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मानव दुव्यर्वहार एवं मानवाधिकार – एक त्रासदी

परिचय

मानव दुर्व्यापार समाज का सबसे घृणित रूप है। यह एक ऐसी आपराधिक प्रथा है जिसमें मानव का एक वस्तु की तरह शोषण करके लाभ कमाया जाता है। इस कुप्रथा में फंसे पीड़ितों पर पूरी तरह से नियन्त्रण किया जाता है जिससे वे रोटी, कपड़ा, पैसा तथा अन्य सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इनके व्यापारियों पर पूर्णतया निर्भर हो जाते हैं। इस शोषण में इन शोषितों से देह व्यापार करवाना, इनके अंगों का व्यापार करना, इत्यादि शामिल हैं। आधुनिक दासता का सबसे भयावह रूप मानव दुर्व्यापार है। इस ओर समाज का ध्यान आर्कषित है परन्तु कुछ सफलता हाथ नहीं लगती। इस प्रकार मानव की गरिमा खंडित होती है। इस व्यापार के मूल कारण गरीबी, अशिक्षा तथा समाज में व्याप्त कई कुरीतियाँ हैं। इस व्यापार में महिलाओं का ही नहीं बल्कि बच्चों के मूलभूत अधिकारों का भी हनन होता है। इस व्यापार में शामिल अधिकाँश महिलाएं पिछड़े और विकाशील देशों की होती हैं। आज भारत में मानव दुर्व्यापार हेतु कई मैरिज ब्यूरो, नौकरी दिलाने वाले संस्थान एवं कोचिंग सेंटर, मसाज पार्लर, डांस बार, आदि संलग्न हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को बंधुआ मजदूरी उन्मूलन के लिए अधिकृत किया हैं। आयोग ने प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया है तथा विशेषतः गोंडा सर्कस केस में यौन शोषण के प्रकरण में पीड़ितों को मुक्त कर दोषियों को कानून के हवाले किया।  मानव दुर्व्यापार एक ऐसी त्रासदी है जिसके उन्मूलन हेतु समाज व सरकार को मिलकर कार्य करना होगा।

मानव दुव्यर्वहार - आधुनिक दासता

मानव दुव्यर्वहार आधुनिक दासता का वह स्वरूप है जिसमें नशीले पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी के उपरान्त सर्वाधिक लाभ प्राप्त होता है। यह मानवीय पीड़ाओं से जुड़ा वह व्यापार है, जिससे मानव अधिकारों का सीधा हनन होता है। कदाचित अन्य अपराध इनते जघन्य नहीं होते जितना की मानवीय पीड़ाओं से एवं कष्टों से युक्त यह व्यापार होता है।

मानव दुर्व्यवहार को कई प्रकार से परिभाषित किया गया है। यह एक ऐसा व्यापर है, जिसे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक कारणों से वर्जनीय माना गया है। मानव दुर्व्यापार उस आपराधिक प्रथा को इंगित करता है जिसमें मानव का एक वस्तु की तरह शोषण करने लाभ कमाया जाता है। यह शोषण इस तथाकित व्यापार के बाद भी जारी रहता है। मानव दुर्व्यापर में पीड़ित पर नियन्त्रण रखने हेतु पीड़ित को व्यक्तिगत अभिरक्षा में बंदी स्वरुप रखा जाता है, आर्थिक नियन्त्रण में रखा जाता है तथा धमकियों एवं हिंसा का भी सहारा लिया जाता है।

इस हथकंडे के द्वारा पीड़ित पर पूरी तरह से नियन्त्रण सुनिश्चित किया जाता है। पीड़ितों को भूखा रखना, अँधेरे कमरे में कैद कर देना, पीटना, यातना देना, सिगरेट से उनके  अंगों  को जलाना, गला घोंटना, चाक़ू मारना, परिजनों की हत्या की धमकी दना या उनका कत्ल कर देना, नशीले पदार्थो का जबरन सेवन करवा का उन्हें इनका आदी बना देना, उनके रूपये- पैसे जब्त कर उनको असहाय बना देना, आदि सामान्य हथकंडे इस व्यापर में अपनाये जाते है। इस प्रकार रोटी, कपड़ा, पैसा अन्य समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पीड़ित इन व्यापारियों पर पूर्णतया निर्भर हो जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र का प्रोटोकॉल जो मानव दुर्व्यापार विशेषतः महिलाओं एन बच्चों के सन्दर्भ में, इसको रोकने, उन्मूलन करने तथा दंडित करने के सम्बन्ध में है, उसके अनुसार इसकी परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है-

