चूँकि मछली एक जलीय जीव है, अतएव उसके जीवन पर आस-पास के वातावरण की बदलती परिस्थतियां बहुत असरदायक हो सकती हैं। मछली के आस-पास का पर्यावरण उसके अनुकूल रहना अत्यंत आवशयक है। जाड़े के दिनों में तालाब की परिस्थति भिन्न हो जाती है तथा तापमान कम होने के कारण मछलियाँ तालाब की तली में ज्यादा समय व्यतीत करती हैं । अत: ऐसी स्थिति में ‘ऐपिजुएटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम’ (EUS) नामक बीमारी होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है । इसे लाल चक्ते वाली बीमारी के नाम से भी जाना जाता है । यह भारतीय मेजर कॉर्प के साथ-साथ जंगली अपतृण मछलियों की भी व्यापक रूप से प्रभावित करती है। समय पर उपचार नहीं करने पर कुछ ही दिनों में पूरे पोखर की मछलियाँ संक्रमित हो जाती हैं और बड़े पैमाने पर मछलियाँ तुरंत मरने लगती हैं ।
इस रोग का विश्लेषण करने पर यह पाया गया कि प्रारंभिक अवस्था में यह रोग फफूंदी तथा बाद में जीवाणु द्वारा फैलता है ।विश्व में सर्वप्रथम यह बीमारी 1988 में बांग्लादेश में पायी गयी थी, वहाँ से भारतवर्ष में आयी ।
इस बीमारी का प्रकोप 15 दिसम्बर से जनवरी के मध्य तक ज्यादा देखा जाता है जब तापमान काफी कम हो जाता है । सबसे पहले तालाब में रहने वाली जंगली मछलियों यथा पोठिया, गरई, मांगुर, गईची आदि में यह बीमारी प्रकट होती है । अतएव जैसे ही इन मछलियों में यह बीमारी नजर आने लगे तो मत्स्यपालकों को सावधान हो जाना चाहिए । उसी समय इसकी रोकथाम कर देने से तालाब की अन्य योग्य मछलियों में इस बीमारी का फैलाव नहीं होता है ।
झारखण्ड राज्य में सामान्य रूप से इस बीमारी के नहीं दिखने के बावजूद 15 दिसम्बर तक तालाब में 200 कि०ग्रा०/ एकड़ भाखरा चूना का प्रयोग कर देने से मछलियों में यह बीमारी नहीं होती है और यदि होती भी है तो इसका प्रभाव कम होता है । जनवरी के बाद वातावरण का तापमान बढ़ने पर यह स्वत: ठीक हो जाती है ।
केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन संस्था (सिफा), भुवनेश्वर द्वारा इस रोग के उपचार हेतु एक औषधि तैयार की है जिसका व्यापारिक नाम सीफैक्स (cifax) है । एक लीटर सीफैक्स एक हेक्टेयर जलक्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है । इसे पानी में घोल कर तालाब में छिड़काव किया जाता है । गंभीर स्थिति में प्रत्येक सात दिनों में एक बार इस दवा का छिड़काव करने से काफी हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है ।
घरेलू उपचार में चूना के साथ हल्दी मिलाने पर अल्सर घाव जल्दी ठीक होता है । इसके लिए 40 कि० ग्रा० चूना तथा 4 कि०ग्रा० हल्दी प्रति एकड़ की दर से मिश्रण का प्रयोग किया जाता है । मछलियों को सात दिनों तक 100 मि०ग्रा० टेरामाइसिन या सल्फाडाइजिन नामक दवा प्रति कि०ग्रा० पूरक आहार में मिला कर मछलियों को खिलाने से भी अच्छा परिणाम प्राप्त होता है ।
दुमका जिलान्तर्गत रामगढ़ प्रखंड स्थित कांजवे पंचायत के मनोहरपुर गांव के श्री मंगल मुर्मू को कौन नहीं जानता । साठ वर्षीय श्री मंगल मुर्मू मछली की कारोबार करके न सिर्फ लखपति बन चुके हैं, बल्कि 32 साल बाद हुए पंचायत चुनाव में ग्रामीणों ने उन्हें कांजवे पंचायत का मुखिया भी चुना है ।
