स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज की उत्पत्ति, अवधारणा को समझने के पहले यह आवश्यक हो जाता है कि सर्वप्रथम स्वयं सहायता समूह की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं इसकी अवधारणा को समझें।
गाँव में सामाजिकता पर गौर करें तो पाते हैं कि किसी भी कार्य में मदद लेने और देने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जैसे “ सामुदायिकता की भावना” आदिवासी समाज की सबसे बड़ी विशेषता है और यह इसके सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलुओं के तार से भी जुडी हुई है। परन्तु आज के पैसा-बाजार प्रतियोगिता पूर्ण युग में में इसका फैलाव, विकास की प्रक्रिया में सुसंगठित होकर नहीं किया गया। इसके बावजूद सामुदायिकता गरीब व सामाजिक तौर से पिछड़े वर्गों में आज भी किसी- न-किसी रूप में विद्यमान है।
स्वयं सहायता समूह का इतिहास देखने पर यह पता चलता है कि मुख्य रूप से इसकी शुरुआत देश की प्रतिष्ठित स्वैछिक संस्थाएं जैसे सेल्फ एम्पलाइड वीमेन एशोसिएशन, (SEWA) अहमदाबाद, मयराडा, बंगलौर आदि के माध्यम से हुई थी। मयराडा, बंगलौर के इतिहास को देखा जाये तो इस संस्था ने वर्ष 1968 से ही सामाजिक कार्य के प्रति अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। शुरुआत में मयराडा ने मुख्य रूप से चीन युद्ध के पश्चात् तिब्बत से आये तिब्बतियों को पुनर्स्थापित करने का कार्य शुरू किया। दूसरे दौर में इस प्रकार वर्ष 2000 तक लाखों लोगों को सुविधाएँ देकर उनके जीवन स्तर को उठाने का लक्ष्य बनाया।
उपयुक्त कार्यक्रम में स्वयं सहायता के सन्दर्भ में मुख्य रूप से मयराडा ने निम्न मुद्दों पर विशेष जोर दिया। जैसे_
इस प्रकार अनुभव के आधार पर निम्नलिखित बातें सीखने की दृष्टि से उभर कर आयी:
1) समुदाय जिनकी आर्थिक एवं सामाजिक पहलुओं में समानता हो एक छोटे समूह के माध्यम से अपनी-अपनी आवश्यकताओं, समस्याओं, भावनाओं, अपेक्षाओं आदि उम्मीदों को लेकर निरंतर प्रयास करते हैं। अतः अपनी-अपनी प्रक्रिया में उनके उत्साह को निरंतर जागृत करना एक महत्वपूर्ण अंग है।
2) समान स्तर के सदस्य वही सीखने का प्रयास करते हैं जो उन्हें रुचिकर लगता है।
3) इन समान स्तरीय समूहों के सदस्यगण अपने-अपने ज्ञान के प्रति जागरूकता का स्वयं के अंदर की क्षमता को विकसित कर अपने व्यवहार में लाने के प्रति उत्साहित रहते हैं।
4) यह सदस्य-समूह मुख्य रूप से अपने समूह के द्वारा स्वचालित होकर अग्रसर होने का प्रयास करते हैं।
5) यह समान स्तर के समूह के सदस्यों के साथ-साथ दूसरों को भी विकास की ओर लाना चाहते हैं।
स्वयं सहायता समूह का औचित्य:
गाँव में कुल आबादी का 75% से भो अधिक आबादी का प्रमुख आधार खेती है। ऐसे ग्रामीणों की अनेक समस्याएं हैं। पहली यह कि खेती के अतिरिक्त अन्य आय का साधन इनके पास नहीं होते हैं। दूसरा यह कि खेती में 5 से 6 माह तक काम मिलता है, इसलिए बचे समय में ग्रामीणों को आय के लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है और आवश्यकता पड़ने पर इन्हें अपनी जमीन व गहनों को गिरवी रखनी पड़ती है, और परिस्थिति से मजबूर होकर इसे छुड़ा भी नहीं पाते हैं। इसी बीच यदि अन्य समस्याएं (बीमारी, मृत्यु. पर्व, शादी) आ जायें तो बंधक रखने की सीमाएं बढ़ जाती हैं। बैंक शाखाओं की वृहद नेटवर्क होते हुए भी ग्रामीणों की पहुँच वहाँ तक नीं हैं। चूँकि निर्धनों की जरूरतें छोटे ऋणों से सम्बन्धित होती हो, साथ ही साथ उनकी आवश्यकताएँ उपयोग और उत्पादन दोनों उद्देश्यों से जुड़ी है, बैंक वाले इसे खतरा मानते हैं और उधार देने से हिचकते हैं।
इस संकट स उभरने के लिए एक अकेला व्यक्ति तो सम्भवतः कुछ नहीं कर सकता है। परन्तु कुछ लोग मिलकर अपनी छोटी आय से थोड़ी-थोड़ी बचत करते-करते एक पूजी जमा कर सकते है। इसी पूंजी से वे एक दूसरे की मदद करते हैं और इसका उपयोग करके धीरे-धीरे जमीन छुडाते हैं। स्पष्टतः इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है। परन्तु स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से कुछ हद तक अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं।
स्वयं सहायता समूह समान सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि वाले 10-20 सदस्यों का एक स्वैछिक समूह है जो-:
भारत में स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम की उत्पत्ति एवं अवधारणा :
अनौपचारिक ऋण प्रणाली के लचीलेपन, सुग्रहिता, अनुक्रियाशीलता जैसे गुणों को औपचारिक ऋण संस्थाओं की तकनीकी क्षमताओं और वित्तीय संसाधनों के साथ संयोजित करने और ऋण वितरण प्रणाली में सकरात्मक नवीनतायें लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने फरवरी 1992 में स्वयं सहायता समूहों को वाणिज्य बैंकों से जोड़ने के लये पायलट परियोजना शुरू की थी। जिसमें (बाद में) सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को भी शामिल कर लिया गे। यह जुडाव इस विचार से भी था कि औपचारिक और अनौपचारिक ऋण प्रणाली के अच्छे गुणों को समायोजित कर सके।
स्वयं सहायता समूह में औपचारिक एवं अनौपचारिक ऋण व्यवस्था के गुणों का समायोजन:
ऋण |
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अनौपचारिक(महाजन, पड़ोसी) |
औपचारिक (बैंक) |
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दोष |
गुण |
दोष |
गुण |
ज्यादा ब्याज |
स्थानीय एवं परिचित |
छोटा कर्ज |
शोषण नहीं |
बंधक |
समय और ऋण |
ज्यादा खर्च और लम्बी प्रक्रिया |
ब्याज कम |
खुशामद |
कर्ज लेने एवं देने वाले के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क एंव संलग्नता |
सोच है कि गरीब कर्ज लायक नहीं है। |
खुशामद नहीं। |
लोभ-लालच का प्रयोग |
व्यक्ति सम्पर्क का आभाव |
सशक्तिकरण (अपनी इच्छा निर्णय शक्ति पर) |
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अनिश्चित भुगतान तरीका |
दुबारा कर्ज |
कर्ज वापसी में वातावरण की कमी। |
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ससाधन पर नियंत्रण खोने का डर |
ऋण पाने का विश्वास |
उत्पादन के लिए मात्र कर्ज (सिमित उद्देश्य) |
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पर्याप्त कर्ज |
जमानत की जरुरत |
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कम कागजात |
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आसान और शीघ्र |
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एस० एच० जी० की विशेषताएं/गुण |
कुछ चयनित गैर सरकारी संस्थाओं एवं बैंकों की मदद से ही पायलट परियोजना का कार्यान्वयन हुआ। वर्ष 1992-93 में स्वयं सहायता समूह को विभिन्न बैंकों से जोड़ा गया। पायलट परियोजना में मात्र 500 स्वयं सहायता समूह जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। जबकि वर्ष 1993-94 में 650 समुहों को जोड़ा गया। जबकि वर्ष 1994-95 में या लिंकेज की संख्या 2212 हुई जिसमें बैंक कर्ज रु० 224.5 लाख थी। इस प्रायोगिक खंड का स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम की सफलता से आकर्षित होकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक कार्यकारी समूह का गठन किया जिसमें प्रसिद्ध गैर सरकारी संस्था, एकेडेमेशियन(प्रबुद्ध शिक्षा विद), बैंक पदाधिकारीगण इत्यादि थे और नाबार्ड के प्रबध निदेशक श्री एस० के० कालिया की अध्यक्षता में इस टीम ने पूर्ण अध्ययन किया। इस टीम ने स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम को एक सफल एवं प्रभावी पूरक ऋण वितरण प्रणाली पाया और भारतीय रिजर्व बैंक को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत प्रस्तुत किया। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस कार्यकारी दल के दौर में kiy स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम को लाया गया।
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक में मात्र बचत खाता खोलना लिंकेज नहीं माना गया है, यह एक परिचय मात्र है। लिंकेज का पूर्ण स्वरुप हैं बैंक से न केवल कर्ज का लेन-देन हो, बल्कि दोनों के बीच व्यवहारिक सम्बन्ध स्थापित हो।
इस प्रकार वर्ष 1995 में इस कार्यक्रम का प्रायोगिक दौर समाप्त हो गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 2 अप्रैल 1996 को अपने परिपत्र के जरिये स्वयं सहायता समूहों को दिए गए ऋण में प्राथमिकता क्षेत्र अग्रिमों के तहत शामिल किये जाने का निर्देश दिया। यह एक ऐतिहासिक कदम है। स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम पर भारतीय रिजर्व बैंक के हासिल दिशा निदेशों की मुख्य विशेताएँ :
स्वयं सहायता समूहों को ऋण देना बैंकों की ऋण गति-विधियों की मुख्यधारा का भाग होगा।
लिंकेज परियोजना के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
1) गरीबों की ऋण जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरक ऋण नीतियों का विकास करना।
2) बैंकों एंव ग्रामीणों गरीब जनता के बीच परस्पर विश्वास/भरोसा पैदा करना।
3) ग्रामीण गरीब जनता में बचत व ऋण दोनों तरह के बैंकिंग कार्यकलापों को प्रोत्साहित करना।
स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम का प्रमुख तर्क:
1) गरीबों में बचत करने की क्षमता होती है।
2) गरीबों को बैंक के द्वारा सुविधा दी जा सकती है।
3) गैर सरकारी संस्था एक सहयोगी के रूप में कार्य करता है।
4) समूह को बिंक से कर्ज मिल सकता है।
5) कर्ज सम्बन्धी निर्णय समूह के अपने नियम के अनुसार हो सकता है।
6) समूहों में सामान्य गति से उन्नति की प्रवृति रहती है।
7) समूह को आकस्मिक स्थिति में भी हमेशा कर्ज प्राप्त होती रहती है।
स्वयं सहायता समूह बैंक लिकेंज कार्यक्रम से लाभ:
I बैंक के लिए:
II स्वयं सहायता समूह के लिए:
लिंकेज कार्यक्रम में बैंक की भूमिका:
स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका:
उपरोक्त तमाम बिन्दुओं पर गौर करने पर पाते हैं कि प्रमुख स्वयंसेवी संस्थाओं (SEWA –अहमदाबाद, मयराडा, बंगलौर) ने अपने कार्यों के द्वारा सरकारी नीति को प्रभावित किया है और विकास के आयामों को जमीनी स्तर पर खड़ा करने का प्रयास किया है। साथ ही या भी स्पष्ट है कि समस्या की व्यापकता को देखते हुए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना होगा। परन्तु प्रश्न है कि अच्छी तरह से पनपी/उभरी हुई इन स्वंयसेवी और सरकारी संस्थाओं (प्रखंड से राज्य, राज्य से केंद्र तक) के नेटवर्क को क्या कार्यान्वयन के स्तर पर आज तक व्यावहारिक स्वरुप दिया जा सका है।
स्वयं सहायता समूह का निर्माण एक चरणबद्ध प्रक्रिया है जो सह-लीकेज तरीके से आगे बढ़ता है। ऐसा देखा गया है कि समूह के सदस्य शुरुआत में उपभोग कार्य (बीमारी, शादी, शिक्षा इत्यादि) में ज्यादा खर्च करते हैं। कुछ समय उपरांत खर्च उत्पादन कार्य की ओर बढ़ता है और जैसे-जैसे समूह पुराना होता हो, उसके कर्ज धारणा की क्षमता भी बढती है। उम्मीद रहता है कि अब समूह अनुभवी हो चूका है और सभी प्रकार का कर्ज प्रवंधन क्षमता प्राप्त कर चूका है। इसी वक्त समूह को पर्याप्त कोष की आवश्यकता होती है और इस हेतु किसी स्थानीय वित्तीय संस्था से सहबद्ध किया जाता है। जिसे निम्न शर्तों व प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
I स्वयं सहायता समूह बैंक के चयन हेतु मापदंड :
II स्वयंसेवी संस्थाओं (NGOs) के चयन के लिए नाबार्ड की कुछ को शर्तें है जो निम्न है:
III इसी तरह स्वयं सहायता समूह को बैंक के साथ जोड़ने की भी शर्तें हैं: -
IV स्वयं सहायता समूह का बैंक में बचत खोलना:
(क) बचत खाता कब और कहाँ खुलवाएँ?
(ख) बचत खाता कब और कहाँ खुलवाएँ? बैंक में खाता खुलवाने के लिए निम्न कागजात की जरुरत है-
बैठक में बैंक में बचत खाता खोलने के लिए पारित प्रस्ताव का नमूना
समूह का नाम व पता दिनांक
समूह सदस्यों की संख्या
बैठक दिनांक
सेवा में,
प्रबंधक
बैंक का नाम व पता
विषय: बचत खाता खोलने के लिये प्रस्ताव
महाशय,
1) हम निम्न सदस्य उपरोक्त स्वयं सहायता समूह चला रहे हैं, जिसका गठन (तिथि) को किया गया है।
2) हम स्वयं सहायता समूह के सदस्य सर्वसम्मति से निम्न प्रतिनिधि को विशेष रूप से प्राधिकृत करते हैं।
क)स्वयं सहायता समूह द्वारा अनुमोदित ----- बैंक शाखा में बचत खाता खोलने और खाते का निम्नलिखित प्राधिकृत पदाधिकारियों में से किन्हीं दो के हस्ताक्षर से संचालन करेंगे।
ख)श्री/श्रीमती--------------- पदनाम
श्री/श्रीमती--------------- पदनाम
श्री/श्रीमती--------------- पदनाम
श्री/श्रीमती--------------- पदनाम
3) --- वर्षों के अन्तराल पर पदधारियों (अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष) को बदला जायेगा।
V सहबद्धताओं के विभिन्न मोडल : समूहों को बैंको से जोड़ने के तीन प्रकार का नमूना है_
नमूना (i) सीधे स्वयं सहायता समूह को:
सीधे स्वयं सहायता समूहों को कर्ज देने की प्रक्रिया में बैंक स्वयं सहायता समूह को उनकी कार्य क्षमता के आधार पर कर्ज देती है। कर्ज समूह के उनकी कार्य क्षमता क्र आधार पर कर्ज देती है। कर्ज समूह के बचत के अनुपात में देती है और यह बचत-कर्ज अनुपात: 1:1 से 1: 4 के बीच कुछ भी रखा जा सकता है। शुरुआत में समूह की बचत के बराबर कर्ज (यानी 1:1 अनुपात में) दिया जाता है। जैसे बैंक का विश्वास स्वयं सहायता समूह पर बढ़ता है, वैसे ही कर्ज की राशि भी बढती है और यह कर्ज समूह के बचत के 4 गुणा तक दिया जा सकता है।
नमूना (ii) स्वैछिक संस्थाओं के माध्यम से:
इसमें बैंक स्वयं सहायता समूहों को उस स्वयं सेवा संस्थाओं के माध्यम से कर्ज दे सकते हैं जिसने समूह को प्रोत्साहन दिया है एवं मार्गदर्शन व अनुश्रवण करता है। कुछ समय बाद स्वयं सहायता समूह सीधे ही बैंकों से सहबद्ध किये जा सकते हैं।
नमूना (iii) सीधे स्वयं सहायता समूह को:
किसी विशेष परिस्थिति में जब किसी व्यक्ति विशेष को ऋण की जरुरत बचत-ऋण अनुपात से अधिक हो जाती है, तो समूह उस सदस्य विशेष को सीधे ही ऋण देने के प्रस्ताव को बैंक के पास भेज सकती है। समूह को इस कर्ज राशि की सही उपयोगिता एवं समय वापसी के लिए जिम्मेदारी लेनी पड़ती है।
उदाहरण:
समूह “सितारा” के बचत राशि निम्न स्थिति में है
कर्ज के रूप में सदस्य A को 200/- दिया
कर्ज के रूप में सदस्य B को 400/- दिया
कर्ज के रूप में सदस्य C को 300/- दिया
बैंक में जमा राशि 100/-
समूह के पास (बक्सा) में)- 500/-
कुल 1500/- बचत
बैंक इसी बचत राशि को एक आधार बनाकर कर्ज देने की रणनीति तय करेगी। शुरुआत में बैंक बचत के बराबर यानी 1500/- कर्ज के रूप में देगी। समूह के वृद्धि- विकास के आधार पर कर्ज राशि 6000/- तक दे सकता है। सूद दर 12% होगी।
VI ब्याज की दर:
विभिन्न स्तरों पर ब्याज (सूद) दर नीं है-
VII प्रलेखीकरण:
समूह-बैंक लिंकेज में बैंक को स्वयं सहायता समूह के लिए कम-से-कम और साधारण कागजात की माँग करती है। बैंक से कर्ज लेने के लये स्वयं सहायता समूह को निम्नलिखित कागजात रखने की जरुरत है।
VIII ऋण वापसी अवधि:
समूह से चर्चा करने के बाद ही बैंक ऋण वापसी अवधि तय करता है। यह अवधि 3 से 5 वर्ष के बीच हो सकता है और सामान्यतः नियमित किश्तों पर चुकाया जाता है।
IX स्वयं सहायता समूहों में Defaulter सदस्य ( जो बैंक ऋण न चूका पाया हो) होने की स्थिति में:
यदि समूह के कुछ सदस्यगण व उसके परिवार वालों ने बैंक से कर्ज लिया हो और न चूका पाएँ हों, तो उस स्थिति में भी बैंक समूह को वित्तीय सहायता देगा बशर्तें समूह खुद बैंक का Defaulter न हो । साथ ही यह भी ध्यान देना है कि स्वयं सहायता समूह बैंक द्वारा दी गई वित्तीय सहायता को Defaulter सदस्यों के बीच उपयोग नहीं कर सकता है।
X जमानत
चूँकि स्वयं सहायता समूह ऋण के लिए बैंकों को कोई जमानत (प्रतिभूति) एंव मार्जिन राशि देने की स्थिति में नहीं रहते, इसलिए इस सन्दर्भ में ऋण वितरण के मान-दंडों में भारतीय रिजर्व बैंक ने समूह को छुट दी है।
(क) सदस्यता
प्र० क्या एसएचजी की सदस्यता 10 से कम हो सकती है?
उ० एसएचजी की सदस्यता 10 से कम हो सकती हैऔर यह 5 से 20 के बीच में हो सकती है। परन्तु यह विशेष प्रकार के समूहों के लिए ही है जैसे-विकलांग सदस्यों का समूह, लघु सिंचाई योजना से सम्बंधित इत्यादि।
प्र० क्या एसएचजी की सदस्यता 20 से अधिक भी हो सकती है?
उ० एसएचजी की सदस्यता 20 से अधिक भी हो सकती है। ऐसे मामले में समूह को को कम्पनी एक्ट अथवा सहकारी समिति अधिनियम के अतर्गत विधिक समस्याओं से बचने के लिए पंजीकृत होना चाहिए। पंजीकरण के बाद, ऐसे एसएचजी को ऋण प्रदान किया जा सकता है। विकल्पतः 20 से ज्यादा सदस्यता वाले एसएचजी को दो/तीन समूहों में बाँटा जा सकता है। ऐसा होने पर, लिंकेज के लिए 6 महीने के अवधि पैत्रिक समूह में की गई नियमित बचत की तिथि से गणना में ली जा सकती है।
प्र० क्या यह जरुरी है कि एसएचजी के सदस्य केवल गरीबी रेखा के नीचे वाले ही हों?
उ० नहीं, एसएचजी के सभी सदस्यों के लिए यह जरुरी नहीं है कि वे गरीबी रेखा के नीचे वाले ही हों लेकिन बहुमत अर्थात् 80% सदस्य गरीब होने चाहिए। एसएचजी के सदस्य गरीब, छोटे दुकानदार और कारीगर आदि हो सकते हैं।
प्र० के एक चुककर्ता एसएचजी के सदस्य हो सकता है?
उ० भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश दिनांक 2 अप्रैल, 1996 के अनुसार एक एक चुककर्ता के एसएचजी से जुड़ने के बाद उसकी ऋण अदायगी क्षमता सुधर सकती है क्योंकि एसएचजी चुककर्ता को ऋण नहीं देगा।
प्र० क्या गैर सरकारी संगठन एसएचजी का पदाधिकारी हो सकता है?
उ० गैर सरकारी संगठन एसएचजी का पदाधिकारी नहीं हो सकता है। पदाधिकारी केवल समूह सदस्यों में से ही हो सकते हैं।
प्र० क्या अवयस्क एसएचजी का सदस्य हो सकता है?
उ० नहीं, अवयस्क एसएचजी का सदस्य नहीं हो सकता है?
(ख) स्वयं सहायता दल का नाम
प्र० क्या लिंकेज के लिए “एसएचजी” शब्दों का प्रयोग आवश्यक है?
उ० यह आवश्यक नहीं है कि समूह के नाम में एसएचजी लिखा गया हो। समूह की नियमित बचत होनी चाहिए। आंतरिक ऋण हो और एसएचजी को अन्य विशेषताएं हो। समूह “वाटर यूजर्स ग्रुप” महिला मंगल दल” अथवा अन्य ऐसी किसी नाम में बनाए जाएँ।
(ग) समूह की रचना
प्र० क्या समूह सरकारी विभागों जैसे भू संरक्षण, डेयरी, डीआरडीए आदि के द्वारा बनाये जा सकते हैं?
उ० समूह सरकारी विभागों द्वारा भी बनाये जा सकते हैं?
प्र० क्या डवाकरा समूहों को एसएचजी में बदला जा सकता है?
उ० डवाकरा समूह चक्रीय निधि सहायता प्राप्त करते हैं, तथापि यदि डवाकरा समूह नियमित बचत और आंतरिक ऋण प्रदान करना शुरू करते हैं और एसएचजी कीर रीति के अनुसार अभिलेख रखते हैं। तो उन्हें एसएचजी माना जा सकता है। डवाकरा समूह द्वारा प्राप्त की जानेवाली चक्रीय निधि सहायता, ऋण की राशि गणना करने के उद्देश्य से बचत से अलग की जा सकती है।
प्र० क्या शाखा की कोई कर्मचारी एसएचजी बना/संगठित कर सकता है?
उ० हाँ, वस्तुतः ग्रामीण शाखा का हरेक सदस्य अपनी शाखा के सेवा क्षेत्र के अथवा अपने परिचालन क्षेत्र के गाँवों में समूह (हों) को स्वयंसेवक के रूप में बना सकता है। सभी ग्रामीण शाखाएँ जितने ज्यादा संभव हो, उतने समूह बना सकती हैं ताकि वे लगभग पूरा लघु ऋण का हिस्सा एसएचजी के माध्यम से वितरित करने के स्थिति में हो सकें ।
(घ) बैठकें
प्र० क्या बैंक अधिकारी/प्रतिनिधि को एसएचजी की बैठकें में उपस्थित रहना चाहिए?
उ० हैं, बैंक के अधिअकरी बैठकें में पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रह सकते हैं और समूह को लेखा पुस्तकें रखने में मदद/दिशानिर्देश प्रदान कर सकते हैं। तथापि, बैंक अधिकारियों को एसएचजी की कार्यप्रणाली/निर्णयन प्रकिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
प्र० क्या यह जरुरी है कि समूहों के कम से कम तटिन कार्यकारिणी सदस्य हों?
उ० समूहों को यह स्वतंत्रता है कि वो दो या तीन या अधिक कार्यकारिणी सदस्यों का चुनाव कर सकें और उन्हें वे किसी भी नाम से पुकारें।
(ड.) बचत खातों का खोला जाना
प्र० क्या समूह प्रतिनिधियों के फोटोग्राफ बैंक खाता खोलने के लिए जरुरी है?
उ० कार्यकारिणी के सदस्यों (अध्यक्ष/उपाध्यक्ष/ सचिव/कोषाध्यक्ष) के फोटोग्राफ जरुरी नहीं है। यदि वह निरक्षर हों तो खाता खोलने के फार्म/पासबुक पर फोटो चिपकाए जा सकते हैं।
प्र० बैंक में एसएचजी का बचत खाता खोलने के के लिए क्या औपचारिकताएँ हैं?
उ० समूह को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करना चाहिए जिसमें कार्यकारिणी के सदस्यों को एसएचजी की ओर से बचत खाता खोलने/परिचालित करने का अधिकार दिया गया हो।
प्र० क्या समूह का बचत खाता खोलने के समय एसएचजी के सदस्यों के आपसी करार प्राप्त किया जाना चाहिए?
उ० आपसी करार केवल लिंकेज के समय प्राप्त किया जाना चाहिए (अर्थात् ऋण/नकद ऋण सीमा की स्वीकृति)
(च) समूहों का लिंकेज
प्र० क्या एसएचजी की सम्पूर्ण बचतें लिकेंज से पहले छः महीने के लिए बैंक में जमा करनी चाहिए?
उ० सम्पूर्ण जमाराशि बैंक में जमा करने के बजाए समूह को वह राशि सदस्यों के बीच आंतरिक ऋण वितरित करने के लिए शुरुआत से ही उपयोग में लाई जाए ताकि समूह लिंकेज से पूर्व ऋण प्रबधन को समझ सके।
प्र० क्या शाखा में खाता खोलने की तिथि से छः महीनों की गणना लिंकेज के लिए की जाएगी?
उ० नहीं, छः महीनों की गणना समूह द्वारा नियमित बचत करने की तिथि से की जानी है। समूह बैंक खाता कभी भी खोल सकता है।
प्र० क्या “वटार यूजर्स ग्रुप: “महिला मगल दल” आदि द्वारा की गई पहले की बचतें, उक्त समूहों के विलयन/विखंडन से बने एसएचजी के लिए गणना में ली जाएँगी?
उ० पहले के समूह द्वारा की गई बचतों से प्राप्त राशि नये गठित समूहों के लिंकेज के लिए गणना में ली जानी चाहिए।
प्र० क्या समूहों को ऋण केवल उत्पादक अथवा आय सर्जक गतिविधियों के लिए ही दिया जाना चाहिए?
उ० समूहों को ऋण का उद्देश्य तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए (उपभोग एवं उत्पादक)
प्र० क्या एसएचजी को सेवा क्षेत्र की शाखा के आलावा किसी अन्य शाखा से जोड़ा जा सकता है?
उ० भारतीय रिजर्व बैंक परिपत्र दिनांक 2 अप्रैल, 1996 सेवा क्षेत्र में छूट की अनुमति देता है, समूह सेवा क्षेत्र की शाखा के आलावा अन्य शाखा से भी जुड़े हो सकते हैं।
प्र० यदि समूह को सहायिकी/अनुदान/दान/बीज राशि प्राप्त हुई हो तो क्या राशि लिंकेज की मात्रा के लिए मानी जानी चाहिए?
उ० सहायिकी/अनुदान/दान/बीज राशि आदि की धनराशि जो समूह की बचत नहीं है, को ऋण की पात्रता की गणना करते समय अलग कर दिया जान चाहिए।
प्र० लिंकेज पर सीजर करने के लिए एसएचजी की “बचतें” क्या हैं?
उ० एसएचजी की बचतों में शामिल हैं, आंतरिक ऋणों के लिए इस्तेमाल होने वाली राशि, समूह के पास नकद शेष और खाते का शेष, दूसरे शब्दों में, एसएचजी सदस्यों द्वारा की गई सम्पूर्ण बचतें गणना में ली जानी चाहिए, समूह द्वारा रजिस्टर आदि की खरीद के लिए किये गए खर्च बचतों से अलग नहीं किये जाने चाहिए।
प्र० क्या समूह से 12% ब्याज प्रभारित किया जाना चाहिए जबकि प्रदत्त ऋण/नकद उधार सीमा रु० 25,000/- से अधिक है?
उ० समूह को दिए गए ऋण पर 12% ब्याज प्रभारित किया जा सकता है भले ही ऋण राशि कुछ भी हो बशर्तें नाबार्ड से रियायती दर पर पुनर्वित सुविधा उपलब्ध हो।
प्र० स्व सहायता समूह के कुछ सदस्यों में व्यतिक्रमी रहने के कारण क्या समूह को इससे जोड़ा जा सकता है?
उ० स्व सहायता समूह के कुछ सदस्यों और या उनके परिवार सदस्यों द्वारा व्यतिक्रमी होने के परिणामस्वरूप जिन्हें बैंकों या अन्य बैंकों द्वारा वित्त प्रदान किया गया है, के कारण स्व सहायता समूह के वित्तपोषण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, तथापि बैंक से प्राप्त वित्तपोषण का उपयोग स्व सहायता समूह द्वारा उस व्यतिक्रमी सदस्य को उधार देने के लिए नहीं किया जाएगा।
प्र० स्वयं सहायता समूह को स्वीकृति किये जाने वाले ऋण की अधिकतम सीमा क्या है?
उ० ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी है, शाखा द्वारा मूल्यांकित स्व सहायता समूह के परिपक्वता आधार पर बचत और उधार ओसत 1:1 से 1:4 तक के बीच हो सकता है।
प्र० स्व सहायता समूह के कार्यकर्ता सदस्यों के मामले में जो बचत खाता खोलते समय अशिक्षित थे और बाडी में शिक्षित हो गए क्या वे अंगूठा लगाने के बजाय अब हस्ताक्षर कर सकते हैं, क्या उन्हें ऐसा करने देना चाहिए?
उ० स्व सहायता समूह के यदि कार्यकर्ता सदस्य अशिक्षित हैं तो ऐसे मामलों में उनके फोटोग्राफ्स शाखा में उपलब्ध होंगे, कार्यकर्ता सदस्यों को शाखा से संव्यवहार करते समय हस्ताक्षर करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
प्र० अगर समूह के कुछ कार्यकर्ता सदस्य बदले जाते हैं, तो पूर्व कार्यकर्ता सदस्यों द्वारा उनका साक्ष्यांकन क्या जरुरी है?
उ० समूह के संकल्प में नए कार्यकर्ता सदस्यों को प्राधिकृत करने का निर्णय होना चाहिए और इस उधार पर, नये कार्यकर्त्ता, सदस्यों को बचत/नकद उधार सीमा इत्यादि के परिचालन को अनुमति दी जाए।
प्र० क्या स्व सहायता का सदस्य किसी प्रायोजित योजना के अंतर्गत शाखा से ऋण या कोई अन्य ऋण ले सकता है?
उ० स्व सहायता समूह का सदस्य समूह की सहमति से शाखा से ऋण ले सकता है, या कोई भी प्रायोजित योजना के अंतर्गत सामान्य ऋण ले सकता है।
प्र० एक व्यक्ति जो किसी प्रायोजित योजना के अंतर्गत शाखा से पहले ही ऋण ले चूका है, क्या वह स्व सहायता समूह का सदस्य बनने के पात्र है?
उ० के व्यक्ति जो ऋण ले चूका है, स्व सहायता समूह का सदस्य बन सकता है।
प्र० क्या जरुरी है कि समूह को कुछ निर्धारित खाता बहियों का रखरखाव करना चाहिए?
उ० क्या स्व सहायता समूह निर्धारित स्काई (शेड्यूल) से पहले ऋण की अदायगी कर सकता है?
उ० अदायगी अवधि स्व सहायता समूह के परामर्श से तथा समूह सदस्यों की आमदनी क्षमता का विचार करने के बाद निर्धारित (फ़िक्स्ड) किया जाना चाहिए।
(जी) विविध इश्यू
प्र० क्या ऋण की अवधि के दौरान किसी सदस्यों को बाहर निकला जा सकता है?
उ० इस मामले पर निर्णय लेने के लिए समूह पर छोड़ दिया जाए। समूह शाखा को देय सम्पूर्ण ऋण राशि की अदायगी के लिए जिम्मेदार है।
प्र० किसी सदस्य की मृत्यु के मामले में, क्या परिवार का कोई अन्य सदस्य समूह में शामिल हो सकता है?
उ० समूह, मृतक सदस्य के परिवार के किसी व्यस्क सदस्य को समूह में शामिल होने पर विचार कर सकता है।
एक नोडल(NODAL) संस्थान के रूप में, नाबार्ड स्वयं सहायता समूह के प्रोत्साहन में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है। अनुश्रवण, दिशानिर्देश के साथ-साथ यह स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज को एक सफल रूप देने के लिए निम्न कार्यक्रम आयोजित करती है।
1.जागरूकता एंव प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन:
विभिन्न राज्यों क नाबार्ड क्षेत्रीय कार्यालय अपने पार्टनर संस्थाओं एंव स्वयं सहायता समूहों के फायदे के लिए अपने-अपने राज्यों में प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहा है जो निम्न प्रकार का है:-
(A) एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला:
यह एक दिवसीय कार्यशाला जिला में कार्यरत बैंक पदाधिकारी/शाखा प्रबंधक और स्वंयसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं एंव कार्यशाला के प्रतिभागियों के फायदे के लिए पढ़ाई के अतिरिक्त प्रर्याप्त सामग्री प्रदान करता है।
(B) तीन दिवसीय प्रशिक्षण –सह-जागरूकता कार्यक्रम:
नाबार्ड का क्षेत्रीय कार्यालय अनुभवी एंव प्रमुख स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बैंक पदाधिकारियों के लिए ही ऐसे कार्य्रकम आयोजित करती है। कार्यक्रम ऐसे जिलों में चलाया जाता है जहाँ स्वयं सहायता समूह हो, ताकि शाखा पदाधिकारी इसे देखकर सीख सके और अपनी सेवा क्षेत्र में प्रोत्साहन दे सकें।
(C) स्वयंसेवी संस्थाओं का सामर्थ्य विकास कार्यक्रम:
क्षेत्रीय कार्यालय ऐसे कार्यक्रम क्षेत्र स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए भी करता है। कार्यकर्ताओं के लिए भी करता है। कार्यकर्ता, चुने गए व इच्छुक स्वयंसेवी संस्थाओं के होते हैं, जो राज्य के किसी भी भाग में स्वयं सहायता समूह प्रोत्साहन का काम करते है। नाबार्ड प्रायोजित कार्यक्रम है जिसे एक प्रमुख स्वयंसेवी संस्था संचालित करती है।
(D) स्वयं सहायता समूह के लिए जागरूकता-सह- प्रशिक्षण कार्यक्रम:
स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के प् फायदे हेतु गैर सरकारी संस्थाएं व समूहों को प्रोत्साहन देने वाली संस्थाएं नाबार्ड द्वारा संस्थाएं व समूहों को प्रोत्साहन देने वाली संस्थाएं नाबार्ड द्वारा प्रायोजित प्रशिक्षण/ जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन करती है। गैर सरकारी संस्थाएं समूह के सदस्यों के लिए नेतृत्व विकास, एकाउंट, खाता-बही रखरखाव इत्यादि का प्रशिक्षण आयोजित कर सकती है और नाबार्ड इसका खर्च दे सकती है।
(E) बैंक के सीनियर पदाधिकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम:
ऐसे बैंक पदाधिकारियों व गैर सरकारी संस्थाओं के लिए नाबार्ड परिभ्रमण-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती है।
2.सेमिनार एवं रिभ्यु मीटिंग का आयोजन:
नाबार्ड स्वयं सहायता समूह पर अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय सेमिनार एवं रिभियु मीटिंग का भी आयोजन करती है। क्षेत्रीय कार्यालय भी राज्य स्तरीय रिभियु एवं समन्वय समिति की बैठक करती है।
यह राज्य स्तरीय संगठन (FORA) भी सहयोगी संस्थाओं (नाबार्ड, बैंक और गैर सरकारी संस्थाएं) का सामूहिक मंच है जहाँ ज्ल्वंत मुद्दों पर चर्चा होती है, और लिंकेज कार्यक्रम की वृद्धि-विकास हेतु आपसी तालमेल (संयोजन) एवं सहयोग के द्वारा राज्य में रचनात्मक वातावरण तैयार की जाती है।
3.अनुश्रवण अध्ययन का आयोजन
स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम के निगरानी में आये पहलुओं का अधययन किया जाता है, ताकि इस कार्यक्रम से उभरते बदलाव से कुछ सीखा जा सके और जरुरत के अनुसार निति स्तर पर बदलाव किया जा सके। लिंकेज कार्यक्रम की सम्पूर्ण स्थिति को पाने के लिए यह अध्ययन बैंक, समूह एवं गैर-सरकारी संस्थाओं से सम्बन्धित मुद्दों का अध्ययन करता है।
4.चक्रीय कोष सहयोग कार्यक्रम
नाबार्ड के चक्रीय कोष सहयोग कार्यक्रम के अंतर्गत प्रावधान था, कि स्वयं सहायता समूहों को कर्ज देने के लिए चुने गए संस्था (NGO) को एक मुश्त 10 लाख रुपया की सीमा तक कर्ज दिया जा सकता था।
5.पुनविर्त्त सहयोग
लिंकेज कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी बैंकों के लिए Refinance Support उपलब्ध है। बैंक को लिए Refinance Support 5% प्रति वर्ष सूद दर से 100% (शत प्रतिशत) तक दी जा सकती है, चाहे वित्त की मात्र जो भी हो।
6.आंकड़ों पर आधारित प्रगति प्रतिवेदन की तैयारी:
लिंकेज कार्यक्रम में भाग लेने वाले विभिन्न बैंकों की प्रगति की भी निगरानी (अनुश्रवण) करता है साथ ही स्वयं सहायता समूह को प्रोत्साहन देने वाली गैर-सरकारी संस्थाओं का भी आंकड़ा आधिरत प्रतिवेदन रखता है।
7.जिला विकास प्रबंधक का सहयोग:
नाबार्ड के प्रतिनिधि के रूप में जिला स्तर पर जिला विकास प्रबंधक है। वह अपने-अपने जिलों में गैर सरकारी संस्था एंव बैंक को लिंकेज कार्यक्रम में सहयोग देते है। वे जिला में सक्रिय स्वयं सहायता समूहों एंव बैंकों की पहचान कर पथ निर्देशन एवं सहयोग का कार्य करते हैं।
स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम की प्रगति उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में एक वृहद् स्वीकृति के रूप में देखा जा रहा है। दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटका, केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में एक आन्दोलन के रूप में उभरा है। जबकि भारत के पूर्वी क्षेत्र (उड़ीसा, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उत्तराखंड) में इसकी प्रतिक्रिया मिश्रित रूप में है। झारखण्ड के कुछ जिलों (जैसे: राँची. हजारीबाग, गुमला, सिंहभूम, दुमका, गोड्डा इत्यादि) में बिहार की तुलना में अच्छी प्रगति हुई है।
आजकल महिला सशक्तिकरण की चर्चा प्रत्येक स्तर पर है और स्वयं सहायता समूह को इसके माध्यम के रूप में देखा जा रहा है और उम्मीद करते हैं कि महिलाएं इसके माध्यम से
- स्वयं की उपयोगिता एवं आत्मविश्वास की अधिक अनुभूति के साथ खुद को सशक्त करेंगी।
- आर्थिक एंव सामाजिक संशाधनों और राजनीति के प्रक्रिया पर नियत्रण व पहुँच रख सकेंगी।
- परिवार, समुदाय तथा संस्कार से अपने अधिकारों की मांग कर सकेंगी।
सैद्धांतिक तौर पर महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं परन्तु हम इसे कितना स्तर तक उतार पाते हैं? समूह के वृद्धि-विकास के दौरान सशक्तिकरण के व्यापक पहलुओं को समायोजित कर पाते हैं या नहीं? अधिकतर देखा गया है कि जब समूह के वृद्धि-विकास की चर्चा करते हैं तो उपरोक्त सभी पहलुएं गौण हो जाती हैं, और बैंक लिंकेज ही एक प्रमुख कड़ी के रूप में उभरता है। अब प्रश्न है कि क्या बैंक लिंकेज ही सशक्तिकरण का सूत्रधार है? यदि है तो क्या-क्या पहुलएँ और भी हैं? क्या बैंक लिंकेज की परिणाम की दिशा एवं दशा सही है? क्या हम सामाजिक कार्यकर्ता व संस्थाएं इसके परिणाम के प्रति ईमानदार व् सतर्क हैं? हमने यहाँ अपने अनुभव के आधार पर इन मुद्दों को आपके सामने रखने का प्रयास किया है ताकि आपकी संवेदनाएँ इस ओर उन्मुख हो।
1.समूह में डिफाल्टर की उपस्थिति:-
लिंकेज के वक्त बैंक स्टाफ के द्वारा इन विषयों पर चर्चा करने पर समूह सदस्यों में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती है- जैसे बैंक पुराने कर्ज की वसूली हेतु तंग करेंगे? समूह की बचत रकम निकालने पर पाबंदी लगा देंगे? और कभी-कभी इन मुद्दों को लेकर समूह आपस में ही विभाजित हो जाते हैं। ऐसा भी हुआ है कि कर्ज लेने व स्वीकृति के बाबजूद उसे खुलकर उपयोग नहीं करते। पाया गया है कि कैश क्रेडिट के आधार पर कर्ज स्वीकृति है, अपने समूह के पैसे से छोटे-बड़े व्यापर भी कर रही हैं। परन्तु कैश क्रेडिट कर्ज रकम का उपयोग नगण्य है। विशेषकर अनुसूचित क्षेत्रों में यह एक बड़ी समस्या है। ऐसे क्षेत्रो में अधिकतर परिवार किसी-न-किसी रूप में कर्ज लेकर बंधे थी बल्कि उनके रिश्तेदार (पिता या पति) ही अधिकतर ऐसे कर्ज में हैं और इसका परिणाम महिलाओं को भोगना पड़े- यह सशक्तिकरण व विकृतीकरण की प्रक्रिया होगी?
2.समूह संस्थाओं की निरक्षरता:-
“यदि समूह के अधिकतर सदस्य निरक्षर हैं तो कर्ज नहीं देंगे” बैंकों का ऐसा रुख भी कर्ज लेन-देन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है। सदस्यों की सहभागिता मी कमी आती है। इसके विपरीत यदि बैंक प्रोत्साहित करते हुए कहे कि साक्षर होने पर पुरस्कृत करेंगे तो सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
3.आर्थिक कार्यकलाप का चुनाव:-
बैंक वाले कुछ चुने हुए आर्थिक कार्यकलापों को ही समूह में लेने का दबाव डालते हैं, जिसके कारण सदस्यों के मन में सफलता, असफलता का भय घर कर जाता है। इसके विपरीत यदि ढेर सारे कार्यकलापों का विकल्प सामने रखकर चयनित करने को प्रोत्साहित करते तो सकारात्मक प्रतिक्रिया होती। साथ ही सरल प्रबंधन वाला आर्थिक कार्यकलाप व उद्यमिता को ही आदिवासी समुदाय पसंद करते हैं।
4.बैंक प्रबनधक का समूह के खास सदस्यों व नेतृत्व से बातचीत करना:-
इस प्रकार के व्यवहार से सदस्यों के बीच ही अविश्वास सदस्यों से बातचीत करने की रणनीति अपनाना चाहिए। परिस्थिति यदि अनुकूल हो तो गरीब से गरीब व अधिक कमजोर दिखने वाले से ही बातचीत करने की प्राथमिकता दें तो समूह का रुख अवश्य ही सकारात्मक होगा।
5.समूह सदस्य एक ग्राहक व लाभुक के रूप में:-
बैंक वाले समूह सदस्यों को मात्र ग्राहक व लाभुक का दर्जा न देकर उसे एक संगठन के प्रतिनिधि के रूप में इज्जत के साथ स्वीकार करें। इससे समूह पर जबरदस्त सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
6.ऋण देर से भुगतान:-
देर से ऋण भुगतान होने पर बैंक वाले इसपर क्रोध प्रगट न करें। बल्कि इसका कारण समझें और प्रोत्साहन देकर हिम्मत बांधें।
7.बैंक के प्रति दुर्भावना:-
सदस्यों में एक जबरदस्त सोच है कि बैंक उनके लिए नहीं है। यह बड़े लोगों का. अफसरों का, दलालों का, व्यापारियों के लिए है। ऐसा पाया गया है कि अकेले स्वयंसेवि संस्था भी ऐसी सोच को ख़त्म नहीं कर सकती है, जबतक बैंक वाले साथ न दें। इसके लिए विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने की आवश्यकता है जैसे:- बातचीत के लिए विशेष समय निकालना, अलग से ऋण लेन-देन की काउंटर व्यवस्था, सेमीनार व कार्यशाला का आयोजन, लेन-देन का खास दिन.समय तय करना, इत्यादि।
8.ऋण की छोटी राशि:-
सदस्यों का सोच है कि बैंक वाले छोटी ऋण-राशि को देना पसंद नहीं करते। कभी-कभी बैंक वाले कह देते हैं कि समय और कागजात की बर्बादी है। परन्तु छोटी राशि समूह के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि सदस्यों में खतरा लेने की क्षमता/मानसिकता नहीं है और छोटी राशि खतरा लेने की मानसिकता को यदि नहीं बढ़ा पाया तो घटायेगा भी नहीं। हो सकता है यह कुरामीन की खुराक की तरह काम करे और समूह को सक्रिय कर दे।
9.ऋण प्रक्रिया में गराबी रेखा की शर्तें:-
यह सदस्यों के बीच विभाजन रेखा की तरह काम करता है अतः समाधान के लिए एक रणनीति खोज निकालना आवश्यक है।
10.समूह के वृद्धि-विकास के प्रति संवेदनशील न होना:-
बैंक के साथ-साथ समूह को प्रोत्साहन देने वाली संस्थाएं शायद ही इसके वृद्धि-विकास के प्रति संवेदनशील है प्रायः देखा गया है कि इस सबंध में समूह खुद भी जागरूक नहीं है कि वृद्धि-विकास क्या है और कहाँ जाना है? समूह के गठन के सिर्फ छः माह बाद ही यह रेटिंग प्रक्रिया में आ जाता है। यह पत्थर पर पानी ढालने जैसी बात होती है- क्योंकि समूह की उचित क्षमता का विकास नजरअंदाज कर दिया जाता है और लिंकेज की प्रक्रिया में आ जाता है।
11.समूह का मूलांकन/रेटिंग पद्धति व ग्रेडिंग:-
रेटिंग पद्धति व ग्रेडिंग ऐसी हो कि समूह की व्यापकता का पता चले। यह सिमित सदस्यों का नहीं बल्कि सभी सदस्यों की परिपक्वता व सामर्थ्य विकास के बारे में बताये।
12.सरकार का विभिन्न कार्यक्रम और अलग-अलग रणनीति:-
एक तरफ प्रोत्साहित करने वाली संस्था अपने कार्य में समूह को सामान्य लिंकेज की ओर प्रोत्साहन दे रहा है तो दूसरी तरफ SGSY के अंतर्गत बैंक एंड सपोर्ट राशि को सब्सिडी व अनुदान के रूप में प्रदर्शित करता है। इस व्यवस्था में समूह की सदस्य प्रोत्साहित करने वाली संस्था को ही शंका की नजर से देखने लगते हैं।
13.महिला सशक्तिकरण-पुरुष बनाम महिला मुखौटा:-
यह पाया गया कि ऋण, महिलाओं के नाम स्वीकृति है परन्तु आर्थिक कार्यकलाप उनका रिश्तेदार (पति, सुसर, आदि) कर रहे हैं और एस पूरी प्रक्रिया (निर्णय से लेकर कार्यान्वयन तक) में पुरुष वर्ग की संलग्नता रहती है और महिलाओं का मात्र नाम होताहै। इस अवस्था में महिला सशक्तिकरण की क्या दिशा और दशा होगी-यह सोचने की बात अहि।
14.समुदाय विशेष की पृष्ठभूमि:-
बैंक लिंकेज की प्रक्रिया में जो भी समुदाय में जो समुदाय आ रहा है उसकी सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक पृष्टभूमि का विश्लेष्ण अत्यावश्यक है।
I) लिंकेज अवधि:- जैसे कोयरी महतो समुदाय के लिए लिंकेज प्रक्रिया 6-माह के बाद शुरू किया जा सकता है परन्तु आदिवासी समुदाय के लिए 1 से 2 वर्ष के बीच लग सकता है। यह क्षेत्र विशेष एवं विभिन्न सामाजिक समूह से सबंधित है। जैसे:- उराँव समुदाय के लिए एक से डेढ़ वर्ष के बाद लिंकेज प्रक्रिया हो तो मुन्डा के लिए डेढ़ से दो वर्ष बाद बेहतर हो।
II) ऋण और उद्यमिता:- ऋण या सोचकर देना की उद्यमिता शुरू हो जाएगी” यह एक उदार रणनीति नहीं होगी क्योंकि गरीब या आदिवासी समुदाय में उपयोग हेतु ऋण और उत्पादन हेतु ऋण को अलग-अलग करके देखा नहीं जा कसता है। दोनों एक दूसरे का पूरक होता है-अतः इसमें लचीलापन होना चाहिए।
III) ऋण और बाजार:- आदिवासी समुदाय में बाजार के प्रति जबरदस्त लगाव है क्योंकि उत्पादन हेतु ऋण और उपभोग हेतु ऋण के बीच बाजार की अहम् भूमिका है। अतः आवश्यक है कि ऋण और बाजार का विश्लेषण के बाद ही बैंक लिंकेज किया जाये।
IV) विनिमय व्यवस्था:- इसमें भी बाजार की भूमिका महत्वपूर्ण भूमिका है। विनिमय व्यवस्था कृषि व वन आधारित संसाधन (सामग्री) लेकर बाजार आता है और उसे साहूकार के हाथों बेचकर ही अपनी जरुरत का समान खरीदता है- यह अंशतः विनिमय प्रथा आज भी है।
V) लिंकेज की सिमित सोच:- जब भी लिंकेज की बात होती है इसका सीधा इशारा बैंक से जुडाव की ओर होता है। क्या यह जरुरी नहीं कि सर्वप्रथम उसके उपयोगिता, बाजार एवं स्थानीय संसाधन के बारे में बताएं। ठेकेदार और दलाल के द्वारा होने वाली शोषण को रोकें।
उपरोक्त सारी पहुलएँ साधारण सी दिखती हैं । परन्तु यदि गहराई से विश्लेषण/चितन करें तो पायेंगे कि य सारे पहुलएँ किसी-न-किसी रूप में मानसिकताओं से जुडी हुई है और साथ ही इसका परिणाम सकारात्मक हो सकता है और नकारात्मक भी। परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि बैंक लिंकेज प्रक्रिया में प्रवर्तक संस्था और बैंक पदाधिकारी की सोच एवं रणनीति क्या होगी।
बेहतर होता ही लोगों की अधिक से अधिक भागीदारी लेने के लिये निम्न सिद्धांतों पर अमल होता ।
स्रोत:- हलचल, जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची।
अंतिम बार संशोधित : 1/10/2023
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