भारत के मार्स मिशन 'मंगलयान' ने 24 सितम्बर 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करके इतिहास रचा। इस दिन मंगलयान मंगल की कक्षा में प्रवेश कर गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पहले से ही यान में कमांड अपलोड कर दिए थे, जिससे वह खुद ही कक्षा में प्रवेश कर गया। मिशन मंगल के कामयाब हो जाने से भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला एशिया का पहला और दुनिया का चौथा देश बन गया। पहले ही प्रयास में सफलता पाने वाला भारत दुनिया का पहला देश है।
यान को कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया २४ सितंबर सुबह 4:17 बजे शुरू हुई। 7.17 बजे 440 न्यूटन की लिक्विड अपोजी मोटर और आठ छोटे तरल इंजन 24 मिनट के लिए स्टार्ट हुआ। यह यान की गति को 22.1 किमी प्रति सेकंड से कम कर 4.4 किमी प्रति सेकेंड किया गया था। जिससे यान मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया। 249.5 किलो ईधन का इस्तेमाल हुआ। सुबह 7:58 पर प्रक्रिया पूरी हो गई। मिशन पूरा होने की पुष्टि सुबह 8:01 बजे हुई। इसरो ने 22 सितम्बर 2014 को यान का इंजन चार सेकंड के लिए स्टार्ट किया था जो पूरी तरह सफल रहा। इसके द्वारा यान का परिपथ भी ठीक किया गया था।
1. मंगल को लाल ग्रह कहते हैं क्योंकि मंगल की मिट्टी के लौह खनिज में ज़ंग लगने की वजह से वातावरण और मिट्टी लाल दिखती है।
2. मंगल के दो चंद्रमा हैं। इनके नाम फ़ोबोस और डेमोस हैं। फ़ोबोस डेमोस से थोड़ा बड़ा है।फ़ोबोस मंगल की सतह से सिर्फ़ 6 हज़ार किलोमीटर ऊपर परिक्रमा करता है।
3. फ़ोबोस धीरे-धीरे मंगल की ओर झुक रहा है, हर सौ साल में ये मंगल की ओर 1.8 मीटर झुक जाता है। अनुमान है कि 5 करोड़ साल में फ़ोबोस या तो मंगल से टकरा जाएगा या फिर टूट जाएगा और मंगल के चारों ओर एक रिंग बना लेगा।
फ़ोबोस पर गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक हज़ारवां हिस्सा है। इसे कुछ यूं समझा जाए कि धरती पर अगर किसी व्यक्ति का वज़न 68 किलोग्राम है तो उसका वज़न फ़ोबोस पर सिर्फ़ 68 ग्राम होगा।
मंगल ग्रह के लिए माना जाता है कि मंगल पर पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवों पर मौजूद है।
4. अगर ये माना जाए कि सूरज एक दरवाज़े जितना बड़ा है तो धरती एक सिक्के की तरह होगी और मंगल एक एस्पिरीन टैबलेट की तरह होगा।
5. मंगल का एक दिन 24 घंटे से थोड़े ज़्यादा का होता है।मंगल सूरज की एक परिक्रमा धरती के 687 दिन में करता है।यानी मंगल का एक साल धरती के 23 महीने के बराबर होगा।
6. मंगल और धरती करीब दो साल में एक दूसरे के सबसे करीब होते हैं, दोनों के बीच की दूरी तब सिर्फ़ 5 करोड़ 60 लाख किलोमीटर होती है।
7. मंगल पर पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवों पर मिलता है और ये कल्पना की जाती है कि नमकीन पानी भी है जो मंगल के दूसरे इलाकों में बहता है।
8. वैज्ञानिक मानते हैं कि मंगल पर करीब साढ़े तीन अरब साल पहले भयंकर बाढ़ आई थी। हालांकि ये कोई नहीं जानता कि ये पानी कहां से आया था, कितने समय तक रहा और कहां चला गया।
9. मंगल पर तापमान बहुत ज़्यादा भी हो सकता है और बहुत कम भी। मंगल के दो चंद्रमा हैं,मंगल का एक दिन 24 घंटे से थोड़ा ज़्यादा होता है। मंगल और धरती करीब दो साल में एक दूसरे के सबसे ज़्यादा करीब होते हैं,मंगल पर तापमान बहुत ज़्यादा भी हो सकता है और बहुत कम भी। मंगल का गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक तिहाई है,मंगल पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं।
10. मंगल एक रेगिस्तान की तरह है, इसलिए अगर कोई मंगल पर जाना चाहे तो उसे बहुत ज़्यादा पानी लेकर जाना होगा।
11. मंगल पर ज्वालामुखी बहुत बड़े हैं, बहुत पुराने हैं और समझा जाता है कि निष्क्रिय हैं। मंगल पर जो खाई है वो धरती की सबसे बड़ी खाई से भी बहुत बड़ी है।
12. मंगल का गुरुत्वाकर्षण धरती के गुरुत्वाकर्षण का एक तिहाई है। इसका मतलब ये है कि मंगल पर कोई चट्टान अगर गिरे तो वो धरती के मुकाबले बहुत धीमी रफ़्तार से गिरेगी।
किसी व्यक्ति का वज़न अगर धरती पर 100 पौंड हो तो कम गुरुत्वाकर्षण की वजह से मंगल पर उसका वज़न सिर्फ़ 37 पौंड होगा।13. मंगल की सतह पर धूल भरे तूफ़ान उठते रहते हैं, कभी-कभी ये तूफ़ान पूरे मंगल को ढक लेते हैं।
14. मंगल पर वातावरण का दबाव धरती की तुलना में बेहद कम है इसलिए वहां जीवन बहुत मुश्किल है।
सफल मंगल अभियान से भारत ने पूरी दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल किया। इतना ही नहीं भारत ने सबसे कम कीमत पर यह सफलता हासिल की है। इस पूरे अभियान में लगभग 450 करोड़ रुपये खर्च हुए। जबकि अमेरिका में अंतरिक्ष पर बनी एक फिल्म ग्रेविटी में इससे ज्यादा पैसे खर्च हुए थे। अमेरिका ने मंगल अभियान में भारत से 10 गुणा ज्यादा पैसा खर्च किया था। अमेरिका, रुस व जापान के बाद भारत मंगल अभियान में सफलता पाने वाला चौथा देश बन गया। भारत को यह गौरव दिलाने में कई वैज्ञानिकों का अहम योगदान है।
मंगल अभियान में भारत ने एक ही बार में सफलता हासिल कर ली। 67 करोड़ किलोमीटर का यह सफर इतना आसान नहीं था। इस सफर को तय करने में कई दिग्गजों ने पूरी मेहनत की है। इससे पहले चीन का पहला मंगल अभियान, यंगहाउ-1, 2011 में असफल रहा। 1998 में जापान का पहला मंगल अभियान ईधन खत्म हो जाने के कारण असफल हुआ था। वर्ष 1960 से लेकर अभी तक दुनिया भर में मंगल पर 51 अभियान भेजे गए और इनकी सफलता की दर 24 प्रतिशत रही है। इसलिए भारत के इस अभियान पर ज़्यादा दबाव रहा।
आइये हम जानते है उन वैज्ञानिकों के विषय में जिन्होंने इस अभियान को सफल बनाया।
इसरो अध्यक्ष - डॉ. के. राधाकृष्णन
जब क्रिकेट की टीम जीत का परचम लहराती है, तो इसका श्रेय कप्तान को जाता है। ठीक इसी तरह मंगल अभियान की सफलता का बड़ा हिस्सा इसरो के अघ्यक्ष डॉ.के. राधाकृष्णन को जाता है। राधाकृष्णन कहते हैं, 'हम किसी से मुक़ाबला नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपनी क्षमता को उच्च स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।’ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, उपयोग और अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रबंधन में 40 वर्षों से भी अधिक विस्तृत उनका कैरियर कई उपलब्धियों से भरा पड़ा है।
डॉ. के. राधाकृष्णन का जन्म 29 अगस्त 1949 को इरिन्जालाकुडा, केरल में हुआ। 1970 में केरल विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की, आईआईएम बेंगलूर में पीजीडीएम पूरा किया 1976 और आईआईटी, खड़गपुर से अपने "भारतीय भू-प्रेक्षण प्रणाली के लिए कुछ सामरिक नीतियाँ" शीर्षक वाले शोध प्रबंध पर डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। 1971 में इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में एक इंजीनियर के रूप में इन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत की और आज इसरो के अध्यक्ष पद पर हैं।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर -सुब्बा अरुणन
मंगल अभियान में सुब्बा अरुणन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। 24 मिनट का वक्त जिस पर मंगलअभियान की सफलता टिकी थी।उस पर विशेष नजर रखे हुए थे. सुब्बा अरुणन का जन्म तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में हुआ।इन्होंने अपने करियर की शुरुआत विक्रम साराभाई स्पेश सेंटर से 1984 में शुरु किया। इन्हें 2013 में मंगल अभियान के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर की भूमिका दी गयी। यह एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं।
स्पेस एप्लीकेशन सेंटर -ए. एस किरण कुमार
