विदेश में अपने कारोबार का विस्तार एवं विकास करने वाले उद्यमी को उस देश की मूलभूत कानूनी संरचना को भी अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। उसके लिए यह जरूरी है कि ऐसे कानूनों और विनियमों का पालन करें ताकि उसके संगठन का कार्यकुशल एवं लाभकारी कार्यकरण सुनिश्चित हो सके और वह विदेश में आने वाली चुनौतियों को सामना कर सके।
पूंजी अंतप्रवाहों को प्रोत्साहित करने के लिए और विदेशों में सभी निवेशों के लिए सुरक्षित कारोबारी माहौल मुहैया कराने के लिए अनेक देशों ने द्वितीय निवेश संधियां या करार किए हैं। द्वितीय निवेश संवर्धन एक संरक्षण करार (बिपा) ऐसी द्विपक्षीय संधि है जिसे दो देशों (या राज्यों) के बीच दोनों में से किसी भी देश (या राज्य) में आधारित कम्पनियों द्वारा एक दूसरे के राज्य क्षेत्र में निवेशों के पारस्परिक प्रोत्साहन, संवर्धन और संरक्षण के लिए किए गए करार के रूप में पारिभाषित किया जाता है। कुल मिलाकर इन द्विपक्षीय करारों में बुनियादी घटक हैं और ये संबंधित देशों में निवेशकों को अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए कानूनी आधार प्रदान करते हैं। भारत सरकार ने अब तक 58 देशों के साथ बिपा पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें से 49 बिपा प्रवृत्त हो चुके हैं और शेष करार प्रवर्तन की प्रक्रिया में हैं।
भारत में, समस्त विदेशी मुद्रा लेन-देनों तथा विदेशों में निवेश को विनियमित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कानून है विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999। यह निवेशक अनुकूल कानून है जिसका उद्देश्य विदेश व्यापार एवं भुगतानों की सुविधा देने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास एवं अनुरक्षण को बढ़ावा देना भी है। अधिनियम के तहत, भारतीय रिजर्व बैंक को केन्द्र सरकार के साथ परामर्श द्वारा विदेशों में निवेशों से संबंधित विभिन्न नियम, विनियम और मापदण्ड तैयार करने के लिए प्राधिकृत किया गया है।
विश्व भर में अर्थव्यवस्थाओं के खुलने से, प्रत्येक देश उदारीकृत निवेश नीतियों के ज़रिए विदेशी पूंजी आकृष्ट करने की कोशिश में लगा है। ऐसी स्थिति में सभी निवेशक निवेशों के लिए ऐसे गन्तव्य ढूंढ रहे है जो उनके निवेशों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित, अनुकूल और लाभकर माहौल मुहैया कराते हों। इसलिए अनेक देशों ने द्विपक्षीय निवेश संधियां या करार निष्पादित किए हैं जो न सिर्फ उनके अपने देशों में पूंजीप्रवाहों को प्रोत्साहित करते हैं बल्कि विदेशों में उनके अपने निदेशकों के लिए भी सुरक्षित कारोबारी माहौल प्रदान करते हैं।
द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और संरक्षण करार (बिपा) एक ऐसी द्विपक्षीय संधि है जिसे दो देशों (राज्यों) के बीच ऐसे करार के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी भी एक देश (या राज्य) में आधारित कम्पनियों द्वारा एक दूसरे के राज्य क्षेत्र में किए गए निवेश के पारस्परिक प्रोत्साहन, सवंर्धन और संरक्षण के लिए किया गया है। इन करारों का उद्देश्य ऐसी स्थितियां पैदा करना है जो एक देश के लिए निवेशकों द्वारा दूसरे देश के राज्य क्षेत्र में अधिक निवेशों को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल हों। ऐसे करार दोनों देशों के लिए लाभकर होते हैं क्योंकि वे उनकी व्यापारिक पहल को प्रेरित करते हैं और इस तरह उनकी समृद्धि बढ़ती है।
