मध्यप्रदेश वन विभाग के द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाता है इसके साथ ही निजी क्षेत्र में आजकल बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण किया जा रहा है। इसलिये विभिन्न वृक्ष प्रजातियों के बीजों का संग्रहण विभाग का प्रमुख कार्य हो गया है।
विश्व बैंक योजना के अंतर्गत 13 विस्तार एवं अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये जा रहे हैं। इन केन्द्रों का एक मुख्य कार्य आनुवांशिक रूप में अच्छे गुण श्रेणी के बीज एकत्र करके विभाग,किसानों तथा नर्सरी धारकों को प्रदाय करना है। इसलिये इन केन्द्रों में कार्यरत कर्मचारियों को बीज संग्रहण के बारे में समुचित जानकारी होना आवश्यक है। बीज संग्रहण में निम्नलिखित क्रियायें सम्मिलित है -
1. बीज कितना एकत्र किया जाये ?
2. बीज कब एकत्र किये जायें ?
3. बीज किन वृक्षों से एकत्र किये जायें ?
4. बीज कैसे एकत्र किये जायें ?
(1) प्रजाति
(2) रोपण का लक्ष्य
(3) रोपण में अंतराल
(4) वितरण या विक्रय के लिये आवश्यकता
क्र. |
आयटम |
सागौन |
बांस |
शीशम |
यूकेलिप्टस |
1. |
रोपण का अंतराल/मीटर में |
2 x 2 |
4 x4
|
3 x 3 |
2 x 2 |
2. |
आवश्यक पौधों की संख्या प्रति हेक्ट. |
1670 |
625 |
1111 |
2500 |
3. |
अतिरिक्त अ. 50%नर्सरी,परिवहन आदि पर हानि ब. 30%मृतक पौधों के स्थान पर रोपण हेतु |
835 557 |
363 209 |
556 371 |
1250 834 |
4. |
प्रति हेक्टेयर आवश्यक पौधों की संख्या |
3062 |
1197 |
2038 |
4584 |
5. |
बीजों की संख्या/ प्रति किलोग्राम |
2250 |
50000 |
30000 |
350000 |
6. |
पौध प्रतिशत |
25 |
40 |
40 |
20 |
7. |
एक किलो बीज से प्राप्त होने वाले पौधों की संख्या |
560 |
20000 |
12000 |
70000 |
8. |
बीज की आवश्यकता कि.ग्रा./प्रति हेक्टेयर |
5.5 |
0.06 |
0.17 |
0.65 |
1)वृक्ष में जब फल पककर गिरने लगते हैं तो आम तौर पर माना जाता है कि वृक्ष के फल पक चुके हैं और उन्हें तोड़ा जा सकता है, परन्तु अधिकतर यह पाया जाता है कि यह सोच ठीक नहीं है। जो फल या बीज पककर पहले गिरते हैं अधिकांशतः घटिया श्रेणी के होते हैं अतः इन फलों/बीजों को एकत्र नहीं करना चाहिये। कुछ समय तक प्रतीक्षा की जानी चाहिये और जब अधिकांश फल/ बीज पक जायें तब ही बीज एकत्र करना उत्तम रहता है।सागौन में पहले जो बीज पक कर दिसम्बर जनवरी में गिरते हैं वे खराब गुण श्रेणी के होते हैं जो फल बाद में गिरते हैं अर्थात जनवरी-फरवरी में गिरते हैं वे ही अच्छे होते हैं।
2)कुछ प्रजातियों के फलों के रंग में परिवर्तन को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि फल पकने वाला है। नीम में फल हरे रंग का होता है। जब यह फल पीला होने लगता है तो मान लेना चाहिये कि फल पक गया है, और बीज के लिये ऐसे फलों को तोड़ा जा सकता है।
3)यदि फलों के पक जाने पर बीजों के यत्र-तत्र बिखर जाने का खतरा हो अथवा वृक्ष से पककर फल न गिरते हो तो बीज एकत्र करने में कठिनाई आएगी। फील्ड में यह देखा जा सकता है कि फल पका हुआ है अथवा नहीं। इसके लिये वृक्ष से कुछ फल तोड़ें और देखें कि भ्रूण (एम्ब्र्यो) की स्थिति कैसी है ? यदि भ्रूण दूधिया हो तो फल अभी कच्चा है। यदि फल पक गया है तो भ्रूण कठोर तथा सफेद या भूरे रंग का होगा और ऐसी स्थिति में ही बीज के लिये फल तोड़ना ठीक रहेगा।