किसी भी व्यक्ति को भय के द्वारा, बलात प्रयोग द्वारा, अपहरण द्वारा, धोखे से, लालच द्वारा, बहला-फुसलाकर, पद के दुरुपयोग द्वारा व अन्य साधनों से भर्ती करना, ले जाना, स्थानांतरित करना, अभिरक्षा में रखना एवं लाभ प्राप्ति तथा शोषण द्वारा उस पर नियन्त्रण रखना। इस प्रकार के शोषण में इन शोषितों से देहव्यापार करवाना, शारीरिक शोषण करना, जबरन बेगा करवाना अथवा बलात सेवाएं लेना, दासता में रखना अथवा दासवत व्यवहार करना एवं इन शोषितों क अंगों का व्यापार करना, इत्यादि सम्मीलित हैं।

मानव दुर्व्यापार आधुनिक समय की दासता का एक भयावह प्रतिरूप है। इस दासता में साम, दण्डं, भेद सभी का प्रभावी समावेश होता है। यह शतरंज का एक ऐसा खेल है, जिसमें विभिन्न प्यादे अपनी=अपनी चल से खेल खेलते है, जिनका संचालन बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों द्वारा किया जाता है। देहशोषण का कार्य परम्परागत कोठों से अब अभिजज्य वर्ग के रिहायशी इलाको की ओर पलायन कर रहा है। आधुनिक तकनीकी का इसे बढ़ाने हेतु भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। मनुष्य दुर्व्यापर एक ऐसी  त्रासदी है, जिसकी ओर जागरूक समाज का ध्यान तो आर्कषित होता है, तदुपरान्त चिन्तन एवं मनन भी होता है, परन्तु सफलता की कूंजी हाथ नहीं आती। यह व्यापार का वह विकृत स्वरुप है, जिसके बारे में समग्र एवं प्रमाणिक तथ्य आज भी उपलब्ध का नहीं है। इसके बारे में ज्ञात है, वह है मानवीय समूहों का व्यापक पैमाने पर परिवारों से दूर विस्थापन, उनकी अकल्पनीय शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न भरी कष्टमय जिन्दगी तथा मरणोपरांत इन सबको छुटकारा। इस प्रकार ने केवल मानव की गरिमा ही खंडित होती है, अपितु परिवार के परिवार तबाह हो रहे हैं।

यह एक ऐसा व्यापार जिसमें लाभ, लालच, धोखे, बल इत्यादि के प्रयोग से पीड़ित को सुनहरे जीवन के स्वप्न दिखाए जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का सौदा करने का बाध्य हो जाता है। इस व्यापार की जड़ में गरीबी, अशिक्षा तथा अनेकों सामाजिक कारण होते है, तथा इसकी धुरी अर्थशास्त्र के इर्दगिर्द घुमती है। कुछ से जबरन बेगार करायी जाती है, तो अन्य से देह-व्यापार या उनके मानव अंगों का व्यापार भी कराया जाता है। इन पीड़ितों के लिए जिनमें बड़ी संख्या स्त्रियों व बच्चों की होती है, आज भी  हमारे देश में प्रभावी सुरक्षा कवच का आभाव है। यह व्यापर तेजी से फैलता जा रहा है। पीड़ित महिलाओं व बच्चों का शोषण बदस्तूर जारी है। इस अपराध के सूत्रधार व बिचौलिये अपने दुष्कर्मों की सजा से बहुधा बच जाते है। अनेकों बार ऐसी भी परिस्थितियां सामने आ जाती है, कि पीड़ित ही सलाखों के पीछे होते हैं जो कानूनी एवं आर्थिक मदद की पुकार लगाते सुनाई पड़ते हैं ।इस प्रकार मानवाधिकारों की दृष्टि से यह विषय अति महत्वपूर्ण बन जाता है।

भारत में मानव दुर्व्यापार का बढ़ता बाज़ार

भारत में मानव दुर्व्यापार को जबरन वेश्यावृत्ति अथवा देहव्यापार के रूप में प्रायः देखा व समझा जाता है। वास्तविकता में देहव्यापार इसका एक पहलू मात्र है। इसकी विभीषिका में जबरन बलात विवाह, भीख मंगवाना, मानव अंग व्यापार भी सम्मिलित है। यह ऐसी दासता का विश्वव्यापी प्रतिरूप है, जिससे स्त्री एवं बच्चों के मुलभूत मानव अधिकारों का हनन होता है। भारत में पड़ोसी देशों से इन पीड़ितों का आना बदस्तूर जारी है, तथा इन्हें यहाँ से अन्य देशों में भी भेजा जाता है।

मानव दुर्व्यापार को बढ़ावा देने वाले कारकों में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, परम्परागत सामाजिक एंव आर्थिक ढांचों का विलुप्तिकरण, कानून लागू करने वाली सस्थाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा इनका संगठित अपराध करने वालों से गठजोड़ एवं भूमंडलीकरण के दौर में आधुनिक तकनीकी संचार माध्यमों एंव आवागमन के साधनों में अबाध  वृद्धि इत्यादि शामिल है। देहव्यापार में शामिल अधिकाँश महिलाएं पिछड़े अथवा विकाशील देशों को ही होती है। वहीं अधिकाशंतः इनका उपभोग करने वाले सपन्न, धनाढ्य, अपराधी, सफेदपोश, एवं प्रभावशाली व्यक्ति होते हैं। इस व्यापार के कर्णधार सबल व्यक्ति, दुर्बल एवं असहाय तथा मजबूर व्यक्ति के शोषण से फलते-फूलते हैं।

जहाँ तक हमारे पड़ोसी देशों का संबध है, सबसे अधिक मात्रा में लड़कियों (अधिकाशंतः नाबालिग) की आवक नेपाल एवं बंगलादेश से होती है। इस दिशा में हए अध्ययनों के अनुसार अनुमानतः २ लाख से भी ज्यादा नेपाली मूल की महिलाएं भारत में देह व्यापार के क्षेत्र में संलिप्त पायी गयी हैं। भारत में लगती नेपाल एवं बंगलादेश की सीमाएं भौगोलिक दृष्टि से इस आवागमन को बाधित नहीं करती तथा इन सीमाओं पर तैनात हमारे सुरक्षाबल इस व्यापार के आवागमन के रोकने में सफल नहीं रहे हैं।

जबरन बेगार करवाने के संर्दभ में आधिकारिक पुष्ट आकड़ों का आज भी अभाव है। बेगार के द्वारा शोषण भारत में अबाध रूप से जारी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बंधुआमुक्ति मोर्चा बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया प्रकरण में विभिन्न कानूनी प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, यह निर्णय दिया था, कि जहाँ देनदार व लेनदार (क्रेडिटर एवं डेटर) का संबंध हो एवं न्यूनतम मजदूरी से कम का भी यदि भुगतान होता हो, तो वह बंधुआ मजदूरी मानी जाएगी। अध्ययनों के अनुसार आज भी हमारे देश में लगभग 350 मिलियन लोग जो असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, उनको न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं होता। लगभग 120 मिलियन बच्चे जो कि छः वर्ष से 14 वर्ष की उम्र के बीच के है, शिक्षा प्राप्त करने हेतु स्कूलों में जाने के असमर्थ हैं। बाल मजदूरों की संख्या भारत में अनुपात 60 मिलियन से 115 मिलियन हैं।

भारत में अनुमानतः २,66,847 बच्चे लापता है, जिनके बारे में जानकारी ही नहीं है, था पुलिस द्वारा उठाये गये कदमों के उपरान्त भी इनको खोजा नहीं जा सका है। उक्त बच्चे भी इस व्यापर की मार के पीड़ित बन चुके हों, ऐसी संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता है। यह दुखद पहलू है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 45,000 बच्चे लापता हो जाते हैं, परन्तु ठोस कदमों का इस दिशा में आज भी आभाव है। निठारी काण्ड को गंभीरता से लेते हुए, इस त्रासदी से निपटने का जिम्मा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने उठाया है, तथा अब कम से कम सकारात्मक परिणामों के आशा की जा सकती है। बच्चों के मुलभूत  मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने हे कन्वेशन ऑफ़ राइट्स ऑफ़ चाइल्ड को सकारात्मक रूप से लेकर इसके वास्तविक क्रियान्वयन की आज आवश्कता है। इस हेतु यदि हमें हमारे कानूनों में भी दई बदलाव करना पड़े, तो  भी उससे झिझकना नहीं चाहिए, अपितु अग्रगामी पहल करनी चाहिए।

भारत में मानव दुर्व्यापर हेतु आजकल मौरिज ब्यूरो, नौकरों दिलाने वाले संस्थान एवं कोचिग सेंटर, मसाज पार्लर, डांस बार इत्यादि की संलिप्तता भी सामने आयी है। इस व्यापार में नेटवर्क भी अति महत्वपूर्ण होता हैं जिसमें आपराधिक तत्वों से गठजोड़ वाले पुलिस, पासपोर्ट एंव आव्रजन कर्मचारी, रेल एवं बस कर्मी, टैक्सी, ऑटो चालक या रिक्शा चालक भी शामिल होते हैं। इस व्यापार के फूलने-फूलने में मुखबिरों हैं जिससे कुछ खिलाडी पर्दे के सामने व कुछ पर्दे के पीछे अपनी हरकतों को अंजाम देते हैं। आये दिन समाचार पत्रों के द्वारा झारखंड एवं छत्तीसगढ़ राज्यों से लायी गई  घरेलू नौकरियों की व्यथा पढ़ने को मिलती है। अरब देशो में बच्चों को ऊंट दौड़ के लिए जो जाना भी समाचार पत्रों द्वारा पढ़ने को मिलता है। इन सभी प्रकरणों में कितनी छोटी व कड़ी मछलियों को कानून द्वारा सजा मिली, आज भी ज्ञात नहीं है।

मानव दुर्व्यापार में जबरन बेगार अथवा शोषण संबधी विषयों पर अभी भी ठोस अध्ययनों का अभाव है, तथा कम मात्रा में शोधकार्य हुए हैं। मानव दुर्व्यापार में तीन महत्वपूर्ण बिंदु यथा रोकथाम, सुरक्षा तथा अभियोजन हैं, जिनमें सगठित आपराधिक तत्वों एवं समूहों की संलिप्तता तथा पीड़ितों के कष्टों के बीच परस्पर दूरी बहुत ज्यादा है, जो की अति  चिंतनीय है। यह कटु सत्य है, कि भारत इस व्यापार का एक प्रमुख स्रोत, आपूर्ति का मार्ग एवं गंतव्य स्थान तीनों हैं जहाँ हजारों की संख्या में स्त्रियों एवं बच्चों का प्रतिदिन भीषण शोषण हो रहा है।

इस व्यापर में पीड़ितों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में तथा गरीबी वाले इलाकों से आपेक्षाकृत सम्पन्न इलाकों में होती है। भारत से दूसरे देशों में पीड़ितों को मुख्यतया दिल्ली एवं मुम्बई के रास्ते भेजा जाता है। अध्ययनों के अनुसार उत्तरप्रदेश, राज्स्स्थान, आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटका, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्यों से इन पीड़ितों को बड़े शहरों में लाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह व्यापार बंगलादेश, नेपाल तथा सोवियत  संघ से अलग होकर बने गणराज्यों से होता है।

मानव दुर्व्यापार और भारतीय संविधान

मानव दुर्व्यापार भारतीय संविधान के अनुच्छेद २३ के अंतर्गत प्रतिबंधित है। जहाँ तक कानून विशेष का प्रश्न है, तो इस संबंध में पूर्व  में सम्प्रेशन ऑफ़ दी इम्मोरल ट्रेफिक एक्ट, 1956 लागू हुआ, तदुपरान्त इसमें संशोधन हुए, एवं इसका नया रूप इम्मोरल ट्रेफिक (प्रेवेंशन) एक्ट, 1986 हमारे देश में लागू किया गया। मानव दुर्व्यापार पर नियंत्रण हेतु भारत सरकार का गृह मंत्रालय,  राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग एवं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) प्रयत्नशील है, वहीं गैर सरकारी संगठन भी अपने-अपने स्तर पर इस विभीषिका से लड़ रहे हैं एवं जूझ रहे हैं।

मानव दुर्व्यापार जैसी त्रासदी के समाधान हेतु कानून को और  प्रभावी व मजबूत बनाना होता। इसे हेतु प्रयास यह होने चाहिए कि पीड़ित को न्याय, वह भी त्वरित न्याय मिले, उसका प्रभावी ढंग से पुनर्वास हो, जो महज कागजी दिखावा मात्र नहीं होना चाहिए। मानव दुर्व्यापार में मात्र  नहीं होना चाहिए, अपितु पीड़ित को स्वावलंबी बनाकर उसके स्थायी पुनर्वास को सुनिश्चित करना चाहिए। मानव दुर्व्यापार में मात्र गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने या इटपा की कनूनी खानापूर्ति से काम नहीं चलेगा। इस त्रासदी से निपटने हेतु व्यापक एवं प्रभावी कार्य योजना को लागू करना अति आवश्यक है। यथासंभव भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं एवं जुवेंनाइल (केयर एवं प्रोटेक्सन) एक्ट को भी  प्रभावी ढंग से प्रयोग में लाने की आवश्यकता आज के समय की मांग है।

जबरन बेगार से लड़ने हेतु बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) एक्ट के बारे में व्यापक जागरूकता उत्पन्न करने तथा सरकारी तंत्र को इस बारे में सक्रिय करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही पड़ोसी राष्ट्रों की सरकारों के  मध्य दुर्व्यापार के उन्मूलन हेतु संयुक्त कार्य योजना तैयार करने की भी आवश्यकता है, जिससे कि इस त्रासदी से डटकर मुकाबला किया जा सके । इस दिशा में दक्षिण एशिया में विभिन्न राष्ट्रों के राष्ट्रीय मानव अधिकार आपसी समन्वय एवं पर्यवेक्षण के द्वारा पहल कसर सकते हैं।

भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को बंधुआ मजदूरी प्रथा के उन्मूलन हेतु भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकृत किया है। आयोग ने इस दिशा में सराहनीय कार्य करते हुए बंधुआ मजदूरी से त्रस्त विभिन्न पीड़ितों को अपनी स्वयं की जाँच के आधार पर विगत वर्षों में मुक्ति प्रमाणपत्र जारी करवा का रंका पुनर्वास भी सुनिश्चित करवाया है। इसी प्रकार यौन शोषण के विभिन्न प्रकरणों में विशेषतः गोंडा के सर्कस केस में  आयोग ने प्रभावी भूमिका का निर्वहन करते हुए दोषियों को कानून के हवाले करवाकर तथा पीड़ितों को मुक्ति व न्याय दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आयोग के द्वारा मानव दुर्व्यापार के विभिन्न प्रकरणों में सकरात्मक कदम उठाने से देश में इन विषय के प्रति जागरूकता एवं संवेदना का विकास हुआ है। आयोग द्वारा प्रायोजित विभिन्न कार्यशालाएँ एवं  प्रशिक्षण कार्यक्रम इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुए हैं। मानव दुर्व्यापार  एक ऐसे त्रासदी है, जिसके उन्मूलन हेतु सरकार एवं  समाज के विभिन्न अंगों को मिलकर  लड़ना होगा, एकजुटता के साथ मुकाबल करना होगा। यह समस्त मानव समाज के सामने मुलभूत मानव अधिकारों को स्थापित करने की चुनौती है, जिसे हम सभी को स्वीकार करके, एक सार्थक पहल करनी होगी।

लेखन : डॉ सरोज व्यास

स्रोत: मानव अधिकार आयोग, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 3/8/2024



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