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हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन

हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन

पृष्ठभूमि

मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें भूमि की आवश्यकता नहीं होती है और जिसकी संसाधनों के लिए खेती की अन्य प्रणालियों के साथ कोई स्पर्धा नहीं है। इससे वन तथा चरागाह पारिस्थितिक प्रणालियों के संरक्षण में भी सहायता मिलती है क्योंकि मधुमक्खियां सर्वाधिक कुशल परागकों में से एक हैं। मधुमक्खी पालन के लिए निवेश अधिकांशतः साधारण हैं जो स्थानीय रूप से उपलब्ध होते हैं। मधुमक्खियों की एक अन्य महत्वपूर्ण भूमिका यह है कि ये प्रभावी पर-परागण के द्वारा कृषि, बागवानी तथा चारा फसलों की उत्पादकता को बढ़ा देती हैं लेकिन इस पहलू को अभी तक व्यापक रूप से मान्यता नहीं प्राप्त हुई है। ऐसा अनुमान है कि पराग के रूप में मधुमक्खी का मूल्य उनके शहद के उत्पादकों तथा छत्ते के अन्य उत्पादों की तुलना में लगभग 18-20 गुना अधिक है।

मधुमक्खियां तथा मधुमक्खी पालन फसल परागण के रूप में पारिस्थितिक प्रणाली को अपनी निशुल्क सेवाएं प्रदान करते हैं और इस प्रकार वन तथा चरागाह पारिस्थितिक प्रणालियों के संरक्षण में सहायता करते हैं। किसानों की अर्थव्यवस्था को पर्याप्त रूप से सुधारने में मधुमक्खी पालन की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है क्योंकि इसे ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा वहां रहने वाले समुदायों की प्राकृतिक विरासत से जोड़ा गया है। अतः यह टिकाऊ विकास तथा जैविक खेती संबंधी कार्यक्रमों के लिए वर्तमान कार्यनीतियों का एक महत्वपूर्ण घटक बनता जा रहा है।

मधुमक्खियों तथा शहद का भारतीय महाकाव्यों में विशेष उल्लेख है तथा शहद के लिए मधुमक्खियों का उपयोग 2000 से 2500 वर्ष पुराना है। वर्तमान में मधुमक्खियों की कुल चार प्रजातियों नामतः रॉक हनी बी, एपिस डोर्साटा एफ.; लिटिल हनी बी, एपिस फ्लोरी एल.; इंडियन हुनी बी, एपिस केराना एफ. और यूरोपियन हनी बी, एपिस मेलीफेरा एल. को भारत में विभिन्न फसलों के परागण के साथ-साथ शहद के उत्पादन हेतु एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। वर्तमान में अधिकांश देशों में मधुमक्खी पालन में यूरोपियन मधुमक्खी, ए. मेलीफेरा का उपयोग किया जा रहा है। जो लगभग सभी परीक्षणों में भारतीय मधुमक्खी, ए. केराना से आगे निकल गई है।

मधुमक्खी पालन ग्रामीण बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार का एक उत्कृष्ट स्रोत है। इससे किसानों तथा भूमिहीन मधुमक्खीपालकों की आय में वृद्धि होती है। अनेक छोटे पैमाने के उद्योग मधुमक्खियों तथा मधुमक्खी उत्पादों पर निर्भर हैं। शहद तथा छत्ते के अन्य उत्पादों का फार्मास्यूटिकल, मधुमक्खी के मोम उद्योग, मधुमक्खी के विष, रॉयल जेली, मधुमक्खी नर्सरियों, मधुमक्खी उपकरणों, छत्तों आदि के रूप में उपयोग होता है।

वर्तमान में भारत में लगभग 2.0 मिलियन मधुमक्खी क्लोनियाँ हैं जिनसे प्रति वर्ष लगभग 80,000 मीट्रिक टन शहद (जिसमें वन्य मधुमक्खियों से प्राप्त होने वाला शहद भी शामिल है) उत्पन्न होता है। भारत में लगभग 120 मिलियन मधुमक्खी क्लोनियाँ रखने की क्षमता है जिससे 12 मिलियन से अधिक ग्रामीण तथा आदिवासी परिवारों को स्वरोजगार प्राप्त हो सकता है। उत्पादन के संदर्भ में कहा जा सकता है कि इन क्लोनियों  से 1.2 मिलियन टन से अधिक शहद और लगभग 15,000 टन मधुमक्खी का मोम प्राप्त हो सकता है।

मधुमक्खी पालन की स्थिति और संभावनाएं

हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन के लिए दो विशिष्ट अंचल हैं।

उत्तरी अंचल

उत्तरी अंचल जहां अपेक्षाकृत कम तापमान (44° से. तक) तथा उच्च आर्द्रता हैं (30 प्रतिशत से अधिक) को अभाव की अवधि के दौरान देखा जाता है।

