पंचायत की पगडंडी
वकालत की पढ़ाई के दौरान ही सामाजिक कार्यों में वजुटी दोरोथिया दयामनी एक्का का एकमात्र सपना है अपनी पंचायत को आत्मनिर्भर बनाना। विधि स्नातक की डिग्री लेकर रांची बार कौंसिल में पंजीयन कराने के बाद वह रांची विश्वविद्यालय से एलएलएम की पढ़ाई भी कर रही हैं। इस बीच पंचायत चुनाव हुए तो वह रांची जिले के नामकुम प्रखंड की आरा पंचायत की मुखिया चुन ली गयीं। दोरोथिया ने वकालत का पेशा करने की बजाय अपनी पंचायत में आत्मनिर्भरता की वकालत का मन बना लिया। लिहाजा, उनकी सक्रियता के कारण स्थानीय लोगों की जिंदगी पर काफी असर आया है।
आरा पंचायत की एक खासियत यह है कि इसके नौ वार्ड तथा एक पंचायत समिति सदस्यों में सिर्फ एक पुरुष प्रतिनिधि है। इस तरह महिलाओं के भारी प्रतिनिधित्व वाली इस पंचायत में आत्मनिर्भरता की कोशिशों का खास महत्व है। दोरोथिया बताती हैं कि पंचायत चुनाव होने के बाद उन्होंने सभी महिलाओं के साथ बैठकर विचार किया। सबका कहना था कि पुरुषों के पास तो रोजगार के काफी अवसर होते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए अवसर बिलकुल नहीं हैं। उन्हें घर पर ही कोई रोजगार मिल जाये, तो बेहतर होगा। इस सोच पर काम करते हुए आत्मनिर्भरता की कोशिशें की गयी। इसमें कृषि ग्राम विकास केंद्र का भरपूर सहयोग मिला।
आत्मनिर्भरता के लिए पशुपालन और किचन गार्डन जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया। पंचायत के हरेक वार्ड में विदेशी उन्नत नस्ल का एक-एक बकरा दिया गया ताकि क्षेत्र में बकरियों की नस्ल सुधारी जा सके और बकरी उत्पादन में तेजी आये। बकरी पालन में ब्रीड चेंज की इस कोशिश का साफ असर दिख रहा है। अब तो दूसरी जगह के लोग भी आकर बकरे को मांग कर ले जाते हैं ताकि उन्हें भी इसका लाभ मिले।इसी तरह, मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए ब्रायलर मुर्गी के 450 चूजे बांटे गये। मात्र 30 रुपये में एक चूजा दिया गया, जबकि बाजार में यह 60 रुपये का आता है तथा उसकी नस्ल भी इतनी अच्छी नहीं होती। ऐसे चूजे काफी तेजी से बढ़ रहे हैं और मुर्गीपालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आ रही हैं। इसी तरह, महिलाओं को मात्र 50 रुपये की अनुदानित दर पर बत्तख के पांच-पांच चूजे दिये गये। ये काफी अच्छी नस्ल के चूजे हैं, जो आम बाजार में उपलब्ध नहीं हैं तथा इन चूजों और बत्तखों को बिना पानी के रखाजा सकता है।
गांव के एक मैकेनिक स्टीफन एक्का किसी दुर्घटना के कारण शारीरिक श्रम करने में लाचार हो गये। उन्हें सुअर पालन का प्रशिक्षण दिलाकर प्रखंड की ओर से पांच सुअर दिलाये गये। इससे उन्हें अपना घर चलाने में काफी मदद मिली है। एक-एक सुअर सात-आठ हजार रुपये में बिकता है। अब तक वह कई सुअर बेच चुके हैं। आज भी उनके पास 14 सुअर बचे हैं। गांव के दो किसानों को मधुमक्खी पालन का भी प्रशिक्षण देकर उन्हें दो बक्सा मधुमक्खी दी गयी है। मछली पालन के लिए भी तालाब की तलाश की जा रही है।
इसी तरह, किचेन गार्डन को बढ़ावा देने के लिए बैंगन, टमाटर, मिर्च, नींबू, बीन इत्यादि 21 प्रकार के बीज बांटे गये तथा उनके उपयोग संबंधी कैलेंडर भी दिये गये। दोरोथिया बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश घरों में थोड़ी-बहुत ऐसी जगह होती है, जहां किचेन गार्डन के रुप में अपने उपयोग की चीजें उपजायी जा सके। इसमें घरेलू उपयोग का पानी भी काम आ जाता है। इसके लिए घरों में छत पर पानी टंकी लगाकर ड्रिप ऐरिगेशन का भी प्रयोग शुुरु किया गया है। लगभग एक सौ महिलाओं को मशरुम का प्रशिक्षण दिया गया है। कुछ महिलाओं को स्वीट कॉर्न के उत्पादन का भी प्रशिक्षण दिया गया है।
पंचायत समिति सदस्य सोफिया टोप्पो भी इन उपलब्धियों से काफी उत्साहित हैं। सोफिया टोप्पो बताती हैं कि दो साल के भीतर क्षेत्र में लगभग एक हजार फलदार वृक्षों के पौधे लगाये गये हैं। इनमें पपीता, आम, अमरुद, लीची, केला, सागवान इत्यादि शामिल हैं। पपीता के पेड़ों में बेहद कम समय में बड़ी संखया में तथा काफी मीठे पपीतों का उत्पादन हो रहा है। श्रीविधि से धान की खेती को बढ़ावा देने का भी प्रयोग किया गया है। पिछले साल 11 किसानों ने यह प्रयोग किया। उनकी सफलता को देखकर इस साल लगभग 20 किसानों ने इसका प्रयोग किया है।
इस पंचायत क्षेत्र में महिलाओं के 22 स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं। लेकिन अधिकांश का विधिवत पंजीयन नहीं होने के कारण बैंक व अनुदान की सुविधा नहीं मिल रही है। दोरोथिया अब इन्हें विधिवत रुप से संचालित करने की कोशिश कर रही हैं। गांव में जनवितरण प्रणाली की नई दुकानें खोलने तथा उनका संचालन महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को दिलाने की भी कोशिश है। इन स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियां भी विविध प्रकार की हैं। अगर स्कूल में दोपहर के भोजन के लिए राशन के पैसे घटते हैं, तो इसके लिए महिला एसएचजी से कर्ज मिल जाता है। एक समूह ने ऑटो खरीदकर किराये पर चलाना शुरू किया है।दूसरे समूह ने टेंट हाउस के सामान खरीदकर स्थानीय लोगों को सुविधा दी है।
पंचायत की महिलाओं को कुछ अन्य प्रकार के रोजगार से जोड़ने की भी कोशिश हो रही है। नवभारत जागृति केंद्र ने अगरबत्ती का प्रशिक्षण देने के साथ ही इसके लिए बाजार उपलब्ध कराने का भी भरोसा दिया है। मसाला, पापड़, मोमबत्ती इत्यादि संबंधी रोजगार की भी संभावना तलाशी जा रही है। कुछ लड़कियों को एम्ब्रोडरी एवं धागे के काम तथा सिलाई का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। तीन युवकों को चापाकल मरम्मत का प्रशिक्षण मिला है।
अपने स्थानीय संसाधन बढ़ाने के लिए पंचायत ने एकनई पहल की है। क्षेत्र में लगभग 14 छोटे-बड़े कारखाने हैं। पंचायत ने अपने विकास का एजेंडा बनाकर इन कारखाना संचालकों के पास भेजा है तथा उनसे मदद मांगी है। इसी तरह, स्कूल की जमीन का अतिक्रमण हटाने और शिक्षकों की उपस्थिति नियमित करने की पहल की गयी है।
इस पंचायत का भवन अब तक नहीं बन सका है क्योंकि इसके लिए आवंटित जमीन को लेकर विवाद है। लेकिन भवन की कमी का असर पंचायत के काम पर खास नहीं पड़ा है। इस कमी का रोना रोने के बजाय दोरोथिया अपने ही घर के बाहर एक कमरे से इस पंचायत का सचिवालय चला रही हैं। इसी कमरे में उन्होंने सोलर लाइट का चार्जर प्वाइंट भी लगाया है। केजीवीके ने 50 सोलर लाइट का सेट दिया है। इससे खासकर बच्चों को पढ़ाई में सुविधा होती है। उपयोग करने के बाद ग्रामीण अपनी सोलर लाइट लाकर चार्जिंग प्वाइंट में लगा देते हैं। इस पंचायत क्षेत्र में खेल-कूद को बढ़ावा दिया गया है। लड़कों को फुटबॉल एवं क्रिकेट तथा लड़कियों के लिए हैंडबॉल संबंधी सामग्रियां दी गयी हैं। खेल प्रशिक्षक का भी इंतजाम करने की कोशिश है। दो साल के भीतर इतनी उपलब्धियों को लेकर दोरोथिया काफी खुश हैं। यह पूछे जाने पर कि एलएलएम करने के बाद वह वकालत करेंगी या नहीं, दोरोथिया कहती हैं कि अब तो इतने सारे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की वकालत करने का जिम्मा मिला हुआ है, इसी में अच्छा लग रहा है।
स्त्रोत : पंचायत का पगडंडी,राज्य ग्रामीण विकास संस्थान,झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर, रांची.
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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