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गन्ने की खेती में माहवार कार्य

जनवरी माह के कार्य

  1. शरद्कालीन नवलख एवं खड़ी गन्ना फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें ताकि गन्ना फसल पाला के कुप्रभाव से बच सके। यह वर्ष कम वर्षा का रहा है, अत: फसल की उत्पादकता में वृद्धि हेतु शरद्कालीन सिंचाई आवश्यक है।
  2. शरद्कालीन गन्ने के साथ विभिन्न अन्त: फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई गुड़ाई, उर्वरक प्रयोग करें। आलू, लाही सब्जियां तैयार हो गयी होगी इन फसलों को काट लें तथा आवश्यकतानुसार गन्ना फसल में सिंचाई पूर्व अंकुरित पौध से रिक्त स्थान भरें।
  3. शीघ्र एवं मध्य देर से पकने वाली प्रजातियों को पेड़ी गन्ना, शीघ्र पकने वाली प्रजातियों का शरदकालीन बावग गन्ना काटकर चीनी मिल की आपूर्ति करें। गन्ना कटाई व चीनी मिल आपूर्ति में 24 घंटे से अधिक समय न लगाये।
  4. बसन्तकालीन गन्ने की बुवाई का उपयुक्त समय पूर्वी उ0प्र0 में मध्य जनवरी से फरवरी, मध्य क्षेत्र के मध्य फरवरी से मध्य मार्च तथा पश्चिमी क्षेत्र में मध्य फरवरी से मार्च है। अत: पूर्वी उ0प्र0 के किसान लाही आदि से खाली खेत में कार्बनिक खादों का प्रयोग करते हुए खेती की तैयारी करें।
  5. बसन्तकालीन बुवाई से पूर्व मृदा परीक्षण कराये तथा खादीय संस्तुति के अनुसार संतुलित उर्वरक की व्यवस्था करें एवं उनका बुवाई के समय उपयोग सुनिश्चित करें। 50 किग्रा0 नेत्रजन , 60 किग्रा0 फास्फोरस, 20 किग्रा0 पोटाश व 25 किग्रा0 जिंक सल्फेट का प्रयोग करें।
  6. बुवाई से पूर्व गन्ना बीज की व्यवस्था करें। कुल बावग क्षेत्रफल का 1/3 भाग शीघ्र पकने वाली प्रजातियों के अन्तर्गत रखें। स्वीकृत प्रजातियों का चुनाव करें। बीज गन्ना में पानी की मात्रा पर्याप्त बनाये रखने हेतु काटने से पूर्व उसमें पानी लगायें। तीन-तीन ऑंख का टुकड़ा काटकर पारायुक्त रासायन से उपचारित करें।
  7. बीज उपचार हेतु पारायुक्त रासायन एगलाल-3 : ( 560 ग्राम ) एरीटान 6 : ( 280 ग्रा0 या एम0ई0एम0सी0 6 : (280 ग्रा0द्ध या बावस्टिन 110 ग्रा0 करे 100-125 लीटर पानी में घोलकर टुकड़ों को उपचारित करें। बुवाई के समय दीमक व अंकुरबेधक नियन्तत्रणह हेतु फोरेट 10 जी0-25 कि0ग्रा0 या सेबिडाल 4.4 जी-25 किग्रा0 या लिन्डेन 6 जी0 20 किग्रा0 / हैक्टेयर या गामा बी0एच0सी0 20 ई0सी0 6.25 लीटर या क्लोरपाइरीफास 20 ई0सी0 5 ली0 हे0 का प्रयोग करें। घोल वाली दवा के साथ 1875 लीटर पानी का प्रयोग करें।