दक्षिण पश्चिम अंचल

यहां गर्मियों के महीनों के दौरान उच्च तापमान (लगभग 48° से.) तथा निम्न आर्द्रता (15% या इससे कम) की दशाएं होती हैं। राज्य में विभिन्न प्रकार की मृदाओं, सिंचाई संबंधी सुविधाओं, तापमान, सापेक्ष आर्द्रता व कृषि-जलवायु संबंधी दशाओं के कारण विभिन्न फसल पद्धतियां अपनाई जाती हैं जो एपिस मेलिफेरा के साथ मधुमक्खी पालन के लिए अत्यंत अनुकूल हैं।

एपिस मेलिफेरा मधुमक्खियां

हरियाणा राज्य में वाणिज्यिक मधुमक्खी पालक एपिस मेलिफेरा मधुमक्खियां पालते हैं। जिनकी रानी शहद प्रवाह के मौसम के दौरान बहुत तेजी से अर्थात् प्रतिदिन लगभग 1500-2000 अंडे देती है। अतः क्लोनियाँ सदैव सशक्त बनी रहती हैं। अभाव की अवधि में उनकी शक्ति को बनाए। रखने के लिए इन क्लोनियों  को नियमित रूप से ऐसे क्षेत्रों में ले जाया जाता है जहां उस मौसम में प्रचुर संख्या में मधुमक्खियों के लिए वनस्पति जगत उपलब्ध होता है। हरियाणा के उत्तरी अंचल में सफेदा, तोरिया, अरहर, सूरजमुखी, बरसीम आदि काफी मात्रा में उगाए जाते हैं जबकि दक्षिण पश्चिम अंचल में सरसों, बबूल (एकेशिया), बेर, बाजरा और कपास जैसी फसलें बड़े क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।

मधुमक्खी पालन क्षमता और संभावना

हरियाणा में अब भी मधुमक्खी पालन के विविधीकरण की व्यापक क्षमता और संभावना है। शहद के अतिरिक्त इससे अन्य उत्पादों जैसे मधुमक्खी के मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जेली और मधुमक्खी के विष जैसे अन्य छत्ता उत्पादों के उत्पादन व विपणन की भी पर्याप्त संभावना है। इसके अतिरिक्त पैकेज मक्खी की बिक्री, रानी की संतति के पालन तथा बिक्री की भी उद्यमशीलता के क्षेत्र में अत्यधिक संभावना है। परागण के लिए मधुमक्खी की क्लोनियों  को किराए पर देना मधुमक्खी पालकों की आमदनी का एक अन्य साधन है। मधुमक्खी पालकों को सीधे-सीधे रोजगार देने के अलावा अच्छी दस्तकारी के लिए मधुमक्खी विनिर्माताओं को भी मधुमक्खियों की आवश्यकता है। इसके अलावा मधुमक्खी संबंधी उपकरण व मशीनरी के निर्माता, क्लोनियों  को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए परिवहन, व्यापारी, उत्पाद गुणवत्ता संबंधी विशेषज्ञ, पैकर, विक्रेता, कच्चे माल के नए डीलर आदि व अन्य संबंधित उद्योग भी मधुमक्खी पालन जैसे उपक्रम से जुड़े हुए हैं और वे भी इससे लाभान्वित होते हैं। तथापि, इस उद्योग का अभी तक पर्याप्त दोहन नहीं हुआ है, अतः इस क्षेत्र में अभी व्यापक संभावनाएं हैं।

उच्च उत्पादकता के लिए मधुमक्खी क्लोनियों  का प्रबंध

मधुमक्खी क्लोनियों  की उत्पादकता मधुमक्खियों के लिए उपलब्ध वनस्पति जगत, अनुकूल मौसम संबंधी दशाओं व क्लोनियों  के प्रबंध पर निर्भर है। शहद तैयार होने के मुख्य मौसम के अलावा मौसम न होने के दौरान भी मधुमक्खी की क्लोनियों  का प्रबंध उच्चतर शहद उत्पादन प्राप्त करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मधुमक्खी पालन के लिए प्रयुक्त उपकरण भी वैज्ञानिक स्तर पर मधुमक्खी पालन का अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। अतः इसकी गुणवत्ता तथा इसके उचित उपयोग से क्लोनियों  के निष्पादन में काफी वृद्धि होगी। हरियाणा में मधुमक्खी की क्लोनियों  की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक हैं –

  • मानक उपकरण का उपयोग;
  • क्लोनियों  का चयन;
  • सशक्त क्लोनियों  का रखरखाव;
  • रानी एक्सक्लूडर का उपयोग;
  • चयनशील विभाजन;
  • संक्रमित/रोगग्रस्त क्लोनियों  की पहचान व उनका विलगन;
  • उचित व समय पर प्रवाशन;
  • मधुमक्खी झुण्डों को बचाकर रखना;
  • विदेशी या बाहरी झुण्डों का छत्ता बनाना;
  • चोरी को रोकना

ड्रोन के साथ गुणवत्तापूर्ण रानी मधुमक्खी का युग्मन, मौसम न होने पर कालोनी का प्रबंध; गुणवत्तापूर्ण शहद उत्पादन तथा खुले भरण से बचना ऐसे पहलू हैं जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

उत्पादों के लिए छत्ता प्रौद्योगिकियां

विभिन्न छत्ता उत्पादों के उत्पादन के लिए अब भारत में प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं लेकिन इन्हें किसानों के खेतों में मानकीकृत किए जाने की आवश्यकता है। हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने के लिए इन उत्पादों का कार्यान्वयन तथा वाणिज्यीकरण होना अनिवार्य है।

आजकल, शहद को भोजन तथा भोजन के एक घटक के रूप में उपयोग में लाया जाता है। भोजन के रूप में इसका उपयोग बेक किए गए उत्पादों जैसे केक, बिस्कुट, ब्रेड, कन्फेक्शनरी उत्पादों, कैंडी, जैम, स्प्रेड्स और दुग्ध उत्पादों में होता है। शहद किण्वन के उत्पादों में शहद का सिरका, शहद की बियर तथा एल्कोहॉली पेय शामिल हैं। शहद का उपयोग तम्बाकू उद्योग में तम्बाकू की गंध को सुधारने तथा उसे परिरक्षित करने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त शहद का सौंदर्य उत्पादों जैसे मलहम, लोशन, क्रीम, शैम्पू, साबुन, टूथ पेस्ट, दुर्गधनाशक, चेहरे की नकाबों, मेक-अप, लिपस्टिक, इत्र आदि के रूप में भी इस्तेमाल होता है।

हरियाणा के महत्वपूर्ण छत्ता उत्पादों में केवल छत्ते से मिलने वाले शहद से ही नकद धनराशि प्राप्त होती है। वर्तमान में शहद को निकालकर उसका प्रसंस्करण परंपरागत और आधुनिक, दोनों विधियों से किया जाता है। हरियाणा में केवल चार मझोले स्तर के प्रसंस्करण संयंत्र हैं, जो मुरथल (1), अम्बाला (1) और यमुनानगर (2) में हैं। चार छोटे पैमाने के शहद प्रसंस्करण संयंत्र करनाल (1), सोनीपत (1), हिसार (1) और रोहतक (1) हैं। हरियाणा कृषि उद्योग निगम (एचएआईसी) लिमिटेड एक पंजीकृत सोसायटी है जिसके मुरथल व सोनीपत में अनुसंधान एवं विकास केन्द्र हैं। इस केन्द्र में शहद प्रसंस्करण इकाई है जिसकी प्रसंस्करण क्षमता एक मीट्रिक टन प्रतिदिन है। इसमें शहद के विपणन के लिए एचएएफईडी (हरियाणा सरकार फेडरेशन) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो ‘हरियाणा मधु' के ब्राण्ड नाम से इस केन्द्र द्वारा खरीदे गए व प्रसंस्कृत शहद को बाजार में बेचेगी। यह केन्द्र 5 रु./कि.ग्रा. की दर से किसानों के शहद का भी प्रसंस्करण करता है लेकिन इस क्षेत्र में प्रतिक्रिया अभी उत्साहवर्धक नहीं है। राज्य सरकार को अनुदानित दरों पर किसानों के शहद के प्रसंस्करण की संभावना को तलाशना चाहिए तथा कार्य न करने वाले प्रसंस्करण संयंत्रों को उपयोग में लाने योग्य बनाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। इसके अतिरिक्त शहद प्रसंस्करण नीति बनाने की भी जरूरत है तथा हरियाणा में और अधिक प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।

वर्तमान में , शहद तथा मधुमक्खी के अन्य उत्पादों के मूल्यवर्धन पर प्रमुख बल दिया जा रहा है। सरकारी संगठनों जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना; केन्द्रीय खाद्य एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई), मैसूर, केन्द्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (सीबीआरटीआई), पुणे; तथा निजी उद्योग (विशेष रूप से मैसर्स काश्मीर एपैरीस एक्सपोर्टस) ने अधिक लाभ प्राप्त करने में मधुमक्खी पालकों व मधुमक्खी उद्योग को सहायता प्रदान करना आरंभ किया है। काश्मीर एपैरीस एक्सपोर्ट एंड लिटिल बी इम्पेक्स (दोराहा, लुधियाना), धनिया, लीची, सूरजमुखी, अनेक पुष्पों, शिवालिक, जामुन तथा जैविक/ वन आदि पर पलने वाली मधुमक्खियों से शहद प्राप्त कर रहे हैं। कुछ और फसलें भी हैं जिनसे शहद प्राप्त किया जाता है। इन फर्मों के कुछ मूल्यवर्धित उत्पाद हैं हनी 'एन' लेमन, हनी ‘एन’ जिंजर, हनी 'एन' सिनामन, हनी ‘एन तुलसी । अनेक प्रकार के शहद तथा फल स्प्रेड, हनी 'एन' नट्स, हनी 'एन' ड्राई फ्रट्स, हनी बेस्ड टी; हनी बेस्ड सोसिस/सिरप/शेक आदि भी उत्पन्न करके बेचे जा रहे थे।

