शेलगांव गौरी जिला नांदेड़ में एक पुनर्स्थापन गाँव है | वर्षों से यहाँ निवासी घटिया किस्म के पानी से होने वाले रोगों से बीमार हो रहे थे | पानी में भारी मात्रा में लौह था | जिसे मानक रसायनिक संसाधन से नहीं निकाला जा सकता था | निजी और समुदाय शौचालयों के निर्माण ठोस अपशिष्ट सामग्री के बेहत्तर प्रबंधन तथा बेकार पानी के निपटान जैसे सफाई कार्यों में सुधार लाने के लिए की गई अनेक पहलों के बावजूद पानी से उत्पन्न होने वाले रोगों से कोई राहत नहीं मिल पा रही थी |
आंध्रा के अपने एक अध्ययन दौरे के दौरान पूर्व सरपंच ने एक ग्राम पंचायत में जल संसाधन प्लांट देखा और इसे शेलगांव गौरी पंचायत में लगाने का निर्णय किया | उन्होंने आंध्रा में “बाला विकास” नामक एनजीओ से सम्पर्क किया और इस बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त की |
ग्राम सभा की स्वीकृति मिलने के बाद 2012-13 में जल संसाधन प्लांट लगाया गया | एनजीओ बाला विकास ने आवश्यक तकनीकी सहायता दी और इस प्लांट को लगाने में सहयोग दिया जो पिछले एक वर्ष से चालू है | यह प्लांट लगाने पर 6,00,000 रूपये की लागत आई | इस प्लांट के रख-रखाव और प्रचालन के लिए ग्राम पंचायत इससे तैयार होने वाले पानी को बोतलों में साल कर बेचती है | यहाँ के निवासियों के लिए पानी की 20 लीटर की बोतल की कीमत 3 रूपये है | जबकि बाहरी व्यक्तियों के लिए इसकी कीमत 20 रूपये है | इस जल संसाधन प्लांट के चालू होने के बाद ग्राम पंचायत में पानी से होने वाले रोगों में उल्लेखनीय कमी हुई है | लौह की मात्रा भी कम होकर स्वीकार्य सीमा तक हो गई है |
ग्राम पंचायत को पानी की बहुत कमी का सामना करना पड़ रहा था | जल स्वराज और स्व जलधारा जैसी स्कीमों के कार्यान्वयन के बावजूद यह समस्या बनी रही | जमीनी पानी का स्तर लगातार गिर रहा था और गर्मियों के दौरान पशुओं के लिए पर्याप्त पानी नहीं था | इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए सरपंच ने गहन विचार-विमर्श के लिए ग्राम सभा बुलाई जिसमें एक वरिष्ठ नागरिक ने यह सुझाव दिया कि ओवर हेड टैंक के निकट गहरे प्लाट में तालाब बना दिया जाए | जिसमें इस टैंक से बहने वाला पानी इक्ट्ठा होगा यह सुझाव मान लिया गया और गाँव वालों ने इस योजना को लागू करने के लिए अपनी पूरी सामूहिक ताकत लगा दी | लोगों ने लाइनदार किनारों के साथ जल भण्डार टैंक बनाने के लिए पैसे का अंशदान और श्रमदान (स्वैच्छिक सेवा) किया | आज इस टैंक में 80,000 किलो लीटर तक पानी इक्ट्ठा होता है, जिसका इस्तेमाल पशुओं को पिलाने के लिए और कपड़े धोने के लिए किया जता है | कपड़े धोने के लिए एक अलग धुलाई घाट बनाया गया है, ताकि तालाब का पानी दूषित न हो | कपड़ो की धुलाई से निकलने वाला पानी मल गड्ढ़े में डाला जाता है | जिससे जमीन के पानी का स्तर बढ़ जाता है |
स्रोत: भारत सरकार, पंचायती राज मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 8/29/2019
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