सामान्यतया इन द्विपक्षीय करारों में मोटे तौर पर मानक धारक होते हैं और वे संबंधित देशों में निवेशकों के अधिकारों को प्रवर्तित करने का कानूनी आधार प्रदान करते है। वे निवेशकों को यह आश्वासन देते हैं, कि उनके विदेशी निवेशों को उचित एवं साम्यपूर्ण व्यवहार, पूर्ण एवं निरन्तर कानूनी सुरक्षा एवं अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया के ज़रिए विवाद समाधान प्रदान किया जाएगा।
भारत की विदेश निवेश नीति के उदारीकरण के चलते, सरकार ने अनेक देशों के साथ वार्ताएं की और उनके साथ द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और संरक्षण करार (बिपा) निष्पादित किए। ऐसा भारत में विदेशी निवेशों को निश्चित निवेश माहौल मुहैया कराने तथा विदेशों में भारतीय निवेशों के सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से किया गया। भारत सरकार ने अब तक 62 देशों के साथ बिपा पर हस्ताक्षर किए हैं जिनमें से 50 बिपा प्रवृत्त हो चुके हैं और शेष करारों को प्रवृत्त किए जाने की कार्रवाई चल रही है। इसके अलावा, अन्य कई देशों के साथ करारों को अंतिम रूप दिया गया है और/अथवा उनके साथ बातचीत की जा रही है।
भारत द्वारा हस्ताक्षरित द्विपक्षीय निवेश संवर्धन और संरक्षण करारों (बिपा) की मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार है:-
ये करार प्रत्येक संविदाकारी पक्ष के निवेशकों द्वारा दूसरे संविदाकारी पक्ष के राज्य-क्षेत्र में उसके कानूनों और विनियमों के अनुसार किए गए सभी निवेशों पर लागू होंगे।
करार के अंतर्गत निवेश को प्रत्येक प्रकार की परिसंपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो उस संविदाकारी पक्ष जिसके राज्य क्षेत्र में निवेश किया गया है के राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार स्थापित अथवा अधिग्रहीत की गई हो, जिसमें ऐसे निवेश के स्वरूप में परिवर्तन किया जाना भी शामिल है। इसमें विशेष रूप से निम्नलिखित शामिल होंगे
चल और अचल संपत्ति तथा अन्य अधिकार जैसे बंधक-पत्र, ग्रहणाधिकार, अथवा गिरवी रखना;
किसी कंपनी में शेयर तथा स्टाफ और डिबेंचर व कंपनी में भागीदारी के अन्य समान रूप;
वित्तीय मूल्य वाली संविदा के अंतर्गत धन अथवा किसी कार्य-निष्पादन के अधिकार;
संबंधित संविदाकरी पक्ष के संगत कानूनों के अनुसार बौद्धिक संपत्ति अधिकार जिनमें सद्भावना, तकनीकी प्रक्रियाएं एवं जानकारी शामिल है;
कानून द्वारा अथवा संविदा के तहत दी गई व्यापारिक रियायतें जिसमें तेल और प्राकृतिक संसाधनों की खोज करने और उन्हें निकालने के लिए रियायतें शामिल हैं।
एक संविदाकारी पक्ष के निवेशों और प्रतिफल को दूसरे संविदाकारी पक्ष के राज्य-क्षेत्र में सदैव उचित एवं साम्यपूर्ण व्यवहार प्रदान किया जाएगा।
करार यह गारंटी देते हैं कि संविदाकारी पक्षों के निवेशों को कम से कम ऐसे व्यवहार के समतुल्य व्यवहार प्रदान किया जाएगा जो मेज़बान देश किसी तीसरे देश के राष्ट्रिकों और कम्पनियों द्वारा किए गए निवेशों को प्रदान करता है।
प्रत्येक संविदाकारी पक्ष अपने राज्य-क्षेत्र में निवेश से संबंधित दूसरे संविदाकारी पक्ष के निवेशक की समस्त निधियों का मुक्त अन्तरण, करने की अनुमति देगा जो बिना अनुचित देरी किए और भेदभव रहित आधार पर किया जाएगा। ऐसी निधियों में निम्नलिखित शामिल होंगे: -
निवेशों को बनाए रखने अथवा उनकी वृद्धि के लिए प्रयोग में लाई गई पूंजी और अतिरिक्त पूंजी की राशि;
निवल प्रचालनात्मक लाभ जिनमें उनकी शेयरधारिता के अनुपात में लाभांश और ब्याज शामिल है;
