योगाभ्यास करते समय योग के अभ्यासी को नीचे दिए गए दिशा निर्देशों एवं सिद्धांतों का पालन अवश्य करना चाहिए :
शौच - शौच का अर्थ है शोधन , जो योग अभ्यास के लिए यह एक महत्वपूर्ण एवं पूर्व अपेक्षित क्रिया है। इसके अन्तर्गत आस पास का वातावरण, शरीर एवं मन की शुद्धि की जाती है। योग का अभ्यास शांत वातावरण में आराम के साथ शरीर एवं मन को शिथिल करके किया जाना चाहिए।
योग अभ्यास करते समय खाली पेट अथवा अल्पाहार लेकर करना चाहिए। यदि अभ्यास के समय कमजोरी महसूस करें तो गुनगुने जल में थोड़ी सी शहद मिलाकर लेना चाहिए।
योग अभ्यास मल एवं मूत्र का विसर्जन करने के उपरान्त प्रारम्भ करना चाहिए।
अभ्यास करने के लिए चटाई, दरी, कंबल अथवा योग मैट का प्रयोग करना चाहिए।
अभ्यास करते समय शरीर की गतिविधि आसानी से हो, इसके लिए हल्के सूती और आरामदायक वस्त्रों को प्राथमिकता के साथ धारण करना चाहिए।
थकावट, बीमारी, जल्दबाजी एवं तनाव की स्थितियों में योग नहीं करना चाहिए।
यदि पुराने रोग, पीड़ा एवं हृदय संबंधी समस्याएं है तो ऐसी स्थिति में योग अभ्यास शुरू करने के पूर्व चिकित्सक अथवा
योग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
गर्भावस्था एवं मासिक धर्म के समय योग करने से पहले योग विशेषज्ञ से पराम र्श किया जाना चाहिए।
अभ्यास सत्र किसी प्रार्थना अथवा स्तुति से प्रारम्भ करना चाहिए। क्योंकि प्रार्थना अथवा स्तुति मन एवं मस्तिष्क को शिथिल करने के लिए शान्त वातावरण निर्मित करते हैं।
योग अभ्यासों को आरामदायक स्थिति में शरीर एवं श्वास प्रश्वास की सजगकता के साथ धीरे-धीरे प्रारम्भ करना चाहिए।
अभ्यास के समय श्वास प्र श्वास की गति नही रोकनी चाहिए, जब तक कि आपको ऐसा करने के लिए विशेषरूप से कहा न जाए।
श्वास प्रश्वास सदैव नासारन्ध्रों से ही लेना चाहिए, जब तक कि आपको अन्य विधि से श् वास प्रश् वास लेने के लिए कहा न जाए।
अभ्यास के समय शरीर को शिथिल रखें, किसी प्रकार का झटका प्रदान नहीं करें।
अपनी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के अनुसार ही योग अभ्यास करना चाहिए।
अभ्यास के अच्छे परिणाम आने में कुछ समय लगता है, इसलिए लगातार और नियमित अभ्यास बहुत आवश्यक है।
प्रत्येक योग अभ्यास के लिए ध्यातव्य निर्दे श एवं सावधानियां तथा सीमाएं होती हैं। ऐसे ध्यातव्य निर्देश को सदैव अपने मन में रखना चाहिए।
योग सत्र का समापन सदैव ध्यान एवं गहन मौन तथा शांति पाठ से करना चाहिए।
आहार संबंधी कुछ दिशा निर्देश
आप इस बात को सुनिि श्चत कर सकते हैं कि अभ्यास के लिए शरीर एवं मन ठीक प्रकार से तैयार हैं। अभ्यास के बाद आम तौर पर शाकाहारी आहार ग्रहण करना श्रेयस्कर माना जाता है। 30 वर्ष की आयु से ऊपर के व्यक्ति के लिए बीमारी या अत्यधिक शारीरिक कार्य अथवा श्रम की स्थिति को छोड़कर एक दिन में दो बार भोजन ग्रहण करना पर्याप्त होता है।
योग निश्चित रूप से सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करने की साधन है। वर्ततान समय में हुए चिकित्सा शोधों ने योग से होने वाले कई शारीरिक और मानसिक लाभों के रहस्य प्रकट किए हैं। साथ ही साथ योग के लाखों अभ्यासियों के अनुभव के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि योग किस प्रकार सहायता कर सकता है।
स्त्रोत अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस,राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना,भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020