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राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017 (एन.पी.एम.एफ.2017)

राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017 (एन.पी.एम.एफ.2017)

प्रस्तावना

राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017 (एन.पी.एम.एफ., 2017) का मुख्य लक्ष्य, राष्ट्र की वर्तमान तथा भावी पीढियों हेतु भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में उपलब्ध समुद्री मत्स्य संसाधनों का स्वास्थ्य तथा पारिस्थितिकी समग्रता के साथ धारणीय दोहन और निर्यात सुनिश्चित करना है। एन.पी.एम.एफ., 2017 की समग्र कार्यनीति सात स्तभों अर्थात धारणीय विकास, मछुआरों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान, भागीदारी, सहायता का सिद्धांत, पीढ़ीगत समानांतर सहभागिता, लैंगिक न्याय तथा सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण पर आधारित है। ये सात स्तंभ देश के समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर के विकास लिए की गई परिकल्पना को पूरा करने में विभिन्न पणधारियों के कार्यों का मार्ग दर्शन करेगी। इस नीति के मूल के मछुआरों की समपन्नता होगी, तथा कार्रवाईयां “लोक विश्वास सिद्धात” पर आधारित होंगी।

ज्ञातव्य है कि भारत को उपलब्ध विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र 2.02 मिलियन वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है, जिसकी तटरेखा 8118 किमी लम्बी है तथा इसके अंतर्गत विविध समुद्री संसाधन वाले द्वीपों के दो प्रमुख समूह भी आते हैं;

यह समझते हुए कि उपरोक्त के दृष्टिगत समुद्री मात्स्यिकी संपत्ति की वार्षिक दोहन योग्य क्षमता लगभग 4.412 मिलियन मीट्रिक टन अनुमानित है;

यह कि अनुमानत: 4.0 मिलियन व्यक्ति अपनी आजीविका के लिए समुद्री मात्स्यिकी संसाधनों पर निर्भर करते हैं;

यह कि समुद्री मात्स्यिकी लगभग 65,000 करोड़ रुपए (2014-15) की कीमत की आर्थिक संपत्ति का योगदान करती है;

और यह भी दृष्टिगत रखते हुए कि समुद्री मात्स्यिकी खाद्य पोषण, रोजगार तथा आय सृजन का महत्वपूर्ण स्रोत है;

साथ ही, यह कि समुद्री मात्स्यिकी से होने वाली आय का देश की निर्यात आय में तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बहुत बड़ा योगदान है;

यह जानते हुए कि देश की समुद्री मात्स्यिकी अत्यधिक विविध है परन्तु मुख्य रूप से इसमें छोटे पैमाने के तथा पारंपरिक मछुआरे शामिल हैं;

आगे यह समझते हुए कि समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर गैर-सरकारी तथा सरकारी एजेंसियों सहित बहुत सारे अन्य पणधारियों द्वारा सेवित है;

यह स्वीकार्य करते हुए कि राष्ट्र के समुद्री जैविक संसाधन समुद्री मछली पालन सहित धारणीय पद्धतियों से उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यापक संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं;

यह जानते हुए कि समुद्री मत्स्य पालन संसाधन सीमित होने के कारण समाप्त भी हो सकते हैं और इस कारण अधिदोहन के अधीन हैं। यह भी समझते हुए कि ऐसे अधिदोहन से जैव-विविधता की हानि होगी तथा हमारी भावी पीढियों के लिए संसाधनों की उपलब्धतता में कमी आएगी;

यह भी ध्यान में रखते हुए कि देश समुद्री जीवित संसाधनों के सतत उपयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों और व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017 देश के समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर के लिए निम्नलिखित परिकल्पना, ध्येय तथा कार्यनीति की सिफारिशें करती हैं।

विज़न (परिकल्पना)

एक स्वस्थ तथा जीवंत समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर जो वर्तमान तथा भविष्य की पीढियों की आवश्यकताओं को पूरा करे।

मिशन (ध्येय)

संसाधनों की धारणीयता को सभी कार्रवाईयों के दृष्टिगत रखते हुए नीतिगत रूपरेखा राष्ट्रीय, सामाजिक तथा आर्थिक लक्ष्यों तथा मछुआरा समुदाय के कल्याण के कार्य को पूरा करेगी और इसका उद्देश्य अगले दस वर्षों के दौरान देश में समुद्री मात्स्यिकी के समन्वयन तथा प्रबंधन को मार्गदर्शित करना है।

कार्यनीति

भारत में समुद्री मात्स्यिकी सैक्टर- एक रूपरेखा

  • भारतीय विकासात्मक आयोजनाओं में काफी पूर्व से ही मात्स्यिकी सेक्टर तथा विशेष रूप से समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर की क्षमता को प्रमुख स्थान दिया गया है और तभी से इस सेक्टर को विकास के एक महत्वपूर्ण कार्यनीति के रूप में विकसित करने के लिए व्यापक प्रयासों को कार्यान्वित किया गया है। राष्ट्र की आबादी हेतु खाद्य तथा पोषणिक आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रमुख उद्देश्य के अलावा मात्स्यिकी सेक्टर व्यापार तथा वाणिज्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा इस । प्रक्रिया में तटवर्ती समुदायों के लिए रोजगार तथा आजीविका को बढ़ावा मिलता है।
  • पचास के दशक में पूर्ण रूप से पारंपरिक गतिविधि के रूप में प्रारंभ होकर मात्स्यिकी अब एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में परिवर्तित हो चुका है। 1976 में विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) घोषित होने के पश्चात् भारत को उपलब्ध समुद्री क्षेत्र 2.02 मिलियन वर्ग किमी होने का अनुमान है। विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र पर संपूर्ण अधिकार के साथ-साथ भारत ने इस क्षेत्र में समुद्री जीवित संसाधनों के संरक्षण विकास तथा इष्टतम दोहन का उत्तरदायित्व भी स्वीकार किया है। 2011 में भारत सरकार द्वारा गठित कार्य समूह ने भारतीय ईईजेड की संभावित उत्पादन क्षमता 4.412 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) होने का अनुमान लगाया। यह अनुमान वर्ष 2000 में गठित कार्य समूह द्वारा किए गए पूर्व के अनुमान (3.934 एमएमटी) से 12.2% अधिक है। पेलाजिक संसाधन जैसे ऑइल सार्डिन, रिबनफिश, भारतीय मैकरेल, इत्यादि 2.128 एमएमटी (48.2%); डिमर्सल संसाधन जैसे पेनाईड तथा नॉन पेनाइड प्रान, सीफैलोपोड, पर्चेस, क्रोकर्स इत्यादि 2.067 एमएमटी (46.8%) हैं तथा महासागरीय संसाधन जैसे येलोफिन टून, स्किपजैक टूना, बिगआई टूना, बिलफिश, पेलाजिक शार्क, बाराकुडा, डॉलफिन मछली तथा वाहू 0.27 एमएमटी (4.9 प्रतिशत) हैं। भारतीय ईईजेड में अनुमानित उत्पादन क्षमता का गहराई-वार वितरण इस प्रकार है: 100 मी. गहराई तक 3.821 एमएमटी (86.6 प्रतिशत), 100-200 मीटर तक की गहराई तक 0.259 एमएमटी (5.8 प्रतिशत) तथा 200-500 मीटर की गहराई में 0.115 एमएमटी (2.6 प्रतिशत), शेष 0.217 एमएमटी (4.9 प्रतिशत) महासागरीय जल में मौजूद है। पिछले 4 वर्षों (2012-13 से 2015-16) के दौरान औसत समुद्री मत्स्य-उत्पादन 3.499 एमएमटी रहा है, जबकि 2015-16 में यह 3.583 एमएमटी (अनंतिम) था। हालांकि समीपवर्ती तट के जलों के मात्स्यिकी संसाधनों का पूर्ण दोहन होता है, वहीं गहरे समुद्र तथा महासागरीय जल में उत्पादन को बढ़ाने के अवसर उपलब्ध हैं।
  • राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी संगणना, 2010 के अनुसार भारत में समुद्री मछुआरों की आबादी 4.0 मिलियन है, जिनमें से 0.99 मिलियन सक्रिय मछुआरे हैं। सक्रिय मछुआरों में से 33% यांत्रीकृत सेक्टर में, 62% मोटराईज्ड सेक्टर में तथा 5% पारंपरिक या आर्टिसनल सेक्टर में कार्य कर रहे है। कुल समुद्री मत्स्य उत्पादन में से 75% यांत्रीकृत सेक्टर से, 23% मोटराईज्ड सेक्टर से तथा 2% पारंपरिक सेक्टर से आता है। पिछले 50 वर्षों के दौरान भारत में समुद्री मत्स्य उत्पादन का पैटर्न स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि साठ के दशक तक कुल उत्पादन में पारंपरिक सेक्टर का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। अनुवर्ती अवधियों के दौरान यांत्रीकृत मत्स्यन की लोकप्रियता तथा विस्तार के साथ ही पारंपरिक नौकाओं के मोटरीकरण के कारण पारंपरिक सेक्टर का योगदान पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरता रहा है। यांत्रीकृत ट्राल मात्स्यिकी अब भारत की विभिन्न मत्स्यन पद्धतियों में से सबसे महत्वपूर्ण है तथा देश के कुल समुद्री मत्स्य उत्पादन में इसका 55% योगदान है।
  • राजस्व के मामले में गहरे जल में पायी जाने वाली कुछ उच्च मूल्य की प्रजातियां, जैसे टूना का अभी भी इष्टतम रूप से दोहन किया जाना है। उपलब्ध समुद्री संसाधनों के धारणीय माध्यम के द्वारा पूर्ण दोहन से देश तथा इस सेक्टर से जुड़े लोगों का सतत विकास सुनिश्चित हो सकेगा। चूंकि यह सेक्टर अत्यंत गतिशील है अत: वर्तमान तकनीकी ज्ञान तथा संसाधनों की स्थिति का लाभ उठाने के लिए नीतियों तथा कार्यक्रमों को सुप्रवाही बनाने की आवश्यकता है। इस दिशा में नीति निम्नलिखित सिफारिशें करती है:

मात्स्यिकी प्रबंधन

  • सरकार द्वारा भारतीय ईईजेड में मछली के संभावित भंडार के आकलन के लिए 2011 में गठित कार्यकारी समूह ने सभी समुद्री राज्यों / संघ शासित प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की यंत्रीकृत मत्स्य-नौकाओं के संबंध में क्षेत्रीय जल में अधिक क्षमता मौजूद होने का संकेत दिया था तथा सरकार के विचार के लिए इष्टतम बेड़े के आकार का सुझाव भी दिया था। कार्यकारी समूह की रिपोर्ट में निहित सुझावों पर विचार किया जाएगा तथा अधिक क्षमता को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए रणनीतियां विकसित की जायेंगी एवं राज्यों / संघ शासित प्रदेशों और अन्य संबंधित हितधारकों के परामर्श से इन्हें लागू भी किया जाएगा।
  • भारत के निकटवर्ती समुद्र से वर्तमान में प्राप्त औसत उत्पादन दर, संभावित अधिकतम उत्पादन क्षमता के अनुमानों के निकट है, जो 200 मीटर की गहराई के भीतर संसाधनों की इष्टतम हार्वेस्टिंग को दर्शाता है। दूसरी ओर महासागरीय जलों में अभी भी उच्च मूल्य वाले संसाधनों जैसे टूना, टूना जैसी प्रजातियों, मिक्टोफिड्स तथा महासागरीय स्किवड की एक अप्रयुक्त क्षमता मौजूद है। हालांकि, मौजूदा उत्पादन और संभावित उपज के अनुमानों में व्यापक अंतराल को देखते हुए भी, प्रकृतिकृत मछली हार्वेस्ट के संबंध में, वैश्विक मानकों के अनुरूप सावधानीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अंतरतटीय जलों के संबंध में सरकार धारणीयता तथा इक्विटी के प्रमुख सिद्धांतों के साथ हार्वेस्ट को अधिकतम धारणीय उत्पादन के वर्तमान स्तरों के लगभग बनाए रखने पर बल देगी।
  • समुद्री मात्स्यिकी की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने के लिए मत्स्यन प्रयास प्रबंधन; फ्लीट आकार को इष्टतम बनाने; उत्पादन प्रक्रिया में जैवविविधा संरक्षण को मुख्यधारा में लाने; प्रजाति-विशिष्ट तथा क्षेत्र-विशिष्ट प्रबंधन योजनाओं के लिए प्रयास किए जाएंगे, जिसमें पारिस्थितिकी तथा जैविकीय रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों तथा संवेदनशील समुद्री परिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण; आइकोनिक तथा संकटापन्न प्रजातियों की सुरक्षा; संसाधनों के धारणीय उपयोग के लिए स्थानिक तथा सामयिक उपाय; तथा परामर्शी प्रक्रिया द्वारा मछली रिफ्यूजिआ का सृजन भी शामिल है। इसके साथ-साथ, यह सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक मछुआरों के अधिकार सुरक्षित हैं तथा उनकी आजीविका ऐसे संरक्षणात्मक उपायों से प्रभावित नहीं होती, सरकार मौजूदा समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की समीक्षा भी करेगी।
  • मात्स्यिकी प्रबंधन में एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जायेगा, जिसमें पारंपरिक ज्ञान तथा विज्ञान के साथ व्यापारिक सिद्धांतों तथा प्राथमिक पणधारियों और संबद्ध गतिविधियों में लगे हुए व्यक्तियों को प्रभावी रूप से शामिल किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मात्स्यिकी परिस्थितिक तथा आर्थिक रूप से धारणीय बनी रहे। परिपरिक तथा यांत्रीकृत सेक्टरों के बीच विवाद को निपटाने, सामूहिक चिंता के उभरते मुद्दों को सुलझाने के लिए तथा सुसंगत प्रबंधन दृष्टिकोण और बेहतर सहयोग को प्रोत्साहित करते हुए, राष्ट्रीय क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए मात्स्यिकी की शासन - विधि में सुधार किया जाएगा।
  • समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र की प्रमुख विशेषताओं जैसे कि संसाधन की प्रचुरता और वितरण; वास्तविक समय में संसाधन उपलब्धता के नक्शे; उत्पादकता आकलन; वास्तविक समय में संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र की सलाह और मछुआरों के लाभ के लिए मौसम के पूर्वानुमान आदि के बारे में जानकारी की तत्काल और सुगम उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिए ज्ञान प्रबंधन एक माध्यम बनेगा। मछुआरा समुदाय के समर्थन में लाभों का इष्टतम उपयोग करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को उपयोग में लाया जाएगा।
  • स्थानिक तथा सामयिक पाबंदियों ने देश की समुद्री मत्स्य सम्पदा को बनाए रखने में सहायता की है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे प्रबंधन उपाय मछुआरों की आजीविका को प्रभावी रूप से सुधारें, निवारक दृष्टिकोण सहित सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक सूचना को ध्यान में रखते हुए तथा मछुआरों और अन्य संबंधित पणधारियों को यथोचित रूप से शामिल करते हुए इनकी आवधिक समीक्षाएं की जाएगी।
  • समुद्री मत्स्यन संसाधन असीमित नहीं है, और जैसा कि बहुत सारे मामलों में देखा गया है, अनियंत्रित हार्वेस्ट से उपलब्ध संसाधन समाप्त हो सकते हैं। मत्स्यन प्रयासों को इष्टतम बनाने तथा संसाधनों को धारणीय बनाने में सहायता करने वाले उपाय अपनाने के लिए संबंधित वैज्ञानिक संस्थानों तथा मछुआरों के साथ परामर्श करके सरकार उपयुक्त कदम उठाएगी। ऐसे उपायों में अन्य के साथ-साथ इन्पुट तथा आउटपुट नियंत्रणों, फ्लीट आकार, मत्स्यन दिवस तथा संचालन क्षेत्र, इंजिन हार्सपावर, गिअर का आकार, एमएसवाई, न्यूनतम जाल-आकार, कानूनी रूप से निर्धारित आखेट हेतु मछली का न्यूनतम आकार, अपेक्षाकृत कम हार्वेस्ट वाले क्षेत्रों में मत्स्यन के प्रयास को परावर्तित करना; फ्लीट येाजना से संबंधित मानचित्र तैयार करना; तथा संसाधनों को समाप्त होने से रोकना सुनिश्चित करने के लिए मात्स्यिकी प्रबंधन क्षेत्र सृजित करना आदि शामिल हैं। संबंधित संस्थान कमी या ह्रास की स्थिति वाले मछली स्टॉक के पुनःनिर्माण तथा इनके पुनर्संवर्धन या रिकवरी की योजना तैयार करना सुनिश्चित करेंगे। मात्सियकी प्रबंधन के लिए एक क्षमता मूल्यांकन रूपरेखा बनाई जायेगी।
  • वर्तमान में तटवर्ती राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में तट से गहराई या दूरी के आधार पर पारंपरिक मछुआरों के लिए विशिष्ट आरक्षित क्षेत्र चिन्हित किये गए हैं, जहां यांत्रिक विधियों से मत्स्यन की अनुमति नहीं होती है। ऐसे क्षेत्रीय उपयोग के अधिकार पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को बनाए रखने में उपयोग सिद्ध हुए हैं। सरकार पारंपरिक मछुआरों को ऐसी सहायता प्रदान करती रहेगी तथा कार्यकारी समूहों के साथ परामर्श करके, सरकार प्रादेशिक जल में पारंपरिक मछुआरों को वर्तमान में उपलब्ध क्षेत्र को और बढ़ाने पर विचार करेगी।
  • पारिस्थितिकी तंत्र के सभी जैविक और निर्जीव घटकों पर उचित विचार करते हुए और हितधारकों के कल्याण के लिए मत्स्य-प्रबंधन के पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण को कार्यान्वित किया जाएगा। इसी प्रकार से मात्स्यिकी क्षेत्र में विश्व में बहु-पणधारी, बहु-प्रजाति तथा बहु-फ्लीट मात्स्यिकी के सफल प्रबंधन प्रणालियों में से एक, प्रतिभागी प्रबंधन या सह-प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाएगा। स्थानीय क्षेत्रीय, अंतर-राज्यीय तथा राष्ट्रीय मात्स्यिकी को शामिल करने वाली ऐसी सह-प्रबंधन प्रणाली मछुआरों के विभिन्न समूहों के बीच के टकराव को भी सुलझाएगा। इन प्रबंधन उपायों को शामिल करने संबंधी मानकों को मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थाओं, तटवर्ती राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों, मछुआरों तथा अन्य संगठनों तथा इस सेक्टर में अन्य संबंधित पणधारियों के साथ परामर्श करके तैयार किया जाएगा।
  • भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के 12-200 समुद्री मील में मत्स्यन संचालन, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग (डीएएडीएफ) द्वारा समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों के अनुसार होता रहा है। इन दिशानिर्देशों के आधार पर पात्र आवेदकों को निर्धारित क्षेत्रों में मत्स्यन करने के लिए अनुमति पत्र दिया जाता था। यह देखते हुए कि एल.ओ.पी. योजना का गहरे समुद्र में मत्स्यन सेक्टर के समेकित विकास पर अपेक्षित प्रभाव नहीं दिखा, सरकार एल.ओ.पी. योजना को वापस लेते हुए इस सेक्टर के विकास के लिए एक वैकल्पिक तंत्र पर विचार करेगी। समुद्री मात्स्यिकी के लघु पैमाने की प्रकृति को बरकरार रखते हुए समुद्री मात्स्यिकी के समेकित विकास और उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम दोहन के लिए गहरे समुद्र में मत्स्यन तथा प्रंसस्करण में निजी निवेश को बढावा दिया जाएगा। मात्स्यिकी सेक्टर, विदेशी प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान कार्यक्रम के अलावा समुद्र में लम्बी यात्राएं कर सकने वाले, जंगरोधी तथा आधुनिक गहरे समुद्र के मत्स्यन-यानों के एक मज़बूत बेड़े के साथ गहरे समुद्र की मात्स्यिकी को अपनाना चाहता है। गहरे समुद्र में मत्स्यन के लिए भारतीय मत्स्यन बेड़े के क्षमता निर्माण के लिए सभी केंद्रीय तथा राज्य सरकार के पणधारियों को साथ लेते हुए एकल खिड़की दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। उद्यमशीलता विकास, निजी निवेश, सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) और समुद्री मात्स्यिकी के लिए संस्थागत वित्त के बेहतर लाभ को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके अलावा, समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर के समेकित विकास के लिए सी-फूड प्रसंस्करण तथा निर्यात उद्योग को गहरे समुद्र में मत्स्यन उद्योग के साथ मिलाने के लिए रूपरेखाएं तैयार की जायेंगी।
  • गहरे समुद्र में मत्स्यन को लोकप्रिय बनाने और पारंपरिक मछुआरों के कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सरकार नई विकासात्मक योजना(यें) लायेगी। इस योजना के अलावा, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले मौजूदा स्वदेशी बेड़े का आधुनिकीकरण, मछुआरों की सहकारी समितियों / स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले नए स्वदेशी जहाजों का आदान, ऑन-बोर्ड प्रशिक्षण, बाजारों और निर्यात से लिंकेज पर विचार किया जाएगा। इन प्रक्रियाओं/योजनाओं को लागू करते समय यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ऐसी पहले ईईजेड में मत्स्यन संबंधी अंतर्राष्ट्रीय विनियमों का अनुपालन करें। ईईजेड में गहरे समुद्र संसाधनों का उपयोग न केवल ईईजेड में उपलब्ध संसाधनों के संदर्भ में, बल्कि बुनियादी ढांचे, नौका निर्माण, सर्वेक्षण और प्रमाणन, मानव क्षमता विकास और नियमों और विनियमों के व्यापक और कार्यान्वयन के लिए तकनीकी साधनों पर पुनर्विचार करेगा बल्कि एक मजबूत निगरानी, नियंत्रण और निगरानी (एमसीएस) तंत्र के साथ, वाणिज्यिक मत्स्य-संसाधनों पर वैज्ञानिक और तकनीकी जानकारी की उपलब्धता, और उन्हें लक्षित करने के लिए सर्वोत्तम मत्स्यन के तरीकों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
  • तटवर्ती राज्यों की आवश्कताओं को ध्यान में रखते हुए ईईजेड के लिए एक समग्र संसाधन उपयोग योजना तैयार की जाएगी। इसी समय, तटीय राज्यों / संघ शासित प्रदेशों को भी यह समझने के लिए अनुरोध किया जाएगा कि 12 से 200 समुद्री मील के बीच ईईजेड केंद्रीय सरकार द्वारा प्रबंधित एक उभय-निष्ठ (कॉमन) संसाधन वाला क्षेत्र है तथा यहाँ राज्यों / संघ शासित प्रदेशों द्वारा एकाकी मत्स्यन की रणनीति से अधिक-दोहन और अंतरराज्यीय संघर्ष हो सकता है। अत: संघ सरकार तथा राज्य सरकारों को ईईजेड में संसाधनों के धारणीय उपयोग हेतु प्रबंधन नीतियों तथा उपयों पर सहमत होने के लिए मिल कर कार्य करना होगा। समुद्री मात्स्यिकी के प्रबंधन के लिए अंतर-राज्यीय टकरावों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय टकरावों को कम करने और उनका प्रबंधन करने के लिए एक संस्थागत तंत्र तैयार तथा सुदृढ़ किया जाएगा। सरकार एकीकृत तटीय तथा द्वीपीय विकास योजनाएं तैयार तथा कार्यान्वित करेगी, जो तटवर्ती राज्यों तथा द्वीपों की अर्थव्यवस्था में वृद्धि करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र होगा। इन योजनाओं में मात्स्यिकी के दोहन, तटवर्ती/द्वीप पर्यटन, तैरते हुए दोबारा तेल भरने वाले बजरों की स्थापना, मूल वाहक यान तथा सचल समुद्री एम्बुलैंसों आदि संयुक्त रूपरेखा में शामिल होंगी।
  • राष्ट्रीय न्यायाधिकार क्षेत्र से परे के क्षेत्रों (ए.बी.एन.जे.) में मात्स्यिकी संसाधनों जैसे कि क्रिल-फिशिंग आदि को हार्वेस्ट किए जाने की व्यापक संभावनाएं मौजूद है, जोकि कई अन्य देशों द्वारा हार्वेस्ट किया गया है। सरकार खुले समुद्र में मात्स्यिकी से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय करारों/ व्यवस्थाओं के संगत प्रावधानों के अनुपालन की शर्त पर तथा तटीय सुरक्षा और समुद्र मे मछुआरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त मॉनिटरिंग तथा संचार तंत्र के साथ भारतीय मत्स्यन यानों द्वारा ए.बी.एन.जे. में मात्स्यिकी संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देगी।

मॉनिटरिंग, नियंत्रण और निगरानी (एम.सी.एस.)

  • समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर में वर्तमान में स्थापित दृढ़ और प्रभावी एम.सी.एस. तंत्र को और सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता है। सरकार ने समुद्री सेक्टर में चल रहे सभी मत्स्यन यानों (पारंपरिक, मोटराइज्ड, यांत्रीकृत तथा गैर यांत्रीकृत) को पंजीकृत करने के लिए एक ऑनलाइन एक-समान पंजीकरण तथा लाइसेंसिंग प्रणाली (रियलक्राफ्ट) प्रारंभ की है। हालांकि पंजीकरण और लाइसेंसिंग के माध्यम से मछली कैच की मॉनिटरिंग तथा मत्स्यन संबंधी प्रयास का नियंत्रण हो रहा है तथापि, एम.सी.एस. गतिविधियों को समुद्री राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मात्स्यिकी विभाग, तटवर्ती समुद्री पुलिस तथा तट रक्षक जैसी संबंधित एजेंसियों की और अधिक भागेदारी के माध्यम से और सुदृढ़ किया जाएगा। एम.सी.एस. का सुदृढ़ीकरण तथा सुधार चरणबद्ध रूप से किया जाएगा। इसके लिए पारंपरिक साधनों (जैसे लॉग बुक, आवाजाही टोकन, मत्स्य-नौकाओं की कलर कोडिंग, मछुआरों को उनकी पहचान के लिए बायोमिट्रिक कार्ड का प्रयोग) तथा साथ ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकि और आई.टी. उपकरणों (जैसे नौका मॉनिटरिंग प्रणाली तथा स्वचालित पहचान प्रणाली) का भी प्रयोग किया जाएगा। एक और प्रभावी एम.सी.एस. प्रणाली स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ काम करेगी। भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) और तटीय पुलिस को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित और एम.सी.एस. को मजबूत करने के लिए सुसज्जित होना चाहिए। कम्युनिटी आधारित एम.सी.एस. प्रणाली को स्थापित करने के लिए हर प्रयास किया जाएगा।
  • समुद्री मात्स्यिकी सेक्टर में डिजाइन, आकार, इंजन तथा गिअर और संचालन क्षेत्र के आधार पर कई प्रकार की मत्स्यन नौकाएं इस सेक्टर की विशेषता है। मात्स्यिकी सेक्टर की आवश्यकताओं जैसे कि पंजीकरण, प्रमाणन, सर्वेक्षण तथा प्रमाणन, पहचान संबंधी तथा ट्रैकिंग उपकरणों का अनिवार्य वदन, पहचान संबंधी दस्तावेज का अनिवार्य वदन, पंजीकरण दस्तावेज के उपर्युक्त उपबंधों का उल्लंघन करने पर जुर्माना, समुद्र में सुरक्षा तथा मत्स्यन यानों को चलाने संबंधी मानकों को पूरा करने के लिए तथा खाद्य और कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आई.एम.ओ.), अतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) इत्यादि जैसी संबंधित एजेंसियों द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मानकों और मापदण्डों को पूरा करने के लिए संबंधित कानूनों को अद्यतन किए जाने की आवश्यकता है।
  • बोट-बिल्डिंग-या की स्थापना तथा मत्स्यन नौकाओं का निर्माण, देश में एक अविनियमित गतिविधि है, जिससे खराब गुणवत्ता वाली नौकाओं का निर्माण होता है, परिणामतः महत्वपूर्ण गुणों, जैसे स्थिरता, मछली होल्ड के लिए ईष्टतम स्थान, कर्मी क्वार्टर तथा रसोई और शौचालय की व्यवस्थाओं में समझौता करना पड़ता है। फाइवर प्रबालित प्लास्टिक (एफआरपी) के अधिक उपयोग से इस प्रकार के बोट-बिल्डिंग याडों द्वारा खराब किस्म की नौकाओं का निर्माण बढ़ गया है। सरकार, समुद्री राज्यों /संघ राज्य क्षेत्र के समुद्री मत्स्यन विनियमन अधिनियम (एम.एफ.आर.ए.) के क्षेत्र विस्तार पर विचार करेगी, जिससे कि बोट-बिल्डिंग-यार्डों का पंजीकरण, मत्स्यन नौकाएं समुद्र में चलने योग्य है या नहीं, इसके वार्षिक सर्वेक्षण, आई.आर.एस. या ऐसे ही किसी तकनीकी संगठन के माध्यम से संचार और सुरक्षा उपकरणों की जांच, नांव के मानक डिजाइन विनिर्दिश आदि इसके दायरे में आ सकें, तथा नौका निर्माण हेतु निर्माण सामग्री और सतत निगरानी प्रक्रिया का नियंत्रण पूर्णत: केंद्र तथा राज्य सरकरों द्वारा किया जाएगा।
  • भारत, रिपोर्ट न की गई, अनियमित और अवैध (आई.यू.यू.) मत्स्यन को रोकने और समाप्त करने संबंधी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय करारों/समझौतों का पक्षकार है, तथा यह देखते हुए सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी भारतीय मत्स्यन नौका/ फ्लीट हमारे अपने ई.ई.जेड. के अंदर, अंतर-राष्ट्रीय समुद्र में या अन्य देशों के ई.ई.जेड. में किसी भी प्रकार से आई.यू.यू. फिशिंग में लिप्त नहीं है, सरकार बंदरगाह और समुद्र, दोनों में एक समर्थ तंत्र की स्थापना करेगी।
  • हाल ही में भारतीय मछुआरों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आई.एम.बी.एल) को पार करने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि अनेक कारणों से है, उनमें से एक कारण स्थाई मध्यस्थता न्यायालय, हेग द्ववारा दिये गये निर्णय के आधार पर आई.एम.बी.एल को पुनर्परिभाषित करने के कारण है। इस तरह की घटनाओं को कम करने के लिए सरकार मछुआरों को आवश्यक जागरूकता और प्रशिक्षण देगी ताकि आई.एम.बी.एल. को पार करने से बचा जा सके।
  • अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ संगठन (आई.एल.ओ) का करार सं.188 फिशिंग नौकाओं में उत्तम श्रम परिस्थितियों के आवश्यक प्रबंध कराने से संबंधित एक ऐतिहासिक अन्तर्राष्ट्रीय करार है। मत्स्यन नावों पर काम करने वाले श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध कराने हेतु घरेलू कानून में उपरोक्त करार (कन्वेंशन) के प्रावधान के समावेश पर सरकार विचार करेगी। इस संबंध में, यह आवश्यक होगा कि किसी एक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के श्रमिक जब दूसरे राज्य में मत्स्य-नौकाओं पर कार्य करने के लिए प्रवास करते है, तब भी उपरोक्त प्रावधान उन पर लागू हो। केंद्रीय सरकार आई.एल.ओ. करार सं.188 के अनुसमर्थन और इसके त्वरित कार्यान्वयन को तय समय सीमा में लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करेगी जिसमें नौका-कर्मियों और नौकाओं के प्रवासी कर्मियों की कार्यदशाओं में सुधार, अंतर्राष्ट्रीय मानकों और नियमों के संदर्भ में मात्स्यिकी से संबंधित भारत के कानूनों को अद्यतन करने और यानों के पंजीकरण, स्वच्छता और लैंडिंग केन्द्रों तथा बंदरगाहों आदि के लिए स्वच्छता मानदंडों के लिए समय सीमा तय करना शामिल हैं।
  • आई.एल.ओ द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि समुद्र में मत्स्यन के समय वार्षिक रूप से वैश्विक स्तर पर 24,000 मछुआरों की मृत्यु होती है। ये आकड़े उन देशों से प्राप्त किये गये हैं जहां समुद्र में दुघर्टनाओं से संबंधित सांख्यिकी को सही प्रकार से रखा जाता है। यदि अन्य देशों के मुत्यु-दर आकड़ों को भी इस में शामिल कर लिया जाये, तो यह अनुमान और अधिक होगा। भारतीय समुद्री मात्स्यिकी के मुख्यतः ‘लघु प्रकृति के संदर्भ में सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि समुद्र में सुरक्षा उपायों को ठीक प्रकार से सुद्दढ और कार्यान्वित किया गया है। ऐसे उपायों में, अन्य बातों के साथ-साथ नाव पर जीवन रक्षक यंत्रों जैसे संकट सतर्कता ट्रांसमीटर (डी.ए.टी), स्वत: पहचान प्रणाली (ए.आई.एस) अथवा समान ट्रांसपोंडर और संचार उपकरण और मछुआरों तथा अन्य संबंधित पणधारियों हेतु उचित कौशल और क्षमता विकास के प्रावधान शामिल होंगे। मछुआरों की सुरक्षा के उचित प्रावधान करते हुए ऐसी प्रणालियों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू किया जायेगा।

मात्स्यिकी डेटा और अनुसंसाधन

  • निर्णयों को मूर्त रूप देने के लिए सरकार विज्ञान और नीति के इटंरफेस को सुदृढ बनायेगी। समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं पर नीति-गत निर्णय लेने के लिए समय पर, विश्वसनीय एवं व्यापक डाटासेट की आवश्यकता होगी, जिसको ध्यान में रखते हुए सरकार, केन्द्र और राज्य सरकारों, अनुसंधान संस्थानों और हितधारकों को जोड़ते हुए एक 'राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी डाटा अधिग्रहण योजना' को लागू करेगी। मात्स्यिकी में समयबद्ध एवं विश्वस्त डाटा प्राप्त करने के उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए शीघ्र ही एक योजना लागू की जायेगी जिसके द्वारा इन संस्थानों को क्षमता-निर्माण, प्रबंधन प्रणाली और उचित प्रौद्योगिकी के जरिये सुदृढ़ किया जायेगा।

समुद्री मछली पालन (मैरी कल्चर)

  • मैरीकल्चर, यदि स्थायी रूप से किया जाये तो तटीय जल से मछली उत्पादन को बढ़ाने में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मैरीकल्चर क्षेत्र के विकास के लिए, मैरीकल्चर फार्मों/पार्को की स्थापना के लिए तथा बीज आपूर्ति के लिए हैचरियों की स्थापना करने की योजनाओं को सरकार प्रोत्साहित करेगी। इस उभरते हुए क्षेत्र की संस्थागत और वाणिज्यिक आवश्यकताओं जिसमें पट्टा अधिकार, नीतियां, स्थानिक योजना, प्रौद्योगिकी आवकों जैसे कृषिकर्म, बीज, आहार, स्वास्थ्य प्रबंधन, पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभाव, मैरीकल्चर के लिए मछुआरों तथा उद्यमकर्ताओं का क्षमता निर्माण और बाजार मूल्य श्रृंखलाओं का विकास आदि शामिल हैं, का समाधान तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तथा संबंधित पणधारियों के परामर्श से किया जाएगा। छोटे मत्स्यन समुदायों, मछुआरा समूहों, मत्स्य सहकारिताओं अथवा सरकारी संगठनों की भागीदारी को विशेष रूप से बढ़ावा और सहयोग दिया जायेगा।

द्वीप मात्स्यिकी

  • अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप समूह में टूना जैसी लाभप्रद प्रजातियां, यूपर्स, स्नेकर्स एवं कोरल मछलियों जैसे वाणिज्यिक मूल्य की प्रजातियां तथा अन्य महत्वपूर्ण प्रजातियां मात्स्यिकी संसाधन के रूप में मौजूद हैं। भौगोलिक रूप से दूर स्थित होने के कारण यहाँ के मात्स्यिकी विकास में बाधा पहुंची है, तथा मात्स्यिकी का इष्टतम उपयोग नहीं हो पाया है। सरकार मात्स्यिकी संसाधनों के धारणीय उपयोग, मैरीकल्चर, स्थानीय मछुआरों की क्षमता विकास हेतु समर्पित कार्यक्रम कार्यान्वित करेगी, और संस्थागत पोस्ट-हार्वेस्ट सहायता, जो दोहन किए गए संसाधानों को मुख्य बाजारों तक और समुद्री खाद्य को निर्यात गंतव्यों तक पहुचने तक अनुमति देता है, इन सब को बढ़ावा देगी।

पोस्ट-हार्वेस्ट और प्रसंस्करण

  • देश में मछली उतारने के केंद्रों, मत्स्यन बंदरगाहों और मछली बाजारों की साफ-सफाई और स्वच्छता की स्थिति में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाया जा सके। पणधारियों को जागरुक करने के लिए सरकार कार्यक्रम शुरू करेगी ताकि वे मत्स्यन बंदरगाहों में साफ सफाई तथा स्वच्छता का रखरखाव कर सकें। साथ ही राज्य सरकारों और पत्तनन्यास प्राधिकरणों को, सम्बंधित मुद्दों के समाधान के लिए उपयुक्त प्रणाली विकसित करने, और बंदरगाह में सुविधाओं के दैनिक प्रबंधन आदि के लिए, पणधारियों द्वारा चालित प्रबंधन समितियों के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा। इस प्रकार सुरक्षित और स्वच्छ समुद्री खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। पोस्ट-हार्वेस्ट मात्स्यिकी में भारत की क्षमता और प्रशिक्षण आवश्यकताओं की जरूरत को पूरा करने के लिए विशेष रूप से प्रयास किये जायेंगे।
  • पर्याप्त अवसंरचना सुविधायें, समुद्री मात्स्यिकी मूल्य-श्रृंखला के साथ ही अनेक एम.सी.एस कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण होती हैं। आवश्यकताओं के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के आधार पर और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर न्यूनतम प्रभाव सुनिश्चित करते हुए, सरकार अतिरिक्त अवसंरचना सुविधाएं तैयार करेगी, जिसमें बंदरगाह स्थित मछली ड्रेसिंग केंद्र और मछली प्रसंस्करण सम्पदा शामिल हैं। इस प्रकार की अवसंरचना सुविधाओ की स्थापना में पणधारियों के प्रत्यक्ष लगाव को प्रोत्साहित करने के लिए, तथा आवश्यकताओं की शीघ्र पूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए, सार्वजनिक निजी सहभागिता सहित मछुआरा सहकारिता को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • वर्तमान में यह अनुमान लगाया गया है कि मछली हार्वेस्ट का लगभग 15% भाग पोस्ट-हार्वेस्ट क्रियाओं में बर्बाद हो जाता है, जो प्राकृतिक सम्पदा की बहुत बड़ी क्षति है, जिसका और बहेतर ढंग से उपयोग किया जा सकता था। सरकार बेहतर ऑन-बोर्ड मछली हैडलिंग के माध्यम से पोस्ट-हार्वेस्ट क्षति का संज्ञान लेगी ताकि विशेषकर अधिक मूल्य के मछली और उनके उत्पाद से उनकी उत्तम गुणवत्ता और मूल्य मिले सके। यह महत्वपूर्ण है कि इससे मछली सम्पदा की हानि कम होगी, जिससे कि मानव उपभोग के लिए अधिक मछली उपलब्ध हो सकेगी। बाई-कैच को कम करने की दिशा में अल्पिकरण के उपाय को संगत उपकरणों, गियर और अन्य प्रबंधन उपायों के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • मत्स्य आहार उद्योग में निम्न मूल्य वाली मछली का प्रयोग एक चिंता का विषय बन रहा है, क्योंकि इससे निम्न मूल्य की मछलियों की ओवर फिशिंग और बाई-कैच में वृद्धि हो सकती है, इस प्रकार समुद्री पारिस्थितिकी प्रणाली को भी क्षति पहुंच सकती है। देश के कुछ भागों में मछली आहार संयंत्रों के विस्तार तथा लघु पैलाजिग्स की जबरदस्त मांग ने अति-मत्स्यन को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप देश के कुछ भागों में पैलाजिक मत्स्य-स्टॉक में कमी आई है। सरकार मछली आहार संयंत्रों के प्रसार को नियंत्रित करने तथा इसके विनियमन करने संबंधी कदमो को उठाकर इस मुद्दे का समाधान करेगी।

व्यापार

  • भारतीय समुद्री खाद्य का वैश्विक समुद्री खाद्य व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान है। पिछली अवधि में भारत से निर्यात किए जाने वाले समुद्री खाद्यों में मात्रात्मक तथा गुणात्मक दोनों रूपों में वृद्धि हुई है। इन विकासों के होते हुए भी, भारतीय समुद्री खाद्यों को अभी अपना ईष्टतम मूल्य प्राप्त करना शेष है, ऐसा प्रथमतः समुद्री उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन के निम्न स्तर के कारण तथा दूसरा, उत्पाद-ब्रांडिंग के खराब स्तर के चतले है। इन कमजोरियों से निपटने के लिए उत्पादों के विविधीकरण का समर्थन किया जायेगा, मूल्यवर्द्धन और उत्पाद ब्रांडिंग में सुधार किया जायेगा तथा विश्व के विभिन्न भागों में, नये बाजारों तक पहुंच को बढ़ाया जायेगा। इसी प्रकार से घरेलू सेक्टर में मछली और मत्स्य-उत्पादो की उपभोक्ताओं में बढ़ती मांग के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए की उपभोक्ता को अच्छी किस्म की मछली प्राप्त हो सके, सरकार मौजूदा अवंसरचना, मूल्य श्रृंखला और घरेलू मछली विपणन के अन्य महत्वपूर्ण गुणों की समीक्षा करेगी।
  • मात्स्यिकी उत्पाद अनुमार्णियता (ट्रेसेबिलिटी) तथा चेन ऑफ कस्टडी को संबोधित किया जायेगा क्योंकि इनका वैश्विक समुद्री खाद्य व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अलावा, समुद्री खाद्य उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय मांग और मानकों के अनुरूप विविधीकृत किए जायेंगे, ताकि मात्स्यिकी उत्पादों के अधिकतम मूल्य प्राप्त किये जा सकें। इसके साथ ही घरेलू विपणन मूल्य श्रृंखला में सुधार करने के लिए मात्स्यिकी उत्पादों को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई) के मानकों के साथ समेकित किया जायेगा। इस संबंध में सरकार एफ.एस.एस.ए.आई बेंच मार्क को निर्यात निरीक्षण परिषद (ई.आई.सी) के साथ तालमेल करने पर विचार करेगी।
  • समुद्री खाद्य की अनुमार्गणीयता (ट्रेसेबिलिटी) तथा इको-लेबलिंग मात्स्यिकी की पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए धीरे-धीरे बाजार-आधारित हस्तक्षेप के रूप में महत्व प्राप्त कर रहे हैं। यूरोपीय संघ (ईयू) के बाजारों में निर्यात किए भारत का राजपत्र : असाधारण जाने वाले सभी समुद्री खाद्य पदार्थों के लिए उन समुद्री खाद्य पदार्थों की ट्रेसेबिलिटी को दर्शाया जाना एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। ऐसी संभावना है कि आने वाले वर्षों में आयात करने वाले और अधिक देशों और बाजारों में केवल प्रमाणित और लेबलयुक्त समुद्री खाद्य पदार्थों की मांग की जाएगी। सरकार प्रमुख भारतीय मात्स्यिकी के पर्यावरण-लेबलिंग को प्रोत्साहित करने के लिए एक सक्षम माहौल तैयार करेगी जो मत्स्य-स्टॉक, समुद्री खाद्य उद्योग और मछुआरों को लाभ पहुंचायेगा।
  • मछली उतारने के केंद्रों (लैंडिंग केंद्रों) और खुदरा बाजारों में मछली बिक्री मूल्य के बीच का व्यापक अंतर यह इंगित करता है कि बिचौलिये कीमतों का पर्याप्त हिस्सा ले लेते हैं। यहां पर क्रेडिट बंधन से संबंधित मुद्दे भी होते है। सरकार आवश्यक व्यवधानों को कम करने के लिए कदम उठाएगी ताकि मछुआरों की बिचौलियों और निजी वित्तपोषको पर निर्भरता कम हो सके। मछुआरों द्वारा और / अथवा राज्य द्वारा चालित बंदरगाह आधरित सहकारिताओं के माध्यम से बाजारों को सुद्दढ़ करने के लिए प्रयास किया जाएगा।

समुद्री पर्यावरण तथा प्रदूषण

  • भारत में समुद्री पर्यावरण प्रदूषण के कारण दबाव में है तथा शायद मछली स्टॉक में कमी का एक कारण है। इसके अलावा, भूमि पर प्रवाहित अपशिष्ट का खराब उपचार, समुद्र में प्लास्टिक (विशेष रूप से माइक्रो-प्लास्टिक कण) तथा छद्म मत्स्यन (घोस्ट फिशिंग) जैसे कारक भी मछली स्टॉक को समान रूप से प्रभावित कर रहे हैं। सरकार, प्रदूषण नियंत्रण को नियंत्रित करने के लिए नियामक तंत्र को मजबूत करेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जमीन और समुद्र आधारित प्रदूषण प्रभावी रूप से नियंत्रित हो और पारिस्थितिक तंत्र की निगरानी की जा सके। मछुआरे यह सुनिश्चित करने के लिए कि मत्स्यनौकाएं समुद्री प्रदूषण में किसी भी रूप में योगदान ने दें, इस हेतु मत्स्य-नौकाओं की डिज़ाइन में अपेक्षित उपाय समेत सभी प्रयास करेंगे।
  • बंदरगाहों का विकास कभी-कभी कटाव और भारतीय तटों में क्षरण की वृद्धि को बढ़ावा देता है। ऐसे विकास तटीय संरचना में परिवर्तन ला सकते हैं, जिसका प्रभाव तटरेखा, पारिस्थितिकी और मात्स्यिकी पर पड़ सकता है। सरकार तटरेखा में अवसंरचना विकास पर विचार करते समय इन पहलुओं के समाधान हेतु उचित तंत्र स्थापित करने पर विचार करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि सभी पणधारियों के हितों का उचित रूप से समाधान किया जाये।
  • यह सर्वविदित है कि तटवर्ती और तट के पास टेल-एन्ड वाले पारिस्थितिक तंत्र होते हैं, और इनमे पाए जाने वाले समुद्री मत्स्य-संसाधन मीठे पानी और तलछट के प्रवाह में लाये जाने वाले पोषक तत्वों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं। हालांकि, ये जल निकाय मानवजनित दबावों के अधीन हैं जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण की गुणवत्ता में गिरावट और ताजे पानी के प्रवाह में कमी आती है जो कि कई महत्वपूर्ण समुद्री मत्स्य संसाधनों के स्टॉक्स को प्रभावित करता है, विशेष रूप से उच्च मूल्य वाले झींगे, जो इन अंतर्देशीय तटीय जल में अपने जीवन चक्र का एक चरण पूरा करते हैं। इसलिए इस प्रकार के टेल- इंड परिस्थितिकी के पर्यावरणीय समरूपता की रक्षा के लिए सरकार लैंडस्केप से सागर-स्कैप दृष्टिकोण पर विचार करेगी जहां अंतर्देशीय जल संसाधनों का सही प्रबंधन भी तटीय जल के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करेगा।
  • धारणीय मात्स्यिकी के विकास का संवर्धन करते हुए समुद्री पर्यावरण के पारिस्थितिकी समेकन को बनाए रखने के लिए सरकार जोर देगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संकटापन्न, जोखिम अथवा संरक्षित समुद्री प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। मैंयूव, समुद्री-घास (सी-बीड), और मूंगा चट्टाने तटीय समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का आंतरिक भाग हैं और कई मछली प्रजातियों तथा समुद्री स्तनधारियों जैसे समुद्री गाय (डुगोंग) के लिए आवास समेत पारिस्थितक सेवाओं के विस्तार को उपलब्ध कराता है। ऐसी पारिस्थितिक प्रणाली की किसी भी प्रकार की अनुचित मानवीय प्रभाव से रक्षा की जाएगी।

जलवायु परिवर्तन (अनुकूलन और नई पहलें)

  • जलवायु परिवर्तन सर्वाधिक बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसका मात्स्यिकी क्षेत्र सामना कर रहा है, जिसके लिए समयबद्ध अनुकूलन और प्रबंधन योजनाएं आवश्यक हैं। समुद्री मात्स्यिकी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र और चारों ओर खुले समुद्र में पर्याप्त रूप से दिखाई दे रहा है। ऐसे प्रभाव कुछ प्रजातियों के मत्स्यन में स्पष्ट परिवर्तन लाये हैं और मछुआरों को मत्स्यन परिचालन में परिवर्तन करने को मजबूर किया है। जलवायु परिवर्तन को कुछ मछली प्रजातियों के कुछ स्टॉक की प्रचुरता में परिवर्तन के लिए कारणों में से एक कारण माना जाता है। सरकार, समयबद्ध तरीके से अनुकूलन विकल्प लागू करने के अलावा मत्स्यन और मछली पकड़ने वाले समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर केंद्रित अध्ययन को प्रोत्साहित करेगी। जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय प्रतिबद्धता के भाग के रूप में, मत्स्यन और मत्स्यन संबंधी क्रियाकलापों से उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) को कम करते हुए हरित मात्स्यिकी के विचार को बढ़ावा दिया जायेगा।

मछुआरा कल्याण सामाजिक सुरक्षा नेट्स और संस्थागत क्रेडिट्स

  • सरकार मौजूदा कल्याणकारी उपायों को जारी रखने के साथ ही प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना (डीबीटीएस) के माध्यम से देश में मछुवारा समुदाय को पर्याप्त सुरक्षा कवर प्रदान करने और उन्हें मजबूत करने पर विचार करेगी। इस प्रकार के उपायों में मछुआरों को समुदाय कल्याण, आवास और अन्य सुविधाएं भी शामिल होगी।
  • आंधी का प्रवाह, चक्रवात, लहरें आदि जैसी उग्र प्रकृति की मौसम घटनाओं को प्राकृतिक आपदाओं के रूप में माना जाएगा। इसी रूप में, मानव निर्मित आपदा जैसे ऑयल-स्पिल को भी आपदाओं के रूप में माना जाएगा और प्रभावित मछुआरा समुदायों को उनकी आजीविका वापस दिलाने के लिए व्यवहारिक सहयोग /सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। समुद्र में मछुआरों की मृत्यु हो जाने के मामले में, मुआवजे की प्रकिया को आसान बनाया जाएगा ताकि प्रभावित मछुआरा परिवार को तर्कसंगत समय में इसका लाभ मिल सकें।
  • मत्स्यन प्रतिबंध का मछली स्टॉक के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभावों के लिए हितधारकों के एक बड़े खंड ने आवाज उठाई है। कुछ तटीय राज्यों ने भी पणधारियों के ही जैसे प्रतिबंध अवधि को वर्तमान में 61 दिनों की अवधि से बढ़ाने पर जोर दिया है। प्रतिबंध के लाभकारी प्रभाव और पणधारियों के अच्छे सहयोग को विचार में रखते हुए, सरकार मछुआरों को मत्स्यन प्रतिबंध अवधि के दौरान उपलब्ध वर्तमान मुआवजा पैकेज को सुदृढ़ करेंगी। यह न केवल पणधारियों को संसाधनों के संरक्षण में संलग्नता को बढ़ायेगा बल्कि मछली स्टॉक, जिनमें कमी/ क्षरण के लक्षण दिखाई दे रहे है, उनके पुर्नउद्धार और पुर्न स्थापना में भी मदद करेगा।
  • मात्स्यिकी सहकारी समितियों की संस्थाओं ने हाल के वर्षों में गति प्राप्त की है, और कुछ राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में, इस तरह की सहकारिताओं ने अपनी सफलता का प्रदर्शन भी किया है। मात्स्यिकी क्षेत्र में सहकारिता समुदाय और बेहतर ढंग से समुदाय की सहायता कर सकता है यदि वे बेहतर कारोबार मॉडल अपनाएं, जिसमें हार्वेस्ट और पोस्ट-हार्वेस्ट दोनों कार्य शामिल हैं। देश में मात्स्यिकी सहकारिता को, जहां कहीं आवश्यक हो, कौशल विकास और तकनीकी तथा वित्तीय सहायता के माध्यम से सुकर और सुदृढ़ीकृत किया जाएगा। सहकारिताओं को मात्स्यिकी और जलवायु संबंधी मुद्दो के समाधान हेतु विज्ञान आधारित दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्रोत्साहित और सुदृढ़ किया जाएगा।
  • मछुआरों द्वारा मत्स्यन उपकरणों और नौकाओं की खरीद हेतु संस्थागत ऋण की उपलब्धता प्राय: बहुत कठिन होती है, और लाभ की जोखिम प्रवृत्ति के कारण बहुत से मछुआरे निजी ऋणदाताओं और बिचौलियों के ऋण-जाल में फंस जाते हैं। इस स्थिति को समाप्त करने के लिए सरकार मछुआरों को उदार नियम एवं शर्तों पर लोक ऋण उपलब्ध कराने पर विचार करेंगी। इस दिशा में, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो मछुआरों की आवश्यकताओं पर विचार करेगा।
  • सरकार, मछली पकड़ने के अधिक आर्थिक और कुशल तरीके से मत्स्यन में आगे बढ़ने के लिए परंपरागत मछुआरों के प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और तकनीकी कौशल के उन्नयन के लिए कदम उठाएगी।

लिंग समानता

  • महिलाओ का योगदान मात्स्यिकी के क्षेत्र के पोस्ट-हार्वेस्ट कार्यकलापों में कुल कार्यबल का 66 प्रतिशत से अधिक है। परिवार को चलाने के अलावा महिलाएं फुटकर मछली बेचने, मछली सूखाने तथा अन्य मूल्यवर्द्धन कार्यकलापो में महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सरकार महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं में अपने योगदान को जारी रखेगी और महिलाओं को सहकारिता में भागदीर बनाकर, महिला अनुकूल वित्तीय सहायता योजनाएं चलाकर, महिलाओं के लिए अच्छी कार्य स्थितियों जिसमें सुरक्षा, साफ-सफाई तथा खुदरा विपणन के लिए परिवहन सुविधाएं शामिल है, और साथ ही लघु मत्स्यन, मूल्यसंवर्द्धन क्रियाकलापों और मात्स्यिकी प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

अतिरिक्त/वैकल्पिक आजीविका

  • समुद्री मत्स्य-संसाधनों में आ रही कमी को ध्यान में रखते हुए, विशाल मात्रा में फैली हुई तटीय मछुआरा समुदायों के लिए आजीविका के अतिरिक्त / वैकल्पिक स्रोत आवश्यक होगे। समुद्री मछली पालन (मैरी-कल्चर) तथा पर्यावरण-पर्यटन (इको-टूरिज्म) इस संबंध में महत्वपूर्ण माने गए हैं, और यह दोनों ही आजीविका के अतिरिक्त/ वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराने की क्षमता रखते हैं। इको-टूरिज्म के रूप में मत्स्यन खेल (गेम-फिशिंग) और कैच, फोटोग्राफ और रिलीज (सी.पी.आर.) विश्व भर में लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। अंडमान और निकोबार द्वीप-समूह और लक्ष्यद्वीप समूह, मुख्य भूमि के कुछ तटो के अलावा ऐसे क्रियाकलापों को प्रोत्साहन हेतु आर्दश स्थल हैं। सरकार उपयुक्त क्षेत्रों में मछुआरों के बीच सी.पी.आर. योजनाओं को प्रोत्साहित करेगी और साथ ही मछुआरों की आजीविका की आवश्यकताओं के साथ तटीय और समुद्री जल से संबंधित पर्यटन योजनाओं के सामंजस्य पर विचार करेगी।

नीली वृद्धि पहल

  • मात्स्यिकी क्षेत्र हेतु अपनी रणनीति की पुर्नव्याख्या करते हुए, सरकार मछुआरों और उनके परिवारों के जीवन और आजीविका में सुधार हेतु देश के समुद्री तथा अन्य जलीय संसाधनों से मात्स्यिकी संपदा के सतत उपयोग द्वारा 'नीली क्रांति (नील क्रांति) पर जोर देगी। 'नीली क्रांति में नीली वृद्धि पहल के तत्व शामिल होंगे जैसाकि सतत विकास लक्ष्य (एस.डी.जी.) के तहत उद्देश्य निर्धारित किए गए है, जिसके लिए भारत प्रतिबद्ध है।
  • समुद्री स्थान हेतु बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए, समुद्री स्थानिक योजना (एम.एस.पी.) की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। समुद्र से खनिज और तेल दोहन/उत्खनन की बढ़ती हुई मांग के साथ समुद्री वाणिज्यिक यातायात की बढ़ती मात्रा और रणनीतिक रक्षा उद्देश्यों हेतु कई स्थानों पर प्रतिबंध के कारण, मात्स्यिकी के लिए उपलब्ध स्थान में कमी होती जा रही है। इन समकालीन विकास को ध्यान में रखते हुए, सरकार एम.एस.पी. पर विचार करते हुए यह सुनिश्चित करेगी कि सभी आर्थिक क्रियाकलापों हेतु उन्हें स्थान मिले और इस प्रक्रिया में विवादों में कमी हो।

अंतर्राष्ट्रीय समझौते / व्यवस्थाएं

  • भारतीय मात्स्यिकी अब वैश्विक परिद्रश्य में स्थापित हो चुकी है। मात्स्यिकी पर वैश्विक एजेंडे का निर्देशन बाध्यकारी और गैर बाध्यकारी उपायों के द्वारा किया जाता है जो मात्स्यिकी और पर्यावरणीय दोनों पहलुओं से संबंधित हैं। ऐसे उपायों और समझौतों पर एक हस्ताक्षकर्ता होने के नाते भारत को प्रावधानों और समझौतों को इसके अंतर्राष्ट्रीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्यान्वित करने और मात्स्यिकी को धारणीय बनाने की आवश्यकता है, जो अन्यथा क्षेत्र पर प्रभाव डालेगा और बदले में लाखों मछुआरों की आजीविका को प्रभावित करेगा। सरकार अंतरराष्ट्रीय साधनों / व्यवस्थाओं के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करेगी और ऐसी क्षेत्रीय / अंतरराष्ट्रीय निकायों की गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करेगी जो मानव जाति की आम विरासत का हिस्सा हैं।
  • एफ.ए.ओ. की उत्तरदायी मात्स्यिकी के लिए आचार संहिता (सी.सी.आर.एफ. अथवा कोड) आज वैश्विक मात्स्यिकी क्षेत्र में सर्वाधिक महत्वूपर्ण गैर-बाध्यकारी समझौता है। इसका उद्देश्य वैश्विक और प्रत्यक्षत: एफ.ए.ओ. के सदस्यों और गैरसदस्यों, मत्स्यन संस्थाओं, सभी प्रकार के संगठनों, मछुआरों, मछली और मछली उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन में संलग्न व्यक्ति-संछेप में, मात्स्यिकी संसाधनों के संरक्षण और मात्स्यिकी के प्रबंधन और विकास से संबंधित प्रत्येक के लिए निर्देशित है। संहिता स्वैच्छिक है, लेकिन संहिता के कुछ निश्चित भाग संयुक्त राष्ट्र के कई सम्मेलनों और समझौतों से, प्रमुख अनुच्छेदों और प्रवधानों को शामिल किये हुए और दर्शाते हैं, जैसाकि पूर्व में उल्लेख किया गया है। संहिता सभी मात्स्यिकी के संरक्षण, प्रबंधन और विकास के लिए लागू सिद्धांतों और मानकों को निर्धारित करती है। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि समुद्री मात्स्यिकी से संबंधित संहिता और इसके सिद्धांत, इसके सभी क्रियाकलापों में भली-भॉति एकीकृत हो।।
  • वैश्विक समुदाय ने गरीबी निवारण और खाद्य सुरक्षा के लिए लघु मात्स्यिकी को मुख्य योगदानकर्ता के रूप में महत्व को मान्यता दी है, और धारणीय लघु-पैमाने की मात्स्यिकी पर स्वैच्छिक दिशानिर्देशों (वी.जी.-एस.एस.एफ.) के लिए सहमति दी है। वी.जी.-एस.एस.एफ. दिशानिर्देशों का मुख्य उद्देश्य लघु मत्स्यन समुदायों को सशक्त करते हुए मानव अधिकार आधारित दृष्टिकोण के प्रोत्साहन के जरिये खाद्य सुरक्षा और गरीबी निवारण को प्राप्त करना है। सरकार लघु-पैमाने की मात्स्यिकी की। जटिलताओं और इस क्षेत्र के अंदरूनी प्रभागों विषेशरूप से जो मत्स्यन जिनकी जीविका में शामिल है, को ध्यान में रखते हुये वीजी-एसएसएफ के प्रावधानों को कार्यान्वयन करने के सभी प्रयास करेगी।
  • चूंकि बाध्यकारी और गैर-बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय उपयों में शामिल प्रावधान सामान्यत: एक-दूसरे से पूरक-क्षमता को प्राप्त करते हैं, इसलिए यह आवश्यक है कि इन उपायों को अलग-अलग न देखते हुए समेकित रूप से विचार किया जाये। सरकार ऐसे उपायों को अधिक संतुलित समझ और इनके बेहतर कार्यान्वयन के लिए पणधारियों और मात्स्यिकी संगठनों के साथ व्यापक विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करेगी।

