অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

मध्यप्रदेश तकनीकी शिक्षा योजना 2009

प्रस्तावना

देश के विकास की दर को 10 प्रतिशत से अधिक रखने के लिए तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में तीव्र वृद्धि की आवश्यकता बताई गई है। यह देखा गया है कि राज्य की आर्थिक प्रगति का सीधा संबंध तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के विकास से जुड़ा हुआ है। जिन राज्यों में इस क्षेत्र में अधिक विकास हुआ है, वहाँ मेन्युफेक्चरिंग और सर्विस सेक्टर ने भी अधिक निजी निवेश को आकर्षित किया है।

उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा एवं रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण उपलब्ध कराकर जहाँ एक ओर प्रदेशवासियों की कार्यक्षमता, उत्पादकता एवं रोजगार पाने की क्षमता में वृद्धि को सुनिश्चित किया जा सकता है, वहीं उनकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा की क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है। उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास को प्रदेश में समेकित रूप से विकसित करने हेतु एक समग्र तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास नीति की महती आवश्यकता है।

पृष्ठभूमि

विगत वर्षों में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा में तीव्र गति से विस्तार हुआ है। उसे दृष्टिगत रखते विभिन्न आयोगों/एजेंसियों द्वारा तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के संतुलित एवं अर्थ-व्यवस्था पर केन्द्रित विकास के लिए अनुशंसाएँ दी हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख अनुशंसाओं का अवलोकन/अध्ययन नीति निर्धारण के लिए आवश्यक है।

2.1 ज्ञान आयोग की इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए अनुशंसा अनुसार अगले दशक के दौरान भारत में मेन्युफेक्चरिंग और इंजीनियरिंग सर्विसेज़ आउटसोर्सिंग (ईएसओ) के रूप में दो बृहत अवसर पैदा होने वाले हैं। इन अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए जरूरी है कि भारत में इंजीनियरों की संख्या बढ़ाई जाये और उनका स्तर भी सुधारा जाये।

व्यावसायिक शिक्षा के मौजूदा संस्थागत ढाँचे को मजबूत करने के साथ-साथ राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने क्षमता बढ़ाने के लिए वैकल्पिक ढाँचे तैयार करने, कुशल कारीगरों की बढ़ती माँग को पूरा करने और श्रमिकों को अनौपचारिक तथा असंगठित क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है। इनमें सार्वजनिक निजी साझेदारी, कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण, दूरस्थ शिक्षा और स्थानीय आवश्यकताओं तथा क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए एक विकेन्द्रित मॉडल शामिल है।

2.2 12वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में कौशल विकास एवं तकनीकी शिक्षा के विषय में निम्नलिखित अनुशंसाएँ की गई हैं:

I. राज्य-स्तरीय कौशल विकास मिशन को पूर्णतः क्रियाशील किया जाये।

II. कौशल विकास माँग आधारित होना चाहिये एवं नियोजकों/उद्योगों की माँग की पूर्ति के लिए उसकी पाठ्यचर्या का सतत आधार पर उन्मुखीकरण किया जाना चाहिये। एनवीईक्यूएफ के तहत तकनीकी ज्ञान एवं प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाना चाहिये। स्किल इंवेटरी और स्किल मेप की जानकारी रियल टाइम आधार पर रखी जाये।

III. शिक्षण एवं प्रशिक्षण की विद्यमान संस्थाओं में स्किल डेवलपमेंट सेंटर्स स्थापित किये जाना चाहिये।

IV. निर्धन वर्ग के व्यक्तियों के कौशल विकास के लिए सीधे वित्तीय सहायता अथवा ऋण दिलाने की व्यवस्था होनी चाहिये।

V. निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु अनुकूल वातावरण एवं सुविधाएँ देने पर बल दिया गया है।

VI. उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधार के लिए प्रयास किये जाना चाहिये।

  1. देश की विशेष आर्थिक, सामाजिक एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं तथा क्षेत्रीय असंतुलन और विभिन्न संकायों के बीच असमानताओं को दूर करने के लिए नवीन संस्थाएँ स्थापित की जा सकती हैं।
  2. संस्थाओं को बजट का प्रावधान वस्तुपरक मानदण्डों तथा प्रतिस्पर्धात्मक अनुदान एवं कार्य-निष्पादन के अनुबंध के आधार पर होना चाहिये। उच्च शिक्षण संस्थाओं के युक्तियुक्त शिक्षण शुल्क के पश्चात शेष पूर्ति सार्वजनिक वित्त पोषण से की जानी चाहिये।

IX. स्कॉलरशिप योजनाओं की मात्रा एवं पहुँच तथा विद्यार्थियों के ऋण की आवश्यकताओं की पूर्ति को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

X. विद्यार्थियों को शिक्षण तंत्र में और अधिक विकल्प तथा लचीलापन उपलब्ध कराने के लिए परीक्षा सुधारों, विकल्प आधारित क्रेडिट एवं सेमेस्टर सिस्टम का पूर्ण क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

2.3 वर्ष 2009 की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति में राज्य सरकार की भूमिका तथा उत्तरदायित्व निम्नानुसार निर्धारित किये गये हैं:

1. प्राथमिकता तथा नीति आयोजना- सांख्यिकी एकत्रीकरण का निर्धारण।

2. पणधारियों (Stakeholders) के लिए नियामक ढाँचा उपलब्ध कराना तथा समर्थकारी वातावरण निर्मित करना।

3. वित्तपोषण तंत्र, पारितोषिक तथा प्रोत्साहन ढाँचा निर्मित करना।

4. सामाजिक भागीदारों की क्षमता का निर्माण।

5. सूचना की निगरानी, मूल्यांकन तथा प्रचार तंत्र की स्थापना।

6. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की सुविधा प्रदान करना।

7. अर्हता ढाँचे तथा गुणवत्ता आश्वासन तंत्र की स्थापना।

8. क्षेत्र विशिष्ट कौशल की पूर्ति के लिए कार्य-योजनाएँ तैयार करना।

तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास की नीति के निर्माण में उपर्युक्त अनुशंसाओं का समुचित संज्ञान लिया गया है।

प्रदेश में तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास का वर्तमान परिदृश्य

