बाल्यावस्था कि विभिन्न अवस्थाओं में बच्चों की विभिन्न जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायतें द्वारा एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना आवश्यक है। ग्राम पंचायत द्वारा इस भूमिका का निर्वाह करने के लिए यह आवश्यक है। ग्राम पंचायत द्वारा भूमिका का निर्वहन करने के लिए यह आवश्यक है कि ग्राम पंचायत बच्चों के जन्म, वृद्धि, विकास सरंक्षण से संबंधित सभी आवश्यकताओं के बारे में पूरी तरह से अवगत हो। ग्राम पंचायत को अपने ग्राम पंचायत क्षेत्रों में बच्चों से जुड़े सभी प्रमुख मुद्दों को स्पष्टता के साथ समझना चाहिए जिनका निवारण उसे स्वयं को एक बाल- हितैषी ग्राम पंचायत बनाने के उद्देश्य से करना है।
किस प्रकार ग्राम पंचायत अपने ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों से जुड़े सभी प्रमुख मुद्दों की पहचान कर सकती हैं ताकि उनके निवारण के लिए कार्यनीति तैयार कर सके। इन मुद्दों पर की जाने वाली अनुवर्ती कारवाई के लिए इन पर ग्राम सभा में विचार – विमर्श करने ग्राम पंचायत के लिए बाल विकास योजना विकसित करने के लिए ग्राम पंचायत को बच्चों से संबंधित मुद्दों की स्पष्ट जानकारी होना आवश्यक है।
किसी ग्राम पंचायत क्षेत्र के समस्त बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं को निम्नानुसार चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
जैसा कि हमने सीखा है, विकास की विभिन्न अवस्थाओं पर बच्चों की आवश्यकताएं तथा उनकी परिस्थितियों भिन्न – भिन्न होती है। अत: 0-18 वर्ष के आयु – वर्ग के बीच बाल्यावस्था के विभिन्न चरणों को समझना महत्वपूर्ण है। नीचे दी गई ये अवस्थाएँ बच्चों की वृद्धि एवं विकास की अवस्थाओं के रूप में जानी है।
किशोरावस्था का आरंभ अलग – अलग बच्चों में अलग – अलग समय पर हो सकता है। कुछ बच्चे जल्दी किशोर हो जाते हैं और कुछ थोड़ी देरी से। सामान्यत: बच्चे 10-13 वर्ष की आयु में किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं।
बच्चों की समस्याओं का समाधान करने के लिए विश्व के अनेक देशों द्वारा किए करार को संयूक्त राष्ट्र बाल अधिकार कन्वेंशन (यूएनसीआरसी) कहा जाता है। यूएनसीआरसी बच्चों की नस्ल, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म आस्था, मूल, संपत्ति, जन्म की स्थिति अथवा योग्यता के भेदभाव के बिना 18 वर्ष की आयु से कम उम्र के सभी व्यक्तियों को जीवित रहने, विकास संरक्षण और सहभागिता का अधिकार प्रदान करती है। हमारे देश ने भी 1992 में इस अधिवेशन का अनुसमर्थन किया तथा वह विश्व के उन 194 देशों में से एक बन गया जो देश के सभी बच्चों के इए मानक न्यूनतम अधिकार सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत प्रत्येक राज्य, शहर और गाँव के बच्चों के लिए उपयुक्त कानून बनाने तथा कार्यक्रम लागू करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।
हालाँकि बचपन की प्रत्येक अवस्था में बच्चों की चारों आवश्कताएँ अर्थात जीवित रहना, संरक्षण, विकास और भागीदारी महत्वपूर्ण हैं, ऐसी कुछ विशेष आवश्यकताएं भी हैं जो उनकी प्रत्येक अवस्था के लिए निर्णायक सिद्ध होती हैं। उन्हें निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है।
आयु वर्ग |
जीवित रहने संबंधी आवश्यकताएँ |
विकास संबंधी आवश्यकताएँ |
संरक्षण संबंधी आवश्यकताएँ |
भागीदारी संबंधी आवश्यकताएँ |
प्रसवपूर्ण अवस्था |
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शैशवकाल अवस्था |
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प्रांरभिक बचपन की अवस्था |
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मध्य बचपन की अवस्था |
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किशोरावस्था |
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समान आयु – वर्ग के भीतर बच्चों की आवश्यकताएँ भी लिंग, परिवार और सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिती, आर्थिक स्थिति तथा बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वाथ्य के आधार पर भिन्न – भिन्न हो सकती हैं। इन सभी आयु – वर्गों में, ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन्हें अन्य बच्चों की तुलना में देखभाल और अन्य सेवाओं की अधिक आवश्यकता होती है। निम्नलिखित पर विचार करें :-
अत: ग्राम पंचायत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह ऐसे कूटून्बों और बच्चों का पता लगाए तथा उन्हें समुचित देखरेख और सहायता उपलब्ध कराए ताकि ऐसे बच्चों भी अन्य बच्चों की ही भांति गरिमा और आत्मसम्मान से जीवन जी सकें।
वे मुद्दे कौन से हैं जिनका ग्राम पंचायत द्वारा बच्चों की आवश्यकताओं की चार श्रेणियों के अंतर्गत निवारण किया जाना है। नीचे दी गई तालिका में ग्राम पंचायत द्वारा चार श्रेणियों में से प्रत्येक में निवारण किए जाने वाले विशिष्ट मुद्दों का उल्लेख करती है।
उत्तरजीवित 1. गर्भाधारण और जन्म का पंजीकरण 2. टीकाकरण 3. पेयजल, साफ- सफाई और स्वच्छता
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विकास 1. स्वास्थय और पोषण 2. बाल्यावस्था के आरंभ में देखरेख और शिक्षा 3. सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा 4. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे 5. किशोरावस्था |
संरक्षण 1. बाल श्रम 2. बाल विवाह 3. बाल यौन उत्पीड़न 4. बाल अवैध व्यापार 5. शारीरिक दंड 6. माँ- बाप की देखभाल से वंचित बच्चे 7. बच्चों के अहित में हानिकारक धार्मिक, पारंपारिक और अंधविश्वासी प्रथाएँ |
भागीदारी 1. संकट की संभावना वाले बच्चों की भागीदारी 2. विद्यालयों में बच्चों की भागीदारी 3. शासन में बच्चों की भागदारी 4. बाल – हितैषी सार्वजनिक स्थल |
विभिन्न श्रेणियों और आयु – वर्गों में बच्चों की आवश्यकताओ तथा साथ ही ऐसे बच्चों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के उपरांत, जिन्हें अन्य की तुलना में सहायता की अधिक आवश्यकता है, ग्राम पंचायत को यह पता लगाना होगा कि वह अपने ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों के जीवित रहने, विकास संरक्षण और भागीदारी के संबंध में विद्यमान कमियों की पहचान किस प्रकार कर सकती है।
इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र में सभी बच्चों के रिकार्ड अनुरक्षित रखे
तथा इन रिकार्डों का नियमित रूप से नवीकरण करे, नए जन्म लेने वाले शिशुओं को रिकार्डों में शामिल किया जाए तहत उनके जन्म का पंजीकरण समय पर कराया जाए। ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों की आवश्यकताओं की पहचान नीचे लिखे तीन चरणों में कर सकती है।
क. बच्चों के मुद्दों के बारे में ग्राम पंचायत क्षेत्र में सूचना का संग्रहण
ग्राम पंचायत नवजात शिशुओं, उनके टीकाकरण, बच्चों के पोषण, विद्यालय में नामाकंन, विद्यालय शिक्षा की समाप्ति, बच्चों की सुरक्षा, विवाह की आयु, और बच्चों की भागदारी के बारे में सूचना इकट्ठी कर सकती है। ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों की आवश्यकताओ और मुद्दों की पहचान करने के लिए एक स्थिति विश्लेषण करने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा निम्नलिखित कार्रवाईयां की जा सकती है :
ख. विभागीय तथा अन्य पदधिकरियों की सहायता से आंकड़ों का संकलन, समेकन और विश्लेषण करें।
आंकड़ों के संग्रहण के लिए प्रपत्र नीचे दिए गया है :-
मुद्दा और उसका विवरण |
लड़कों की संख्या |
लड़कियों की संख्या |
समय से पूर्व पैदा हुए शिशुओं की संख्या और यदि संभव हो तो कारण भी |
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0-3 वर्ष के आयु वर्ग में मृतक बच्चों की संख्या और यदि संभव हो तो कारण भी |
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टीकाकरण न किए गए बच्चों की संख्या और उनका विवरण |
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कुपोषित बच्चों की संख्या और उनका विवरण |
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शारीरिक अथवा मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का विवरण |
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0-3 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की संख्या और विवरण, जो आंगनबाड़ी नहीं जा रहे हैं। |
