। ( 15-16 मिनट अंतराल) अत्यधिक लार बहना अच्छा संकेत और एट्रोपीन की आवश्यकता है। -हवा आने के रास्ते खुले रखें, चूसें, ऑक्सीजन प्रयोग करें, इंडोट्रैकियल टूयूब डालें । टैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। -मुंह में विष चले जाने की दशा में यदि यदि उल्टी न हो रही तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट का प्रक्षालन करें, , चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। एट्रोपिन के अलावा 2-पीएएम (2- पाईरिडीन एल्डोक्जाएम मेथीओडाटाड दें। 1 ग्रा. एवं शिशुओं के लिए 0.25 ग्रा. इंट्राविनस धीमीगति में 5 मिनट की अवधि में और निर्देश के अनुसार समय-समय पर इसका दुहराव करें एक से अधिक इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। मोरफिन, थियोफायलिन एमीनोफायलीन बारबीचुरेट्स देने से बचें, फेनेथायाजीन दें। -नीला पड़ गये रोगी को एट्रोपीन न दें। पहले कृत्रिम सांस दें फिर एट्रोपिन दें। |
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कार्बामेट्स |
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4 |
कार्बाराइल |
उच्च रूप से विषैला
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पीला |
श्रेणी 2 सामान्य नुकसान
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पुतलियों का संकुचन, लार निकलना, जोर से पसीना अवसाद, मांसपेशियों में तालमेल न होना मतली उल्टी, दस्त, पेडू में दर्द छाती में में कड़ापन |
1-4 एम० जी० एट्रोपीन इंजेक्शन जब विष के लक्षण दुबारा दिखें तो 2 फिर से दुहरावें एम जी (15-60 मिनट अंतराल पर) अधिक लार निकलना अच्छा चिन्ह, एट्रोपीन की और आवश्यकता है। हवा आनेवाले मार्ग खुलें रखें, प्रश्वास की क्रिया करें। , ऑक्सीजन प्रयोग करें इंट्रोटैकियल टूयूब डालें ट्रैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। यदि उल्टी न आती हो तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट प्रक्षालन करें, चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। -ऑक्सीजन - मॉरफीन यदि आवश्यक हो। -थियोफायलीन एवं एमीनोफायलीन तथा बार्बोच्युरेट्स से बचें। पीएएम एवं अन्यऑक्सीजाईम हानिकारक नहीं है, वास्तव में रूटीन इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं नीले पड़ गये रोगी को एट्रोपिन न दें। पहले कृत्रिम श्वास दे फिर इसके बाद एट्रोपिन दें। |
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कवकनाशक |
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कॉपर आक्सीक्लोराइड
मैनकोजेब
सेविडोल |
कम जहरीला |
नीला
हरा |
श्रेणी 3 कम जोखिम
सामान्य उपयोग में अल्प नुकसानदेह |
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सिरदर्द .तेज, धड़कन उल्टी, चेहरा
लाल होना। नाक, गला, आंख और चमड़ी में खुजली
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कोई विशिष्ट प्रतिकारक नहीं। चिकित्सा अनिवार्य रूप से लक्षण पर निर्भर है। |
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निपटान
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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