मध्यप्रदेश वर्तमान में देश में तेजी से विकास कर रहे राज्यों में से एक है और उसकी विकास दर वर्तमान में 10 प्रतिशत से अधिक है। विकास की यह दर बनाये रखने एवं इसमें वृद्धि करने हेतु यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रदेश में उपलब्ध जनशक्ति, तकनीकी रूप से प्रशिक्षित एवं विश्व-स्तरीय माँग के अनुरूप हो। यह सर्वविदित है कि सर्वांगीण विकास हेतु तकनीकी क्षेत्रों में प्रशिक्षित, कुशल एवं दक्ष मानव शक्ति की भूमिका सर्वोपरि है।

वर्तमान वैश्विक परिवेश में तकनीकी रूप से दक्ष जनशक्ति की नित्य बढ़ती माँग के अनुरूप प्रदेश एवं देश में उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से राज्य शासन की भूमिका एक सकारात्मक उत्प्रेरक की रही है। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान में प्रदेश में 168483 प्रवेश क्षमता के साथ 1099 तकनीकी शिक्षण संस्थाओं को स्थापित किया जा पाना संभव हो सका है एवं प्रदेश तकनीकी शिक्षा एवं वोकेशनल ट्रेनिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक हब के रूप में उभरा है।

संस्था का प्रकार

संख्या

प्रवेश क्षमता

इंजीनियरिंग/आर्किटेक्चर महाविद्यालय

225

88890

एम.सी.ए. महाविद्यालय

84

5650

एम.बी.ए. महाविद्यालय

213

18570

बी. फार्मा/डी. फार्मा, संस्थाएँ

117

8250

पॉलीटेक्निक महाविद्यालय

69

16501

होटल मैनेजमेंट एवं कैटरिंग टेक्नालॉजी (डिग्री + डिप्लोमा)

04

300

 

औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाएँ (आई.टी.आई.)

274

27602

कौशल विकास केन्द्र (एसडीसी)

113

2720

कुल

1099

168483

 

प्रदेश में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा का विकास गत पाँच वर्षों में तीव्र गति से हुआ है और संस्थाओं की संख्या में 104.30 प्रतिशत वृद्धि हुई तथा प्रवेश क्षमता में 135.52 प्रतिशत वृद्धि हुई है। परंतु उपलब्ध आँकडों के अनुसार कई क्षेत्रों में प्रति लाख जनसंख्या पर राज्यवार उपलब्ध सीटों में प्रदेश राष्ट्रीय औसत से पीछे है। श्रम मंत्रालय के उपलब्ध आँकड़े अनुसार शासकीय एवं निजी आईटीआई को मिलाकर उपलब्ध स्थानों की संख्या के आँकड़ों के आधार पर प्रदेश का स्थान देश में 11वें क्रम पर है। प्रदेश में अल्प-अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भारी माँग है एवं वर्तमान में केवल 113 कौशल विकास केन्द्रों तथा कुछ वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोवाइडर्स (वीटीपीज) के माध्यम से इस प्रकार के प्रशिक्षण संचालित किये जा रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् द्वारा भी समय-समय पर यह आवश्यकता प्रतिपादित की गई है कि प्रदेश में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा के विकास हेतु त्वरित कार्यवाही करना आवश्यक है, जिससे कि प्रदेश के युवा आर्थिक विकास में हो रही प्रगति के कारण उपलब्ध अवसरों का लाभ उठा सकें।

राष्ट्रीय स्तर के अनेक औद्योगिक संगठनों के मतानुसार वर्तमान में तकनीकी शिक्षण संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षित की जा रही जनशक्ति बाजार एवं उद्योगों की माँग के अनुरूप तथा अपेक्षित गुणवत्ता की नहीं है। आज भी अनेक ऐसे व्यवसाय हैं, जिनमें अत्यधिक माँग है परंतु माँग के अनुरूप प्रशिक्षण देने की क्षमता उपलब्ध नहीं है अथवा संस्थाओं में उसके अनुरूप पाठ्यक्रम उपलब्ध नहीं है।

प्रदेश में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की व्यावसायिक तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में वृद्धि बड़े पैमाने पर हुई है, परंतु पॉलीटेक्निक एवं आई.टी.आई. पर संस्थाओं की संख्या, पाठ्यक्रमों की संख्या, उनकी उपलब्ध, प्रवेश क्षमता आदि में यह विकास उस अनुपात में नहीं है। अतः एक ऐसी नीति की आवश्यकता है। जो विभिन्न स्तरों पर प्रदाय की जा रही तकनीकी शिक्षा के समग्र एवं संतुलित विकास को प्रोत्साहित कर सकें।

मिशन

यह नीति परिष्कृत कौशलों, ज्ञान तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त अर्हताओं के माध्यम से प्रदेश के युवाओं एवं कौशल उन्नयन के इच्छुक व्यक्तियों को वैश्विक परिदृश्य में जीवनपर्यन्त रोजगारोन्मुखी तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास के अवसर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेगी।

ध्येय

5.1 उच्च गुणवत्तायुक्त तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से प्रदेश के समग्र सामाजिक एवं आर्थिक विकास में योगदान सुनिश्चित करना।

5.2 प्रदेश के युवाओं को बदलती हुई माँग के संदर्भ में विश्व-स्तरीय प्रशिक्षण एवं तकनीकी शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना।

5.3 तकनीकी शैक्षणिक संस्थाओं (निजी क्षेत्र सहित) में निर्धारित गुणात्मक मापदण्डों को सुनिश्चित करना।

54 तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में निजी निवेश आकर्षित करना।

उद्देश्य

6.1 प्रदेश में तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली की उत्तरोत्तर उन्नति हेतु समर्थ वातावरण उपलब्ध कराना।

6.2 प्रदेश के समस्त संबंधित पणधारियों को सम्मिलित करते हुए तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण में विस्तार को सुनिश्चित करना।

6.3 तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण में नवाचार तथा शासकीय शिक्षण/प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रबंधन में अधिक से अधिक निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

6.4 आवश्यकतामूलक आधार पर विकास हेतु शैक्षणिक अधोसंरचना उपलब्ध कराना।

6.5 विद्यालय छोड़ चुके, वर्तमान में कार्यरत श्रमिकों, बाल श्रमिकों तथा ऐसे श्रमिक जो पूर्व से ही अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षण प्राप्त कर कार्यों को संपादित कर रहे हैं किन्तु उनकी दक्षता का प्रमाणीकरण नहीं है, के प्रशिक्षण एवं प्रमाणीकरण के अवसर उपलब्ध कराना।

6.6 परस्पर हितों के लिए तकनीकी शिक्षण संस्थाओं के उद्योगों से लिंकेज को सुदृढ़ करना।

6.7 उद्योगों की आवश्यकता के अनुरूप निरंतर पाठ्यक्रमों के माध्यमों से कौशल उन्नयन करना एवं उदीयमान क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना।

6.8 भारत सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का अधिकतम लाभ उठाना।

6.9 तकनीकी शिक्षा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए अन्य विभागों के संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन के प्रयास करना।

6.10 तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की ऐसी अधोसंरचना का विकास करना, जो कि अन्य विभागों के द्वारा भी उनकी प्रशिक्षण तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में लाई जा सके।

6.11 व्यावसायिक एवं प्रबंधकीय कुशलताओं का उन्नयन करना।

6.12 छात्रों को विश्व-स्तरीय कौशल प्राप्त करने हेतु प्रेरित करना।

6.13 समाज के समस्त वर्गों को सम्मिलित करते हुए कौशल विकास एवं तकनीकी शिक्षा के अवसर बिना लिंगभेद के उपलब्ध कराना।

6.14 तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के प्रबंधन में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए प्रबंधन की पारदर्शी एवं त्वरित आधुनिक व्यवस्था सुनिश्चित करना।

6.15 राज्य सरकार एनवीईक्यूएफ (नेशनल वोकेशनल एजुकेशन क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क) को राज्य में लागू करने के लिए प्रदेश स्थित संस्थाओं को प्रोत्साहित करेगी एवं उसके क्रियान्वयन के लिए आवश्यक व्यवस्थाएँ करेगी।

6.16 दूरस्थ शिक्षा एवं ऑनलाइन पद्धति से शिक्षण हेतु डिजीटल स्वरूप में पाठ्यक्रमों को उपलब्ध कराना।

6.17 संस्थाओं को राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रत्यायोजना प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना।

नीति का दायरा

तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के अंतर्गत संचालित प्रमाण-पत्र, पत्रोपाधि, उपाधि एवं स्नातकोत्तर स्तर के समस्त पाठ्यक्रम यथा एम.ई., एम. फार्मा, एम.टेक., पीएच.डी., एम.बी.ए., बी.ई., बी. फार्मेसी, एम.सी.ए., डिप्लोमा फार्मेसी, तकनीकी व अतकनीकी संकायों में डिप्लोमा, आई.टी.आई. में संचालित ट्रेड्स, अल्पावधि पाठ्यक्रम आदि तथा उन्हें संचालित करने वाली समस्त संस्थाएँ।

चुनौतियाँ

8.1 प्रदेश को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास के क्षेत्र में बेहतर विकल्प के रूप में स्थापित करना।

8.2 उद्योगों की माँग के अनुरूप तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण के बेहतर अवसर उपलब्ध कराना।

8.3 तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने के लिए प्रयास करना।

8.4 प्रत्येक जरूरतमंद युवा को प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराने के साथ उपयुक्त रोजगार दिलाना।

8.5 अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों/विश्वविद्यालयों को मध्यप्रदेश में संस्थान खोलने हेतु

आमंत्रित करना।

8.6 स्किल मैपिंग एवं स्किल गैप एनालिसिस के आधार पर तकनीकी रूप से प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता का सतत आकलन तथा उसके आधार पर पाठ्यक्रमों का प्रारंभ/पुनरीक्षण किया जाना।

8.7 अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों के प्रमाणीकरण के लिए तंत्र विकसित करना।

8.8 निजी शिक्षा/प्रशिक्षण प्रदायकर्ताओं को एक वैकल्पिक ढाँचे के माध्यम से सम्मिलित कर प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार करना।

रणनीति:- तकनीकी

9.1 तकनीकी शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की पहुँचः- प्रत्येक विकासखण्ड में न्यूनतम एक आई.टी.आई. व कौशल विकास केन्द्र तथा प्रत्येक जिले में एक पॉलीटेक्निक महाविद्यालय स्थापित किया जायेगा, जिससे युवाओं को स्थानीय, प्रदेश, देश एवं विदेश में सामयिक एवं माँग आधारित प्रशिक्षण उपरांत रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें।

9.2 स्किल मेपिंग, स्किल गैप एनालिसिस एवं तकनीकी जनशक्ति की आगामी वर्षों की आवश्यकता का आंकलनः- संचालित पाठ्यक्रमों की प्रदेश एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य में वर्तमान एवं भविष्य की माँग का आंकलन, स्किल गेप, एनालिसिस, स्किल मेपिंग आदि का कार्य सतत रूप से करने के लिए संस्थागत व्यवस्था करना तथा उद्योगों के परिदृश्य का संज्ञान लिया जाकर, जिन क्षेत्रों में जनशक्ति की आवश्यकता हो, उसके अनुरूप पाठ्यक्रम संचालित किये जायेंगे।

भारत सरकार की सहायता से अथवा निजी एजेंसियों/संगठनों को अनुबंधित कर उपर्युक्त अध्ययन/प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मूल्यांकन/अंकेक्षण कराया जायेगा, जिससे कि संचालित पाठ्यक्रमों की सामयिकता को ज्ञात किया जा सके एवं भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके।