आदिवासी समुदाय से होने के बावजूद मछली के व्यवसाय में जुड़ कर उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी है । तीस वर्ष पूर्व डाडो प्रखण्ड के श्री शीतल केवट से उनकी दोस्ती हुई थी तथा उन्हीं के साथ स्थानीय बाजार में दोनों मछली बेचा करते थे । धीरे-धीरे उन्होंने जाल बुनने के साथ मछली पालन की सारी प्रक्रिया सीख ली तथा पश्चिम बंगाल में मछली का बीज लाकर पहली बार केन्द्र खपड़ा गांव के एक व्यक्ति के निजी तालाब पर साझेदारी में मछली पालन प्रारंभ किया । प्रकारांत में उनका सम्पर्क चाम्पातरी गांव के श्री लूटन केवट से हुआ जो मछली पालन व्यवसाय के लिए जिला मत्स्य कार्यालय में आत-जाते रहते थे । उनके साथ मत्स्यजीवी सहकारी समिति से जुड़ कर सरकार द्वारा दिए जानेवाले प्रसिक्षण दिया गया तथा आन्ध्र-प्रदेश के स्थल अध्ययन यात्रा में भी भेजा गया ।
प्रशिक्षण के उपरान्त जिला मत्स्य कार्यालय, दुमका द्वारा उन्हें मछली का स्पान उपलब्ध कराया गया जिसे भालसुमर स्थित तालाब में रखकर उनके द्वारा मछली का बीज तैयार किया तथा उतरोतर आगे बढ़ते गये ।
आज वे प्रति सप्ताह 90-100 किलोग्राम मछली बाजार में बेचते हैं । फिलहाल उनके पास 8 सरकारी तथा 3 निजी तालाब हैं जिसका कुल जलक्षेत्र करीब 12 एकड़ है । इनमें वे व्यवसायिक रूप से मछली पालन कर रहे हैं । प्रारंभ में वे तालाब में मछली खुद मारते थे तथा बाजार में बेचते थे लेकिन वर्तमान में उनके अधीन 10-15 व्यक्ति काम करते हैं । मजबूरी के रूप में एक किलो मछली मारने पर उन्हें 250 ग्राम मछली मेहताना के तौर पर दिया जाता है । मंगल कहते हैं कि फिलहाल इस धंधा से सलाना 4-5 लाख रुपये की आमदनी है ।
मछली का बीज संचयन करने तथा शिकारमाही के लिए वे अपने पंचायत के हर तालाब पर जाते थे, जिसका कारण उनकी पहचान पंचायत के सभी गांवों में हुई तथा लोग उनके व्यवहार से परिचित हुए, जिसका नतीजा है कि आज वे कांजवे पंचायत के मुखिया बन गये हैं । ग्रामीण उनको मुखिया जी कहकर पुकारने लगे हैं ।
श्री मुर्मू कहते हैं कि वे मछली पालन के व्यवसाय को नहीं छोड़ेंगे तथा पंचायत के सभी सरकारी, गैरसरकारी तालाबों का जीर्णोधार कराने का प्रयास करेंगे तथा अधिक लोगों को मछली पालन करने के लिए प्रेरित करेंगे ।
बुंडू बड़ा बांध की मछलियों की बाजार में काफी मांग है, लेकिन इस बाँध का उपयोग व्यवसायिक उत्पादन के लिए नहीं किया जा सका है । झारखण्ड राज्य सहकारी मत्स्यजीवी संघ (झास्कोफिश) की मदद से सरकार का प्रयास है कि बुंडू में मछली का व्यवसायिक उत्पादन प्रारम्भ होगा । इससे मछुआरों में आर्थिक संपन्नता आएगी । बुंडू बड़ा बांध में 52 हजार मत्स्य अंगुलिकाओं का संचयन करते हुए इस योजना का शुभारम्भ किया गया था ।
