অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

प्राकृतिक उपचार की प्रमुख विधियां

प्राकृतिक उपचारों की विधियों का समृद्ध ज्ञान-उपयोगिता

अगर हम आस-पास नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि हमारा आनुभविक ज्ञान कितना समृद्ध है। पर समस्या यही है कि हमने कभी अपने ज्ञान को लेखन रुप में शामिल नहीं किया क्योंकि मौखिक संचार से इसमें कई चीजें जुड़ती चली आई और स्थानीय के प्रभाव से इन तकनीकों में बेहतरीन सुधार हुए। पर आज जब ज्ञान के व्यवसायिक इस्तेमाल पर विधि के अनेक बंधन आरोपित हो रहे हैं तो इस स्थिति में जरूरी है कि हम अपने समृद्ध ज्ञान को सहेज कर सही तरह रखें और उसका दुरुपयोग होने से रोकें क्योंकि ज्ञान में व्यवसायिक इस्तेमाल जैसा कोई मूल्य स्थान नहीं रखता है। इस पेज को प्रारंभ कर इसमें कुछ ऐसे ही ज्ञान को देने का प्रयास किया जा रहा है। उम्मीद है ज्यादा से ज्यादा लोग अपने आस-पास उपलब्ध ऐसे ही ज्ञान को यहां प्रस्तुत कर दूसरे को लाभान्वित करेंगे और उस ज्ञान की सार्थकता को प्रमाणित करेंगे।

मिट्टी की पट्टी

  1. मिट्टी की पट्टी बनाने के लिए किसी साफ सुथरी जगह या तालाब से चार-पांच फिट की गहराई से मिट्टी लेनी चाहिए ।
  2. मिट्टी को कूट कर, छान कर साफ जगह पर इकट्ठा कर लें तथा धूप में सूखालें ।
  3. रात में किसी बर्तन में आवश्यक मात्रा में पानी डालते हुए मिट्टी को भिगो दें ।
  4. प्रात: काल प्रयोग में लाने से पहले उसे किसी लकड़ी की सहायता से मिलाकर गूंथे हुए आटे  की तरह बना लें ।
  5. अब एक मोटे, साफ कपड़े के टुकड़े पर मिट्टी रखकर उसे लकड़ी की सहायता से फैलाकर पट्टी जैसा बना लें ।
  6. पेट पर लगाने दे लिए मिट्टी की पट्टी का आकार- प्रकार लगभग 6”X 10”X 1 ½ “  अथवा आवश्यकतानुसार रखा जा सकता है ।
  7. इस पट्टी को नाभि से नीचे पेडू पर इस प्रकार से रखें कि मिट्टी त्वचा से स्पर्श करती रहे ।
  8. पट्टी 20 से 30 मिनट तक रखी जा सकती है ।
  9. पट्टी खाली पेट रखनी चाहिए तथा उसे हटाने के पश्चात् उस स्थान को गिले कपड़ें से पोंछ कर हथेली से रगड़ कर गर्म कर देना चाहिए ।
  10. एक बार प्रयोग में लाई गई मिट्टी को दुबारा प्रयोग में नहीं आना चाहिए ।
  11. इसी प्रकार माथे, आँखों तथा रीढ़ की हड्डी पर भी मिट्टी की पट्टी बनाकर रखी जा सकती है ।

Soil

गर्म ठंडा सेंक

  1. गर्म पानी की एक थैली लेकर उसके दो तिहाई भाग में गर्म पानी भर लें ।
  2. थैली के खाली भाग को दोनों ओर से दबाकर भाप निकाल दें ।
  3. तत्पश्चात थैली का ढक्कन मजबूती से बंद कर दें ताकि पानी बाहर न निकल सके ।
  4. प्रभावित स्थान पर सेंक करते समय गरम थैली से 3 मिनट सेंक करें तथा 1 मिनट के लिए वहाँ तौलिए रखें ।
  5. इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराना चाहिए ।

एनिमा

  1. एनिमा लेने के लिए बायीं करवट लेटकर पेडू के हिस्से को ढीला करके दायें घुटने को ऊपर की ओर मोड़ लें ।
  2. एनिमा के बर्तन में गूनगूना पानी भर लें ।
  3. एनिमा लेने से पूर्व नोजल में से थोड़ा पानी निकाल दें ताकि ट्यूब में से हवा निकल जाए ।
  4. नोजल के आगे कैथेटर में थोड़ा वैसलीन या तेल लगाकर कैथेटर को धीरे-धीरे गुदा में प्रविष्ट कराएँ ।
  5. अब स्टापर खोल कर पानी अंदर जाने दें ।
  6. पूरा पानी चला जाने पर स्टापर बंद करके कैथेटर को धीरे से निकाल दें ।
  7. एनिमा लेने के बाद दाएँ – बाएँ करवट लेटना चाहिए या थोड़ा टहलना चाहिए । इससे आंतो में चिपका हूआ मल छूटकर पानी में घुल जाता है ।
  8. इसके बाद शौच जाने पर मल को स्वयं निकलने दें । अलग से ताकत लगाने की आवश्यकता नहीं है ।
  9. एनिमा के बर्तन को लेटने के स्थान से 3-4 फिट ऊपर रखना चाहिए ।
  10. एनिमा का पानी आधिक गर्म न हो इसका ध्यान रखना चाहिए । इसके लिए एनिमा लेने के पूर्व पानी में हाथ डालकर उसके ताप मान का अनुमान लगा लेना उचित होगा ।
  11. साधारणत: 500 से 750 मि. ली. पानी का एनिमा लिया जा सकता है ।
  12. चिकित्सा के परामर्श से एनिमा के पानी में नींबू का रस अथवा नीम का पानी मिलाया जा सकता है ।
  13. एनिमा प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिए ।