9.3 आदर्श संस्थाओं में उन्नयनः- प्रदेश को तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास के हब के रूप में विकसित करने के लिए चुनी हुई संस्थाओं का आदर्श संस्था में उन्नयन किया जायेगा। इन संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण एवं उन्नयन के द्वारा वैश्विक स्तर की प्रशिक्षित जनशक्ति तैयार की जाएगी तथा इनकी मार्केटिंग एवं ब्रांडिंग पृथक से की जाएगी। इन संस्थाओं में न्यूनतम 6 पाठ्यक्रमों का संचालन किया जायेगा एवं इन पाठ्यक्रमों का प्रत्यायन राष्ट्रीय एजेंसियों से होगा। आधुनिक अधोसंरचना एवं उद्योगों से जीवंत संपर्क इन संस्थाओं की विशिष्टता होगी। प्रत्येक संस्था को एक क्षेत्र विशेष में उत्कृष्ट संस्था के रूप में विकसित करने का प्रयास किया जायेगा। इन संस्थाओं में इण्डस्ट्री इंस्टीट्यूशन इंटरेक्शन (आईआईआई) सेल एवं उद्यमिता विकास केन्द्र होंगे। यह संस्थाएँ उन्नयन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त कर सकेंगी ताकि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप मानव संसाधन विकास का कार्य किया जा सके।

योजना के तहत जिला मुख्यालय स्थित आईटीआई का आदर्श आईटीआई में उन्नयन किया जायेगा।

संभाग मुख्यालय पर स्थित 10 स्वशासी पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों एवं 4 स्वशासी इंजीनियरिंग महाविद्यालय को आदर्श संस्था के रूप में किसी क्षेत्र विशेष में उन्नयन कर, विकसित किया जायेगा।

9.4 जन निजी भागीदारी को प्रोत्साहनः- राज्य सरकार के सीमित संसाधनों को दृष्टिगत रखते हुए एवं निजी शिक्षा/प्रशिक्षण प्रदायकर्ताओं के अनुभव एवं क्षमताओं का लाभ लेने की दृष्टि से तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जायेगा। कौशल विकास के अवसरों में तीव्र वृद्धि एवं उसकी पहुँच तथा दायरे में विस्तार के लिए निजी निवेश की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। जन निजी भागीदारी व्यवस्था के तहत निम्नलिखित प्रस्तावों पर योजनाएँ बनाई जायेगीः

94.1 भूमिः- आईटीआई विहीन विकासखण्डों में आईटीआई स्थापित करने के लिए प्रति आईटीआई अधिकतम 5 एकड़ शासकीय भूमि निःशुल्क दी जाएगी। विभाग ऐसी भूमि के आवंटन के लिए पृथक से नीति तैयार करेगा। भूमि की लीज की अवधि 30 वर्ष होगी एवं प्रस्तावित पूँजीगत निवेश 24 माह में करना अनिवार्य होगा, अन्यथा भूमि पुनः शासन में वेष्टित हो जाएगी।

9.4.2 पूँजीगत निवेश पर अनुदानः

पूँजीगत लागत (उपकरण एवं भवन सहित) का 25 प्रतिशत की सीमा तक High End ITI के लिए एवं 20 प्रतिशत की सीमा तक सामान्य आईटीआई के लिए (बिडिंग पैरामीटर) अनुदान तीन समान किश्तों में निम्नानुसार दिया जायेगाः

1. प्रथम किश्त : प्लिंथ लेवल पूर्ण होने पर;

2. द्वितीय किश्त : भवन बनने पर;

3. तृतीय किश्त :  पूर्णतः स्थापित होने एवं 3 ट्रेड में एनसीवीटी संबद्धता प्राप्त करने पर।

निवेशकर्ता का चयन उसके द्वारा उद्धरित न्यूनतम पूँजीगत लागत के प्रतिशत के आधार पर तकनीकी अर्हता एवं निर्धारित शर्तों को पूरा करने पर किया जायेगा।

पूँजीगत निवेश पर अनुदान की अधिकतम सीमा निम्नानुसार होगीः

9.4.2.1 High End ITI के लिए- अधिकतम अनुदान 3 करोड़ रुपये, जिसमें अधिक 1.5 करोड़

निर्माण कार्यों के लिए।

9.4.22 सामान्य आईटीआई- अधिकतम अनुदान 1.60 करोड़ रुपये, जिसमें अधिकतम 0.80 करोड़ निर्माण कार्यों के लिए।

94.2.3 अनसर्विस्ड विकासखण्डों में कौशल विकास केन्द्र स्थापित करने के लिए:- केवल उपकरण के लिए, उपकरणों के मूल्य का 25 प्रतिशत तक एवं अधिकतम 2.5 लाख रुपये की सीमा तक दो किश्तों में निम्नलिखित शर्तो परः

1. प्रथम किश्त 75 प्रतिशत केन्द्र के वीटीपी रजिस्ट्रेशन पर;

2. द्वितीय किश्त चार मॉड्यूल में प्रशिक्षण उपरांत छात्रों के उत्तीर्ण होने पर।

9.4.3 आईटीआई/कौशल विकास केन्द्रों की स्थापना के लिए अन्य प्रोत्साहनः-

94.3.1 शिक्षण शुल्क की प्रतिपूर्तिः

शासन द्वारा प्रायोजित 50 प्रतिशत सीटों के शिक्षण शुल्क (शासकीय आईटीआई/एसडीसी की औसत प्रशिक्षण लागत व प्रशिक्षणार्थियों द्वारा शासकीय आईटीआई/एसडीसी में भुगतान की जा रही शिक्षण शुल्क की राशि के अंतर की राशि) की प्रतिपूर्ति अधिकतम 10 वर्ष के लिए की जाएगी। राज्य शासन के कोटे की सीटें न भर पाने की स्थिति में, निजी एजेंसी यह सीटें भरने के लिए स्वतंत्र होगी, परंतु उसके शिक्षण शुल्क की प्रतिपूर्ति राज्य शासन द्वारा नहीं की जाएगी। 10 वर्ष की अवधि की समाप्ति के एक वर्ष पूर्व इस प्रावधान का मूल्यांकन कर, आगामी व्यवस्था के संबंध में निर्णय लिया जायेगा।

9.4.3.1.1 शिक्षण शुक्ल की प्रतिपूर्ति की शर्तेः

1. शासन द्वारा प्रायोजित सीटों पर प्रवेशित विद्यार्थियों के लिए 80 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य होगी;

2. शिक्षण शुल्क का अग्रिम भुगतान बैंक गारंटी के विरुद्ध दो किश्तों में, प्रथम किश्त 60 प्रतिशत प्रवेश होने पर देय एवं द्वितीय किश्त शेष अनुदान उत्तीर्ण प्रशिक्षणार्थियों के आधार पर देय;