झास्कोफिश के प्रबंध निदेशक डॉ० एच० एन० द्विवेदी बताया कि मछुआरों की साझेदारी से एक समिति का गठन किया गया है जिन्हें मछलीपालन के लिए हर संभव मदद दी जायेगी । समिति के माध्यम से ही बीज का संवर्धन किया जायेगी । वहाँ केज बना कर पंगेशियस मछली पालन की भी योजना है साथ ही मछलियों के विपणन के लिए फ्रेश फिश स्टाल निर्माण करने की योजना है । जब मछलियों का उत्पादन अधिक होने लगेगा तो वहां महिलाओं की एक समिति गठित की जायेगी जो मत्स्य प्रसंस्करण का भी काम करेगी ।
इस अवसर पर निदेशक मत्स्य श्री राजीव कुमार झास्कोफिश के प्रबंध निदेशक डॉ०एच०एन० द्विवेदी के साथ उप मत्स्य निदेशक श्री मनोज कुमार, बुंडू नगर पंचायत के उपाध्यक्ष अलविंदर उरांव, जिला परिषद सदस्य विनय कुमार मुण्डा के साथ सैंकड़ों ग्रामीण मछुआगण मौजूद थे ।
मछुआरों एवं मत्स्य कृषकों के कल्याण हेतु यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है । इस योजना के अन्तर्गत 19 वर्ष से अधिक तथा 65 वर्ष से काम आयु के मत्स्य कृषकों/ मछुआरों का बीमा किया जाता है जिसके प्रीमियम का आधा भाग राज्य सरकार एवं आधा भाग केन्द्र सरकार वहन करती है । बीमित मछुआ/ मत्स्य कृषक को कोई प्रीमियम नहीं देना होता है । बीमित की मृत्यु अथवा पूर्ण स्थायी अपंगता की स्थिति में उनके वैध आश्रित को बीमा कम्पनी द्वारा एक लाख रुपये का भुगतान किया जाता है । आंशिक स्थाई अपंगता की स्थिति में 50 हजार रुपये का भुगतान किया जाता है । बीमा दावा का आवेदन पत्र सभी जिला मत्स्य कार्यालयों में निशुल्क उपलब्ध है । बीमा दावा के साथ थाना में दर्ज एफ़०आइ०आर० की प्रति, मृत्यु की स्थिति में मृत्यु प्रमाणपत्र की प्रति, वैध उतराधिकारी का प्रमाण, पोस्टमार्टम रिपोर्ट तथा मत्स्य जीवी सहयोग समिति की सदस्यता/ पंजीयन का प्रमाण संलग्न करना आवशयक है । आंशिक स्थाई अपंगता की स्थिति में संबंधित जिले के असैनिक शल्य चिकित्सक (सिविल सर्जन) के द्वारा निर्गत प्रमाण पत्र का होना आवशयक है। मृत्यु अथवा दुर्घटना के चालीस दिनों के अन्दर सभी कागजातों के साथ अपने जिले के जिला मत्स्य कार्यालय में दावा प्रपत्र जमा किया जा सकता है।
विषम परिस्थितियों में काम करने वाले मछुआरों/ मत्स्य कृषकों के लिए यह कल्याणकारी योजना है ।
मत्स्य कृषकों के सदाबहार तालाबों में मिश्रित मत्स्य पालन के प्रत्यक्षण की योजना राज्य में लागू है । प्रत्येक जिले में 2 -4 मत्स्य कृषक जिनके पास सदाबहार तालाब हैं, का चयन इस योजना के लिए किया जता है । इनके तालाबों में अनुशंसित प्रजाति की अंगुलिकाएँ संचित की जाती है । इन्हें कृत्रिम पूरक आहार पर पाला जाता है । इसके लिय कृषक को मो० 30 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर की दर से बीज, आहार आदि पर व्यय हेतु आर्थिक सहायता दी जाती है । प्रत्यक्षण की अवधि में मत्स्य पालन से संबंधित आंकड़े विधिवत पंजी में संधारित करना आवश्यक होता है । एक वर्ष में चयनित लाभुक को आगामी वर्ष में इस योजना अन्तर्गत दुबारा सहायता नहीं दी जा सकती है।
इस हेतु आवेदन संबंधित जिला मत्स्य कार्यालय,दुमका में उपलब्ध हैं।
स्त्रोत: जिला मत्स्य पदाधिकारी, दुमका
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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