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अवसाद या डिप्रेशन

परिचय

यह एक गलतफहमी है कि अवसाद या डिप्रेशन वृद्धावस्था की एक ऐसी बीमारी है जिससे बचा नहीं जा सकता | अवसाद किसी भी उम्र में एक सामान्य बात नहीं है | लेकिन, अक्सर होता है की उम्र के इन दौरों में व्यक्ति अपनी चिंताओं को छिपाता है और अकेले ही संघर्ष करता है | हालाँकि, इस रोग के कारगर उपचार मौजूद हैं, लेकिन वृद्ध लोग ज्यादातर अकेले ही कष्ट भुगतने की प्रवृत्ति रखते हैं | अध्ययनों से यह यह बात सामने आई है की कुछ समुदायों में अवसाद को एक रोग नहीं, बल्कि व्यक्तित्व की कमजोरी या फिर वृद्धावस्था के एक अपरिहार्य अंग के रूप में देखा जाता है |

मस्तिष्क का बिंबन करने वाले अध्ययनों से यह बात सामने आई है की अवसाद की स्थिति में मन: स्थिति, सोच - विचार, नींद, भूख और व्यवहार को निर्देशित करने वाले मस्तिष्क परिपथ ठीक से काम करना बंद कर देते है |

वृद्ध व्यक्तियों में अवसाद के विशिष्ट रूप

वृद्ध व्यक्तियों में अवसाद के विशिष्ट कारण और रूप होते हैं | उदाहरण के लिए, सेवानिवृत्ति के बाद के वर्गों में आवसाद की संभावनाएं अधिक होती हैं | क्योंकिं व्यक्ति को एक नई भूमिका अपनाने और एक नई दिनचर्या के अनुसार स्वयं को ढ़ालने की कोशिश करनी पड़ती है | उसके बाद के दशक में इसकी संभावनाएं कम हो जाती हैं | फिर यह उम्र के सातवें दशक के मध्य में व्यक्ति को जकड़ सकता है | इसके पीछे दीर्घकालिक बीमारी, साथ के लोगों और मित्रों की मृत्यु का सिलसिला और चलने- फिरने की बढ़ती असमर्थता जैसे कारण हो सकते हैं |

युवा लोगों की तुलना में वृद्धों के आवसाद के लक्षणों के रूप भिन्न होते हैं | चिंता या बेचैनी आम बात है | साथ ही सोचने और करने की क्षमता मंद पड़ जाती है | हालाँकि, किसी भी उम्र के आवसाद में ऐसा होता है, लेकिन, वृद्ध व्यक्तियों में यह अधिक होता है |

वृद्ध लोगों में अवसाद के लक्षण शरीरिक स्तर पर ज्यादा प्रकट होते हैं | हालांकि, यह बता पाना मुश्किल होता है की लक्षण अवसाद के है या उम्र की आम बीमरियों के बढ़ने से पैदा हुए हैं | उदाहरण के लिए, उन्हें ज्यादा कमजोरी आ सकती है | सरदर्द, धड़कन का तेज होना, पेट या कमर दर्द, साँस फूलना और कब्ज कुछ अन्य लक्षण हैं |

इसी तरह, अवसाद के कारण मानसिक क्रियाकलाप की क्षमताएँ किसी भी उम्र में कमजोर पड़ सकती हैं | लेकिन, युवा लोगों में मानसिक जीवट ज्यादा होता है, अत: ये लक्षण वृद्ध लोगों में ज्यादा स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं | अवसाद के प्रभावों और अल्जीमर जैसे रोग की स्थितियों में अंतर करना बहुत जरूरी है |

बीमारी और अवसाद

कई ऐसी स्थितियां हैं जो वृद्धावस्था में ज्यादा होती हैं और जिनसे अवसाद पैदा हो सकता है | दिल की बीमारियां, थाइराइड ग्रंथि की घटती सक्रियता (हाईपोथाइरोडिज्म), विटामिन बी12 या फोलिक एसिड की कमी और कैंसर ऐसी ही स्थितियां हैं |

कई दवाएँ भी अवसाद को पैदा कर सकती हैं या बढ़ा सकती हैं | बीटा – ब्लॉकर, रक्तचाप के उपचार के लिए दी गई अन्य दवाएँ, दिल की बीमारी में दी जाने वाली डाइजोक्सिन, स्टिरोइड और सेडेटिव इसी श्रेणी  में आती हैं |

वृद्ध लोगों में रक्तचाप के कम होने से अवसाद का खतरा बढ़ना एक आम बात है | लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं की रक्तचाप बढ़ाने से उनका अवसाद दूर हो जाएगा या की उन्हें उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए ली जाने वाली दवाएँ बंद कर देनी चाहिए | रक्तचाप की सही दवाएँ लेने में पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए |

स्ट्रोक के बाद अक्सर आवसाद होता है | सामान्य क्षमताओं को लौटाने के लिए इसका उपचार बहुत जरूरी है |

उपचार

अवसादरोधी दवाएँ मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटरों (रसायनों) के संतुलन को पुन: स्थापित करने में मदद दे सकती हैं | और सामाजिक समर्थन व मनोचिकित्सा अवसाद के कारणों से निपटने में सहायक हो सकते हैं | अध्ययन दर्शाते हैं कि अवसाद के 80 प्रतिशत से अधिक रोगियों की स्थिति में सुधार आ जाता है, बशर्ते दवाओं, मनोचिकित्सा तथा अन्य उपायों हैं और सामाजिक समर्थन व मनोचिकित्सा अवसाद के कारणों से निपटने में सहायक हो सकते हैं | अध्ययन दर्शाते हैं कि  अवसाद के 80 प्रतिशत से अधिक रोगीयों की स्थिति में सुधार आ जाता है, बशर्ते दवाओं, मनोचिकित्सा तथा अन्य उपायों को मिला कर उचित उपचार किया जाए | लेकिन, उपचार को अपना प्रभाव दिखाने में थोड़ा लंबा समय लग सकता है  आमतौर पर, इससे मुक्त होने में 12 सप्ताह का समय का लग सकता है जोकि आम उपचार अवधि से एक माह ज्यादा है | अत: धैर्य रखना आवश्यक है | शोध इस बात को दर्शाते हैं कि मनोचिकित्सा और अवसादरोधी दवाओं के मेल से वृद्धों में अवसाद  को फिर से होने से रोका जा सकता है | वृद्धों में अवसाद के उपचार का एक अहम हिस्सा है उनके सामाजिक अकेलेपन को दूर करना | परिवार या किसी गहरे जुड़े समुदाय में रहने से होने वाले स्वास्थ्य के लाभ सुज्ञात हैं |

डिमेंशिया या मनोभ्रंश

उम्र के साथ, मानवीय मस्तिष्क की संरचना और कार्य में कई बदलाव आते हैं | वे हैं: मस्तिष्क कोशिकाओं के क्षय और मस्तिष्क से मनोवेगों के प्रसारण में कनी आना | लेकिन, जरूरी नहीं की ये परिवर्तन हमेशा ही वृद्ध होते मस्तिष्क की सीखने या याद रखने की क्षमताओं पर बुरा असर डालें | लेकिन, कुछ मामलों में जहाँ ये प्रक्रियाएं अपेक्षाकृत बहुत तेजी से होती हैं, मस्तिष्क की कार्यक्षमता काफी हद तक बाधित होती है | वृद्धों लोगों की स्मृति में थोड़ी कमी आना, एक आम बात है | इसे “ आयु- संबंद्ध स्मृतिक्षय” या “एज – एसोसिएटीड मेमोरी इम्पेंयरमेंट” कहा जाता है | इसमें, आमतौर पर मस्तिष्क के बौद्धिक क्रियाकलाप पर कोई असर नहीं पड़ता और न ही मस्तिष्क कोशिकाओं में कमी आती है इसके विपरीत, डिमेंशिया एक ऐसी स्थिति  है जिसमें याद रखने, सीखने, सोचने और तर्क करने की क्षमता घटती जाती है | डिमेंशिया (लेटिन में इसका अर्थ है अतार्किक) में मस्तिष्क की क्षमता निरंतर कम होती जाती है | इससे दैनिक गतिविधियाँ कम होती जाती हैं और ज्यादातर मामलों में आखिरकार ऐसी स्थिति आती है की रोगी की सम्पूर्ण तौर पर देखभाल करनी पड़ती है | डिमेंशिया मस्तिष्क का निरंतर क्षय करने वाले रोगों का एक संयुक्त नाम है | यह किसी खास सामाजिक, आर्थिक, जातीय वर्ग या भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं होता | युवाओं को यह रोग आमतौर पर नहीं होता | 60 वर्ग से अधिक की उम्र के लोगों में इसका खतरा उम्र के साथ बढ़ सकता है | यह धीरे – धीरे भी प्रकट हो सकती है और अचानक भी |

यह कई रोगों के कारण पैदा हो सकता है, जैसे अल्जीमर रोग, ल्यू बॉडी डिमेंशिया, पार्किन्सन रोग और वैस्क्यूलर डिमेंशिया | शराब की लत, थाइराइड हार्मोन की कमी विटामिन बी की कमी, संक्रमण और चोटें भी कुछ मामलों में दिमाग की क्षमताओं पर बुरा असर डालते हैं | कुछ मामलों में यह रोग परिवार में जेनेटिक बदलावों के कारण भी होता है | इन मामलों में इसका लक्षण 60 साल की उम्र  से पहले ही दिखने लगते हैं और तेजी से बढ़ते हैं | ज्यादातर मामलों में वास्तविक कारण का पता नहीं लगता | शायद कई कारकों के मेल से इसकी शूरूआत होती है | कई जेनेटिक कारक इस रोग के होने के जोखिम को बढ़ाते हैं | वे स्वयं इस रोग का कारण नहीं होते |

लक्षण

डिमेंशिया का मुख्य लक्षण है स्मृति का निरंतर खोते चले जाना | इसके बाद अन्य मानवीय क्षमताएँ निरंतर कमजोर होती जाती हैं और लुप्त भी हो सकती हैं | जैसे, क्रमबद्ध तरीके से न बोल पाना, गिनती न कर पाना, पैसों का हिसाब न कर पाना, कपड़े न पहन पाना और खुद से खाना न खा पाना | अपने शरीर की सफाई का ध्यान न रख पाना | डिमेंशिया का रोगी अपने परिवारजनों व मित्रों को पहचनाने में असमर्थ हो सकता है | उसकी मन: स्थितियां तेजी से बदलती रह सकती हैं और वह अवसाद ग्रस्त हो सकता है |

डिमेंशिया के सबसे महत्वपूर्ण शूरूआती संकेत

  1. भूलने के कारण काम में बाधा आना: बार- बार चीजों, नामों मुलाकात के समय इत्यादि को भूलना | इससे मानसिक संभ्रम की स्थितियां पैदा होती हैं और उनका कारण पता नहीं लगता |
  2. जान – पहचाने कामों को करने में कठिनाई आना: अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों के बार में बिल्कुल भूल जाना |
  3. भाषा संबंधी कठिनाई : सरल शब्दों तक  को याद न रख पाना और सके बजाय गलत शब्दों का प्रयोग करना जिससे वाक्यों को समझने में कठिनाई हो |
  4. समय और स्थान संबंधी तथ्यों को भूल जाना : रोगी अपनी ही गली में होने के बावजूद नहीं जान पाता की वह कहाँ हैं और अपने घर वापस कैसे लौटे |
  5. चुनाव या निर्णय करने की क्षमता में कमी आना : बिल्कुल बेतुके कपड़े पहनना, जैसे शॉपिंग करते हुए नहाने के कपड़े पहनना या किस गर्म दिन एक के ऊपर एक कई ब्लाऊज पहनना |
  6. अमूर्त चिंतन में कठिनाई आना : न संख्याओं में पहचान पाना और न ही साधारण सी गणना कर पाना|
  7. चीजें भूल चल देना: चीजों को गलत जगह रखना, जैसे घड़ी को फ्रिज में और फिर उसके बारे में भूल जाना |
  8. मन: स्थिति और व्यवहार में अचानक और अनेक बदलाव आना :  बहुत तेजी से मन की स्थिति बदलती है और व्यवहार भी | ऐसा अक्सर अकारण होता है |
  9. व्यक्तित्व में बदलाव आना : अचानक या धीरे- धीरे व्यक्तित्व में बहुत प्रकट बदलाव आ सकता है | मसलन, रोगी अभी तक मित्रतापूर्ण व्यवहार करता आया था और अब प्रत्याशित रूप से क्रोध हो उठे |
  10. पहल की कमी : कभी – कभी अपने काम और अपने शौकों में उत्साह और रुचि खो बैठना | निदान

 

इस रोग के निदान के आकलन में सावधानीपूर्वक की गई जाँच, मानसिक स्थिति का आकलन, खून के नियमित बायोकेमिकल टेस्ट, मस्तिष्क का अंकन (सिटी स्कैन और एम्आरटी स्कैन) और कई न्यूरोसाइकोलोजिकल जांचे शामिल हैं |

 

स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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