3. शेष 50 प्रतिशत सीट पर निजी एजेंसी द्वारा प्रवेश, शुल्क का बँधन नहीं;

4. निजी एजेंसी कक्षा उपरांत अन्य प्रशिक्षण देने के लिए स्वतंत्र है।

9.4.32 योजनांतर्गत स्थापित आईटीआई एवं कौशल विकास केन्द्रों के प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण की लागत के 50 प्रतिशत व्यय की प्रतिपूर्ति निम्नलिखित शर्तों पर की जाएगीः

1. अधिकतम 10 प्रशिक्षक प्रति आईटीआई एवं 05 प्रशिक्षक प्रति एसडीसी का प्रशिक्षण प्रत्येक दो वर्षों में;

2. योजना अधिकतम संस्था की स्थापना से 06 वर्ष के लिए;

3. प्रशिक्षण, राज्य/केन्द्र सरकार द्वारा अनुमोदित संस्थाओं में।

9.4.3.3 अन्य प्रोत्साहन आईपीपी 2010 अनुसारः-

1. लीज रेंट @ 1 प्रतिशत प्रतिवर्ष;

2. Capital Investment पर 07 वर्ष की अवधि के लिए 05 प्रतिशत ऋण अनुदान, अधिकतम सीमा 25 लाख रुपये।

94.3.4. तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हेतु बैंक से प्राप्त किये जाने वाले ऋण संबंधी दस्तावेजों पर देय स्टाम्प शुल्क की राशि उच्च शिक्षा संबंधी बैंक ऋण हेतु निष्पादित दस्तावेजों पर देय स्टाम्प शुल्क की राशि के अनुसार 100 रुपये होगी।

9.4.35  कंडिका-9.4.1 से 9.4.3 में उल्लेखित प्रावधान जन निजी भागीदारी से निम्नलिखित आईटीआई/कौशल विकास केन्द्रों की स्थापना के लिए लागू होंगेः

1. औद्योगिक ग्रोथ सेंटर में High End ITI न्यूनतम 400 प्रवेश क्षमता के साथ निर्धारित स्थानों पर एवं न्यूनतम 03 सूचीबद्ध चिन्हांकित उच्च तकनीक के ट्रेड्स में प्रशिक्षण;

2. 18 जिलों के सर्विस्ड विकासखण्डों में सामान्य आईटीआई, जहाँ निजी आईटीआई संचालित नहीं है;

3. 150 अनसर्विस्ड विकासखण्डों में सामान्य आईटीआई;

4. 200 विकासखण्डों में कौशल विकास केन्द्र (एसडीसी)

9.44 राज्य शासन द्वारा संचालित कौशल विकास केन्द्रों का प्रबंधन निजी एजेंसी को निर्धारित शर्तो पर सौंपने हेतु योजना बनाई जाएगी।

9.45 विद्यमान संस्थाओं में निजी निवेशकर्ता द्वारा इण्डस्ट्री लिंक पाठ्यक्रम/एक विंग संचालित करने के लिए पृथक से योजना बनाई जाएगी।

94.6 उद्योगों द्वारा उनकी तकनीकी जनशक्ति की आवश्यकता की पूर्ति के लिए औद्योगिक क्षेत्रों/विशेष आर्थिक प्रक्षेत्रों में प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना करने हेतु प्रोत्साहन देने के लिए पृथक योजना बनाई जाएगी। बड़े औद्योगिक घरानों को प्रदेश में निवेश करते समय ही स्वयं आईटीआई खोलने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

94.7 भारत सरकार की पीपीपी मोड के तहत पॉलीटेक्निक महाविद्यालय स्थापित करने की योजना का अधिक से अधिक लाभ लेने का प्रयास किया जायेगा एवं योजनांतर्गत स्थापित की जाने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन देने के लिए निःशुल्क भूमि देने का प्रावधान किया जायेगा।

9.48 प्रवेश क्षमता में वृद्धि के लिए निजी इंजीनियरिंग महाविद्यालयों को द्वितीय शिफ्ट में पॉलीटेक्निक एवं आईटीआई स्तर की संस्था संचालित करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

94.9  डी.एम.आई.सी. कॉरीडोर क्षेत्र में स्थापित हो रहे उद्योगों के परिप्रेक्ष्य में नवीन आईटीआई स्थापित करने के साथ-साथ एवं नजदीकी आईटीआई में माँग आधारित नवीन ट्रेड्स प्रारंभ किये जायेंगे।

9.4.10विद्यमान इंजीनियरिंग/पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों एवं आईटीआई में उदीयमान क्षेत्रों जैसे कि बॉयो-टेक्नालॉजी, नैनो-टेक्नालॉजी, रोबोटिक्स आदि में पाठ्यक्रम प्रारंभ करने एवं उनका संचालन करने हेतु उपकरणों, फर्नीचर, पुस्तकें, कम्प्यूटर आदि पर होने वाले व्यय की शतप्रतिशत पूर्ति राज्य शासन द्वारा की जाएगी। संबंधित एजेंसी को विद्यार्थियों के चयन का अधिकार होगा एवं उन्हें पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने पर शत-प्रतिशत रोजगार दिलाने की परफारमेंस गारंटी देना होगी।

9.5 मध्यप्रदेश व्यावायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद् की गतिविधियों का विस्तार:

9.5.1 स्किल डेवलपमेंट की रणनीति के तहत किसी भी व्यक्ति के ज्ञान और स्किल्स की टेस्टिंग उपरांत, उसके प्रमाणीकरण की व्यवस्था करने तथा उक्त प्रमाण-पत्र को भविष्य में उच्च शिक्षा में नामांकन हेतु मान्य किये जाने की योजना परिषद् द्वारा बनाई जाएगी।

9.52 मध्यप्रदेश व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद् से संबंधित विभिन्न कार्यों को सम्पादित करने के लिए सहायक समितियों के रूप में संभाग-स्तर तथा जिला-स्तर पर क्रमशः संभागीय आयुक्त एवं जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समितियों को क्रियाशील किया जायेगा।

95.3 निजी इंजीनियरिंग महाविद्यालयों, पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों, निजी औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्रों, विभिन्न शासकीय एवं गैर-शासकीय एजेंसियाँ, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्रों एवं इच्छुक उद्योगों को भारत सरकार की मॉड्यूलर एम्प्लायबल स्किल्स योजनांतर्गत वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोवाइडर के रूप में पंजीकृत करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

95.4 परम्परागत हुनर यथा लोहार, बढ़ई, राजमिस्त्री, कुम्हार, मोची, बीड़ी बनाने वाले, गौ-सेवक, जैविक खेती, इत्यादि के प्रशिक्षण के प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जाएगी, जिससे वे प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में अपने कौशल के माध्यम से आजीविका अर्जन कर सकें।

9.5.5 एमपीसीवेट के कार्यों के भविष्य में विस्तार को दृष्टिगत रखते हुए कंसल्टेंट्स रखने का प्रावधान एमपीसीवेट के सेट-अप में किया जायेगा।

9.6. स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापनाः- प्रत्येक अनसर्विस्ड विकासखण्ड में एक स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की जाएगी, जहाँ स्थानीय आवश्यकतानुसार अल्पावधि प्रशिक्षण संचालित किया जा सके। अनसर्विस्ड विकासखण्डों में पीपीपी मोड के अंतर्गत स्किल डेवलपमेंट सेंटर संचालित करने की योजना बनाई जाएगी। इन एसडीसी को प्रशिक्षित छात्रों को प्लेसमेंट उपलब्ध कराने के आधार पर प्रोत्साहन दिया जायेगा।

कौशल विकास केन्द्रों का संचालन हब एण्ड स्पॉक मॉडल (एक मुख्य केन्द्र सेटेलाईट एवं अन्य उससे जुड़े हुए केन्द्र) के आधार पर करने के लिए विभाग योजना बनायेगा।

9.7 विद्यमान तकनीकी संस्थाओं का सदृढ़ीकरणः

9.7.1 विद्यमान संस्थाओं में रिक्त पदों की पूर्ति एवं नवीनतम अधोसंरचना उपलब्ध कराने के लिए वित्तीय संसाधनों का प्रावधान किया जायेगा।

9.7.2 शासकीय आईटीआई की अधोसंरचना का विकास शासकीय संसाधनों व वित्तीय संसाधनों से ऋण प्राप्त कर, किये जाने का प्रयास किया जायेगा। यदि निजी व्यक्तियों द्वारा शासकीय आईटीआई के लिए निःशुल्क भवन उपलब्ध कराया जाता है, तो ऐसे भवनों में शासकीय आईटीआई स्थापित की जा सकेगी। उपयुक्त शासकीय भवन उपलब्ध होने पर उसमें नवीन आईटीआई खोलने की प्राथमिकता दी जाएगी।

9.7.3 आईटीआई के सुदृढ़ीकरण के अंतर्गत समस्त आईटीआई में 6 ट्रेड तक संचालित करने के

लिए योजना बनाई जाएगी एवं वही ट्रेड्स संचालित किए जाएँ जो कि प्रासंगिक हो एवं उद्योगों की माँग के अनुरूप हों। जो संस्थाएँ किराये के भवन में संचालित हैं, वहाँ 6 से कम ट्रेड संचालित होन पर अतिरिक्त किराये के भवन की व्यवस्था कर ट्रेड्स बढ़ाए जाएँ।

9.8 गुणात्मक सुधार के लिए प्रयासः

9.8.1 संस्थाओं में परस्पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए एक खुली और पारदर्शी प्रणाली के आधार पर प्रत्येक निजी एवं सार्वजनिक शिक्षण संस्थाओं का निर्धारित बिन्दुओं पर मूल्यांकन कर वार्षिक रेकिंग एवं ग्रेडिंग की जाएगी।

9.82 प्रत्येक शिक्षक/प्रशिक्षक क लिए मूल्यांकन एवं प्रोत्साहन आधारित कार्यप्रणाली विकसित की जाएगी।

9.8.3 स्वतंत्र एवं बाह्य एजेंसियों द्वारा शिक्षण ऑडिट किये जाने को प्रोत्साहित किया जाएगा।

9.9 शिक्षकों/प्रशिक्षकों का प्रशिक्षणः

9.9.1 शिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए शिक्षकों/प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण एवं ज्ञान संवर्धन की एक दीर्घकालिक नीति बनाई जाएगी। वैज्ञानिक तकनीक से किये गये ट्रेनिंग नीड एनालिसिस के आधार पर प्रत्येक शिक्षक के प्रशिक्षण की योजना बनाई जाएगी।

9.9.2 प्रदेश में विभिन्न स्तरों के शिक्षक/प्रशिक्षण एवं सहायक तकनीकी अमले के प्रशिक्षण के लिए एक पूर्णतः आवासीय प्रशिक्षण संस्थान/स्टॉफ डेवलपमेंट कॉलेज की स्थापना की जाएगी, जो कि प्रशिक्षण की आवश्यकताओं के आंकलन के आधार पर कार्यक्रमों का संचालन करे।

9.9.3 आईटीआई के प्रशिक्षकों को भी उत्तरोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए क्यूआईपी स्कीम प्रारंभ की जाएगी, जिससे कि वे आईटीआई के लिए उपयोगी क्षेत्रों में स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर सकें।

99.4 उद्योगों के विशेषज्ञ/मैनेजर्स/इंजीनियर्स का शिक्षण संस्थाओं में एवं शिक्षकों का प्रतिष्ठित

उद्योगों में एक निश्चित अवधि के लिए स्थानन करने का प्रावधान किये जाएँगे, जिससे कि शिक्षण संस्थाएँ एवं उद्योग परस्पर लाभान्वित हो सकें।

9.10 कैरियर काउंसलिंग एवं प्लेसमेंट:

