पिछली शताब्दी के आठवें दशक के दौरान यूरोपीय मधुमक्खी, एपिस मेलिफेरा को पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश और हरियारणा जैसे इससे सटे राज्यों में व्यापक रूप से पाला गया। हरियाणा के खेतों में मधुमक्खी की इस प्रजाति को छोड़े जाने के बाद पिछले तीन दशकों से अधिक अवधि के दौरान राज्य में मधुमक्खी पालन में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। यह कृषि आधारित उद्यम भूमिहीन तथा सीमांत किसानों के लिए गौण व्यवसाय के रूप में अत्यधिक उपयुक्त है। राज्य में मधुमक्खी पालन एक महत्वपूर्ण कृषि से संबंधित उद्योग बन गया है जिससे किसानों को अतिरिक्त आय होती है तथा युवाओं को स्वरोजगार मिलता है।
मधुमक्खियां विभिन्न कृषि तथा बागवानी फसलों में परागण सुनिश्चित करके और इसके साथ ही शहद और अनेक प्रकार के छत्ता उत्पादों को उपलब्ध कराके समाज की बहुत बड़ी सेवा कर रही हैं। धीरे-धीरे यह व्यापक रूप से अनुभव किया जा रहा है कि मधुमक्खियां पर्यावरण मित्र कृषि के साथ-साथ फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने की दृष्टि से कम खर्चीली हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मधुमक्खियों द्वारा की जाने वाली परागण संबंधी सेवा से जो अतिरिक्त उपज प्राप्त होती है उसका मूल्य सभी छत्ता उत्पादों के कुल मूल्य की तुलना में लगभग 15-20 गुना अधिक है। मधुमक्खी पालन में विविधता को अपनाकर वाणिज्यिक मधुमक्खी पालक अपनी आमदनी को काफी गुना बढ़ा सकते हैं।
समय गुजरने के साथ कुछ रोग तथा वरोआ कुटकी जो राज्य में पहले से ही मौजूद थे, उत्तरी भारत में दिखाई देने लगे हैं। कच्चे शहद की कीमतों में भारी गिरावट के साथ रोगों तथा कुटकी के प्रकोप, मधुमक्खी पालन से संबंधित उपकरणों की लागत में तेजी से होने वाली वृद्धि तथा कुछ अन्य प्रशासनिक समस्याओं का राज्य में मधुमक्खी पालन के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मधुमक्खी पालन प्रौद्योगिकी को मधुमक्खी पालकों तथा किसानों के बीच प्रचारित-प्रसारित करने के लिए मधुमक्खी पालन अनुसंधान, शिक्षा, विस्तार तथा मानव संसाधन विकास को हरियाणा राज्य में तत्काल सफल बनाने की बहुत जरूरत है। इसके अतिरिक्त राज्य में मधुमक्खी पालन के बढ़ावा देने में बाधा बनने वाले विभिन्न मुद्दों की आलोचनात्मक समीक्षा करने की आवश्यकता है, ताकि मधुमक्खी पालक, किसान और शहद प्रसंस्करण उद्योग जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनके हल खोजे जा सकें।
भारत में मधुमक्खियों की मुख्यतः चार प्रजातियां नामतः लिटल मधुमक्खी, एपिस फ्लोरी एफ., रॉक मधुमक्खी, एपिस डोर्साटा एफ., भारतीय मधुमक्खी, एपिस सेराना एफ. तथा इटेलियन मधुमक्खी, एपिस मेलिफेरा एल. उपलब्ध हैं। प्रथम दो प्रजातियां मनुष्यों द्वारा संभाले जाने की दृष्टि से अनुकूल नहीं हैं अतः ये वन्य कीट परागकों की श्रेणी में आती हैं। चूंकि किसी विशेष फसल या स्थान की दृष्टि से उपयुक्त इनकी जनसंख्या को बढ़ाने के मामले में मनुष्यों द्वारा कोई नियंत्रण नहीं किया जा सकता है, अतः इन्हें नियोजित परागण के लिए उपयोगी माना गया है। अन्य दो प्रजातियां छत्ता मधुमक्खियां हैं जिन्हें लकड़ी के छत्तों में रखा जा सकता है। ये प्रजातियां अत्यधिक परिश्रमी होती हैं और मनुष्य इनकी साज-संभाल आसानी से कर सकते हैं। इन्हें आवश्यकता पड़ने पर वांछित संख्या में विभिन्न स्थानों पर लाया ले जाया जा सकता है। ये दोनों ही प्रजातियां अपने परागण व्यवहार में अत्यधिक समानता दर्शाती हैं तथा ये नियोजित परागण के लिए आदर्श हैं। तथापि, इन दोनों प्रजातियों में भी ए. मेलिफेरा का उपयोग करते हुए मधुमक्खी पालन को हरियाणा राज्य में मुख्य रूप से अपनाया जा रहा है। मधुमक्खी पालन अंचल ।
हरियाणा राज्य में मधुमक्खी पालन की दृष्टि से दो अलग-अलग विशिष्ट अंचल हैं –
उत्तरी अंचल
उत्तरी अंचल में पंचकुला, अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल और पानीपत जैसे जिले हैं जहां तापमान अपेक्षाकृत कम (44°से. तक) रहता है तथा शुष्क अवधि में आर्द्रता उच्चतर (30 प्रतिशत से अधिक) पाई जाती है।
दक्षिण पश्चिम अंचल
सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, भिवानी, दादरी, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, फरीदाबाद, पलवल, गुरूग्राम, नूह, रोहतक, झज्जर, जींद और सोनीपत जिले दक्षिण पश्चिम अंचल में आते हैं। यहां गर्मियों के महीनों में तापमान उच्च (लगभग 48° से.) तथा आर्द्रता निम्न (15 प्रतिशत या इससे कम) रहते हैं।
राज्य में मौजूद विभिन्न प्रकार की मृदाएं, सिंचाई संबंधी सुविधाओं, तापमान, सापेक्ष आर्द्रता और कृषि जलवायु संबंधी दशाएं एपिस मेलिफेरा का उपयोग करते हुए मधुमक्खी पालन के लिए पर्याप्त रूप से उपयुक्त हैं। इस राज्य में सर्दियां इतनी गंभीर नहीं होती हैं जिनसे मधुमक्खी झुण्ड को पालने तथा उनके द्वारा अपना भोजन एकत्र करने संबंधी गतिविधियों में कोई बाधा आती हो। इस प्रकार, एपिस मेलिफेरा के पालन में सर्दी की कोई समस्या नहीं है। यद्यपि यहां गर्मी काफी अधिक पड़ती है लेकिन ये प्रजातियां तापमान को नियमित करने में सक्षम हैं और कठोर दशाओं में भी कार्य करती रहती हैं, बशर्ते कि उन्हें कुछ उपयुक्त छाया उपलब्ध कराई जाए और उनके छत्ते के पास पानी भी मौजूद हो। मानसून के दौरान इनके भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है और एक प्रकार से अभाव की अवधि अनुभव की जा सकती है। इस अवधि में मधुमक्खियों को चीनी की चासनी को नेक्टर के स्थान पर तथा पराग के स्थान पर सोया चीनी के पैटीस भोजन के रूप में उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
हरियाणा राज्य में वाणिज्यिक मधुमक्खी पालक एपिस मेलिफेरा मधुमक्खी पालते हैं जिनकी रानी बहुत तेजी से अंडे देती है। यह शहद प्रवाह के मौसम के दौरान प्रतिदिन लगभग 1500-2000 अंडे देती है। अतः इसकी क्लोनियाँ सदैव सशक्त बनी रहती हैं। संसाधनों की कमी की अवधि में इन छत्तों की शक्ति को बनाए रखने के लिए इन्हें नियमित रूप से ऐसे क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहां उस मौसम में मधुमक्खियों के लिए भरपूर मात्रा में वनस्पतियां उपलब्ध होती हैं। हरियाणा में मुख्यतः दो अंचल हैं नामतः उत्तर व दक्षिण पश्चिम अंचल ।
