समाज कल्याण विभाग अप्रैल 1, 2007 को महिला एवं बाल विकास विषय का स्वतंत्र विभाग बना। विभाग का मुख्य अधिदेश समाज के सीमांतीकृत वर्गों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, महिलाओं, बच्चों, वृद्धजनों एवं निःशक्तों के हितों और अधिकारों की रक्षा करना है। इन समूहों का समेकित विकास सुनिश्चित करने के लिए विभाग भारत के संविधान, विभिन्न कानूनों, राज्य के आदेशों और मार्गनिर्देशों को आधार बनाते हुए कार्यक्रम और नीतियाँ बनाता है।
निदेशालय किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम और समेकित बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) - जो बाल संरक्षण सेवाओं के लिए एक व्यापक छत्र प्रदान करता है - द्वारा अधिदेशित संस्थागत और सेवा प्रदायगी कार्यतंत्र के माध्यम से बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और प्रोन्नति के लिए कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करता है। इसके अतिरिक्त निदेशालय निम्नलिखित योजनाओं और कार्यक्रमों का कार्यान्वयन भी करता है:
1. मुख्य मंत्री कन्या विवाह योजना;
2. मुख्य मंत्री कन्या सुरक्षा योजना;
3. कामकाजी माताओं के बच्चों के लिए राजीव गांधी शिशुशाला योजना;
5. चाइल्डलाइन, मुसीबत में फंसे बच्चों के लिए 24 घंटे की आपात्कालीन फोन-लाइन सेवा; और
6. मानव व्यापार से निपटने के लिए कार्यक्रम
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 और किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के कानूनी ढांचे के भीतर समाज कल्याण विभाग ने राज्य स्तर पर राज्य बाल संरक्षण इकाई (एससीपीयू) और जिला स्तर पर जिला बाल संरक्षण इकाइयों (डीएसपीयू) का गठन किया है। किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के प्रावधानों के अनुसार हर जिले में सांविधिक निकायों का गठन किया गया है जिनमें बाल कल्याण समितियां (बच्चों की देखरेख और संरक्षण के लिए), किशोर न्याय परिषद और विशेष किशोर पुलिस इकाइयां/किशोर कल्याण अधिकारी (विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों की देखरेख और संरक्षण के लिए) शामिल हैं। डीसीपीयू इन सांविधिक निकायों और संस्थानों के कार्यकलापों को सुगम बनाती है।
बाल अधिकार संरक्षण आयोग, 2005 के प्रावधानों के आलोक में बच्चों की समस्याओं को हल करने के लिए बाल अधिकारों के संरक्षण हेतु एक बाल अधिकार संरक्षण आयोग गठित किया गया है।
महिलाओं के लिए पहलकदमियां
समाज कल्याण निदेशालय द्वारा महिलाओं के समेकित विकास और सशक्तीकरण के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम संचालित हैं:
1. मुख्य मंत्री नारी शक्ति योजना
2. मुख्य मंत्री कन्या सुरक्षा योजना
3. घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए योजना;
4. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की रक्षा; और
5. निदेशालय, महिला विकास निगम और राज्य महिला आयोग की सहभागिता से महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सशक्तीकरण के लिए कार्य करता है।
महिला विकास निगम द्वारा मुख्य मंत्री नारी शक्ति योजना संचालित की जाती है - जो महिलाओं के संरक्षण, विकास और सशक्तीकरण की समेकित योजना है - जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन करता है। निगम घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की रक्षा के लिए सामाजिक जागरूकता पैदा करने हेतु कार्यक्रम और महिलाओं के बीच उद्यमिता को प्रोन्नत करने के लिए नवाचारी योजनाएं संचालित करता है।
सामाजिक कल्याण निदेशालय का नेतृत्व निदेशक द्वारा किया जाता है जिनकी सहायता के लिए संयुक्त निदेशक उप निदेशक, एवं सहायक निदेशक होते हैं जिन्हें राज्य में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के संरक्षण, कल्याण, उनके विकास और सशक्तीकरण से संबंधित कार्यकलापों से संबंधित कार्यकलापों की विशेष जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं।