निवेश से संबंधित किसी ऋण की वापसी अदायगियां, जिनमें उन पर ब्याज भी शामिल हैं;
निवेश से संबंधित रॉयल्टियों और सेवा शुल्कों का भुगतान;
उनके शेयरों की बिक्री से हुई आय;
बिक्री अथवा आंशिक बिक्री अथवा परिसमापन की स्थिति में निवेशकों द्वारा प्राप्त आय;
एक संविदाकारी पक्ष के नागरिकों/राष्ट्रिकों की आय जो निवेश के संबंध में दूसरे संविदाकारी पक्ष के भू-भाग में कार्य करते हैं।
ऐसे सभी अन्तरण बाज़ार में अन्तरण की तारीख को प्रचलित चालू विनियम दर पर मूल निवेश की मुद्रा में अनुमेय होंगे।
इस करार में निवेशक और संविदाकारी पक्ष के बीच तथा दोनों संविदाकारी पक्षों के बीच विवाद के समाधान हेतु विस्तृत उपबंध भी है। पूर्वोक्त मामले में, देशीय कानूनों या अंतरराष्ट्रीय विवाचन के तहत विवाद निपटान के लिए स्वतंत्रता दी गई है। उपरोक्त मामले में, यदि विवाद करार की व्याख्या का अनुप्रयोग से संबंधित है तो इसे यथा संभव बातचीत से निपटाया जाना होगा। यदि यह विवाद उभरने के छ: माह के भीतर नहीं यिका जाता तो इसे पंचाट न्यायाधिकरण को प्रस्तुत किया जाएगा। न्यायाधिकरण का निर्णय दोनों संविदाकारी पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
करार आरंभ में दस वर्ष की अवधि के लिए वैघ रहेगा और उसके बाद अनिश्चित काल के लिए जारी रहेगा जब तक कि कोई एक संविदाकारी पक्ष करार समाप्ति के अपने इरादे का लिखित नोटिस नहीं दे देता। यह करार ऐसे लिखित नोटिस की प्राप्ति की तारीख से एक वर्ष बाद समाप्त हो जाएगा। करार से पूर्व किए गए निवेशों पर आगामी 15 वर्ष की अवधि के लिए करार के उपबंध लागू होते रहेंगे।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 द्वारा विनियमित होते हैं। इसने विदेशी मुद्रा विनियम अधिनियम (फेरा) 1973 को निरस्त कर दिया है। विदेशी व्यापार और भुगतान सुसाध्य बनाने और विदेशी मुद्रा बाजार के सुव्यवस्थिति विकास के उन्नयन व रखरखाव हेतु फेमा अधिनियमित किया गया है। यह भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर स्वामित्वाधीन अथवा नियंत्रित सभी शाखाओं, कार्यालयों और एजेंसियों पर लागू होता है। इसमें अधिनियम के अनुसार, ‘विदेशी मुद्रा’ शब्द का अर्थ है " विदेशी मुद्रा और इसमें:- (i) किसी विदेशी मुद्रा में देय जमाराशियां उधार और बकाया; (ii) भारतीय मुद्रा में अभिव्यक्त अथवा आहरित परन्तु किसी विदेशी मुद्रा में देय ड्राफ्ट, यात्री चैक, साख पत्र अथवा मुद्रा की हुंडिया; (iii) भारत से बाहर बैंकों, संस्थाओं अथवा व्यक्तियों द्वारा आहरित परंतु भारतीय मुद्रा में देय ड्राफ्ट, यात्री चैक, साख पत्र अथवा मुद्रा की हुंडियां" शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को फेमा के विभिन्न उपबंधों के संचालन का कार्य सौंपा गया है। इस अधिनियम की अनेक धाराओं से संबंधित नियम, विनियम और मानदंड केंद्र सरकार के परामर्श से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार इस अधिनियम के किसी उल्लंघन से संबंधित जांच करने के लिए न्याय निर्णायक प्राधिकरी नियुक्त कर सकता है। न्याय निर्णयन प्राधिकारियों के आदेश के विरुद्ध अपीलें सुनने के लिए एक या अधिक विशेष निदेशक (अपील) नियुक्त करने का प्रावधान भी है। न्याय निर्णयन प्राधिकारियों और के आदेशों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए विदेशी मुद्रा अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना भी की जा सकती है।
इस अधिनियम के मुख्य उपबंध ये हैं :-
