कीट अनुश्रवण का मुख्य उद्देश्य क्षतिकारक कीट एवं बीमारियों का क्षेत्रीय परिस्थिति में आरंभिक विकास एवं जैविक नियन्त्रण के प्रभाव को पह्चानित करना है।
सर्वेक्षण दल सात दिनों के अतंराल पर लगातार कीट एवं बीमारियों के पूर्व चयनित रास्ते पर सर्वेक्षण करें एवं जैविक नियंत्रण के प्रभाव के साथ-साथ कीट एवं बीमारियों के परिस्थिति का अध्ययन का प्रतिकूल परिस्थिति में पूर्व खतरे की सूचना दें। क्षतिकारक कीट व्याधि एवं जैविक नियंत्रण फौना के आक्रमण का अभिलेख सर्वेक्षण कर रखना चाहिए। लाही की संख्या की गणना ३४ पौधों (100 पत्तियों) पर, लीफ हॉपर की संख्या की गणना झाड़ने की वधी एवं प्रभावित पौधों की गणना पर करनी चाहिए। 10 किमी० के अंतराल पर सर्वेक्षण क्षेत्र का चयन अनियमित ढंग से करनी चाहिए। क्षतिकारक रोडेंट (मांद में रहने वाले जीव) के कार्योपयोगी सूचकांक 25 जीवित मांद प्रति हेक्टेयर रखा गया है।
क्षतिकारक कीट बीमारियों एवं जैविक नियन्त्रण प्राणी समूह की उपस्थिति का सर्वेक्षण कृषकों/प्रसार कर्मियों द्वारा सप्ताह में एक दिन आर्थिक प्रारंभिक स्तर के अध्ययन हेतु करना चाहिए। चूसने वाले कीड़े की संख्या की गणना एक पौधा के तीन पत्तियों (ऊपर मध्य नीचे) पर करनी चाहिए। कटवर्म एवं श्वेत ग्रब द्वारा क्षति की गणना/मूल्यांकन कुल पौधों की संख्या एवं प्रभावित पौधों की संख्या से की जा सकती है।
अगर मौसम सहानुभूति (बादल से भरा आकाश अधिक आर्द्रता या अंर्तवर्षा) हो जाता है तो बलाईट की उत्पत्ति का अनुश्रवण एक दिन के अंतराल पर की जानी चाहिए।
आयोग एवं इटीएल के साप्ताहिक अनुश्रवण के पश्चात कृषकों/प्रसार कर्मियों को गहन वचार के बाद निर्णय लेकर कृषकों को विशेष कीट नियंत्रण के संबंध में सुझाव देना चाहिए। आयेशा कार्य के लिए विस्तृत तरीके की पूर्ण जानकारी एनेक्सर २ आगे दी गयी है।
लाही एवं उजली मक्खी के संबंध में सुचना लेने हेतु प्रति हेक्टेयर 10 पीला-पात्र/चिपचिपा फन्दा लगायें। इसके अतिरिक्त स्थानीय उपलब्धता के आधार पर ग्रीस/भेसिलीन/रेड़ी तेल से पेंट किया गया खाली पालमोलाइन टीन भी लगाया जा सकता है।
१. व्याधि से प्रभावित पौधों को जमा कर बर्बाद कर दें ।
२. कीट संख्या को नियंत्रित करने हेतु कटवर्म एवं पत्तियों को बर्बाद करनेवाले कीट के लार्वा को एकत्रित कर प्रातःकाल या देर शाम के समय मार दें।
फसल को खर-पतवार से साफ रखना चाहिए। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 30-40 दिन बाद करनी चाहिए। अगर आवश्यक हो तो 15 दिनों के अंतराल पर पुनः निकाई करें।
अवस्था |
क्षतिकारक कीट |
कीट प्रबन्धन अपनाने हेतु प्रक्रिया |
बुआई के पूर्व |
मृदा जनित बीमारियाँ, कीट एवं सूत्रकृमि |
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई फसल चक्र अपनाना कार्बनिक उर्वरक उपयोग |
बुआई के समय |
विल्ट ब्लाईट (सड़न, जलन) |
-तुरंत बुआई के पूर्व बीज का ट्राईकोडर्मा विरीडी या ट्राईकोडरमा हरजेनियम से 4 ग्राम/प्रति किलोग्राम बीज का बीजोपचार |
