सर्वप्रथम सन् 1800 में हेमिल्टन ने इसकी खोज की तथा इसका नाम साइप्रिनस डेन्टी कुलेटस रखा बाद में नाम परिवर्तित होकर रोहिता बुचनानी, पुनः बदलकर लेबियों डुममेर तथा अंत में इसका नाम करण लेबियों रोहिता दिया गया। हैमिलटन ने इस मछली को निचले बंगाल की नदियो से पकड़ा था। सन् 1925 में यह कोलकाता से अण्डमान, उड़ीसा तथा कावेरी नदी में तथा दक्षिण की अनेक नदियों एवं अन्य प्रदेश में 1944 से 1949 के मध्य ट्रांसप्लाटं की गई तथा पटना से पाचाई झील बॉम्बे में सन् 1947 में भेजी गई। यह गंगा नदी की प्रमुख मछली होने के साथ ही जोहिला, सोन नदी में भी पायी जाती है।
मीठे पानी की मछलियों में इस मछली के समान, प्रसिद्धी किसी और मछली ने नही प्राप्त की। ब्यापारिक दृष्टि में यह रोहू या रोही के नाम से जानी जाती है। इसकी प्रसिद्ध का कारण इसका स्वाद, पोषक मूलक आकार, देखने मे सुन्दर तथा छोटे बड़े पोखरों में पालने हेतु इसकी आसान उपलब्धता है।
शरीर सामान्य रूप से लंबा, पेट की अपेक्षा पीठ अधिक उभारी हुई, थुंथन झुका हुआ जिसके ठीक नीचे मुंह स्थिति, आंखें बड़ी, मुंह छोटा, ओंठ मोटे एवं झालरदार, अगल-बगल तथा नीचे का रंग नीला रूपहला, प्रजनन ऋतु में प्रत्येक शल्क पर लाल निषान, आंखें लालिमा लिए हुए, लाल- गुलाबी पंख, पृष्ठ पंख में 12 से 13 रेजं (काँटे) होते हैं।
सतही क्षत्रे के नीचे जल के स्तंभ क्षत्रे में उपलब्ध जैविक पदार्थ तथा वनस्पतियों के टुकड़े आदि इसकी मुख्य भोजन सामग्री हुआ करती है। विभिन्न वैज्ञानिको ने इसके जीवन की विभिन्न अवस्थाओ में भोजन का अध्ययन किया जिसमें के अनुसार योक समाप्त होने के बाद 5 से 13 मिलीमीटर लंबाई का लार्वा बहुत बारीक एक कोषिकीय, एल्गी खाता है तथा 10 से 15 मिली मीटर अवस्था पर क्र्रस्टेषीयन, रोटिफर, प्रोटोजोन्स एवं 15 मिलीमीटर से ऊपर तन्तुदार शैवाल (सड़ी गली वनस्पति) खाती है।
अधिकतम लम्बाई 1 मीटर तक तथा इसका वजन विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा निम्नानुसार बताया गया है। वैज्ञानिक होरा एवं पिल्ले के अनुसार- प्रथम वर्ष में 675 से 900 ग्राम द्वितीय वर्ष में 2 से 3 किलोग्राम, तृतीय वर्ष में 4 से 5 किलोग्राम ।
यह द्वितीय वर्ष के अंत तक लैंगिक परिपक्वता प्राप्त कर लेती है, वर्षा ऋतु इसका मुख्य प्रजनन काल है, यह प्राकृतिक नदीय परिवेष में प्रजनन करती है। यह वर्ष में केवल एक बार जून से अगस्त माह में प्रजनन करती है।
शारीरिक डील डौल के अनुरूप इसकी अंडा जनन की क्षमता प्रति किलो शरीर भार 2.25 लाख से 2. 80 लाख तक होती है। इसके अण्डे गोल आकार के 1.5 मि.मी. ब्यास के हल्के लाल रंग के न चिपकने वाले तथा फर्टीलाइज्ड होने पर 3 मि.मी. आकार के पूर्ण पारदर्षी हो जाते है फर्टिलाईजेषन के 16-22 घंटो में हेचिंग हो जाता है। हेचिंग होने के दो दिन पश्चात् हेचिलिंग के मुहँ बन जाते है, तथा यह लार्वा पानी के वातावरण से अपना भोजन आरंभ करना प्रारंभ कर देता है।
रोहू का मांस खाने में स्वादिष्ट होने के कारण खाने वालो को बहुत प्रिय है, भारतीय मेजर कार्प में रोहू सर्वाधिक बहुमूल्य मछलियों में से एक है, यह अन्य मछलियों के साथ रहने की आदी होने के कारण तालाबों एवं जलाशयों में पालने योग्य है, यह एक वर्ष की पालन अवधि में 500 ग्राम से 1 किलोग्राम तक वजन प्राप्त कर लेती है। स्वाद , सुवास, रूप व गुण सब में यह अव्वल मानी जाती है जिसके कारण बाज़ारों में यह काफी ऊँचे दामों पर प्राथमिकता में बिकती है।
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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