4)सीजन के प्रारम्भ में या अंत में आये बीजों के बजाय सीजन के मध्यकाल में बीजों को एकत्र करने का कार्य करना चाहिए। विभिन्न प्रजातियों के बीज पकने के सही समय का ज्ञान होना अत्यावश्यक है। यह ज्ञान इसलिये होना आवश्यक है, कि कुछ वृक्ष प्रजातियों के फल वृक्ष में लगे-लगे ही हवा में उड़ने लगते हैं, या कुछ प्रजातियों के फल केप्सूल पकने पर खुल जाते है जिससे बीज उड़ या गिर न जाये। अतः प्रत्येक प्रजाति के सही बीज एकत्र करने के समय का ध्यान रखना चाहिए , ताकि उत्तम बीज एकत्र किए जा सकें। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुसार बीजों के एकत्र करने के समय में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है जैसे गरम क्षेत्र में बीज जल्द गिरने लगते है। कुछ प्रजातियों के बीज पकने का समय तालिका में दिया गया है।
प्रजाति |
बीज एकत्र करने का समय |
आकाश मोनी (accacia auriculiformis) |
मार्च से अप्रैल |
खैर (acacia catechu) |
दिसम्बर से मार्च |
बबूल (acacia nilotica) |
मार्च से मई |
कैस्टार (Albizia amara ) |
अप्रैल |
काला सिरस (Albizia lebbeck ) |
जनवरी से मार्च |
सफेद सिरस (albizia procera ) |
फरवरी से मार्च |
सीताफल (Annona squamosa ) |
नवम्बर |
नीम (Azadirachta indica ) |
जून से जुलाई |
कचनार (bauhinia variegata ) |
मई से जून |
केसिया सायामिया ( cassia siamea ) |
मार्च से अप्रैल |
केजूरिना (Casuarina equisetifolia ) |
दिसम्बर से जनवरी |
कर्रा /गरारी (Cliestantus collinus ) |
मई से जून |
सिस्सू (Dalbergia sissoo) |
दिसम्बर से जनवरी |
बांस (dendrocalamus strictus ) |
मार्च से मई |
नीलगिरि (Eucalyptus ) |
दिसम्बर से मई |
आंवला (Emblica officinalis ) |
जनवरी से फरवरी |
खमैर (Gmelina arborea ) |
मई से जून |
चिरोल (Holoptelia integrifolia ) |
अप्रैल से मई |
लेंडिया (Lagestroemia parviflora ) |
फरवरी से अप्रैल, नवम्बर एवं दिसम्बर |
सुबबूल (Leucaena leucocphala) |
मई से जून |
करंज (Pongomia pinnata ) |
अप्रैल से मई |
विलायती बबूल (Prosopis juliflora ) |
अप्रैल से मई |
सागौन(Tectona grandis ) |
फरवरी से मार्च |
अर्जुन (Terminalia arjuna ) |
अप्रैल से मई |
महारुख (Ailanths excelsa ) |
मई से जून |
मुनगा (Moringa olifera ) |
मई से जून |
शेवरी (Sesbania aegyptica ) |
दिसम्बर से फरवरी |
अगस्त (Sesbania grandiflora ) |
जनवरी से फरवरी |
अंजन (Hardwickia binata ) |
अप्रैल से मई |
जामुन (Sygygium cumini ) |
जून |
आम (Mangifera indica ) |
जून से जुलाई |
महुआ (Madhuca latifolia ) |
जून से जुलाई |
बड़ (Ficus bengalensis ) |
अप्रैल से मई |
पीपल (-Ficus religiosa ) |
अप्रैल से मई |
काजू ( Anacardium occidentale ) |
अप्रैल से मई |
बकायत (Melia azadirach ) |
फरवरी से मई |
पर्किन्सोनिया (Parkinsonia aculeata ) |
दिसम्बर |
विलायती इमली (Pithecellobium dulce) |
अप्रैल |