उत्तर अंचल में सफेदा, तोरिया, अरहर, सूरजमुखी, बरसीम आदि बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं जबकि दक्षिण पश्चिमी अंचल में सरसों, बबूल, बेर, बाजरा और कपास जैसी फसलें बड़े क्षेत्रों में उगाई जाती हैं। उत्तर अंचल में अधिकांश मधुमक्खी पालक अपनी क्लोनियों को सितम्बर से नवम्बर के दौरान उपयुक्त स्थान पर ले जाते हैं जबकि दक्षिण पश्चिम अंचल में ऐसा दिसम्बर से फरवरी के दौरान किया जाता है, ताकि मधुमक्खियों के लिए इन क्षेत्रों में जो वनस्पतियां अनुकूल हैं, उनका लाभ उठाया जा सके। उत्तर अंचल में पुनः क्लोनियों को मार्च से जून के दौरान दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है, ताकि बरसीम और सरसों की फसल में खिलने वाले फूलों का लाभ उठाया जा सके। जुलाई और अगस्त के दौरान राज्य में मधुमक्खियों के भोजन के साधनों की कमी होती है, अतः इनकी क्लोनियों में मधुमक्खियों को चीनी की चासनी व पराग के अन्य विकल्प उपलब्ध कराए जाते हैं।
विश्वभर में लगभग 50 मिलियन मधुमक्खी क्लोनियाँ हैं जिनमें से अधिकांशतः एपिस मेलिफेरा की हैं। ऐसा अनुमान है कि विश्व में लगभग 14 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है। कुल 15 देश विश्व के शहद उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत का योगदान देते हैं। चीन शहद का सबसे बड़ा उत्पादक है जहां 4,50,000 टन शहद उत्पन्न होता है (40%) और शहद के निर्यातक भी यहां बहुत हैं (35%) । इसके पश्चात् अमेरिका, अर्जेण्टीना, यूक्रेन का स्थान आता है। मैक्सिको द्वारा 20% शहद की आपूर्ति की जाती है जबकि अर्जेण्टीना 15 से 20% शहद की आपूर्ति करता है।
भारत में लगभग 2.0 मिलियन क्लोनियाँ हैं तथा यहां वन्य मधुमक्खियों से मिलने वाले शहद को शामिल करते हुए अनुमानतः प्रति वर्ष लगभग 80,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है। विश्व में कुल शहद उत्पादन के संदर्भ में भारत का पांचवां स्थान है। पाली गई मधुमक्खियों द्वारा प्राप्त होने वाले शहद की औसत मात्रा पर्याप्त कम है। भारत में दो प्रकार का शहद, नामतः छत्ते का शहद (पाली गई मधुमक्खियों से) तथा निचोड़ा गया शहद (वन्य मधुमक्खियों से) उत्पन्न किया जाता है। हमारे देश द्वारा 42 से अधिक देशों को लगभग 25,000-27,000 टन शहद का निर्यात किया जाता है जिसका मूल्य 1,000 करोड़ रुपये है। भारतीय शहद के प्रमुख खरीददार जर्मनी, अमेरिका, यूके, जापान, फ्रांस, इटली और स्पेन हैं। हमारे यहां पौधों व झाड़ियों की 45,000 प्रजातियां हैं जो विश्व की कुल वनस्पति का लगभग 7 प्रतिशत हैं। अभी तक हमने विद्यमान क्षमता का केवल 10 प्रतिशत उपयोग किया है। भारत में लगभग 110 मिलियन मधुमक्खियां कालोनी रखने की क्षमता है। जिससे 12 मिलियन से अधिक ग्रामीण और आदिवासी परिवारों को स्वरोजगार उपलब्ध हो सकता है। उत्पादन के संदर्भ में देखा जाए तो इन मुधमक्खी क्लोनियों से 1.2 मिलियन टन से अधिक शहद उत्पन्न हो सकता है और लगभग 15,000 टन मधुमक्खी मोम प्राप्त हो सकता है।
भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल प्रमुख शहद उत्पादक राज्य हैं। हमारे देश में शहद को भोजन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाता है और इसकी प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष खपत लगभग 8.40 ग्राम है। तथापि, दूसरे देशों में जहां इसे भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उदाहरण के रूप में जर्मनी, वहां शहद की प्रति व्यक्ति खपत 1.800 कि.ग्रा.है। विश्व में शहद की प्रति व्यक्ति औसत खपत लगभग 200 ग्राम है जबकि एशिया में जापान में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक शहद की खपत होती है जो लगभग 600 ग्राम है।
हरियाणा में वर्ष 2004-05 के दौरान एपिस मेलिफेरा की केवल 28,000 क्लोनियाँ थीं जिनसे लगभग 275 मीट्रिक टन शहद निकाला गया। अब वर्ष 2012-13 के दौरान इन क्लोनियों की संख्या बढ़कर 2,50,000 हो गई है जिनसे प्रति वर्ष लगभग 30,000 मीट्रिक टन शहद उत्पन्न होता है। मधुमक्खी पालन की क्षमता और भावी परिदृश्य अक्तूबर से सितम्बर के दौरान 8 माह में मधुमक्खियों के लिए वनस्पतियों की निरंतर उपलब्धता होती है। इसके देखते हुए यहां एपिस मेलिफेरा की लगभग 4.0 लाख मधुमक्खी क्लोनियाँ रखी जा सकती हैं। इन क्लोनियों से प्रति वर्ष लगभग 15,000 मीट्रिक टन शहद निकालना संभव है। इसके अतिरिक्त इससे राज्य में लगभग 4,000 बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार सृजित करने की व्यापक संभावना है। इसके अतिरिक्त इस उद्यम के द्वारा एक वर्ष में लगभग 10,000 व्यक्तियों के लिए 100 मानव दिवसों का अतिरिक्त कार्य सृजित किया जा सकता। है। मधुमक्खी पालन से ग्रामीण दस्तकारों जैसे बढ़ई, लोहार व मधुमक्खी पालन उपकरण बनाने वाले लोगों को भी आमदनी का अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध होगा। इससे यह प्रदर्शित होता है कि राज्य में एपिस मेलिफेरा मधुमक्खियों के साथ मधुमक्खी पालन के विस्तार की अपार संभावना है।
अनेक राज्य सरकारी एजेंसियों ने राज्य में मधुमक्खी पालकों के लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण क्लोनियाँ उपलब्ध कराने के लिए बिना किसी वैज्ञानिक मानदंड और आधार के बगैर सोचे-समझे अनेक मधुमक्खी पालकों को 'मधुमक्खी प्रजनकों का दर्जा दे दिया है। इनमें तकनीकी क्षमता की पूरी तरह कमी है तथा इस संबंध में चयन प्रक्रिया पर पुनः कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है। वैज्ञानिक मानदंडों के आधार पर सक्षम मधुमक्खी पालकों का फिर से चुनाव किया जाना चाहिए। मधुमक्खी पालकों के चयन के लिए तैयार की गई चेक लिस्ट में कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं –
क्र. स. |
मधुमक्खी प्रजनक के चयन हेतु जांचे जाने वाले बिंदु |
हां / नहीं |
1. |
क्या मधुमक्खी पालक को बागवानी प्रशिक्षण संस्थान, उचानी, करनाल; एचएआईसी,मुरथल; चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार अथवा कृषि विज्ञान केन्द्र पर कम से कम एक प्रशिक्षण दिया गया है? (मधुमक्खी पालक द्वारा प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए) |
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2. |
क्या मधुमक्खी पालक को मधुमक्खी की क्लोनियों की साज-संभाल या प्रबंध का कम से कम 5 वर्ष का अनुभव है? (मधुमक्खी पालक द्वारा प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए)
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3. |
क्या मधुमक्खी पालक के पास एपिस मेलिफेरा की कम से कम 500 मधुमक्खी क्लोनियाँ हैं? |
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4. |
यदि हां, तो क्या उपरोक्त 500 मधुमक्खी क्लोनियों को राज्य सरकार या राष्ट्रीय मधुमक्खी मंडल (एनबीबी), नई दिल्ली में पंजीकृत कराया गया है? (मधुमक्खी पालक द्वारा राज्य सरकार या एनबीबी, नई दिल्ली द्वारा दिया गया प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए) |
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5. |
(क) क्या मधुमक्खी क्लोनियाँ स्वस्थ हैं अर्थात् वे रोगों और साथ ही नाशकजीवों से मुक्त हैं? (ख) क्या मधुमक्खी पालक को नाभिक मधुमक्खी क्लोनियों के प्रगुणन के बारे में बुनियादी ढांचे संबंधी सुविधाओं का पर्याप्त तकनीकी ज्ञान है? (इस संबंध में क्या सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किसी समिति ने मधुमक्खी पालक की मधुमक्खी पालन इकाई का दौरा किया है और उसका साक्षात्कार लिया है और इसके साथ ही मधुमक्खी पालक को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के साथ-साथ संबंधित अधिकारी ने विचारार्थ कुछ सिफारिशें की हैं या नहीं, इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए)। |
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6. |
क्या मधुमक्खी पालक ने इसी उद्देश्य के लिए किसी वित्तीय सहायता का लाभ उठाया है? । (यदि हां तो उसके मामले में दुबारा विचार नहीं किया जा सकता है। यदि नहीं तो मधुमक्खी पालक द्वारा एक हलफनामा दाखिल किया जाना चाहिए) |
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7.
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क्या मधुमक्खी पालक ने वित्तीय सहायता प्राप्त करने के बाद इस प्रकार का कोई हलफनामा दिया है कि वह अन्य मधुमक्खी पालकों/नए किसानों को आपूर्त किए जाने के लिए प्रति वर्ष एपिस मेलिफेरा की कम से कम 2000 नाभिक मधुमक्खी क्लोनियाँ उत्पन्न करेगा और वह उन्हें आवश्यकता पड़ने पर बागवानी निदेशालय द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए मूल्य पर अन्य मधुमक्खी पालकों/नए किसानों को उपलब्ध कराएगा। |
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8. |
यदि मधुमक्खी पालक को योजना के रूप में चुन लिया जाता है तो वह किसानों को मधुमक्खी क्लोनियाँ आपूर्त करने के पूर्व जमानत राशि के रूप में नोडल एजेंसी के पास 50,000/- रुपये का बैंक ड्राफ्ट जमा कराएगा। |
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राष्ट्रीय मधुमक्खी मण्डल का मुख्य उद्देश्य परागण के माध्यम से फसलों की उत्पादकता बढ़ाने, शहद का उत्पादन बढ़ाने तथा छत्ते के अनेक उत्पादों की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए भारत में वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देकर मधुमक्खी पालन उद्यम का सकल विकास करना है, ताकि मधमुक्खी पालक/ किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो सके।
वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन में टिकाऊ रूप से विकास के लिए राष्ट्रीय मधुमक्खी मंडल द्वारा निम्न प्रमुख पहलें की गई हैं/मुख्य उपाय अपनाए गए हैं -
हरियाणा में मधुमक्खी पालन की विविधता की अपार संभावना व क्षमता है। शहद के अलावा इससे अन्य छत्ता उत्पादों जैसे मधुमक्खी के मोम, पराग, प्रापलिस, रॉयल जैली और मधुमक्खी विष आदि के उत्पादन तथा विपणन की बहुत संभावना है। इसके अतिरिक्त पैक बंद मधुमक्खियों की बिक्री व संतति रानियों की बिक्री से उद्यमशीलता संबंधी अनेक गतिविधियां चलाई जा सकती हैं। परागण के लिए मधुमक्खी क्लोनियों को किराए पर देना मधुमक्खी पालकों की आमदनी का एक अन्य स्रोत हो सकता है। इससे मधुमक्खी पालकों को सीधे-सीधे रोजगार मिलने के साथ दस्तकारों, छत्ता विनिर्माताओं, मधुमक्खी पालन से संबंधित उपकरण व यंत्र विनिर्माताओं, क्लोनियों को लाने ले जाने के लिए परिवहन प्रणाली, व्यापारियों, उत्तम गुणवत्ता वाले उत्पादों के निर्यातकों, पैकरों, विक्रेताओं, कच्चे माल के डीलरों आदि तथा संबंधित उद्योगों को भी बहुत लाभ हो सकता है। अब तक इस उद्योग के लिए अपार संभावनाओं का उचित लाभ नहीं उठाया गया है।
एक आकलन के अनुसार निवेशों के वर्तमान मूल्य के स्तर के आधार पर मधुमक्खियों की 100 क्लोनियों की इकाई स्थापित करके प्रति वर्ष लगभग 7.0 लाख रुपये का लाभ विविधीकरण के अंतर्गत उठाया जा सकता है।
हरियाणा में मधुमक्खी पालन व परागण के संबंध में किसानों में जागरूकता को बढ़ाने व उनकी भ्रांत धारणाओं को दूर करने के लिए किसानों, मधुमक्खी पालकों, सरकारी अधिकारियों व कृषि विस्तार कर्मियों की बैठकें आयोजित की जा सकती हैं। परागण से संबंधित प्रबंध विधियों व उत्पादकता संबंधी समस्याओं की पहचान करने के लिए इन मधुमक्खी पालकों को विभिन्न सामाजिकआर्थिक प्राचलों जैसे परिवार की संरचना, जाति, आयु, शिक्षा, जोत के आकार, भूमि उपयोग की पद्धतियों आदि के आधार पर अनेक श्रेणियों में बांटा गया है।
वर्तमान अध्ययन के लिए तैयार किए गए आंकड़े प्राथमिक तथा द्वितीयक, दोनों प्रकार की प्रकृति के हैं। द्वितीयक आंकड़े विभिन्न एजेंसियों जैसे कृषि निदेशालय व उद्योग निदेशालय, हरियाणा और खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग (केवीआईसी) से एकत्र किए गए हैं। हरियाणा सरकार के मधुमक्खी पालन विभाग के जिला व राज्य स्तर के अधिकारियों के साथ विस्तृत चर्चाएं व परिचर्चाएं आयोजित की गईं।
प्राथमिक आंकड़े इस उद्देश्य के लिए तैयार की गईं प्रश्नावली की सहायता से एकत्र किए गए हैं। प्रश्नावली को अंतिम रूप देने के लिए आरंभ में कच्चा मसौदा तैयार किया गया व एकत्रित प्रश्नावलियों की प्रासंगिकता व व्यवहारशीलता पर निर्णय लेने के लिए उपयोग-पूर्व सर्वेक्षण किया गया। इस प्रश्नावली में मौजूद कमियों को दूर करते हुए इस सुधारा गया तथा मधुमक्खी पालकों की सामाजिक-आर्थिक दशाओं से संबंधित अंतिम प्रश्नावली तैयार की गई। प्राथमिक आंकड़े राज्य के विभिन्न भागों में विभिन्न मधुमक्खी पालकों व किसानों के व्यक्तिगत साक्षात्कारों के आधार पर प्रश्नावली में दर्ज सूचना पर चर्चा के पश्चात एकत्र की गई।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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