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पशुपालन से संबंधित योजनाएं

पशुपालन से संबंधित योजनाएं

पशुधन बीमा योजना

पशुधन बीमा योजना एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो 10वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2005-06 तथा 2006-07 और 11वीं पंचवर्षीय योजना के वर्ष 2007-08 में प्रयोग के तौर पर देश के 100 चयनित जिलों में क्रियान्वित की गई थी। यह योजना देश के 300 चयनित जिलों में नियमित रूप से चलाया जा रहा है।

पशुधन बीमा योजना की शुरुआत दो उद्देश्यों, किसानों तथा पशुपालकों को पशुओं की मृत्यु के कारण हुए नुकसान से सुरक्षा मुहैया करवाने हेतु तथा पशुधन बीमा के लाभों को लोगों को बताने तथा इसे पशुधन तथा उनके उत्पादों के गुणवत्तापूर्ण विकास के चरम लक्ष्य के साथ लोकप्रिय बनाने के लिए किया गया।

योजना के अंतर्गत देशी/ संकर दुधारू मवेशियों और भैंसों का बीमा उनके अधिकतम वर्तमान बाजार मूल्य पर किया जाता है। बीमा का प्रीमियम 50 प्रतिशत तक अनुदानित होता है। अनुदान की पूरी लागत केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाती है। अनुदान का लाभ अधिकतम दो पशु प्रति लाभार्थी को अधिकतम तीन साल की एक पॉलिसी के लिए मिलता है।

यह योजना गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में संबंधित राज्य पशुधन विकास बोर्ड द्वारा क्रियान्वित की जा रही है।

योजना में शामिल पशु तथा लाभार्थियों का चयन

  • देशी/ संकर दुधारू मवेशी और भैंस योजना की परिधि के अंतर्गत आएंगे। दुधारू पशु/ भैंस में दूध देनेवाले और नहीं देनेवाले के अलावा वैसे गर्भवती मवेशी, जिन्होंने कम से कम एक बार बछड़े को जन्म दिया हो, शामिल होंगे।
  • ऐसे मवेशी जो किसी दूसरी बीमा योजना अथवा योजना के अंतर्गत शामिल किये गये हों, उन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया जाएगा।
  • अनुदान का लाभ प्रत्येक लाभार्थी को 2 पशुओं तक सीमित रखा गया है तथा एक पशु की बीमा अधिकतम 3 वर्षों के लिए की जाती है।
  • किसानों को तीन साल की पॉलिसी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जो सस्ती और बाढ़ तथा सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर बीमा का वास्तविक लाभ पाने में उपयोगी हो सकती हैं। फिर भी यदि कोई किसान तीन साल से कम अवधि की पॉलिसी लेना चाहता है, तो उसे वह भी दिया जाएगा और उसे उसी मवेशी का अगले साल योजना लागू रहने पर फिर से बीमा कराने पर प्रीमियम पर अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा।

पशुओं के बाजार मूल्य का निर्धारण

किसी पशु की बीमा उसके अधिकतम बाजार मूल्य पर की जाएगी। जिस बाजार मूल्य पर बीमा की जाती है उसे लाभार्थी, अधिकृत पशु चिकित्सक एवं बीमा एजेंट द्वारा सम्मिलित रूप से की जाती है।

बीमाकृत पशुओं की पहचान

बीमा किये गये पशु की बीमा-राशि के दावा के समय उसकी सही तथा अनोखे तरीके से पहचान की जानी होगी। अतः कान में किये अंकन को हरसंभव तरीके से सुरक्षित किया जाना चाहिए। पॉलिसी लेने के समय कान में किये जाने वाले पारंपरिक अंकन या हाल के माइक्रोचिप लगाने की तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए। पहचान चिह्न लगाने का खर्च बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाएगा तथा इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी संबंधित लाभार्थियों की होगी। अंकन की प्रकृति तथा उसकी सामग्री का चयन बीमा कंपनी तथा लाभार्थी, दोनों की सहमति से होता है।

बीमा की वैधता अवधि में स्वामित्व में परिवर्तन

पशु की बिक्री या अन्य दूसरे प्रकार के हस्तांतरण स्थिति में, यदि बीमा पॉलिसी की अवधि समाप्त न हुई हो तो बीमा पॉलिसी की शेष अवधि का लाभ नये स्वामी को हस्तांतरित किया जाएगा। पशुधन नीति के ढंग तथा शुल्क एवं हस्तांतरण हेतु आवश्यक विक्रय-पत्र आदि का निर्णय, बीमा कंपनी के साथ अनुबंध के समय ही कर लेनी चाहिए।

दावे का निपटारा

यदि दावा बाकी रह जाता है, तो आवश्यक दस्तावेज जमा करने के 15 दिन के भीतर बीमित राशि का भुगतान निश्चित तौर पर कर दिया जाना चाहिए। बीमा कंपनियों द्वारा दावों के निष्पादन के लिए केवल चार दस्तावेज आवश्यक होंगे, जैसे बीमा कंपनी के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट, बीमा पॉलिसी, दावा प्रपत्र और अंत्यपरीक्षण रिपोर्ट। पशु की बीमा करते समय मुख्य कार्यकारी अधिकारी यह सुनिश्चित करते हैं दावा के निपटारे हेतु स्पष्ट प्रक्रिया का प्रावधान किया जाए तथा आवश्यक कागजों की सूची तैयार की जाए एवं पॉलिसी प्रपत्रों के साथ उसकी सूची संबंधित लाभार्थियों को भी उपलब्ध करवाई जाए।

 

दावा प्रक्रिया
एक जानवर की मौत की घटना में, तत्काल सूचना बीमा कंपनियों के लिए भेजा जाना चाहिए और निम्नलिखित आवश्यकताओं को प्रस्तुत किया जाना चाहिए:
  • विधिवत दावा प्रपत्र पूरा।
  • मृत्यु प्रमाण पत्र कंपनी के फार्म पर योग्य पशुचिकित्सा से प्राप्त की।
  • शवपरीक्षा परीक्षा रिपोर्ट अगर कंपनी द्वारा की आवश्यकता है।
  • कान टैग जानवर को लागू आत्मसमर्पण किया जाना चाहिए। 'कोई टैग नहीं दावा' की हालत अगर टैग नहीं की जरूरत है लागू किया जाएगा
पीटीडी दावा प्रक्रिया
  • योग्य चिकित्सक से एक प्रमाण पत्र प्राप्त किया जा करने के लिए।
  • पशु कंपनी के पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा भी निरीक्षण करेंगे।
  • उपचार के चार्ट पूरा इस्तेमाल किया, दवाओं, रसीदें, आदि प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • दावे की ग्राह्यता पशु चिकित्सक / कंपनी डॉक्टर की रिपोर्ट दो महीने के बाद विचार किया जाएगा।
  • क्षतिपूर्ति बीमित रकम का 75% तक ही सीमित है।

चारा और चारा विकास योजना

पशु पालन, डेयरी तथा मत्स्यपालन विभाग द्वारा एक केन्द्र प्रायोजित चारा विकास योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य चारा विकास हेतु राज्यों के प्रयासों में सहयोग देना है। यह योजना 200506 से निम्नलिखित चार घटकों के साथ चलाई जा रही है:

  • चारा प्रखंड निर्माण इकाइयों की स्थापना
  • संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि क्षेत्र
  • चारा फसलों के बीज का उत्पादन तथा वितरण
  • जैव प्रौद्योगिकी शोध परियोजना

केन्द्र प्रायोजित चारा विकास योजना का 2010 से उपलब्ध चारा के दक्ष प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए उन्नयन किया गया है। इस मद में 141.40 करोड़ रुपये की विनियोग राशि के साथ इस योजना में निम्नलिखित नए घटक/तकनीक मध्यस्थता शामिल हैं:

  • चारा परीक्षण प्रयोगशालाओं का सशक्तीकरण
  • कुट्टी काटने वाली मशीन से लोगों को परिचित कराना
  • साइलो-संरक्षण इकाइयों की स्थापना
  • एजोला की खेती और उत्पादन इकाइयों का प्रदर्शन
  • बाय-पास प्रोटीन उत्पादन इकाइयों की स्थापना
  • क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण (ASMM) इकाइयों/चारा गोली निर्माण इकाइयों/चारा उत्पादन इकाइयों की स्थापना

चल रहे घटक, चारा प्रखंड निर्माण ईकाइयों की स्थापना के अंतर्गत भागीदारी बढ़ाने के लिए अनुदान की राशि 50% बढ़ा दी गई है तथा संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि विकास के अंतर्गत सहायता के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु भूमि का रकवा 5-10 uw. कर दिया गया है।

घटकों के बारे में विवरण, वित्त पोषण का रूप, इकाई लागत तथा 11वीं योजना के शेष 2 वर्षों के दौरान प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य निम्नलिखित हैं:

परिवर्तित घटकों का नाम/नए घटक

लाभार्थी

सहयोग का रूप

इकाई लागत (लाख में)

चारा प्रखंड निर्माण इकाइयों की स्थापना

सहकारी संस्थाओं तथा स्वयं सहायता समूहों सहित राजकीय/निजी उद्यमिता

50:50

85.00

संरक्षित तृणभूमियों सहित तृणभूमि विकास

किसान, पशुपालन एवं वन विभाग। यद्यपि गैर-सरकारी संगठन/ग्राम पंचायत, पंचायत की भूमि पर तृणभूमि तथा अन्य सामूहिक संपदा संसाधनों के विकास में होंगे।

100:00

0.70

चारा फसलों के बीज का उत्पादन तथा वितरण

किसान लाभान्वित होंगे। राज्य सरकार लघु उद्योग संघों/सहकारी डेयरियों/गैर-सहकारी संगठनों को परियोजना के क्रियान्वयन में शामिल करेगी। 5,000 रु./क्विंटल की दर से कुल 37,000 क्विंटल चारा के बीज राज्य सरकार द्वारा प्राप्त किए जाएंगे और बीजों को किसानों में वितरित किया जाएगा।

75:25

0.05

चारा परीक्षण प्रयोगशालाओं का सशक्तीकरण

पशुपालन कॉलेजों/ कृषि विश्वविद्यालयों की  मौजूदा पशु-पोषण प्रयोगशालाएं। धनराशि चारा विश्लेषण हेतु आवश्यक  मशीनरी/ उपकरणों की खरीद के लिए स्वीकृत की जाएगी अनुमोदित उपकरणों की सूची जारी की जाएगी।

50:50

200.00

हाथ से चलने वाली कुट्टी काटने की मशीन

किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र

75:25

0.05

शक्ति चालित कुट्टी काटने की मशीन

किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र

75:25

0.20

साइलो-संरक्षण ईकाइयों की स्थापना

किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र

100:00

1.05

एजोला की खेती और उत्पादन इकाइयों का प्रदर्शन

किसान और सहकारी दुग्ध समितियों के सदस्य/ आत्मा/ कृषि विकास केंद्र

50:50

0.10

बाय-पास प्रोटीन उत्पादन इकाइयों की स्थापना

किसी व्यावसायिक बैंक द्वारा परियोजना की उपयुक्तता हेतु अभिप्रमाणित डेयरी संघ/निजी उद्यमी

25:75

145.00

क्षेत्र विशेष खनिज मिश्रण इकाइयों/चारा गोली निर्माण इकाइयों/चारा उत्पादन इकाइयों की स्थापना

किसी व्यावसायिक बैंक द्वारा परियोजना की उपयुक्तता हेतु अभिप्रमाणित सहकारी दुग्ध समितियों तथा स्वयं सहायता समूहों सहित राजकीय/निजी उद्यमिता। धनराशि केवल मशीनरी और उपकरणों की खरीद के लिए ही स्वीकृत की जाएगी।

25:75

100.00

स्रोत:http://pib.nic.in/

छोट रोमन्थक (रुमिनेन्ट) और खरगोशों के समन्वित विकास के लिए केन्द्र प्रायोजित योजना

मत्‍स्‍योद्योग विकास एवं मछुआ कल्‍याणकारी योजनायें

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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