खाँसी, जुकाम और अधिक गंभीर बीमारियों के बारे में सूचना बाँटना और उसके अनुसार कार्य करना क्यों आवश्यक है|
खाँसी, जुकाम, गला खराब होना और नाक बहना बच्चों के जीवन की आम घटनाऍं होती हैं। फिर भी, कुछ मामलों में, खाँसी और जुकाम न्युमोनिया या तपेदिक (टी.बी.) जैसी गंभीर बीमारियों के लक्षण होते हैं। वर्ष 2000 में 5 साल से छोटी आयु के 20 लाख बच्चों की मृत्यु श्वसन तंत्र के संक्रमित होने की वजह से हुई।
जिस बच्चे को खाँसी या सर्दी-जुकाम हो उसे गर्म रखा जाना चाहिये और वह जितना खा-पी सके उतना ही खाने-पीने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
नन्हें और बहुत छोटे बच्चे शरीर की गरमी आसानी से खो देते हैं। जब उन्हें सर्दी-जुकाम या खाँसी हो तो उन्हें कपड़ा ओढ़ाकर गर्म रखा जाना चाहिये।
जिन बच्चों को खाँसी, सर्दी-जुकाम, नाक बहना और गला खराब होने की शिकायत हो और वे सामान्य तरीके से साँस ले पा रहे हों तो वे घर में ही किसी भी दवाई के बिना ठीक हो जायेंगे। उन्हें गर्म रखने की आवश्यकता है, लेकिन अति गर्म नहीं, तथा उन्हें अच्छी तरह खाना-पीना दिया जाना चाहिये। जब कोई स्वास्थ्य कर्मचारी कहे तब ही दवाई देनी चाहिये।
जिसे बुखार या ज्वर है ऐसे बच्चे को साधारण ठंडे पानी से न कि बहुत अधिक ठंडे पानी से स्पॉन्ज (गीले कपड़े से शरीर पोंछना) किया जाना चाहिये। जहाँ मलेरिया का प्रकोप है ऐसे क्षेत्रों में, बुख़ार ख़तरनाक हो सकता है। बच्चे को तुरंत स्वास्थ्य कर्मचारी को दिखाया जाना चाहिये।
खाँसी या सर्दी-जुकाम में बच्चे की बहती हुई नाक अक्सर साफ की जानी चाहिये, विशेषत: बच्चे के सोने से पहले। नमी युक्त वातावरण श्वास लेने में मदद कर सकता है और यदि बच्चा उबलते हुए पानी के पतीले से तो नहीं पर गर्म पानी के पतीले से श्वास के द्वारा भाप ले तो उसे और आराम मिल सकता है।
स्तनपान करनेवाले बच्चे को खाँसी और सर्दी-जुकाम के दौरान दूध पीने में कठिनाई हो सकती है। लेकिन स्तनपान बीमारी से लड़ने और बच्चे के बढ़ने के लिये बहुत ही आवश्यक होता है, इसीलिये माँ को चाहिये कि वह बच्चे को दूध पिलाना जारी रखे। यदि बच्चा दूध चूस नहीं पा रहा, तो स्तनों का दूध एक साफ कप में निकाल कर बच्चे को पिलाया जा सकता है।
जो बच्चे स्तनपान नहीं कर रहे हैं तो उन्हें थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-सा खाने-पीने के लिये कहना चाहिये। जब बीमारी खत्म हो जाये तो बच्चे को कम से कम एक सप्ताह तक एक समय और अधिक भोजन दिया जाना चाहिये। जब तक बच्चे का वजन बीमार होने से पहले जितना था उतना नहीं हो जाता उसे स्वस्थ नहीं माना जाता।
खाँसी व सर्दी-जुकाम आसानी से फैलते हैं। जिन्हें खाँसी और सर्दी-जुकाम है उन लोगों को बच्चों के आसपास छींकना, खाँसना या थूकना नहीं चाहिये।
कभी-कभार, खाँसी और सर्दी-जुकाम किसी गंभीर रोग के लक्षण होते हैं। जिस बच्चे को ऐसे में साँस लेने में कठिनाई हो रही हो या वह जल्दी-जल्दी साँस ले रहा हो तो उसे न्युमोनिया हो सकता है, जो फेफड़ा का एक संक्रमण है। यह एक प्राणघातक बीमारी है और उस बच्चे को तुरंत किसी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र से उपचार की आवश्यकता है।
खाँसी और सर्दी-जुकाम, गला खराब होना और बहती नाक के अधिकतर दौर दवा की आवश्यकता के बिना ही ठीक हो जाते हैं। लेकिन कभी-कभार ये बीमारियाँ न्युमोनिया के लक्षण होते हैं, जो फेफड़ा का संक्रामक रोग है और सामान्यत: उसमें ऍटिबायोटिक्स की आवश्यकता होती है। यदि कोई स्वास्थ्य कर्मचारी न्युमोनिया के उपचार के लिये एंटिबायोटिक्स देता है, तो यह आवश्यक है कि निर्देशों का पालन किया जाये और उन्हीं निर्देशों के अनुसार जब तक आवश्यकता हो दवा दी जाये, चाहे बच्चा ठीक ही क्यों न हो जाये।
अभिभावकों द्वारा बीमारी की गंभीरता नहीं पहचान पाने और तुरंत चिकित्सकीय सुविधा नहीं उपलब्ध होने से बहुत सारे बच्चे मर जाते हैं। न्युमोनिया के कारण मरनेवाले बहुत सारे बच्चों को बचाया जा सकता है यदि:
परिवार के सदस्य बच्चे की न्युमोनिया से बचाव कर कर सकते हैं बशर्ते कि बच्चों को जन्म से छह महीने तक पूरी तरह से अधिकतर स्तनपान कराया जायें और सभी बच्चों को अच्छा पोषक आहार दिया जाए और उन्हें सारे टीके लगाई जा चुकी हो।
स्तनपान बच्चों को न्युमोनिया और अन्य बीमारियों से बचाता है। बच्चे के जीवन में छह महीने तक स्तनपान कराया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
किसी भी आयु में जिस बच्चे को पोषक आहार दिया जाता है उसके बीमार होने या मरने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
विटामिन ए श्वसन से संबंधित बहुत सारी गंभीर बीमारियों और अन्य रोगों से बचाव करता है और तेजी से स्वस्थ करता है। विटामिन ए माँ के दूध में, लाल पाम तेल में, मछली, डेयरी उत्पाद, अंडे, संतरे और पीले रंग के फल और सब्जियाँ तथा हरी पत्तेदार सब्जियों में पाई जाती है।
बच्चा एक साल का हो जाये इससे पहले टीकाकरण पूरा हो जाना चाहिये। तब बच्चा खसरा नामक बीमारी से सुरक्षित रहेगा, जिसके कारण न्युमोनिया या अन्य श्वसन संबंधी बीमारियाँ, जिनमें काली खाँसी और तपेदिक का भी समावेश है, हो सकता है।
बच्चे को यदि बहुत अधिक जुकाम है तो उसे तुरंत चिकित्सकीय मदद मिलनी चाहिये। बच्चे को तपेदिक हो सकता है, जो फेफड़ों का संक्रमण है।
तपेदिक एक गंभीर बीमारी है जिससे बच्चे का फेफड़ा हमेशा के लिये क्षतिग्रस्त हो सकता है या बच्चे की मौत भी हो सकती है। तपेदिक से बचाव करने में परिवार साथ दे सकता है यदि वे इस बात की पुष्टि कर लें कि उनके बच्चों को:
यदि स्वास्थ्य कर्मचारी तपेदिक के लिये विशेष दवाइयाँ देता है, बच्चे को वे सारी दवाइयाँ समय पर और निर्देशों के अनुसार उसी मात्रा में, उतने समय के लिये देना बहुत आवश्यक है, चाहे बच्चा स्वस्थ ही क्यों न लगे।
बच्चे और गर्भवती महिलाऍं दोनों का संपर्क तंबाकू या खाना पकाने के धुऍं से हो जाये तो वे ख़तरे के दायरे में होते हैं।
बच्चे यदि धुएं से भरे वातावरण में रहें तो उन्हें न्युमोनिया या श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती है। जन्म से पहले भी ऐसे संपर्क बच्चों के लिये हानिकारक है। गर्भवती महिलाओं को धूम्रपान नहीं करनी चाहिये और न ही धुएँ के संपर्क में रहना चाहिये।
तंबाकू का प्रयोग प्राय: किशोरावस्था के दौरान आरंभ होता है। यदि तंबाकू से संबंधित विज्ञापन और तंबाकू के उत्पाद सस्ते और आसानी से उपलब्ध हों, या उनके आसपास के वयस्क यदि धूम्रपान करते हों तो बहुत संभव है कि किशोर भी धूम्रपान करना आरंभ कर दें। किशोरों को धूम्रपान छोड़ने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और उनके मित्रों को भी इसके ख़तरों के बारे में अवगत कराया जाना चाहिये।
स्त्रोत : यूनीसेफ
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020