यह किसी अधिकृत व्यक्ति को ही विदेशी मुद्रा अथवा विदेशी प्रतिभूति में व्यापार करने की अनुमति देता है। इस अधिनियम के तहत ऐसे अधिकृत व्यक्ति का अर्थ है भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उस समय के लिए अधिकृत किया गया अधिकृत विक्रेता, मुद्रा परिवर्तक, अपतरीय बैंकिंग यूनिट अथवा अन्य व्यक्ति। यह अधिनियम किसी ऐसे व्यक्ति को निषिद्ध करता है जो:-
किसी व्यक्ति से, जो अधिकृत व्यक्ति नहीं है सौदा करता है अथवा कोई विदेशी मुद्रा अथवा विदेशी प्रतिभूति अंतरित करता हो;
किसी तरीके से भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति कोई भुगतान करता है अथवा उधार देता है;
किसी अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से अन्यथा किसी तरीके से भारत से बाहर रह रहे किसी व्यक्ति के आदेश द्वारा अथवा की ओर से कोई भुगतान प्राप्त करता है;
भारत में किसी क्षतिपूर्ति अथवा अर्जन या सृजन के रूप में कोई वित्तीय लेनदेन अथवा किसी व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर कोई परिसंपत्ति अर्जित करने के अधिकार का अंतरण करता है;
भारत के निवासी है जो भारत से बाहर स्थित किसी विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति अथवा कोई अचल संपत्ति अर्जित, धारित, अपनाता, रखता अथवा अंतरित करता है।
यह अधिनियम विदेशी मुद्रा लेन देनों की दो प्रकारों नामत: ‘पूंजी खाता लेनदेन’ और ‘चालू खाता लेनदेन’ का विनियमन करता है।
इस अधिनियम के अनुसार ‘पूंजी खाता’ लेन देन का अर्थ ऐसा लेन देन है जो भारत में रहने वाले व्यक्तियों के भारत से बाहर परिसंपत्तियों अथवा आकस्मिक देनदेरियों सहित देनदारियों अथवा भारत से बाहर रहने वाले व्यक्तियों की भारत में परिसंपत्तियों अथवा देनदारियों को संभालता है और इसमें इस अधिनियम में उल्लिखित निम्नलिखित लेन देन शामिल हैं:-
भारतीय निवासी किसी व्यक्ति द्वारा किसी विदेशी प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम;
भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किसी प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम;
भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति के भारत में किसी शाखा, कार्यालय अथवा एजेंसी द्वारा किसी प्रतिभूति अथवा विदेशी प्रतिभूति का अंतरण या निर्गम;
किसी भी रूप अथवा किसी भी नाम में रुपए में सुधार लेना अथवा उधार देना;
भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति और भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति के बीच किसी भी रूप अथवा किसी भी नाम में रुपए में उधार लेना अथवा उधार देना;
भारत में रहने वाले व्यक्तियों और भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों के बीच जमा राशियां;
करेंसी अथवा करेंसी नोटों का निर्यात, आयात अथवा धारण;
भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा पांच वर्ष से अनधिक भारत से बाहर किसी पट्टे के अलावा अथवा संपत्ति का अंतरण;
भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा पांच वर्ष से अनधिक किसी पट्टे के अलावा भारत में अचल संपत्ति का अर्जन अथवा अंतरण;
किसी अन्य ऋण, बाध्यता या अन्य किसी व्यय की गई देयता के संदर्भ में गारंटी या प्रतिभूति देना
(i) भारत में रहने वाले किसी व्यक्ति और भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा धारित; अथवा
(ii) भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त किसी ऋण, दायित्व अथवा देनदारी के संबंध में गारंटी या जमानत देना।
यह ‘चालू खाता लेनदेन’ शब्द को भी पूंजी खाता लेनदेन के अलावा लेनदेन के रूप में परिभाषित करता है और पूर्ववर्ती सामान्यता के पूर्वाग्रह के बगैर ऐसे लेनदेन में ये शामिल हैं:- (i) विदेश व्यापार, अन्य चालू व्यवसाय, सेवाओं और अल्पावधि बैंकिंग अथवा व्यवसाय के साधारण समय में ऋण सुविधाओं के संबंध में देय भुगतान; (ii) ऋणों पर ब्याज के रूप में और निवेशों से निवल आय के रूप में देय भुगतान; (iii) विदेश में रहने वाले माता-पिता, पति अथवा पत्नी और बच्चों के जीवन यापन खर्चों के प्रेषण; और (iv) माता-पिता, पति अथवा पत्नी और बच्चों के विदेश यात्रा, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल संबंधी खर्च।
इस अधिनियम ने भारतीय रिजर्व बैंक को अधिकार दिया है कि वह केंद्र सरकार के परामर्श से अनुमेय पूंजी खाता लेनदेन और सीमाएं जहां तक ऐसे लेन देनों के विदेशी मुद्रा आहरित की जा सकती है, निर्दिष्ट करे। परन्तु यह ऋणों के परिशोधन के कारण अथवा व्यवसाय के सामान्य काल में प्रत्यक्ष निवेशों के मूल्यहास हेतु विदेशी मुद्रा के आहरण संबंधी कोई प्रतिबंध नहीं लगाएगा।
कोई व्यक्ति विदेशी मुद्रा बिक्री अथवा आहरित कर सकता है यदि ऐसी बिक्री या आहरण चालू खाता लेन देन है। इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार जनहित में और रिजर्व बैंक के परामर्श से चालू खाता लेन देनों के लिए यथा निर्धारित ऐसे न्यायोचित प्रतिबंध लगा सकता है।
सामान का प्रत्येक निर्यातक :-
(i) रिजर्व बैंक अथवा ऐसे ही अन्य प्राधिकारी को ऐसे रूप और ऐसे तरीके से घोषणा प्रस्तुत करेगा जिसे सच्चे और सामान के सही विवरणों के साथ विनिर्दिष्ट किया जा सकता है जिसमें पूर्ण निर्यात मूल्य प्रतिबिंबित करते हुए राशि अथवा निर्यात के समय सामान का पूर्ण निर्यात मूल्य निश्चय नहीं किया जाता है तो वह मूल्य जो निर्यातक विद्यमान बाजार के हालात के मद्देनजर आदत से बाहर बाजार के सामान की बिक्री से प्राप्त होने की प्रत्याशा रखता है; (ii) रिजर्व बैंक को ऐसी अन्य सूचना प्रस्तुत करेगा जो ऐसे निर्यातक द्वारा निर्यात प्राप्तियों की उगाही सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ इसके द्वारा अपेक्षित हो सकती है।
रिजर्व बैंक किसी भी समय:-
(i) रिजर्व बैंक को प्रस्तुत किसी विवरण, सूचना अथवा ब्यौरे की यथातथ्यता के सस्थापन; (ii) कोई सूचना अथवा ब्यौरे प्राप्त करना जो ऐसा अधिकृत व्यक्ति लोग पर प्रस्तुत करने में असमर्थ रह हो; (iii) इस अधिनियम के उपबंधों अथवा उसके अंतर्गत बने किन्ही नियमों, विनियमों, निदेशों अथवा आदेशों के अंतर्गत अनुपालन कराने के प्रयोजनार्थ अपनी तरफ से किसी अधिकृत व्यक्ति के व्यवसाय को आवश्यक अथवा सामयिक प्रतीत होने पर निरीक्षण करने के लिए किसी अधिकारी को विशेष रूप से अधिकृत कर सकता है।
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध का उल्लंधन करता है अथवा इस अधिनियम के अंतर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किसी नियम, विनियम, अधिसूचना, निदेश अथवा आदेश का उल्लंघन करता है अथवा किसी शर्त का उल्लंघन करता है जिसके अध्यधीन रिजर्व बैंक द्वारा अनुज्ञाप्ति जारी की गई है, न्याय निर्णयन में उस पर दंड लगाया जाएगा।
स्रोत: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई),विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999,
अंतिम बार संशोधित : 4/18/2023
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