क्षेत्रीय सहयोग

  • भारतीय उपमहाद्वीप पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। ये दोनों समुद्र साथ मिलकर ऊपरी भारतीय महासागर का निर्माण करते हैं। पश्चिमी तट पर, भारत अपनी समुद्री सीमाएं पाकिस्तान और मालदीव के साथ साझा करता है, जबकि पूर्वी तट पर, सीमाएं श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड और इंडोनेशिया के साथ साझा होती हैं। कुछ मामलों में, यह केवल साझा समुद्री सीमाएं ही नहीं हैं बल्कि साझा-पारिस्थितिकी तंत्र भी हैं, जैसे कि भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य; भारत और बांग्लादेश के बीच सुंदरबन; तथा अरब सागर मे म्येक (मेरगुई) द्वीपसमूह। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों ही में प्रवासी के साथ-साथ फैले हुए मत्स्य-स्टॉक जैसे टूना और टूना जैसी प्रजातियों, शार्क और स्पेनिश मछली के शरण स्थल भी हैं। ऐसी परिस्थितियां जहां आवश्यक हो, सरकार संसाधनों के प्रबंधन और धारणीय उपयोग में मजबूत क्षेत्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करेगी जिसमें जहां आवश्यक हो, प्रजातियों /स्टॉक का संरक्षण भी शामिल है।
  • मछुआरा समुदाय की रक्षा और सुरक्षा में आपसी सहयोग भी आवश्यक है, क्योंकि देखा गया है कि ऊपरी भारतीय महासागर, खासतौर पर बंगाल की खाड़ी अत्यधिक प्रतिकूल मौसम की घटनाओं की गवाह रही है, जिसमें प्रत्येक वर्ष बहुत से मछुआरे अपनी जान गंवा देते है, अथवा अत्यधिक कठिनाईयों को सहते हैं। साथ ही, द्विपक्षीय प्रबंधन के जरिये समुद्री मात्स्यिकी के क्षेत्र में सहयोग के साथ ही क्षेत्रीय मात्स्यिकी और पर्यावरण निकायों में भागीदारी को और आगे बढ़ाया जायेगा। ऐसे सहयोग साझा संसाधनों और साझा पारिस्थितितंत्र, नीतियों के संगतीकरण और ट्रांस-सीमा संसाधनों के ईष्टतम दोहन के लिए उद्देश्ति कार्यक्रमों, मानवाधिकारों की सुरक्षा, विशेष रूप से अन्य देशों के जल में चले जाने वाले मछुआरों के हित की रक्षा करेंगे।
  • भारतीय मछुआरों की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता, परिश्रमी स्वभाव और दक्षता को अन्य देशों में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। परिणामस्वरूप, भारत से अधिक से अधिक मछुआरे अब अन्य देशों के मत्स्यन बेड़े में रोजगार तलाश रहे हैं। बहुत से अवसरों पर भारतीय मछुआरों को अन्य देशों के ई.ई.जेड. में मत्स्यन करते समय पड़ोसी देशों में पकड़ लिया जाता है, जो सरकार के लिए सामान्य रूप से उनकी रिहाई को सुरक्षित करने को कठिन बना देता है। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि जो मछुआरे अन्य देशों में मात्स्यिकी क्षेत्र में रोजगार पाने के इच्छुक हैं उनके पास पर्याप्त कौशल और दूसरे समुद्र का ज्ञान हो तथा वे आई.एल.ओ. सम्मेलन 188 के आधार पर औपचारिक सरकारी अनुमोदन के जरिये जाएँ।

शासन और संस्थागत पहलू

  • समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र का प्रबंधन कई संस्थानों जैसे कि तटीय राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों (मात्स्यिकी विभाग), केन्द्र सरकार (पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रलाय, तट रक्षक आदि) और वैज्ञानिक निकायों के जरिये किया जाता है। इस बहुलवादी प्रशासनिक संरचना में एक तरफ कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और तटीय राज्यों / संघ शासित प्रदेशों के बीच तथा दूसरी तरफ केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों / विभागों के बीच मजबूत समन्वय को आवश्यक बनाता है। इसके अलावा, तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के बीच समान सहयोग भी यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होगा कि मात्स्यिकी का धारणीय रूप से दोहन हो। इस संबंध में, सरकार सभी संबंधित एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय बनाने के लिए एक प्रणाली की स्थापना पर विचार करेगी।
  • भारत में समुद्री मात्स्यिकी व्यवहार और संसाधन दोहन में निरंतर परिवर्तनों के साथ गतिशील है। समुद्री मात्स्यिकी विनियमन अधिनियम (एम.एफ.आर.ए.) 1980 से अस्तित्व में आये थे तथा कुछ राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को छोड़कर, एम.एफ.आर.ए. मध्य 1990 में ये लागू हो गए थे। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अधिकांश एम.एफ.आर.ए. महत्वूपर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौतों/व्यवस्थाओं (जैसे कि 1982 यू.एन.सी.एल.ओ.एस., 1992 यू.एन.एफ.एस.ए., 1995 सी.सी.आर.एफ. आदि) को अपनाने से पूर्व में ही अपना लिए गये थे, सरकार मौजूदा एम.एफ.आर.ए. में मात्स्यिकी के प्रबंधन हेतु मौजूदा नियमों और विनियमों को अद्यतन करने पर विचार करेगी, और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय उपायों/व्यवस्थाओं के साथ यह सुनिश्चित करने की लिए संबद्ध करेगी कि वे मात्स्यिकी प्रबंधन के सभी पहलुओं को कवर करते हों। इसे तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के विचारार्थ हेतु मॉडल बिल तैयार करके किया जाएगा।
  • केन्द्र सरकार ई.ई.जेड. अर्थात् 12 से 200 नॉटिकल मील के क्षेत्र में मात्स्यिकी के नियंत्रण और विनियमन के लिए उत्तरदायी है। ई.ई.जेड. में उपयुक्त कानून के साथ मात्स्यिकी के विनियम की आवश्यकता है। सरकार इस क्षेत्र में मात्स्यिकी के विकास और प्रबंधन के लिए ऐसे कानून को लाने के लिए कदम उठायेगी।

भविष्य का रास्ता

  • एन.पी.एम.एफ., 2017 के द्वारा अगले एक दशक के लिए समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र की बहु-आयामी और बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने की उम्मीद है। यह नीति संपूर्ण है तथा इस विविध आर्थिक क्रियाकलापों के सभी खंडों की आवश्यकताओं का व्यापक रूप से समाधान करेगी। एन.पी.एम.एफ., 2017 का एक 'रोडमैप' एक होगा जो नीति में निहित प्रत्येक सिफारिश के तहत कार्य बिंदु (एक्शन पॉइंट) निर्दिष्ट करेगा। इन एक्शन पॉइंटों को कार्यान्वयन के लिए समयसीमा, कार्य के लिए जिम्मेदार एजेंसियों और कार्यान्वयन के लिए आवश्यक धनराशि के संभावित स्रोतों के साथ आगे और विस्तारित किया जाएगा। कार्यान्वयन योजना में एक 'निगरानी और मूल्यांकन' अनुभाग भी होगा जो कार्यान्वयन की समयबद्धता और प्रभावकारिता को संबोधित करेगा। ऐसी आशा है कि इस नीति के कार्यान्वयन के माध्यम से, भारत में समुद्री मात्स्यिकी क्षेत्र एक स्थायी और अच्छी तरह से प्रबंधित इकाई बन कर उभरेगा, जिससे मानव उपभोग के लिए उत्पादन का समुचित उपयोग बढ़ेगा; रोजगार, लिंग समानता और आजीविका; इक्विटी और समानता; खाद्य सुरक्षा और पोषण के प्रावधान से इस क्षेत्र में धन और समृद्धि का सृजन होगा।

स्त्रोत: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

 

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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