Anima

कटिस्नान

  1. कटिस्नान के लिए एक विशेष टब में पानी इस प्रकार भरते हैं कि रोगी के तब बैठने पर पानी का तल रोगी की नाभि तक आ जाए।
  2. रोगी के दोनों पैर टब के बाहर चौकी पर हों तथा पीठ टब के पिछले भाग से लगी रहे ।
  3. अब एक छोटे तौलिए से नाभि पेडू को एक ओर से दूसरी ओर धीरे धीरे मलें ।
  4. कटिस्नान के बाद टब से टब से बाहर निकलते समय रोगी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके पैर व शरीर का नाभि के ऊपर का भाग गिला न हो ।
  5. इसके बाद तौलिए से शरीर को पोंछकर कपड़े पहन कर व्यायाम करना या टहलना चाहिए ।
  6. कटिस्नान प्रात: काल खाली पेट लेना चाहिए।
  7. गर्मियों में यह स्नान दस से बीस मिनट तक तथा सर्दियों में तीन से पांच मिनट तक लिया जा सकता है ।

पेट की लपेट

  1. पेट की लपेट के लिए सफेद खादी या अन्य किसी सूती कपड़े की लगभग आठ – नौ इंच चौड़ी तथा लगभग तीन मीटर लम्बी पट्टी लें ।
  2. पट्टी को पानी में भिगोकर निचोड़ लें ।
  3. अब इस सूती पट्टी को नाभि के चार अंगूल ऊपर से लपेटना प्रारंभ करें तथा पेडू को ढकते हुए कमर तक ले आएँ ।
  4. इसके ऊपर इसी आकार- प्रकार की फलालैन की अथवा ऊनी पट्टी को इस प्रकार लपेटें कि सूती गीली पट्टी बिल्कुल ढक जाए और उसमे हवा ने लगे ।
  5. पट्टी न बहूत कसी हो और न ही बहूत ढीली हो ।
  6. पेट की लपेट 45 मिनट से लेकर एक घंटे तक रखी जा सकती है ।
  7. प्रयोग के बाद सूती पट्टी को खोलकर, धोकर रोज धुप में सूखा लेना चाहिए तथा ऊनी पट्टी को भी धुप में डाल लेना चाहिए ।

पैरों का गर्म स्नान

  1. इस स्नान के लिए एक विशेष पात्र या चौड़े मूँह की बाल्टी का प्रयोग किया जाता है जिसमें रोगी के दोनों पैर सुगमता सा आ सकें ।
  2. स्नान के पूर्व सिर को अच्छी तरह गिला कर लें तथा एक गिलास पानी पी लें ।
  3. स्टूल पर बैठकर रोगी के दोनों पैर उस पात्र में रख दे तथा ऊपर से कंबल उढ़ा दें ।
  4. पात्र में पानी उतना ही गरम रखें जितना की रोगी आसानी से सहन कर सके ।
  5. पानी घुटनों से नीचे तक रहना चाहिए ।
  6. रोगी के सिर पर एक गिला तौलिए रख दें ।
  7. रोगी के सिर पर धीरे धीरे पानी डालते रहें तथा यदि प्यास लगे तो और पानी पीला दें ।
  8. दस से पन्द्रह मिनट तक यह स्नान ले सकते हैं ।
  9. पसीना आने पर ठंडे पानी में निचोड़े हुए एक तौलिए से शरीर को स्पंज कर दें । दोनों पैरों को निकाल कर एक-दो मिनट के लिए ठंडे पानी में डाल दें तथा बाद में सूखे तौलिए से पोंछ दें ।
  10. बाद में साधारण स्नान कर लें ।

रीढ़ स्नान

  1. इसके लिए एक विशेष प्रकार का नाव के आकार का टब काम में लिया जाता है ।
  2. टब में केवल दो इंच तक ठंडा पानी भरें ताकि उसमें लेटने पर केवल रीढ़ का भाग ही पानी में डूबे ।
  3. स्नान की आवधि 10 से 20 मिनट तक है ।
  4. टब में लेटते समय सिर की ओर का भाग तथा कमर के नीचे का भाग उठा हूआ रहता है ।
  5. स्नान के बाद शरीर को गर्म करने के लिए टहलें अथवा साधारण व्यायाम करें ।

स्त्रोत : ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची, झारखंड

अंतिम बार संशोधित : 2/13/2023



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate