जिन किसान भाई के पास बिचड़ा रोपा लायक हो गया हो, वे रोपा से पहले खेत की अच्छी तरह जोताई कर कादो करें तथा खेत की अन्तिम जोताई के समय 18 किलोग्राम डी.ए.पी., 11 किलोग्राम यूरिया तथा 14 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें | 2 से 3 बिचड़े 20 सेंटीमीटर (कतार से कतार की दूरी) तथा 15 सेंटीमीटर (पौधा से पौधा की दूरी) पर रोपें |
(1) झुलसा के लिए डायथेन एम-45 या जिनेब की 2.5 किलो, 10 दिन के अंतराल पर दो बारछिड़काव करें | गेरुई से बचाव हेतु रोग के लक्षण दिखते ही प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट – 25 ई.सी.) 1.0 मि. ली. दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें | दूसरा छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें |
(2) समय से बोई गयी गेहूँ की फसल बाली निकलने की अवस्था में आ गयी है एवं ऐसे मौसम में अनावृत कंड (जिसमें बालियाँ काली दिखाई देती है) रोग के आक्रमण की संभावना बढ़ जाती है | बिना बीज उपचार किए हुए बोए गए फसल में इस रोग के आक्रमण की संभावना बहुत ज्यादा हो जाती है | इस रोग से बचाव के लिए किसान भाई फफूंदनाशी दवा रैक्सिल का छिड़काव 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से साफ़ मौसम देखते हुए करें|
(1) श्यामव्रण (एन्थ्रेक्नोज) इस रोग की उग्रता की स्थिति में पत्तों एवं बढ़ते फलों पर कवच या इंडोफिल एम-45 नामक फफूंदनाशी (0.2%) का 2-3 छिड़काव करना चाहिए | रोग ग्रसित टहनियों तथा इसके प्रभाव से झड़े पत्तों को जलाना या गाड़ देना लाभकारी होता है | फफूंद जनित पिंक रोग के कारण पूर्ण विकसित पेड़ों की टहनियां एक –एक करके सूखने लगती है| इसके नियंत्रण के लिए सूखी टहनियों को 15 से.मी. नीचे से छांट कर उसके कटे भाग पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का लेप लगाना चाहिए तथा इसमें फफूंदनाशी का 2-3 छिड़काव करना चाहिए |
(2) जब फल सरसों के दाने के बराबर हो जाए तब उपरोक्त दवा का दूसरा तथा मटर के दाने के आकार के फल होने पर तीसरा छिड़काव करें |
आलू की फसल तैयार होने की अवस्था में है | अत: किसान भाई अपने फसल के परिपक्कता की अवस्था को देखते हुए खुदाई से 7 से 10 दिन पहले ऊपर का पत्ता काटकर हटा दें ताकि आलू सख्त हो एवं उसका छिलका भी भली भांति परिपक्क हो जाए | ऐसे आलू को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है |
(1) फूल आते समय पौधों पर कीटनाशी दवा का छिड़काव न करें तथा बगीचे में पर्याप्त संख्या में मधुमक्खी के छत्ते रखें |
(2) फल एवं बीज बेधक (फ्रूट एवं सीड बोरर) के प्रकोप से बचाव के लिए फल तोड़ाई के लगभग 40-45 दिन पहले से सायपरमेथ्रिन के दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें |
वायरस को फैलाने वाले कीड़ों के नियंत्रण का समुचित प्रबंध करें | इसके लिए नये कल्ले निकलते समय इमिडाक्लोरप्रिड (3 मिली/10 ली.) या क्कीनालफ़ॉस (20 मिली./10 ली.) तथा डाइमेथोएट (15 मिली./10 ली.) या कार्बारिल (20 ग्रा./10 ली.) का घोल बनाकर दो-दो छिड़काव एकान्तर विधि से करें |
नाशपाती एवं सतालू में फरवरी-मार्च में खाद देने से अच्छी पैदावार होती है |
पशु आरोग्य – मुँह में छाले पड़ने पर सुहागा के चूर्ण को पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए या फिर पोटाश को ठंडे पानी में मिलाकर मुँह की सफाई करनी चाहिए | ग्लिसरीन और बोरिक ऐसिड का पेस्ट बनाकर जीभ के उपर छालों पर लगानी चाहिए | मुँह को खोल कर मुँह के अंदर तथा जीभ पर मक्खन लगाने से आराम महसूस होता है | उपर लिखे सारे उपचार को दिन में तीन से चार बार परिस्थिति के अनुरूप दोहराते रहना चाहिए |
स्त्रोत: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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