झारखण्ड राज्य जो कि एक पठारी प्रदेश है कि अर्थव्यवस्था मिली-जुली है, जिसमें उधोग के साथ –साथ कृषि का भी विशेष योगदान है | वैसे तो झारखण्ड को अनके प्रकार के उधोग तथा खनिजों के लिए जाना जाता है, लेकिन आज भी इस प्रदेश की कुल 3 करोड़ 29 लाख आबादी का 78% भाग गाँवों में वास करती है, जिनकी आजीविका, कृषि बागवानी तथा पशुपालन पर आधारित है | इस प्रदेश में बागवानी एवं पशुपालन का विशेष स्थान है | तुलनात्मक दृष्टिकोण से मत्स्य पालन ताकि मात्सियकी के लिए यधपि प्रचुर संसाधन है , लेकिन उत्पादन का स्तर अत्यंत ही निम्न है जिसका समाधान आवश्यक है | आवश्यकता तो इस बात की है कि मात्सियकी को भी पशुपालन के तर्ज पर प्रमुखता दी जानी चाहिए क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें परचुर संभावनाएं है एवं गरीबी उन्मूलन तथा ग्रामीण विकास में इसका विशेष योगदान हो सकता है | विस्तृत औधोगिकीकरण के बावजूद आज भी लगभग 57% लोग गरीबी रखे के नीचे हैं, जो अपने आप में एक विरोधाभाष है साथ ही इस बात की ओर इंगित करती है कि जब तक गाँवों, जिसकी संख्या 32260 है, कि दशा नहीं सुधारी जायगी समुचित विकास की परिकल्पना संभव नहीं है | अत: कृषि जिसमें बागवानी, पशुपालन तथा मात्सियकी भी सम्मिलित है, के विकास पर विशेष जोर देने की अविलम्ब आवश्यकता है |
झारखण्ड राज्य में प्रचुर जल संसाधन उपलब्ध है, यथा 16 प्रमुख नदियाँ (दामोदर, बराकर, स्वर्णरेखा, कोयल, कारो आदि), अनेकों जलाशय, जल-प्रपात, झील, पोखर, तथा तालाब आदि है |
वर्तमान में झारखण्ड राज्य में मत्स्य उत्पादकता की दर अत्यंत ही दयनीय है, जिसके प्रमुख कारण हैं, उपलब्ध तकनीकों का व्यवहार न करना | यानी अभी तक मत्स्य पालन तथा मत्स्य प्रग्रहण में वैज्ञानिक पद्धतियों का सर्वथा अभाव है | उपलब्ध आंकड़ों में पता चलता है कि वर्तमान में तालाब तथा पोखर की औसत मत्स्य उत्पादकता 1400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भी कम है, जबकि देश की औसत उत्पादकता 2150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है | इसी प्रकार जलाशय जो झारखण्ड मात्सियकी को उत्कृष्टता प्रदान कर सकते हैं , में भी मत्स्य उत्पादकता की दर 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जो अत्यंत ही कम है |
- तालाब तथा पोखरों की बदहाली एवं उनसे खर-पतवार का अत्यधिक जमाव |
- पठारी क्षेत्र एवं लेटेराईट मिटटी की अधिकता |
- आधुनिक मत्स्य पालन पद्धतियों का प्रयोग न करना |
- झारखण्ड राज्य के अनके भागों की मिटटी की निम्न गुणवता का होना |
- मत्स्य कृषकों में जागरूकता एवं जानकारी का अभाव तथा मत्स्य पालन हेतु व्यावसायिक दृष्टिकोण नहीं आदि |
झारखण्ड राज्य में मत्स्य विकास की प्रचुर संभावनाएं हैं | परन्तु इसके लिए विभाग तथा कृषकों की ओर से समेकित प्रयास की आवश्यकता है |
इस प्रदेश की मात्स्यिकी विकास हेतु निम्न बातों की ओर सूचित ध्यान देने की आवश्यकता है :
- मत्स्य पालन हेतु आधुनिक तकनीक तथा पद्धतियों का समुचित प्रयोग |
- अधिक से अधिक ग्रामीण जनता को मत्स्य पालन हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता है |
- मत्स्य पालने हेतु सूचित ऋण की व्यवस्था |
- अधिक से अधिक मत्स्य बीज का उत्पादन |
- मत्स्य पालन के साथ कृषि के अन्य आयामों यथा बागवानी, पशुपालन आदि का समावेश |
- राज्य में उपलब्ध जलाशयों में मत्स्य उत्पादकता को बढाने की आवश्यकता |
- जलाशयों का समुचित प्रबंधन हेतु मत्स्य पालन सहकारिता समितियों का गठन |
- जलाशयों में उचित मात्रा तथा उत्तम किस्म के मत्स्य बीज का प्रत्यारोपण |
झारखण्ड एवं औधोगिक राज्य होने के बावजूद कृषि विकास, जिसमें मात्स्यिकी भी सम्मिलित है, कि प्रचुर संभावनाएं है | आवश्यकता है इसे वैज्ञानिक पद्धति द्वारा करने की | आशा की जानी चाहिए कि आने वाले वर्षों में झारखण्ड की पहचान मात्र उधोगों से नहीं, अपितु कृषि, बागवानी, पशुपालन तथा मत्स्य पालन में भी होगी एवं ग्रामीण जनता की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार होगा | प्रदेश की मात्स्यिकी को सुद्रढ़ता प्रदान करने के लिए तीन प्रकार के प्रयास करने होंगे –
(1) तालाब तथा पोखरों का जीर्णोधारकर उत्पादन में वृधि |
(2) जलाशय मात्स्यिकी पर विशेष जोर एवं उनमें मत्स्य पालन-सह-मत्स्य प्रग्रहण द्वारा उत्पादन में वृधि |
(3) जल क्षेत्र के समुचित विकास तथा प्रति वर्ग क्षेत्र से अधिक लाभ लेने हेतु मिश्रित खेती जिसमें मछली के साथ बागवानी, पशुपालन, बत्तख तथा कुक्कुट आदि का समावेश करने की आवश्यकता |
मछली के साथ कृषि के अन्य आयामों के समावेश में स्थान विशेष की जलवायु एवं आर्थिक रूप से फल देने वाले व्यवसायों का समुचित चयन को प्राथमिकता देनी होगी | उदाहरण के तौर पर दुमका, देवघर, आदि क्षेत्रों में बकरी पालन आम है | अत: इसे मत्स्य पालन, के साथ जोड़ सकते हैं | उसी प्रकार सिंहभूम क्षेत्र में बत्तख तथा मुर्गी पालन आदिकाल से होता आया है | अत: इन्हें मत्स्य पालन के साथ जोड़कर अधिक लाभ लिया जा सकता है | राँची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा तथा हजारीबाग जिलों की जलवायु बागवानी जिसमें औषधीय पौधे भी आते हैं के लिए उपयुक्त है | अत: इस स्थानों में मत्स्य पालन के साथ इनका समावेश किया जा सकता है |
प्रदेश में छोटे, मध्यम तथा बड़े जलाशयों का विशाल भंडार है, लेकिन वर्तमान में इससे मत्स्य उत्पादन बहुत ही कम है | ये जल संसाधन प्रदेश के मत्स्य उत्पादन को एक नई उंचाई दे सकते हैं साथ ही इनके साथ बागवानी (विशेषकर बांस की खेती तथा पशु चारा की खेती) एवं पशुपालन को जोड़ कर अत्यधिक लाभ लिया जा सकता है | इन जल संसाधनों से पिंजड़े (केज) तथा घेरे (पेन) द्वारा मत्स्य तथा झींगा का उत्पादन लिया जा सकता है |
स्त्रोत: मत्स्य निदेशालय, राँची, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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