भारत ने खाद्य उत्पादन और निर्यात तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले कई दशकों में उल्लेखनीय प्रगतिकी है। दूध, गन्ना, काजू और मसालों के उत्पादन के मामले में भारत पहले स्थान पर है, जबकि चावल, गेहूं, दलहन, फल (ब्राजील के बाद) और सब्जियों (चीन के बाद) का यह दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। लेकिन विश्वव्यापी निर्यात में इसका हिस्सा तीन प्रतिशत से कम है। कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इनमें संस्थानिक समन्वय में कमी, तकनीकी विशेषज्ञता और उपकरणों की कमी, अद्यतन मानकों की कमी, उत्तरदायी निगरानी प्रणाली की अनुपस्थिति, इस उद्योग के क्षेत्र के संगठित और असंगठित क्षेत्रों में खाद्य धारकों के बीच सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दों के बारे में जागरूकता की कमी, खाद्य से जुड़ी बीमारियों की बढ़ती घटनाएं, नये चटकदार रोगजनक, आनुवांशिक रूप से रूपांतरित खाद्य का प्रवेश और विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद खाद्य उत्पादों का बढ़ता आयात शामिल है। अनुसंधान और विकास तथा अद्यतन सूचना प्रणाली का आधार कमजोर है तथा इसे समर्थन की भी जरूरत है। इसके अलावा केंद्र से राज्यों और राज्यों से केंद्र के बीच सूचनाओं के तीव्र प्रवाह की भी जरूरत है।
अंतरराष्ट्रीय खाद्य व्यापार बहुत जटिल, तकनीकी और प्रशासनिक काम है, जिसमें काफी बड़ी मात्रा और प्रकार में खाद्य का विश्वव्यापी संचालन होता है। खाद्य उत्पादन वैज्ञानिक आधारित होता है। खाद्य को लंबी दूरी तक समग्र रूप से उसकी गुणवत्ता बरकरार रखते हुए भेजना और फिर वहां तक उसी स्थिति में पहुंचाना संभव है। पूरी दुनिया में अब उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त खाद्य पहले से कहीं अधिक बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इन दोनों, गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाने में दो अन्य बातों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। पहली बात खाद्य उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में शामिल देशों, खासकर विकासशील देशों की बढ़ती संख्या है। दूसरी बात खाद्य रुचि और आदतों का अंतरराष्ट्रीयकरण है। पहली बात आर्थिक विकास, वाणिज्यिक रणनीति और कीमती विदेशी मुद्रा से संबंधित है। दूसरी बात अलग-अलग देशों के लोगों द्वारा एक-दूसरे के खाद्य को पसंद करने की प्रवृत्ति से संबंधित है।
सफल खाद्य निर्यातक बनने के लिए किसी भी देश को ऐसा खाद्य उत्पादित करना चाहिए, जो दूसरे देशों के उपभोक्ताओं को स्वीकार्य हो और जो आयातक देशों की संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हों। आयातक देशों की संवैधानिक अथवा अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना सफल और लाभप्रद खाद्य निर्यात की पहली और अपरिहार्य शर्त है। हालांकि विश्व समुदाय की खाद्य सुरक्षा के प्रति जागरूकता के कारण इसकी मांग अब तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा आयातक देशों की बड़ी संख्या अब अपने यहां कोई भी उत्पाद मंगाने से पहले उनके निरीक्षण और जांच के साथ-साथ निर्यातक देश की सरकारी एजेंसियों द्वारा उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को पूरा करने का प्रमाण पत्र भी मांगने लगे हैं।
कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन
कोडेक्स एलीमेंटेरियस (लैटिन में इसका अर्थ खाद्य कूट या खाद्य कानून होता है) एकीकृत रूप से प्रस्तुत खाद्य मानकों का संग्रह, गतिविधियों का कोड और अन्य है। कोडेक्स मानक, दिशा-निर्देश और अन्य अनुशंसाएं यह सुनिश्चित करते हैं कि खाद्य उत्पाद उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक नहीं हैं और देशों के बीच इनका सुरक्षित व्यापार किया जा सकता है।
1940 और 1950 के विश्व युद्ध के बाद के वर्षों की परिस्थितियों में निर्यातकों और सरकारों, दोनों ने राष्ट्रीय खाद्य कानूनों और नियमों को सभी देशों में एक समान करने की दलील दी, ताकि उनका व्यापार मुक्त हो सके। खाद्य के अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण के कई असफल प्रयास हुए, ताकि पूरी दुनिया में खाद्य जरूरतों तो को एक समान स्वरूप मिल सके। अंततः इन प्रयासों के कारण ही खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के संयुक्त खाद्य मानक कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1962 में कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन की स्थापना की गयी। संक्षेप में कार्यक्रम का उद्देश्य उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य का संरक्षण, खाद्य व्यापार में स्वच्छता और अंतरराष्ट्रीय खाद्य मानक कार्य में समन्वय करना है। कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन एक अंतर-सरकारी संगठन है और 168 सरकारें इसके सदस्य हैं।
कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन (सीएसी) खाद्य मानकीकरण के हर पहलू और खाद्य उत्पादन व बिक्री में उपभोक्ता सुरक्षा तथा विशेषज्ञों की राय के समन्वय और स्पष्टीकरण में विश्वव्यापी नेतृत्व प्रदान करता है। हरेक जगह के खाद्य विधायकों, नियंत्रकों, वैज्ञानिकों, उपभोक्ताओं और व्यवसायियों के लिए अब निर्णय लेने से पहले यह सवाल पूछने की परंपरा है कि – इस मामले में कोडेक्स का क्या कहना है।
खाद्य सुरक्षा मानक विश्व व्यापार संगठन के स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता प्रकार कार्यक्रम पर समझौते में परिभाषित है, जो खाद्य यौगिक, पशु औषधि और कीटनाशक अवशेष, मिलावट, विश्लेषण के तरीके और नमूनाकरण, नामकरण तथा स्वच्छता के तरीकों के दिशा-निर्देशों से संबंधित है। विश्व व्यापार संगठन द्वारा इस दिशा में कोडेक्स खाद्य सुरक्षा मानकों का इस्तेमाल संदर्भ के रूप में किया जा रहा है।
आयोग की स्थापना के बाद से खाद्य स्वच्छता सीएसी की एक प्रमुख गतिविधि हो गयी है। अमेरिकी सरकार द्वारा आयोजित खाद्य स्वच्छता पर कोडेक्स कमिटी की स्थापना 1963 में हुई थी। चूंकि खाद्य स्वच्छता का सर्वश्रेष्ठ नियमन निर्यातक देश में उत्पादन और प्रसंस्करण के चरण में होता है, इसलिए कमिटी की मुख्य नजर अंतिम उत्पाद के सूक्ष्म जैविक स्तर की बजाय स्वच्छता के तरीके के कूट पर रहती है। इस दर्शन को एक कदम आगे ले जाते हुए, सीएसी ने खाद्य स्वच्छता पर अपनी कमिटी के माध्यम से संकटकालीन नियंत्रण बिंदु (एचएसीसीपी) की खतरनाक विश्लेषण प्रणाली के पालन का दिशा-निर्देश अंगीकृत किया है। ऐसा कर इसने एचएसीसीपी को अंतिम उत्पाद की जांच पर निर्भर रखने की बजाय खतरा नापने के उपकरण और नियंत्रण प्रणाली के रूप में मान्यता दी है, जिसका उद्देश्य बचाव के उपाय करना है।