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6-14 वर्ष के आयु के वर्ग के बच्चों की संख्या और विवरण, जो विद्यालय में नामाकिंत नहीं हुए है। |
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ऐसे बच्चों की संख्या और विवरण, जिन्होंने प्राथमिक शिक्षा पूरी किए बिना विद्यालय छोड़ दिया हैं और यदि संभव हो तो कारण भी |
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ऐसे बच्चों के विवरण, जो विद्यालय में नामांकित तो हैं परन्तु नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा रहे हैं, संभव हो तो कारण भी |
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ऐसे बच्चों की संख्या और विवरण, जो 14 वर्ष से कम आयु के हैं और ग्राम पंचायत क्षेत्र में मजदूरी कर रहें हैं। |
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ऐसे बच्चों का विवरण, जो गाँव से बाहर पलायन कर गए हैं और यदि संभव हो तो पलायन के कारण भी |
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ऐसे किशोर/किशोरियों की संख्या और विवरण, जिन्होंने किसी भी किशोर कार्यक्रम में नामांकन नहीं कराया अथवा उसमें शामिल नहीं हुए हैं |
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पिछले वर्ष हुए बाल विवाहों की संख्या एवं विवरण |
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ग्राम पंचायत क्षेत्र से लापता बच्चों की संख्या एवं विवरण |
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ग्राम पंचायत क्षेत्र के उन खोये हुए बच्चों का विवरण, जो परिवार के साथ पुन: मिलाए गए तथा उनके पुनर्वास संबंधी आवश्यकताएं |
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ग्राम पंचायत क्षेत्र में बाल क्लबों/बाल- हितैषी स्थानों की संख्या |
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ग्राम – पंचायत क्षेत्र में बच्चों के लिए आयोजित किए गए कार्यक्रम |
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वीसीपीसी में बाल परतिनिधियों के विवरण |
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ग. सर्वेक्षण से उत्पन्न होने वाले बच्चों मुद्दों की सूची तैयार करें
ग्राम पंचायत ऐसे मुद्दों तथा साथ ही ऐसे विशिष्ट बच्चों की श्रेणियों की सूची तैयार करेगी जिनपर संकटों की अधिक संभावना है। इस प्रकार ग्राम पंचायत बच्चों की स्थिति तथा उनके विकास के लिए विद्यमान चुनौतियों के विषय में जान पाएगी। अब ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र के उन मुद्दों का प्राथमिकीकरण कर सकती है जिनपर तत्काल कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है।
इससे अगला कदम होगा ग्राम पंचायत की बाल विकास योजना तैयार करना। हम अंतिम अध्याय में ग्राम पंचायत द्वारा इस योजना को तैयार करने के विषय में सीखेंगे। आगामी अध्यायों में, हम बच्चों के जीवित रहने, विकास, संरक्षण और भागीदारी के क्षेत्रों में ग्राम पंचायत की भूमिकाओं के विषय में जानेंगे।
ü बच्चों की आवश्यकताओं को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: जीवन संबंधी, विकास, संरक्षण और भागदारी।
ü बच्चों की आवश्यकताएं बाल्यास्था की विभिन अवस्थाओं में भिन्न – भिन्न होती हैं अर्थात शैशवकाल (0-3 वर्ष); प्रारंभिक बचपन अवस्था (3-6 वर्ष); मध्य बचपन अवस्था (6-10/१२व्र्श); तथा किशोरावस्था (10/13-18 वर्ष)।
ü समान आयु – वर्ग के भीतर कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में संभवत: जोखिम के अधिक शिकार होते हैं।
ü ग्राम पंचायतों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों के मुद्दों और आवश्यकताओं की पहचान करें।
ü ग्राम तीन चरणों में ग्राम पंचायत क्षेत्र में बच्चों की आवश्यकताओं की पहचान कर सकती है; सूचना का संग्रहण करना, आंकड़ों का संकलन करना तथा बच्चों के मुद्दों की सूची तैयार करना।
स्त्रोत: पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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