मंगल अभियान की सफलता में अलूर सिलेन किरण कुमार की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने भौतिकी विज्ञान में नेशनल कॉलेज बेंगलूर से 1971 में डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने 1973 इलेक्ट्रोनिक में मास्टर डिग्री हासिल की और 1975 में एम टेक डिग्री हासिल की।1975 में ही उन्होंने इसरो के साथ काम करना शुरु किया।
आईआईएसटी - वी एडीमूर्ति अध्यक्ष
वी एडीमूर्ति इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष है। उन्हें रॉकेट टेक्नोलॉजी और स्पेस गतिविधियों के रिसर्च के लिए भी जाना जाता है। इनका जन्म आंध्र पदेश के राजमुंदरी में हुआ। पीएचडी डिग्री हासिल करने के बाद इन्होंने इंडियन स्पेस रिसर्च से अपने करियर की शुरुआत की।
इन वैज्ञानिकों के साथ कई वैज्ञानिकों की टीम दिन रात काम कर रही थी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के मौके पर बेंगलुर स्थित इसरो सेंटर में मौजूद थे। उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों समेत पूरे देशवासियों को इस सफलता पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों ने असंभव को संभव कर दिखाया। मुझे वैज्ञानिकों पर पूरा भरोसा था। अगर कोई विफल होता है तो आलोचना के शिकार होता है और जब सफल हो जाता है तो लोग उससे ईर्ष्या करने लगते हैं। मंगलयान के मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के बाद इसरो वैज्ञानिकों के बीच मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, मंगल का 'मॉम' से मिलन हो गया। पीएम ने कहा, जब इस मिशन का नामकरण किया जा रहा था, तो मंगलयान रखा गया और उसका शॉर्ट फॉर्म है मॉम। मुझे उसी दिन आभास हो गया था कि मॉम कभी निराश नहीं करती है। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों की तारीफ की और बताया कि मंगलयान पर पहुंचने वाला भारत पहला एशियाई देश है।
वे बुधवार सुबह 6:45 बजे से ही वैज्ञानिकों के साथ बैठकर पूरी प्रक्रिया को देख रहे थे। इसरो के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि मोदी अंतरिक्ष विभाग के प्रमुख हैं और उन्होंने मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा की स्थापना को देखने की इच्छा जताई। इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन प्रधानमंत्री मोदी को मंगल मिशन के बारे में पूरी जानकारी दी ।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इसकी सफलता को देश के वैज्ञानिकों को और लंबा डग भरने के लिए प्रेरित करेगा। उन्होंने मंगल अभियान को एेतहासिक उपलब्धि करार दिया। इसरो के अध्यक्ष के.राधाकृष्णन को भेजे संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, मैं आपके और आपकी टीम को ऑर्बिट इंसर्सन मनूवर आफ द मार्स ऑर्बिटर मिशन "मंगलयान" के नौ महीने की यात्रा के बाद मिली सफलता पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। उन्होंने कहा, "इस सफलता के साथ भारत एशिया का पहला देश और इसरो विश्व की चौथी एजेंसी बन गई है जिसने अपने उपग्रह मंगल ग्रह पर भेजे हैं। इसरो प्रथम प्रयास में ऎसा करने वाली पहली एजेंसी बन गई है। राष्ट्रपति ने कहा, देश् को इस ऐतहासिक उपलब्धि पर नाज है, जिसने एक बार फिर भारत के अंतरिक्ष क्षमता को प्रदर्शित किया है, जो हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम में मील का पत्थर है, यह हमारे वैज्ञानिकों को और बेहतर उपलब्धि के लिए प्रोत्साहित करेगा।
मुखर्जी ने मंगल अभियान से जुड़े इसरो के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, तकनीशियनों और अन्य लोगों को बधाई दी। "देश उनके कठिन प्रयास का आभारी है और उनकी उपलब्धि पर हमें नाज है।"
स्रोत: दैनिक समाचार एवं स्थानीय समाचार पत्र
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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