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कार्बेन्डाजीम-2 ग्राम/प्रति किलोग्राम बीज से बीजोपचार |
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व्याधि रहित स्वस्थ बीज का प्रयोग करें |
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विल्ट सूत्रकृमि व्याधि एवं कीट |
150 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से नीम खल्ली का प्रयोग करें। |
वानस्पतिक विकास अवस्था |
विल्ट स्टेमगॉल लाही श्वेत मक्खी एवं पत्ती सड़न |
अधिक मात्रा में सिंचाई का प्रयोग न करें |
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अनुकूलतम नमी स्तर को बरकरार रखें |
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अनुशंसित पौधों की दुरी पर ही बुआई करें। |
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कार्बेन्डाजीम 0.1% की दर से छिड़काव करें। |
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क्राइजोपर्ला, सिरफीड्स, कोकिनेलिड्स को संरक्षित रखे। |
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सी० सेप्टेपुंकटाटा या बी० सुचुरालीस को प्रति हेक्टेयर 1000 की दर से मुक्त करें(15 दिनों के अन्तराल पर दो बार) |
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एन० एस० के० ई० के 5% घोल का छिड़काव करें। |
प्रजनन (पुष्प अवस्था ) |
पाउडरी मिल्ड्यू |
ड़िनोकैप 0.1% या नम सल्फर (10.25%) या फूल प्रारंभ होने के समय सल्फर धुल 20-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करें। |
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धड़गॉल, ब्लाईट ग्रेन मोल्ड लाही, श्वेत मक्खी रस चूसने वाले कीट |
कार्बेन्डाजीम 0.1% की दर से छिड़काव करें। |
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उपर्युक्त वानस्पतिक अवस्था उपचार |
भंडारण |
कीट एवं व्याधि |
गनी बैग में नमी के साथ दानों का भंडारीकरण करें। |
करें |
न करें |
खेत ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। खेत की मिट्टी में दो सप्ताह तक धुप लगनें दें। |
2-3 सप्ताह तक जुताई के पश्चात पाटा न दें या सिंचाई न करें (इस अंतराल में बहुवर्षीय खरपतवार, बल्ब या राईजोम नष्ट हो जाते हैं। |
केवल अनुशंसित कीट/व्याधि प्रतिरोधी एवं सहनशील प्रभेदों की बुआई करें |
किसी क्षेत्र विशेष या मौसम के लिए अनुशंसित नहीं किये गये प्रभेदों की बुआई न करें। |
अनुशंसित रसायन/जैविक उत्पादन से ही बीजोपचार करें |
बिना अनुशंसित रसायन/जैविक उत्पादन से ही बीजोपचार किए बीज की बुआई न करें। |
संक्रमित क्षेत्र में फसल-चक्र अपनावें |
भविष्य में रोग से संक्रमित क्षेत्र में सफल की बुआई न करें। |
चूँकि मधुमक्खियाँ परागण के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए शाम की बेला में जब इनकी सक्रियता कम हो जाती है तभी छिड़काव करें। |
जो मधुमक्खियों के लिए हानिकारक कीटनाशक हैं, उनका छिड़काव न करें |