निदेशालय राज्य बाल संरक्षण इकाई (एससीपीयू) और जिला बाल संरक्षण इकाइयों (डीसीपीयूज) के कार्यकलापों का पर्यवेक्षण और समन्वय करता है।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के साथ मिल कर बाल अधिकारों के संरक्षण का कार्य करता है। वह महिला विकास निगम द्वारा कार्यान्वित कार्यक्रमों का निरीक्षण करता है और अपनें कार्यक्रमों का समन्वय राज्य महिला आयोग तथा बिहार समाज कल्याण बोर्ड के कार्यक्रमों से करता है।
जिला स्तर पर सहायकनिदेशक, सामाजिक सुरक्षा, बच्चों और महिलाओं से संबंधित समस्त कार्यक्रमों के निष्पादन और कार्यान्वयन का प्रभारी होता है। वह जिला बाल संरक्षण इकाई के लिए नोडल अधिकारी के रूप में भी कार्य करता है।
कल्याणकारी योजनाएं और कार्यक्रम इस प्रकार हैं-
मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना का उद्देश्य राज्य में भिक्षावृत्ति की कुप्रथा का उन्मूलन करना और भिक्षावृत्ति करने वालों का पुनर्वास करना है। इस योजना के अंतर्गत निदेशालय निराश्रितों और विशेषकर वृद्धजनों के पुनर्वास के लिए चिकित्सा और अन्य सुविधाओं के साथ आश्रय गृह स्थापित करता है। यह योजना युवा भिक्षावृत्ति करने वालों का पुनर्वास भी करती है। पटना में अग्रगामी आधार पर पहलकदमी करने के बाद अब इन कार्यकलापों का चरणबद्ध तरीके से सभी प्रभागीय और जिला मुख्यालयों में विस्तार किये जाने की योजना है।
इस समय इस योजना का कार्यान्वयन पटना ज़िले में किया जा रहा है जिसके अंतर्गत पुनर्वास के लिए 1,680 भिखारियों को चिन्हित किया गया है।
लाभ और पात्रता
इस योजना का उद्देश्य भिक्षावृत्ति करने वालों को भिक्षावृत्ति से अलग करना और उनका पुनर्वास करना है।
अति गरीब व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए स्टेट सोसाइटी फॉर रीहैबीलिटेशन ऑफ़ अल्ट्रा पूअर की स्थापना की गई है। अति गरीब लोगों में निःशक्त व्यक्ति व भिखारी आते हैं| वर्तमान समय में संयुक्त निदेशक, सामाजिक सुरक्षा और निःशक्तता परियोजना अधिकारी, परियोजना सेल की भूमिका निभाएंगे स्टेट सोसाइटी फॉर रीहैबीलिटेशन ऑफ़ अल्ट्रा पूअर के अन्य पदों के लिए विज्ञापन निकाल कर कुल पदों पर संविदा के आधार पर नियुक्ति की गयी है| इसके साथ गैर सरकारी संस्था 'मेधा' का चुनाव भी कर लिया गया है, यह संस्था भिखारियों का सर्वेक्षण करेगी| जिला स्तरीय स्क्रीनिंग कमेटी अंत में भिखारियों के नामों का चुनाव करेगी| इस कमेटी के सदस्य गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि, निःशक्त क्यक्ति व ज़िला मजिस्ट्रेट होंगे। पुनर्वास के लिए एक तीन स्टेप मॉडल निर्धारित किया गया है - सुझाव और पुनर्वास, कौशल विकास और स्वरोज़गार के अवसर।
कैसे प्राप्त करें
इस योजना का कार्यान्वयन करने के उद्देश्य से 'अत्यंत निर्धनों के पुनर्वास हेतु बिहार राज्य सोसाइटी' का पंजीकरण किया गया है। भिक्षावृत्ति करने वालों और 'अत्यंत निर्धनों' या निराश्रितों की नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच और चिकित्सीय सहायता के लिए पटना में एक अस्पताल को नोडल अस्पताल के रूप में चिन्हित किया गया है। भिक्षावृत्ति करने वालों के पुनर्वास की प्रक्रिया में साझेदारी हेतु गैर-सरकारी संस्थाओं को चिन्हित किया गया है।
बाल विवाह निषेध योजना का मुख्य लक्ष्य विवाह की कानूनी आयु से पहले विवाह की रोकथाम करना है। विवाह की कानूनी आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है। इस योजना का उद्देश्य किशोर-किशोरियों को शैक्षिक, शारीरिक और मानसिक विकास के अवसर प्रदान करना भी है। बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006 किसी भी ऐसे विवाह को कानूनी विवाह के रूप में मान्यता नहीं देता जो विवाह की कानूनी आयु से पूर्व किया गया हो।
