मछलियाँ शरीर की सभी प्रक्रियाएं जल में पूरी करती है। चूँकि ये स्वास लेने, भोजन ग्रहण करने, वृद्धि, उत्सर्जन, लवण का संतुलन एवं प्रजनन के लिए पूर्णत: जल पर आश्रित है अत: जल का भौतिक एवं रासायनिक गुणों को समझना मत्स्यपालन की सफलता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जलकृषि की सफलता-असफलता बहुत हद तक जल की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
पंगेसियस सूचि (पंगास) जिसकी वृद्धि अन्य मछलियों की तुलना में ज्यादा है, का सघन पालन आज झारखण्ड के साथ-साथ देश के कई राज्यों में तालाबों एवं केज में हो रहा है । वातावरण में अवांछनीय परिवर्तन के कारण मछलियों तनाव में आ जाती है, जिससे बीमारियों के संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है। बीमारियों के कारण हुए नुकसान को मत्स्य पालन में सबसे बड़ा नुकसान माना जाता है। अत: पंगेसियस के सफल उत्पादन के लिए किसानों को जल की गुणवत्ता एवं इसके स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान देना अति आवश्यक है ।
विज्ञान में एक प्रचलित कहावत है “बीमारी के उपचार से अच्छा उसका रोकथाम है”।
मत्स्य पालन में ज्यादातर बीमारियों का संक्रमण मछलियों के वातावरण (जल) की गुणवत्ता में अवांछनीय परिवर्तन के कारण ही शुरू होता है। पंगेसियस पालन के लिए निम्नलिखित जलीय गुणवत्ता को अच्छा माना जाता है।
क्र. |
जल का पारामीटर |
मान |
1 |
तापमान |
26-30० C |
2 |
पारदर्शिता |
30 – 40 cm |
3 |
ph |
6.5 से 8.0 |
4 |
घुलित आक्सीजन |
>4 ppm |
5 |
कुल क्षारीयता (as CaCo3) |
80-120 ppm |
6 |
हाइड्रोजन सल्फाइड |
<0.002 ppm |
7 |
कुल अमोनिया |
<0.5 ppm |
जल की गुणवत्ता प्रबंधन के साथ-साथ भोजन के साथ प्रोबायोटिक का उपयोग भी मत्स्य कृषक आजकल सघन मत्स्य पालन में करने लगे हैं। प्रोबायोटिक मछलियों के रोग निरोधक क्षमता को काफी बढ़ा देते हैं। ठंडे के मौसम में जब रोग संक्रमण की सम्भावना ज्यादा होती है, फीड के साथ प्रोबायोटिक का उपयोग हमेशा लाभप्रद है।
स्त्रोत: मत्स्य निदेशालय, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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