विल्ट की संभावना को कम करने हेतु तीन वर्षों का फसल चक्र अपनावें |
एक ही खेत में धनिया का तीन वर्षों से ज्यादा अवधि तक लगातार खेती न करें। |
क्षति कारक कीट एवं व्याधि का पता लगाने हेतु कृषि क्षेत्र का लगातार सर्वेक्षण करते रहें। |
कैलेंडर के आधार पर कीटनाशक का छिड़काव न करें |
खेत से काटकर लाये गए फसलों का सीमेंट कंक्रीट के फर्श या तारपोलीन से ढके खलिहान में ही प्रसंस्करण का दाने की सफाई कर दाने की सफाई करें। |
काटे गए फसल तथा साफ किये गये दानों को सीधे जमीन पर न रखें। |
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प्रभेद |
क्षेत्रीय उपयुक्तता |
प्रतिरोधता/सहनशीलता |
आर सी आर-41 |
राजस्थान |
स्टेमगॉल प्रतिरोधी एवं पाउडरी मिल्ड्यू तथा विल्ट के लिए सहनशील |
आर सी आर-435 |
राजस्थान |
स्टेमगॉल एवं विल्ट प्रतिरोधी |
आर सी आर-446 |
राजस्थान |
स्टेमगॉल एवं विल्ट प्रतिरोधी |
सी ओ -३ |
तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश |
पाउडरी मिल्ड्यू, विल्ट, ग्रेन मोल्ड के प्रति नियंत्रित सहनशील |
सी एस – 287 |
तमिलनाडु |
पाउडरी मिल्ड्यू, विल्ट, ग्रेन मोल्ड के प्रति नियंत्रित सहनशील |
गुजरात, धनिया-1 |
गुजरात |
पाउडरी मिल्ड्यू, विल्ट के प्रति |
गुजरात, धनिया-2 |
गुजरात |
पाउडरी मिल्ड्यू, विल्ट के प्रति |
राजेन्द्र, स्वाथी |
उत्तरी बिहार के समतली क्षेत्र |
विल्ट, स्टेम गॉल लाही एवं विभिल के लिए नियंत्रित सहनशील |
साधना (सी एस-4 ) |
आंध्रप्रदेश |
श्वेत मक्खी, विमाइट्स, लाही,विल्ट पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति सहनशील |
स्वाथी (सी एस-6 ) |
आंध्रप्रदेश |
लाही श्वेत मक्खी, विल्ट एवं ग्रेन मोल्ड सहनशील |
सिन्धु (सी एस-2 ) |
आंध्रप्रदेश |
लाही, मिल्ड्यू, विल्ट प्रतिरोधी, स्टेम गॉल, सूत्र कृमि |
यूडी-20 आरसीआर-20 |
गुजरात |
विल्ट स्टेम गॉल, सूत्र कृमि प्रतिरोधी |
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स्टेमगॉल एवं विल्ट सूत्र कृमि प्रतिरोधी |
करन (चूड़ी-41) |
गुजरात |
स्टेमगॉल प्रतिरोधी एवं विल्ट लाही, विमिल हेतु नियंत्रित प्रतिरोधी |
पन्त, हरीतिमा |
उत्तरांचल एवं उत्तरप्रदेश |
स्टेमगॉल प्रतिरोधी एवं विल्ट लाही, विमिल हेतु नियंत्रित प्रतिरोधी |
आयेसा एक क्रिया पद्धति है जिससे पौधों के स्वास्थ्य, पौधों की क्षति-पूर्ति क्षमता, मौसमी कारक, कीट एवं प्रतिरक्षक की संख्या में बदलाव एवं अंतरसंबंध का अवलोकन अध्ययन किया जाता है। यह कार्य ग्राम स्तर पर एक या अधिक प्रशिक्षित कृषकों के दल द्वारा किया जा सकता है। प्रत्येक फसल विकास अवस्था के अध्ययन हेतु आयेसा द्वारा लिए गये अवलोकनों से सहायता मिल सकती है। आयेसा का तकनीक समेकित कीट प्रबन्धन में कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
क्षेत्र अवलोकन
१. खेत के मेढ़ से 5’ की दुरी पर खेत में प्रवेश करें अनियमित ढंग से एक वर्गमीटर के क्षेत्र को चयनित करें।
२. निम्नक्रम में अवलोकनों को नोट कर रखें
अवलोकन
एक कागज पर पहले एक पौधा का चित्राकंन करें, पुनः उसके वास्तविक डालियों की संख्या पत्तियों की संख्या इत्यादि को रेखांकित करें तब कीट को पौधे के बाएं किनारे तथा प्रतिरक्षक को दाहिने किनारे दर्शायें। फिर मिट्टी अवस्था, खरपतवार की संख्या, रोडेन्ट्स बर्बादी आदि को संकेतिक करें। फिर सभी आलेखनों पर प्राकृतिक रंग जैसे स्वस्थ पौधों को हरा रंग, व्याधि से प्रभावित पौधे को पीला रंग से भरें। कीट एवं प्रतिरक्षक को आलेखन करते समय ध्यान देना चाहिए कि अवलोकन करते समय जहाँ वे पाए गये थे वहीं पर चित्रांकित करें। रेखाकृति के साठ कीट एवं प्रतिरक्षक का नाम उनकी संख्या आदि देना चाहिए। अगर धुप का दिन है तो पौधों के ऊपर सूर्य को रेखांकित करते हुए मौसमी कारकों को भी कागज पर दर्शाना चाहिए। अगर आकाश में बादल है तो सूर्य के जगह बादल को रेखांकित किया जा सकता है। अगर आशिंक धुप है तो चित्रांकन में सूर्य का आधा भाग बादल से ढंका रहना चाहिए। समूह, आयेसा, ईटीएल कीट प्रतिरक्षक अनुपात पर बदलाव के लिए अपनी रणनीति को विकसित कर सकता है।
समूह-विर्मश एवं निर्णय का निर्माण:
पूर्व के चार्ट एवं वर्तमान चार्ट के अवलोकनों के आधार पर समूह के सदस्यों द्वारा कीट एवं प्रतिरक्षक की संख्या, फसल अवस्था आदि के बदलाव पर प्रश्न उठाकर विमर्श करना चाहिए। समूह, आयेसा, ईटीएल कीट प्रतिरक्षक अनुपात पर बदलाव के लिए अपनी रणनीति को विकसित कर सकता है।
निर्णय निर्माण के लिए रणनीति
कीट-प्रतिरक्षक अनुपात पर पहुँचने के लिए कुछ प्रतिरक्षा जैसे- लेडी बीटल क्राईजोपरला, सिरफीड्स आदि उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
बाह्य भ्रमण के दौरान समेकित कीट प्रबन्धन कीट प्रबन्धन के प्रत्यक्षण, कृषकों का क्षेत्रीय प्रसिक्षण के आधार पर कृषक कृष्य क्षेत्र में आयेसा का प्रयोग कर सकते हैं। जहाँ पर प्रशिक्षित कृषक उपलब्ध है, उनके अनुभव का पूरा लाभ अतिरिक्त कृषकों को दिया जा सकता है इस प्रकार कृषकों का एक समूह किसी विशेष कीट के संबंध में साप्ताहिक आयेसा का उपर्युक्त निर्णय ले सकता है। कृषक से कृषक प्रशिक्षण की प्रक्रिया निश्चित तौर पर स्थायी हो सकती है और ज्यादा से ज्यादा कृषक समेकित कीट प्रबन्धन में पारंगत हो सकते हैं।
राज्य के प्रसार कर्मी ग्राम स्तर के भ्रमण के दौरान कृषकों को संगठित का सकते हैं, तथा आयेसा को कार्यान्वित कर सकते हैं एवं विभिन्न कारकों जैसे- कीट संखया, प्रतिरक्षक संख्या एवं कीट संख्या में ह्रास करने में भूमिका को समीक्षात्मक ढंग से विश्लेषित कर सकते हैं, साथ ही कीट/प्रतिरक्षक की संख्या पर मौसम एवं मृदा अवस्था का क्या प्रभाव पड़ता है? इसे भी विश्लेषित कर सकते है। इस प्रकार की प्रकिया प्रसार कर्मियों द्वारा अपने ग्राम स्तर के प्रत्येक भ्रमण के क्रम में अपनाया जा सकता है तथा कृषकों को आयेसा को अपने क्षेत्र में अपनाते हेतु संगठित कर सकते हैं।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
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