इस उद्योग का अभी तक हरियाणा में पर्याप्त दोहन नहीं हुआ है और इसकी वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। वाणिज्यिक मधुमक्खी पालकों को मूल्यवर्धित उत्पादों को तैयार करने संबंधी गतिविधियों में सहायता प्रदान की जा सकती है ताकि जहां वे एक ओर रोजगार सृजन में वृद्धि कर सकें वहीं दूसरी ओर शहद के उत्पादन में मधुमक्खी पालकों को बेहतर लाभदायक मूल्य प्रदान कर सके। इस संबंध में राज्य में शहद के विभिन्न मूल्यवर्धित उत्पादों को तैयार करने के लिए बुनियादी ढांचे संबंधी सुविधाओं के सृजन की आवश्यकता है। शहद के अतिरिक्त हरियाणा में अन्य उत्पादों जैसे मधुमक्खी के मोम, रॉयल जेली, मधुमक्खी के विष, प्रापलिस, पराग आदि के वाणिज्यीकरण की भी जरूरत है क्योंकि इनके अनेक उपयोग हैं और इनके निर्यात से विदेशी मुद्रा कमाने की काफी संभावना है। तथापि, तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण इस राज्य में अभी ऐसे उत्पादों की मौजूदगी कम है जिसे बढ़ाने की जरूरत है।

फसल परागण तथा परागकों का संरक्षण

वर्तमान में हरियाणा राज्य में ए. मेलिफेरा सब्जियों, तिलहनी फसलों, फलों, चारा फसलों तथा अन्य विभिन्न फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ऐसा अनुमान है कि केवल मधुमक्खी के परागण के कारण विभिन्न फसलों की उत्पादकता में 252 से 1605 मीट्रिक टन की वृद्धि होती है। तथापि, हाल के वर्षों में अनेक कारणों से भारतीय उप महाद्वीप के अन्य भागों के समान हरियाणा राज्य में भी परागकों की संख्या में कमी आ रही है। इनमें से कुछ प्रमुख कारक हैं  -

  • रासायनिक नाशकजीवनाशियों का आवश्यकता से अधिक और गैर-सोचे समझे उपयोग;
  • भूमि उपयोग में परिवर्तन,
  • एकल फसल उगाना और निर्वनीकरण;
  • वन्य मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकालने के लिए परंपरागत विधियों का उपयोग;
  • देसी परागकों के संरक्षण की दिशा में न्यूनतम प्रयास;
  • मधुमक्खियों द्वारा परागित होने की दृष्टि से उपयुक्त उच्च उपजशील संकुल और संकर किस्मों के उपयोग को बढ़ावा न दिया जाना तथा कृषि का गहनीकरण;
  • वैश्विक ऊष्मन/जलवायु परिवर्तन; विदेशी सब्जियों की खेती की शुरूआत;
  • प्राकृतिक चरागाह भूमियों का विनाश;
  • किसानों तथा जन-सामान्य में मधुमक्खियों सहित परागकों द्वारा फसलोत्पादन में निभाई जाने वाली उल्लेखनीय भूमिका के बारे में जागरूकता का न होना;
  • प्राकृतिक आपदाएं तथा वनों में समय-समय पर आग लगना और प्रवर्धनात्मक नीतियों की कमी।

हरियाणा के मधुमक्खी पालकों द्वारा जिन समस्याओं का सामना किया जा रहा है उनमें से एक प्रमुख समस्या यह है कि विभिन्न कृषि तथा बागवानी फसलों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के नाशकजीव आक्रमण करते हैं और फसलों की सुरक्षा के लिए राज्य के विविध कृषि जलवायु वाले अंचलों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाशकजीवनाशियों का उपयोग किया जा रहा है। इस दृष्टि से फसल के पुष्पन की अवधि के दौरान कीटनाशियों का उपयोग चिंता का प्रमुख विषय है। मधुमक्खी वनस्पति जगत की फसलों जैसे बैंसिका जंसिया, बैंसिका नैपस, बैंसिका रापा, सेसेमम इंडिकम, ट्राइफोलियम एलेक्जेंड्रिनम, हेलियंथस एनस, फल तथा सब्जी फसलों में उनके पुष्पन की अवधि में कीटनाशियों के उपयोग से परागकों को बहुत क्षति हो सकती है। इससे बड़े पैमाने पर मधुमक्खियों तथा अन्य परागकों की मृत्यु हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप मधुमक्खी क्लोनियों  के साथ-साथ फसलों की उत्पादकता में भी कमी आ जाती है क्योंकि परागकों की संख्या घट जाती है।

