मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में जहाँ तक गांवों का प्रश्न है, इसे निर्मल भारत अभियान की सफलता के साथ जोड़ कर ही देखा जाता रहा हैI निर्मल भारत अभियान का उद्देश्य सम्पूर्ण स्वच्छता के द्वारा गांवों में रह रहे लोगों के जीवन में बदलाव लाना हैI ऐसा माना जा रहा है कि 2022 तक हम निर्मल भारत का निर्माण कर सकेंगेI अभी हमारा पूरा ध्यान इस पर है कि हर घर में शौचालय हो, ताकि हम ‘खुले में शौच मुक्त भारत’ का निर्माण कर सकेI इस दिशा में सन 2003 से ही ऐसे गांवों को पुरस्कृत करने का कार्यक्रम चलता आ रहा है। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद भी झारखण्ड राज्य का प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं रहा हैI यदि हम निर्मल भारत अभियान के आज के झारखण्ड के रिपोर्ट कार्ड को देखे तो यह स्पष्ट है कि हमें और प्रयास कि जरुरत हैI
झारखण्ड में निर्मल भारत अभियान की स्थिति (6 अक्टूबर 2014 तक)
घटक |
परियोजना उद्देश्य |
परियोजना प्रदर्शन |
उपलब्धि(प्रतिशत में) |
आइएचएचएल बीपीएल |
2327306 |
1496565 |
64.30 |
आइएचएचएल एपीएल |
1402189 |
242182 |
17.27 |
आइएचएचएल कुल |
3729495 |
1738747 |
46.62 |
स्कूल शौचालय |
42687 |
40006 |
93.72 |
स्वच्छता परिसर |
1203 |
327 |
27.18 |
आगनवाडी शौचालय |
11472 |
7771 |
67.74 |
आरएसएम्/पीसी |
249 |
751 |
301.61 |
स्रोत: स्वच्छ भारत अभियान
निर्मल ग्राम परियोजना झारखण्ड में सन 2002-03 में शुरू की गयी थी। किफ़ायती शौचालयों के निर्माण की गति 2006-07 से 2010-11 में तेजी पकड़ी थी। शुरू से लेकर अबतक राज्य के 3729495 ग्रामीण घरों के 44 प्रतिशत भाग में शौचालय उपलब्ध कराये जा चुके थे। 225 ग्राम पंचायतों की पहचान सरकारी आंकड़ों के आधार पर निर्मल ग्राम के रूप में की जा चुकी थी। लेकिन वर्ष 2011 के जनगणना रिपोर्ट के आधार पर झारखण्ड में केवल 8 प्रतिशत ग्रामीण घरों में चलायमान शौचालय उपलब्ध थे। यानि, 36 प्रतिशत का अंतर दिखाई पड़ रहा था। इसका मतलब हुआ कि इतने घर पुरानी पद्धति के खुले में शौच करने वाली परम्परा में वापस जा चुके थे। (पेय जल आपूर्ति विभाग का वेबसाइट, भारत सरकार)
सरकार अपने स्तर के साथ साथ गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाओं को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर रही है। शुरुआती कठिनाइयों के बाद, आम जनता निर्मल भारत के अभियान में काफ़ी हद तक बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैI कार्यक्रम की महता को देखकर मिलेनियम गोल के तहत ग्लोबल नाइन का अजेंडा भी इस मुहिम के साथ जुड़ गया हैI
भले ही शौचालयों के निर्माण के बाद सरकार ने कई गांवों को निर्मल ग्राम घोषित कर दिया हो, एवं ग्रामीण विद्यालयों में शौचालयों की व्यवस्था कराने का संकल्प लिया हो, हाल में किए गये सहभागी ग्रामीण अंकेक्षण के रिपोर्ट एक दूसरी ही तस्वीर पेश करती हैंI यदि गावों में पीने योग्य साफ पानी उपलब्ध हो, तो ग्रामीण अपने गांव को साफ मानते हैंI कई बार उनका तात्पर्य पचास परिवारों के लिए चार चलायमान चापाकलों से होता हैI हाल के दिनों में पेयजल और स्वच्छता विभाग द्वारा मोटर युक्त चापाकल से घर घर पानी पहुँचाने का प्रयोग किया गया हैI सहभागिता के आधार पर नियोजन खर्च के अतिरिक्त, रख रखाव के लिए प्रत्येक परिवार से एक रूपये प्रतिदिन के हिसाब से परिवारों में पानी पहुँचाया जा रहा है। इसका सीधा लाभ गृहिणियों को हुआ है। अब उन्हें पानी लाने के लिए दूर जाना या चापाकलों के पास लाइन लगाना नहीं पड़ता है; और न ही इन चापाकलों के इर्द गिर्द जमे पानी की वजह से गन्दगी का सामना। वे आराम से अपने जरुरत भर का पानी घर में ही पा जाती हैं। इसके साथ अब मवेशियों के लिए अच्छी मात्रा में पानी उपलब्ध है, साथ ही गोशालों की सफाई भी बेहतर ढंग से हो पा रही है।