फरवरी माह के कार्य

  1. शरदकालीन व बसन्तकालीन शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की कटाई यदि शेष रह गयी हो तो करें एवं उसकी पड़ी रखने हेतु तत्काल मेड़ों को गिराते हुए ठूठों की छटाई करें। सिंचाई उपरान्त ओट आने पर पंक्तियों के दोनों तरफ से गुड़ाई करें तथा उस समय 200 किग्रा0 यूरिया/हे0 लाइनों में डाल दें। सूखी पत्तियों को समान रूप से दो पंक्तियों के मध्य फैला दें तथा इसके ऊपर लिन्डेन 1.3 : धूल का 25 किग्रा0/है बुरकाब करें ताकि अवशेष कीटर मर जायें।
  2. मध्य क्षेत्र, पश्चिमी क्षेत्र में बुवाई का समय 15 फरवरी के उपरान्त आता है। अत: 30 : क्षेत्रफल में शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुवाई हेतु को0शा0 8436, 88230, 96268, को0से0 98231 को0से0 94536 में से अपनी सुविधानुसार एक या दो प्रजातियों का चुनाव करें तथा शेष 70 : क्षेत्रफल में मध्य-देर से पकने वाली प्रजातियों का चयन करें।
  3. जलभराव वाले क्षेत्रों में फरवरी-मार्च में प्रत्येक दशा में बुवाई करनी चाहिए। जलभराव हेतु यू0पी0 9529, 9530 व को0से0 96436 प्रजातियों में से एक या दो का चुनाव करें।
  4. खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद 18 टन या बायाकम्पोस्ट 4.5 टन या 9 टन/है0 की दर से खेत में बिखेर कर जुताई करें। पलेवा उपरान्त पहली जुताई 20 से 22 सेमी0 गहरी जुताई करनी चाहिए।
  5. फरवरी में बुवाई करने की दशा में दो पंक्तियों के मध्य 90 से0मी0 दूरी रखनी चाहिए। दोहरी पंक्ति विधि 90:30:90 सेमी0 से भी बुवाई करनी उपयोगी है।
  6. बीज गन्ना स्वीकृत पौधशाला जिसमें पर्याप्त मात्रा में उर्वरक व पानी का प्रयोग किया गया हो से ही लेना चाहिये। यदि सामान्य फसल से बीज गन्ना लेना हो तो कटाई से पूर्व पानी लगा देना चाहिए। छोटी पोरी वाले गन्ने की 3 ऑंंख एवं बड़ी पोरी वाले गन्ने गन्ने की 2 ऑंख का टुकड़ा काटना चाहिये। टुकड़ों को माह जनवरी में वर्णित रासायन से उपचारित करके ही बोये तो जमाव अच्छा होगा।
  7. मृदा परीक्षण के आधार पर कुल नेत्रजन का 1/3 (150किग्रा0/है0द्ध एवं फास्फोरस 60 किग्रा0, पोटाश 20 किग्रा0 बुवाई के समय कूड़ों में पहले प्रयोग करें। उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर थोड़ा मिट्टी गिरायें उसके बाद प्रतिफुट 3 ऑंख का एक पैड़ बोयें। प्रतिमीटर 10 ऑंख की बुवाई करें। पैड़ों के ऊपर दीमक व अंकुर बेधक के नियंत्रण हेतु माह जनवरी में उल्लिखित कीटनाषकों में से किसी एक का प्रयोग कर ढकाई करें।
  8. अन्त: फसल होने की दशा में यदि फसल तैयार हो गयी तो उसकी शीघ्र कटाई करें तथा तत्काल सिंचाई कर उर्वरक प्रयोग करते हुये गुड़ाई करें। गेहूं की फसल में सिंचाई करें।
  9. शरदकालीन बावग गन्ने में सिंचाई कर 60 किग्रा0 नेत्रजन /है0 (132 किग्रा0 यूरिया) की पहली टापड्रेसिंग करें।
  10. फरवरी के मध्य देर से पकने वाली प्रजातियों के बावग गन्ने की कटाई करें तथा तत्काल उसकी पेड़ी रखने हेतु कर्षण क्रियायें माह जनवरी में वर्णित विधि के अनुसार करें।
  11. फरवरी माह में बुवाई करने की दशा में मूंग अन्त: फसल की बवाई करें। इस समय भिण्डी की भी अन्त: खेती करना लाभकारी होगा।