परागकों के संरक्षण के लिए कार्यनीतियां

  • हरियाणा राज्य में मधुमक्खियों तथा अन्य परागकों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कार्यनीतियां अपनाई जानी चाहिए;
  • ब्रॉड स्पैक्ट्रम नाशकजीवनाशियों के उपयोग से बचना;
  • केवल चयनशील तथा अपेक्षाकृत पर्यावरणीय मित्र (आरईएफ) नाशकजीवनाशियों का, जहां कहीं आवश्यक हो, उपयोग किया जाना;
  • नाशकजीवनाशियों की अनुशंसित खुराक व सांद्रता का उपयोग होना;
  • फसलों में पुष्पन की अवधि के दौरान नाशकजीवनाशियों के उपयोग से बचना;
  • यह उपयोगी होगा कि मधुमक्खियों की क्लोनियों  को नाशकजीवनाशियों से उपचारित खेतों से यथासंभव दूर रखा जाए;
  • नाशकजीवनाशियों का उपयोग, यदि संभव हो तो, प्रातःकाल या शाम ढलने के बाद किया जाना चाहिए;
  • किसानों तथा बागवानों के बीच नाशकजीवनाशियों के अनुप्रयोग की अनुसूचियों तथा परागकों में होने वाली कीटनाशी विषाक्तता के बारे में जागरूकता सृजित करने की आवश्यकता है;
  • समेकित नाशकजीव प्रबंध कार्यक्रमों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए, ताकि विषैले रसायनों का उपयोग कम से कम किया जाए;
  • वानस्पतिक विविधता का संरक्षण करते हुए उसका रखरखाव किया जाना चाहिए, ताकि वन्य परागकों को प्रोत्साहन मिल सके;
  • कीट परागकों को बड़े पैमाने पर पालने की तकनीक विकसित करने तथा उनके प्राकृतिक आवास स्थलों का सर्वेक्षण करने की बहुत जरूरत है;
  • अन्य कृषि निवेशों के समान प्रबंधित परागण को भी कृषि तथा बागवानी विभागों के कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए;
  • परागकों के लिए अनुकूल प्रबंधन विधियों का अपनाना;

हरित लेखाकरण, किसानों तथा जन-सामान्य के बीच परागक जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए तथा परागण संबंधी मुद्दों में एकीकरण लाने को क्षेत्रीय नीतियों, जिनमें कृषि तथा पर्यावरण संबंधी नीतियां भी शामिल हैं, के अंतर्गत लाया जाना चाहिए।

हरियाणा में परागक कीटनाशियों की विषालुता से प्रभावित होते हैं और इसके अनेक घटक हैं, जैसे फसलों की अवस्था; कीटनाशियों के उपयोग का समय; नाशकजीवनाशियों की प्रकृति, कीटनाशियों के फार्मूलेशन का प्रकार आदि। विषालु रसायनों के प्रभाव से निपटने के लिए इस रिपोर्ट में अनेक उपायों की अनुशंसा की गई है, ताकि मधुमक्खियों सहित अन्य परागकों में नाशकजीवनाशी विषालुता को न्यूनतम किया जा सके। इन उपायों को अपनाकर किसान और साथ-साथ मधुमक्खी पालक भी अपने-अपने क्षेत्रों में खेतों के साथ-साथ छत्तों में मधुमक्खियों तथा अन्य परागकों की उच्चतर संख्या बनाए रख सकते हैं। इससे किसानों को बीज या फल के उच्चतर उत्पादन से तो लाभ होगा ही, शहद का भी अधिक उत्पादन प्राप्त होगा। इस प्रक्रिया से अन्य किसान तथा मधुमक्खी पालक प्रकृति तथा किसानों के बीच के इस लाभदायक बंधन के बारे में जानकर लाभ उठा सकेंगे। इसे देखते हुए कानून बनाकर या उन्नत नाशकजीव नियंत्रण कार्यक्रमों के माध्यम से नाशकजीवनाशियों के हानिकारक प्रभाव को नियंत्रित करने की तत्काल आवश्यकता है।

हरियाणा राज्य में लगभग 250 पादप प्रजातियों की मधुमक्खियों को शरण देने वाली प्रजातियों के रूप में पहचान की गई है जिनसे मधुमक्खियां अपनी वृद्धि और विकास के लिए पुष्प रस तथा पराग एकत्र करती हैं। कुल मधुमक्खी वनस्पति जगत में 19 प्रजातियां पुष्प रस का स्रोत हैं, 21 प्रजातियां पराग का स्रोत हैं तथा 200 प्रजातियां पराग और पुष्प रस, दोनों का स्रोत हैं। मधुमक्खी वनस्पति जगत की सापेक्ष उपयोगिता के अनुसार पादप प्रजातियों को चार श्रेणियों में समूहीकृत किया गया है। नौ पादप प्रजातियों को मुख्य श्रेणी में शामिल किया गया है जो पुष्प रस तथा पराग अथवा दोनों का अत्यधिक समृद्ध स्रोत हैं। इनका क्षेत्र राज्य में काफी अधिक है। इनमें से सरसों, सफेदा, बरसीम, सूरजमुखी, बाजरा, कपास, अरहर, बबूल और नीम प्रमुख स्रोत हैं। जहां ये स्रोत अनवरत रूप से उपलब्ध हैं वहां अनेक प्रकार से शहद निकालना संभव है। बीस पादप प्रजातियां ऐसी हैं जो मधुमक्खियों के लिए मध्यम उपयोग वाले वनस्पति जगत में आती हैं और पुष्प रस, पराग अथवा दोनों का समृद्ध स्रोत हैं और ये राज्य में प्रचुरता में पाई जाती हैं। इन स्रोतों का उपयोग मुख्यतः वर्षभर कालोनी को सशक्त बनाए रखने में किया जाता है। गौण तथा निम्न उपयोग की श्रेणी वाले मधुमक्खी वनस्पति जगत में क्रमशः 45 से 95 पादप प्रजातियां हैं। ये पादप प्रजातियां पुष्प रस तथा पराग का या तो घटिया/अत्यंत घटिया स्रोत हैं अथवा उनकी गहनता अत्यंत दुर्लभ है। ये स्रोत मधुमक्खियों के लिए अपेक्षाकृत कम महत्व के हैं और केवल खाद्य स्रोतों के रूप में ही उपयोगी हैं।

गहन कृषि के लिए निर्वनीकरण तथा बंजर भूमि की सफाई के कारण मधुमक्खियों के वनस्पति जगत में आने वाली कमी हरियाणा में मधुमक्खी पालन के लिए एक गंभीर आघात है। वनीकरण के माध्यम से मधुमक्खी वनस्पति जगत के प्रवर्धन तथा बड़े पैमाने पर पौधा रोपण को अनेक उपयोगों से युक्त वनस्पति रोपण के सिद्धांत के आधार पर किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि केवल मधुमक्खियां ही इसका उपयोग करें। ये वृक्षारोपण सड़कों के किनारे, रेलवे लाइनों के किनारे तथा बंजर भूमियों पर किसी केन्द्रीय एजेंसी की सहायता से किए जाने चाहिए। लोगों को सामाजिक वानिकी, कृषि वानिकी तथा मधुमक्खी वानिकी योजनाओं के अंतर्गत मधुमक्खी वनस्पति जगत का रोपण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

मधुमक्खियों के नाशकजीव, परभक्षी, रोग व उनका प्रबंध

हरियाणा में मधुमक्खियों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण शत्रुओं में परभक्षी कुटकियां, मोम के मत्कुण, परभक्षी बर्र, भूग, चीटियां तथा पक्षी शामिल हैं। मधुमक्खी क्लोनियों  को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण कुटकियां ट्रोपिलीलैप्स क्लेरेई तथा वैरोओ डिस्ट्रेक्टर हैं। परजीवी कुटकियों के अलावा हरियाणा में क्लोनियों  पर आक्रमण करने वाले सबसे महत्वपूर्ण नाशकजीवों तथा परभक्षियों में गैलेरिया मेलोनेला तथा एकोरिया ग्रीसेल्ला जैसे मोम के मत्कुण; वेस्पा मैग्नीफिका, वी. औरेरिया, वी. बैसेलिस आदि जैसे परभक्षी बर्र तथा ग्रीन बी–यीटर, किंग क्रो आदि जैसे परभक्षी पक्षी शामिल हैं। हरियाणा राज्य में मधुमक्खियों की क्लोनियों  को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण रोग हैं  - यूरोपीय फाउलबूड, नोसेमा, सैक बूड आदि।

हरियाणा में मधुमक्खियों के रोगों तथा शत्रुओं के प्रकोप को प्रबंधित करने की तत्काल आवश्यकता है जिसके लिए अनुसंधानकर्ताओं द्वारा निम्न कार्यनीतियों को वैज्ञानिक हल के रूप में अपनाने की सलाह दी गई है-

  • रोग तथा नाशीजीव प्रबंध की रसायनहीन विधियों का विकास;
  • रासायनिक उपायों को उचित रूप से सुधारना;
  • कालोनी की उत्पादकता पर अवैज्ञानिक विधियों के मात्रात्मक प्रभाव का आकलन;
  • पहचान में सहायता पहुंचाना;
  • नाशकजीव और रोग प्रबंध पर अद्यतन सूचना उपलब्ध कराना;
  • नाशकजीव और रोग प्रबंध के लिए सटीक विधियों का प्रदर्शन;
  • मधुमक्खी पालकों द्वारा अपनाई जाने वाली गलत विधियों के कारण होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता लाना;
  • मधुमक्खियों के रोगों तथा शत्रुओं की उचित पहचान; रोगों तथा नाशकजीवों के फैलाव के कारणों को नियंत्रित करना;
  • स्वस्थ तथा संक्रमित छत्तों के बीच भेद करते हुए संक्रमित छत्तों को अलग करना;
  • खुले में भरण;
  • मधुमक्खी कालोनी की चोरी, पास की मधुमक्खी क्लोनियों  में परस्पर चोरी;
  • मधुमक्खियों का एक कालोनी से दूसरी कालोनी में पहुंच जाना;
  • संदूषित उपकरणों का उपयोग;
  • विदेशी मधुमक्खियों के झुण्ड को पकड़कर उनके छत्ते बनाना;
  • क्लोनियों  की खरीद-फरोख्त; रसायनहीन उपायों को प्रश्रय देना तथा केवल अनुशंसित विधियों को ही अपनाना।