9.10.1 मध्यप्रदेश कैरियर काउंसलिंग एण्ड प्लेसमेंट सोसायटी की स्थापना की जाएगी,

जिसके अंतर्गत शासन के विभिन्न विभागों के अंतर्गत संचालित शिक्षण संस्थाओं के विद्यार्थियों के लिये वेब आधारित पोर्टल का निर्माण, जहाँ विद्यार्थियों को प्रदेश में तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, आयुष के क्षेत्र में उपलब्ध शिक्षा के अवसरों की एकजाई जानकारी उपलब्ध होगी। यह सोसायटी विभागों की माँग अनुसार आधुनिकतम ऑनलाइन ऑफ कैम्पस पद्धति से प्रवेश की कार्यवाही करेगी। सोसायटी छात्रों में सृजनात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ प्रदेश स्तर पर आयोजित करेगी। विभिन्न निकायों, उद्योगों आदि को अपने रोजगार की आवश्यकताओं का विज्ञापन वेबपोर्टल पर पर विज्ञापित करने की सुविधा रहेगी।

9.10.2 विद्यार्थियों को सॉफ्ट/लाइफ स्किल्स का प्रशिक्षण देने हेतु संस्थाओं में फिनिशिंग स्कूल्स संचालित करने की योजना बनाई जाएगी। उत्तीर्ण विद्यार्थियों को नियोजन योग्य बनाने के लिए वर्क स्किल्स/सॉफ्ट स्किल्स का प्रशिक्षण फिनिशिंग स्कूल्स के माध्यम से देने के लिए प्रति छात्र निर्धारित धनराशि की प्रतिपूर्ति करने की योजना बनाई जाएगी।

9.10.3 रोजगार कार्यालयां को इंजीनियरिंग एवं पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों तथा आईटीआई उत्तीर्ण विद्यार्थियों का डाटा उपलब्ध कराने एवं प्रदर्शित करने की व्यवस्था की जाएगी।

9.10.4 प्रशिक्षु अधिनियम 1961 तथा प्रशिक्षु नियम 1991 का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाएगा।

9.10.5 विद्यार्थियों को अध्ययन अवधि के दौरान औद्योगिक प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने पर प्रति छात्र निर्धारित धनराशि की प्रतिपूर्ति, उद्योगों को करने की योजना बनाई जाएगी।

9.10.6 ऐसी निजी प्लेसमेंट एजेंसी को अनुबंधित करने के लिए योजना बनाई जाएगी, जो उत्तीर्ण विद्यार्थियों को प्रशिक्षण उपरांत 100 प्रतिशत रोजगार की गारंटी देती हो।

9.11 रिसर्च, कंसल्टेंसी, टेस्टिंग, सतत् शिक्षा एवं प्रोजेक्ट वर्क को बढ़ावाः

9.11.1 संस्थाओं में उद्योगों के सहयोग से शोध एवं कंसल्टेंसी परक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे छात्रों को नई तकनीक पर कार्य करने एवं ''वर्ल्ड ऑफ वर्क" से भिन्न करने का अवसर मिलने के साथ संस्थाओं के आय के स्रोत भी बढ़ेंगे। संस्था स्थित ट्रेनिंगकम-प्रोडक्शन सेंटर को विभिन्न ग्राहकों में सर्विस/मेंटेनेंस/प्रोडक्शन आदि के कार्य लेने हेतु विभाग द्वारा नीति बनाई जाएगी।

9.11 2 उद्योगों द्वारा प्रायोजित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के संचालन को प्रोत्साहित किया जाएगा।

9.11.3 सतत शिक्षा कार्यक्रमों के संचालन को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे कि उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों, उत्तीर्ण विद्यार्थियों को नवीनतम क्षेत्रों में जीवनपर्यंत अध्ययन की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके। उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अल्पावधि पाठ्यक्रमों का संचालन करने के लिए एक लचीली एवं पारदर्शी व्यवस्था बनाई जाएगी, जिससे दूरस्थ पद्धति से, अंशकालिक रूप में, सप्ताह में कुछ दिन या उद्योगों के परिसर में पाठ्यक्रमों का संचालन संभव हो सकेगा।

9.11.4 मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम की तर्ज पर उपकरणों/फर्नीचर की मरम्मत तथा बिजली फिटिंग आदि कार्यों हेतु शासकीय आईटीआई/पॉलीटेक्निक/इंजीनियरिंग महाविद्यालय को बिना निविदा बुलाये कार्य करने के लिए राज्य शासन से अधिकृत किए जाने की कार्रवाई की जाएगी।

9.12 उदीयमान एवं उच्च तकनीक के क्षेत्रों में नवीन पाठ्यक्रमों का संचालन एवं संस्थाओं की स्थापनाः

9.12.1 शासकीय संस्थाओं को स्व-वित्तीय आधार पर पाठ्यक्रम प्रारंभ करने हेतु सीड मनी दिये जाने का प्रावधान किया जाएगा।

9.122 पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों एवं आईटीआई में लीक से हटकर कुछ ऐसे पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जायेंगे, जिससे युवाओं को आर्थिक क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन के कारण उद्योगों में रोजगार अथवा स्व-रोजगार के नए अवसरों को पाने हेतु तैयार कया जा सके। कुछ ऐसे व्यावसायिक एवं जीविका आधारित व्यवसायिक पाठ्यक्रम फैशन टेक्नालॉजी, इंश्योरेंश, रिटेल मैनेजमेंट, ज्वेलरी एण्ड ऐसेसरीज डिजायन, रियल इस्टेट मैनेजमेंट, हॉस्पिटिलिटी मैनेजमेंट, हॉस्पिटल मैनेजमेंटर, परिवहन, हेल्थ केयर, मेडिकल मशीन ऑपरेटर्स, मोबाईल रिपेयरिंग, एयरलाईन, पर्सनल बैंकिंग ऑपरेशंस, फ्रंट ऑफिस मैनेजमेंट, ट्रांसपोर्टेशन, मेडिकल सेल्समेन एवं शेयर ट्रेडिंग आदि हैं, जिनको आईटीआई एवं पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों में प्रारंभ किये जाने की आवश्यकता है।

9.12.3 उदीयमान क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इंजीनियरिंग एवं पॉलीटेक्निक महाविद्यालय/निजी विश्वविद्यालय खोलने हेतु प्रोत्साहन दिया जाएगा।

9.12.4 संस्थाओं को ड्यूल डिग्री कार्यक्रम चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