बेर (Ziziphus jujuba ) |
दिसम्बर से जनवरी |
कैथा ( Feronia elephantum ) |
जनवरी से मार्च |
इमली (Tamarindus indica ) |
मार्च से अप्रैल |
भूसरोडा/अंजन घास (Cenchrus ciliaris) |
अक्टूबर से फरवरी |
पीला अंजन घास (Cenchrus setigerus) |
अक्टूबर से फरवरी |
सेनघास (Chrysopogon fulvus ) |
अक्टूबर |
छोटी मरबेल घास (dichanthium annulaum) |
अक्टूबर |
दीनानाथ घास (Pennisetum pedicilatum) |
अक्टूबर से नवम्बर |
शेड़ा,पुनिया घास (Sehima nervosum) |
अक्टूबर |
उपर्युक्त तालिका में जो समय दिया गया है वह बड़ा है। प्रदेश में भौगोलिक स्थिति के अनुसार पुष्पन एवं बीजन होता है। यह देखा गया है कि उत्तरी जिलों जैसे सीधी, शहडोल की अपेक्षा बस्तर में उसी प्रजाति में पुष्पन एवं फलन 15-20 दिन पहले हो जाता है। अतः इतने समय का अंतर बीज एकत्र करने में भी हो सकता है।
i. बीज ऐसे वृक्षों से एकत्र किया जाये जिनका आकार अच्छा हो, वे स्वस्थ हों और अच्छी वृद्धि कर रहे हों।
ii. अति प्रौढ़ वृक्षों और अल्प वयस्क वृक्षों से बीज एकत्र नही किया जाना चाहिये, क्योंकि ऐसे वृक्षों से प्राप्त बीज कम अंकुरण क्षमता वाले होते हैं।
iii. दूर-दूर खड़े हुये वृक्षों से से बीज एकत्र नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसे वृक्षों से प्राप्त बीज अंतत- आपस में परागण से प्राप्त होते हैं जिनकी अंकुरण क्षमता कम होती है।
iv. बीज हमेशा अच्छे वन क्षेत्रों से ही एकत्र किये जाना चाहिये। जिस वन में खराब, पतले तथा निम्न गुण श्रेणी के वृक्ष हों वहां से बीज एकत्र नहीं किया जाना चाहिये।
v.यदि बीज की आवश्यकता कम है और 2-4 वृक्षों से ही पर्याप्त बीज प्राप्त किया जा सकता हो फिर भी यह उचित रहेगा कि 10-15 वृक्षों से बीज एकत्र किया जाये। यदि बीज उत्पादन क्षेत्र से बीज एकत्र किया जाना है तो भी यही बात ध्यान में रखना उचित होगी।
बीज कैसे एकत्र किया जाए ?
वृक्षों से बीज एकत्र करने के अनेक तरीके प्रचलित हैं, परन्तु किस प्रजाति के लिए कौन सा तरीका उचित होगा, यह निर्धारित करने के लिये निम्न लिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है -
i. जिन प्रजातियों के फल/बीज बड़े आकार के होते हैं और जिनके बीज या फल आसानी से जमीन पर एकत्र किये जा सकते हैं उन प्रजातियों में प्राकृतिक रूप से फलों के गिरने पर उन्हें एकत्र किया जा सकता है। उदाहरण के लिये सागौन,महुआ, साल, अर्जुन आदि के फल बड़े आकार के होते हैं उन्हें जमीन पर गिरने के पश्चात एकत्र किया जा सकता है। इसके विपरीत यूकेलिप्टस, हल्दू जैसी प्रजातियों जिनके बीज बहुत छोटे होते हैं उनके बीज, वृक्ष से ही एकत्र करना आवश्यक होगा।
ii.वृक्ष के गुण - वृक्ष की ऊँचाई, तने की लम्बाई, मोटाई, शाखाओं के गुण, छत्र की ऊँचाई, आकार आदि, वृक्ष पर चढ़ने उतरने में कठिनाई आदि।
iii.फल के गुण - फल का प्रकार, फल के पकने तथा बीज के बिखरने के बीच का समय, पेड़ को हिलाने से फल के गिरने या न गिरने का गुण।
iv.बीज प्रक्षेत्र का गुण - वृक्षों का घनत्व, भूमि, धरातल का स्वरूप आदि।
v.उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुये आमतौर पर बीज एकत्र करने के लिए निम्न लिखित विधियाँ अपनाई जाती है -
(क) भूमि पर खड़े होकर
(ख) वृक्ष पर चढ़कर
<>(ग) दूसरे तरीके अपनाकरअनेक प्रजातियों जैसे, सागौन, साजा, अर्जुन, महुआ, तेंदू, नीम, बबूल, सिरस,खमार आदि प्रजातियों के फल जमीन से एकत्र किये जा सकते हैं। यह काम निम्न प्रकार से हो सकता है -
प्राकृतिक रूप से गिरे हुए फल/बीज एकत्र करने का सबसे अधिक नुकसान यह है कि प्राकृतिक रूप से गिरे फल/बीज खराब, कीड़ों-मकोड़ों द्वारा खाये हुये, सड़े हुये और निम्न गुण श्रेणी के होते हैं। वृक्षों की शाखाओं को इंडे या रस्सी या हाथ लगाकर हिलाया जा सकता है जिससे पके फल आसानी से गिर जाते हैं। और इस प्रकार फल/बीज एकत्र किये जा सकते हैं। चित्र 1 में शाखाओं को रस्सी से हिलाने की विधि बताई गई है, भूमि पर फल या बीज गिरने पर तुरंत एकत्र कर लेना चाहिये अन्यथा रोडेन्टस (Rodents) एवं दूसरे प्राणियों द्वारा बीज खा लिये जाने का खतरा रहता है। यदि वृक्ष छोटे आकार के हों तो बीज एकत्र करने के लिये फनेल (Funnel) के आकार का सीड कलेक्टर (Seed collector) बनाया जा सकता है। (चित्र - 2)
i. छोटे वृक्षों, झाडियों आदि के बीज भूमि पर खड़े होकर श्रमिक एकत्र कर सकते हैं। इन्हें हंसिया (Sicket) में फंसाकर फलदार शाखा/टहनी को तोड़ा या काटा जा सकता है और फिर बीज/फल एकत्र किया जा सकता है। वृक्षों पर चढ़कर बीज निम्न तरीके से एकत्र किये जा सकते हैं -
ii.खड़े हुये वृक्षों पर चढ़ना आसान काम नहीं है। कुछ श्रमिक जो वृक्षों पर चढ़ने में दक्ष होते हैं वे ही यह कार्य आसानी से कर सकते है। अकुशल श्रमिकों को यह काम नहीं देना चाहिये। वृक्षों पर चढ़ने में सहायता के लिये सीढियों का उपयोग किया जा सकता है । सीढियाँ 10 फीट से लेकर 25-30 फीट की बनाई जा सकती हैं। सीढियों के लिये अल्यूमीनियम का उपयोग होने से सीढियाँ हल्की तथा पोर्टेबल रहेगी। सीढियों के अतिरिक्त, चढ़ने के यंत्र भी उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से बहुत ऊचे वृक्षों पर भी चढ़ा जा सकता है (चित्र स.-4)।
इसके अतिरिक्त दूसरे यंत्र ट्रेक्टर पर लगाये जा सकते हैं जिसकी सहायता से सीधे वृक्ष छत्र से फल या बीज एकत्र किये जा सकते हैं। जितना बीज एकत्र किया जाये उसका रिकार्ड रखना चाहिये। बीज एकत्र करने की डेटाशीट प्रपत्र-1 में वर्णित है।
बीज का उपचार
1)वृक्ष से फल/बीज प्राप्त कर लेने के पश्चात अनेक कार्य करने आवश्यक होते हैं। ये कार्य निम्नलिखित हैं –
i.फल/बीजों की प्राथमिक सफाई
ii.बीजों का पकाना
iii.बीज को फल से निकालना
iv.फल/बीजों का सुखाना
छाया में सुखाना धूप में सुखाना
v. बीज तथा भूसा अलग करना
vi. बीजों की ग्रेडिंग
2)फल तथा बीजों की प्राथमिक सफाई
वन क्षेत्र से जब बीज/फल एकत्र किये जाते हैं तो उनके साथ पत्तियाँ, पतली-पतली टहनियाँ भी एकत्र हो जाती है, इसलिए सबसे पहले काम यह किया जाना चाहिए कि फल/बीज के अतिरिक्त जो भी वस्तु हो उसको अलग कर लिया जाये।
3)फलों/बीजों का पकाना
जब फल तोड़े जाते हैं तो पूर्ण पके हुये नहीं रहते। कुछ दिन रखे रहने पर फल पूरी तरह से पक जाते हैं। अतः आवश्यकतानुसार फलों के पूर्ण रूप से पक जाने पर ही बीजों को निकाला जाना चाहिये।
4)फल से बीजों को निकालना
सूखे फलों से बीजों को निकालने की प्रक्रिया और गीले फलों से बीज निकालने की प्रक्रिया अलग-अलग है। सूखे फलों जैसे बबूल, खैर, सुबबूल आदि की फलियों के चटकने से कुछ बीज अलग हो जाते हैं और सूखी फलियों को एकत्र करके इंडे से मारने पर बीज अलग-अलग हो जाते हैं। गीले फलों से बीज निकालने के लिये यह आवश्यक है कि बीज से गूदे को अलग कर दिया जाये। यह काम फलों को हाथ से मसलकर और पानी से धोकर किया जा सकता है। इस विधि से आम, जामून, नीम आदि के फलों के बीज निकाले जाते हैं।
5)बीजों को सुखाना
बीजों को भली-भांति सुखाकर रखना आवश्यक होता है। कुछ बीजों को तेज धूप में सुखाने पर उनकी अंकुरण क्षमता कम हो जाती है इसलियो उन्हें कमरे या छाया में सुखाना अधिक अच्छा है। नीम, साल आदि के बीजों को छाया में सुखाना अधिक अच्छा रहता है। बबूल, खैर, सागौन आदि के बीजों को धूप में सुखाया जा सकता है। सुखाने के लिये सवच्छ प्लेटफार्म का उपयोग किया जा सकता है।
6)बीज एवं भूसा अलग करना
बीज और भूसा अलग करने के लिये सबसे सरल तरीका यह है कि हवा में भूसा युक्त बीज उड़ाया जाय तो साफ बीज, हल्के बीज और भूसा अलग-अलग गिरेंगे (चित्र-5) यदि बीज की मात्रा कम हो तो सूपे का उपयोग किया जा सकता है (चित्र-6)।
7) बीजों की ग्रेडिंग
बीजों की ग्रेडिंग मुख्य रूप से आकार के आधार पर की जाती है। इसके लिये आवश्यक है कि विभिन्न आकार की छन्नी का प्रयोग किया जाये और छन्नी से छानकर बड़े, मध्यम और छोटे आकार के बीजों को अलग-अलग ग्रेड में रखा जा सकता है। बीज के उपचार का वर्णन भी शीडलाट के साथ दिया जाना आवश्यक है। बीज उपचार शीट प्रपत्र-2 में वर्णित है।
1)बीज एकत्रित तथा उपचारित करने के पश्चात यदि तुरंत उपयोग कर लिया जाता है तो भण्डारण की आवश्यकता नहीं पड़ती है परन्तु यदि पर्याप्त मात्रा में विभिन्न प्रजातियों का बीज एकत्र किया जाता है तो विभिन्न संस्थाओं एवं किसानों को माँग आने पर बीज उपलब्ध कराने के लिये बीज के भण्डारण की समुचित व्यवस्था अनुसंधान तथा विस्तार केन्द्रों पर होना आवश्यक है। भण्डारण की दृष्टि से बीजों को दो श्रेणियों मेंविभक्त किया जाता है -
आर्थोडक्स बीज
2)आर्थोडक्स बीज वे बीज हैं जिनको 5 प्रतिशत जल रहने तक बिना अंकुरण क्षमता को प्रभावित किये सुखाया जा सकता है, और उन्हें दीर्घ अवधि तक कम तापमान में संग्रहित रखा जा सकता है। कुछ ऐसे बीज है। जिन्हें यदि 20-40 प्रतिशत जल की मात्रा से कम तक सुखाया जाता है तो उनकी अंकुरण क्षमता नष्ट हो जाती है साथ ही इन बीजों को दीर्घ अवधि के लिये भण्डारित नहीं किया जा सकता। ऐसे बीजों को रिकैलसीट्रेन्ट कहा जाता है। सागौन, बबूल, खैर, प्रोसोपिस, काला सिरस, सफेद सिरस, सिस्सू इत्यादि प्रजातियों के बीज सुखाकर भण्डारित किये जा सकते हैं परन्तु आम, जामुन, नीम, महुआ, साल, वकायन इत्यादि के बीजों की अंकुरण क्षमता 1-2 सप्ताह के बाद ही कम होने लगती है इसलिये इन बीजों का भण्डारण कठिनाई से ही होता है। इन बीजों को एकत्र करने के तुरंत बाद उपयोग कर लेना चाहिये।
3)अधिकांश वृक्ष प्रजातियों के बीज वर्ष के प्रारम्भ में या कुछ समय पूर्व पकते हैं। कुछ प्रजातियों के बीज सर्दियों में पकते हैं। इन प्रजातियों के बीज वर्षा के आगमन तक आसानी से सुरक्षित रखे जा सकते हैं लेकिन तैलीय बीज ज्यादा समय तक भण्डारण करके नहीं रखे जा सकते है। बीज के भण्डारण में निम्न बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है –
कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों की अंकुरण क्षमता की अधिकतम अवधि की जानकारी तालिका 3 में दी गई है। बीज का वर्णन बीज के स्टाक रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए (प्रपत्र-3)।
30,000 से 40,000 |
|
बबूल |
7,000 से 9,000 |
महारुख |
8,000 से 10,000 |
कालासिरस |
8,000 से 9,000 |
नीम |
3,000 से 3,500 |
सफेद सिरस |
18,000 से 20,000 |
सिस्सू |
53,000 |
चिरोल |
27,000 |
सुबबूल |
20,000 से 26,000 |
मुनगा |
8,000 से 9,000 |
करंज |
800 से 1,000 |
खमार |
1,000 |
बांस |
32,000 |
प्रोसपिस जूलीफ्लोरा |
25,000 |
कचनार |
2,800 से 3,520 |
पलास |
1,500 से 3,520 |
कसोंदन |
37,040 |
केजुरिना |
7,60,000 |
कर्रा |
8,000 से 9,000 |
नीलगिरी |
3 से 6 लाख (शुद्ध) 15-20000 (हस्कचाफ के साथ ) |
आंवला |
55,000 से 60,000 |
लेंडिया |
28,000 से 30,000 |
प्रोसोपिस |
25,000 |
काजू |
250 से 300 |
खमेर |
1,000 |
विलायती इमली |
6,000 |
इमली |
1,500 |
इस परीक्षण से यह पता लगाया जाता है कि एकत्रित बीज कितना शुद्ध है। अर्थात् उसमें शुद्ध बीज तथा अन्य पदार्थ जैसे कंकड़, पत्थर, पत्तियाँ या दूसरे पदार्थों की मात्रा कितनी है ? इसके लिये आवश्यक है कि जिस सीडलाट (Seed lot) से परीक्षण किया जाना है, उसमें से विधिवत सेंपल प्राप्त किया जाय। सीडलाट से जो सेंपल निकाला जाय उसका सर्वप्रथम वजन (Weight) ज्ञात कर लेना चाहिये फिर सेंपल के बीजों को फैलाकर शुद्ध बीज, अन्य बीज तथा अन्य पदार्थ इस प्रकार तीन भागों में बाँट लेना चाहिये।
निम्न फार्मूले से शुद्धता प्रतिशत ज्ञात किया जा सकता है -
शुद्धता प्रतिशत = शुद्ध बीज का वजन सेंपल का कुल वजन x 100
बीजों में पानी की मात्रा ज्ञात करना इसलिये आवश्यक है क्योंकि बीजों की आयु भण्डारण में बहुत कुछ पानी की मात्रा पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े आदि का आक्रमण पानी की मात्रा के प्रतिशत पर निर्भर करता है। बीजों को यदि 5-7 प्रतिशत पानी की मात्रा तक सुखा लिया जाय तो कीड़े-मकोड़ों का आक्रमण इन पर बहुत कम होता है। बीजों में पानी की मात्रा इलेक्ट्रोनिक मोइश्चयर मीटर (Electronic moisture metter) से आसानी से ज्ञात की जा सकता है। बड़े आकार के बीज तथा दूसरे बीज जिसमें इलेक्ट्रोनिक मोइश्चयर मीटर काम नहीं कर सकता है वहाँ बीज में पानी की मात्रा ज्ञात करने के लिये ओवन (Oven) की आवश्यकता होगी। भट्टी या ओवन को पहले 105 डिग्री तक गरम किया जाना चाहिये। बीजों का प्रारम्भिक वजन लेकर इनको भट्टी में 16-24 घण्टे तक रखना चाहिये इसके बाद बीजों का वजन लेकर बीज से जल की मात्रा निम्न सूत्र से ज्ञात कर लेना चाहिये -
जल की मात्रा = शुष्क बीजों का वजन बीजों का प्रारम्भिक वजन x 100
यह परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस परीक्षण से ज्ञात होता है कि कितने पौधे उपलब्ध बीज में बन सकेंगे। अंकुरण संबंधी परीक्षण करने के लिये निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है -
अंकुरण परीक्षण करने के लिये कई प्रकार से सीड जरमिनेटर प्रयोग में लाये जाते हैं जहाँ नमी, तापमान, हवा, प्रकाश आदि को प्रजाति की आवश्यकतानुसार नियंत्रित किया जा सकता है। अंकुरण परीक्षण करने के लिये 30 से.मी. x 30 से.मी. तथा 10 से.मी. गहरी ट्रे का उपयोग करना उचित रहेगा। इस ट्रे में बालू या वरमीकुलाइट (Vermiculite) भर लेना चाहिये। बालू की सतह के ऊपर फिल्टर पेपर का प्रयोग किया जा सकता है। परीक्षण करने के शुद्ध 400 बीज लेकर इसे 100-100 बीजों के चार सैम्पल में बाँट लेना चाहिये। ट्रे में बालू या बरमीकुलाईट भरकर लगभग आधा लीटर पानी प्रत्येक ट्रे में डाल देना चाहिये। अब लिए गये बीजों को 2-3 से.मी. के अंतराल में बो देना चाहिये इसके बाद मिस्ट स्प्रेयर (Mist sprayer) से पानी इन ट्रे में ऊपर से दे देना चाहिये। तत्पश्चात पारदर्शी पोलीथिन शीट (Transparent Polythene sheet) से ढक देना चाहिये। पोलीथिन शीट पर पानी के कण दिखेंगे। यदि पानी के कण न दिखाई दें तो मिस्ट स्प्रेयर से और पानी दे देना उचित रहेगा। जब बीजों का अंकुरण प्रारम्भ हो जाय तो पोलीथिन शीट, ट्रे के ऊपर से हटा लेना चाहिये इसके पश्चात अंकुरण के आँकड़े लेना चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय बीज परीक्षण एसोसियेशन (ISTA) के अनुसार बीज अंकुरित तब माना जाता है जब बीजांकुर की ऊँचाई 1.0 से.मी. तथा बीज पत्र खुल गये हैं। 28 दिनों तक अंकुरण के आँकड़े लिये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये 400 बीजों में यदि 220 बीज 28 दिवस तक अंकुरित पाये गये शेष 180 बीजों को काट कर देखने पर ज्ञात हुआ कि उनमें 60 बीज स्वस्थ है और शेष 120 बीज खराब हैं तब अंकुरण प्रतिशत तथा अंकुरण क्षमता निम्न प्रकार से ज्ञात की जा सकती है -
अंकुरण प्रतिशत = 220/ 40 x 100
अंकुरण क्षमता = 220+600/ 40 x 100
यदि बीजों का अंकुरण सातवे दिन से प्रारम्भ हुआ और जो बीज सातवे, आठवे, नौवे, दसवे तथा ग्यारहवे दिन अंकुरित हुये उनकी संख्या 20, 60, 80, 70 तथा 55 पाई गई तो अंकुरण शक्ति तथा अंकुरण अवधि निम्नानुसार ज्ञात की जाती है -
अंकुरण शक्ति = 20+60+80/ 400 x 100
अंकुरण अवधि = अधिकतम अंकुरण का दिन अर्थात् 9 दिन
अंकुरण का प्रयोग करके प्रतिवेदन संलग्न प्रपत्र 4 में दिया जाना चाहिये।
अभिलेख-
बीज एकत्रीकरण में निम्नलिखित जानकारी रखी जाना चाहिये -
दिनांक |
परीक्षण अवधि |
अंकुरित बीजों की संख्या |
कुल अंकुरित बीज |
|
|
अंकुरण क्षमता वाले बीज |
|
|
शुद्ध बीजों की संख्या
कुल बीजों की संख्या अंकुरित बीज अंकुरण प्रतिशत
परीक्षण करने वाले अधिकारी का नाम
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में बीज एवं सिंचाई के अंतर्गत दिये जा रहे स...
उन्नत बीज शीर्षक में बीज से जुड़े सहायता कार्यक्रम...
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