मधुमक्खी पालन में विपणन तथा इसका अर्थशास्त्र

हरियाणा में मधुमक्खी पालन की लाभप्रदता में सुधार के लिए दो महत्वपूर्ण पहलुओं नामतः शहद के विपणन तथा मधुमक्खी पालन के अर्थशास्त्र को विकसित किया जाना चाहिए। वर्तमान में हरियाणा के मधुमक्खी पालक एपिस मेलीफेरा मधुमक्खी पालकर बड़ी मात्रा में शहद का उत्पादन कर रहे हैं तथा लगभग सभी शहद थोक बाजार में बेचा जाता है। ये मधुमक्खी पालक अपने शहद को फुटकर बाजार में बेचने का प्रयास नहीं करते हैं। अधिकांश मधुमक्खी पालकों को मात्र यह याद होता है कि एक निश्चित मौसम के दौरान उन्होंने शहद की कितनी बाल्टियां बेची हैं लेकिन वे मधुमक्खी पालन उद्यम में होने वाले व्यय तथा आय का कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं।

शहद के बेहतर बाजार के लिए मधुमक्खी पालकों को शहद को बोतलबंद करने, लेबलीकरण, प्रस्तुतीकरण व शहद की गुणवत्ता को बढ़ाने व उसे बनाए रखने के महत्व के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। हरियाणा में शहद के विपणन से संबंधित अनेक ऐसे पहलू हैं जिन पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है वो इस प्रकार से हैं –

  • थोक तथा फुटकर विपणन में संतुलन;
  • मूल्यवर्धन द्वारा उत्पादों की सूची में विस्तार;
  • नए बाजार के लिए विज्ञापन तथा ब्राण्ड को बढ़ावा देना;
  • बेरोजगार ग्रामीण युवाओं को शामिल करके शहद को ठेके पर फुटकर में बेचना, शहरी बाजार, आकर्षक उपहार पैकिंग;
  • आकर्षक बोतलें;
  • सड़कों के किनारे शहद को आकर्षक रूप से प्रदर्शित करना;
  • त्यौहारों तथा मेलों में शहद का प्रदर्शन;
  • प्रिंट माध्यम तथा दृश्य-श्रवय माध्यमों से प्रवर्धन।

अभी तक हरियाणा में मधुमक्खी पालन के अर्थशास्त्र पर ऐसा कोई क्रमवार अध्ययन नहीं हुआ है जिसमें इस उद्यम के अत्यधिक महत्व को प्रदर्शित किया गया हो। इस रिपोर्ट में क्षेत्र के विभिन्न मधुमक्खी वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के आधार पर मधुमक्खी पालन के अर्थशास्त्र का पता लगाया गया है। ऐसा विश्लेषण व्यापक दिशानिर्देश विकसित करने में सहायक होगा ताकि विभिन्न प्रौद्योगिकी स्तरों पर भिन्न-भिन्न लक्ष्य समूहों के लिए मधुमक्खी पालन को उद्यम के रूप में विकसित करने के लिए आगे की कार्रवाई आरंभ की जा सके।

मधुमक्खी पालन उद्योग में आने वाली बाधाओं का विश्लेषण मधुमक्खी पालन को शैक्षणिक संस्थाओं तथा सरकारी स्तर पर उचित मान्यता नहीं प्राप्त हो सकी है। मधुमक्खियों के नाशकजीवों तथा रोगों के निदान, बचाव एवं नियंत्रण के साथ-साथ उनके प्रबंध के लिए प्रयोगशाला संबंधी पर्याप्त सुविधाओं की कमी; निर्वनीकरण तथा पुष्पीय संसाधनों में कमी; मधुमक्खी की क्लोनियों  को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में आने वाली कठिनाइयां; एपिस मेलीफेरा के मूल स्टॉक की मात्रा में कमी; मधुमक्खी पालकों को आपूर्त किए जाने के लिए आनुवंशिक रूप से श्रेष्ठ रानी मधुमक्खियों को बड़े पैमाने पर उत्पन्न करने के लिए तृणमूल स्तर के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर बुनियादी ढांचे की कमी; किसानों/मधुमक्खी पालकों को वैज्ञानिक विधि से मधुमक्खी पालन में व्यवहारिक प्रशिक्षण देने के लिए उपलब्ध सुविधाओं की कमी; उच्च शहद की प्राप्ति के लिए मधुमक्खियों की क्लोनियों  के कारगर प्रबंध हेतु तकनीकी ज्ञान की कमी; शहद तथा अन्य छत्ता उत्पादों के उत्पादन के लिए गुणवत्ता का उचित प्रबंध न किया जाना; कीटनाशियों, खरपतवारनाशियों तथा नाशकजीवनाशियों का गैर सोचे-समझे उपयोग; प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियां तथा पानी और हवा का प्रदूषण; शहद तथा इसके उत्पादों के बारे में उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी; सटीक वैज्ञानिक डेटाबेस जैसे हरियाणा में मधुमक्खी पालन उद्योग की क्षमता, वर्तमान स्थिति और भावी संभावनाओं के बारे में विरोधाभासी आंकड़े तथा मधुमक्खी पालन के लिए पर्याप्त अनुसंधान सुविधाओं की कमी।

मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण, विस्तार तथा अनुसंधान

हरियाणा में अनेक वर्षों से मधुमक्खी पालन किया जा रहा है तथा यह राज्य के हजारों किसानों की आमदनी का साधन है। वैज्ञानिकों, विस्तार अधिकारियों तथा कर्मियों तथा वस्तुतः हरियाणा के मधुमक्खी पालकों के गहन प्रयासों के कारणों मधुमक्खी पालन में बहुत विकास हुआ है। तथापि, अब भी नए क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन के विकास की बहुत संभावना है। इन नए क्षेत्रों का अभी तक मधुमक्खी पालन के लिए उपयोग नहीं हुआ है। मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में तीव्र वृद्धि केवल मधुमक्खियों के ठोस प्रबंध की तकनीकों के विकास और मधुमक्खी पालकों के बीच उनके उचित प्रचार–प्रसार के माध्यम से ही की जा सकती है। अतः इस बात की अत्यंत जरूरत है कि युवा अनुसंधानकर्ता मधुमक्खी पालन के विभिन्न पहलुओं, विशेष रूप से मधुमक्खियों के प्रजनन, मधुमक्खी प्रबंध, मधुमक्खी के लालन-पालन, क्षमता निर्माण, बायोप्रोस्पेक्टिंग, जैवप्रौद्योगिकी पहलुओं आदि पर और अनुसंधान करें जिससे हरियाणा में दीर्घावधि में मधुमक्खी पालन उद्योग को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी।

अनुसंधान एवं विकास संबंधी गतिविधियां

मधुमक्खी पालकों, किसानों, विस्तार कर्मियों, अनुसंधानकर्ताओं, मधुमक्खी पालन के व्यवसायविदों व अन्य हितधारकों से संबंधित मुद्दों व उनकी चिंताओं से निपटने के लिए विभिन्न कृषि एवं बागवानी फसलों के साथ-साथ शहद के उत्पादन व उत्पादकता को बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं विकास संबंधी कार्यक्रम चलाने हेतु अनेक सुझाव दिए गए हैं। अनुसंधान के प्रमुख प्रबलित क्षेत्रों की पहचान की गई है तथा अपनाए जाने के लिए कार्यनीतियों व कार्य योजना का एक मानचित्र तैयार किया गया है जिसे निम्नानुसार सुझाया जाता है –

मधुमक्खी क्लोनियों  का प्रगुणन और वितरण

मधुमक्खी पालन उद्योग का वाणिज्यीकरण

वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को अपनाना

प्रवासनशील मधुमक्खी पालन की विधियों को मुख्य धारा में लाना

जैविक मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी उद्यानों की स्थापना

शहद का प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन

शहद के परीक्षण तथा रोग निदान के लिए नैदानिक प्रयोगशालाओं की स्थापना

मधुचिकित्सा - भारतीय आयुर्विज्ञान की एक नई वैकल्पिक प्रणाली

नाशकजीवनाशियों का विवेकपूर्ण उपयोग

मधुमक्खियों का कृत्रिम गर्भाधान

प्रशासनिक सुधार

वित्तीय संसाधनों का प्रबंध

मधुमक्खी पालन तथा अनुसंधान एवं विकास संगठनों के बीच समन्वयन

मधुमक्खी पालन विस्तार तथा मानव संसाधन विकास संबंधी घटक का उन्नयन

ज्ञान-व्यवहार के बीच के अंतराल को पाटना,

मधुमक्खी पालन उद्योग को विशेष स्वतंत्र दर्जा दिया जाना

मधुमक्खी पालन में महिलाओं की भूमिका

शैक्षणिक संस्थाओं में मधुमक्खी पालन को मान्यता प्रदान किया जाना

क्षमता निर्माण

मधुमक्खी पालन संबंधी वैज्ञानिक डेटाबेस तथा सांख्यिकी का उन्नयन

अवलोकन

वैज्ञानिक तथा तकनीकी कार्य योजना, परियोजनाओं व नीति स्तर पर अनुशंसाओं को एक साथ संक्षिप्त में यहां प्रस्तुत किया गया है। यदि इन्हें उचित समय-सीमा में तार्किक ढंग से लागू किया जाए तो इनसे राज्य के किसानों और मधुमक्खी पालकों की सही स्थिति का जायजा मिलेगा और इसके साथ ही मधुमक्खी पालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, जीडीपी में प्राथमिक क्षेत्र में वृद्धि होगी तथा हरियाणा राज्य देश में मधुमक्खी पालन से संबंधित अनुसंधान एवं विकास के लिए एक मॉडल बन जाएगा। इस प्रकार की वृद्धि प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सुझाव बताए गए हैं और इसके साथ ही इनकी मात्रात्मक एवं गुणात्मक भूमिका की वर्तमान विकासात्मक परिदृश्य में पहचान भी की गई है। इन सभी प्रयासों से हरियाणा राज्य में निकट भविष्य में ‘मधु क्रांति लाने में सहायता मिलेगी।

 

स्रोत: हरियाणा किसान आयोग, हरियाणा सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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