9.13 ई-लर्निग, वेब बेस्ड लर्निग एवं दूरस्थ शिक्षा को प्रोत्साहन- सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करते हुए ई-लर्निग, वेब बेस्ड लर्निग की व्यवस्थाएँ की जायेंगी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्ञान एवं जानकारी प्रत्येक विद्यार्थी/प्रशिक्षणार्थी का सुलभ हो सके, इसलिए प्रत्येक शासकीय संस्था में डिजिटल लायब्रेरी/मल्टीमीडिया सेंटर की स्थापना के प्रयास किये जायेंगे।

9.14. प्रशासनिक क्षमता का सुदृढ़ीकरण एवं ई-गवर्नेसः

9.14.1 संस्थाओं को प्रशासनिक, वित्तीय एवं शैक्षणिक स्वायतता प्रदान की जाएगी।

9.14.2 योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक क्षमताओं का संवर्द्धन करना एवं प्रशासनिक अमले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का अनुभव/प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रभावी कार्यवाही की जाएगी।

9.14.3 संस्थाओं के मध्य बेहतर तालमेल एवं संचालनालय तथा विभाग के बीच बेहतर समन्वय और सूचनाओं के त्वरित आदान-प्रदान के लिए वेब बेस्ड एमआईएस प्रणाली विकसित की जाएगी।

9.15 प्रशिक्षण के लिए अन्य शासकीय भवनों का उपयोगः- सार्वजनिक शिक्षण संस्थाओं के भवनों को कक्षाओं के उपरांत अन्य प्रशिक्षण प्रदायकर्ताओं को उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। ग्रीष्मकालीन अवकाश के समय विद्यालयों के रिक्त भवनों में ढाई-तीन महीने के अल्प-अवधि के व्यावसायिक प्रशिक्षण के कोर्सेस चुनिंदा हाई स्कूल/हायर सेकेण्डरी स्कूलों में संचालित करने हेतु योजना बनाई जाएगी।

9.16 वंचित समूहों केलिए तकनीकी शिक्षाः- आरक्षित वर्ग, महिलाएँ, निःशक्तजनों को तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास के अवसर उपलब्ध कराने के लिए विशेष योजनाएँ संचालित की जायेंगी। एकलव्य एवं अम्बेडकर योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति एवं जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में आदिम-जाति कल्याण विभाग के संसाधनों से आईटीआई/पॉलीटेक्निक संचालित किये जायेंगे। अल्पसंख्यकों, गैस-त्रासदी से प्रभावित व्यक्तियों तथा निःशक्तजनों के लिए पृथक शैक्षणिक संस्थान/विंग संचालित करने के लिए पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग/गैस राहत विभाग/सामाजिक न्याय विभाग से समन्वय किया जाएगा।

9.17 ज्ञान आधारित अर्थ-व्यवस्था के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति का तैयार किया जानाः- प्रदेश में राज्य शासन द्वारा प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने एवं सूचना प्रौद्योगिकी की शिक्षा, प्रबंधन, सुशासन, विकास एवं जन-सामान्य के सशक्तिकरण की दिशा में प्रभावी एवं कारगर भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए तथा प्रदेश की जनता एवं विशिष्टतौर पर युवाओं को कम्प्यूटर साक्षर बनाने के लिए तथा सूचना प्रौद्योगिकी की पहुँच आम जनता तक पहुँचाने के लिए मध्यप्रदेश नॉलेज कॉर्पोरेशन की स्थापना की जाएगी, जिससे कि ज्ञान आधारित समाज एवं अर्थ-व्यवस्था के लिए लोगों को तैयार किया जा सके।

9.18 अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय संस्थाओं/एजेंसियों/उद्योगों/शासकीय विभागों से सहयोगः

9.18.1 तकनीकी शिक्षण संस्थाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों, संस्थाओं एवं औद्योगिक संगठनों के साथ फैकल्टी एक्सचेंज, स्टूडेंट एक्सचेंज एवं ट्वीनिंग कार्यक्रमों हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा।

9.18.2 अन्य विभागों की योजनाओं के संचालन के संदर्भ में (जिसमें प्रशिक्षण की आवश्यकता हो) आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण की व्यवस्था आईटीआई/पॉलीटेक्निक में विकसित करने हेतु प्रयास किये जायेंगे, जिससे एक तरफ विभिन्न विभागों की योजनाओं का लाभ दूरस्थ अंचल तक पहुँच सके एवं संस्थाओं की आय के स्रोत भी बढ़ सकें।

9.18.3 संस्थाओं के पास उपलब्ध संसाधनों के अधिकतम उपयोग हेतु संस्थाओं के मध्य रिसोर्स शेयरिंग को बढावा दिया जाएगा।

9.18.4 उद्योगों की विशिष्ट प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थाएँ उद्योगों से साझेदारी/एमओयू कर विशिष्ट पाठ्यक्रमों/प्रशिक्षण का संचालन कर सकेगी।

9.19 तकनीकी शिक्षा का प्रचार-प्रसारः- 10वीं से 12वीं कक्षा तक के स्कूल के छात्रों को समीप की आदर्श आईटीआई या तकनीकी शिक्षण संस्थान में भ्रमण करवाना, जिससे उनकी तकनीकी पाठ्यक्रमों में जागरूकता/अभिरुचि में वृद्धि हो एवं अधिक से अधिक छात्र भविष्य में तकनीकी कौशल से जुड़े क्षेत्रों में कार्य करने के लिये प्रेरित हो सकें। तकनीकी संस्थाओं के पाठ्यक्रमों के प्रचार-प्रसार हेतु राज्य-स्तर एवं जिला-स्तर पर मार्गदर्शन-सह-नियोजन मेलों का आयोजन किया जायेगा।

10.0 तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग की नीति 201 में किये गये प्रावधानों के अनुरूप कार्य संपादित करने हेतु अधिकृत किया गया।

11.0 इस नीति के अंतर्गत व्याख्या एवं संशोधन संबंधी निर्णय लेने के लिए मान. मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में गठित शीर्ष-स्तरीय (अपेक्स) निवेश संवर्धन साधिकार समिति निर्णय लेने के लिए सक्षम रहेगी।

12.0 इस नीति के अंतर्गत प्राप्त समस्त प्रस्ताव ट्रायफेक के माध्यम से एकल खिड़की प्रणाली के अंतर्गत निराकृत किये जायें।

स्त्रोत: मध्यप्रदेश शासन

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate