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साइबर स्टॉकिंग

साइबर स्टॉकिंग से क्या तात्पर्य है?

ऑनलाइन माध्यम से की गयी छेड़खानी को साइबर स्टॉकिंग कहा जाता है। जब ऑनलाइन माध्यम का प्रयोग करके किसी को परेशान करने के लिये ई-मेल या मैसेज भेजा जाता है तो उसे साइबर स्टॉकिंग के नाम से अभिहित किया जाता है। इस समस्या से भारत जैसे विकासशील देश ही नहीं बल्कि अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे विकसित देश भी पीड़ित हैं।

इस समस्या के पीड़ितों में महिलाओं एवं बच्चों का प्रतिशत लगभग तीन-चौथाई (75%) है जबकि 25% पीड़ित पुरुष हैं। इस उदाहरण से साबित होता है कि साइबर स्टॉकिंग की समस्या से महिलाओं एवं बच्चों के साथ पुरुषों को भी दो-चार होना पड़ता है।

साइबर स्टॉकिंग से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • भारत में साइबर स्टॉकिंग का पहला मामला वर्ष 2001 में दर्ज किया गया। इस मामले में दिल्ली निवासी मनीष कथूरिया को एक महिला की अश्लील फोटो एवं फोन नंबर वेबसाइट पर डालने के जुर्म में भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत गिरफ्तार किया गया।
  • साइबर स्टॉकिंग की समस्या के सबसे आसान शिकार बच्चों एवं महिलाओं को बनना पड़ता है क्योंकि यह वर्ग सर्वाधिक सुभेद्य (वल्नरेबल) है।
  • एक आँकड़े के अनुसार साइबर स्टॉकिंग की समस्या से पीड़ित बच्चों की संख्या भारत में सर्वाधिक है। इस प्रकार के अपराधों से पीड़ित बच्चों की संख्या का 32% भारत में है जबकि अमेरिका एवं ब्रिटेन में ऐसे बच्चों का प्रतिशत क्रमशः 15 एवं 11 है।
  • दिल्ली निवासी एक महिला ने एक फोटो पोस्ट की और उसके बारे में लिखा कि फ़ोटो में दिखाई देने वाले युवक ने उसके साथ अभद्रता की। जब उस युवक को पकड़ा गया तो मामला झूठा निकला। इस उदाहरण से साबित होता है कि साइबर स्टॉकिंग से पुरुष भी पीड़ित होते हैं।

समस्या से निपटने के लिये भारतीय दंड संहिता एवं सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधान

  • साइबर स्टॉकिंग को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 सी एवं 354डी के तहत अपराध घोषित किया गया है।
  • अधिनियम 2000 के तहत भी अपराध घोषित किया गया है।
  • ऐसे किसी भी अपराध की सूचना सीबीआई को या निकटतम साइबर क्राइम सेल को दी जा सकती है।
  • पीड़ित द्वारा मेल प्रोवाइडर (जिस मेल प्रोवाइडर से मेल आ रहा हो) को मेल भेजकर इसके बारे में सूचना दी जा सकती है।

भारत में साइबर स्टॉकिंग

उसकी वजह है जागरूक ना होना  जबसे डिजिटल पेमेंट service आई है जबसे फोन no. सबसे जयादा शेयर होने लगे है ।  और कुछ ऐसे लोग भी हैं जब उन्हें किसी लड़की का नंबर मिलता है तो वह कोशिश करते हैं उन्हें परेशान करने की उंन से दोस्ती करने की और अगर उनका ऑफर रिजेक्ट हो जाता है तो वह मन में बदले की भावना रखकर उसका नंबर किसी और को भी दे देते हैं आज के टाइम में इंटरनेट पर किसी का नंबर लेना आप Facebook के माध्यम से मित्रता करके या कैसे भी बहुत प्रचलन में है इस तरह से कॉल करके आप दो तरह की क्राइम करते हैं एक डाटा थेफ्ट अर्थात किसी के डाटा को चुराना दूसरा भेजो प्राइवेसी अर्थात किसी की प्राइवेसी को भंग करना यह दोनों तरह की क्राइम आप कर देते हैं और आपको पता भी नहीं चलता और जो इसकी विक्टिम होती है उसको भी नहीं पता चलता कि उसके साथ एक क्राइम घटित हो गया है ऐसे में ज़रूरत है ।

हम साइबर स्टॉकिंग के बारे में जाने नीचे के केस लॉ दिया गया है जिससे आपको समझने में मदद मिलेगी कि वास्तव में साइबर स्टॉकिंग का मतलब क्या होता है

केस जो की  धारा 354(D) IPC से सम्बंधित है । तथा इसमें अपराधी को अश्लील मैसेज और अश्लील बातें करने के लिए दंड दिया गया।

*केस के फैक्ट*

अतुल गणेश पाटिल एक सेकंड में एक मदरसन कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था  पीड़िता जॉब के लिए इंटरव्यू के लिए मदरस तो यवतमाल के उसका फोन नंबर एंट्री बुक में लिया तथा बाद में उसने अपने no. से उस पीड़िता को

अश्लील मैसेज किया तथा फोन पर अश्लील बातें की लड़की द्वारा इसका विरोध करने पर उसने और ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया लड़की ने भगा कर थक हार कर उसे सब जगह से ब्लॉक कर दिया और सोशल साईट पर भी कर दिया पर वो नहीं माना ।

फिर उसने अपने दोस्तों के मोबाइल नंबर से पीड़िता को अश्लील मैसेज करना शुरु कर दिया जब लड़की ज्यादा परेशान हो गई तो उसने इसकी शिकायत साइबर पुलिस से भी जब वह नंबर ट्रेस किया गया तो यवतमाल के अतुल गणेश पाटिल तथा उसी से संबंधित नंबर  मिला पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया ।

पुलिस ने उसे पकड़ कर वह समस्त फोन और  मैसेज विटनेस के तौर पर कोर्ट में पेश किया इसके अलावा अपराधी ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया.

*केस डिटेल*

स्टेट VS.गणेश पाटिल

यह FIR (17/17) CHKNA थाने में पुणे के पास 10 जनवरी को हुई।

इसके समस्त इंवेस्टिगेशन 24 घंटे के अंदर हो गई जिसमें 5 गवाहों के बयान दर्ज किए गए तथा कोर्ट ने 11 तारीख को इसमें फैसला सुना दिया जिसमें 2 वर्ष का कठोर कारावास और ₹500 जुर्माने की सजा सुनाई गई यह पहला ऐसा मामला था जिसमें 48 घंटे में पूरा केस का निर्णय हो गया।

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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