बाल विवाह के समस्या को हल करने के लिए बिहार महिला विकास निगम ने बाल विवाह की रोकथाम को प्रोत्साहित करने ओर कार्यक्रमों, योजनाओं एवं नीतियों को अधिक संवेदनशील बनाने के लिए एक समुदाय जागरूकता अभियान की शुरूआत की है।
इस योजना का कार्यान्वयन बिहार के वैशाली, नवादा और गया जिलों में किया जा रहा है। हर जिले के अंतर्गत परिधि में लिये जाने वाले क्षेत्र इस प्रकार हैं:
जिला |
प्रखंड |
पंचायत |
गांव |
|
नवादा |
06 |
60 |
268 |
1,800 |
गया |
06 |
55 |
360 |
1,800 |
वैशाली |
08 |
125 |
225 |
2,400 |
तीनों जिलों का योग |
20 |
240 |
853 |
6,000 |
इस योजना के अंतर्गत 5,937 स्वयं सहायता समूहों के 77,129 सदस्यों ने प्रशिक्षण सत्रों में भाग लिया।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना की शुरूआत वर्ष 2009-10 से विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के अंग के रूप में की गई थी।
नवम्बर, 2011 तक इस योजना से लाभान्वित विधवा महिलाओं की कुल संख्या 3.20 लाख है जबकि भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य 2.41 लाख था।
लाभ और पात्रता
इस योजना के अंतर्गत पात्र व्यक्ति को रु. 300/- की मासिक पेंशन प्रदान की जाती है। इसके अंतर्गत 40-79 वर्ष की बीपीएल परिवारों की विधवा महिलाएं लाभ प्राप्त करने की पात्र हैं।
कैसे प्राप्त करें
इस योजना को 15 अगस्त, 2011 से लोक सेवा अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत लाया गया है। योजना के लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदक को प्रखण्ड कार्यालय में विहित प्रपत्र (प्रपत्र-I) में दो प्रतियों में फोटो सहित अपने प्रखंड कार्यालय में जमा करना होता है। आवेदक को आवेदन पत्र के जमा करने के पश्चात् प्राप्ति रसीद प्राप्त कर लेना है जिसके आधार पर वे अपने आवेदन के संबंध में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। निश्चित समय में आवेदन पत्र के आधार पर अनुमण्डल पदाधिकारी द्वारा पेंशन की स्वीकृति दी जाती है। आवेदन रद्द होने की सूचना भी आवेदक को दी जाती है।
स्वीकृति के उपरान्त स्वीकृत्यादेश की एक प्रति संबंधित डाकघर को प्रेषित की जाती है। पेंशन की राशि पोस्ट ऑफिस में लाभार्थी के बचत खाते में जमा की जाती है।
राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस) का कार्यान्वयन सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की सहायता के लिए किया जाता है। इसके अंतर्गत परिवार के मुख्य आय-अर्जनकर्ता की मृत्यु पर परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
लाभ और पात्रता
इस योजना के अंतर्गत परिवार के मुख्य आय-अर्जनकर्ता की मृत्यु पर परिवार को 20,000/- रु. एकमुश्त की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। जिस मुख्य आय अर्जनकर्ता की मृत्यु हुई है उसकी आयु 18 से 64 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
कैसे प्राप्त करें
लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदक को सबसे निकट के ग्राम पंचायत कार्यालय, नगर पालिका या प्रखंड कार्यालय में विधिवत रूप से भरे गये आवेदन पत्र की दो प्रतियां जमा करनी होती हैं। आवेदन पत्र पर आवेदक का फ़ोटो लगा होना चाहिए तथा, मृतक की आयु, बीपीएल संख्या, वार्षिक आय जैसे विवरण दर्ज होने चाहिए।
प्रखंड विकास अधिकारी आवेदन पत्र को विवरणों की पुष्टि हेतु संबंधित पंचायतों को अग्रसरित करता है। विवरणों की जांच के बाद आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है।
कबीर अंत्येष्टि अनुदान योजना को राज्य में वर्ष 2007 में आरंभ किया गया था। इसके अंतर्गत बी.पी.एल. परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के उपरान्त, अन्त्येष्टि क्रिया के लिए 1500/- रु0 की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
लाभ और पात्रता
इस योजना के अन्तर्गत बी.पी.एल. परिवार के किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त उसके आश्रित परिवार को अन्त्येष्टि क्रिया हेतु राशि दी जाती है।
कैसे प्राप्त करें
ग्रामीण क्षेत्रों में मुखिया एवं शहरी क्षेत्रों में वार्ड कमिश्नर के पास नगद भुगतान हेतु राशि की व्यवस्था रहती है ताकि मृतक के आश्रित को त्वरित भुगतान किया जा सके। इसके लिए आवेदक को मुखिया/वार्ड कमिश्नर के पास सादे कागज पर आवेदन कर राशि का तुरत भुगतान प्राप्त किया जा सकता है।
बिहार राज्य सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अन्तर्गत 60 से 64 वर्ष आयु के वैसे गरीब परिवार के व्यक्ति जिनकी आय शहरी क्षेत्रों में रु. 5500/- वार्षिक एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रु. 5000/- वार्षिक से कम हो को रु. 300/- प्रति माह प्रति पेंशनधारी की दर से पेंशन दिया जाता है। बंधुआ मजदूर के मामले में आय एवं उम्र की सीमा लागू नहीं है।
इस योजना का कार्यान्वयन वर्ष 1974 से किया जा रहा है।
लाभ और पात्रता
इस योजना के अंतर्गत पात्र व्यक्तियों को प्रतिमाह 200 रु. की राशि प्रदान की जाती है। आवेदक की आयु 60 से 64 वर्ष के बीच होनी चाहिए, वह निर्धनता रेखा से नीचे के परिवार का होना चाहिए और आईजीएनओएपीएस का लाभार्थी नहीं होना चाहिए। आवेदक की अधिकतम वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्र के मामले में 5,000/- रु. और शहरी क्षेत्र के मामलों में 5,500/- रु. तक होनी चाहिए।
कैसे प्राप्त करें
लाभार्थियों की पहचान मुखिया और पंचायत सचिव द्वारा की जाती है। ग्राम सभा भी लाभार्थियों की सिफ़ारिश कर सकती है। पेंशन का संवितरण पेंशनभोगी के पोस्ट ऑफिस बचत खाते के माध्यम से किया जाता है।
लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना को मुख्यत: विधवाओं के कल्याण के लिए वर्ष 2007 में आरंभ किया गया है। वर्तमान में इस योजना में वैसी विधवा महिला को पेंशन दिया जाता है जो:-
(i) 18-39 वर्ष आयु वर्ग की हो एवं जो या तो बी.पी.एल. परिवार की हो या जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
(ii) 40 से 59 वर्ष आयु वर्ग की हो एवं जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
(iii) 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की हो एवं जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
कार्यान्वयन स्थिति
नवम्बर, 2011 तक 4.62 लाख लाभार्थियों को इसकी परिधि में लाया जा चुका है जबकि लक्ष्य 5 लाख लाभार्थियों को लाभान्वित करने का है।
लाभ और पात्रता
इस योजना के अंतर्गत पात्र व्यक्तियों को प्रतिमाह 300 रु. की राशि प्रदान की जाती है। 18-65 वर्ष आयु समूह की और 65 वर्ष से अधिक की वे विधवा महिलाएं- जो राष्ट्रीय वृध्दावस्था पेंशन योजनाओं के लाभ प्राप्त करने की पात्र नहीं हैं- इस योजना के अंतर्गत लाभों की पात्र हैं। इसके पात्रता मानदंड इस प्रकार हैं:-
18-39 वर्ष आयु वर्ग की हो एवं जो या तो बी.पी.एल. परिवार की हो या जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
40 से 59 वर्ष आयु वर्ग की हो एवं जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की हो एवं जिनकी वार्षिक आय रु. 60000/- से कम हो।
60 या उससे अधिक वर्ष की वे महिलाएं जो लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना की पिछली लाभार्थी थीं और जिन्हें बीपीएल सूची में शामिल न होने के कारण राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना में शामिल नहीं किया गया।
वे महिलाएं जो बिहार की निवासी हैं और आवेदन की तिथि के बाद कम से कम दस वर्ष से राज्य में रह रही हैं।
कैसे प्राप्त करें
इस योजना को 15 अगस्त, 2011 से लोक सेवा अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत लाया गया है। योजना के लाभ प्राप्त करने के लिए आवेदक को प्रखण्ड कार्यालय में विहित प्रपत्र (प्रपत्र-I) में दो प्रतियों में फोटो सहित एवं बी0पी0एल0 प्रमाण पत्र/आय प्रमाण पत्र, आयु प्रमाण पत्र तथा अधिवास प्रमाण पत्र के साथ आवेदन अपने प्रखंड कार्यालय में जमा करना होता है। आवेदक को आवेदन पत्र के जमा करने के पश्चात् प्राप्ति रसीद प्राप्त कर लेना है जिसके आधार पर वे अपने आवेदन के संबंध में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। निश्चित समय में आवेदन पत्र के आधार पर अनुमण्डल पदाधिकारी द्वारा पेंशन की स्वीकृति दी जाती है। आवेदन रद्द होने की सूचना भी आवेदक को दी जाती है। स्वीकृति के उपरान्त स्वीकृत्यादेश की एक प्रति संबंधित डाकघर को प्रेषित की जाती है। पेंशन की राशि पोस्ट ऑफिस में लाभार्थी के बचत खाते में जमा की जाती है।
मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना का उद्देश्य राज्य में भिक्षावृत्ति की कुप्रथा का उन्मूलन करना और भिक्षावृत्ति करने वालों का पुनर्वास करना है। इस योजना के अंतर्गत निदेशालय निराश्रितों और विशेषकर वृद्धजनों के पुनर्वास के लिए चिकित्सा और अन्य सुविधाओं के साथ आश्रय गृह स्थापित करता है। यह योजना युवा भिक्षावृत्ति करने वालों का पुनर्वास भी करती है। पटना में अग्रगामी आधार पर पहलकदमी करने के बाद अब इन कार्यकलापों का चरणबद्ध तरीके से सभी प्रभागीय और जिला मुख्यालयों में विस्तार किये जाने की योजना है।
कार्यान्वयन स्थिति
इस समय इस योजना का कार्यान्वयन पटना ज़िले में किया जा रहा है जिसके अंतर्गत पुनर्वास के लिए 1,680 भिखारियों को चिन्हित किया गया है।
लाभ और पात्रता
इस योजना का उद्देश्य भिक्षावृत्ति करने वालों को भिक्षावृत्ति से अलग करना और उनका पुनर्वास करना है।
अति गरीब व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए स्टेट सोसाइटी फॉर रीहैबीलिटेशन ऑफ़ अल्ट्रा पूअर की स्थापना की गई है। अति गरीब लोगों में निःशक्त व्यक्ति व भिखारी आते हैं| वर्तमान समय में संयुक्त निदेशक, सामाजिक सुरक्षा और निःशक्तता परियोजना अधिकारी, परियोजना सेल की भूमिका निभाएंगे स्टेट सोसाइटी फॉर रीहैबीलिटेशन ऑफ़ अल्ट्रा पूअर के अन्य पदों के लिए विज्ञापन निकाल कर कुल पदों पर संविदा के आधार पर नियुक्ति की गयी है| इसके साथ गैर सरकारी संस्था 'मेधा' का चुनाव भी कर लिया गया है, यह संस्था भिखारियों का सर्वेक्षण करेगी| जिला स्तरीय स्क्रीनिंग कमेटी अंत में भिखारियों के नामों का चुनाव करेगी| इस कमेटी के सदस्य गैर सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि, निःशक्त क्यक्ति व ज़िला मजिस्ट्रेट होंगे। पुनर्वास के लिए एक तीन स्टेप मॉडल निर्धारित किया गया है - सुझाव और पुनर्वास, कौशल विकास और स्वरोज़गार के अवसर।
कैसे प्राप्त करें
इस योजना का कार्यान्वयन करने के उद्देश्य से 'अत्यंत निर्धनों के पुनर्वास हेतु बिहार राज्य सोसाइटी' का पंजीकरण किया गया है। भिक्षावृत्ति करने वालों और 'अत्यंत निर्धनों' या निराश्रितों की नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच और चिकित्सीय सहायता के लिए पटना में एक अस्पताल को नोडल अस्पताल के रूप में चिन्हित किया गया है। भिक्षावृत्ति करने वालों के पुनर्वास की प्रक्रिया में साझेदारी हेतु गैर-सरकारी संस्थाओं को चिन्हित किया गया है।
स्रोत: समाज कल्याण निदेशालय, समाज कल्याण मंत्रालय बिहार व भारत सरकार, स्थानीय समाचार |
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