आम तौर पर विकास के नाम पर गांवों को सड़कों से जोड़ने पर बल दिया जाता रहा है। जहाँ तक ग्रामीणों का पक्ष है, उनका मानना है कि गांवों में अपनी गलियां हैं जो चार फीट से लेकर छह फीट चौड़ी हुआ करती हैं। चूँकि इन्हीं गलियों से लोगों और मवेशियों दोनों का ही आना जाना होता है, कच्ची होने के कारण, ये गलियां अक्सर साफ़ सुथरी नहीं होती हैं। जिस प्रकार शहरों में वाहनों से प्रदुषण फैलता है, मवेशियां ग्रामीण परिवेश में गन्दगी का कारण बनते हैं । ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से आंशिक रूप से ही सही, इन गांवों गलियों को पक्का करने या कम से कम पत्थरों से पाटने का कार्यक्रम चलाया गया है। जहाँ ग्रामीण गलियों का पक्कीकरण हो सका है, ग्रामीणों को लगता है कि उनका गांव निर्मल ग्राम बन रहा है। सरकार इन गलियों को ग्रामीणों के सामाजिक दायित्व से नहीं जोड़ पायी है। देखा गया है कि गांवों में पक्की गलियों की सामूहिक साफ़ सफाई नहीं होती है। ग्राम सभा की समिति इस सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिये पहल कर सकती है। अनिवार्य साप्ताहिक साफ़ सफाई का कार्यक्रम के शामिल होने से ग्रामीण निर्मल ग्राम से ऊपर उठकर स्वच्छ ग्राम के मुहिम में सार्थक कदम उठा सकते हैं।
सहभागी ग्रामीण आकेन्चन के मुताबिक़ जिन गांवों में बिजली पहुँच गयी है, ग्रामीण उन गांवों को भी स्वच्छ ग्रामों की श्रेणी में रखने लगे हैं। राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम वर्ष 2005 से शुरू होकर अब तक चला है। लेकिन झारखण्ड जैसे राज्य में 30 जून 2013 तक 96 प्रतिशत (18105) जहाँ विजली नहीं पहुंची थी और 90 प्रतिशत (5739) जहाँ विजली आंशिक रूप से पहुंची थी, पूरा किया गया था। जहाँ तक किसी गांव में बिजली, पानी और सड़क की उपलब्धता का सवाल है, ग्रामीणों का यह मानना है कि यह उस गांव के नेतृत्व पर भी निर्भर करता है। जिस गांव में ग्राम सभा मजबूत हो, और उसका नेतृत्व मुखर हो, इन बुनयादी सुविधाओं को हासिल करने में वह अपनी भूमिका निभाता है। सर्वविदित है कि सभी गांवों की सभी आवश्कताओं को सीमित संसाधनों से पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकारी सहायता, परियोजनाओं और सहयोग की जानकारी और इन कार्यक्रमों को लागु करने की प्रतिबद्धता जहाँ नजर आती है वहां विकास का मार्ग बेहतर तरीके से कारगर होता है। इसके विपरीत उन गांवों में जहाँ नेतृत्व का अभाव या स्वयं सेवी संस्थाओं की भूमिका कम रही हो, ऐसे विकास के कार्यकमों से वंचित रह जाते हैं, या पिछड़ जाते है।
सहभागी ग्रामीण अंकेक्षण यह मानता है कि सरकार या सरकारी विकास के कार्यक्रम एक सीमा तक ही सुविधाओं को बहाल कर सकती हैं। किसी भी गांव को आगे बढ़ने या स्वच्छ भारत जैसे आन्दोलन को सफल करने के लिए जरुरी है सामाजिक सरोकारो एवं दायित्वों का होना. ग्रामीणों की सामूहिक जिम्मेदारी और अनुशासन ही स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार कर सकती है। उदहारण के तौर पर, चूँकि ग्रामीण कृषि कार्य से जुड़े होते हैं, और इसलिए मवेशियों का घर घर से ताल्लुक होता है। आम तौर पर ग्रामीण गोशालों से गोबर और अन्य मलमूत्र साफ़ कर पास के ही किसी खुले गड्ढे में फ़ेंक देते हैं। इसका प्रदुषण पूरे गांव में फैलता है। अब इस तरह की सफाई के लिए सरकारी स्तर पर कोई पहल की उम्मीद करना बेमानी होगी। यहीं ग्रामीण सामुदायिक उत्तरदायित्व की बात आती है। जब तक ग्रामीण अपने स्तर पर गांव को स्वच्छ रखने की मुहिम नहीं चलाएंगे, यह अभियान सफल नहीं हो सकता। जहाँ ग्राम सभा मजबूत है, या सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से महिला स्वयं सहायता समूह मजबूत हैं, ऐसे सामुदायिक दायित्व पर बहस हो सकती है, और सार्थक पहल उठाये जा सकते हैं।
जाहिर है कि सरकार भले ही अभियान के तर्ज़ पर काम करते हुए विभागीय लक्ष्यों की प्राप्ति कर ले, लाइन विभाग के कार्यक्रमों के बीच सामंजस्य बनाये वगैर स्वच्छ भारत के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। यदि पूरे गांव को सिर्फ किफायती शौचालयों के निर्माण और प्रयोग मात्र से निर्मल ग्राम घोषित कर दे, गांव, स्वच्छ गांव नहीं बन सकते। परियोजनाओं के समेकित क्रियान्वयन से ही स्वच्छ ग्राम के लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती हैं। आवश्यकता है, सरकारी परियोजनाओं और ग्रामीण सामाजिक दायित्वों का एक पटल पर आना, तभी अभियान स्वच्छता हासिल हो सकती है। माटी से जुड़े होने के कारण ग्रामीण स्वच्छता की अवधारणा को भी समझने की जरुरत है। आम तौर पर शहरी जिस माटी को गंदगी समझ बैठते हैं, ग्रामीणों के हिसाब से ऐसा ही हो, जरुरी नहीं है।
डॉ. फा. रंजीत टोप्पो, ये.स.
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