बैगन एक सब्जी है। बैंगन भारत में ही पैदा हुआ और आज आलू के बाद दूसरी सबसे अधिक खपत वाली सब्जी है। यह देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है। बैंगन का पौधा २ से ३ फुट ऊँचा खड़ा लगता है। फल बैंगनी या हरापन लिए हुए पीले रंग का, या सफेद होता है और कई आकार में, गोल, अंडाकार, या सेव के आकार का और लंबा तथा बड़े से बड़ा फुटबाल गेंद सा हो सकता है। लंबाई में एक फुट तक का हो सकता है।
किस्में : बैंगन के फल को फलों के आकर के आधार पर तीन भागों मे बाटां गया है |
(क) गोल आकर के फल- पूसा उत्तम, पूसा उपकार, पूसा शंकर -6 व पूसा शंकर -9
(ख) लम्बे आकर के फल - पूसा श्यामला, पूसा क्रांति, पूसा शंकर -5
(ग) गोल व छोटे आकर के फल - पूसा बिंबु व पूसा अंकुर
जलवायु : यह गर्म मौसम की फसल है तथा पाला सहन नहीं कर सकती | अच्छी उपज के लिए 21-30 डिग्री से तापमान उपयुक्त है |
भूमि : अच्छे जलनिकास वाली बलुई बुमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है | भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच उपयुक्त है |
बीज की मात्र : अच्छी जमाव क्षमता वाला 400 ग्रा. बीज/हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है |
बुवाई का समय :
शरद ऋतू फसल |
मई-जून बीज बुवाई तथा जून से मध्य जुलाई |
बसंत-ग्रीष्म ऋतू फसल |
जनवरी में पॅाली हाउस के अंदर पौधे तैयार करें तथा फ़रवरी के मध्य में खेत में रोपाई की जाती है | |
रोपाई : रोपाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75 से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 60 से.मी. रखी जती है | कम बढवार वाली किस्में के लिए 60 x 60 या 60 x 45 से.मी दूरी रखी जाती है | रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करने की आवश्कता है |
खाद व उर्वरक : खेत की तैयारी के समय 25 टन /हेक्टेयर की दर से गोबर या कम्पोस्ट की खाद मिटटी में मिला दें | रोपाई से पहले लगभग 60 कि.ग्रा. फस्फोरस व 60 की.ग्रा.पोटाश की मात्रा तथा 150 की.ग्रा. नत्रजन की अधि मात्रा अंतिम जुताई के समय मिटटी में मिला दें | तथा बाकि आधी नत्रजन की मात्रा को फूल आने के समय प्रयोग करें |
खरपतवार नियंत्रण : रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प या पेंडामिथालिन नामक खरपतवार नाशी की 3 लिटर का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें | निराई व गुड़ाई द्वारा भी खेत में खरपतवार का नियंत्रण संभव है |
सिंचाई : फसल की आवश्यकता अनुसार खेत में सिंचाई का प्रबंध करें |
फल तुड़ाई : जब फल मुलायम तथा उनमें बीज कम व कच्चे हो तभी उनकी तुड़ाई करके बाजार भेजने का प्रबंध करें |
पैदावार : यह फसल की किस्म व जलवायु पर निर्भर करती है | औसतन 300 – 600 क्विंटल /हेक्टेयर तक उपज मिलती है |
बीज उत्पादन : बैंगन बीज उत्पादन हेतु स्वैच्छिक रूप से उगने वाले पौधों से मुक्त होना चाहिए | आधार बीज हेतु 200 मीटर तथा प्रमाणित बीज हेतु 100 मीटर पृथक्करण बुरी रखना चाहिए | अवांछित पौधों को फूल आने से पहले पौधों के गुणों के आधार पर निकाल देना चाहिए | दूसरी बार फल आने की अवस्था तथा उनके परिपक्वा होने की अवस्था में भी अवांछनीय पौधों को निकाल देना चाहिए | जब फल देखने माय अच्छा न लगे तथा रंग पीला हो जाए तो बीज के लिए फलों को तोडकर रख लें | बीज निकालने के लिए फलों को कट कर पानी की सहायता से बीज से अलग कर लायें | बाद में बीज की नयी 8 प्रतिशत रहने तक बीजों को छाया में सुखाएँ और फिर उन्हें साफ बर्तन में भंडारित करें।
बीज उपज : 150-200 कि.ग्रा./हेक्टर
क. रोग एवं कारक : अंगमारी तथा फल (फोमाप्सिस ब्लाइट तथा रॉट)
लक्षण: लक्षण तीन रूपों में दिखाई पड़ते हैं- (1) पौधशाला में अर्द्रपतन के रूप में (2) पौध लगने के बाद में अंगमारी (झुलसा) के रूप में तथा (3) फल लगने के बाद में फल सड़न के रूप में|
नियंत्रण: 1. बाविस्टिन 50 डब्लू पी विगलन (1/2 ग्रा./लिटर) |
2. पानी के घोल में नर्सरी से निकाले गए पौध की जड़ों को 20 मिनट डुबोयें तथा रोपाई के 3 सप्ताह बाद व आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|
ख. रोग एवं कारक: लघु पत्र रोग
लक्षण : रोग के कारण पत्तियां पतली दुबली, मुलायम तथा चिकनी होती है | इनका रंग पीला होता है। बाद में आने वाली सभी नई पत्तियों का आकार और भी छोटा हो जाता है। रोगी पौधे झाड़ीनुमा दिखाई पड़ते हैं और उसमें फूल नहीं बनते । बनते भी हैं तो हरे रंग के हो जाते हैं। फल बिलकुल नहीं लगते हैं।
नियंत्रण : 1. रोग वाहक कीटों के नियंत्रण के लिए लिटर आक्सीमिथाइल डिमेटान (मेटासिस्टॉक्स) या डामेथेएट (रोगोर) कीटनाशी का एक हजार लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। कुल 3-4 बार छिड़काव करें।15-20 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
2. रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। खेत से खरपतवारों को साफ कर देना चाहिए। खेत के आसपास रोग ग्राही खरपतवार नहीं होने चाहिए |
1. प्ररोह व फल छेदक (शूट एवं फ्रूट बोरर)
इस कीट की सूंड़ी पौधे के प्ररोह व फल को हानि पहुंचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सुख
जाते हैं। फलों में सूड़ियाँ टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं। फल का ग्रसित भाग काला पड़ जाता
है तथा खाने लायक नहीं रहता। ग्रसित पौधों में फल देरी से लगता है तथा कई बार फल लगते ही नहीं।
प्रबंधन
1. मूढ़ी फसल (रेटून) न लें क्योंकि इसमें फल छेदक का प्रकोप अधिक होता है।
2. ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकाल कर भूमि में दबा दें।
3. फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फीरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टर लगाएँ।
4. नीम बीज र्क (5 प्रतिशत) या बी.टी. 1 ग्राम/लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.लि./4लिटर या इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लिटर या डेल्टामेथ्रिन 1 मि.लि./लिटर इस्तेमाल करें।
2. तना छेदक (स्टैम बोरर)
सूड़ी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है तथा बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं तथा इनमें फल कम लगते हैं।
प्रबंधन
1. ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें।
2. प्ररोह व फल छेदक के लि सुझाई गई नियंत्रण विधियाँ, इसके लिए भी प्रयोग की जा सकती है।
3. लेस विग बग
इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही पौधों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। वयस्क बग के अगले पंखों पर शिराओं का जाल सा बन जाता है अतः इसे लेस विग बग कहते हैं।
प्रबंधन
इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1 मि.लि./लिटर या डाइमेथेएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या इमिडाक्लोप्रिड 11.8 एल.एल. 1 मि.लि./3 लिटर का इस्तेमाल करें।
4. हड्डा भृंग ( हड्डा बीटल)
हड्डा बीटल वयस्क पत्तों की ऊपरी सतह से जबकि शिशु निचली सतह से पत्तों के हरे पदार्थ को खाते हैं। ग्रसित पत्ते सूख कर गिर जाते हैं।
1. वयस्कों, शिशुओं व अंड़ों के झुंडों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
2. नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.लि./4लिटर या इन्डोसल्फान 14.5 एस.सी. 1 मि.लि./2 लिटर पानी का छिड़काव करें।
5. तेला (जैसिड)
जैसिड के हरे रंग के शिशु व वयस्क दोनों ही पत्तों की निचली सतह से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते हैं। अधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा ये टेढ़ी-मेढ़ी होकर ऊपर की तरफ मुढ़ जाती हैं तथा गिर भी जाती है। ग्रसित पौधों पर कम फल लगते हैं।
इस कीट की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या मिथइल डेमिटोन 30 ई.सी. 2 मि.लि./लि. या इमिडायलोप्रिड 17.5 एस.एल. 1 मि.लि./4 लिटर का छिड़काव करें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार; ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
अंतिम बार संशोधित : 3/2/2020
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