मार्च माह के कार्य

  1. पूर्वी व मध्य क्षेत्र में बसन्तकालीन गन्ने की बुवाई प्रत्येक दशा में माह के अन्त तक समाप्त कर लेनी चाहिए।
  2. पूर्वी व मध्य क्षेत्र में जमाव उपरान्त तुरन्त हल्की सिंचाई (बुवाई के 30-35) दिन के बाद करें तथा ओट आने पर गुड़ाई करें।
  3. शरद्कालीन गन्ने के साथ अन्त: फसल यदि खड़ी हो तो आवश्यकतानुसार विशेषकर गेहूं में हल्की सिंचाई करें।
  4. शरद्कालीन गन्ने में यदि फरवरी माह में यूरिया की टापड्रेसिंग न किये हो तो मार्च में सिंचाई करें तथा 132 किग्रा0/है0 यूरिया की टापड्रेसिंग करें।
  5. फसल की परिपक्वता के आधार पर बावग गन्ने की कटाई करें जिस खेत में पेड़ी फसल लेनी हो तो उसकी कटाई इस माह में अवश्य करें। बावग गन्ने की कटाई उपरान्त खेत में मेड़ गिराने के उपरान्त ठूठों की छटाई, पंक्तियों के दोनो तरफ गुड़ाई, 200 किग्रा0 यूरिया/है0 के पंक्ति के दोनो तरफ प्रयोग एवं भूमि में मिलाना तथा रिक्त स्थानों की पूर्व अंकुरित पैड़ों से भराई करें।
  6. शरदकालीन बावग गन्ने में यदि चोटी बेधक/अंकुरबेधक से ग्रसित पौधा हो तो उस भूमि के सतह से काटकर निकाल देना चाहिये जिससे उसकी अगली पीढ़ी का आपतन कम हो जाए।
  7. पूर्वी उ0प्र0 में तापक्रम अधिक हो जाता है। अत: इस माह से ही हल्क सिंचाई प्रत्येक 20-25 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिये।
  8. खर-पतवार नियन्त्रण हेतु कस्सी/फाबड़े से गुड़ाई करना श्रेयस्कर है। अत: प्रत्येक सिंचाई के उपरान्त मार्च-जून तक गुड़ाई फाबड़े या कल्टीवेटर से करनी चाहिये। श्रमिक की समस्या होने पर पहली सिंचाई उपरान्त गुड़ाई करके गन्ने की सूखी पत्तियां बिछानी चाहिए। यदि इसे भी करना सम्भव न हो तो गन्ना बुवाई के 7-10 दिन के मध्य पेन्डीमिथेलीन खरपतवार नाशी रसायन का 3.3 ली0 दबा 1150 ली0 पानी में घोलकर समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।
  9. एजोटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम 5 किग्रा0/हे0 की दर से प्रथम सिंचाई के उपरान्त पौधों के पास डालना चाहिए।
  10. पी0एस0बी0 5 किग्रा0/हे0 की दर से प्रथम सिंचाई के उपरान्त डाले।

अप्रैल माह के कार्य

  1. फरवरी माह में बोये गये फसल में इस माह (60 दिन पर) सिंचाई उपरान्त 50 किग्रा0 नेत्रजन /हे0 (110 किग्रा0 यूरिया) को टापड्रेसिंग करें तथा गुड़ाई करें। शरदकालीन गन्ने में यदि यूरिया की टापड्रेसिंग अवशेष हो तो 60 किग्रा0 नेत्रजन /हे0 (132 किग्रा0 यूरिया) को उपयोक्तानुसार टापड्रेसिंग करें
  2. शरदकालीन गन्ने के साथ यदि अन्त: फसलें जी गयी हों तो उनकी कटाई उपरान्त तत्कालीन सिंचाई कर यूरिया की टापड्रेसिंग व गुड़ाई करें। यदि दो थानों के मध्य रिक्त स्थान (45सेमी0) है पूर्व अंकुरित पैड़ों की रोपाई करें।
  3. बावग गन्ने की कटाई उपरान्त यदि उसकी पेड़ी रखनी तो गन्ना कटाई के समय ध्यान देना चाहिए कि केवल गन्ना ही काटें तथा देर से निकले किल्लों को छोड़ दें। सूखी पत्तियों के समान रूप से बिखेरकर सिंचाई करें तथा सूखी पत्तियों पर लिण्डेन धूल 1.3 : का 25 किग्रा0/हे0 की दर से धूसरण करें। सिंचाई से पूर्व गैप फिलिंग करें तथा 90 किग्रा0/हे0 नेत्रजन (200 किग्रा0 यूरिया) की जड़ के पास प्रयोग करें।
  4. फरवरी-मार्च में रखे गये पेड़ी गन्ना में काला चिकटा नियंत्रण हेतु इन्डोसल्फान 35 ई0सी0 का 670 मि0ली0 दवा के साथ पत्तियों की संख्या के आधार पर 3 से 5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें।
  5. चोटी बेधक व अंकुर बेधक से ग्रसित पौधों को पतली खुरपी द्वारा भूमि सतह से काटकर चारे में प्रयोग करें। पत्तियों की निचली सतह पर अण्ड समूहों को देखकर पत्ती काटकर निकाल ले तथा अण्डों को नष्ट करें।
  6. गेहू , चना, मटर, मसूर आदि के बाद यदि गन्ना बोना हो तो तत्काल सिंचाई कर ओट आने पर खेत तैयार कर बुवाई करें। बीज गन्ना यदि सम्भव हो तो ऊपरी 1/3 भाग का ही प्रयोग करें। बीज गन्ना को पानी में कम से कम रात भर डाल दें। दो या तीन ऑंख के टुकड़े काटकर 60 सेमी0 की दूरी पर एम0ई0एम0सी0 से उपचारित ।
  7. भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने तथा उर्वरक व्यय में बचत हेतु सिंचाई उपरान्त 5 किग्रा0 एजोटोबैक्टर व 5 किग्रा0 पी0एस0बी0/है0 का प्रयोग जड़ के पास कर गुड़ाई करें।
  8. खरपतवार नियंत्रण हेतु कस्सी, फाबड़े या कल्टीबेटर से गुड़ाई करें।
  9. प्रत्येक 15-20 दिन पर आवश्यकतानुसार 3-4’’ पानी लगायें। हल्की कम अन्तर पर सिंचाई अपेक्षाकृत उपयोगी होती है।

मई माह के कार्य

  1. फरवरी-मार्च में बोये गन्ने में सिंचाई उपरान्त 50 किग्रा0 नेत्रजन /है0 (110 किग्रा0 यूरिया) की जड़ के पास टापड्रेसिंग करें तथा गुड़ाई करें।
  2. शरदकालीन गन्ने में सिंचाई करें तथा यदि उर्वरक न दिये हों तो अंतिम टापड्रेसिंग करें।
  3. चोटीबेधक व अंकुरबेधक कीटों के अण्ड समूहों को पत्ती सहित एकत्र कर नष्ट करें। इन कीटों से ग्रसित पौधों को भूमि सतह से काटकर नष्ट करें या चारे में प्रयोग करे।
  4. पेड़ी गन्ना में यदि काला चिकटा कीट का आपतन हो तो इन्डोसल्फान 35 ई0सी0 का 670 मिली0 दवा/है0 5 : यरिया के घोल में मिलाकर छिड़काव के समय खेत में नमी रहना आवश्यक है।
  5. देर से बोये गये गन्ने में सिंचाई करें खरपतवार हेतु गुड़ाई करें।
  6. उर्वरक की बचत के साथ-साथ 10-12 : अधिक गन्ना उपज की प्राप्त होती है।

जून माह के कार्य

  1. बसन्तकालीन व देर बसन्तकालीन गन्ने में यदि यूरिया की टाइपड्रेसिंग शेष रह गयी हो तो सिंचाई उपरान्त 50 किग्रा0 नेत्रजन /हे0 (110 किगा्र0 यूरिया) की टाइपड्रेसिंग करें। ध्यान रखें की उर्वरक की पूर्ण मात्रा जून तक अवश्य डाल दें। इससे उर्वरक का पौधे भरपूर प्रयोग करते हैं व किल्ले कम मरते हैं। वर्षा काल में यूरिया का प्रयोग करने से उसका अधिकांश भाग नष्ट हो जाती है और अपेक्षित लाभ नही मिलता है।
  2. पेड़ी गन्ना में शेष 90 कि0ग्रा0 नेत्रजन /है (200 किग्रा0 यूरिया) का जड़ के पास सिंचाई उपरान्त टापड्रेसिंग करें।
  3. शरदकालीन गन्ने में एक हल्की मिट्टी बढ़ाए ताकि बढ़तवार के साथ गिरे न और देर से निकलने वाले किल्ले न निकले। जुलाई के उपरान्त निकलने वाले किल्लों से उस वर्ष गन्ना नही बन पाता है।
  4. वर्षा न होने की दशा में पूर्व माह की भांति प्रत्येक 15-20 दिन पर आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करते रहें।
  5. चोटी बेधक व तना बेधक कीट के जैविक नियंत्रण हेतु 5 ट्राइकोग्रामा कार्डस/है0 की दर से बंधाई करें। इस कार्य को जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक दो बार अवश्य करें।
  6. यदि चोटी बेधक कीट की तितली खेतों में पुन: दिखाई दे तो फ्यूराडान 3 जी का 30 किग्रा0/है0 नमी की दशा में जड़ के पास जून के अंतिम सप्ताह में प्रयोग करें। दवा के प्रयोग के समय नमी रहना आवश्यक है।

जुलाई माह के कार्य

  1. माह जुलाई में फसल में मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें।
  2. जिन खेतों में वर्षा का पानी भर गया हो तो उसे निकालने की व्यवस्था करनी चाहिए नहीं तो फसल पीली पड़ने लगती है।
  3. फसल में खर-पतवार या लतायें पनप रहीं हो तो तुरन्त उखाड़ दें।
  4. यदि हरी खाद सनई ढॉंचा बोया हो तो 45 से 60 दिनों के अन्तर पर मिट्टी पलटने वाले हल से पलटवा दें।

अगस्त माह के कार्य

  1. गन्ने की अच्छी बढ़ी फसल को गिरने से बचाने हेतु माह के प्रथम सप्ताह में एक बंधाई करना चाहिये। इसके लिये प्रत्येक पंक्ति के प्रत्येक झुण्ड को उसी की सूखी पत्ती से मध्य में बंंधाई करना चाहिये।
  2. जिन खेतों में हरी खाद हेतु सनई अथवा ढॉंचा बोया गया था, 45 से 60 दिन पूरा होते ही खेत में पाटा चलाकर दबा दें व मिट्टी पलटने वाले हल से पलट देवें। अच्छे परिणाम पाने हेतु यदि सनई अथवा ढांचा बीते समय सुपरफास्टफैट न दिया गया हो तो 40 से 60 किलोग्राम फास्टफैट प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पलटने के बाद दे देंवें।
  3. यूरिया छिड़काव द्वारा गन्ने की फसल से भरपूर लाभ उठाने हेतु 5 प्रतिशत यूरिया पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के एक दिन के अन्दर वर्षा हो जाने से यूरिया का प्रभाव कम हो जाता है।
  4. वर्षा के दिनों में यदि पानी भर गया होतो उसे निकालने की व्यवस्था करनी चाहिए।
  5. गन्ने के खेत में प्राय: खरपतवारों में बेलें पनप कर गन्ने के पौधों को लपेटकर चढ़ती है। इससे गन्ने की बढ़वार पर कुप्रभाव पड़ता है।
  6. प्रदेश के पूर्वी भाग में मध्य सितम्बर से गन्ने की बुवाई का कार्य शुरू हो जाता है। अत: कृषक अभी से अपने खेतों में बुवाई हेतु पौधशालाओं में विभिन्न जातियों का चुनाव कर लें। व बीज का गन्ना प्राप्त करने की व्यवस्था करे।
  7. इस माह में प्राय: काना, कुण्डवा, विवर्ण, लालधारी, गूदे की सड़न रोग भी लगते हैं। समय-समय पर फसल का निरीक्षण कर रोग प्रकोप दिखाई देते ही रोकथाम के उपाय करने चाहिए।
  8. अच्छी फसल में कीटों का प्रकोप हाने पर फसल के लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है। इस माह में चोटीबेधक, पायरिला, अंकुरबोधक, काला चिकटा, गुरूदासपुर बेधक, सफेद कीटों का प्रकोप दिखायी पड़ता है। अत: फसल का निरीक्षण कर प्रकोप देते ही रोकथाम के उपाय करना चाहिये।
  9. गन्ने की पौधशालाओं, प्रदर्शनी एवं फसल प्रतियोगिता हेतु स्थापित फसल मे विशेष देख-रेख की आवश्यकता है।

सितम्बर माह के कार्य

  1. गन्ने की बढ़ी फसल को गिरने से बचाने के लिये माह के प्रथम सप्ताह में गन्ने की दो पंक्तियों को आमने-सामने पिछले माह में बांधे गये झुंडों को आपस में मिलाकर बांधना चाहिये।
  2. जिन खेतों में हरी खाद हेतु सनई, ढॉंचा बोकर पलट दिया गया था, उसकी जुताई करके खेत तैयार करना चाहिए।
  3. यदि गन्ने की बुवाई नाली विधि द्वारा करनी है तो नालियों शीघ्र ही बना लें। समतल विधि द्वारा बुवाई के समय से दो पंख वाले हल से कूंड खोलकर बुवाई की जाये। दोनों विधियों में गन्ने की पंक्ति पूर्व से पश्चिम ही रखे व पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी0 रखे।
  4. गन्ने की शरदकालीन बुवाई का उपयुक्त समय वर्षा समाप्त होने व जाड़ा शुरू हाने के मध्य सितम्बर से अक्टूबर तक ही सीमित रहता है। अत: इस बुवाई का लाभ उठाने की दृष्टि से समय से बुवाई करें।
  5. बुवाई हेतु बीज का गन्ना क्षेत्र की प्रमाणित पौधशालाओं से ही लें। बुवाई हेतु देर से पकने वाली जातियों को ही चुनना चाहिये, जो कि पिछले वर्ष के शरदकालीन फसल की ही हो।
  6. बुवाई के समय तीन ऑंख के टुकड़े ही काटना चाहिये। प्रति हेक्टेयर बुवाई हेतु गन्ने की मोटाई के अनुसार 50 से 60 कुन्टल बीज अथवा 37,000 से 40,000 तक तीन आंख वाले टुकड़े की आवश्यकता होती है।
  7. गन्ने में अच्छा जमाव ही अच्छी उपज का सूचक है, अत: बुवाई से पूर्व तीन आंख के पेड़ों की किसी स्वीकृत पारायुक्त दवा, जैसे- एरीकान 2 : या 6 : या एगलाल 3 : अथवा टफासान 3 : या 6 : अथवा गन्ना फसल बीज घोल 3 : या 6 : में से किसी एक घोल में डुबोकर बोना चाहिए। 3 : ताकत वाली दवा की 560 ग्राम मात्रा या 6 :शक्ति की दवा को 280 ग्राम मात्रा को 112 लीटर पानी में घोल तैयार करके उसके बीज उपचार चाहिये।
  8. उन कृषकों के लिये जो रबी की फसलों की कटाई कर देरी से गन्ना बोते हैं, उनको चाहिए कि शरदकालीन बुवाई के साथ मिश्रित खेती करना आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद सिद्ध हुआ है, इसलिये रबी की फसलें जिन क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है, लेना चाहिए। मिश्रित खेती में प्राय: बौनी जातियों के गेहूं, मटर, धनिया, आलू आदि सरलतापूर्वक ले सकते हैं।
  9. गन्ने की बुवाई के समय पर्याप्त नमी की दशा में 25 से 50 किलोग्राम नेत्रजन हेक्टेयर देना चाहिये। मिट्टी की जॉंच के बाद सुझाव अनुसार फास्टफट या पोटाश देना उपयुक्त रहता है।
  10. गन्ने की बड़ी फसल (पौधा व पेड़ो) में वर्षा के बाद वाली आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहियें।
  11. इस माह में काना, विवर्ण, लालपरी, गूदे की सड़न बामारियॉं दिखायी देती है। अत: फसल का निरीक्षण मुस्तैदी से करना चाहिये तथा नियंत्रण विधि अपनाना चाहिये।
  12. पायरिला, चोटी बेधक, काला चिकटा, गुरदासपुर बेधक, सफेद मक्खी जैसे हानिकारक कीट भी दिखायी देते ही रोक-थाम के उपाय तत्परता से अपनाना चाहिये। प्रत्येक गन्ना कृषक को चाहिये कि गन्ने की प्रति हे0 उपज बढ़ाने पर भरपूर ध्यान रखें। अत: ’क्षेत्रफल कम उत्पादकता अधिक’ का सिद्धान्त अपनाकर गन्ने की कृषि करना श्रेयस्कर होगा।
  13. बसन्तकालीन व देर बसन्तकालीन गन्ने में यदि यूरिया की टाइपड्रेसिंग शेष रह गयी हो तो सिंचाई उपरान्त 50किग्रा० नेत्रजन /हे० (110किग्रा० यूरिया) की टाइपड्रेसिंग करें। ध्यान रखें की उर्वरक की पूर्ण मात्रा जून तक अवश्य डाल दें। इससे उर्वरक का पौधे भरपूर प्रयोग करते हैं व किल्ले कम मरते हैं। वर्षा काल में यूरिया का प्रयोग करने से उसका अधिकांश भाग नष्ट हो जाती है और अपेक्षित लाभ नही मिलता है।

अक्टूबर माह के कार्य

  1. जिन कृषकों का खेत खाली हो तथा उसमें पर्याप्त नमी भी हो, उसे शीघ्र तैयार कर शरदकालीन गन्ना की बुवाई करें। खेत की तैयारी के समय यदि उपलब्ध हो तो उसमें जैविक खाद- कम्पोस्ट, गोबर की खाद या प्रेसमड सड़ी हुई का प्रयोग अवश्य करें।
  2. शरदकालीन बुवाई में प्राथमिकता के आधार पर शीघ्र पकने वाली प्रजातियां को0शा0 8436, 88230, 96268, को0से0 95436, 98231, 00231 व को0से0 01235 की बुवाई करें ताकि चीनी मिलों की पेराई शीघ्र प्रारम्भ करना सम्भव हो सके।
  3. सामान्य प्रजातियों में को0शा0 8432, को0शा0 96275, को0शा0 97261, यू0पी0 0097, को0शा0 97264 की बुवाई को प्राथमिकता है।
  4. शरदकालीन गन्ने की बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेमी0 एवं कूड़ों की गहराई 10 सेमी0 ही रखें। गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य उपलब्ध संसाधनों के अनुसार आलू (एक पंक्तिबद्ध, मटर फली (दो पंक्तिबद्ध लाही (दो पंक्तिबद्ध, सौंफ, धनिया, मसूर, शरदकालीन सब्जियां अन्त: फसल के रूप में बोकर दोहरालाभ कमाएं। आलू, लहसुन व मटर फली अन्त: खेती करने से गन्ने की उपज मे 8-10 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  5. जिन क्षेत्रों में वर्षाकाल में पर्याप्त वर्षा न हुई हो वहां इस समय सिंचाई करने उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  6. गन्ना बुवाई के समय संतुलित उर्वरक का प्रयोग करना आवश्यक है। यदि मृदा परीक्षण कराया गया है तो संस्तुति के अनुरूप उर्वरक प्रयोग करें। यदि परीक्षण नहीं है तो बुवाई के समय कूड़ों में 115 कि0ग्रा0 यूरिया+132 कि0ग्रा0 म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें। कुछ क्षेत्रों में जस्ता की कमी है ऐसे क्षेत्रों में 25 किग0ग्रा0 जिंक सल्फोट डालें।

नवम्बर माह के कार्य

  1. तापक्रम कम होने के कारण गन्ने के जमाव पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अत:: तापक्रम उचित (16-30 डिग्री से0 होने की दशा में शरदकालीन गन्ने की बुवाई करें।
  2. नवम्बर के अन्त में गन्ना बुवाई करने हेतु पाली बैग/डीकम्पोजेबुल बैग में एक-एक ऑंख के टुकड़े की नर्सरी डालें। देर से काटे गये धान की फसल के उपरान्त खाली खेत में भी पाली बैग/डीकम्पोजेबुल बैग में तैयार किये गये पौधे की रोपाई करके अच्छी उपज की जा सकती है।
  3. सितम्बर-अक्टूबर में बोये गये गन्ने की फसल में जमाव उपरान्त एक हल्क सिंंचाई करें तथा ओट आने पर 5 कि0ग्रा0/है एजोटोवैक्टर व कि0ग्रा0 पी0एस0बी0 कल्चर का लाइनों में प्रयोग कर गुड़ाई करें। इससे वायुमण्डलीय नेत्रजन का स्थिरीकरण होता है तथा फास्फोरस की उपलब्धता है।
  4. यदि शरदकालीन गन्ना के साथ गेहूँ की फसल की अन्त: खेती करनी हो तो दो पंक्तियों के मध्य 3 पंक्तियां हल के पीछे बोयें।
  5. शरदकालीन खरपतवारों के नियंत्रण हेतु जमाव उपरान्त 2, 4 -डी दर 2.24 कि0ग्रा0/है0 का 1150 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  6. चीनी मिल में पेराई प्रारम्भी होने पर सर्वप्रथम शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की पेड़ों की आपूर्ति करें। तत्पश्चात् शरदकालीन शीघ्र पकने वाली प्रजातियों का बावग एवं सामान्य प्रजातियों की पेड़ी की आपूर्ति करे।
  7. शरदकालीन गन्ने के साथ अन्त: फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें, उर्वरक का प्रयोग करें तथा निराई-गुड़ाई भी करें।

दिसम्बर माह के कार्य

  1. खड़ी गन्ना फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
  2. अन्त: फसलों मे आवश्यकतानुसार सिंचाई के बाद उर्वरक प्रयोग करें।
  3. दिसम्बर माह में काटे बाबग गन्ने की पेड़ी में अपेक्षाकृत कम फुटाव प्राप्त होता है। अच्छा फुटाव प्राप्त करने हेतु सिंचाई के उपरान्त ओट आने पर 10 टन/है0 ताजा प्रेसमड डालकर गुड़ाई करें। इससे फुटाव अच्छा होगा।
  4. शरदकालीन पेड़ी में अन्त: फसल लेने पर भी अपेक्षाकृत अच्छी उपज प्राप्त होती है।
  5. .चीनी मिल को गन्ना आपूर्ति करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि गन्ना साफ-सुथरा हो तथा कटाई के उपरान्त शीघ्र चीनी मिल पहुंच जाय।
  6. अन्त: फसल के रूप में मटर की फली तोड़ने के बाद उसके अवशेेषों को मृदा में दवा दें ताकि वह सड़कर हरी खाद का काम करें।
  7. पाला प्रभावित क्षेत्रों में नये बाबग व पेड़ी गन्ना में सिंचाई करें ताकि पाला का प्रभाव कम हो सके।

 

स्रोत: गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार

अंतिम बार संशोधित : 9/30/2019



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