राष्ट्रीय कोडेक्स संपर्क बिंदु (एनसीसीपी) खाद्य एवं कृषि संगठन मुख्यालय में कोडेक्स सचिवालय और सदस्य देशों के कोडेक्स राष्ट्रीय प्राधिकारियों के बीच संपर्क का केंद्रीय बिंदु है। यह कोडेक्स दस्तावेज के आरंभिक प्राप्तकर्ता, प्रकाशन और अन्य संचार का काम करने के अलावा कोडेक्स मानकों के पुस्तकालय का रखरखाव, नियमों और दिशा-निर्देशों तथा संबंधित दस्तावेज की देखभाल करता है। इसके अतरिक्त जहां जरूरत है, वहां ज्ञान के प्रसार और सीएसी और इसकी अनुषंगी संस्थाओं के उद्देश्य, लक्ष्य तथा कार्यों के प्रचार-प्रसार के लिए सकारात्मक प्रयास करना है।
अनेक कोडेक्स सदस्य देशों में राष्ट्रीय कोडेक्स कमिटियों का गठन किया गया है, ताकि कोडेक्स मुद्दों, मानक प्रारूप, कोडेक्स और अन्य दस्तावेज के साथ कोडेक्स के अंतर्गत चर्चा किये गये सभी मुद्दों पर राष्ट्रीय स्थिति बनाने के लिए एक मंच उपलब्ध कराया जा सके। ये एनसीसीपी के कार्यों की पूरक होती हैं और सरकारी संस्थाओं, शैक्षणिक, उद्योग तथा उपभोक्ता संगठनों समेत सभी अंशधारकों की सहभागिता की इच्छा रखती है।
संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) खाद्य और कृषि से संबंधित सभी मुद्दों पर काम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र प्रमुख विशेषज्ञ एजेंसी है। खाद्य एवं पोषण प्रभाग अपनी खाद्य गुणवत्ता एवं मानक सेवाओं के माध्यम से नीतिगत सलाह की व्यवस्था द्वारा क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है। यह खाद्य उद्योग के लिए खाद्य गुणवत्ता एवं सुरक्षा आश्वासन कार्यक्रम, खाद्य मानकों के विकास और तकनीकी नियमों समेत गुणवत्ता नियंत्रण और सुरक्षा विकास परियोजनाओं को कार्यान्वित करता है। यह खाद्य मिलावट के लिए राष्ट्रीय निर्यात खाद्य प्रमाणीकरण कार्यक्रम और निगरानी कार्यक्रम की स्थापना भी कराता है। यह खाद्य नियंत्रण मुद्दों पर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सेमिनार तथा कार्यशालाओं का आयोजन करता है। क्षमता निर्माण में एफएओ द्वारा सदस्य देशों के उनके खाद्य नियंत्रण कार्यक्रम एवं गतिविधियों के सुदृढ़ीकरण के प्रयासों के समर्थन में चलायी गयी सभी गतिविधियां शामिल होती हैं। यह निम्नलिखित कार्य करता है-
क्षमता निर्माण में खाद्य सुरक्षा संबंधी विषयों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सेमिनार के आयोजन के साथ खाद्य नियंत्रण और खाद्य सुरक्षा विकास कार्यक्रमों के समर्थन के लिए आवश्यक हस्तकों, मार्गनिर्देशों, प्रशिक्षण सामग्री और अन्य उपकरणों का विकास एवं प्रसार शामिल है।
एफएओ के काम का एक महत्वूर्ण अवयव सरकारी अधिकारी समेत खाद्य सुरक्षा कार्मिक तथा खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा आश्वासन कार्यक्रम में लगे खाद्य उद्योग के कार्मिकों का क्षमता निर्माण है। विकासशील देशों के लिए एफएओ के तकनीकी सहयोग कार्यक्रम के हिस्से के रूप में टीसीपी/आइएनडी/0067 परियोजना- राष्ट्रीय कोडेक्स कमिटी का सुदृढ़ीकरण भारत में एफएओ तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और एनसीसीपी द्वारा कार्यान्वित किया गया। इस परियोजना के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य विभाग में एक राष्ट्रीय कोडेक्स संसाधन केंद्र स्थापित किया गया। यह अत्याधुनिक संचार एवं सचिवालीय सुविधाओं से लैस है, ताकि खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी अंशधारकों के बीच आपसी संवाद कायम हो सके।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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