खेत की तैयारी: खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाने के उद्देश्य से 2-3 जुताई करने के बाद पाटा अवश्य लगायें | ध्यान रखें की खेत में ढेले न बन पायें और पूर्व फसल के ठूंठ इत्यादि निकाल दें |
खरपतवार नियंत्रण: नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखें तथा रोपा फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा हें | वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करें |
(1) गंधी कीट के नियंत्रण के लिए इंडोसल्फान 4% धूल या क्कीनालफ़ॉस 1.5 टक्के धूल की 25 किलोग्राम मात्रा का भुरकाव प्रति हेक्टर की दर से या मोनोक्रोटोफ़ॉस 36 ई.सी. (1.5 लीटर प्रति हेक्टर) का छिड़काव करें |
(2) पत्र लपेटक कीट की रोकथाम के लिए क्कीनालफ़ॉस 25 ई.सी. (2 लीटर प्रति हेक्टर) का छिड़काव करें |
खेत की अच्छी तैयारी हेतु दो-तीन जुताई करनी चाहिए | प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाना आवश्यक है जिससे नमी संरक्षित रहे तथा अंकुरण अच्छा हो | तीसी को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए खेत की अंतिम जुताई के समय लिन्डेन धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें |
(1) तोरिया की पी.टी.303 तथा टी 9 किस्मों की सिफारिश की जाती हैं |
(2) पिली सरसों: झारखंड में इसकी खेती बहुत ही कम की जाती है | इसकी प्रमुख किस्में 66-197 -3 तथा विनय यहाँ के लिए उपयुक्त है |
(1) भुरा पिल्लू की रोकथाम के लिए पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए या फसल के ऊपर कीटनाशक दवा के रूप में न्यूवान 100 का 300 मि.ली. 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए |
(2) सरकोस्पोरा तथा आल्टरनेरिया रोग के लक्षण देखते ही इंडोफिल एम 45 के 2 ग्राम फफूंद नाशक को प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें |
बरसाती आलू की फसल 60-70 दिनों में तैयार हो जाती है | फसल तैयार होते ही तुरन्त कोड़ाई कर लेनी चाहिये तथा चार-पाँच दिनों के अंदर ही इसको बाजार में बेच देना चाहिए | बरसाती आलू की संरक्षण क्षमता बहुत कम होती है |
(1) जिन बगीचों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दें, उनमें 150-200 ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति वृक्ष की दर से अन्य उर्वरकों के साथ देना लाभकारी पाया गया है |
(2) यदि वर्षा नहीं हो रही हो तो पौधों की हल्की सिंचाई करें |
अम्लीय मृदा में 10-15 कि.ग्रा. चूना प्रति वृक्ष 3 वर्ष के अंतराल पर देने से उपज में वृद्धि देखी गई है | जिन बगीचों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे उनमें 150-200 ग्रा. जिक सल्फेट प्रति वृक्ष की दर से अन्य उर्वरकों के साथ देना लाभकारी पाया गया है |
लीफ स्पाट रोग के रोकथाम हेतु डाईथेन एम -45 के 2 ग्राम अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल 2-3 छिड़काव 10-15 दिन के अंतर से करना चाहिए |
आन्तरिक सडन प्रबंधक के लिए जिंक सल्फेट (0.4 प्रतिशत) कॉपर सल्फेट (0.4 प्रतिशत) तथा बोरेक्स (0.4 प्रतिशत) का छिड़काव सितम्बर-अक्टूबर माह में करना लाभप्रद होता है |
पौधों के जड़ों के पास नमी का उचित स्तर बनाये रखने तथा वर्षा जल को संरक्षित रखने के लिए सितम्बर-अक्टूबर में धान के पुआल या सूखे खरपतवारों की पलवार (मल्चिंग) बिछाने से पौधों की बढ़वार एवं उपज अच्छी होती है |
थैलेरिय: मुख्य उपचार सूई ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन 15-20 मि.ग्रा. की दर से नस में 5-7 दिन तक सूई दें | सूई नेभिक्कीन 20-30 मि.ग्रा. की दर से नस में 3 दिन तक सूई दें | बेरीनील – 5 ग्राम दवा में 15 मि.ली. पानी घोलकर 5 मि.ली. प्रति 100 किलो शरीर भार पर मांस में सूई दें| सूई ब्युपारभाक्कीन – ब्युटालेक्स 2.5 मि.ग्रा. की दर से मांस में सूई दें |
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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